एक उपहार ऐसा भी- 4
(Ek Uphar Aisa Bhi- Part 4)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left एक उपहार ऐसा भी-3
-
keyboard_arrow_right एक उपहार ऐसा भी- 5
-
View all stories in series
दो दिन बाद खुशी का मैसेज आया. उसने टिकट भेज दिया था, टिकट रेलवे की फस्ट क्लास एसी सुपरफास्ट का था.
साथ में सॉरी लिखकर कहा गया था कि उस डेट पर फ्लाइट की टिकट नहीं हो पाई।मैंने ‘कोई बात नहीं, यही बहुत है.’ लिखकर जवाब दिया, अब उसे क्या बताता कि मुझे तो नार्मल रिजर्वेशन में भी चल जाता।
उसके बाद मैंने कुछ और मैसेज किये और जवाब का इंतजार करने लगा.
पर जवाब के बदले कुछ देर बाद उसका कॉल आ गया, मैंने उसका नम्बर सेव कर रखा था. उसका नाम देखते ही दिल धड़कने लगा, मैंने बहुत खुश होकर फोन उठाया।
खुशी ने कहा- अभी शॉपिंग के लिए निकली हूं. तो मैसेज करते नहीं बनेगा, इसलिए कॉल कर लिया, तुम्हें कोई प्राब्लम तो नहीं है ना?
“अरे यार खुशी का फोन आए, ये तो मेरे लिए खुशी की बात है, प्राब्लम कैसा. उस दिन तुमसे पहली बार विडियोचैट करके भी मैं बहुत खुश था. और आज तुमसे बात करके मैं बता नहीं सकता कितना खुश हूं।”
इस पर खुशी ने कहा- अरे हाँ यार, विडियो काल के बाद क्या हुआ मैं तो बताना ही भूल गई. वैभव ने तुमसे बात की तो उसे तुम बहुत अच्छे लगे. उसने कहा कि इस पे भरोसा किया जा सकता है. और तुम इससे फोन पर भी बात कर सकती हो. और अपने तरीके से रह सकती हो. हाँ फिर भी लड़कियों को संभंल कर ही रहना चाहिए, आगे तुम समझदार हो।
और संदीप तुम इतने हैंडसम होगे मैंने सोचा नहीं था. मैं तो तुम्हारी आँखों में जो डूबी कि बस पूछो ही मत! तुम्हारी भूरी आँखों में एक नशा है जो किसी को भी मदहोश कर दे।
मैंने कहा- बस बस … मुझे अपनी तारीफ सुनने की आदत नहीं है, मुझे हजम नहीं होगा. वैसे परियों की रानी तो तुम खुद हो, किसी को भी दिवाना बना लेने वाली कशिश तुम में है, और तुम्हारा शहजादा भी तो बहुत हैंडसम है, उसके बारे में क्या कहती हो?
उसने कहा- अरे यार, वो हैंडसम है. तभी तो मैं उस पे फिदा हूँ. लेकिन जो खुद ही बहुत सुंदर हो उसे गुमान हो जाता है और वो अपने पार्टनर को वैल्यू नहीं देता। खैर छोड़ो इन बातों को! चलो मैं रखती हूँ, मुझे काम है. तुम कल की मेरी बातों का बुरा मत मानना. और अपनी कोई पिक भेज देना यार मेरे व्हाटसप पर।
मैं बहुत खुश था, कि आज खुशी ने खुद से मेरी पिक मांगी है.
मैंने अपनी सबसे अच्छी तस्वीरों में से कुछ तस्वीरें खुशी को व्हाटसप कर दी.
जवाब में खुशी ने जमकर तारीफ तो की पर साथ में लिखा- यार, इनमें से किसी भी पिक से तुम्हारे कपड़ों का मेजरमेंट पता नहीं चल रहा है।
मैंने आश्चर्य से कहा- मेरे कपड़ों का मेजरमेंट? उससे तुमको क्या काम है?
उसने कहा- जल्दी बताओ मेरे पास समय कम है।
मैंने कहा- एक्स एल साइज आ जाता है. पर तुम मेरे लिए कुछ मत लेना, मैं नहीं रखूंगा।
थोड़ी ही देर में व्हाटसप पर आठ बहुत मंहगे कोट सूट और शेरवानी की पिक आ गई. साथ लिखा आया- कौन सा पसंद है?
मैंने कहा- कोई नहीं।
तभी खुशी का कॉल आया और मेरे फोन उठाते ही कहा- यार अब भाव मत खाओ. बताओ तुम्हें क्या पसंद है?
मैंने कहा- डार्लिंग मैं भाव नहीं खा रहा हूँ. मैं खुद कपड़े वाला हूँ मैंने अपने लिए कपड़े ले लिए हैं, तुम मेरे लिए कपड़ो पे पैसा खर्च मत करो. ऐसे भी शो रूम में केवल लूट होती है।
खुशी ने कहा- मैं तुम्हारा भाषण नहीं सुनने वाली! जल्दी बताओ शेरवानी लूं या कोट सूट? या कुछ अलग ट्रेंडी?
मैंने फिर मना किया तो खुशी ने इस बार झल्लाते हुए कहा- यार, मैं अभी रोजाना शापिंग के लिए निकलती हूँ और तुम्हारे लिए अभी तक कुछ नहीं लिया है तो मुझे अधूरा सा लगता है. तुम भले ही मत पहनना लेकिन मेरी खातिर तो पसंद बता दो।
खुशी का मुझ पर इस तरह हक जताना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था.
मैंने कहा- अच्छा बाबा, मैं हारा तुम जीती. मेरे लिए एक सिम्पल सा कोट सूट अपने पसंद से ले लो, अब कुछ मत पूछना।
खुशी ने खुशी से लंबा किस देते हुए फोन काट दिया.
फिर कुछ देर में व्हाटसप पर कुछ और पिक आई. सभी में रेट वाले टैग भी लगे थे. पहले वाले पिक में भी टैग लगे थे पर मैंने ध्यान ही नहीं दिया था।
मैंने टैग पढ़ा उसमें सबसे कम रेट का सूट सतरह हजार का था जो मेरून कलर का था और एक सूट इक्कीस हजार का था जो जर्मन ब्लू कलर का था।
बाकी सभी चालीस या पचास हजार के ऊपर वाले थे.
मैंने सतरह और इक्कीस हजार वाले को ही टिक लगाकर खुशी को वापस भेजा. साथ में लिखा- इनमें से कोई देख लेना।
और तुरंत कॉल करके कहा- यार खुशी, बहुत ज्यादा रेट का है यार! बहुत लूट रहे हैं. प्लीज तुम मत लो.
वो फोन पर हम्म हम्म कर रही थी. शायद वो शो रूम वाले के पास ही थी.
शो रूम वाले की आवाज फोन में सुनाई दे रही थी- मैम, आप सर को भी यहीं बुला लेती तो अच्छा रहता. वो खुद ट्राई कर लेते. और मुझे इतने कपड़े भी दिखाने ना पड़ते. आपने तो सारा शो रूम ही निकलवा दिया।
मैंने उसकी बात सुन ली मैंने कहा- यार, कुछ भी ले लो ना! सब चलता है. और शो रूम में लूट रहती ही है.
इस पर खुशी ने मुझे सुनाते हुए कहा- नहीं यार, यहां तो फिफ्टी परसेंट आफ चल रहा है. और शो रूम वाले को गवाही के लिए कहा- है ना भैया?
पर वो तैयार नहीं था, उसने बक दिया- नहीं मैम, सिर्फ दस परसेंट ही छूट मिलेगी.
अब पता नहीं खुशी ने उसे क्या इशारा किया।
लेकिन फोन पर खुशी की दुबारा आवाज आई- भैया, आप तो कह रहे थे कि इन कपड़ों में फिफ्टी परसेंट आफ है?
तो शो रूम वाले ने भी थोड़ी ऊंची आवाज करके कहा- हाँ मैम फिफिटी परसेंट है. मैं भूल गया था।
फिर हमने फोन रख दिया, उन दोनों में से उसने कौन सा लिया, मैं उस वक्त नहीं जान पाया।
खुशी की ये हरकतें मेरे प्यार की हसरतों को निरंतर बढ़ा रही थी।
और आज मेरा एक सिद्धांत चरितार्थ भी हो गया था कि आप हमेशा उपहार देकर ही किसी को खुश नहीं कर सकते. कई बार आप उपहार लेकर भी किसी को खुश कर सकते हो।
उस दिन के बाद खुशी शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गई. मैंने भी जाने की तैयारी को अंतिम रूप देना प्रारंभ कर लिया.
मैंने एक महंगी ट्राली बैग खरीदी, अच्छे ब्रांडेड अंडरगार्मेंट और दो तीन जोड़ी महंगे कपड़े ले लिए और कुछ जरूरी चीजों के साथ सामान पैक कर लिया।
लेकिन असल चीज तो मैंने खरीदी ही नहीं थी.
शादी का उपहार!
मैंने बहुत सोचा. फिर एक नतीजे पर पहुंचा, मैंने चांदी से बनी राधाकृष्ण की मूर्ति का उपहार तय किया.
लेकिन समस्या यह थी कि वो कहीं मिल ही नहीं रही थी. और बहुत प्रयत्न के बाद जब मिली तो उसकी कीमत उसके वजन के कारण बहुत ज्यादा थी.
फिर भी मैंने उसे खरीद ही लिया और उम्मीद करने लगा कि खुशी को यह मूर्ति बहुत पसंद आयेगी।
अब वो वक्त भी आ गया जब मुझे खुशी तक ले जाने वाली ट्रेन में सवार होना था. शादी तीन फरवरी को थी इसलिए मेरी टिकट 30 जनवरी को ही बनवा दी गई थी.
मैं खुशी की यादों में खोया, दीन दुनिया से बेखबर रेलवे की ए सी बोगी का आनन्द लेते 31 की सुबह के दस बजे इंदौर पहुंच गया।
वहाँ गाड़ी के रूकते ही मैंने बैग पकड़ा और नीचे उतर कर सभी ओर नजर घुमाने लगा. और मन ही मन मैं खुशी की खुशबू का भी अहसास कर रहा था।
वहां कुछ देर में ही मुझे अलग-अलग जगह हवा में लहराती दो तीन तख्तियाँ दिखी. जिसमें लिखा था *** फैमिली मेहमानों का स्वागत करती है।
मतलब स्पष्ट था वो शादी में सरीख होने आये मेहमानों को ही ले जाने आये थे, जैसे ही मैं उनके थोड़ा पास पहुंचा एक सुट पेंट पहना सभ्य व्यक्ति आया उसने झुककर अभिवादन किया, और मेरा बैग पकड़ते हुए कहा- आईए संदीप सर आप हमारे साथ चलिए।
मुझे हैरानी हुई कि ये मुझे नाम से कैसे जानते हैं.
फिर देखा तो उनकी टीम के कुछ लोग अन्य और मेहमानों को पहचान कर उनके नाम से संबोधित कर रहे थे और सामानों को स्वयं उठा रहे थे.
मैंने बाद में नाम जानने की बात पूछी तो बताया गया कि हमें सभी मेहमानों की फोटो दिखा दी गई थी और पूरी सुविधा प्रदान करने के निर्देश दिये गये हैं।
स्टेशन के बाहर लगभग दस एक जैसी महंगी गाड़ियां खड़ी थी, जिनमें से एक में मुझे बिठाया गया और तीन और गाड़ियों में उन मेहमान फैमिली को बिठाया गया. बाकी की गाड़ियाँ शायद और दूसरे ट्रेन के इंतजार में खड़ी रही।
कहानी खुशी की शादी तक पहुंच चुकी है. शादी में बहुत कुछ होने वाला है.
प्रेम और कामकला की कहानी जारी रहेगी.
आपके अनुसार कहानी सही चल रही है या नहीं? आप अपनी राय इस पते पर दे सकते हैं।
[email protected]
What did you think of this story??
Comments