सम्भोग से आत्मदर्शन-15
(Sambhog Se Aatmdarshan- Part 15)
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अब तक आपने जो पढ़ा उसमें आंटी और मेरे बीच प्यार के अहसास थे, फिर मैंने ‘आयय हायय मेरी जानेमन…’ कहते हुए मैंने आंटी को अपनी बांहो में उठा लिया और मकान के उस चौथे कक्ष की ओर बढ़ गया जिसे हम लोगों ने इलाज और इस काम के लिए ही आरक्षित कर रखा था।
मैंने आंटी को उस कमरे में बिछे गद्दे पर लिटा दिया, उन्होंने गद्दे में उतरते ही एक ओर करवट ले ली, जो कि पुराने ख्यालाती औरतों की एक जानलेवा अदा है। और मैं उनके पीछे ही सट कर लेट गया, मेरा लिंग तन चुका था, जिसका आभास आंटी को शायद अपनी जांघों के आसपास हो रहा होगा।
आंटी की तेज सांसें मुझे स्पष्ट सुनाई दे रही थी।
मैं बिना कुछ कहे उनके कंधे पीठ और जहां तक मैं पहुंच सकता था, उनके गालों को चूमने की कोशिश करने लगा, उनके शरीर में हलचल बढ़ने लगी थी.
तभी उन्होंने कहा- छोटी को ले आओ ताकि उसका इलाज हो सके, और दरवाजा भी बंद कर लेना!
मैंने हाँ कहते हुए आज्ञा का पालन किया।
छोटी एक कोने में सलवार कुरती पहने बैठी थी, अब वो मुझसे नहीं डरती थी इसलिए मेरे साथ वो उस कमरे में चली आई और तब मैंने दरवाजा बंद करते हुए कम रोशनी वाली बल्ब जला दी।
बदामी रेशमी साड़ी में लिपटा आंटी का जिस्म, इस रौशनी में मुझे और भी ज्यादा भा रहा था।
छोटी को मैं एक कोने पर बैठाने वाला था, पर तभी आंटी ने पलट कर और उसका हाथ पकड़ कर कहा- इसे हमारे आसपास ही रहने दो, पास रहेगी तो मैं इसे संभाल पाऊंगी, और कुछ सिखा भी पाऊंगी.
तो मैंने उसे अपने हमारे पास गद्दे पर ही बिठा लिया।
अब हम तीनों गद्दे पर बैठे थे, मेरा धर्य आप लोगों की ही तरह टूटता जा रहा था इसलिए मैंने आंटी की मांसल जाँघ में अपना हाथ रख दिया.
आंटी चिहुँक उठी पर खुद को संयत करते हुए उन्होंने मेरे उसी हाथ को हल्के हाथों से सहला दिया, मतलब यह कि कार्यक्रम की शुरुआत का फीता कट चुका था।
मैंने उन्हें यूं ही सहलाते हुए उनके कंधे और गर्दन पर चुंबन अंकित कर दिये, आंटी की आँखें शर्म हया मजे और कामुकता के अहसास में बंद हो गई।
तभी छोटी ने कहा- माँ, ये तुम्हारे साथ क्या कर रहा है?
छोटी ने यह सवाल तनु वाले दिन पूछा या नहीं मुझे याद नहीं, और ऐसे भी विक्षिप्त लड़की कब क्या पूछेगी और क्या नहीं, ये कौन जानता है।
छोटी के सवाल पर आंटी थोड़ा शरमा गई, तब मैंने कहा- छोटी, इसे चुम्बन कहते हैं और जब कोई पुरुष किसी महीला से संबंध बनाने वाला हो तब महिला के शरीर को सम्भोग की अवस्था के लिए तैयार करना जरूरी होता है, जिसे आजकल फोर प्ले भी कहते हैं।
मैंने फिर कहा- क्या तुम ये सच में नहीं जानती थी?
वो बेचारी पागल क्या जानती… पर मैं उसके दिमाग में जोर देना चाहता था, जैसे डॉक्टर पागल मरीज को झटका देकर ठीक करते हैं।
तब छोटी ने रोनी सी सूरत बना दी और कहा- उन कमीनों ने तो बस कपड़े फाड़े और एक के बाद एक पूरे जिस्म को गिद्ध की तरह नोचते रहे, कितने लोगों ने मेरा स्वाद चखा मैं तो गिनती भी नहीं लगा सकती।
अब आंटी और मैं भी रो पड़े और उसे गले से लगा लिया, इस समय हमें सम्भोग के मजे से ज्यादा छोटी का दर्द सामने नजर आया। छोटी में सचमुच बहुत सुधार हुआ था, तभी वो इतनी बातें कह पाई.
और फिर आंटी ने मोर्चा संभाला और छोटी को कहा- बेटी, संदीप ने कहा है ना कि उसे सजा दिलवा कर रहेगा, तो उसका यकीन करो, और अपने जीवन को फिर से नई दिशा दो, जीने का हंसने का प्रयास करो, उन बातों को अब तुम हम लोगों पर छोड़ दो। देखो बेटी, तुम्हारे साथ जो हुआ वो कष्टदायक था लेकिन हर बार सम्भोग कष्टप्रद नहीं होता, इसी बात को तुम्हें समझाने के लिए हम तुम्हारे सामने ये सब करते हैं। ये देखो… संदीप मेरी जाँघों को सहला रहा है तो मुझे कितना आनन्द आ रहा है.
यह कहते हुए उन्होंने खुद ही मेरे हाथों को पकड़ कर अपनी जाँघों में रख लिये।
हाथ चाहे खुद से रखा जाये या कोई आपके हाथों को पकड़ कर वहाँ पर रखे, मजा तो आता ही है, और मैं भी इसी मजे में सुमित्रा देवी (आंटी) को दुबारा डुबाने का प्रयास करने लगा.
अब मैंने आंटी की पीठ की ओर से हाथ सामने की ओर सरकाते हुए, पहली बार आंटी के उस अंग को छुआ जिसकी हसरत मुझे पहली नजर से ही थी, और छुआ ही नहीं, मैंने आंटी के मदमस्त कर देने वाले अनुभवी उरोंजो का मर्दन ही कर दिया।
और उस पल आनन्द को मैं अपने शब्दों में पूर्ण रूप समाहित नहीं कर पा रहा हूं इसके लिए मैं सभी पाठकों से माफी चाहता हूं। क्योंकि अधेड़ उम्र की औरत चाहे जैसी भी दिखे पर उसके शरीर का हर अंग और भी ज्यादा मुलायम नाजुक और नरम होता है।
आंटी के स्तन भारी जरूर थे पर उनको छूते ही, उनको मसलते ही, उन पर जब मेरी उंगलियां गड़ गई तब आंटी ने एक बार फिर अपनी आँखें बंद कर ली और अपने होंठों को दांतों में दबा लिया, मैंने तो पहले ही आँखें बंद कर रखी थी और आंटी की कोमल भुजाओं खुले कंधे और खूबसूरत गर्दन पर अपनी जीभ फिरा रहा था।
तभी छोटी ने अपनी माँ की हालत देख कर आवाज लगाई- दर्द हो रहा है क्या माँ?
तो आंटी ने उसी मुद्रा में बिना आँखें खोले ही अपनी मदहोश कर देने वाली लहराती आवाज में कह दिया- नहीं छोटी, दर्द नहीं हो रहा है… मुझे बिल्कुल भी दर्द नहीं हो रहा है… मुझे तो अच्छा लग रहा है… मुझे तो बहुत अच्छा लग रहा है… मुझे तो इतना अच्छा लग रहा है कि मैं अपना सात जन्म यूं ही संदीप की बांहों में गुजार दूं।
जाहिर सी बात है, उनकी इन बातों ने मेरा जोश दुगुना कर दिया था और शायद आंटी ने भी मेरा जोश बढ़ाने के लिए ही कैसा कहा होगा.
एक बात और थी कि हमें छोटी को दिखाना था कि सेक्स वास्तव में नारी के आनन्द की चीज है ना कि तकलीफ की… और आंटी ने अपने अनुभव का प्रयोग करते हुए सही जगह पर चोट की।
छोटी के सवाल पर मैंने अपनी आँखें एक पल के लिए खोली थी पर दुबारा तन्मयता से अपने कार्य में लग गया।
अब मैंने आंटी को पीछे से अपनी बांहों में पूर्ण रूप से जकड़ते हुए, उनके दोनों उन्नत और लाजवाब स्तनो को अपने दोनों हाथों से मलना शुरू कर दिया और आंटी के मुख से कामुक ध्वनियां स्वतः झरने लगी।
छोटी अब ये तो समझने लगी थी कि मैं उसे या उसके परिवार के किसी भी सदस्य को चोट पहुँचाने वाला व्यक्ति नहीं हूँ, इसलिए अब वो उग्र ना होकर केवल कौतुहलता के साथ हमें देखती रही। एक तरह से उसके इस व्यवहार को भी हम इलाज का लाभ मान सकते हैं।
अब मेरे हाथ उनके नंगे और अंदर धंसे पेट पर भी चलने लगे, आंटी 34-28-36 के शरीर की मलिका थी, इसका सीधा मतलब था कि सीने और नितम्ब के बीच का हिस्सा बहुत पतला होना और जब किसी स्त्री का पेट सपाट हो अंदर हो, तब वो बला की खूबसूरत होने के अलावा बहुत ही ज्यादा कामुक और उत्तेजित स्त्री होती है।
और आंटी भी ऐसी ही कामुक स्त्री निकली. उन्होंने पैर फैला दिये, शायद वो अपनी चूत को थोड़ी राहत पहुँचाना चाह रही हो, उन्होंने अपने हाथों से मेरा शरीर सहलाना शुरू कर दिया, बालों को भी खींचने लगी.
मैंने उनका पेट सहलाते हुए उनकी नाभि पर अपनी उंगलियाँ पहुँचा दी, उनकी नाभि को मैं पहले भी निहारा करता था, वो एक लंबी सी बिंदी की तरह गहरी और खूबसूरत थी, मैंने उनकी नाभि पर अपनी उंगलियां फिराई और कहा- आंटी आँखें खोलो ना… मुझसे नजरें तो मिलाओ।
आंटी ने सिसकारते हुए कहा- नहीं संदीप, हम अपनी लज्जा को त्याग नहीं सकेंगे, अगर किसी औरत के आँखों का पानी मर गया तो समझो वो वेश्या बन गई, मुझे इस शर्म की चादर को ओढ़े रहने दो, मैं तो अब तक और भी सिमट चुकी होती अगर मुझे छोटी के इलाज का ख्याल ना होता।
मुझे अब अहसास हुआ कि कल तक इतना शर्माने वाली औरत आज इस तरह साथ कैसे दे रही है। मैंने सोचा कि बात चाहे जो भी हो, समय का सही उपयोग जरूरी है, और मैंने आंटी को पकड़ कर खड़ी कर दिया और उनकी साड़ी निकालने लगा।
मैं उनकी साड़ी पकड़ कर खींच रहा था, और वो अपने दोनों हाथों से क्रास बना के अपने स्तनों को छुपाने का नाकाम प्रयास करने लगी।
अब मैंने उनकी साड़ी बदन से अलग की और उनके सामने घुटनों पर बैठ गया, उनकी कमर को अपनी अपनी बांहों में भर लिया, अपना सर उठा कर उनके चेहरे को देखा.
उन्होंने अपने होंठ अपने दांतों के बीच और जोरों से दबा लिये थे और आंखों को इतने जोर से बंद किया था कि उनके आसपास सलें पड़ गई थी।
अब मैंने उनके पेट पर एक भरपूर चुम्बन अंकित किया और उनके हाथों ने मेरे सर को सहलाना शुरू कर दिया। तभी छोटी हमारे बहुत पास आ गई और वो भी घुटनों पर मेरे बगल में ही बैठ गई और मेरी हरकतों को सांसों के आभास होने वाली दूरी से आँखें फाड़े देखने लगी।
छोटी के साथ रहने की या ऐसी चीजें उसके सामने करने की अब मेरी आदत हो गई थी, इसलिए मैं उसके पास आने को ध्यान नहीं देते हुए अपने काम में डूब गया। अब मैंने अपनी जीभ निकाल कर आंटी की नाभि टटोलनी शुरू कर दी, मेरा लंड तो पैंट फाड़ने को कब से बेकरार हो ही रहा था, पर अब आंटी ने भी अपना पैर फैलाना सिकोड़ना शुरू कर दिया.
यह संकेत था कि अब चूत से रस बहने लगा है।
और चूत का रस निश्चित ही पेंटी को भीगा चुका था तभी तो मुझे उनके लंहगे के ऊपर भी गीले धब्बे नजर आने लगे, उसकी खुशबू ने माहौल को और भी उत्तेजक बना दिया।
मैंने बिना समय गंवाये उनके उस धब्बे का चुम्बन किया और खड़े होकर अपने कपड़े खोलने लगा।
इसी दौरान छोटी अपनी माँ को और पास से देखने लगी और उसे वो धब्बे नजर आ गये, तब छोटी ने चौंकते हुए और बच्चों जैसी भाषा में कहा- माँ ने शूशू कर दिया.. माँ ने कपड़ों में शूशू कर दिया।
मुझे हंसी आ गई, पर मैंने खुद को हंसने से रोक लिया क्योंकि अभी हंसना जरा भी मुनासिब ना था, और आंटी का तो शर्म के मारे बुरा हाल हो गया, वो तुरंत ही अपने हाथों से योनि स्थल को छुपाते हुए नीचे बैठ गई और इतनी देर में पहली बार अपनी आँखें खोल कर छोटी को देखा, फिर उन्होंने खुद को संयत करते हुए छोटी को समझाया- बेटी, यह शूशू नहीं है, यही तो वो चीज है जो औरत को सम्भोग के वक्त दर्द से बचाती है। यह दुनिया का एक ऐसा अनोखा अमृत है, जिसे आमतौर पर पीया नहीं जाता, फिर भी यह दुनिया को जीवन देती है। और जिसकी कामना हर किसी को होती है, इसके बिना सम्भोग और प्रजनन संभव नहीं है। कामी और अनुभवी पुरुष इसे बड़े चाव से पी भी जाते हैं। पर ज्यादातर लोग इस अमृत का अपमान ही करते हैं, बहुत से पुरुष इससे घृणा करते हैं और औरतें इससे बचना चाहती है।
अगर कोई इस अमृत के गुणों को जान ले तो शायद वो इसके लिए कुछ भी कर गुजरे, और स्त्रियों के लिए तो यह वरदान है, इसके रिसाव से योनि सहवास के लिए तैयार होती है, और योनि गुफा में लोच (नर्मी) आती है, अगर अंदर कट फट जाये यानि कि चोट लग जाये तो यह घाव को अतिशीघ्र भर देता है। इससे किसी कठोर चीज को फिसलने में मदद मिलती है, इसीलिए तो औरतें बड़े से बड़े लिंग को आसानी से अपनी योनि में समाहित कर लेती हैं, अगर यह तरल चिपचिपा अमृत ना होता तो एक छोटी उंगली भी हमारी नाजुक योनि को चोट पहुँचा सकती है।
आंटी की बातों को सुन कर मुझे खुशी हुई कि मैं एक बहुत ही अनुभवी और समझदार औरत के साथ सम्भोग कर रहा हूं, और खुद का गुमान भी टूट गया कि सेक्स संबंधी सारी बातों को मैं जानता हूँ, वास्तव में यह विषय इतना विस्तृत है कि आसानी से समझ पाना बहुत कठिन है, और पूरा समझ पाना नामुमकिन है।
और छोटी जैसी कम उम्र विक्षिप्त लड़की कितना समझी होगी, ये तो वही जाने।
पर आंटी के कामुक बदन को देखकर मेरा खुद को ज्यादा रोक पाना संभव ना था। अब तो मैं अपने कपड़े निकाल कर सिर्फ अंडरवियर में था, मैंने अपने लिंग को अंडरवियर के ऊपर से ही सहलाया और व्यवस्थित करने का प्रयास किया, फिर मैं नीचे बैठ कर आंटी के बाजूओं को पकड़ कर अपनी दुल्हन की तरह लिटा दिया, आंटी बिना विरोध मेरा साथ देती रही, और छोटी एक बार फिर कौतुहल से हमें देखने लगी।
अब मैंने आंटी के मस्तक और गालों पर चुम्बन की झड़ी लगा दी और होंठों को काटते चूसते हुए आंटी के मुंह में अपना जीभ घुसाने की कोशिश की. आंटी ने जोर से आँखें भींच ली थी, मेरी इस हरकत पर उन्होंने मुंह इधर उधर फेंक कर साथ देने से मना कर दिया.
पहले को लोगों में ऐसे चुम्बन कम ही पसंद किए जाते थे, मैंने भी जोर नहीं दिया क्योंकि अभी बहुत कुछ करने को बाकी था।
अब मैं सीधे उनके स्तनों पर छा जाना चाहता था क्योंकि उनका धकधक करता सीना, और मेरून रंग के ब्लाउज में फंसे सुडौल और अनुभवी स्तन मुझे बहुत समय से चिढ़ा रहे थे, पहले मैंने ब्लाउज के ऊपरी भाग से झांकते उनके स्तन के सुंदर भाग को जीभ से चाटा और सहलाया, उरोज की पूरी गोलाई में हाथ घुमाते हुए जी भर कर उन्हें दबाते हुए, ब्लाउज के हुक खोलने लगा।
आंटी की सांसें उनके ही काबू में नहीं थी, तेज सांसों के आने जाने से सीना हर बार लगभग चार पांच इंच अतिरिक्त फुल और सिकुड़ जाता था। शायद मैं उनके स्तनों पर सिक्का या कोई और चीज रखता तो वह बिना किसी के छुए भी उरोजों की हलचल से सिर्फ गिरता ही नहीं बल्कि कुछ फीट उछल भी सकता था।
और ब्लाउज के हर हुक के खुलने के बाद उनकी गति तेज हो रही थी। आंटी ने अपने दोनों हाथों से बिस्तर को कस के पकड़ रखा था, और सांसें कितनी जोर से खींच रखी थी वो उनके पेट के अंदर कि ओर खींचे जाने को देख कर अनुमान लगाया जा सकता था।
ब्लाउज के सारे हुक जैसे ही खुले सफेद रंग की काटन ब्रा में बंधे, दुनिया के सबसे खूबसूरत मम्में मेरे सामने उजागर हो गये। उनके तने हुए चूचुक ब्रा के ऊपर से भी अपनी उपस्थिति का अहसास करा रहे थे।
महिलाएं और लड़कियां मुझे माफ करें, मैं किसी से सुमित्रा देवी की बराबरी नहीं कर रहा हूं बस बताना चाह रहा हूं कि खूबसूरती की पराकाष्ठा क्या होती है, आखिर वो भी तनु की माँ थी, जाहिर है कि वो खूबसूरती के मामले में तनु से दो कदम आगे ही थी और उस वक्त वो मुझे दुनिया की सबसे कामुक औरत नजर आ रही थी।
मैंने ब्रा को बिना खोले ही ऊपर की ओर सरका दिया. हाय राम… क्या निप्पल थे यार… तनु, छोटी और फिर उसकी माँ सबके निप्पल और घेराव एक जैसे, हल्के भूरे रंग का घेराव और गुलाबी आभा लिए हुए चूचुक… वाह… क्या बात थी आंटी में!
मेरी एडल्ट कहानी जारी रहेगी.
आप अपनी राय मेरे इन ई मेल पते पर दे सकते हैं.
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