शीला का शील-14
(Sheela Ka Sheel- Part 14)
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फिर यह लगभग रोज़ का ही सिलसिला हो गया।
देर रात वह आ धमकता था, अक्सर उसके साथ कोई न कोई होता था जो रानो के साथ लग जाता था। जबकि खुद को उसने शीला के लिये जैसे रिज़र्व कर लिया था।
सोनू ने आना बंद कर दिया था। चंदू ने ही बताया था कि उसने जो पैसे कहे थे वह दे दिये थे और रानो से उसे पता चला था कि अब वह अपने घर पे भी रानो को नहीं छूता था।
शायद चंदू ने इस विषय में भी धमकाया हो या उसने कोई और जुगाड़ ढूंढ लिया हो और अब उन बहनों में उसकी दिलचस्पी इसलिये भी न रही हो कि अब चंदू उनके साथ जुड़ चुका था।
यूँ रात के अँधेरे में रोज़ रोज़ इस तरह के लोगों का उनके घर पे आना भला राज़ कब तक रहता, धीरे-धीरे सब को पता चल ही गया था।
और अघोषित रूप से उन्हें वेश्या जैसा मान लिया गया था।
बदनामी तो मिलनी ही थी, सोनू के बारे में पता चलता तो भी यही होता। चंदू था तो किसी में हिम्मत नहीं थी कि कोई कुछ कहे।
किसी ने नहीं देखा कि बड़ी उम्र तक कुंवारी बैठी रहने वाली उन बहनों की मज़बूरी क्या थी… देखा तो बस यही कि उन्होंने वर्जनाओं को तोड़ा था, मर्यादाओं का उल्लंघन किया था।
और मर्दाने समाज के ठेकेदार पाते तो उन्हें कब का मोहल्ले से रुखसत कर चुके होते लेकिन चंदू नाम की दहशत से मजबूर थे।
इस सिलसिले का पता जब पूरे मोहल्ले को हो गया तो भला आकृति और बबलू को क्यों न होता।
रानो ने जैसे तैसे आकृति को तो समझा लिया था।
मगर बबलू के लिये समझना आसान नहीं था… यह बदनामी उसे इतना ज्यादा शर्मिंदा कर रही थी कि वह डिप्रेशन में रहने लगा था।
चंदू गुंडा था और वहीं रहने वाला था, वह लोगों को डरा सकता था लेकिन न किसी का दिल जीत सकता था और न समझा सकता था।
फिर घर में उसका आना जाना दिन में भी किसी वक़्त हो जाता था तो आकृति से भी उसका सामना हो जाता था और वह उसे भी मसलने से चूकता नहीं था।
आकृति शीला की तरह तगड़ी नहीं थी और रानो की तरह दुबली पतली भी नहीं थी।
चंदू के लिये भले वह ऐन उसके टाइप की नहीं थी मगर फिर भी उसके लिये आकृति में आकर्षण तो था ही।
और एक दिन वह भी आया जब रात चंदू नशे में बुरी तरह टुन्न अपने दो चेलों के साथ उनके घर आया तो इत्तेफ़ाक़ से आकृति नीचे आई थी और उसके हत्थे चढ़ गई।
अब नशे में उसे कहाँ होश रहता, उसने पहली बार आकृति को पकड़ कर उसके साथ कुछ करने की कोशिश की।
पहले तो दोनों बहनों ने उसे रोका, मगर जब चंदू पर कोई असर पड़ते न पाया तो शीला की सोच एकदम बदल गई।
चंदू की इस हरकत पर शीला की आत्मा तक तड़प उठी थी, आकृति को उसने बड़ी बहन के रूप में ही नहीं माँ के रूप में पाला था। उसकी पूरी ज़िम्मेदारी शीला पर ही थी।
उसे इस बात की ग्लानि भी हो रही थी कि जो सब हो रहा था वह उसी की वजह से शुरू हुआ था।
उसके दिमाग में आग सी भरने लगी थी।
तगड़ी तो थी ही, ताक़त भी थी… उसने इतने ज़ोर से झटका दिया कि उसे पकड़ने वाले को सम्भलने का मौका न मिला और वह दरवाज़े से जा टकराया।
वह लपक कर कमरे से निकल गई।
वह सीधी किचन में पहुंची और वहां मौजूद सबसे बड़े साइज़ का छुरा निकाल लिया।
उसे पकड़ने वाला संभल के उसके पीछे दौड़ा था मगर अब शीला चंडी के रूप में उसके आगे छुरा लिये खड़ी थी।
शीला ने उसकी तरफ छुरा लहराया और वह उसकी भंगिमाएं देख कर सहम कर दीवार से सट गया।
शीला लपकते हुए कमरे में पहुंची तो रानो को पकड़ने वाला उसकी तरफ लपका।
मगर शीला के चलाये छुरे से बचने की वजह से संभलने के चक्कर में वहीं गिर पड़ा, जबकि शीला चंदू के सर पर पहुंच कर छुरा तान कर खड़ी हो गई थी।
‘छोड़ उसे चंदू… वरना मार दूंगी… छोड़ उसे।’
चंदू एकदम नये बने हालात में हड़बड़ा कर सीधा हो गया था और उसकी पकड़ से छूटते ही आकृति बिस्तर से उतर कर शीला के पास आ गई थी।
‘पागल हो गई है क्या… जान से मार दूंगा।’
‘मर तो पहले ही चुकी हूँ मैं… आत्मा से, शरीर से भी मर जाऊँगी तो क्या फर्क पड़ेगा मगर मरने से पहले मैं भी तुझे मार डालूंगी।’
उसके शब्द सच्चे थे।
और उसकी दृढ़ता को चंदू भी महसूस कर सकता था। उसका नशा टूट चुका था और अब वह कसमसाता हुआ आग्नेय नेत्रों से शीला को ही घूर रहा था।
‘रानो, तू आकृति को कमरे में ले जा और अगर कोई ऊपर आये तो इसी वक़्त पुलिस को फोन कर के बुला लेना, जा यहाँ से।’
रानो ने देर नहीं की और उसने आकृति की सलवार उठाते हुए आकृति को सम्भाला और कमरे से बाहर निकल गई।
‘तूने ठीक नहीं किया गुठली!’ चंदू गुर्राता हुआ बोला।
‘सही गलत तुझे नहीं दिखेगा चंदू… क्योंकि तेरी नज़र में औरत न बेटी है न बहन, बस चोदने लायक माल है। तुझे हम दो बहनें मिली तो हुई हैं, जो करना है कर, मगर उसे बख्श दे। अपने साथ मैं कोई भी अत्याचार सह लूंगी पर आकृति के साथ नहीं।’
चंदू ने उठ कर उसके हाथ से छुरा छीन लिया। उसका काम हो चुका था, इसलिये उसने भी विरोध नहीं किया, उसका लक्ष्य आकृति को बचाना भर था।
चंदू ने उसे इतने ज़ोर का थप्पड़ मारा कि वह फर्श पर फैल गई।
थप्पड़ की चोट उसके शरीर पर ही लगी थी मगर वह खुश थी कि आज उसकी आत्मा पर चोट लगने से बच गई थी।
‘आज तुझे सजा तो दूंगा मैं!’ चंदू एक-एक शब्द चबाता हुआ बोला- दिमाग ठीक हो जायेगा तेरा!
‘ध्यान रखना चंदू, बीवी नहीं हूँ जो सबकुछ सह जाऊं। उसी हद तक सह सकती हूँ जहां तक मेरा ज़मीर गवारा करे।’
यह उसकी तरफ से धमकी थी जिससे चंदू तिलमिला कर रह गया। उसने शीला के नितंबों पर एक ठोकर जड़ दी।
‘चलो बे… इसकी गांड मारो। आज अपन पूरी रात इसकी पीछे से बजायेंगे। यही इसकी सजा है।’
उसे पता था कि जो सिलसिला चल रहा था उसमे कभी न कभी यह नौबत तो आनी ही थी इसलिये उसने खुद को मानसिक रूप से तैयार रखा हुआ था।
इतनी सजा तो वह बर्दाश्त कर ही सकती थी।
उसे उठा कर बिस्तर पर पटक दिया गया और कपड़े फाड़ कर उसके जिस्म से अलग कर दिये गये।
चंदू और उसके साथियों ने भी अपने कपड़े उतार फेंके। एक के बाद एक तीनों ने उसके मुंह में लिंग डाल के चुसाया ताकि वे उत्तेजित अवस्था में आ सकें।
फिर उसे इस पोजीशन में लाया गया कि उसके गुदा के छेद को सामने लाया जा सके। तीनो में जिसका लिंग सबसे कम साइज़ का था उसे पहला मौका मिला।
उन्होंने कोई लुब्रीकेंट नहीं इस्तेमाल किया सिवा थूक लार के और इस वजह से उसे तेज़ दर्द का अहसास हुआ।
जितनी देर में लिंग ने उसके गुदाद्वार में अपना रास्ता बनाया वह दर्द से तड़पती रही और जब थोड़ा आराम से अंदर बाहर होने लगा तो उसे थोड़ी राहत मिली।
उसे लगा था जब एक स्खलित हो जायेगा तो दूसरा डालेगा जिससे वीर्य के रूप में स्वाभाविक लुब्रिकेंट मिल जायेगा और उसे कम तकलीफ होगी।
लेकिन ऐसा हुआ नहीं और उन्होंने स्खलित होने से पहले ही उसके साथ मैथुन किया और इसी तरह कम लुब्रिकेंट के बावजूद जबरन लिंग घुसाया जिससे उसे दर्द दिया जा सके।
बहरहाल वह रात उसके लिये क़यामत की तरह गुज़री और सुबह हुई तो उसे न सिर्फ शौच में बुरी तरह तकलीफ हुई बल्कि चलने में भी परेशानी हुई।
काम पर जाने के बजाय वह घर ही पड़ी रही। रानो ने उसे दर्द की दवा ला दी थी जिससे उसे थोड़ी राहत हुई थी।
उस दिन पहली बार उन चारों बहन भाई ने एकसाथ बैठ कर इस समस्या पर बात की और पहली बार बबलू उनकी मनःस्थिति और उनकी विवशता समझने को राज़ी हुआ।
शीला की शादी के लिये जो पैसा जुटा कर रखा गया था वह बबलू की पढ़ाई पर लग रहा था… आगे का यह तय हुआ कि आकृति की पढ़ाई के लिये भी जो पैसा खर्च होगा वह रानो के लिये सुरक्षित पैसों से होगा।
जो माहौल बन चुका है उसे वे बदल नहीं सकते और ऐसे माहौल में उनका यहाँ रहना ठीक नहीं, बेहतर है कि वे होस्टल में रहें।
दोनों बहने खुद ही आ कर उनसे मिल लिया करेंगी, बाकी फोन पर तो बातें होती रहेंगी।
उनके लिये बेहतर भविष्य की उम्मीद सिर्फ इसी में है कि वे दोनों पढ़ लिख कर कुछ बन सकें।
फिर इसके बाद यही हुआ था।
उन दोनों भाई बहन को वहाँ से हटा दिया गया था और चंदू ने जैसे मुस्तक़िल ठिकाना उनके यहाँ ही बना लिया था। अब या तो वह अपने ‘काम’ पर होता था या जेल में या उनके यहाँ!
उसने दोनों बहनों को भी पीने की लत लगा दी थी और एक अच्छी बात ये भी की थी कि घर खर्च के लिये पैसे वही देता था जिससे उनकी गुज़र आराम से हो जाती थी।
आकृति फिर कभी उनके बीच झगड़े का मुद्दा न बनी।
‘फिर अब, भविष्य के लिये क्या सोचा है?’ उसका सबकुछ जान लेने के बाद मैंने उससे जानना चाहा था।
‘बड़ा सा पुश्तैनी घर है… कई बिल्डर खरीदने को भी तैयार हैं। दोनों भाई बहन किसी मुकाम पर पहुंच जायें तो मौका देख कर चुपके से बेच कर लखनऊ ही छोड़ दें। किसी और शहर में जा बसें।
नई ज़िन्दगी शुरू करें जहां कोई हमारा अतीत जान्ने वाला न हो। मुझे पता है कि उनके सम्मान के लिये हमे भी गरिमापूर्ण जीवन जीना होगा।
जिसके लिये हमे अपनी शारीरिक इच्छाओं की पहले की ही तरह बलि देनी होगी और हमने इसके लिये खुद को तैयार भी कर रखा है। शायद इसीलिये हम चंदू के साथ खुश हैं।
क्योंकि हमे पता है कि कैसे भी मिल रहा है पर उसके साथ हमे वह सुख तो मिल रहा है जो आगे शायद हमें कभी न मिले।’
‘और चाचा?’
‘दो साल में अब और कमज़ोर हो गया है। मैंने कभी उसके साथ सहवास नहीं किया, रानो ही करती है जब ज़रूरत महसूस होती है लेकिन उसके लिये भी हमारे पास कुछ अलग नहीं। जहां हम सब होंगे वहीं वह भी होगा। उसका हमारे सिवा है ही कौन।’
‘क्या मैं तुम्हारे किसी काम आ सकता हूँ।’
‘कैसे, तुम चंदू से हमारा पीछा छुड़ा सकते हो? शायद नहीं… और छुड़ा भी दो तो उससे क्या हमारी समस्या ख़त्म हो जायेगी।
हमारे शरीर में पैदा होने वाली वासनात्मक ऊर्जा को कोई जायज़ निकासी मिलेगी क्या?
चंदू गुंडा है, बदमाश है, एक सभ्य समाज के लिये कोढ़ है मगर हमारे लिये तो अपरिहार्य है। तुम्हें पता है हमारे पीछे पूरा मोहल्ला हमें रंडियां ही कहता है।
हमें दुनिया चंदू की रखैल के रूप में ही जानती है। किसी को हमारी मज़बूरी से कोई मतलब नहीं। कोई नहीं देखेगा कि हम क्यों उसके आगे समर्पण कर बैठी।
दुनिया बस यह देखेगी कि हमने वर्जनायें तोड़ी हैं, हमने सामाजिक मर्यादाओं का उल्लंघन किया है। हमने बड़े बूढ़ों के बनाये नियमों को ठोकर मारी है और एक स्त्री के सम्मान को चोट पहुंचाई है।
फिर किसे मतलब कि हमारे जैसी अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर औरतों के लिये जब समाज ने सिवा सब्र करने के कोई नियम बनाया ही नहीं तो हम और क्या करें?
सम्भोग की इच्छा शरीर में पैदा होने वाली अतिरिक्त ऊर्जा है जो इंसानों को ही नहीं जानवरों तक को नहीं छोड़ती। कैसे हम उन स्त्री सुलभ मानवीय इच्छाओं का दमन कर लें।
मर्द को भूख सताती है तो कहीं भी चढ़ दौड़ता है। उसका चरित्र वर्जना तोड़ने को लेकर कभी कटघरे में खड़ा नहीं किया जाता लेकिन पुरुष वर्चस्व वादी समाज में औरत के लिये ही सारे नियम हैं।
लोगों को तकलीफ यह कम होती है कि हमने या हमारे जैसी औरतें मर्यादा वर्जना तोड़ती हैं बल्कि इससे ज्यादा यह होती है कि दूसरों को भोगने को मिल रहा है हमे क्यों नहीं।
आजकल चंदू जेल में है तो लोगों की ज़ुबाने खुलने लगी हैं। जो सामने निगाहें भी नहीं मिलाते थे अब ताने मारने लगे हैं। पड़ोस के शर्मा अंकल, जिन्हें हम हमेशा चाचा जी कहते थे।
कल आये थे हमे आइना दिखाने, हमे बताने कि हमारी वजह से मोहल्ले की बहु बेटियों पर बुरा असर पड़ रहा है और वे बिगड़ी जा रही हैं।
गालियां दीं, हमे वेश्या कहा और ढेरों लोगों को हमारे दरवाज़े पर इकठ्ठा करके हमे मोहल्ले से निकालने पर तुल गये। बड़ी मुश्किल से हमारी जान छूटी।
जानते हो एक रात नशे में यह हमारे दरवाज़े पर आये थे, हम पर अहसान जताने कि हम उनके सपोर्ट की वजह से ही यहां रह पा रहे हैं। इसकी कीमत चाहते थे कि हम उन्हें अपने ऊपर चढ़ाएं।
हमने मना कर दिया था और उन्हें भगा दिया था… यही थी इनकी सामाजिक ठेकेदारी। इसी नाकामी का दाग धोने आये थे हमें रुस्वा करके।
सुबह मैंने चंदू से बात की, उसके पास इतनी पावर है कि जेल से भी बात कर सकता है। फिर उसका मेसेज लेके शर्मा जी के यहां गई।
कि चंदू ने कहलाया है कि उसे आने दो वह शर्मा जी की इच्छा ज़रूर पूरी करेगा और हमे वहाँ से हटा देगा। तो लग गये माफियाँ मांगने।’
‘हम्म…’ मैं थोड़ी सोच में पड़ गया- तो मेरे लिये तुम्हारे पास इसलिये वक़्त निकल पाया कि चंदू जेल में है आजकल!
‘हाँ!’ वह खामोश हो कर मुझे देखने लगी।
‘और जब बाहर आ जायेगा तब?’
‘तब भी… तुम चाहोगे तो हम दोस्त बने रहेंगे। पता है इस बदनामी के बाद लोग हमसे कन्नी काटने लगे। हमारे पास बात करने वाला भी कोई नहीं, कोई सहेली नहीं, कोई दोस्त नहीं।
रानो जिन चाचा जी के यहाँ पढ़ाती थी, उन्होंने रानो का अपने घर आना बंद करा दिया और लोगों ने अपने बच्चे हमारे घर भेजने गवारा न किये।
उसकी इनकम बंद हो गई तो उसने भी मोहल्ले से दूर एक छोटी सी नौकरी कर ली। पच्चीस सौ पगार मिलती है… पांच सौ किराये में खर्च हो जाते हैं और सिर्फ दो हज़ार बचते हैं।
मैं भी आने जाने के किराये के सिवा बस तीन हज़ार पाती हूँ। सोचो, इस महंगाई के दौर में पांच हज़ार में होता क्या है। अगर चंदू हमारा खर्च न उठाये तो हमे मुसीबत हो जाये।
तुम ऐसे देखोगे तो तुम्हे लगेगा मेरे साथ बुरा हुआ… जैसे मैं किसी ज़ुल्म का शिकार हुई हूँ, जैसे मैं पीड़ित हूँ लेकिन इसी में मेरी मेरी भलाई भी है। इसी में मेरी गति भी है।
हमें अपनी अन्तर्वासना को तृप्त करने का कोई जायज़ स्रोत नहीं मिलने वाला तो हमारी शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति के लिये इसके सिवा और कौन सा मार्ग हो सकता है?
चंदू लाख बुरा सही मगर उससे न सिर्फ हमे आर्थिक सुरक्षा हासिल है बल्कि हम इस नैतिकता के ठेकेदार समाज में बिना किसी अहित की आशंका के जी भी तो रहे हैं।
हाँ, मुझे तुममें दिलचस्पी थी, मैं तुमसे बात करना चाहती थी क्योंकि मैं चाहती थी कि कोई मुझे जाने, कोई मुझे समझे।
जैसी हमें ज़माना समझता है हम वैसी नहीं हैं। हम वेश्या नहीं हैं, हम बदचलन नहीं हैं। हमारी भी मजबूरियां हैं।
हम समाज की वह अभिशप्त नारियां हैं जो बड़ी उम्र तक कुवारी बैठी रहती हैं और जिन्हें एक दिन हार कर अपनी शारीरिक इच्छाओं के आगे समर्पण करना पड़ता है।
हम यह रास्ता इसलिये चुनते हैं क्योंकि समाज ने हमारे लिये विकल्प नहीं छोड़े। सब्र करना इसका इलाज नहीं है।
ये ढाई अक्षर किसी नारी को गहरी यौन कुंठा के गर्त में धकेल देते हैं जहाँ पल पल की घुटन के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं हासिल होता।
पर इसका मतलब यह नहीं कि वर्जनाओं को तोड़ कर अपने हिस्से का प्राकृतिक सुख हासिल कर लेने वाली नारी वेश्या हो जाती है।
हम रंडियां नहीं हैं।’
कहते कहते उसकी आँखें भीग गईं और आवाज़ रूंध गई तो मैं उसे अपने कंधे से लगा कर थपकने लगा।
फिर थोड़ी देर हमारे बीच ख़ामोशी पसरी रही और थोड़ी देर बाद मैं उसका चेहरा उठा कर उसकी आँखों में झांकता हुआ बोला- नहीं… तुम वेश्या नहीं बल्कि मेरी नज़र में वैसी ही गरिमापूर्ण नारी हो जिसने बगावत की और वह हासिल किया जिसे उसके हिस्से में नहीं लिखा गया था।
समाज का लगभग हर मर्द ऐसा ही करता है। अगर सिर्फ अधिकृत पार्टनर से ही सेक्स जायज़ है तो इस समाज का लगभग हर मर्द भी तुम्हारे साथ अपराधी के रूप में ही खड़ा है।
और अगर इस समाज की ज़ुबाने उन मर्दों को दोषी ठहराने में थरथराती हैं तो उन्हें तुम्हे भी दोषी कहने का अधिकार नही।’
फिर थोड़ी देर हमने और वहाँ गुज़ारी और फिर हम वापसी के लिये वहां से चल पड़े।
जिस घड़ी मैंने उसे उसके मोहल्ले के पास छोड़ा तो रुखसती के वक़्त उसकी आँखों में आभार था… कृतज्ञता थी।
और उसके शब्द थे ‘थैंक्स… आज मैं हल्की हो गई। मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुमने मुझे कितना समझा, कितना नहीं। मुझे इस बात की तसल्ली है कि तुमने मेरी हर बात गौर से सुनी, मुझे समझने की कोशिश की।
मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मेरे अंतर में समाया, मुझे दिन रात ग्लानि का अहसास कराने वाला कोई बोझ मुझ पर से हट गया और मैं आज़ाद हो गई।
मुझे सुकून है कि दुनिया में कोई तो है जिसने मेरी बेगुनाही को जाना। जो मेरे न रहने पर भी किसी पूछने वाले को बता सकेगा कि मेरी क्या मजबूरियां थीं। थैंक्स।’
और वह चली गई— उसके शब्द मेरे ज़हन में बजते रहे और उस रात बड़ी देर तक मैं सो भी न सका। उसके ग़म से बेचैन होता रहा।
हो सके तो कहानी के बारे में अपने विचारों से मुझे ज़रूर अवगत करायें
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