हुस्न की जलन बनी चूत की अगन-1

(Husn ki jalan bani chut ki agan-1)

राजेश 784 2019-01-23 Comments

This story is part of a series:

दोस्तो, मेरा नाम राज शर्मा है. मेरी हाइट 5 फुट 8 इंच है और मैं अच्छी पर्सनेलिटी का आदमी हूँ. मैं केवल अपने अनुभव ही लिखता हूँ, जो पाठकों को अच्छे लगते हैं.

आज जो कहानी लिख रहा हूँ, यह उस वक्त की बात है जब मैं चंडीगढ़ में नया-नया गया था. उस वक्त मेरी उम्र 22 वर्ष थी. मैंने एम.बी.ए. के कोर्स में एडमिशन लिया था. हॉस्टल में कमरा नहीं मिलने के कारण रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं था और मैं पहले किसी दोस्त के कमरे में ठहरा था.

उस दोस्त ने मुझे बताया कि यहां पर मकानों के बाहर ‘टू लेट’ (किराये के लिए) के बोर्ड लगे होते हैं और उसके लिए संडे के दिन, जब घर के मालिक घर में होते हैं तो कमरा ढूंढने के लिए चक्कर लगाने होते हैं और जहां भी ‘टू लेट’ का बोर्ड दिखाई देता है, वहां जाकर बात करनी होती है.

मैं आने वाले संडे को चंडीगढ़ के कुछ पुराने सेक्टर के चक्कर लगाने लगा और मुझे एक जगह कॉर्नर के मकान पर ‘टू लेट’ का बोर्ड दिखाई दिया. जब मैंने नीचे आँगन में खड़ी एक बहुत ही सुंदर सी लेडी से पूछा कि क्या कमरा खाली है? तो उन्होंने बताया कि बीच वाले फ्लोर में जो रहते हैं, उनसे बात करो.
मैं सीढ़ियों से होता हुआ बीच वाले पोर्शन में गया. वहाँ एक कॉलेज के प्रोफेसर रहते थे. उनके 4 और 6 साल के दो बच्चे थे और एक सुंदर, मस्त-सी बीवी थी. दरअसल वे दोनों ही परिवार उस मकान में किराए पर रहते थे.

प्रोफेसर साहब के पास बीच वाला पोर्शन और ऊपर टॉप में, फ्रंट में एक वन रूम सेट था जिसके पीछे खुली छत थी. मैंने प्रोफेसर साहब से मुलाकात की, प्रोफेसर साहब बहुत ही व्यस्त आदमी थे, वह बच्चों को अलग-अलग बैचेज़ में ट्यूशन पढ़ाते थे, उन्हें बिल्कुल भी फुर्सत नहीं होती थी. वह ऊपर वाला कमरा किराए पर देना चाहते थे. जब उन्होंने मेरे बारे में पूछा तो कहने लगे कि कमरा बहुत छोटा है और थोड़ी सी ही जगह है. उन्होंने बताया कि जगह कम होने की वजह से हम यह कमरा किसी परिवार वाले को नहीं दे सकते, अतः हमें कोई बैचलर ही चाहिए.

मैंने प्रोफेसर साहब को बताया कि मैं कुंवारा ही हूं और स्टूडेंट हूँ, आपको किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं होगी.
मेरी बातों से वह प्रभावित हुए. जब उन्होंने पूछा कि खाने का कैसे करोगे?
तो मैंने कहा- देख लेंगे, किसी होटल वगैरह में खा लूंगा या टिफिन मंगवा लूंगा. प्रोफेसर साहब ने कहा कि कमरे के अंदर जो सामान पड़ा है वह वहीं रहेगा और छत के ऊपर हम लोग भी आते-जाते रहेंगे.
मैंने उनसे कहा इसमें मुझे कोई दिक्कत नहीं है, यह कमरा आप अपना ही समझो और मुझे आप अपना छोटा भाई समझो.

वह मेरी बातों से खुश हो गए और उन्होंने मुझे वह कमरा किराए पर दे दिया. उन्होंने बताया कि वह बहुत बिज़ी रहते हैं और चाहते हैं कि यहां पर किसी प्रकार की डिस्टरबेंस न हो.
मैंने कहा- ठीक है, जैसा आप चाहेंगे वैसा ही होगा.

जब हम बातें कर रहे थे तो उनकी हसीन बीवी साथ बैठी थी. प्रोफेसर साहेब शरीर से मोटी तोंद वाले, गंजे व्यक्ति थे, उनकी आँखों पर मोटा चश्मा चढ़ा था, और वे खुश्क टाइप के आदमी थे. उनकी आयु लगभग 45 साल लग रही थी. उनकी बीवी उनसे बिल्कुल अलग थी. बीवी की आयु लगभग 35 साल की थी, लेकिन वह लेडी देखने में 30 साल की जवान लड़की लग रही थी, जिसका फिगर 36 -34 -38 होगा. उनकी हाइट 5 फुट 3 इंच होगी, वह थोड़ी सी प्लस साइज़ थी, जो मेरी भी पसंद है. मुझे पतली, ज़ीरो फिगर वाली लेडी पसंद नहीं हैं.

मैं उनको भाभी कहकर बुलाने लगा. जब मैंने पूछा कि मैं इस कमरे में कब शिफ्ट करूं तो प्रोफेसर साहेब बोले कि अब आपकी और मेरी इस विषय पर अधिक बात नहीं होगी, आप मेरी वाइफ हिमानी से ही सारी बातें डिस्कस कर लेना, और वह बच्चे पढ़ाने लगे.

हिमानी भाभी को प्रोफेसर साहेब हेमा कहते थे.
हेमा भाभी मुझे ऊपर कमरा दिखाने ले गई. सीढ़ियों पर वह आगे चल रही थीं जिससे उनकी सुन्दर मचलती हुई गाण्ड और मोटी गुदाज गोरी पिंडलियाँ दिखाई दे रही थीं.

उन्होंने कमरा दिखाया. कमरा साफ सुथरा था. उसमें बेड लगा हुआ था, एक छोटा सा टेबल, एक चेयर और एक तीन सीटर सोफ़ा लगा था.
वह बोली- यह हमारा सामान है और यहीं रहेगा.
मैंने कहा- ठीक है, मुझे तो बल्कि ये सामान चाहिए भी.
जब मैंने पूछा कि मैं कब आ सकता हूँ?
तो वह बोली- जब आप चाहो, आप बेशक कल से ही आ जाओ, हमें कोई ऐतराज़ नहीं है.
मैंने उनसे कहा- कल मुझे यूनिवर्सिटी जाना होगा, यदि आपको ऐतराज़ न हो तो मैं आज से ही आ जाता हूँ.
भाभी जी कहने लगी- हमें क्या एतराज़ है, आप आ जाओ.

दोस्तो! हेमा भाभी के बात करने के तरीके और उनकी नशीली आंखों से मुझे लग रहा था कि यह लेडी इस प्रोफेसर के मतलब की नहीं है और यह ज़रूर पट जाएगी. हेमा भाभी हमेशा मेक-अप करके रहती थी. उनके बॉब कट घुंघराले बाल थे, बड़े करीने से वह साड़ी पहनती थी, स्लीवलेस ब्लाउज़ में उनकी बड़ी-बड़ी खड़ी चूचियां और साड़ी में कसी हुई उनकी भरी हुई गांड किसी भी आदमी को अपनी तरफ आकर्षित कर लेती थी. उनमें जो ख़ास बात थी वह यह थी कि उनकी नशीली आंखें और जब भी वह बाहर जाती थीं तो आंखों के ऊपर बहुत ही सुंदर गॉगल्स लगाकर जाती थी. जब मस्ती से चलती थी तो अड़ोस-पड़ोस के आदमी उन्हें देखे बगैर नहीं रहते थे और पड़ोस की लेडीज उनसे चिढ़ती थी, परन्तु वह मस्त रहती थी.

वह मकान तीन मंज़िला था. सामने के आँगन से ऊपर सीढ़ियाँ जाती थीं. सीढ़ियों में घुसते ही एक दरवाजा ग्राउंड फ्लोर के लिए था, जो अक्सर बंद रहता था, एक फर्स्ट फ्लोर के लिए था और अंत में सीढ़ियाँ मेरे कमरे तक जाती थीं.

जो ग्राउंड फ्लोर पर फैमिली रहती थी उसमें तीन ही लोग थे. दो मियां बीवी और एक उनकी 3 साल की बच्ची. वह लेडी भी लगभग 30 साल की थी और वह भी बहुत ही सुंदर, गोरी, थोड़े छोटे कद और गुदाज शरीर की थी. उसकी भी चूचियां और गांड बहुत मस्त थी, उस भाभी का नाम लता था, जो भुवनेश्वर की रहने वाली थी. उनका फिगर भी हेमा भाभी की ही तरह था, परन्तु उनका रंग थोड़ा ज्यादा गोरा था. उनके पति एक बड़ी कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर थे और अक्सर टूर पर रहते थे, जो महीने-महीने बाद आते थे. लता भाभी थी तो बहुत सुन्दर परन्तु घर पर ढीली सी साड़ी, सर्दी के कारण सिर पर स्कार्फ, पैरों में जुराबें और गर्म स्वेटर पहनती थी, जिसमें उनका हुस्न छिपा हुआ रहता था.

मैं उसी दिन ऑटो से अपने दोस्त के यहां से अपना सूटकेस और छोटा-मोटा सामान ले आया और अपना सामान तीसरी मंज़िल पर बने कमरे में रख लिया.

जब मैं बाहर से आ रहा था तो ग्राउंड फ्लोर वाली लता भाभी मेरे सामान को देख कर बोली- आप यहां रहने आए हैं?
मैंने कहा- जी हां.
उन्होंने पूछा- आप कहां सर्विस करते हैं?
तो मैंने बता दिया कि मैं तो एक स्टूडेंट हूँ.

जब मैंने कमरे में सामान रखा तो उस वक्त शाम के 5:00 बज गए थे. नीचे से हेमा भाभी मेरे कमरे की सेटिंग देखने आई. जैसे ही वह कमरे में आई, कमरा उनके परफ्यूम की खुशबू से भर गया. वह बहुत धीरे-धीरे और बड़ी अदा से बात करती थी, आंखें हमेशा उनकी ऐसे रहती थी जैसे उन्होंने ड्रिंक किया हो.

उन्होंने मुझसे पूछा- किसी चीज की जरुरत तो नहीं है?
मैंने कहा- नहीं भाभी जी, मेरे पास सभी चीजें हैं, आप फिक्र न करें, मैं अपना काम करता रहा और हेमा भाभी को बैठने को कहा.

भाभी जी थोड़ी सी देर चेयर पर बैठी और कुछ थोड़ा बहुत मेरे बारे में और मेरी फैमिली के बारे में जानकर कहने लगी- अब मैं चलती हूँ, नीचे खाना बनाने का काम करना है.
मैंने जब भाभी जी से पूछा- आप दिनभर क्या करती हैं?
तो उन्होंने बताया- प्रोफेसर साहब को तो फुर्सत नहीं है, वे तो बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते रहते हैं. मैं जब अकेली बोर होती हूं तो थोड़ा मार्केट में घूमने चली जाती हूँ.
पास में ही मार्केट था.

मैंने कहा- भाभी जी! आप जब चाहें इस कमरे में आ सकती हैं, छत के ऊपर बैठ सकती हैं, इसे आप अपना ही कमरा समझो.
वह कहने लगी- ठीक है, मुझे आपका स्वभाव बड़ा पसंद आया और मैं भी यही चाहती थी कि कोई ऐसा लड़का यहां आए जो थोड़ी बहुत मेरी भी हेल्प कर दे.
मैंने कहा- आपको जो हेल्प मुझसे चाहिए, वह मैं करूंगा.
उन्होंने बड़ी अच्छी स्माइल दी और कहने लगी- ठीक है, आज का खाना मैं ही आपके लिए भिजवा देती हूँ, कल से आप अपना कोई इंतजाम कर लेना.

दोस्तो! पहली बार मुझे पता लगा कि औरतों के अंदर बहुत ज्यादा ईर्ष्या होती है. ग्राउंड फ्लोर पर जो उड़ीसा का परिवार रहता था उसमें लता भाभी और उनके पति को हेमा भाभी से और उनके फैशन करने से बड़ी चिढ़ थी और वे उसको पसंद नहीं करते थे. असल में दोनों लेडीज़ का सुंदरता में कॉम्पिटिशन था और दोनों ही अपनी अपनी जगह हिरोइनों की तरह सुन्दर थीं.

मैंने अपने खाने का अरेंजमेंट एक होटल से कर लिया था वहां से डेली टिफिन आ जाता था. जब भी मैं नीचे जाता तो मेरी मुलाकात लता भाभी और उनके हस्बैंड से होती रहती थी, लता भाभी मुझसे बातें करने का बहाना ढूंढती रहती थी. अक्सर फ्रंट के आँगन में खड़ी या बैठी रहती थी.

तीन चार दिन बाद वह अपने हस्बैंड के साथ बाहर खड़ी थी, उन्होंने मुझे अपने घर पर अन्दर बुलाया और मेरा नाम पूछा. मैंने उन्हें बताया कि मेरा नाम राज शर्मा है. मैं दिल्ली का रहने वाला हूँ और अपने बारे में कुछ बातें बताई. उन्होंने भी कुछ बातें बताई.

तब तक लता भाभी मेरे लिए चाय बिस्कुट वगैरह लेकर आई. कुछ ही देर में उन्होंने हेमा भाभी के बारे में बातें शुरू कर दी और उनकी बातों से मुझे पता लगा कि लता भाभी उनके सजने-संवरने और अदाओं से चिढ़ती थी.
उनकी बातों से मुझे ऐसा लगा कि वह मुझे अपनी साइड करना चाहती थी.
मगर मैं चुप रहा.

वह मकान एक कॉर्नर का मकान था, उसमें हम तीनों ही किरायेदार थे. मकान मालिक कहीं बाहर दूसरे शहर में रहता था. एक हफ्ते बाद लता भाभी के पति मिस्टर हरिदास 20-25 दिन के लिए दक्षिण भारत के टूर पर मार्केटिंग के सिलसिले में चले गए थे.

एक रोज़ सुबह ही मैंने पिछले आँगन में नीचे झाँक कर देखा तो मैं दंग रह गया. लता भाभी सुबह ही नहाने के बाद पिछले आँगन में तुलसी के पौधे की पूजा कर रही थी. उन्होंने नहाने के बाद अपने शरीर पर एक पतली सी, झीनी सी साड़ी घुटनों से ऊपर लपेट रखी थी जिसके नीचे उन्होंने न ब्लाउज, न ब्रा और न ही पेटीकोट पहना था, वह लगभग नंगी दिख रही थी, उनकी बड़ी-बड़ी खड़ी चूचियां और सुन्दर सुडौल चूतड़ उस कपड़े में से साफ़ दिखाई दे रहे थे. उन्होंने नहाने के बाद अपने चूतड़ों तक लंबे बाल खुले छोड़ रखे थे. उनकी नंगी गोल गुदाज बाजू, गर्दन, आधी नंगी छाती और सुडौल गोरी पिडलियाँ साफ़ दिखाई दे रही थी.

वह 5 मिनट तक हर रोज़ लगभग 8 बजे ऐसे ही पूजा करती थी, जिसे मैं हर रोज़ चोरी से देखने लगा था और हर रोज वहीं खड़ा होकर हाथ से अपना पानी निकाल लेता था.
एक दिन हेमा भाभी ने मुझसे पूछा- राज भैया! आपको स्कूटर चलाना आता है?
मैंने कहा- जी हां आता है.
तो वह कहने लगी- मुझे बाज़ार में थोड़ा काम है, प्रोफेसर साहब बिजी हैं, तो आप थोड़ी देर के लिए मुझे स्कूटर पर बाज़ार में ले चलो.
मैंने कहा- ठीक है.

स्कूटर सीढ़ियों में खड़ा होता था. मैं तैयार हुआ, स्कूटर बाहर निकाला और हेमा भाभी को पीछे बैठाकर मार्केट की ओर निकल गया। बाहर जाते हुए लता भाभी ने हमें देख लिया था और उनके चेहरे से लगा कि वह जलकर खाक हो गई थी.

स्कूटर पर हेमा भाभी मेरे साथ बेफिक्री से बैठी थी, उनके पट, चुचे और शरीर बार बार मुझसे टच हो रहे थे जिससे मेरा शरीर रोमांच से भर गया था. वैसे तो मार्किट पास ही थी, परन्तु उन्हें दूसरी मार्किट में जाना था.

मैं स्कूटर थोड़ा तेज़ चला रहा था और कोई सामने आ जाता था तो एकदम ब्रेक मारते ही भाभी मुझसे लगभग सट जाती थी. उन्होंने अपने एक हाथ से मेरी सीट पकड़ रखी थी. उनके व्यवहार से ज़रा भी यह नहीं लग रहा था कि उन्हें मुझमें कोई रूचि है. लेकिन उनके शरीर छूने से और बदन की खुशबू से मेरा लंड खड़ा हो गया था.
भाभी तीन-चार दुकानों पर गई, मैं बाहर खड़ा रहता था.

काम ख़त्म होने के बाद उन्होंने अपने हाथ में कुछ थैले लिए और मेरे पीछे फिर बैठ गई. सामान के साथ बैठते हुए उन्हें थोड़ी दिक्कत हो रही थी अतः उन्होंने सभी थैलों को अपनी गोद में रखा और बैठते हुए मेरा कन्धा पकड़ लिया.

मैंने हिम्मत करके कहा- भाभी, आप मुझे पकड़ लो वर्ना गिर जाओगी.
उन्होंने मुझे कमर से पकड़ लिया और कहने लगी- मैंने सोचा कभी तुम बुरा न मान जाओ, इसलिए नहीं पकड़ रही थी.

मैंने कहा- आप निश्चिन्त होकर बैठें और जैसे मर्ज़ी पकड़ें.
मैं जानबूझ कर थोड़ा ब्रेक मारने लगा तो भाभी की छातियाँ लगभग मुझसे चिपकने लगी.

हम घर आ गए, लता भाभी ने फिर हमें अच्छी तरह बैठे देख लिया था और उन्होंने अपना मुंह बिचका लिया था. इस प्रकार से हेमा भाभी मुझसे स्कूटर पर बैठकर अपने काम करवाने लगी. मेरा भी धीरे-धीरे हौसला बढ़ता गया और हेमा भाभी भी कुछ-कुछ मुझमें रूचि लेने लगी थी.

कहानी अगले भाग में जारी रहेगी.

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