मेरा प्यार और सेक्स का सफ़र

(Mera pyar aur sex ka safar)

प्यारे दोस्तो.. आप सभी को मेरा वासना भरा नमस्कार.. मेरा नाम पंकज कुमार है.. मैं यूपी पश्चिम का रहने वाला हूँ।
मैं आप सभी को अपने जीवन के प्यार और सेक्स के सफ़र के बारे में बताने जा रहा हूँ।

मेरी ज़िंदगी की शुरुआत सभी की तरह हुई थी.. बस एक छोटे से फ़र्क को छोड़कर और वो यह कि मैंने उस उमर में ही चूत के दर्शन कर लिए थे.. जब मुझे इसका नाम भी नहीं मालूम था।
अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है.. तो दोस्तो, बात ऐसी है कि मैं बचपन से ही अपने मामा के घर.. उनके गाँव में अपनी मौसी के पास रहता था।
तब तक मौसी की शादी नहीं हुई थी। उनकी एक सहेली जिसका नाम सुषमा था.. उसकी भी शादी नहीं हुई थी।

गर्मियों की दोपहर में जब भी हम अकेले में होते.. तो सुषमा मुझे अपने जाँघों पर बैठा लेती और सलवार का नाड़ा खोलकर अपनी चूत को मेरी आँखों के सामने कर देती थी।

मैं भी अंजाने में उसकी चूत के साथ खेलने लगता। इसी तरह जब भी मौका मिलता.. वो मुझे अपनी चूत के साथ खेलने और उसे छूने का पूरा मौका देती थी।

फिर कुछ महीनों के बाद उन दोनों की शादी हो गई.. और वो मुझे भूल कर अपनी-अपनी शादीशुदा जिंदगी की चुदाई में मस्त हो गईं।
जबकि मुझे उनकी चूत के साथ खेलना और उनका साथ अच्छा लगने लगा था।

वो प्यार था.. या आकर्षण.. मुझे नहीं पता.. पर जब आज भी वो मेरी नज़रों के सामने आती हैं.. तो मुझे वही सब याद आ जाता है और उनको किसी और की बाँहों में देखकर मेरी आँखों से आँसू बहने लगते हैं।

खैर समय अपनी रफ़्तार से चलता चला गया और मैं और बढ़ा हुआ.. अब मैं स्कूल में आ गया था.. तो उधर मैंने अपनी कक्षा में एक लड़की को देखा जिसका नाम रूपा था।
रोज-रोज उसको देखते-देखते वो मेरी आँखों के रास्ते मेरे दिल में उतर गई और एक दिन मैंने उसे अपने दिल की भावनाओं के बारे में बता दिया।
उस वक्त तो वो कुछ नहीं बोली.. पर अगले दिन मुझे मेरे प्रिन्सीपल ने अपने ऑफिस में बुलाया और जमकर मेरी पिटाई हुई।

जब कुट-पिट कर मैं वापस कक्षा में गया.. तो सब मुझे देखकर मुस्कुरा रहे थे। मैंने रूपा की तरफ देखा तो उसकी नज़रों में अपने लिए प्यार का एक अंश भी नहीं दिखा। मैं समझ गया कि उसी ने मेरे बारे में शिकायत की थी।

मैं दो दिन तक स्कूल में नहीं गया और ना ही खाना खाया। दो दिन बाद मेरा दिल उसे देखने के लिए फिर तड़प उठा और मैं अपनी शर्मिंदगी को छोड़ कर स्कूल चला गया।
तब भी सब मुझे देखकर मुस्कुरा रहे थे.. पर मैंने सबको नज़रअंदाज करता हुआ रूपा को देखता रहा।

इसी तरह पूरा साल गुजर गया और गर्मियों की छुट्टियाँ हो गईं।
मैं बड़ी बेसब्री से छुट्टियों के ख़त्म होने का इंतजार करने लगा.. पर जब स्कूल दोबारा खुला.. तो पता चला कि उसने स्कूल छोड़ दिया है।
मैं मन मसोस कर रह गया.. पर आज तक उसे नहीं भूल पाया हूँ.. पता नहीं वो भी प्यार था या फिर आकर्षण था।
अब मेरा स्कूल जाने का बिल्कुल दिल नहीं था.. पर मम्मी ने ज़बरदस्ती भेज दिया।

इसी बीच एक दिन मैं अपनी छत पर घूम रहा था.. तो मैंने देखा कि मेरे ताऊ का बेटा.. जो मुझसे दो कक्षा आगे था.. अपने बाथरूम में अपने लण्ड को पकड़कर आगे-पीछे हिला रहा था।
मैं बड़े गौर से उसे देख रहा था कि तभी उसने मुझे देख लिया.. मैं डर गया और वो भी डर गया।
मैं वहाँ से हट गया.. पर मेरे दिमाग़ से वो सब जा ही नहीं रहा था।

शाम को मैं खाना खा कर जल्दी सोने के लिए चला गया.. पर मुझे नींद नहीं आ रही थी।

मेरा हाथ अपने आप मेरा लोवर नीचे करके मेरे लण्ड पर चला गया और मैं भी भाई के जैसे ही उसे आगे-पीछे हिलाने लगा। मुझे अजीब सा भी लग रहा था.. पर अच्छा भी लग रहा था।
मैं बहुत देर तक रूप की जवानी को याद करता हुआ अपने लौड़े को आगे-पीछे करता रहा.. आखिर में एक झटके के साथ बड़ा मज़ा आया.. मेरा पानी निकल गया था।

फिर तो मैं रोज ही रूप की चूत को याद करके यह मज़ा लेने लगा.. बाद मैं मुझे पता चला कि इसे ही मुठ्ठ मारना कहते हैं।

मेरा सफ़र अभी बाकी है.. उसमें चूत की चुदाई का अनुभव भी शामिल है।
मुझे नहीं मालूम कि मेरी इस सच्ची घटनाओं भरे अनुभव की दास्तान.. आपको कितनी प्रभावित कर सकी है.. इसलिए आगे लिखने में कुछ संकोच हो रहा है..
अगर आप सभी को मेरी जिंदगी का ये सफ़र अच्छा लगा हो.. तो मुझे ज़रूर लिखें.. जिससे मेरा हौसला बढ़ सके और मैं आप लोगों से अपनी बात साझा कर सकूँ।
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