माँ बेटी की मज़बूरी का फायदा उठाया-4
(Maa Beti Ki Mazboori Ka Fayda Uthaya- Part 4)
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मैं- रंडी, अभी तो तुझे चुदवाना नहीं था … अब क्या हुआ साली? अब अपनी माँ को दिखा तू कि तू कितनी बड़ी रंडी है। मेरे लंड के ऊपर आ जा और अपनी चूत में मेरा लंड लेकर अपनी गांड को उछाल उछाल के चुदवा!
यह बोल कर मैं बेड के ऊपर लेट गया.
मानसी अपनी माँ के सामने ही मेरे ऊपर चढ़ गयी और मेरे खड़े लंड को अपने चूत में घुसाने लगी. सुशीला आँखें फाड़ फाड़ कर देख रही थी।
मैंने सुशीला को कहा- देखा … जिसके लिए तुम रहम की भीख मांग रही थी, वो कैसे अपनी गांड उछाल उछाल के चुद रही है।
सुशीला कुछ बोल ही नहीं पायी, वो देखती जा रही थी कि उसके सामने उसके बेटी पूरी रंडी बनी हुई लंड चूत में लिए हुए उछल रही है, उसकी चुची उपर नीचे हो रही है उसके सामने … और उसके मुँह से मादक सिसकारियां निकल रही हैं। उसे अपनी माँ की ज़रा भी परवाह नहीं!
मैं- साली तुम माँ बेटी दोनों पूरी चुदक्कड़ हो … अभी देखना, मैं तुझे इससे भी बडी रंडी बनाता हूँ चोद चोद कर!
मानसी कुछ नहीं सुन रही थी और मेरे लम्बे लंड पर ऐसे उछल रही थी जैसे उसे बीस इंच का भी लंड कम पड़ेगा.
ऐसे ही थोड़ी देर चूत में लंड लेकर उछलने के बाद वो झड़ गयी … मैं भी उसकी चूत में ही झड़ गया। हम दोनों की सिसकारियों से पूरा कमरा गूंज उठा।
कुछ देर के बाद वो उठकर चली गयी बाथरूम की ओर … और मैं सुशीला की ओर चला गया. वो चौंक गई … मैं उसके होठों को चूम कर किस करने लगा.
सुशीला- आह … हमें छोड़ दो मुनीम जी, आपको पाप लगेगा … मैं शादीशुदा हूँ … पंडित की बीवी हूँ.
मैं- अपनी बेटी की चुदाई तो तू आँखें फाड़ के देख रही थी … पराये मर्द का लंड अपनी बेटी की चूत में देखकर तुझे मजा आ रहा था या नहीं? और अपनी बारी आई तो सती सावित्री बनने लगी. देखना तू इससे भी बड़ी रंडी बन कर मुझसे अपनी गांड उछाल उछाल कर चुदवायेगी. इधर देख, मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया है तेरे लिए … तेरी बेटी की गांड, मुंह और चूत चोद कर मेरा लंड तेरे लिए ही खड़ा हो रहा है, तेरी बेटी के लिये नहीं।
मैंने उसके हाथ को पकड़ कर मेरे कड़क लंड पर रख दिया और बोला- देख कितनी गर्मी है इसमें तेरे लिए, सिर्फ तेरे लिए यह खड़ा है और तू नखरे दिखा रही है?
और उसके हाथ को मैंने लंड के ऊपर अपने हाथ से जकड़ लिया.
वो उत्तेजित हो उठी लेकिन नारी सुलभ लज्जा के कारण बोली- छोड़ दो मुझे मुनीम जी!
मैं कहाँ छोड़ने वाला था … मैं उसके होंठों को चूम लिया, उसकी चूचियों को मसलने लगा.
अब सुशीला सिसकारियां छोड़ने लगी. तभी उसकी बेटी मानसी आ गयी और हम दोनों को देखने लगी.
मैं मानसी से बोला- देख तेरी माँ कितनी गर्म है।
मानसी कुछ नहीं बोली.
मैंने और थोड़ी देर मानसी की मम्मी को उसके सामने ही मसला कि तभी दरवाजे पर खटखट हुई।
मैं- कौन है।
वेटर- खाना साहब!
मैंने सुशीला को छोड़कर कपड़े पहन लिये. वेटर आकर खाना देकर चला गया. हम खाना खाके सो गये।
आधी रात को मेरी नीन्द खुली, मानसी पास में सो रही थी, उसके साइड में सुशीला!
सुशीला नींद में थी, उसकी चूचियाँ सांस के साथ ऊपर नीचे हो रही थी. मेरा लंड उसे देख कर खड़ा होने लगा. मैं खुद सम्हाल नहीं पाया और मैं मानसी के ऊपर चढ़ गया और उसकी चूचियों को चूसने लगा।
उसकी आँख खुल गयी और वो मेरा साथ देने लगी।
कुछ देर बाद उसने अपने आप से ही मेरे लंड को चाटना चूसना शुरु कर दिया. उसके चूसने की आवाज से सुशीला की नीन्द खुल गयी और वो आँखें फाड़ कर देखने लगी. मैं सुशीला को ही देख रहा था.
मैंने मानसी को बिस्तर पर लिटा कर उसकी चूत में लंड घुसा कर धक्के लगाना शुरु कर दिया. धक्कों की गति तेज होती गयी, काफी देर तक मैं उसे पेलता रहा, फिर मैं झड़ गया और मैं उसके ऊपर लुढ़क कर सो गया.
अब मैंने सुशीला पर ध्यान नहीं दिया.
सुबह जब नीन्द खुली तो सुशीला नहाने जा रही थी. मैंने उसको अपनी बांहों में जकड़ लिया और उसकी गांड पर लंड घिसने लगा. उसने छूटने की हल्की सी कोशिश की पर छुट नहीं पाई. उसे पटा था कि उसे चुदना तो हो ही… बेटी की चार बार चुदाई देख कर उसकी चूत भी चुदाई के लिए मचल रही थी.
मैंने उसकी साड़ी खींच कर उतार दी, पेटीकोट ऊपर खिसका कर उसकी गाण्ड में एक उंगली डाल दी तो वो चिंहुक गयी. इस आवाज से मानसी जाग गयी और देखने लगी कि क्या चल रहा है.
मैं माम्न्सी की मम्मी की गांड में उंगली को आगे पीछे करने लगा और वो आँखें बंद करके सिसकारियां छोड़ने लगी. मैंने उसके चूतड़ पर एक झापड़ मार दिया तो वो मजा लेती लेती चिंहुक कर पीछे मुड़के मुझे देखने लगी। मैंने उंगली की स्पीड और बढ़ा दी और उसकी गांड उंगली से चोदने लगा।
फिर कुछ देर बाद आनन्द से उसकी आँखें बंद होने लगी। अब मैंने छोड़ दिया उसको और बंद कर दिया उंगली से चोदना!
सुशीला वहीं पर खड़ी रही और एक पल भी नहीं खिसकी वहाँ से …
मैं- देख रही हो मानसी तुम्हारी माँ को? कैसे रंडी बनकर चुदवाने के लिये खड़ी है.
मेरी बात सुन कर सुशीला शर्मा कर जब वहां से जाने लगी तो मैंने उसको पकड़ के वहीं बेड के ऊपर बैठा दिया और खुद उसकी जांघों के बीच बैठकर उसकी चूत में मुँह घुसा दिया।
वो सिसिया गयी … मैंने उसकी चूचियाँ ब्लॉउज के ऊपर से मसलनी आरम्भ कर दी तो वो और ज्यादा सिसकारने लगी।
मैंने मानसी की मम्मी की चूत चाटना जारी रखा, साथ में चूचियों को मसलना भी … उसको मजा आने लगा था। वो आँखें बंद करके आनन्द लेने लगी थी.
मैं मुँह उठा कर- क्यों मेरी सुशीला रानी? मजा आ रहा है?
वो कुछ नहीं बोली।
मैं- बोल … नहीं तो यहीं पर छोड़ रहा हूँ।
सुशीला- हाँ!
मैंने पूछा- हाँ क्या? खुल के बोल?
मैंने उसके चूतड़ों पर कसके एक थप्पड़ दिया और उसकी चूत चाटना शुरु कर दिया।
फिर रुक कर पूछा- बोल मेरी रानी? मजा आ रहा है या नहीं? मजा नहीं आ रहा तो छोड़ दूँ तुझे?
वो झिझकती हुई बोली- मुनीम जी, अच्छा लग रहा है, करते रहो! और चूसो!
मैं- अब आई ना रास्ते पर रंडी। बोल मैं रंडी हूँ, मुझे कसके चोदो!
और उसके चूतड़ों पर दो थप्पड़ जड़ दिए.
वो चिल्ला उठी उन थप्पड़ों के प्रहार से- हाँ, मैं रंडी हूँ! मुझे चोदो!
मैं- किससे।
सुशीला हाथ उठाकर- इससे।
मैं- नाम बताओ।
सुशीला- लंड से!
मैं- हाँ … थोड़ा आकर मेरे लंड को चूस साली रंडी … प्यार कर अपने यार को!
मानसी सारा खेल देख रही थी.
मैं बेड के ऊपर लेट गया, सुशीला आकर मेरे लंड को मुँह में लेकर चूसने लगी।
मैंने मानसी से कहा- जरा अपनी रंडी माँ की चूत चाट!
उसने ऐसा ही किया और अपनी माँ की चूत में जीभ अंदर तक घुसाने लगी. अब मानसी भी गर्म होने लगी थी।
थोड़ी देर बाद सुशीला जोर की सिसकारियां छोड़ने लगी। मैं समझ गया कि मेरी रंडी ताव में है, मैंने मानसी को इशारा किया तो वो वहां से हट गयी।
सुशीला- हट गयी क्यों साली? चूस!
मैं खुश हो गया कि अब सुशीला पूरी रंडी बन चुकी थी, अपनी बेटी से अपनी चूत चुसवाने को भी तैयार थी.
मैंने उसके चूतड़ों पर और दो झापड़ और लगा दिये और बोला- चल रंडी अब मेरे घोड़े की सवारी कर!
वो तो यही चाह रही थी, वो सीधा आकर चढ़ गयी मेरे लंड के ऊपर … उसकी चूत पूरी गीली हो चुकी थी। मेरा लंड आधा घुस गया उसकी चूत में और उसके बाद वो आहिस्ता बैठी मेरे लंड के ऊपर सिसकारी छोड़ कर!
मैं- तेरी तो अपनी बेटी से टाइट है। पुजारी ठीक से चोदता नहीं क्या …
वो कुछ नहीं बोली और मेरे लंड पर जोर जोर से कूदने लगी। आहिस्ता आहिस्ता उसकी स्पीड बढ़ रही थी। उसके मुँह से आनन्द भरी चीख निकल रही थी, उसके गोल गोल उरोज हवा में अजीब मादक दृश्य दिखा रहे थे। मैं उसके निप्पलों को पकड़ कर मसलने लगा जिससे वह और गर्म होती जा रही थी.
मानसी भी अपनी मम्मी की चुदाई देख कर गर्म होने लगी थी।
मैं- हाँ … और जोर से उछल साली कुतिया … और अंदर ले रंडी … उछल!
तभी दरवाजे पर ख़ट ख़ट की आवाज़ आई. मैंने उठने की कोशिश की लेकिन सुशीला मेरे ऊपर से हटी ही नहीं और वो मेरे लंड पर उछलती जा रही थी. मैंने फिर कोशिश की उठने की मगर उसने मेरे को दबा लिया और चिल्ला चिल्ला कर उछलने लगी. उसके ऐसे रंडीपने ने मुझे भी घबराहट में डाल दिया.
कौन होगा दरवाजे पर?
मगर वो चुदती ही जा रही थी.
मानसी को भी समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे … दरवाजा कैसे खोले? अभी तक दरवाजा कई बार खटखटाया जा चुका था.
तभी सुशीला ने एक जोर की सिसकारी छोड़ी जिसकी आवाज पास के दो तीन कमरों तक सुनाई दी होगी.
और इसी के साथ सुशीला झड़ गयी … और साथ में मैं भी उसका यह रूप देख कर!
उसके बाद सुशीला उठकर बाथरूम चली गयी अपने कपड़े उठा कर … मैंने भी अपनी धोती उठाई.
इसके बाद मानसी ने दरवाजा खोला तो वहां डॉक्टर दीपक था मेरा दोस्त!
दीपक- क्या चल रहा था भाई … दूर तक आवाज सुनाई दे रही थी।
मैं- कुछ भी तो नहीं … और तुम इतनी सुबह?
दीपक- मुझसे छुपाने से क्या फायदा? मैं रिपोर्ट लेके आया हूँ।
और उसने मानसी की ओर व्यंग्य भरी नजर से देखा।
मानसी समझ नहीं पाई।
मानसी ने उसे देखा।
मैं- बैठो तो सही यार!
वो वहीं बैठ गया.
कुछ देर के बाद सुशीला आयी बाथरूम से।
मैं- डॉक्टर साहब का शक सही है … तुम्हारी बेटी पेट से है।
यह सुनकर दोनों चौंक गई।
मानसी ज्यादा …
एक बार सुशीला ने मुड़ कर गुस्से से मानसी की तरफ देखा, फिर मेरी तरफ!
मैं- उसके पेट साफ करने में बहुत पैसा लगेंगे लेकिन अगर डॉक्टर साहब को तुम दोनों खुश कर दो तो वो मुफ़्त में साफ कर देंगे।
वो दोनों सब समझ गई … और चुप होकर खड़ी रही।
कहानी जारी रहेगी.
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