मूली गाजर ले लो, खीरा ले लो
(Mooli gajar Le Lo Kheera Le Lo )
दोस्तो, वैसे तो आप मेरी कहानी का शीर्षक पढ़ कर ही समझ गए होंगे कि मेरी कहानी एक सब्जी वाले के साथ हुई चुदाई की है.
मगर ये सब्जी वाला कोई ऐसा वैसा सब्जी वाला नहीं है; ये हैं गोविन्द भाई। वैसे तो ये 62 साल के लंबे चौड़े इंसान हैं, चेहरे पर आधी सफ़ेद और लंबी दाढ़ी है, कुर्ता पजामा पहनते हैं।
सब से बड़े प्यार से बेटा, बहनजी करके बोलते हैं और मोहल्ले की सभी औरतें छोटी हो या बड़ी, इन्हें गोविन्द भाई कह कर ही बुलाती हैं।
मगर ये ऊपरी बातें हैं, यह सब मुझे तब समझ में आई, जब मैंने भी गोविन्द भाई के साथ सेक्स किया। अब क्यों किया, कैसे किया ये सब आप खुद पढ़ लीजिये।
मेरा नाम शिवानी है, और मैं मेरठ में रहती हूँ। हम शहर के एक बहुत ही अच्छे इलाके में रहते हैं। मेरी शादी को करीब 3 साल हो गए हैं। घर में सास है, ससुर है, पति है, एक ननद है। पैसे की कोई कमी नहीं, सब ठीक है.
मगर एक वो बात होती है न कि बस जैसे ही शादी हुई, घर में सब की निगाहें बहू पर टिक जाती हैं कि कब इसका पेट फूले, कब ये गर्भ धारण करे। मगर शादी के तीन साल बाद भी मुझे दिन नहीं चढ़े, मेरे पैर भारी नहीं हुए तो सासु ने डॉक्टर, वैद्य, हकीम सब से बात करनी शुरू कर दी.
घर में आने वाली हर बूढ़ी, बुजुर्ग महिला मुझे कोई नुस्खा, आशीर्वाद या किसी और वैद्य हकीम, या किसी कर्म कांड की जानकारी दे कर जाती। मैं खुद भी माँ बनना चाहती थी, पर अब नहीं हो रहा तो नहीं हो रहा, क्या कर सकते हैं।
मेरे पति भी पूरी कोशिश कर रहे थे, हर बार वो मेरे अंदर ही डिस्चार्ज करते और भर भर के करते। मगर पता नहीं क्यों मुझे माँ बनने का सुख नहीं मिल पा रहा था।
फिर एक दिन हमारी एक पड़ोसन मेरे पास आई, और मेरी सास से चोरी मुझसे बोली- अरी सुन, अगर तुझे अपने पति में कोई कमी नज़र आती है, तो किसी और से ट्राई कर ले।
पहले तो मुझे उसकी बात बुरी लगी मगर ना जाने क्यों दो चार दिन हफ्ते बाद मुझे उसकी बात में दम नज़र आने लगा।
कुछ दिन बाद फिर उससे मुलाक़ात हुई, तो उसने फिर वही बात कही, तो मैंने पूछ ही लिया- भाभी, ये कैसे संभव है, घर में मम्मी तो हर वक्त होती हैं, वो नहीं तो पूजा तो होती ही है। तो ऐसे में अकेले घर से बाहर जाना नहीं हो सकता, घर के अंदर कोई नहीं आ सकता मैं क्या करूँ, कैसे करूँ?
तो वो बोली- सुन मेरी बात। मैं तेरा इंतजाम करवा दूँगी, पर तू नखरे मत करना बस।
मैंने कहा- भाभी अब ऐसे ही किसी ऐरे गैरे के नीचे तो मैं लेटने नहीं वाली। पहले आप बताओ, वो बंदा है कौन, आपका क्या लगता है?
तो उसने मुझे बताया- उस बंदे का नाम है गोविन्द भाई।
मैं चौंकी- वो सब्जी बेचने वाला, वो बुढ़ऊ?
भाभी बोली- हाँ, बिलकुल वही।
मैंने कहा- भाभी मैंने आपसे पहले ही कहा था, मुझे कोई ऐरा गैरा नहीं चाहिए, अब बच्चे के लिए अगर मैं अपने पति से बेवफ़ाई करने ही वाली हूँ, तो कोई ढंग का बंदा तो हो।
भाभी बोली- अरी बेवकूफ़, तू नहीं जानती, इस मोहल्ले में आधे से ज़्यादा बच्चे गोविन्द भाई के ही हैं। और जिसको तू अपना पति कहती है न, वो भी असल में गोविन्द भाई की ही देन हैं।
मैं तो हैरान रह गई सुन कर।
फिर भाभी ने मुझे हमारे मोहल्ले के उन सभी बच्चों के बारे में बताया, जो गोविन्द भाई के थे, और उनकी माओं के कच्चे चिट्ठे भी मेरे सामने खोले।
मगर मैं अभी उसकी बातों पर विश्वास नहीं कर पा रही थी, तो मैंने कुछ दिन अपने ही मोहल्ले की और औरतों से बात करी, ताकि पता लग सके के भाभी की बातों में कितनी सच्चाई है।
अब औरतों को तो आदत होती ही है चुगली करने की। जैसे ही मैंने किसी के पास एक चुगली करी तो उसने चार और के बारे में बता दिया। किसका किसके साथ चक्कर था या है। कौन कौन औरत गोविन्द भाई के बच्चे की माँ है।
सब की कहानी सुनने के बाद मुझे पता चला कि जिस आदमी को मैं यूं ही बेकार सा सब्जी वाला समझती थी, वो तो एक बहुत ही महान हस्ती था।
तो मैंने अपनी आंटी से कह दिया- अब मेरी सास भी मेरे पीछे पड़ी है कि बच्चा पैदा करो, बच्चा पैदा करो। मगर मैंने अकेले में तो बच्चा पैदा नहीं करना है, बच्चा तो तब पैदा हो जब मेरी सास का बेटा मेरे अंदर बीज डाले, उसका बीज तो साला सारा बाहर बह जाता है। इतना पतला माल है, तो मैं कैसे बच्चा जनूँ?
तो आंटी बोली- तू कहे तो गोविन्द भाई से बात कर लूँ? पर तू तैयार रहना, फिर बाद में ना नुकुर मत करना। एक बार गोविन्द भाई घर में घुस गए तो तेरी ज़मीन में बीज बो कर ही जाएंगे।
मैंने कुछ सोचा और फिर बोली- ठीक है, आंटी आप बात करो। अभी कुछ दिनों में हमारे एक शादी आने वाली है, और उसमे मेरे सास ससुर दोनों जाएंगे। मैं मना कर दूँगी। उस दिन गोविन्द भाई को भेज देना। मैं आपको सब डिटेल बता दूँगी।
दो एक दिन बाद आंटी ने बताया कि गोविन्द भाई से बात हो गई है, वो कहते हैं कि जब आना तो बता देना।
अगले इतवार शादी थी और मेरे सास ससुर को मेरे पति अपनी गाड़ी में ले गए। पिछली रात ही मैंने जान बूझ कर पति से सेक्स किया, ताकि एक तो वो कहीं वापिस ना जाए कि घर में कोई नहीं है, तो मज़े करते हैं। और अगर गोविन्द भाई का बीज मेरी कोख में पनप गया तो मेरे पति ने उससे पहली रात सेक्स किया था, तो होने वाला बच्चा मेरे पति का ही बोलेगा।
ये तो अपने माँ बाप को लेकर 10 बजे के करीब चले गए, गोविन्द भाई आए साढ़े दस बजे।
मैं और बाकी मोहल्ले की औरतें उनसे सब्जी ले रही थी तो मैंने खुद ही कहा- गोविन्द भाई, चाय पियोगे?
वो बोले- जीती रहो बेटी दूधों नहाओ, पूतों फलो … तुम बनाओगी तो क्यों नहीं पीऊँगा।
मैं सब्जी लेकर अपने घर आ गई और चाय बनाने लगी। थोड़ी देर में आंटी और गोविन्द भाई दोनों मेरे घर आ गए। मैं उन्हें ड्राइंग रूम में बैठाया और चाय पिलाई।
आंटी ने बात शुरू करी- गोविन्द भाई मैं आपसे बात की थी न, यही बहू है वो। अब तीन साल हो गए शादी को। अब तक गोद सूनी है। सास ताने मारने लगी है। अब आप तो हमारे मोहल्ले के पितामह हो। आप ही अपना आशीर्वाद इस बच्ची को दें, ताकि इसकी कोख भी हरी हो।
गोविन्द भाई ने मुझे गौर से देखा, और बोले- कोई बात नहीं, अगर बिटिया तैयार है, तो मैं तो आज ही आशीर्वाद दे देता हूँ।
आंटी बोली- जी बिलकुल तैयार है, आप बस इसको आशीर्वाद दे दो।
चाय पी कर कप नीचे रख कर गोविन्द भाई बोले- तो कहाँ बैठना है?
मुझे बड़ा अजीब सा लगा, बैठना है, मतलब क्या मैं कोई गश्ती हूँ, जो अपने किसी ग्राहक के साथ बैठ रही हूँ। मगर अब अगर अपने पति से फरेब करने जा रही हूँ, और किसी गैर मर्द के नीचे लेटने जा रही हूँ, जो उम्र में मेरे बाप से भी बड़ा है। तो फर्क भी क्या है, मुझ में और किसी गश्ती में।
मैंने कहा- उधर बेडरूम में।
मैं उठ कर चली, तो गोविन्द भाई भी उठ कर मेरे साथ ही आ गए। आंटी किसी कोठे वाली बाई की तरह मुस्कुराई।
मैं बेडरूम में आई और गोविन्द भाई ने आ कर कमरे का दरवाजा बंद किया। मैं चुपचाप खड़ी रही.
उन्होंने मुझे घुमा कर मेरी पीठ अपनी तरफ करी और पीछे से मुझे अपनी आगोश में ले लिया. फिर मेरा ब्लाउज़ और ब्रा दोनों उठा कर मेरे मम्मे बाहर निकाल कर दबाये और अपनी कमर मेरी गांड से सटा कर रगड़ी।
मुझे साड़ी के ऊपर से भी महसूस हो गया कि गोविन्द भाई के पास तगड़ा हथियार है।
थोड़ी देर अपना लंड मेरी गांड से घिसने के बाद उन्होंने मुझे बेड पे घोड़ी बनाया और अपना पजामा खोला। मैं पीछे मुंह घुमा कर देखा, करीब नौ इंच का मोटा काला लंड, जैसा गधे का लंड होता है बिलकुल वैसा लगा मुझे।
उन्होंने मेरी साड़ी पेटीकोट ऊपर उठा कर मेरी कमर पर रख दिया, मेरी चड्डी उतारी और मेरी गांड पर हल्की सी चपत लगा कर अपने लंड का टोपा मेरी फुद्दी पर रखा।
मैंने कहा- गोविन्द भाई, सीधा ऐसे ही करोगे।
वो बोले- बेटा, ये आशीर्वाद है, इसमें मज़े मत ढूँढो!
मैंने आँखें बंद कर ली और फिर एक मोटा सख्त टोपा मेरी फुद्दी में घुसा और घुसता ही चला गया। अभी मेरी फुद्दी सूखी थी तो मुझे हल्की सी पीड़ा हुई, मगर गोविन्द भाई ने कोई देर नहीं करी, और जितना हो सकता था, अपना पूरा ज़ोर लगा कर अपना लंड मेरी फुद्दी में घुसा दिया।
उसके बाद बुढ़ऊ ने पेलना शुरू किया। शुरू के एक दो मिनट तो मुझे कुछ तकलीफ हुई. मगर जब मेरी फुद्दी भी पानी छोड़ने लगी तो चिकनी चूत में लंड की आवाजाही बड़े आराम से होने लगी।
देखने में गोविन्द भाई बुढ़ऊ से लगते थे मगर थे वो दमदार मर्द।
मेरी कमर को दोनों हाथों से बड़ी मजबूती से पकड़ कर उन्होंने मुझे हिलने भी नहीं दिया और अपने जोरदार धक्कों से मेरे बखिए उधेड़ दिये। जब उनका धक्का लगता तो मेरा सारा जिस्म झनझना जाता।
मैंने अपना सर नीचे बेड पर टिका लिया। अब मुझे इस सेक्स में मज़ा आने लगा था क्योंकि पाँच मिनट से ऊपर हो चुके थे, और अगर मेरे पति होते तो अब तक झड़ चुके होते.
मगर गोविन्द भाई तो आराम से मगर पूरी रफ्तार से मुझे चोद रहे थे।
बीच में उन्होने पूछा- ठीक है बेटा, कोई तकलीफ हो नहीं हो रही?
मैंने कहा- नहीं गोविन्द भाई, तकलीफ नहीं … मैं वासना के समंदर में गोते लगा रही हूँ। पेल दो मुझे। इतनी देर तो मेरी पति ने आज तक नहीं लगाई, साला असली मज़ा तो आया ही आज है। मुझे तो पता ही नहीं था कि चुदाई तो जितनी लंबी हो उतना मज़ा देती है।
गोविन्द भाई बोले- अगर तेरा हो गया तो डाल दूँ बीज?
मैंने कहा- नहीं नहीं गोविन्द भाई, अभी नहीं … अभी नहीं … अभी तो साला ज़िंदगी का मज़ा आना शुरू हुआ है। आप जितनी देर लगाना चाहो लगाओ, मगर इतनी जल्दी बीज मत डालना।
वो बोले- अरे बेटा अगर मैं बाहर नहीं गया तो मोहल्ले की औरतें क्या सोचेंगी, की गोविन्द भाई ने बड़ी देर लगा दी चाय पीने में।
मैंने कहा- भाड़ में जायें मोहल्ले वाली। अप बस पेलो, और खूब पेलो।
मगर उस ज़बरदस्त मर्द के आगे टिकना मेरे बस की बात नहीं थी, कुछ ही पलों बाद मैं तड़प उठी। मैंने चादर को मुट्ठियों में बींच लिया, गद्दे को अपने दाँतो से काट खाया, और मुंह से एक ऐसी चीख निकली जिसे मैंने बिस्तर में ही दफ़न कर दिया।
सारा बदन काँप गया मेरा; हर एक अंग फड़कने लगा। ऐसे ज़ोर से काम्पी मैं कि स्खलित होने के साथ मेरी आँखों में से आँसू भी आ गए।
गम में, खुशी में तो लोग रो देते हैं, मैं तो स्खलित हो कर भी रो पड़ी। मैं निढाल हो गई.
तो गोविन्द भाई ने मुझे सीधा करके लेटाया और फिर अपना लंड मेरी फुद्दी में पेल दिया।
जिस सब्जी वाले को मैंने कभी फूटी आँख न देखा था, अब वही मुझे अपने पति से भी प्यारा लग रहा था। मेरा दिल कर रहा था कि मैं गोविन्द भाई के साथ ही भाग जाऊँ और इनकी गुलाम बनके रहूँ।
सच में मर्द का लंड एक ऐसा हथियार है, जो असल में औरत को काबू कर सकता है। अगर मर्द के लौड़े में दम नहीं तो औरत को काबू करना बहुत मुश्किल है।
थोड़ी की चुदाई के बाद गोविन्द भाई ने मेरी फुद्दी को अपने माल से भर दिया। मेरे दोनों मम्मे उनके सख्त हाथों ने नींबू की तरह निचोड़ कर रख दिये।
माल गिरने के बाद वो बाथरूम में गए और अपना लंड धोकर पजामा पहन कर बाहर निकल गए।
उसके बाद आंटी आई, मैं बिस्तर पर वैसे ही नंगी पड़ी थी। आंटी ने मेरी फुद्दी को देखा जो गोविन्द भाई के माल से लबालब भर चुकी थी और कुछ माल बाहर भी निकल कर बह रहा था।
आंटी बोली- अब देखना तुझे चाँद सा बेटा होगा, नीली आँखों वाला। गोविन्द भाई ने जिसको भी आशीर्वाद दिया उसके बच्चे नीली आँखों वाले ही होते हैं।
मैंने उठते हुये कहा- आंटी आपके बच्चे भी तो नीली आँखों वाले हैं।
आंटी हंसी और बोली- हाँ तो … वो भी गोविन्द भाई का ही आशीर्वाद हैं।
आज दो महीने हो गए हैं, मुझे डेट नहीं आई। प्रेग्नेंसी टेस्ट पॉज़िटिव आया है। सासु माँ खुश हैं, पति देव खुश हैं, और मैं … मैं तो बहुत ही खुश हूँ।
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