गलतफहमी-1
(Galatfahami-Part 1)
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अंतर्वासना के सभी पाठकों को संदीप साहू का नमस्कार!
दोस्तो, आप लोगों ने मेरी पिछली कहानियों को खूब सराहा, आप लोगों के प्यार के लिए पुनः धन्यवाद।
मुझे बहुत से ई-मेल आये हैं, कुछ अनुभव खट्टे कुछ मीठे कुछ कड़वे थे, खैर जैसे भी हो, आप लोगों ने मेल किया, यही बहुत है! वरना आजकल किसी को भी फुर्सत ही कहाँ है।
इस बार मैं जो कहानी लेकर आया हूँ इसमें आपको सेक्स के रोमांच के अलावा लोगों की भावनाओं को समझने का भी अवसर मिलेगा, इस कहानी के बीच में अंतर्वासना के डिस्कस बाक्स के नियमित लोगों की भी काल्पनिक कहानियाँ पढ़ने को मिलेगी। कहानी लंबी है, लगभग आठ-दस भागों के बाद एक पड़ाव आयेगा और फिर कहानी आपको नये सीरे से शुरू हुए जैसी लगेगी, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है, कहानी का हर एक भाग आपस में जुड़ा हुआ है, आप हर भाग को ध्यान से पढ़ें और पात्रों को ध्यान में रखें।
मैंने सोचा कि ऐसे भी मैं सभी मेल का जवाब नहीं दे पाता तो कम से कम आप लोगों को इस कहानी में शामिल ही कर लूं। मेरी यह कहानी हकीकत के करीब तो है, पर पूर्ण रूप से सत्य की तलाश ना ही करें तो बेहतर होगा।
चलिए अब दिल थाम कर कहानी का आनंद लीजिये और पात्रों में खुद को ढूंढने का प्रयत्न कीजिए।
मेरी शादी हो गई है, 5.7 इंच की हाईट है, सात इंच का थोड़ा मुड़ा हुआ, सख्त लिंग है मेरा… मेरी गठीली शारीरिक रचना से भी आप सभी वाकिफ ही हैं, और विस्तार से कहानी में मेरा रोल आने पर बता दूंगा।
फिलहाल मैं रेडीमेड कपड़े की दुकान का मालिक हूँ, दुकान सामान्य सी है और कस्बे में है इसलिए रेडिमेड के अलावा सभी टाईप की चीजें रखनी पड़ती है, मसलन साड़ी सूट पर्दा थान के कपड़े आदि… मैंने सिर्फ दो ही कर्मचारी रखें हैं, जिन्हें मैं अपने छोटे भाईयों की तरह रखता हूँ। उनका नाम तो कुछ और है पर हम लोग एक को प्यार से गोलू और दूसरे को सोनू बुलाते हैं। मेरे अच्छे बुरे सारे कर्मों का कच्चा-चिट्ठा वो जानते हैं, पर कभी भी कहीं भी वे अपना मुंह नहीं खोलते। वही दुकान का सारा काम देखते हैं और जरूरत पड़ने पर सब्जी, किराना, बिजली बिल जैसे घर के सारे काम भी वही करता है।
मेरी दुकान में सभी तरह के ग्राहक आते हैं। चूंकि मैं मेन्स वीयर अच्छा मेंटेन करता हूँ, इसलिए मेरे ज्यादातर ग्राहक दोस्त और लड़के ही हैं। कुछ लेना हो तो भी और ना लेना हो तो भी दोस्तों का आना-जाना लगा रहता है।
इनके अलावा लड़कियां भाभियां आंटियाँ भी आती हैं पर मुझे किसी का खास ध्यान नहीं रहता।
ऐसे ही एक भाभी जी का मेरे दुकान पर आना-जाना रहता है, कभी कुछ खरीद भी लेती हैं तो कभी पसंद नहीं आया करके लौट भी जाती हैं। वो हमारे ज्वेलर्स मेहता भैया की पत्नी हैं, भैया हैंडसम हैं, उनकी उम्र 35/36 साल की होगी, अच्छी सेहत और अच्छी कद-काठी वाले व्यक्ति हैं। उनका चार साल का सुन्दर सा बेटा भी है.
हमारे कस्बे में उनका अच्छा रुतबा है, पैसे की भी कोई कमी नहीं है, अच्छा मकान है, घर में फोरव्हीलर है।
भैया ज्यादातर व्यस्तता के चलते कहीं आते-जाते नहीं हैं। पर भाभी जी हमेशा इस दुकान से उस दुकान और सभी फंक्शन पार्टियों में नजर आ ही जाती हैं।
भाभी जी की उम्र लगभग 28/29 की होगी. मैंने अच्छे ग्राहक होने के अलावा उन पर और किसी तरह की नजर नहीं डाली, इसलिए उनकी शारीरिक रचना या अन्य अदाओं के बखान करने में मैं फिलहाल असमर्थ हूँ। भाभी को देखते ही कोई भी बता सकता है कि ये सभ्रांत परिवार की महिला हैं, अच्छे नैन-नक्श, और अच्छे डील-डौल के साथ ऊंचे मंहगे कपड़ों और श्रृंगार के साथ वो और भी खिल जाती हैं। भड़कीले डिजाइनों की कोई भी चीज वो पसंद नहीं करती, अधिक बात करना या अजीब सा मजाक वो बिल्कुल पसंद नहीं करती, जब वो आती है तब हमें भी सलीके से रहना पड़ता है।
हकीकत में वो ऐसी ही हैं या ऐसा होने का दिखावा करती हैं, अब ये तो ईश्वर ही जाने!
वो कभी पड़ोसी सहेलियों के साथ बाजार आती हैं तो कभी अपने पति के साथ… तो कभी अकेले भी बाजार आया करती हैं।
ऐसे ही पिछले कुछ दिनों से भाभी जी का बाजार में आना बढ़ गया था। एक बार भाभी जी और उसकी दो सहेलियां मेरे दुकान में आई और बहुत सी साड़ियां देखने लगी, बहुत देर तक छांटने के बाद उन्होंने दस-बारह महंगी साड़ियाँ अलग की।
मैं खुश था कि चलो इकट्ठे ले रही हैं तो साड़ी दिखाने की कुछ परेशानियां भी झेल लूंगा।
पर उन्होंने सभी साड़ियों को घर ले जाकर देखेंगे कहकर पैक करवा लिया। हालांकि वो पहले भी ऐसा कर चुकी हैं लेकिन आज कुछ ज्यादा ही छंटाई कर रही हैं।
यह सुविधा शायद बड़े शहरों में नहीं मिलती होगी, पर छोटी जगहों में हमें ये परेशानी उठानी ही पड़ती है।
मैंने मुस्कुराते हुए साड़ियां पैक करके उनको विदा किया और फिर अंतर्वासना के लिए कहानी लिखने लगा।
दूसरे दिन भाभी अकेले आई और सभी साड़ियों को वापस कर दिया, मुझे थोड़ा बुरा लगा पर दुकान में मेरे दोस्त भी बैठे थे तो मैंने भाभी से कुछ नहीं कहा या पूछा, भाभी भी चली गई।
उनके जाते ही मैं बड़बड़ाया ‘साले सब टाईम पास के लिए आते हैं।’
तब मेरे दोस्त समर्थ ने कहा- तो और क्या करेंगे बे! तेरी इतनी अच्छी किस्मत है कि भाभी खुद तेरे पास टाईम पास करने आ रही है, और तू साले चिड़चिड़ाता है, भाभी जो देखना चाहे खुशी-खुशी दिखाया कर!
मैंने रीपीट किया- जो देखना चाहे..??
समर्थ ने कहा- हाँ बे..! जो देखना चाहे..!
मैंने कहा- साले, आज तक मैंने उसको इस नजर से देखा नहीं है और तू साले उसपे मेरी नियत खराब करवा देगा।
फिर ऐसे ही हंसी मजाक में बात टल गई।
भाभी दूसरे दिन फिर साड़ी देखने आ गई, इस बार वो अकेले आई थी, पर मुझे साड़ी दिखाने का मन नहीं था, तो मैंने गोलू को साड़ी दिखाने को कहा और मैं अपनी सीट पर बैठ के भाभी के सुंदर बदन को घूरता रहा.
भाभी ने फिर पांच-छ: साड़ियाँ पैक कराई और ‘घर में देखूँगी’ कह के ले गई।
उनका निकलना हुआ और समर्थ का आना हुआ, दरअसल हम दोनों दोस्त रोज ही 10/11 बजे के बीच साथ बैठ कर चाय पीते हैं और इत्तेफाकन भाभी जी भी उसी समय आ जाती हैं।
उनको जाते देख सामर्थ ने मुझे छेड़ा- अब तो मान ले कि भाभी तेरे पास टाईम पास करने ही आती है।
और फिर बहुत से हंसी मजाक वाली बातों में भाभी जी की बात दब गई।
अगले दिन भाभी साड़ी वापस करने फिर आई, उन्होंने सारी साड़ियाँ वापस कर दी।
इस बार भी समर्थ बैठा था और भाभी के जाते ही फिर वही मजाक हुआ, पर इस बार समर्थ ने कुछ ऐसा कहा कि उसके मजाक ने मेरे मन में कुछ तो जगह बना ली.
समर्थ ने कहा- यार संदीप, भाभी तेरे को कुछ ज्यादा ही लिफ्ट दे रही है, वो तुझे चोर नजरों से देख रही थी।
मैंने उसकी बात को अनसुना करने का नाटक किया और बस रोज की तरह हंसी मजाक में बात निकल गई।
अब मैं मन ही मन भाभी के अगली बार आने का इंतजार करने लगा।
भाभी तीन दिन के बाद आई, इस बार भाभी से नजरें मिलाने के समय मुझे थोड़ी झिझक हुई, पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ! फिर भी मैंने अपने संकोच को छिपाते हुए कहा- आइये भाभी जी, बोलिये मैं आपकी क्या सेवा करूं?
भाभी मुस्कुराई और फिर साड़ी दिखाने को कहा.
इस बार मैं खुद ही साड़ी दिखाने लगा, अब मैं तो जानता ही था कि भाभी साड़ी लेंगी नहीं सिर्फ टाईम पास करेंगी इसलिए मैं भी साड़ी कम दिखा रहा था लाईन ज्यादा मार रहा था- आप ये साड़ी देखो ना भाभी जी, ये पीले कलर में आप खूब जचोंगी!
भाभी ने कहा- नहीं भैया, ऎसी साड़ी तो मेरे पास है, अब आप भैया शब्द से चौंक मत जाना… आजकल परिवार वालों को छोड़ कर बाकी लोगों के लिए भैया शब्द महज संबोधन ही है क्योंकि लोगों के सामने शराफत का चोला ओढ़ना पड़ता है।
खैर मैंने फिर पिंक, रेड, ब्लू, ब्लैक साड़ियाँ दिखाई, हर बार साड़ी दिखाते हुए मैं उनकी तारीफ करता या कोई और बात करने की कोशिश करता रहा, लेकिन जब भाभी ने मेरे दुकान की सभी साड़ियों को पुराने डिजाइन की कह दिया तब मेरा दिमाग खराब हो गया और मैंने सारी साड़ियों को साईड करते हुए भाभी जी से कहा- आप यहाँ टाईम पास करने आई हो तो सीधे-सीधे कहो ना..! मेरे दुकान की बुराई करने का क्या मतलब है। आईये बैठिये..! आराम से गप्पे मारते हैं।
भाभी जी शर्मिंदा हो गई और नजरें झुका के सॉरी कहते हुए चले गई।
मुझे भी कुछ अजीब सा लगा पर धंधे में इतनी कड़ाई तो करनी पड़ती है।
अगले कुछ दिनों तक भाभी जी नहीं दिखी, मुझे ये वाकिया कुछ समय तक ही याद रहा, फिर सब कुछ भूलकर मैं अपने दिनचर्या में खो गया।
भाभी जी इस बार महीने भर बाद आई, वे अकेले ही आई, दोपहर का वक्त था, मैं इस समय दुकान पर अकेला ही रहता हूँ क्योंकि दोस्तों का समय सुबह और शाम का होता है, और दोपहर में छोटू की भी खाना खाने की छुट्टी होती है।
भाभी को देखते ही मुझे सारी पिछली बातें जो थोड़ी धुन्धली सी हो गई थी, फिर ताजा हो गई, फिर भी मैंने दुकानदार की हैसियत से उनका फिर वही घिसे पिटे डायलाग से स्वागत किया- आइये भाभी जी, कहिये, मैं आपकी क्या सेवा करूं?
पर इस बार भाभी जी का उत्तर सुन कर मैं शर्मिंदा हो गया।
भाभी जी ने कहा- मुझे कुछ नहीं चाहिए, मैं आज गप्पें मारने ही आई हूँ।
मैंने कहा- लगता है आप उस दिन की बात से आज तक नाराज हैं?
भाभी जी ने कहा- मैं नाराज होकर भी क्या कर लूंगी, इसलिए मैं नाराज तो नहीं हूँ, लेकिन आपसे बहुत सी बातें करनी हैं।
मैं सोच में पड़ गया कि ये क्या कहेंगी, फिर सोचा ‘हो सकता है मेरी लॉटरी लगने वाली हो!’
फिर मैंने मुस्कुराते हुए कहा- जी कहिये!
भाभी जी ने कहा- अरे बैठने तो दो! चाय-पानी पिलाओ.. बात जरा लंबी है.. थोड़ा-थोड़ा करके बताऊंगी। शायद बात पूरी करने के लिए मुझे रोज आना पड़े।
मैंने कहा- आपकी अपनी ही दुकान है, आप चाहो तो रोज आइये या फिर रोज हमें बुला लीजिये!
मैंने तुरुप का इक्का फेंक दिया था, अब मैं उस इक्के के चलने का इंतजार कर रहा था।
कहानी बहुत लंबी है, धैर्य के साथ पठन करें। कहानी कैसी जा रही है अपनी राय इस पते पर दें।
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