सुपर स्टार -24
(Super Star-24)
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शक्ति कपूर
मैं वहाँ से अपनी वैन में आया और आज मैंने आगे के और दो सीन पूरे कर लिए।
मेरे हर शॉट के साथ तालियों की गूंज बढ़ती ही चली गई, वहाँ मौजूद हर इंसान को मैंने अपना दीवाना बना लिया था।
मैं अब वापस घर की ओर निकल पड़ा। मैं जब गाड़ी की तरफ बढ़ रहा था.. तब फिर से रिपोर्टरों के हुजूम ने मुझे घेर लिया.. पर मैं अब और कोई सवाल नहीं चाहता था.. सो मैं उनसे खुद को दूर करता हुआ अपनी कार में बैठ गया।
मैं घर पर पहुँचा तो सब लोग टीवी के सामने ही बैठे थे।
मैंने कहा- क्या आ रहा है टीवी पे..? जो इतने गौर से देख रहे हो आप सब?
श्वेता- तुम खुद ही देख लो।
लगभग हर न्यूज़ चैनल पर मेरे और तृषा की हर तस्वीर को किसी फिल्म की तरह चलाया जा रहा था और बैकग्राउंड में वहीं गाना बज रहा था जो आज मैंने तृषा को डेडीकेट किया था।
पापा- लड़की अच्छी है.. पर इसमें रेखा जी जैसी बात नहीं है।
मैं- अपनी-अपनी नज़र है। वैसे मम्मी को बताऊँ कि आप रेखा जी से मिलने को कह रहे हो?
पापा- अरे तुम्हें अच्छा लगेगा.. कि तुम्हारा बाप तुम्हारे सामने पिट जाए?
फिर हम दोनों हंसने लग गए, मैंने पूछा- फिल्म की रिलीज़ तक आप हो न यहाँ?
पापा- हम सब को बस तुम्हें देखना था और अब हमारा बेटा सुपर स्टार बन गया है। यहाँ नहीं.. घर आओ फिर हम ढेर सारी बातें करेंगे।
मैं- बस पंद्रह दिनों की तो बात है.. आप रुक जाईए न..?
पापा- कुछ अधूरे काम हैं.. उन्हें पूरा करना है, घर पर आओ और तब हम साथ में जश्न मनाएँगे।
मैं- ठीक है आप जैसा कहें।
दो दिन बाद सब लोग चले गए, मैं फिर से अकेला हो गया था। अब प्रमोशन की बारी थी, वैसे तो मेरे और तृषा के काण्ड ने लगभग इस फेज का हर काम पूरा कर ही दिया था.. पर यशराज कोई भी कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहते थे।
जितना भी मैं और तृषा साथ दिखते.. कैम्पेन उतना ही आगे बढ़ता जा रहा था।
फिल्म से जुड़े हर लोग हमें साथ ले जाते और हर जगह मेरे हर ज़ख्म कुरेदे जाते। अब तो दर्द का महसूस होना भी बंद हो गया था।
पूरे देश में इस फिल्म को लेकर जबरदस्त क्रेज हो गया था। आखिर वो रात आ ही गई जब अगले दिन मेरी फिल्म परदे पर आने वाली थी। उस रात मैं अपने अपार्टमेंट में था।
तृष्णा- कैसा लग रहा है तुम्हें?
मैं- नींद आ रही है। प्लीज मुझे सोने दे।
ज्योति- कुम्भकर्ण कहीं के.. आज तो तुम कुछ भी कहो.. हम सब तुम्हें सोने नहीं देंगे।
मैं- हाँ अब तुम तीन और मैं अकेला मासूम बच्चा.. कर लो अत्याचार मुझ पर..
तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई।
ज्योति ने दरवाज़े को खोला तो सामने तृषा हाथ में शराब की बोतल लिए खड़ी थी.. कंधे पे’ एक बैग भी था। वो आई और हम सबके साथ बैठ गईं।
मैं- मुझे आज कुछ ऐसा ही लग रहा था कि तुम आओगी ज़रूर।
तृषा- कल सिर्फ तुम्हारी ही नहीं बल्कि हमारी फिल्म भी रिलीज़ हो रही है। (मेरी ओर देखते हुए) साले तुमने मेरी इमेज की धज्जियाँ उड़ा दी हैं। प्यार का नाटक करना बंद भी कर दो। यहाँ सब बस मतलब के यार हैं.. यहाँ कोई किसी से सच्ची मुहब्बत नहीं करता..
मैं- तुम्हें कभी भी यह नहीं लगा कि मैं तुम्हें सच में प्यार करता हूँ..?
तृषा मेरे सवाल पर ध्यान ना देते हुए कहने लगी- आज उसने भी मुझे छोड़ दिया.. कहता है कि मेरे साथ अब जो भी रहेगा.. उसकी इमेज खराब हो जाएगी। मेरा तो मन करता है कि तुम सबकी जान ले लूँ।
मैं- अभी भी जान लेने में कोई कसर बाकी रह गई है क्या?
तृषा- तुम अब तक नहीं बदले। मुझ पर एक एहसान कर दो…. प्लीज आज मेरी जान ले लो तुम। जब-जब मैं तुम्हारी आँखों में देखती हूँ.. हर बार मुझे यह एहसास होता है कि कितनी बुरी हूँ मैं.. अपने आप से ही घिन सी होने लगी है मुझे..
मैं- तुमने ज्यादा पी हुई है, अभी यहीं आराम करो.. कल सुबह बात करेंगे।
तृषा- नहीं कल शायद मुझमें तुमसे नज़रें मिलाने की हिम्मत भी ना हो। आज मैं तुमसे एक बात कहना चाहती हूँ। बचपन से ही मैंने प्यार के हर रिश्तों को कैरियर और पैसों के सामने बिखरता हुआ देखा है। मुझे कभी भी सच्चे प्यार पर यकीन नहीं था.. जिंदगी में आगे बढ़ने की इतनी चाहत थी मुझमें कि मेरा सच्चा प्यार मेरे सामने होते हुए भी मैं उसे पहचान न पाई। आज मैं आईने के सामने खुद से नज़रें भी नहीं मिला पा रही हूँ। हर बार जब मैं खुद को देखती हूँ.. तो मुझे तुम्हारे साथ बिताएँ वक़्त की याद आती है।
मैंने उसके हाथ को अपनी हाथों में लेते हुए- मैं तो आज भी तुम्हें चाहता हूँ।
तृषा की आँखें भर आई थीं- तुम्हारी यही बात तो मुझे जीने नहीं दे रही। मैंने क्या नहीं किया तुम्हारे साथ, पर तुम्हारी आँखों में अब तक मुझे खुद के लिए प्यार ही दिखता है। मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ, मैं किसी के प्यार के लायक नहीं हूँ। तुम्हें अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना है, किसी दिन तुम्हें भी वो ज़रूर मिलेगी जो तुम्हें सच्चे दिल से चाहेगी। मुझे अपनी जिंदगी की बुरी याद की तरह भूल जाओ। मैं तुम्हारे प्यार के लायक नहीं हूँ। अगर मैं तुमसे आज कुछ मांगूं तो तुम मना तो नहीं करोगे।
मैं- मुझे तुम चाहिए और उसके बाद कुछ भी मांग लेना।
तृषा- मैं तुम्हारी थी, तुम्हारी हूँ और तुम्हारी ही रहूँगी। (उसका हर लफ्ज़ मुझे बीते दिनों में लिए जा रहा था) मैं तुम्हारे साथ एक आखिरी सीन करना चाहती हूँ।
मैं- कैसा सीन?
तृषा बैग से शादी का एक जोड़ा निकालते हुए- एक लड़की का उसकी जिंदगी का सबसे प्यारा सपना जीना चाहती हूँ मैं, तुम्हारे लिए इस जोड़े में सजना चाहती हूँ मैं। यह हर लड़की का अरमान होता है, शादी के जोड़े में सज़ के अपनी प्यार की आँखों में खुद के लिए प्यार देखना। शायद मैं कभी यह दिन न देख पाऊँ। कम से कम इस झूठ की दुनिया में तुम्हारे प्यार को महसूस कर लूँ। तुमने कभी भी मुझे चाहा होगा तो मुझे मना नहीं करोगे।
मेरी आँखों के सामने फिर से अन्धेरा सा छा रहा था। शादी के जोड़े वाली बात मैंने ना तो निशा को ना ही इसे कभी बताई थी तो फिर से वही सब क्यूँ हो रहा था मेरे साथ। ऐसा लग रहा था कि मैं फिर से उसी मोड़ पे हूँ। मेरे गले से अब आवाज़ नहीं निकल रही थी।
मैंने निशा की ओर देखा। पता नहीं वो क्या समझ बैठी, वो सब तृषा को कमरे के अन्दर ले गईं और थोड़ी देर में तृषा शादी के जोड़े में सजी मेरे सामने थी।
मेरी बेचैनी अब अपने चरम पे थी, मैं फिर से वो सब दोहराना नहीं चाहता था, मैं दूसरी ओर घूम गया।
‘जाओ यहाँ से, मैं नहीं देख सकता तुम्हें ऐसे!’ कहते हुए मैं चिल्लाया।
तृषा मुझसे वैसे ही लिपट गई।
तृषा- आज कितने दिनों बाद इस दिल को राहत मिली है।
मैंने अपनी आँखें बंद की हुई थीं।
तृषा मेरे सामने आई और उसने मेरे माथे को चूम लिया।
‘मुझे देखोगे नहीं..?’
मैं- नहीं देख पाऊँगा मैं.. मेरी जान ही ले लो न.. इतना दर्द क्यूँ देती हो।
मैंने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं.. तृषा की आँखें भरी हुई थीं.. ठीक वैसे ही जैसा पहले हुआ था। मैं इस बार उसे देख न पाया और वहीं घुटनों पे आ गया।
तृषा- मैंने अपना सपना जी लिया है। अब मुझे कुछ भी नहीं चाहये। बस तुम खुश रहना।
वो ते कह कर वैसे ही दरवाज़े के बाहर निकल गई। मैं अब तक सदमे में ही था।
तभी निशा कमरे से बाहर आई।
निशा- क्या हुआ तुम्हें..? कुछ तो बोलो।
इस बार फिर जैसे सपने की ही तरह तृषा का हाथ मुझसे छूट रहा हो जैसे.. पर मैं अब इस हाथ को छोड़ने वाला नहीं था। मैं कमरे से बाहर भागा। मेरी साँसें अब बहुत तेज़ गई थीं। मैं इस बार उसे जाने नहीं दे सकता था। तभी सामने सड़क पर तृषा अकेली बीच में चली जाती दिखाई दी। दूर से दो कारें उसकी ओर बढ़ रही थी। मेरे अन्दर जितनी भी जान बची थी मैं भागा उसे बचाने।
‘रुक जाओ तृषा..!’
चिल्लाता हुआ मैं उसकी ओर भाग रहा था। मैंने आखिरकार उसे पकड़ लिया …. पर शायद अब देर हो चुकी थी सामने से आती एक कार ने हमें टक्कर मार दी।
तीन दिनों बाद मुझे होश आया। मैं अस्पताल में था। धीरे-धीरे मैंने अपनी आँखें खोली सामने पापा थे।
‘तृषा कैसी है..?’ मैंने पूछा।
पापा- वो ठीक है, अभी दूसरे कमरे में है वो।
बाकी सब मुझसे बात करना चाह रहे थे पर मेरी आँखें तो बस तृषा को ही ढूंढ रही थी। मैं उठने की कोशिश करने लगा। तभी डॉक्टर ने एक व्हील चेयर मंगवाया और मुझे उस पर बिठा कर तृषा के कमरे में ले गए। हम दोनों की एक टांग और एक हाथ टूट गए थे.. साथ ही सर में भी चोट आई थी।
डॉक्टर ने वहीं एक बिस्तर मंगवा कर मुझे लिटा दिया। सब लोग उस कमरे में हमें घेर के बैठ गए।
निशा- मैंने सुना था कि प्यार में बस दिल को खतरा होता है। हाथ-पैर भी टूटते हैं.. इसका पता मुझे आज ही चला।
सब हंसने लगे।
मम्मी- अब थोड़ी देर इन दोनों को अकेला छोड़ दो, हम आते हैं बेटा।
सब बाहर चले गए।
मैंने मुस्कुराते हुए तृषा को देखा- जानेमन कमरे में कोई नहीं है.. मौके पे चौका मार दिया जाए..
तृषा- कमीने.. हाथ-पैर टूटे हुए हैं। अब तो सुधर जाओ।
मैंने रिमोट से टीवी ऑन किया। न्यूज़ चैनल पे हमारी फिल्म के बारे में ही ख़बरें आ रही थीं।
‘बॉलीवुड के इतिहास में कभी ऐसा नहीं हुआ होगा कि बिना किसी फ़िल्मी इतिहास के एक लड़का यहाँ आता है और ना सिर्फ बॉलीवुड में मुकाम हासिल करता है.. बल्कि उसकी पहली फिल्म ओपनिंग में ही ऐतिहासिक कमाई करती है।’
उसके बाद देश भर के सिनेमा घरों से निकलती भीड़ से वो इस फिल्म के बारे में पूछते हैं। हर जगह बस हमारा ही नाम छाया हुआ था।
तृषा- लगता है तुम सुपरस्टार बन गए।
मैं- ऐसा है क्या? तब तो शायद ज़न्नत से सेटिंग हो जाएगी मेरी..
तृषा ने मुक्का मारते हुए कहा- दुबारा किसी और का नाम लिया न.. तो दूसरी टांग भी तोड़ दूँगी।
हम हंसते हुए एक-दूसरे के गले मिल लिए। कुछ दिनों के बाद हमें हॉस्पिटल से डिस्चार्ज किया जाना था। अब हम दोनों ही पूरी तरह से ठीक हो गए थे।
तृषा ने मुझे तैयार किया और हम बाहर जाने लगे।
तृषा- मैं बाकियों के साथ आती हूँ। तुम्हारे साथ गई तो यहाँ की भीड़ में निकलना भी मुश्किल होगा।
मैं- इन्हीं की चाहत ने आज हमें इस मुकाम तक पहुँचाया है और इनसे ही किनारा ले रही हो।
तृषा- सच कहूँ।
मैं- कहो।
तृषा- आज ये भीड़ तुम्हारे लिए आई है। ये भीड़ ही है जो हमें मिलाती है हमारी खुद की पहचान से। मैं इस दौर से गुज़र चुकी हूँ आज तुम्हारी बारी है। ये लम्हें तुम्हारी जिंदगी के सबसे यादगार लम्हे होने वाले हैं। इस हर पल को अपनी यादों में कैद कर लो.. अब जाओ भी।
मैं अकेला ही बढ़ चला दरवाज़े की ओर.. जैसे ही दरवाजा खुला..
चारों तरफ हज़ारों कैमरों की जगमगाती चमक, जहाँ तक नज़रें जाएँ बस पागल होती बेकाबू सी भीड़ और उस भीड़ को काबू करने में लगे हुए कितने ही पुलिस वाले। कानों में गूंजता हुआ बस आपका ही नाम। हर चौराहे पे आपकी बड़ी बड़ी तस्वीरें। हर खबर की सुर्ख़ियों में बस आपका ही ज़िक्र।
सच ही कहा है किसी ने…
यूँ तो हर मोड़ पे बहुत सी जिंदगियाँ साँसें लेती दिखाई देंगी, पर उन जिंदगियों में जान नहीं होती।
जीते तो सब हैं इस दुनिया में, पर यहाँ हर किसी की खुद की पहचान नहीं होती।
आज मेरी एक पहचान थी। हाँ मैं अब सुपर स्टार बन चुका था।
मेरे प्यारे पाठकों के लिए ही मैंने ये कहानी लिखी है। उम्मीद है कि ये पसंद आई होगी। हाँ इसके कुछ भाग काल्पनिक और कुछ भाग मेरी असली कहानी है। मुझे ज़रूर बताईएगा कि आपको ये कहानी कैसी लगी। आपके प्यारे संदेशों की वजह से ही मुझे कहानियाँ लिखने की प्रेरणा मिलती है।
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