मेरी रानी की कहानी-5
(Meri Rani Ki Kahani- Part 5)
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कुछ देर बाद रानी फिर से बोली- मुझे सेक्स करना है।
उसकी बात सुनकर मुझे खुशी तो हुई लेकिन मुझे डर लग रहा था कि कहीं ये बाद में ये पछताने लगे और मुझसे गुस्सा हो जाये। मुझे उस से दूर होने के ख्याल से ही डर लगता था। इसलिए मैंने एक बार फिर जोर दे कर पूछा- रानी मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता। मुझे इस बात की खुशी है कि तुम अपना सब कुछ मेरे लिए कुर्बान करना चाहती हो, लेकिन मुझे लगता है कि अभी तुम होश में नहीं हो और ये बोल रही हो। मुझे डर है कि कहीं तुम्हें बाद में इस बात के लिए सोचना पड़े।
रानी बोली- नहीं, मैं एकदम होश में हूँ और मैं चाहती हूं कि हम इसे पूरा करें। मैं आप को पूरा हक देती हूँ, आप मेरे साथ जैसे चाहे वैसे कर सकते हैं।
मुझे उसकी बात से बहुत खुशी हुई। मैंने उसका माथा चूम लिया। मैं बोला- लेकिन पप्पू तो थोड़ा आराम के मूड में है, सो गया ये तो!
वो बोली- कैसे उठेगा?
मैंने कहा- तुम प्यार करो इसे, इसके साथ खेलो, शरारत करो तो उठ जाएगा।
रानी ने पप्पू को मुट्ठी में भर लिया और उसे छेड़ने लगी। पप्पू में थोड़ी सी हरकत हुई, मैंने कहा- अगर तुम ये काम मुंह से करो तो काम जल्दी बन जायेगा.
रानी मेरे तरफ देख के थोड़ा सा शरारती लहजे में मुस्कुराई और उठ कर पप्पू के पास मुंह कर के लेट गई। पप्पू की तरफ देखती हुई शरारत से बोली- ओए चल जल्दी उठ। पिंकी तेरे से मिलना चाहती है।
मैंने पप्पू को थोड़ा सा झटका दिया तो बोली- वाह मेरे शेर!
ऐसा कहते हुए उसने पप्पू को एक पप्पी दी।
ऐसे ही एक दो मिनट खेलने के बाद उसने एकदम से पप्पू को गड़प से मुंह में भर लिया। उसके मुंह का वो गर्म गर्म और मखमली एहसास, आज भी पप्पू को और मुझे अच्छे से याद है।
आनन्दातिरेक से मेरी आँखें बंद हो गई। वो ऐसे ही पप्पू की मुंह में बंद किये हुए अपनी जीभ फिरा रही थी। फिर धीरे धीरे मुंह को ऊपर नीचे करने लगी। कुछ सेकण्ड के बाद ही पप्पू पूरे होश और जोश में आ गया।
रानी खुशी से चहक कर बोली- आशु देखा मैंने पप्पू को उठा दिया और पिंकी से मिलने के लिए तैयार कर दिया है। अब जल्दी से इसे पिंकी से मिलवा दो। पिंकी मिलने के लिए तड़प रहीं है.
मैंने कहा- जी हुजूर, जैसे आप कहें!
मैंने रानी को बेड पर पीठ के बल लेटा दिया और उसके पैर ऐसे लटका दिए कि पिंकी बेड के किनारे पर आ जाये। मैं उसकी टांगों के बीच में पिंकी के सामने आ गया। पप्पू झटके मार रहा था और पिंकी लपलपा कर उसे बुला रही थी।
हम दोनों ही वर्जिन और अनाड़ी थे। मुझे थोड़ा बहुत जो ज्ञान था वो अन्तर्वासना और मस्तराम और की किताबों से मिला था।
हमारे पास कंडोम भी नहीं था। मैंने उसे कहा- कोई क्रीम है क्या?
उसने अपने हैंडबैग की तरफ इशारा किया जो पास में ही था। उसमें से कोल्ड क्रीम निकाल कर मैंने पप्पू पर चुपड़ ली।
अब हम तैयार थे, हमने एक दूसरे की आंखों में देखा, उसने आंखों ही आँखों में हाँ का इशारा किया। मैंने धीरे से पप्पू का सुपारा पिंकी के मुंह पर लगा दिया। पिंकी का मुंह खुल गया और रानी के मुंह से सिसकारी निकल गई।
फिर धीरे धीरे मैंने जोर लगाना शुरू किया और पप्पू धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा। जैसे जैसे पप्पू अंदर जा रहा था पिंकी का मुंह खुलता जा रहा था और रानी का मुंह बंद होता जा रहा था जैसे कि कोई बच्चा दर्द को सहने के लिये अपने जबड़े और होंठों को जोर से भींचता है।
मुझे पता था कि मुझे भी दर्द होगा। मेरे पप्पू का भी टांका अभी तक पूरी तरह से टूटा नहीं था। रानी की आंखों में आंसू आ चुके थे। पप्पू एक तिहाई अंदर जा चुका था। मैं कुछ देर के लिए रुक गया। रानी रुआंसी सी हो रही थी।
मैंने कहा- अगर तुम कहो तो मैं रहने देता हूँ। मैं तुम्हे परेशान और रोता नहीं देख सकता।
वो कुछ नहीं बोली, न तो आगे जाने के लिए ना निकालने के लिए। दर्द उस के लिए सहना मुश्किल था और मना वो करना नहीं चाहती थी। मैंने हल्के हल्के दबाव के साथ जोर लगाना शुरू किया। अब पप्पू लगभग आधा अंदर जा चुका था। रानी मुश्किल से अपनी चीख रोक पा रही थी।
बस यहीं मैं अपनी भावनाओं में बह गया और मैंने आगे ना बढ़ने की सोची। मैं उतने ही पप्पू को आगे पीछे करने लगा। उसे दर्द भी हो तो रहा था लेकिन मजा भी आ रहा था। पूरा ज्ञान ना होने की वजह से और उसे हो रहे दर्द की वजह से मैंने उसे मजा तो दिया लेकिन पूरा नहीं। मुझे लगा अभी के लिए यही काफी है। फिर किसी दिन पूरी प्लानिंग और ज्ञान के साथ प्रोग्राम बनाएंगे। ऐसे ही करते करते हम कुछ मिनट में झड़ गए।
मैंने सुना हुआ था कि अगर सेक्स के तुरंत बाद लड़की को पेशाब करा दिया जाए तो प्रेग्नेंसी के चांस काफी कम हो जाते है।
मैंने रानी को सुसु के लिए जाने को कहा। उसे दर्द ही रहा था, लेकिन मेरे जोर देने पर वो पेशाब करने गई। वापस आकर बोली- पेशाब करते वक़्त पिंकी में जलन सी हुई और थोड़ा थोड़ा ब्लड भी आया।
मैंने कहा- कोई बात नहीं। ऐसा होता है। सुबह तक ठीक हो जाएगा।
फिर ऐसे ही बातें करते करते हम सो गए। सुबह नहा धोकर फ्लाइट पकड़ी और दिल्ली आ गए। मैं सोच रहा था कि उसे गर्भ निरोधक दवा लेकर दूंगा। वहाँ याद नहीं रहा और दिल्ली एयरपोर्ट पर उसका भाई लेने के लिए आया हुआ था तो वहाँ मौका नहीं मिला।
हम घर आ गए।
शाम को जब उस से बात हुई तो मैंने उसे याद दिलाया तो बोली- अभी तो पॉसिबल नहीं है आप सुबह ला कर रखना और रेपर में से निकाल के रखना। मैं आते ही आप से ले लूंगी.
जिंदगी अपनी रफ्तार से चल रही थी। कुछ दिन में उस का लेटर आया कि उसे चंड़ीगढ़ रीजनल हेड क्वार्टर में जॉइन करना है। मुझे सुनकर झटका तो लगा, लेकिन कहीं न कहीं मैं इसके लिए खुद को तैयार कर चुका था। मैंने रानी को समझाया और उसे जॉइन करने के लिए भेज दिया।
करीब एक साल वो चंडीगढ़ रही। फोन पे तो रोज ही बातें होती थी। लेकिन मिलना हर हफ्ते रविवार को ही हो पाता था। कुछ महीने बाद ये महीने में एक बार पर आ गया।
मेरी जिंदगी में जबरदस्त खालीपन आ चुका था। काम काज की टेंशन भी बढ़ रही थी। पार्टनर के साथ भी छोटे छोटे इशू होने शुरू हो चुके थे। अब फोन पर भी बात कम ही होती थी। जब वो फ्री होती तब मैं कहीं बिजी होता था, जब मैं फ्री होता था वो बिजी होती थी।
उसे लगने लगा था कि मैं उसे इग्नोर कर रहा हूँ।
मैं सोचता था कि वो पहले से ही परेशान है, मैं उसे अपनी परेशानियां बता कर और क्यों परेशान करूं!
मेरे साथ एक मेडिकल प्रॉब्लम भी चल रही थी जो मैंने किसी को नहीं बताई थी।
उसी वक़्त मेरी जिन्दगी में सोनू आई थी, उसके आने से जैसे डूबते को तिनके का सा सहारा मिल गया। फिर पापा को हार्ट अटैक आया और मेरे पार्टनर ने मेरे साथ धोखा किया जिस से मैं कर्जे में चला गया। रोज रोज के खर्चे, कर्जे की चिंता और रानी से दूर होने के गम में मैं सोनू और शराब के नशे में डूबता चला गया।
मेरा और रानी का रिश्ता ऐसा था कि मैं किसी को बता भी नहीं सकता था। डर, शर्म और दर्द को अपने सीने में छुपाए मैं जलता रहा। उस आग पर थोड़े बहुत पानी के छींटे सोनू ने दिए लेकिन वो नाकाफी थे। मैंने जज्बातों को कागज पर उतारना शुरू कर दिया।
एक दिन रानी मेरे पास आई हुई थी। वो मुझसे शिकायतें कर रही थी।
दिल में तूफान था, लेकिन फट नहीं सकते थे हम,
उसके चेहरे को देख कर, बस मुस्कुराते रहे!
लेकिन एक दिन ऐसा आ ही गया मुझसे और ज्यादा सहन नहीं हुआ, मैंने सब कुछ रानी को बता दिया। वो एकदम से सकते में आ गई। मुझे लगा था कि वो मुझे संभालेगी और प्यार करेगी।
उसने कोशिशें भी की लेकिन हमारे रिश्ते में तल्खी तो आ ही चुकी थी। इस तरफ अब मैंने सोनू को भी इग्नोर करना शुरू कर दिया था। हम दोनों ने ही कोशिश भी की रिश्ते को संभालने की लेकिन दूरी और मेरी मजबूरियां मुझे मौका नहीं दे रही थी। ना चाह कर भी कोई न कोई गलती मुझ से हो ही जाती थी.
और रही सही कसर हमारे एक कॉमन फ्रेंड ने पूरी कर दी। उसने हमारे बीच इतनी गलतफहमियां पैदा कर दी कि हमारे बीच की खाई बढ़ती ही चली गई।
फिर मैंने भी सोच लिया था
होगा कोई मेरा अपना तो पढ़ लेगा मेरी आँखों को,
कह के हाल सुनाया भी तो क्या सुनाया..
मैंने खुद को दुनिया से काट लिया, बस अपने आप में ही गुम रहने लगा।
अपने आप पर यकीन तो सभी को होता ही हैं,
लोग टूट जाते हैं अक्सर अपनों को समझाते समझाते!
उसके बाद मैं पंजाब चला गया। वहाँ जाकर नए सिरे से जिंदगी शुरू करने की कोशिश की लेकिन किस्मत जैसे हाथ धोकर पीछे पड़ गई थी। लेकिन अब मैंने सोच लिया था कि जो होगा देखा जाएगा और खुद को काम में डुबो दिया।
लगभग एक साल बाद मेरी जिंदगी पटरी पर आ गई। काम वगेरह सेट करने के बाद मैंने अपने छोटे भाइयों को सम्भालवा दिया और अब मैं अपने सपने पूरे कर रहा हूँ। हर वो काम जो मैं करना चाहता था लेकिन जिंदगी की जद्दोजहद ने जो करने नहीं दिए थे वो मैं अब कर रहा हूँ।
रानी की शादी हो चुकी है, इसी साल फरवरी में उसकी शादी हुई। पता था वो मुझे नहीं बुलाएगी लेकिन मन में एक अरमान तो था ही कि वो बुलाये।
लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
मैं बस बाहर से ही मैरिज पैलेस देख के आ गया।
मुझे यह खुशी थी कि वो अपनी जिन्दगी में आगे बढ़ रही है। मेरी खुदा से यही दुआ है वो हमेशा खुश रहे।
तो मेरे अज़ीज़ दोस्तो, यह थी मेरी कहानी … मैं आप सबसे माफी चाहूंगा कि आप जो पढ़ना चाहते थे वो शायद आप को नहीं मिला होगा। लेकिन मैं एक बात कहना चाहता हूँ कि यह कहानी अक्षरशः सच है, सिर्फ नाम अलग हैं।
जिंदगी में किस्से इसके बाद भी बहुत सारे हुए हैं लेकिन उनमें सिर्फ सेक्स ही है, प्यार या इमोशन बस यही तक थे।
आगे की कहानियां अगर आप कहेंगे और वक़्त इजाजत देगा तो जरूर लिखूंगा।
आज मैं अकेला हूँ, अपनी जिंदगी में खुश हूं। लेकिन कभी कभी अकेलापन सालता है तो यहाँ आप लोगो की लिखी कहानियां पढ़ने आ जाता हूँ। ढूंढ रहा हूँ मेरे जैसे ही ख्यालातों वाली कोई लड़की, जो मेरा अकेलापन बांट सके। मेरी उम्र 29 साल है और मैं अभी अविवाहित हूँ। घर वाले चाहते हैं कि मैं शादी कर लूं, कई सारे रिश्ते भी आये लेकिन मेरा मानना है कि शादी सिर्फ सेक्स के
लिए नहीं होती। उसके लिए आपस की समझ, एक दूसरे के लिए सम्मान होना बहुत जरूरी है। जब तक ऐसी कोई लड़की नहीं मिल जाती, जो मेरे से प्यार करे, जिसे मेरा अतीत स्वीकार हो, तब तक हम अकेले ही सही।
जाते जाते अपनी लिखी एक छोटी सी रचना से बात खत्म करता हूँ:
“मिल जाते हैं यूँ ही कुछ लोग जिंदगी की राहों में,
कुछ वक़्त साथ रहते हैं,
हंसते है, खेलते हैं,
कुछ नगमे साथ गुनगुनाते हैं,
फिर बिछुड़ जाते हैं.
जिन्दगी की तन्हाइयों में,
पर कभी जब दिल उदास होता है,
वो दोस्त बहुत याद आते हैं,
वो दिन बहुत याद आते है!”
दोस्तो हंसते रहिये, मुस्कुराते रहिये, खुश रहिये.
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