माँ की अन्तर्वासना ने अनाथ बेटे को सनाथ बनाया-3
(Maa Ki Antarvasna Ne Anath Bete Ko Sanath Banaya- Part 3)
माँ की अन्तर्वासना ने अनाथ बेटे को सनाथ बनाया-1
माँ की अन्तर्वासना ने अनाथ बेटे को सनाथ बनाया-2
मैं अपनी कामुक लालसा तरुण को दर्शाना नहीं चाहती थी इसलिए मैंने ऐसे किसी भी प्रयास में पहल नहीं करी क्योंकि मैं चाहती थी ऐसी पहल तरुण की ओर से ही हो.
कुछ दिनों के बाद एक रात को मेरे मन में विचार आया कि मैं नलकूप पर कपड़े धोते और नहाते समय अगर अपनी नग्नता तरुण को दिखाऊं तो शायद वह कोई पहल करे.
लेकिन मेरा मन और मस्तिष्क ऐसे किसी भी विचार से बिल्कुल सहमत नहीं थे इसलिए उनकी ओर से मुझे ऐसा कुछ भी नहीं करने के संकेत मिले.
मन एवं मस्तिष्क के संकेत में ही अपनी बेहतरी समझते हुए मैंने वह विचार त्याग दिया और करवट बदल कर सो गयी.
चार-पाँच दिनों के बाद जब सुबह मेरी नींद खुली तो देखा की तरुण और वरुण सो रहे थे तब मैंने सोचा की उनके उठने से पहले मैं नहा लेती हूँ.
मैंने जल्दी से मैले कपड़े उठाये और नलकूप पर जा कर अपने सभी कपड़े भी उतारे तथा नग्न ही उसकी मुंडेर पर बैठ कर उन्हें धोने लगी.
जब सभी कपड़े धुल गए तब मैंने खड़े होकर कपड़ों को नलकूप के पाईप पर रख दिया और उसमें से निकल रही पानी की मोटी धार के नीचे बैठ कर नहाने लगी.
नहा लेने के बाद जब मैं उठ कर पास की झाड़ियों पर पड़े तौलिये को उठा कर अपने शरीर को पोंछ रही थी तभी मेरी नजर झोंपड़ी के बरामदे में खड़े तरुण पर पड़ी जो मेरे शरीर को गौर से देख रहा था. मैं तुरंत झुक कर झाड़ियों की आड़ में होते हुए पहले लहंगा पहना और जब चोली पहन कर उसकी डोरी बाँधने लगी तो पाया कि पहले दिन की तरह वह उलझी हुई थी.
मैं उस उलझी डोरी को सुलझाने की कोशिश कर रही थी तभी तरुण वहाँ आ गया और मेरी परेशानी को देख कर जोर से हंसने लगा.
मैंने जब उसकी ओर गुस्से से देखा तब उसने मेरी पीठ की ओर आ कर चोली की डोरी को पकड़ते हुए बोला- तुमने इतने दिनों में अभी तक चोली की डोरी बांधनी नहीं सीखी. लाओ मैं बाँध देता हूँ और तुम्हें बांधना भी सिखा देता हूँ.
उसके बाद तरुण ने डोरी सुलझाने के लिए जब चोली को थोड़ा ढीला किया तब मेरे दोनों स्तन उसमें से बाहर निकल गए.
तरुण ने जब यह देखा तो बिना कुछ पूछे या कहे अपने दोनों हाथों को मेरी बगल से आगे ला कर मेरे दोनों स्तनों को पकड़ कर चोली के अन्दर करके डोरी खींच कर बाँध दी.
उसकी इस हरकत से मैं कुछ देर के लिए स्तब्ध रह गयी और कुछ बोल नहीं सकी तथा वहाँ से भाग कर झोंपड़ी में चली गयी.
मेरे पीछे पीछे तरुण नलकूप से धुले कपड़े ले कर आया और उन्हें बरामदे में बंधी रस्सी पर सूखने के लिए फैला दिए.
उस पूरे दिन मैं अपने उरोज़ों पर तरुण के मजबूत हाथों का स्पर्श महसूस करती रही और मेरे शरीर के विभिन्न अंगों में उत्तेजना की लहरें दौड़ती रहीं.
उस रात को खाना खाकर जब तरुण खेतों का चक्कर लगाने गया तब मैंने वरुण को सुलाते हुए सोचा कि तरुण ने तो पहल कर ही दी थी तो अब मुझे भी कदम आगे बढ़ाना चाहिए. उसी रात लगभग तीन बजे जब मेरी नींद खुली और मैंने देखा की सोये हुए तरुण की लुंगी की गाँठ खुल गयी थी तथा उसका आधा भाग सरक गया था जिससे उसका लिंग नग्न हो रहा था.
वासना के वशीभूत होकर मैं अपने पर नियंत्रण खो बैठी और तरुण के बिस्तर पर बैठ कर उसके लिंग को सहलाने लगी थी.
कुछ ही क्षणों में जब तरुण का लिंग तन गया और उसका लिंग-मुंड भी त्वचा से बाहर निकल आया तब मैंने तरुण की ओर देखा तो पाया कि वह जाग चुका था और मुस्करा रहा था.
हमारी नजरें मिलते ही वह बोला- क्या बात है? क्या नींद नहीं आ रही है या फिर कुछ चाहिए?
मैंने उत्तर में कहा- आपने आज मेरे शरीर में जो आग लगा दी है वह जब तक बुझेगी नहीं तब तक नींद कहाँ से आयेगी.
मेरा उत्तर सुन कर वह उठ कर बैठ गया और कहा- सरिता, मैं तुम्हारी समस्या को समझ गया हूँ. आज सुबह मैंने आवेश में आ कर जो किया उसके लिए मुझे बहुत खेद है. मुझे बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि मेरे उस व्यवहार का तुम पर ऐसा असर होगा और तुम्हारी सोई हुई अन्तर्वासना जाग जाएगी. क्योंकि काफी दिनों से तुम्हारी वासना की तृप्ति नहीं हुई है शायद इसलिए तुम्हें नींद नहीं आ रही है.
मैं बिना कोई उत्तर दिए चुपचाप तरुण के तने लिंग को सहलाते हुए सोचती रही कि उसके द्वारा कही गयी बात से अपनी सहमति कैसे व्यक्त करूँ.
मेरे द्वारा उसकी बात का उत्तर नहीं देने पर उसने मेरी नाइटी के खुले बटनों में से अपना हाथ डाल कर मेरे स्तनों को सहलाते हुए मुझसे पूछा- तुमने मेरी बात का उत्तर नहीं दिया. अगर तुम्हारी सहमति मिल जाये तो मैं तुम्हें तृप्ति एवं संतुष्टि देने के लिए तैयार हूँ. उसके बाद तुम्हें बहुत ही चैन की नींद आ जाएगी.
तरुण की इस बात से मैं दुविधा में पड़ गयी और सोचने लगी कि मैं बेटे को सनाथ बनाने के लिए सहवास की स्वीकृति दूँ या फिर अपनी वासना की तृप्ति के लिए?
कुछ क्षण तक इस प्रश्न पर विचार करने पर मुझे एहसास हुआ की मेरी स्वीकृति देने से मेरी वासना की भूख मिटाने के साथ साथ बेटे को सनाथ बनाने की इच्छा पूर्ति की ओर भी एक कदम बढ़ेगा.
जब मैंने स्वीकृति देने से एक तीर से दो निशानों पर वार होते पाया तब मैंने बिना देर किये नीचे झुक कर तरुण के लिंग को अपने मुंह में ले लिया.
तरुण ने मेरी इस कृत्य को मेरी स्वीकृति मान कर झट से मेरी नाइटी एवं अपनी आधी खुली हुई लुंगी उतार कर दोनों को पूर्ण नग्न कर दिया. मुझे पहले तो संकोच हुआ क्योंकि मैं जीवन में पहली बार किसी पर-पुरुष के सामने नग्न हुई थी लेकिन मैंने अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु कुछ देर के लिए निर्लज्ज बनाना भी स्वीकार कर लिया.
जब मैं फिर से तरुण के लिंग को मुँह में लेने लगी तब उसने मुझे घुमा कर 69 की स्तिथि में लिटा दिया और खुद मेरे ऊपर आ कर अपना लिंग मेरे मुँह में दे दिया तथा मेरी योनि पर अपना मुंह लगा दिया.
कुछ ही क्षणों में मेरी वासना में वृद्धि होने लगी और उस उत्तेजित स्थिति में मैंने उसके पूरे लिंग को अपने मुँह में ले कर गले में उतार दिया और उसके अंडकोष को मसलने लगी. मेरे द्वारा ऐसा करने से तरुण उत्तेजित हो गया और उसने अपनी जीभ को तेजी से मेरी योनि के अन्दर बाहर करने लगा तथा एक उंगली से मेरी भगनासा को मसलने लगा.
पांच मिनट के बाद ही तरुण के शरीर में बढती उत्तेजना इतनी बढ़ गयी कि उसके लिंग में से स्वादिष्ट पूर्व-रस अमृत की कुछ बूंदों ने मेरे मुँह को खट्टा-नमकीन करना शुरू कर दिया.
उस पूर्व-रस के स्वाद और तरुण द्वारा मेरी योनि तथा भगनासे को सहलाने एवं मसलने के कारण मेरी उत्तेजना में बहुत वृद्धि हो गयी जिस कारण मेरा शरीर अकड़ने लगा. कुछ हो क्षणों के बाद मेरी योनि में से भी तरुण के लिए कुछ बूँदें योनि-रस की निकल पड़ी और उसके मुख तथा होंठों से लिपट गयीं
तब तरुण अपने होंठों पर लगे योनि-रसं पर जीभ फेरता हुआ उठा और मुझे सीधा लिटा कर मेरी टांगें को चौड़ी कर के उनके बीच में बैठ गया. मैं इसके लिए तैयार थी इसलिए मैंने पूरा सहयोग करते हुए अपने हाथ में उसके सख्त एवं तने हुए लिंग को पकड़ कर अपनी योनि में मुँह पर लगा दिया.
तब तरुण ने मेरी दोनों टांगों को उठा अपने कन्धों पर रख लिया और नीचे से एक हल्का सा धक्का दिया जिससे उसका आधा लिंग मेरी योनि में प्रवेश कर गया. तरुण के तीन इंच मोटे लिंग-मुंड ने मेरी योनी को पूरा फैला दिया और उस क्षण मुझे ऐसा लगा की जैसे मेरी योनि में एक गर्म लोहे की छड़ घुस गयी हो.
उस लिंग का मेरी योनि में घुसने से हुई फैलावट के कारण मुझे थोड़ी असुविधा हुई और मेरे मुँह से एक लम्बी आहह्ह्ह… निकल गयी जिसे सुनते ही तरुण रुक गया. जब तक मुझे अपनी योनि में तरुण के लिंग को समायोजित करने में कुछ समय लगा तब तक वह रुका रहा और जब मेरे चेहरे पर सामान्य भाव आये तब उसने धक्का लगा दिया. उस धक्के के लगते ही तरुण का आठ इंच लम्बा लिंग मेरी योनि की जड़ तक पहुँच गया और मेरे गर्भाशय में घुसने का प्रयास करने लगा.
मुझे जीवन में पहली बार अपनी योनि के अन्दर का हर कोना पूरी तरह से ठूस कर भरा हुआ महसूस हुआ. अपने पूरे लिंग को मेरी योनि में घुसाने के बाद तरुण कुछ देर के लिए थम गया और अपने लिंग को मेरे अन्दर ही फुलाने और सिकोड़ने लगा.
तरुण के लिंग में हो रही इस क्रिया के कारण मैं योनि में हो रही असुविधा को भूल गयी और उससे मिलने वाले आनंद को दुगना करने के लिए योनि को सिकोड़ कर तरुण के लिंग को जकड़ लिया.
लगभग पांच मिनट के बाद तरुण ने धीमे धीमे अपने लिंग को मेरी योनि के अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया.
क्योंकि उसक लिंग-मुंड बहुत मोटा है इसलिए वह मेरी योनि की चारों ओर की दीवारों को रगड़ता हुआ चल रहा था जिससे योनि के अन्दर बहुत ही तेज़ हलचल एवं खलबली होने लगी थी.
जहां मेरी योनि में कामोन्माद होने में पन्द्रह से बीस मिनट लगते थे वहां उस समय सिर्फ सात-आठ मिनट में ही खिंचावट की एक तेज़ लहर के साथ मेरी योनि में से रस का स्खलन हो गया.
अगले पन्द्रह मिनट तक तरुण अपने लिंग को मेरी गीली योनि में अन्दर बाहर करता रहा और इस अवधि में मेरी योनि को दो बार कामोन्माद से गुज़र कर स्खलित होना पड़ा. उसके बाद तरुण बहुत ही तीव्रता से संसर्ग करने लगा और जैसे ही उसके लिंग से वीर्य रस स्खलित होने का समय आया तो उसका लिंग और भी अधिक फूल गया.
ठीक उसी समय मेरा पूरा शरीर ऐंठ गया और टाँगे अकड़ गयी तथा मेरी योनि में भी अत्यंत तीव्र संकुचन होने लगा जिससे दोनों के गुप्तांगों में भीषण घर्षण हुआ. उस घर्षण से उत्पन्न हुई कामोन्माद से दोनों ने कुछ ही क्षणों में एक साथ अपने अपने रस का विसर्जन कर दिया और दोनों निढाल होकर बिस्तर पर लेट गए.
हमें कब नींद आ गयी इसका पता ही नहीं चला और जब सुबह पक्षियों के चहकने की आवाज़ सुन कर मेरी नींद खुली तब मैंने अपने को बिस्तर पर पूर्ण नग्न पाया और तरुण का कहीं पता नहीं था.
मैं कपड़े पहन कर कमरे से बाहर निकली तो देखा की तरुण झोंपड़ी के बगल में बने तबेले में बंधी गाय का दूध निकाल रहा था.
मेरे पूछने पर की गाय कब लाया तब उसने कहा- बच्चे और चाय आदि के लिए दूध लाने के लिए सुबह शाम हवेली पर नहीं जाना पड़े इसलिए मैं तड़के ही गांव जा इसे ले आया हूँ.
मैंने उससे दूध बर्तन ले कर रसोई में उबालने के लिए ले गई, तब वह भी मेरे पीछे आ गया और पूछने लगा- सरिता, कल दिन तथा रात में जो हुआ उससे तुम नाराज़ तो नहीं हो. सच कहता हूँ की दोनों समय मैं अपने को नियंत्रण में नहीं रख सका था.
मैंने उत्तर दिया- नहीं, मैं खुद भी अपने पर नियंत्रण नहीं रख सकी थी इसलिए तुमसे नाराज़ होने का तो कोई औचित्य ही नहीं बनता है.
तब उसने पूछा- सच सच बताना, क्या तुम्हारी अधीर वासना को आनंद, तृप्ति एवं संतुष्टि मिली?
मैंने उसके होंठों के चूमते हुए कहा- मुझे कल रात के सहवास से जितना आनंद एवं संतुष्टि मिली है उतनी पहले कभी नहीं मिली थी. लेकिन सच बोलूं तो अभी तृप्ति नहीं मिली बल्कि प्यास और बढ़ गयी है.
इतने में चूल्हे पर रखे दूध में उबाल आ गया और जैसे ही मैंने उसे उतार कर नीचे रखा तभी तरुण ने मुझे उठा कर कमरे में ले जा कर बिस्तर पर पटक दिया.
फिर हँसते हुआ बोला- मैं अपनी असफलता बर्दाश्त नहीं कर सकता और अब जब तक तुम्हे तृप्ति नहीं मिलती तब तक मैं तुम्हें नहीं छोड़ूंगा.
उसके बाद हम दोनों एक बार फिर नग्न हो कर संसर्ग के एक नए दौर के लिए एक दूस्ररे को उत्तेजित करने लगे.
एक घंटे के संसर्ग के बाद उत्पन्न हुई कामोन्माद से जब हम दोनों का रस विसर्जन हुआ तब जा कर मेरी प्यासी वासना की तृप्ति हुई.
उस लंबी अवधि के सम्भोग के बाद हम दोनों को थोड़ा आलस्य आ गया था और हम एक दूसरे की बाँहों लिपटे एक घंटे के लिए नींद के आगोश में चले गए.
जब मेरी नींद खुली तब देखा की तरुण भी जाग चुका था और मेरे करीब ही बैठा हुआ मेरे उरोज़ों को बहुत ही गौर से देख रहा था. मैं भी उठ कर बैठ गयी और उससे पूछा- इतने गौर से क्या देखने में तल्लीन हो?
वह मेरे नजदीक आते हुए बोला- सरिता, सच में तुम बहुत सुंदर हो और तुम्हारे शरीर की सुन्दरता का तो कोई जवाब नहीं. विशेष रूप से तुम्हारी चूचियों का उभार तथा आकृति इतने आकर्षक और सुंदर है कि मेरे पास इनके बारे कुछ कहने के लिए कोई शब्द ही नहीं हैं.
मैंने शर्माते हुए कहा- धत, क्या कोई मर्द किसी पराई स्त्री से ऐसे बात करता है?
तरुण ने तुरंत कहा- यह तो मुझे आज पता चला है की स्त्री एक मर्द के साथ दो बार सम्भोग करने के बाद भी अपने आप को पराई ही समझती है. लेकिन मैं तुम्हें अब पराई बिल्कुल नहीं मानता हूँ क्योंकि कल रात से तुम्हें सदा के लिए अपना बना चुका हूँ.
इससे पहले मैं कुछ कहती तरुण बोला- सरिता, अगर तुम्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं है और अभी भी अपने को पराई महसूस करती हो तो चलो अभी गाँव के मंदिर ईश्वर से आशीर्वाद लेने के लिए चलते है.
तरुण ने ऐसी बात कह कर मुझे एकदम चकित कर दिया और उस विस्मित स्थिति मुझे चक्कर आ गया तथा मैं आँखें बंद करके उसकी बाजुओं में झूल गयी.
थोड़ी देर बाद जब मैंने अपने को सँभाल कर आँखें खोली तब तरुण ने मेरे होंठों को चूमते हुए कहा- सरिता, क्या हो गया तुम्हें? क्या मेरी कही बात तुम्हें अच्छी नहीं लगी?”
मैंने उठ कर बैठते हुए कहा- मुझे कुछ नहीं हुआ और ना ही ऐसी कोई बात नहीं है. आपने अचानक ही वह बात कह दी जिसकी मुझे बिल्कुल भी अपेक्षा नहीं थी.
तभी मुझे एहसास हुआ की तरुण मेरे दोनों नग्न उरोज़ों को अपने हाथों में ले कर धीरे से सहला रहा था तथा उँगलियों से उनकी चूचुकों से खेल रहा था.
मैंने उसके हाथों को पकड़ कर अलग करते हुए कहा- अब आप इनको क्यों परेशान कर रहे हो?
मेरी बात के उत्तर में तरुण ने कहा- मुझे ऐसी कोमल त्वचा वाली, कठोर तथा उठी हुई गोल चूचियां को देखने और छूने का सौभाग्य आज से पहले कभी नहीं मिला. इसलिए मैं तो इन को सहला कर अपना दिल बहला रहा था. मैं जीवन भर इन्हें इसी तरह सहलाते रहना चाहता हूँ, क्या तुम इसके लिए राज़ी हो?
तरुण की बात से मिल रही ख़ुशी के कारण मेरे मुख कोई बात नहीं निकल रही थी इसलिए मैंने अपने होंठों को उसके होंठों को चूमते हुए अपनी स्वीकृति व्यक्त कर दी. मेरी स्वीकृति मिलते ही तरुण ख़ुशी से झूम उठा और मुझे अपनी गोदी में उठा कर मेरे समक्ष शरीर पर चुम्बनों की बौछार कर दी.
उसके बाद मैंने वरुण को जगाया और हम तीनों नग्न ही नलकूप पर जा कर एक साथ ही नहाये तथा तैयार हो कर गाँव के मंदिर में जा कर गन्धर्व विवाह करके ईश्वर का आशीर्वाद लिया.
दो माह तक गन्धर्व विवाह हेतु हम दोनों पति पत्नी के समान रहे और जीवन के हर क्षण का आनंद एवं संतुष्टि पाते रहे.
दो माह के बाद एक शुभ मुहूर्त पर हमने सामाजिक विवाह कर पति पत्नी बन गए परन्तु मेरा ध्येय तब भी पूर्ण नहीं हुआ क्योंकि तरुण ने वरुण तब तक बेटा कह कर उसको पिता का हक नहीं दिया था.
विवाह के दो वर्ष बाद ही मुझे जीवन की सब से बड़ी ख़ुशी तब मिली जिस दिन तरुण ने गाँव के शिशु मंदिर में वरुण को दाखिल कराया.
उस ख़ुशी का वास्तविक कारण था की वरुण को दाखिल करवाते समय तरुण ने भरती फार्म में पिता के स्थान में अपना नाम लिख कर उस अनाथ बालक को सनाथ बनाने का मेरा ध्येय पूरा कर दिया था.
आज मैं अपने को सब से सुखी समझती हूँ क्योंकि ईश्वर द्वारा दिए गए अवसर को मैंने नक्कारा नहीं और अपने उद्देश्य को पाने के लिए धैर्य रखा. मुझे उस धैर्य रखने का फल तरुण जैसा पति मिला जो मेरी एवं मेरे बेटे की हर इच्छा को पूरा करता है और मेरे सुख, आनंद, संतुष्टि तथा तृप्ति के लिए सदा ही तत्पर रहता है.
मेरे जीवन के सब से कड़वे सच एवं कटु अनुभव को एक माला में पिरोने के लिए मैं तृष्णा दीदी की बहुत आभारी हूँ.
***
अन्तर्वासना की पाठिकाओं एवं पाठकों मैंने इस रचना को लगभग एक माह पहले लिख तथा सम्पादित कर के सरिता को भेजा था लेकिन उसकी ओर से स्वीकृति नहीं मिलने के कारण इसे जल्दी प्रेषित नहीं कर सकी.
तीन दिन पहले सरिता द्वारा दिए गए कुछ सुझावों के अनुरूप इस रचना को पुनः संपादित करके आपके समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ.
इस रचना को अंत तक पढ़ने के लिए सरिता एवं तृष्णा की ओर से बहुत धन्यवाद.
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