एक थी वसुंधरा-6
(Ek Thi Vasundhra- Part 6)
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एकाएक मैंने वसुंधरा को अपनी पकड़ से आज़ाद कर दिया और उससे ज़रा सा ऊपर उठ कर अपना सर उठ कर वसुंधरा को सर से पैर तक एक नज़र देखा.
क्या कमाल का नज़ारा था. साक्षात् रति मेरी बांहों में थी.
उन्नत माथा, दो कमानदार भवें, बंद आँखें, सुतवां नाक, लाली लिए गोरे कपोल, दो रसभरे गहरे गुलाबी होंठ, जिन में नीचे वाला होंठ मध्य में से ज़रा ज्यादा सुडौल, जरा सा बड़ा, सुडौल ठुड्डी, लम्बी ग्रीवा, तेज़-तेज़ चलती साँसों के साथ थोड़ी अस्त-व्यस्त सी काली नाईटी में ऊपर-नीचे होते दो अमृत-कलश, काली नाईटी में भी अपना जादू बिखेरती पतली कमर, सपाट पेट, केले के तने सी दो पुष्ट जाँघें, दोनों जांघों के ऊपरी जोड़ पर ज़रा सा ऊपर को उठा हुआ योनि का v का निशान जिसके मध्य से शुरू हो कर नीचे को जाती इक लकीर की हल्का सी झलक.
मेरे दाएं हाथ के वसुंधरा के जिस्म का जुग़राफ़िया नापते-नापते ऊपर को उठने की वज़ह से वसुंधरा की नाईटी भी करीब-करीब जांघों तक ऊपर उठ गयी थी. गोरी-गोरी रोम-रहित पिंडलियाँ, गोरे गद्देदार पैर जिन में सम-अनुपात पांच-पांच उंगलियां, सब कुछ ऐन वाह-वाह था. इस पद्मिनी में अगर कहीं कोई खोट था तो सिर्फ नसीब में था.
मैंने अपना दायां हाथ भी वसुंधरा के जिस्म से हटा कर नाईटी से बाहर खींच लिया लेकिन वसुंधरा की नाईटी बदस्तूर अब भी वसुंधरा के घुटनों से जरा ऊपर ही थी. अचानक ही दो काले-कजरारे नैनों ने अपनी चिलमन उठायी.
वसुंधरा ने गौर से मेरी तरफ़ देखा.
“क्या देख रहे हैं?”
“तुम्हें!”
“ऐसा क्या है मुझ में?” शोखी से वसुंधरा ने पूछा.
“मत पूछ … नहीं बता पाऊंगा. लेकिन तू है कमाल … !” तभी बाहर आँखें चौधियां देने वाली बिजली कौंधी और ज़ोर से बादल दहाड़े और इस के साथ ही लाइट चली गयी और सर्वत्र अँधेरा छा गया.
“फिर भी दूर हैं मुझ से …?” स्याह अँधेरे में वसुंधरा ने मेरे साथ कुछ और सट कर मेरे कान में सरगोशी की.
“दूर कहाँ वसु … मैं तो तेरे एकदम पास हूँ.” मैंने वसुंधरा के रेशमी उभारों पर अपना दायां हाथ फेरते हुए कहा.
“पर बीच में कई पर्दों के आवरण तो अभी भी है?” कहते हुए अँधेरे में वसुंधरा ने मेरी ओर करवट ले ली और मेरे नाईट-सूट के अप्पर के ऊपर वाले दो बटन खोल कर मेरी छाती के बालों में उंगलियां चलाने लगी.
स्याह अँधेरे ने वसुंधरा के शर्मोहया के परदे किसी हद तक उड़ा दिए थे.
मैंने भी मौके की नज़ाकत समझते हुए वसुंधरा का हाथ पकड़ कर पजामे के ऊपर ही अपने लिंग पर रख दिया. वसुंधरा ने पहले तो नारी सुलभ लज़्ज़ा से अपना हाथ परे कर लिया.
लेकिन जैसे ही मैंने दोबारा वसुंधरा का हाथ पकड़ कर तनिक सख्ती से वापिस अपने पजामे पर रखा तो वसुंधरा बहुत ही नज़ाक़त से, पजामे के ऊपर से ही मेरा लिंग टटोलने लगी और जैसे ही मेरा गर्म, तना हुआ लिंग वसुंधरा के हाथ में आया, वसुंधरा ने उसे कस कर थाम लिए और कुछ क्षण बाद मेरे लिंग पर अपना हाथ आगे-पीछे फ़ेरने लगी.
मैंने अपने दोनों हाथ नीचे से वसुंधरा की नाईटी में डाले और वसुंधरा की नाईटी ऊपर को उलट कर वसुंधरा के सर पर से निकाल कर परे फेंक दी और दोनों के जिस्मों को रजाई के अंदर कर लिया. रजाई के अंदर सिर्फ ब्रा-पैंटी में वसुंधरा मेरे साथ गुंधी पड़ी थी. मैंने भी वसुंधरा की ओर करवट ले ली और वसुंधरा की गर्दन को नीचे की ओर चूमते-चूमते अपना मुंह वसुंधरा के उरोजों की घाटी में धंसा दिया और अपनी जीभ दोनों उरोजों के बीच फिराने लगा. साथ ही मेरे दाहिना हाथ की पांचों उंगलियों के पोर वसुंधरा की पीठ पर, वसुंधरा की ब्रा के स्ट्रैप के आसपास गश्त लगाने लगे.
वसुंधरा के मुंह से मस्तीभरी चीख़ें निकलने लगी ‘हाय … राज … आह … ह..ह … ह..स..स..स … सी..सी … सी … ई..ई..ई … ई … !’
” रा..!..! … !..ज़! सी … ई … ई … ई! … उफ़..फ़..फ़ … बस..! बस..! … हा … आह … ह … ह … ह..!!! … सी..सी..सी … !”
साथ ही मेरे लिंग पर वसुंधरा की पकड़ और कठोर होती चली गयी.
अचानक ही वसुंधरा ने अपने दोनों हाथों से पकड़ कर अपने उरोजों में धंसा मेरा चेहरा ऊपर उठाया और मेरे मुंह पर यहां-वहां चुम्बनों की बौछार कर दी. वसुंधरा के दोनों हाथ मेरे नाईट-सूट के अप्पर के बचे हुए बटन खोलने में व्यस्त थे और मैंने वसुंधरा को कस कर अपने आगोश में ले रखा था.
मैंने अभी वसुंधरा की ना तो ब्रा का हुक खोला था और न ही वसुंधरा की छातियों को अनावृत किया था. मेरे दोनों हाथ की दसों उंगलियां वसुंधरा की नंगी पीठ की यहां-वहां मसाज़ कर रही थी.
वसुंधरा की गर्दन के पीछे से शुरू हो कर रीढ़ की हड्डी के साथ-साथ सितार की तारों को छेड़ने की तर्ज़ पर वसुंधरा की पीठ पर नीचे की ओर बढ़ने का सफ़र बहुत रोमांचक था. जैसी ही मेरे किसी हाथ की कोई भी उंगली वसुंधरा की पीठ पर नीचे … और नीचे किसी नए बिंदु को स्पर्श करती, वसुंधरा के शरीर में झुरझुरी की लहर दौड़ जाती.
पीठ के निचले हिस्से पर नितम्बों की फांक के ऊपरी सिरे को छूते ही वसुंधरा का न सिर्फ़ पूरा जिस्म थरथरा गया बल्कि वसुंधरा मुझ से और भी कस कर लिपट भी गयी और मेरे होंठों पर एक चुम्बन भी जड़ दिया.
मेरी उँगलियों का सफ़र वसुंधरा की पैंटी के ऊपर से ही वसुंधरा के नितम्बों की फांक के निचले सिरे की ओर मुसल्सल जारी रहा और नितम्ब जहां ख़त्म होते हैं, गुदा और योनि के बीच की जग़ह पर मेरी उँगलियों ने इक नन्ही-मुन्नी सी शरारत कर दी.
वसुंधरा का सारा जिस्म एकदम झनझना उठा. और वसुंधरा बस! … करीब-करीब बेक़ाबू होने की कगार पर पहुँचने को थी, तभी मेरे हाथ का वसुंधरा की पीठ पर ऊपर को वापिसी का सफ़र शुरू हो गया. बेइंतहा काम-हिलोर के कारण वसुंधरा के मुंह से ‘आह … ह … उफ़्फ़्फ़ … हाय … सी … इ … ई … ई’ की ऊँची-ऊँची सीत्कारें निकल रही थी.
काम-उत्तेजना वश वसुंधरा रह-रह कर बिस्तर पर अपना जिस्म तोड़-मरोड़ रही थी और इधर मैं वसुंधरा को अपने आगोश में कस कर समेटे हुए इत्मीनान से वसुंधरा के काम-ज्वाला को भड़कते हुए देख रहा था … देख तो क्या रहा था बल्कि आग में घी ही डाल रहा था.
काम के तीव्र आवेश के कारण वसुंधरा के मुंह से निकलने वाली ऊँची-ऊँची काम-कराहों से सारा कमरा गुंजायमान था.
“ओह … ओह … सी … इ … इ … ओ … ह … हां … हा … मर गयी … सी … इ … इ..इ … ई … ई … !!!”
“रा..!..! … !..ज़! सी … ई … ई … ई! … उफ़..फ़..फ़ … बस..! बस..! … हा … आह … ह … ह … ह..!!! … सी..सी..सी … !”
अब तक रजाई के अंदर मेरे जिस्म पर सिर्फ पायजामा और पायजामे के नीचे जॉकी रह गया था और वसुंधरा तो पहले से ही महज़ ब्रा और पैंटी में थी. बाहर गरजते बादल, दहाड़ती हवा और घनघोर बारिश और अंदर काम-बाण से घायल, एक दूसरे में समा जाने को आतुर प्रणय-युगल, रति-क्रीड़ा में के प्रथम चरण को लांघते दो जवान जिस्म. समय आ गया था कि इस प्रणय-लीला को … दोनों प्रेमियों की काम-उत्तेजना को अगले सोपान पर ले जाया जाए.
तभी लाइट आ गयी. मैंने नज़र फेरी तो पाया कि वसुंधरा ने काले रंग की ब्रा पहन रखी थी. अगर ब्रा काले रंग की थी तो वसुंधरा की पैंटी भी यकीनन काले ही रंग की होगी. मेरा अंदाज़ा ठीक निकला था. आज वसुंधरा ने अंडर-गारमेंट्स काले रंग के पहन रखे थे.
मैंने अपने आगोश में सिमटी वसुंधरा के चेहरे पर नज़र डाली. वसुंधरा का गोरा चेहरा पसीने से लथपथ था, चेहरे पर कुछ-कुछ सर के बाल चिपक रहे थे, कपोल गहरे गुलाबी हो रहे थे, गुलाब की पंखुड़ियों के से होंठ थरथरा रहे थे, मदभरी आखों में गुलाबी डोरे और तेज़ और भारी साँसों के कारण एक काली डिज़ाईनर ब्रा के अंदर गोरा उन्नत वक्ष तेज़ी से ऊपर-नीचे हो रहा था.
वसुंधरा के जिस्म में देवी रति अपने पूरे जलाल के साथ आसन्न थी और मेरे शरीर में विराजमान कामदेव के स्वागत में कामोत्सव मनाने को कमर कसे बैठी थी.
मैंने वसुंधरा को अपने साथ लिपटा कर उसके होंठों का एक भरपूर चुम्बन लिया और चुम्बन लेते-लेते अपने दाएं हाथ को वसुंधरा की पीठ पर लेजा कर वसुंधरा की ब्रा की हुक खोल दी. और साथ ही वसुंधरा की बायीं बाज़ू ब्रा की स्ट्रैप से आज़ाद कर दी और दायीं बाज़ू वसुंधरा ने खुद आजाद कर के ब्रा परे उछाल दी.
36 इंच साइज़ के गर्म और सुदृढ़ रेशम के दो गोले आज़ादी की सांस लेने लगे.
मैंने अपने साथ लिपटी वसुंधरा को ज़रा सा सीधा किया और खुद कोहनियों पर वसुंधरा के ऊपर छा सा गया. इसी के साथ वसुंधरा सिर्फ पैंटी में बिस्तर पर चित हो कर लेट गयी. रजाई अब सिर्फ हमारे जिस्मों के कमर से नीचे वाले भाग को ढके हुए थी. वसुंधरा ने फ़ौरन अपने दोनों हाथों से अपने उरोज ढक कर अपनी छाती पर अपने दोनों बाजुओं का क्रॉस सा बना लिया.
मैंने शिकायतभरी नज़रों से वसुंधरा की आँखों में झांका. वसुंधरा ने कुछ देर तो मुझ से नज़र मिलाई लेकिन फिर मुस्कुरा दी और शरमा कर अपनी बायीं बाज़ू अपनी आँखों पर रख ली.
यह मेरे लिए ग्रीन-सिग्नल था.
मैंने आहिस्ता से वसुंधरा का दायां हाथ उस के वक्ष से उठाया और हम दोनों के बीच पहलू में रख लिया. झक्क सफ़ेद, सुदृढ़ दो उरोज़ जो अंगिया के सहारे के क़तई मोहताज़ नहीं थे.
दोनों वक्षों के परफेक्ट गोलाई लेते-लेते शिखरों पर कोई एक रुपये के सिक्के जितने आकार के बादामी रंग के घेरे और शिखरों पर एक मंझौले किशमिश के आकार के कंगूरे एक निमंत्रण सा दे रहे थे लेकिन दोनों अमृत-कलशों के कंगूरे अभी कुछ झुके-झुके से थे.
“कोई बात नहीं … मैं करता हूँ चैतन्य इन का रेशा-रेशा.” मैंने झुक कर वसुंधरा की गर्दन के ज़रा सा बायीं ओर अपने जलते-तपते होंठों से एक भरपूर चुम्बन लिया.
“आह … ह … ह … ह … ह … !!!”
वसुंधरा सिहर उठी जैसे करंट की कोई लहर वसुंधरा के जिस्म में से गुजर गयी हो.
धीरे-धीरे मैंने अपने दोनों हाथों की उँगलियों में वसुन्धरा के दोनों हाथों की उंगलियां जकड़ ली और वसुंधरा के दोनों हाथ उस के सर के साथ बिस्तर पर दबा कर वसुन्धरा के शरीर पर ज़रा सा टेढ़ा हो कर लंबवत लेट गया. मेरे पेट तक का ऊपर का हिस्सा वसुन्धरा के पेट और वक्ष के ऊपर और टाँगें वसुन्धरा के शरीर के बायीं ओर साथ साथ.
वसुन्धरा अब पूरी तरह से मेरे रहमोकरम पर थी और अब मैं किसी तरह का रहम करने के मूड में नहीं था. जैसे ही मैं वसुंधरा वस्त्र-विहीन जिस्म पर ऊपर-नीचे अपनी जीभ फेरता या चुम्बन लेता, वसुन्धरा का पूरा शरीर तन जाता और सिहरन की लहरें वसुन्धरा के शरीर में उठनी शुरू जाती.
और उस के मुंह से आनंदभरी सिसकियों का निकलना तो बदस्तूर जारी था ही ‘सी … ई..ई..ई … ई..ई आह … ह..ह … उफ़..हाय … इ … स … रा..!..! … !..ज़! स..स … स..!’
तभी मैं वसुंधरा की गर्दन को चूमते-चूमते नीचे की ओर आया और मैंने एक हल्का सा चुम्बन वसुंधरा की रोम-विहीन, रेशम-रेशम बायीं कांख में लिया. मेरे मुंह में तत्काल एक तीखा सा, नमकीन सा, चरपरा और नशीला सा स्वाद घुल गया साथ ही मेरे नथुनों से वसुंधरा के कामोद्दीपक जिस्म की वही जानी-पहचानी मादक गंध टकराई.
तत्काल मेरी कामोत्तेजना चरम पर जा पहुंची.
उत्तेजना के मारे मैंने कई सारे चुम्बन वसुंधरा की दोनों कांखों के ले डाले. जीभ से वसुंधरा की दोनों काँखें चाट ली.
इधर मैं तो जो उत्तेजित था सो था उधर वसुंधरा तो जैसे आपे से बाहर होने जा रही थी. वसुंधरा के दोनों हाथों की सभी उंगलियां मेरी उँगलियों पर कसी हुई थी और वसुंधरा का जिस्म रह-रह कर झटके खा रहा था और उस के मुंह से निकलने वाली सीत्कारों का वॉल्यूम ऊंचा, और ऊँचा होता जा रहा था.
“ओह … ओह … सी … इ … इ … ओ … ह … हां … हा … मर गयी … सी … इ … इ..इ … ई … ई … !!!”
“रा..!..! … !..ज़! सी … ई … ई … ई! … उफ़..फ़..फ़ … बस..! बस..! … हा … आह … ह … ह … ह..!!! … सी..सी..सी … !”
वसुंधरा अपने हाथ मेरी गिरफ़्त से छुड़वाने के लिए बुरी तरह तड़फने लगी. तभी मैंने वसुंधरा का बायां हाथ अपने दाएं हाथ से जाने दिया और अपने दायें हाथ से बहुत हौले से वसुंधरा का बायां उरोज़ थामा. वसुंधरा ने अपने बाएं हाथ और अपने दाएं हाथ साथ जोकि मेरे बाएं हाथ में पैवस्त था, मेरा सर थामा और मेरा चेहरा ऊपर उठा कर यहां-वहां चूमने लगी.
मैंने अपना बायां हाथ भी वसुंधरा के हाथ से आज़ाद कर लिया और उसे भी वसुंधरा के दूसरे उरोज पर जमा दिया और अपने दोनों हाथों से वसुंधरा के दोनों वक्षों की जैसे मसाज करने लगा. मेरी दोनों हथेलियों के तले दो सफ़ेद रेशम के नरम लेकिन सुदृढ़ अमृतघट धड़क रहे थे कंगूरों के प्रहरी अब तक पूर्णतय चैतन्य और चाक-चौबन्द हो कर अपने पूर्ण आकार में आ चुके थे.
तभी मैंने प्रणय-लीला को अगले सोपान पर ले जाने का निर्णय लिया. मैंने झुक कर बहुत नरमी से वसुंधरा के तने हुए बायें निप्पल को अपनी जीभ से छुआ. वसुंधरा तो बिस्तर पर से चिहकूँ उछल गयी. वसुंधरा के जिस्म में गुज़रती सिहरन की एक लहर को स्पष्टतया मैंने अपने जिस्म में अनुभव किया. इधर मैंने धीरे-धीरे निप्पल को चुमलाना शुरू किया उधर वसुंधरा के मुंह से आहों-कराहों का बाजार गर्म होने लगा.
“आह राज! ओह … आह!! सी..सी … धीरे! हाँ … उफ़..! गॉड … सी … ई … ई … ! स … स … स … ! आह … !”
मेरे दोनों हाथों की दसों उंगलियां जैसे मक्ख़न मथ रही थी. वसुंधरा के दोनों आँखें बंद हो चुकी थी और उस के दोनों हाथों की सभी उँगलियों के नाख़ून मेरी पीठ पर चित्रकारी करने पर आमादा थे. रजाई के अंदर तो वसुंधरा ने अपनी दोनों टांगों की कैंची से मुझे कस कर जकड़ रखा था.
मैंने धीरे-धीरे निप्पल छोड़ कर वसुंधरा का पूरा वक्ष चाटना-चूसना शुरू कर दिया, जगह-जग़ह चुम्बन लेने शुरू कर दिए. फिर दोनों उरोजों की सीमारेखा को शिद्दत से चूमा और चुम्बन लेते-लेते धीरे-धीरे दूसरे स्तन का रुख किया.
दूसरे उरोज़ के सख़्त निप्पल पर जुबान रखते ही वसुंधरा हलाल होते जानवर के जैसे चिंघाडी ‘ना..न राज … ! अब और नहीं … ! मर जाऊंगी … ! सी … ई … ई … ई!! बस … ! मान जाओ … ! आह … !!’
कामदेव की लीला अपने शवाब पर थी. बाहर का तो मुझे पता नहीं लेकिन कमरे के अंदर तो तूफ़ान यक़ीनन अपने यौवन पर था. वसुंधरा के मुंह से अब सीत्कारें नहीं … दहाड़े निकल रही थी.
“आह … ह … ह … ह..!!! … सी..सी..सी … ! सी … इ … इ … !!”
“आ..आ..आ..आ..आ!! … हे..ऐ..ऐ..ऐ..ऐ..ऐ..!! बस..स … करो राज … ज! बस … और..र..र नई..ई..ई..ई! हा..आ..आ..आ..!!”
वसुंधरा के दोनों उरोज़ मेरे चूमे जाने की वज़ह से गीले हो कर रह-रह कर कौंध से रहे थे और बारम्बार चूमे जाने के कारण गोरे रंग के दोनों वक्ष कुछ-कुछ गहरे रंग के दिखाई पड़ रहे थे. वसुंधरा की आखों में असीम काम-मद उतर आया था, साँस धौंकनी की तरह चल रही थी.
लेकिन मैं अभी भी कुछ सयंत था. मैंने अपना दायां हाथ वसुंधरा के कंधे पर से थोड़ा नीचे की ओर सरकाया और जैसे ही मेरा हाथ वसुंधरा की पसलियों से टकराया. प्रत्याशा में तत्काल वसुंधरा ने अपने दाएं हाथ से मेरे पजामे का नाड़ा खोला और हाथ अंदर डाल कर प्री-कम में सना हुआ, पत्थर सा कठोर और काम-ज्वाला से धधकता हुआ मेरा लिंग थाम लिया और जैसे हस्तमैथुन करते है … ठीक वैसे ही ज़ोर-ज़ोर से आगे-पीछे करने लगी.
मेरे आगे बढ़ते हाथ की उँगलियों की पोरों से वसुंधरा की पेंटी की इलास्टिक टकराई और मैंने फ़ौरन वहीँ अपना हाथ धर दिया. मेरी उंगलियां वसुंधरा की नाभि के बगल की तरफ़ और हथेली नाभि से जरा नीचे पैंटी के फ़ैब्रिक पर टिक गयी. वसुंधरा ने तत्काल मेरी दायीं कलाई अपने बाएं हाथ से पकड़ ली और मेरी आँखों में झाँका.
“सी … ई … ई..ई!! राज … ! यहां नहीं … ! प्लीज़ … नहीं … आह … ह … ह … ह..!!!”
“क्या! क्या यहां नहीं?” मैंने शरारत से पूछा.
कहानी जारी रहेगी.
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