नवविवाहिता की कामुकता को अपने लंड से शांत किया-1
(Newly Married Ki Kamukta Ko Apne Lund Se Shant Kiya- Part 1)
दोस्तो, मेरी हिंदी सेक्स स्टोरीज को पढ़ने के बाद आपके द्वारा भेजी गयी प्यारी प्यारी कमेन्ट से मुझे हौसला मिलता है और आप सभी के लिये आगे कुछ और लिखना आसान हो जाता है। इसलिये दोस्तो आप अपने कमेन्ट मुझे नीचे दिये गये मेल पर भेजते रहिये ताकि मेरा हौसला कायम रहे।
दोस्तो एक बात और जो मैं सभी से रिकवेस्ट करना चाहता हूं, कि मेरे साथ घटित घटना जिसको मैं आप लोगों के समक्ष कहानी के रूप में परोसता हूँ उसमें अपने आपको महसूस कीजिए और मेरी सेक्स स्टोरीज की नायिका को अपने नीचे महसूस कीजिए, और मेरी हिंदी सेक्स स्टोरी का मजा लीजिये।
तो दोस्तो, मैं अपनी एक नई घटित घटना को बता रहा हूं। मैं अपने शहर में ही प्राईवेट ज़ॉब करता हूं और जैसा कि आप सभी को पता है कि प्राईवेट ज़ॉब क्या होती है, कब मिलती है और कब छोड़नी पड़ती है। हाँ मेरे साथ अच्छा ये है कि मुझे एक जॉब छोड़ने के बाद दूसरी जॉब के लिये ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ता।
सो पुरानी जॉब छोड़ने के कुछ ही समय बाद मुझे दूसरी जॉब मिल गयी। ऑफिस में हम कुल चार लोग थे, जिसमें से मैं और प्रिया!
हाँ दोस्तो प्रिया, एक सिम्पल लड़की, 5 फिट के आस-पास की उसकी लम्बाई सॉवली पर तीखे नाक नक्शे वाली। अक्सर वो जींस और शर्ट में ही मुझे दिखायी देती थी, इसलिये उसके मम्मों के साईज का पता लगाना मुश्किल होता था क्योंकि वो ढीली शर्ट पहनती थी और शर्ट को इन नहीं करती थी, कोई मेकअप नहीं करती थी पर उसके अन्दर एक कशिश सी थी, वो और मैं टाईप का काम करते थे और हमारे बॉस और साथ में एक चपरासी। बॉस अक्सर अपने काम के सिलसिले से बाहर रहते थे।
धीरे धीरे छः महीने बीत रहे थे और इन छः महीनों में मैंने उसे पटाने की काफी कोशिश की पर सफल नहीं हो सका। उसकी सबसे खास बात यह थी वो अपने काम के प्रति बहुत ही डेडिकेटिड थी। वो मुझसे काम के मतलब की ही बात करती थी, जबकि मैं उसको पटाने की लाख कोशिश करता रहा, लेकिन उसने मुझे कभी लिफ्ट नहीं दी।
इस तरह से करीब करीब साल के करीब हमारी जॉब हो गयी थी कि एक दिन अचानक उसने मुझे अपनी शादी का कार्ड दिया। उसकी शादी अगले दस दिन के बाद की थी। मैं अचम्भित सा उसको देखने लगा, बस इतना ही कह पाया कि पहले बता दिया होता।
तब वो बोली- शरद जी, उससे क्या हो जायेगा, एक तो आप शादीशुदा है और दूसरा आपके और मेरे बीच के उम्र को भी देख लीजिये।
उसकी बात सुनकर मैं बोला- अब आप जॉब भी छोड़ देंगी?
“नहीं…” वो सपाट लहजे में बोली।
इस बात से मैं क्लीयर हो गया कि वो कम से कम जॉब पर तो आयेगी ही आयेगी। फिर मैंने उसका हाथ पकड़ लिया वो छुड़ाने का प्रयास करने लगी, लेकिन उसके प्रयास को मैं अनदेखा करके उससे बोला- प्रिया, तुमको कभी लगे कि मैं तुम्हारे किसी काम आ सकता हूं तो मुझे बेझिझक बता देना।
अब वो मुझे देखने लगी और अपने हाथ को छुड़ाने का प्रयास करना बंद कर दिया। मुझे देखते हुए बोली- ठीक है।
मैंने उसका हाथ छोड़ा और उससे पूछा- कब से लीव पर जा रही हो और कब लौटने का इरादा है?
मेरे इस प्रश्न के जवाब में उसने बताया कि एक महीने के बाद वो काम पर वापिस आयेगी और उस दिन उसका आखरी दिन है।
उसके बाद वो बोली- शादी में जरूर आना।
हालाँकि मैं उसकी शादि में नहीं गया।
करीब एक महीने के बाद वो आयी, लेकिन उसकी शक्ल से देखकर मुझे नहीं लगा कि वो खुश है। मैंने प्रिया से बात करने की सोची पर उसने कोई बात मुझसे नहीं की, सारा दिन इसी तरह निकल गया। दूसरे दिन भी वो ही हालात थे।
इसी तरह पाँच छः दिन निकल गये न तो उसके चेहरे पर कोई खुशी थी और न ही वो पहले की तरह काम कर रही थी।
मेरे भी बर्दाश्त से बाहर हो रहा था। आखिरकार छठवें दिन में उसके पास गया वो सिर नीचे झुकाये अपना काम कर रही थी। मैंने उसकी ठुड्डी को पकड़ा और उसका चेहरा अपनी तरफ करते हुए कहा – प्रिया, देखो अगर तुम बात नहीं करोगी तो मैं पागल हो जाऊंगा, शादी के बाद तो सभी खुश रहते हैं और एक तुम हो जिस दिन से आयी हो उदास हो।
इतना कहने के साथ ही उसके सिर पर हाथ फेरते हुए उससे रीजन पूछने लगा, वो मुझे लगातार घूरे जा रही थी और मैं उसे बताने के लिये मजबूर किये जा रहा था।
अन्त में उसने अपने दोनों हाथ से मेरे कमर को पकड़ा और जोर जोर से रोने लगी।
मैं हड़बड़ा गया लेकिन मैंने उसे रोने दिया।
काफी देर तक रोने के बाद प्रिया शांत हुयी और अपने आंसू पौंछते हुए सॉरी बोलने लगी।
“नहीं सॉरी मत बोलो प्रिया, आज मुझे लगा कि तुमने मुझे अपना दोस्त मान लिया है। और इस दोस्ती के नाते तुम मुझे पूरी बात बता सकती हो।”
“मैं कैसे बताऊं?”
“ऐसा क्या हो गया कि तुम नहीं बता सकती?” मेरे मन में भी शंका उठने लगी।
लेकिन जब वो बोली कि उसका पति पहले ही फिनिश हो जाता है तो मैं भी अवाक रह गया, लेकिन समझने के लिये मैंने प्रिया से खुलकर बताने के लिये बोला, तो वो बोली- शरद, सुहागरात के समय रमेश कमरे में आया और आते ही कमरे की लाईट ऑफ कर दी। उसके बाद उसने मुझे अपनी बांहो में जकड़ लिया, मैं सकते में थी, मेरे अन्दर एक डर सा बैठ गया था, मैं उससे अपने को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन वो अपने एक हाथ से कस कर जकड़े हुए था और दूसरे हाथ से मेरी छाती मसले जा रहा था। एक एक करके उसने मेरे सारे कपड़े उतार दिए। मैं अपने में सिकुड़ कर बैठ गयी, लेकिन रमेश ने मुझे पलंग पर सीधा लेटा दिया और मेरी छाती पर बैठ गया और अपने लिंग को मेरे चेहरे के आस-पास रगड़ने लगा। दो-तीन बार ऐसा किया होगा, फिर वो मेरी छाती से उतर गया और जल्दी-जल्दी मेरे पूरे जिस्म को चाटने चूमने लगा, फिर मेरी टांगें फैला कर बीच में आ गया और मेरी योनि से एक बार फिर अपने लिंग को रगड़ने लगा। तभी मुझे मेरे नीचे कुछ गरम सा और चिपचिपा सा महसूस हुआ और उसी समय रमेश एकदम से मुझ से अलग हो गया और बगल में लेट गया। बिना मेरे उपर ध्यान दिये वो सो गया।
मैं उठकर बैठ गयी और किसी तरह से ढूंढकर लाईट ऑन की। रमेश गहरी नींद में सो रहा था, और उसका वीर्य जो उसने मेरे इसके ऊपर (अपनी चूत की तरफ इशारा करते हुए) गिरा दिया था, मेरी उलझन को बढ़ा दिया था। मैंने पास पड़े हुए कपड़े से अपने आस-पास की जगह पौंछी, तभी मेरी नजर रमेश की तरफ पड़ी, वो पूरी तरह से नंगधड़ंग बेजान सा सोया पड़ा था और उसकी तरह उसका लिंग भी बेजान सा सोया था, ऐसा लग रहा था कि एक मरियल सा चूहा सो रहा है।
मुझे ऐसा लगने लगा था कि इस समय प्रिया अपनी पूरी बात मुझे बता देना चाहती है, मैं उसकी बात बड़े ध्यान से सुन रहा था।
वो आगे बोली जा रही थी- मेरी सहेली तो मुझसे कह रही थी कि सुहागरात में बड़ा मजा आता है, लेकिन मुझे केवल उलझन हो रही थी, मैं केवल करवट बदल रही थी, लेकिन जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैं बाथरूम में घुसी और नहाने लगी और नहाने के बाद बिस्तर पर लेटने के बाद मुझे कब नींद आ गयी मुझे पता नहीं चला। सुबह मुझे अपने चेहरे पर ऐसा लगा कि कोई हाथ फिरा रहा है। मेरी नींद खुली तो रमेश का हाथ मेरे चेहरे पर चल रहा था।
मुझे गुस्सा तो बहुत आ रही थी, लेकिन मेरे पास मुस्कुराने के अलावा कोई चारा नहीं था।
अपनी बात खत्म करने के बाद उसने मुझसे पूछ लिया- क्या तुम भी अपनी सुहागरात में ऐसा ही करके सो गये थे?
“नहीं… हम दोनों करीब सुबह पाँच बजे सोये थे।”
“फिर आगे क्या हुआ?” मैंने जब प्रिया से पूछा.
बस जैसे ही प्रिया बताने जा रही थी कि तभी बॉस आ गये और हमारी बात अधूरी रह गयी, फिर कब घर जाने का समय हो गया, पता ही नहीं चला, लेकिन जब चलने का समय हुआ तो बॉस ने मुझे रोक लिया।
इस तरह से मैं प्रिया से आगे बात नहीं कर सका।
पर इस समय मैं उसकी इस कहानी से अपना स्वार्थ नहीं खोज रहा था, बल्कि मैं उसकी मदद करना चाह रहा था, लेकिन ये प्रिया पर निर्भर था कि उसे मुझे मदद चाहिए या नहीं और अगर चाहिए तो कैसी चाहिए।
खैर दूसरे दिन फिर हमारी ऑफिस में मुलाकात हुयी, लेकिन वहाँ पर एक आदमी पहले से ही मौजूद था, इससे पहले मैं कुछ निष्कर्ष पर पहुंचता प्रिया ने पहले ही उसका परिचय यह कर करा दिया कि यह मेरे पति रमेश हैं।
पहली नजर में मुझे रमेश में ऐसी कोई कमी नहीं समझ में नहीं आ रही थी, हट्टा कट्टा सा लड़का था, पर कह भी कुछ नहीं सकता था क्योंकि मुझे किसी और ने नहीं खुद प्रिया ने बताया था।
हम दोनों ने हाथ मिलाया। मन में रहा नहीं गया तो मैंने हँसते हुए पूछ ही लिया- क्यों रमेश जी, मैम के बिना मन नहीं लग रहा था ना?
मेरे इस प्रश्न से रमेश झेंप गया पर अपनी झेंप मिटाते हुए बोला- नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है सर, मैं तीन-चार दिन के लिये बाहर जा रहा हूं इसलिये प्रिया से कहने आया था कि आज ही इनको घर वापस चलना होगा क्योंकि माँ घर में अकेली है और उसकी तबियत खराब रहती है, प्रिया के रहने से उसका मन बहलता रहेगा।
प्रिया तुरन्त ही बोली- नहीं आप जाओ, मैं ऑफिस के बाद सीधे घर पहुंच जाऊंगी। पर आप भी मेरे घर में इस बात की जानकारी दे देना, ताकि वो परेशान न हों।
“हाँ बिल्कुल दे दूंगा!” इतना कह कर रमेश चला गया।
जब प्रिया वापस अपनी सीट पर बैठी, तो मैंने पूछ ही लिया- यार, देखने में अच्छा खासा है?
“हाँ देखने भर में ही है…” कड़ुवाहट भरे शब्द थे उसके।
खैर हम दोनों अपना अपना काम देखने लगे। हम दोनों के छुट्टी के समय में एक घंटे का अन्तर है, वो एक घंटे पहले मुझसे निकल जाती है। आज जब प्रिया जाने लगी तो उसने मुझे एक चिट पकड़ाई और बोली- मेरे जाने के बाद पढ़ना।
इतना कह कर वो तेजी से निकल गयी।
मैंने उसके जाने के बाद चिट खोली और पढ़ने लगा, लिखा था- प्रिय शरद, मैं नहीं जानती कि मैं तुमसे अपने दिल की बात कैसे कहूं, बस इतना ही कह सकती हूँ कि आज मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है। चाहो तो आज तुम मेरे घर आना, पता और मेरा नम्बर दोनों है। घर पहुंचने के बाद मुझे कॉल कर देना। तुम्हारा मैं इंतजार करूंगी।
मैंने चिट को अपने जेब में रखा, ऑफिस खत्म करने के बाद मैं घर आया और अपनी बीवी को बताया कि बॉस के साथ आज पूरे रात काम को निपटाना है। हो सकता है कि दो तीन तक लगातार मुझे रात में भी ऑफिस जाना पड़े।
इतना कहकर हाथ मुँह धोया, खाना खाया और उसके कुछ देर बाद घर से निकल पड़ा। प्रिया के घर पहुँचने पर मैंने फोन मिलाया, वो तुरन्त ही बाहर निकल आयी, ऐसा लग रहा था कि वो मेरा इंतजार ही कर रही थी।
उसने मेरा हाथ पकड़ा और इशारे से मुझे चुपचाप उसके पीछे आने के लिये बोला। मैं उसके पीछे पीछे चलते हुए उसके बेडरूम में पहुंचा।
बेडरूम बड़ा ही आकर्षक था और हर चीज करीने से लगी थी। दरवाजा बन्द करते ही प्रिया ने मुझको कस कर जकड़ लिया और एक बार रोने लगी, मैं उसके बालों को सहलाते हुए उसे चुप कराने की कोशिश करता रहा.
थोड़ी देर बाद वो चुप हो गयी और मुझे थैंक्स कहने लगी, मैंने प्रिया की ठुड्डी को अपनी तरफ उठाया और बोला- थैंक्स तो मुझे तुम्हें कहना चाहिए, कब से तरस रहा था कि तुम मुझे अपना समझो।
उसने एक बार फिर मुझे कसकर जकड़ लिया और बोली- आज मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।
मैंने उसे गोदी में उठाया और बिस्तर में लेटाते हुए उससे बोला- अब हम दोनों को और अच्छा लगेगा.
उसके बाद मैं भी उसके बगल में लेट गया और उसके लटों से खेलने लगा, कभी मैं उसके गाल को सहलाता तो कभी उसके होंठों पर उंगलियाँ फेराता. और इसी क्रम में मेरी उंगली उसके मम्मों के बीच से होती हुयी एक लकीर बनाती हुयी, प्रिया की नाभि को टच करते हुए उसके योनि (चूत) को टच करने वाली ही थी कि प्रिया का हाथ पहले ही उसकी योनि के पास पहुंच चुका था और उस हाथ ने मेरी उंगली पकड़ ली।
तभी मैंने उसके अधरों पर अपने अधर (होंठ) रख दिये और एक चुंबन लिया और फिर उसके बाद उसके गालों पर, गर्दन पर, साड़ी हटाते हुए उसकी छाती पर चुम्बन की बौछार कर दी और बीच बीच में अपनी नजर प्रिया पर डाल लेता था। वो अपनी आँखों को बन्द किये हुए थी और होंठों को चबा रही थी, साथ ही सिसकारी भी लिये जा रही थी.
मैं उसके ब्लाउज के हुक को खोलने के लिये उसकी पीठ की तरफ हाथ ले गया, प्रिया ने मेरी सहूलियत के लिये अपनी पीठ को हवा में उठा ली, मैंने उसके ब्लाउज के हुक के साथ-साथ ब्रा के हुक को खोल दिया, प्रिया की अभी भी आँखें बन्द थी, ब्लाउज और ब्रा को उसके जिस्म से अलग कर दिया, एक अजीब सी खुशबू उसके जिस्म से आ रही थी, मैंने उसके दोनों हाथों को फैला दिया और बारी बारी से उसकी बगलों को सूँघने लगा, बड़ी मस्त खूशबू आ रही थी, फिर उसके गोल-गोल मुसम्बी जैसे मम्मे जिसकी घुमटी काफी तन गयी थी, बारी-बारी से अपने मुंह में भरता या फिर अपनी जीभ उस पर चलाता।
मेरा जिस्म भी कपड़ों से आजाद होना चाह रहा था, इसलिये मैंने तेजी से अपने कपड़े अपने जिस्म से अलग किये और साथ ही प्रिया के जिस्म से उसकी साड़ी, पेटीकोट और ब्रा को अलग कर दिया और अपनी एक टांग उस पर चढ़ा कर उसके मम्मे को एक बार फिर मुंह में भर लिया और मेरा हाथ उसके योनि के आस-पास चल रहा था.
प्रिया ने भी मेरे लंड को पकड़ लिया था और उसको मसले जा रही थी कि तभी मेरी उंगली प्रिया की चूत के छेद के अन्दर जाने लगी, चूत उसकी गीली हो चुकी थी, प्रिया ने अपनी टांगें इस प्रकार फैला ली जिससे में उसकी चूत के साथ आसानी से खेल सकूं।
अब मेरे बर्दाश्त के बाहर की बात होने लगी थी, मैं उठा और प्रिया की टांगों के बीच बैठ गया और अपने लंड के साथ प्रिया की चूत से मिलन कराने के लिये जैसे ही प्रिया की चूत से टच किया, मुझे लगा कि उसकी चूत आग का गोला बन चुकी है, बहुत गर्म का हो रही थी, जबकि उसने अभी अभी पानी भी छोड़ा था।
खैर एक बार फिर मैंने लंड को चूत के मुहाने में रखा और एक हल्का सा धक्का मारा, सुपारा थोड़ा ज्यादा अन्दर घुस चुका था कि प्रिया चिल्लाई- निकालो, तुम्हारा बहुत गर्म है, जलता सा लग रहा है.
मैंने कहा- चिन्ता मत करो, तुम्हारा भी किसी आग के गोले से कम नहीं है।
लंड का आसानी से चूत के अन्दर प्रवेश करने से मुझे लगा कि रमेश सील भंग कर चुका है, लेकिन चूत की टाईटनेस बता रही थी कि रमेश ज्यादा खेल नहीं पाता है।
प्रिया मेरी बात सुने बगैर मेरे हाठों को पकड़ कर मुझे अलग करने की कोशिश कर रही थी। मैंने भी अपनी पूरी ताकत लगा रखी थी और लगातार प्रिया की चूत में जगह बनाने की कोशिश करता जा रहा था।
प्रिया पसीने से तरबतर हो चुकी थी।
इसी बीच लंड और चूत के खेल में लंड ने चूत के अन्दर अपनी जगह बना ली, इधर मैं भी प्रिया के उपर लुढ़क गया और उसके पसीने से भीग चुके जिस्म की महक को अपने जहन में उतारने लगा, मेरा तो मन कर रहा था कि मैं प्रिया के उपर इसी तरह से लेटा रहूं पर तभी प्रिया कुम्लाहने लगी, वो अपनी कमर को उठाने लगी, मुझे इसका अहसास हुआ तो मैं फिर उठा और लंड को उसकी चूत में धीरे धीरे चलाने लगा.
कब मेरी स्पीड बढ़ गयी, मुझे पता भी नहीं चला, जब मैं धक्के मारने में थक जाता तो प्रिया के उपर लेट कर उसको चूमने चाटने लगता और प्रिया मेरी पीठ सहलाती रहती। काफी देर तक ऐसा ही चलता रहा कि प्रिया का शरीर ऐंठने लगा और फिर एक दम से ढीला पड़ गया और ठीक उसी समय मेरे लंड ने भी मेरा साथ छोड़ दिया।
मैं हाँफते हुए प्रिया के नंगे बदन के ऊपर गिर गया और जब तक लेटा रहा जब तक कि मेरा लंड उसकी चूत से बाहर नहीं निकल गया।
फिर मैं उससे अलग हो गया। थोड़ी देर तक हम दोनों के बीच कोई बात नहीं हुयी। फिर प्रिया उठी और अपने पेटीकोट से अपनी चूत को साफ करी, उसके बाद मेरे लंड को साफ किया और फिर बिस्तर में पड़ी हुयी हम दोनों के मिलन के रस को साफ करने लगी।
इसके बाद वो मेरे सीने पर अपना सिर रख कर लेट गयी और कहने लगी- शादी के बाद आज पहली बार मुझे नंगी रहने पर बहुत अच्छा लग रहा है।
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कहानी का दूसरा भाग : नवविवाहिता की कामुकता को अपने लंड से शांत किया-2
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