आसान काम नहीं है-1
(Aasan Kaam Nahi Hai- Part 1)
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keyboard_arrow_left मैं किसे अपना बदन दिखाने जाऊँगी?
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सुबह दूध वाले भैया को तड़पाने के बाद मैंने अपने मित्र को सारा घटनाक्रम बताया तो उन्होंने मुझे यह साहस भरा काम सफ़लतापूर्वक सम्पन्न करने पर बधाई दी।
लेकिन अब तो मेरे ऊपर जैसे जुनून सवार हो गया था, मुझे कुछ और करना था, मैं अपने उस मित्र के पीछे ही पड़ गई कि कुछ और बताओ जिसमें दर्द में मज़ा हो लेकिन पकड़े जाने का खतरा कम हो !
वो कुछ सोचने लगे। फ़िर उन्होंने बताया- ऐसा करो, एक छोटा गिलास लो चान्दी का ! उसमें साफ़ पानी भर कर फ़्रिज में जमने के लिये रख दो !
“जी, उसके बाद?”
जब गिलास में पूरी बर्फ़ जम जाए तो गिलास को एक मिनट के लिए सादे पानी में रख कर गिलास से बर्फ़ को साबुत निकाल लो और उसके तीखे किनारों को हाथ फ़िरा कर पिंघला कर गोल कर लो !”
मैं आश्चर्यचकित सी उनकी बातें पढ़ रही थी और सोच रही थी इससे क्या होगा?
मैंने पूछा- उसके बाद इस बर्फ़ का करना क्या है?
तो मेरे मित्र ने कहा- रात को रसोई में काम करने से पहले इस लम्बे-गोल बर्फ़ के टुकड़े को बड़े प्यार से अपनी योनि में सरका लेना और उसके ऊपर टाईट पैन्टी पहन कर अपने काम में लग जाना ! शुरु में तो बहुत तकलीफ़ होगी लेकिन तुम सह सको तो सह कर काम करती रहना, ना सह सको तो निकाल देना। अगर तुम इसे अपने अन्दर रखे रही तो यह बर्फ़ तुम्हारी चूत की गर्मी से पिंघलती रहेगी और पानी तुम्हारी पैन्टी से टपकता रहेगा। जब सारी बर्फ़ पिंघल जायेगी तो उसके बाद असली मज़ा आना शुरु होगा। तुम खुद अपना अनुभव मुझे बताना बाद में !
तब मैंने कहा- यह तो ठीक है पर एक बात मैं आपसे कहना चाह रही हूँ।
वे बोले- क्या?
“मैं कल वाला कारनामा आज एक बार दोबारा करना चाह रही हूँ। असल में आज मैं अपने दूसरे यानि बायें स्तन पर मोमबत्ती का गर्म मोम गिरा कर जलन का मज़ा लेना चाह रही हूँ।”
तो उन्होंने कहा- तो ठीक है, अब तुम कल वाला कारनामा ही करो, लेकिन यह बर्फ़ वाला करतब भी इसमें ही शामिल कर लो। जब तुम छत पर जाओ, तभी बर्फ़ को अपने अन्दर रख कर ऊपर से पैन्टी पहन कर जाना !
मैं इसके लिए तैयार हो गई, मन में ठान लिया कि यही करूँगी।
फ़िर जब आराम से बैठ कर सोचा तो मुझे शुरु में तो लगा कि मैं सह नहीं पाऊँगी पर मैंने चान्दी का सबसे छोटा जो बस दो ढाई इन्च लम्बा था, उसे साफ़ करके उसमें साफ़ पानी भर कर फ़्रीज़र में रख दिया। उस वक्त शाम के सात बजे होंगे और बर्फ़ जमने में एक से डेढ़ घण्टा लगना था तो मैं बैठ कर इसी विषय में सोचने लगी कि यह अन्दर चला जएगा, कैसे जाएगा, फ़िसल कर बाहर तो नहीं आ जाएगा? पर सबसे बड़ी बात जो बार बार मेरे दिमाग में कौंध रही थी वो यह कि अगर किसी तरह मैंने इस अंदर घुसा भी लिया तो क्या मैं इसे सह लूँगी?
मेरे मन का डर बढ़ता जा रहा था, पर गलती भी तो मेरी ही थी, मैंने खुद ही तो तकलीफ़देह करतब के लिए आग्रह किया था।
फ़िर मेरे मन में ख्याल आया कि गिलास में बर्फ़ तो जब जमेगी तब जमेगी, अभी तो मेरे फ़िर्ज में ट्रे में काफ़ी क्यूब जमे रखे हैं।
मैं तुरन्त उठी और फ़्रिज में से आइस क्यूब की ट्रे निकाल लाई। उसमें से कुछ क्यूब निकाल कए एक कटोरे में रख लिए। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मैंने साड़ी पहनी हुई थी तो मैंने अपनी साड़ी ऊपर करके अपनी पैंटी अपनी चिकनी जांघों पर से फ़िसलाते हुए निकाल दी। मैंने देखा की चूत के छेद वाली जगह से पैन्टी कुछ गीली थी, इन सारी बातों के चलते शायद मेरी चूत पानी छोड़ने लगी थी। मैंने उस गीले स्थान को सूंघ कर देखा, अजीब सी उत्तेजक गन्ध थी, एक बार मन हुआ कि इसे जीभ से चाट कर देखती हूँ, फ़िर सोचा कि पता नहीं इसमें क्या
किटाणु होंगे तो मैंने अपनी पैंटी चाटने का विचार त्याग दिया।
मैं वो बर्फ़ का कटोरा लेकर दीवान पर बैठ गई, अपनी साड़ी चूतड़ों से भी ऊपर करके अपनी टांगें फ़ैला ली।
एक आइस क्यूब लिया और उसे अपनी योनि में डालने का प्रयास किया। बर्फ़ के योनि पर स्पर्श होते ही मैं सिहर उठी। कुछ सेकेण्ड बर्फ़ को योनि के ऊपर ही फ़िराया और फ़िर जब अन्दर डालने की कोशिश की तो आइस क्यूब फ़िसल रहा था। पहले वाला क्यूब छोटा हो चुका था तो मैं एक बड़ा क्यूब लेकर अन्दर धकेला पर नहीं गया, बार बार फिसले जा रहा था.. इस बर्फ़ से मेरी चूत जैअसे जलने लगी थी।
फिर दीवान पर लेट कर मैंने चूतड़ों के नीचे से हाथ लेजा कर प्रयत्न किया, फिर भी नहीं हुआ.. एक तो मेरा गदराया शरीर, पहली बार खुद पर गुस्सा आया कि मैं मोटी क्यों हो गई हूँ?
पर सोचा कि नहीं, करना ही है.. अपने सारे कपड़े उतार कर गाउन पहन लिया लेकिन तब मन में आया कि बर्फ़ के पानी से गाउन गीला क्यों करूँ, गाउन भी उतार कर पूर्णनग्नावस्था में होकर दीवान पर एक पैर रखा एक नीचे जमीन पर, योनि को कपड़े से साफ किया, पैर फैला दिए और बायें हाथ में आइस क्यूब पकड़ कर दायें हाथ से योनि को फ़ैलाया और पूरी ज़ोर से आइसक्यूब अंदर दबा दिया.. पर जल्दी से वो अंदर तो चला गया पर अंदर जाकर आड़ा होकर फ़ंस गया..
ओह माँ ! बता नही सकती.. मेरी फ़ुद्दी बर्फ़ से जल रही थी, मैं तकलीफ़ के मारे उछलने लगी, मेरा पूरा शरीर अकड़ने लगा.. अब मुझे ठंड लग रही है… अब तो मन कर रहा था कि पिछली रात वाली मोमबत्ती को वैसे ही जला कर अपनी जलती बर्फ़ीली चूत में घुसेड़ लूँ…. ऐसा लग रहा था कि किसी ने मेरी अंदर कुछ काफ़ी बड़ा सा लौड़ा डाल दिया हो, या जोरदार मेरी जोरदार चुदाई हो रही है।
मैं दीवान पर लेट गई, मेरी योनि सुन्न हो गई, ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने को जी कर रहा था पर मैंने अपने ही हाथ से अपना मुँह दबा लिया ! जब लगा कि अब नहीं सह पाऊँगी तो उंगली से अंदर से निकालना चाहा पर वो नहीं निकला, मुझे बहुत ठण्ड लग रही थी, मैंने अपने ऊपर कम्बल ले लिया.. फिर भी कुछ फ़र्क नहीं पड़ा, फिर मैं उसे निकालने के लिए जाँघें फ़ैला कर खड़ी हो गई कि अपने आप निकल जाये पर नहीं निकला। उंगली डाल कर देखा तो अन्दर कुछ नहीं था, आइसक्यूब शायद पिंघल चुका था पर अब भी ऐसा लग रहा था कि जैसे अंदर अभी भी है मेरे !
मैं दीवान पर पैर लटका कर बैठ गई, जांघें फैला ली अब अच्छा लग रहा था, जितनी जांघें खोलती, उतना ज्यादा अच्छा लगता !
बहुत मज़ा आ रहा था.. ठंडा ठंडा.. कूल कूल..
तभी मेनगेट की घण्टी बजी !
अरे इस वक्त कौन आ सकता है, इस समय तो कोई नहीं आता, मैं डर गई, कहीं वो सुबह वाला दूध वाला भैया तो नहीं आया होगा? उसे तो पता ही होता है कि मैं अक्सर अकेली होती हूँ घर में ! कहीं उसने यह तो नहीं सोचा होगा कि मैं उसे सुबह अपनी चूचियाँ दिखा कर उसे निमंत्रण दे रही थी कि आकर मुझे चोद जाना !
फ़िर मेरे मन में आया कि नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, मैंने तो उसके सामने यही प्रदर्शित किया था कि जो हुआ, अनजाने में भूलवश हुआ !
मैंने झट से गाउन उठा कर पहना, वहाँ बिखरे साड़ी, कपड़े उठा कर छिपाए, बाल ठीक किए, दरवाजा खोला तो सामने श्रेया ! सरप्राइज़.. श्रेया मेरी पेईंग गैस्ट !
श्रेया मेरी पेईंग गैस्ट कम और सहेली ज्यादा है !
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