खामोशी से बेशरमी तक- 1
(Desi Indian Girl Sexy Kahani)
देसी इंडियन गर्ल सेक्सी कहानी मेरी एक कजिन के साथ वासनात्मक प्यार की है. मैं उसे चोद कर एक बच्चा दे चुका था पर पूरी चुदाई बिना कोई बात किये रात के अँधेरे में हुई थी.
नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम महेश कुमार है और मैं एक सरकारी नौकरी करता हूँ।
सबसे पहले तो आपने मेरी पिछली कहानी
शायरा मेरा प्यार
को पढ़ा और उसको इतना पसन्द किया उसके लिये धन्यवाद।
अब आप लोगों के लिये मैं एक नयी कहानी लेकर आया हूँ।
वैसे तो यह कहानी मेरी पहले की कहानी
“खामोशी (द साईलेन्ट लव)”
का ही आगे का एक भाग है जिसको मैंने समाप्त कर दिया था।
उस कहानी को आप लोगों ने इतना पसन्द किया था कि उसके लिये मेरे पास अभी भी काफी सारे मेल आते रहते हैं कि मैं उसके आगे भी कुछ लिखूँ।
इसलिये मैं उसके आगे की एक छोटी सी दास्तान और लिख रहा हूँ.
उम्मीद है कि यह देसी इंडियन गर्ल सेक्सी कहानी भी आपको उतना ही पसन्द आयेगी जितना वह कहानी पसन्द आई थी।
मेरे जो पुराने पाठक है उन्होंने तो खामोशी (द साईलेन्ट लव) को पढ़ा होगा.
मगर जो नये पाठक हैं उनसे मैं अनुरोध करता हूँ कि इस कहानी को पढ़ने से पहले आप इससे पहले की कहानी
खामोशी (द साईलेन्ट लव)
को एक बार अवश्य पढ़ लें ताकि आपको इस कहानी को समझने में आसानी हो और पढ़ने में मजा आये।
चलो अब ज्यादा समय ना लेते हुए मैं सीधा कहानी पर आता हूँ.
मगर कहानी शुरु करने से पहले अपनी हर एक कहानी की तरह ही मैं इस बार भी वही दोहरा रहा हूँ कि मेरी सभी कहानियाँ काल्पनिक है जिनका किसी के साथ भी कोई सम्बन्ध नहीं है. अगर होता भी है तो मात्र यह एक संयोग ही होगा।
जैसा कि आपने मेरी पिछली कहानी ‘शायरा मेरा प्यार’ में पढ़ा कि मेरा दाखिला जब हमारे शहर के किसी भी कॉलेज में नहीं हुआ तो मेरे भैया ने सिफारिश लगवाकर मेरा दाखिला दिल्ली के कॉलेज में करवा दिया और वहाँ मेरे और शायरा के सम्बन्ध बन गये।
दिल्ली में मेरे और शायरा के सम्बन्ध तो चल ही रहे थे. इसी बीच मेरे कॉलेज की कुछ दिन छुट्टियाँ हो गयी।
छुट्टियों में मुझे अपने घर जाना था मगर घर जाने से पहले ही पापा ने फोन करके बताया कि मुझे मोनी को लेने रायपुर जाना है।
आपने मेरी पहले की कहानी
खामोशी: द साईलेन्ट लव-8
में पढ़ा होगा कि जब मैं पिछली बार रायपुर गया था तो मैंने और मोनी ने बिना बात किये ही प्यार किया था और वह प्यार अब रंग ला चुका था।
हमारे उस प्यार की बदौलत मोनी को अब लड़का हुआ था और वो अब तीन महीने का हो गया था।
बच्चा होने के बाद से अभी तक मोनी अपने मायके नहीं आई थी।
शायद इसलिये ही कमला चाची ने मेरे पापा से मोनी को लाने के लिये कहा था.
पर आपको तो पता ही है कि मेरी मम्मी की तबीयत खराब रहती है.
ऊपर से पापा की भी अब उम्र हो गयी थी इसलिये पापा ने मोनी को लाने के लिये मुझे बताया।
अब आपको तो पता ही है कि मेरे मोनी के सम्बन्ध किस कदर रहे थे इसलिये मोनी को लेने जाने की बात सुनते ही मैं तो मारे खुशी के उछल ही पड़ा क्योंकि मोनी से मिलने का मुझे फिर से एक मौका मिल गया था.
वैसे तो मेरा काम वहाँ दिल्ली में शायरा के साथ भी चल रहा था मगर मोनी की बात ही कुछ और थी।
हमारे बीच जो खोमोशी वाला प्यार था, उसका मजा ही कुछ अलग था.
और वैसे भी जब कुछ नया करने को मिले तो भला इन्कार किसे होगा।
मेरे कॉलेज की छुट्टियाँ अगले दिन से होने वाली थी.
मगर मोनी से मिलने के लिये मैं अब इतना उतावला हो गया कि मैं उस दिन शाम को ही और वो भी बिना रिजर्वेशन के रायपुर के लिये निकल गया।
अब जैसे तैसे मैं बिना रिजर्वेशन के गिरते पड़ते रायपुर पहुँच तो गया … मगर हाय रे मेरी फूटी किस्मत!
मैं मोनी के घर पहुंचा तो देखा कि मोनी के साथ उसका पति भी घर पर ही था।
अब क्या करूं?
लग गये लौड़े …
मैंने तो सोचा था कि मोनी के घर जाकर मैं उसके साथ ये करुँगा, वो करुँगा और ना जाने क्या क्या करुँगा.
पर अब मोनी के पति को वहाँ देखकर एक पल में ही मेरे सारे के सारे अरमान धरे रह गये।
खैर जैसे तैसे मैंने अब खुद को सम्भाला और उन्हें नमस्ते करके अन्दर चला गया।
अन्दर मोनी शायद खाना बनाने की तैयारी कर रही थी।
मैं साल भर के बाद आज देख रहा था मोनी को … पर इस साल भर में उसके बदन में अब काफी बदलाव आ गये थे।
रंग रूप पहले से काफी निखर गया था तो बदन में भी अब काफी कटाव आ गये थे।
चूचियों में दूध भर आने से वे पहले से अब काफी बड़ी हो गयी थी.
तो नितम्ब भी अब पहले से काफी बड़े लग रहे थे।
शायद यह उसके माँ बनने का असर था जो साल भर में ही वह इतनी बदल गयी थी।
कहाँ तो वह दुबली पतली सी लड़की थी और अब साल भर में ही उसके बदन में इतना भराव और कटाव आ गया कि वह एक भरी पूरी औरत सी दिखने लगी थी।
मुझे देखकर मोनी का पति तो काफी खुश था.
पर मोनी की मुझे मिलीजुली सी प्रतिक्रिया मिली।
उसने बस सामान्य तरीके से ही मेरे और हमारे घर परिवार के बारे में पूछा फिर पुनः अपने काम में लग गयी।
मैं पहुँचा उस समय रात हो आई थी इसलिये मोनी खाना बनाने की तैयारी कर रही थी.
उसका पति बच्चे को खिला रहा था इसलिये मैं मोनी के पति के पास ही बैठ गया और बच्चे को अपनी गोद में उठा लिया.
“अले … ले ले देखो कौन आया? तुम पर ही गया है ये …” मोनी के पति ने बच्चे को मुझे देते हुए कहा.
जिससे मोनी ने अब तुरंत मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे उसकी चोरी पकड़ी गयी हो।
सच में ही मोनी का बच्चा काफी हद तक मेरे जैसा ही था।
रंग रूप से लेकर नैन नक्श में वह काफी हद तक मुझ पर ही गया था जिससे एक बार तो मैं भी झेम्प गया.
मगर फिर जल्दी ही मैंने बात को सम्भाल लिया और- हम पर नहीं जायेगा तो किस पर जायेगा। बच्चे या तो अपने घर वालों पर जाते हैं या फिर नानके वालों पर!
मैंने हंसते हुए बिल्कुल ही सरलता से अपनी बात कही।
“हाँ … हाँ … ये तो है!” मोनी के पति ने भी अब हंसते हुए कहा।
मोनी के पति ने शायद ये ऐसे मजाक किया था क्योंकि उसके व्यवहार से ऐसे लग नहीं रहा था कि उसे कुछ पता भी है.
नहीं तो उसके ऐसा कहने से और मोनी का मुझे देखने से एक बार तो मैं भी घबरा गया था कि कहीं सच में ही उसे मेरे और मोनी के बारे में पता तो नहीं चल गया.
पर खैर … अब मैं कुछ और कहता … तब बीच में ही मोनी बोल पड़ी- खाना बन गया है अभी खाओगे या बाद में?
उसने अपने पति की ओर देखते हुए कहा।
शायद मोनी को डर था कि मैं अब कुछ और ना बोल दूँ इसलिये वह डर रही थी।
“तुम नहाओगे या फिर पहले खाना खा लें?” मोनी के पति ने अब मेरी तरफ देखते हुए कहा।
काफी गर्मी हो रही थी और वैसे भी मैं दिन भर से नहाया नहीं था इसलिये मैंने कहा- जी, मैं पहले नहा लेता हूँ!
“ठीक है, तो फिर पहले नहा लो, फिर साथ में ही खाना खाते हैं.” मोनी के पति ने कहा और बच्चे को मेरी गोद से ले लिया।
बच्चे को मोनी के पति को देकर मैं अब बाथरूम में घुस गया।
बाथरुम में तौलिया नहीं था, मैंने आवाज दी तो मोनी ने मुझे तौलिया देने आई।
मोनी को देखकर अब एक बार तो दिल में आया कि अभी के अभी ही उसे बाथरूम में खीँच लूं.
मगर …
सच में अगर मोनी का पति नहीं होता तो अभी तक मैं उसके साथ गेम कर रहा होता.
पर अब कर भी क्या सकता था … इसलिये मैं चुपचाप मोनी से तौलिया लेकर नहाने बैठ गया।
मैं नहाकर आया, तब तक मोनी ने मेरे लिये और अपने पति के लिये खाना लगा दिया था.
हम दोनों अब साथ बैठकर खाना खाने लगे.
जैसे मैंने पहले की कहानी में बताया था कि हमारा और मोनी के परिवार काफी क्लोज है जिससे मेरे और हमारे घर परिवार के बारे में मोनी को व उसके पति को सब कुछ पता ही होता है.
इसलिये मोनी के पति ने पूछा- सीधा दिल्ली से आ रहे हो या घर जाकर आये थे?
और वह खाना खाते हुए मुझसे बातें करने लगा.
“जी नहीं, कोलेज की छुट्टियां कम हैं ना … इसलिये घर नहीं गया, सीधा यहीं आ गया!” मैंने कहा।
“चलो ठीक है, अब साथ में ही घर निकल जाना.” मोनी के पति ने कहा।
“जी!” मैंने हामी भरते हुए कहा।
मोनी का पति तो हमारे घर परिवार और मेरे बारे में वैसे ही सामान्य बातें कर रहा था.
मगर उसके वहाँ रहते मेरा मोनी के साथ काम नहीं बन पाया था इसलिये मुझे तो बस एक ही बात खटक रही थी कि यह आदमी यहाँ क्यों है इसलिये बातों बातों में मैंने भी पूछ ही लिया- आपने छुट्टी कर ले रखी है या वैसे ही आज काम पर नहीं गये?
“नहीं, एक दो दिन के लिये आया था, फिर पता चला तुम मोनी को लेने आ रहे हो, इसलिये रुक गया. अब तुम निकलोगे तो फिर तुम्हारे साथ ही मैं भी काम के लिये निकल जाऊँगा!” मोनी के पति ने कहा।
“चलो अच्छा है ना ये तो … मैं भी आपसे मिल लिया.” मैंने झूठमूठ की खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा।
“हाँ तभी तो … वैसे वापस जाने का रिजर्वेशन कब का किया है तुमने?” मोनी के पति ने अब फिर से पूछा।
वैसे तो मैंने मेरा और मोनी का तीन दिन बाद का रिजर्वेशन किया हुआ था क्योंकि मैंने सोचा था कि तीन दिन तक मोनी के साथ यहीं मजे करुँगा.
पर अब मोनी के पति के वहाँ रहते मैं कुछ कर तो सकता नहीं था इसलिये मुझे अब जल्दी से घर जाने में ही अपनी भलाई लग रही थी।
तो मैंने झूठ कहा दिया- जी, वो रिजर्वेशन हफ्ते भर बाद का मिल रहा था और मेरे कॉलेज की इतनी छुट्टियां नहीं है इसलिये मैंने रिजर्वेशन नहीं किया! कल ऐसे ही चले जायेँगे!
“सही है तो, वैसे भी एक रात की तो बात है!” मोनी के पति ने कहा।
अब ऐसे बातें करते हुए हमने खाना खाया।
मैं पिछली रात ठीक से सोया नहीं था और सफर से काफी थका हुआ भी था इसलिये खाना खाकर मैं तो सो गया।
वैसे तो मोनी के घर पर एक ही बैड है. मगर मुझे नहीं पता कि उन्होंने कैसे एडजैस्ट किया और कैसे नहीं … उन्होंने मुझे बैड पर सुला दिया।
जैसे तैसे मैंने वो रात बिताई और अगले दिन सुबह ही मोनी के साथ अपने घर आने के लिये निकल गया।
मोनी के पति को भी काम पर जाना था इसलिये रायपुर तक वो भी हमारे साथ ही आया.
मगर हमें रेलवे स्टेशन पर छोड़कर वह काम पर चला गया।
अब स्टेशन पर आकर मुझे एक तो मेरा और मोनी का जो रोजर्वेशन किया हुआ था, उसे कैन्सिल करना था.
और दूसरा हम दोनों के लिये जनरल टिकट लेना था.
इसलिये मोनी को एक जगह बिठाकर मैं टिकट काउँटर की तरफ आया।
उधर जनरल टिकट काउंटर पर थोड़ी भीड़ थी मगर रिजर्वेशन काउंटर खाली पड़ा था इसलिये जनरल टिकट लेने से पहले मैंने रिजर्वेशन कैन्सिल करने की सोची और रिजर्वेशन काउँटर पर आ गया।
रिजर्वेशन काउँटर पर आकर मैं अपना फार्म भर ही रहा था कि तभी एक आदमी मेरे पास आया और …
“सर, जरा अपना पेन देंगे?” उस आदमी ने मेरे हाथ से पेन लेने की कोशिश सी करते हुए कहा।
शायद वह आदमी अपने आप को कुछ ज्यादा ही समार्ट समझ रहा था या फिर पता नहीं वह कुछ ज्यादा ही जल्दी में था इसलिये!
“पहले मैं तो अपना फार्म भर लूं!” मैंने गुस्से से अपना पेन झटक कर उस आदमी से दूर करते हुए कहा।
“यार मेरा यह आज का ही रिजर्वेशन है और चार्ट बनने के बाद यह कैन्सिल नहीं होगा. इसलिये थोड़ा जल्दी है प्लीज!” उसने अपना टिकट मुझे दिखाते हुए अब रिक्वेस्ट सी की।
मैं अब कुछ और कहता कि तभी मेरी नजर उसकी टिकट पर छपे ;रायपर से दिल्ली’ पर चली गयी।
गुस्से में मैं उसे कुछ बोलने वाला था मगर उसकी टिकट देखने के बाद मेरा सारा गुस्सा छू मंतर हो गया.
“कैन्सिल करना है क्या है आपको ये?” उसकी टिकट पर छपे ‘रायपुर से दिल्ली’ को फिर से देखते हुए मैंने ये उत्सुकतावश पूछा।
“हाँ इसलिये तो थोड़ा जल्दी है.” उस आदमी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा।
“कौन सी ट्रेन का है?” यह कहते हुए मैंने उससे वह टिकट लेने की कोशिश की.
मगर …
“एक्सप्रेस का … क्यों?” उस आदमी ने मेरी तरफ अब हैरानी से देखा।
“जी … मुझे भी दिल्ली जाना है. आप ये टिकट मुझे दे देँगे तो इसके पैसे मैं आपको दे दूँगा.” मैंने उस आदमी की ओर देखते हुए कहा।
“हाँ हाँ, मुझे तो ये कैन्सिल ही करना है, तुम ले लो चाहे!” उसने यह कहते हुए वो टिकट अब मुझे दे दी।
मैंने उस टिकट को देखा तो वह टिकट एक्सप्रेस ट्रेन की दो लोगों के लिये ‘रायपुर से दिल्ली; जाने की कन्फर्म टिकट थी।
वो भी एक मेल व एक फिमेल और उनकी उम्र भी लगभग हमारे समान ही थी।
मेरे लिये तो यह जैसे अन्धे को आँख मिल जाने वाली सी बात हो गयी थी.
इसलिये मैंने उस आदमी को हैरानी से देखते हुए पूछा- आप इसे कैन्सिल क्यों कर रहे हो?
“हम यहाँ कुछ काम से आये थे. पर हमारा काम अभी हुआ नहीं, इसलिये हमें यहाँ कुछ दिन और रुकना है.” उस आदमी ने कहा।
वैसे भी मुझे इस बात से क्या करना था।
मुझे तो टिकट लेनी थी … मैंने उस आदमी को टिकट के पैसे देकर उससे टिकट ले लिया और अपना रिजर्वेशन कैन्सिल करके वहाँ से बाहर आ गया।
मैं अपने आपको अब काफी हल्का सा महसूस कर रहा था क्योंकि दिल्ली तक का कन्फर्म टिकट मिलने से मेरी आधी परेशानी दूर हो गयी थी।
वैसे ही मैं मोनी के चक्कर में बिना रिजर्वेशन के गिरते पड़ते तो यहाँ पहुँचा था।
ऊपर से मोनी का पति के होते मैं मोनी के साथ भी कुछ कर भी पाया.
और अब बिना रिजर्वेशन के ही यहाँ से जाना पड़ रहा था।
यह टिकट मिलने से चलो कम से कम अब आराम से सोते हुए तो जा सकता था।
देसी इंडियन गर्ल सेक्सी कहानी के अगले भागों में आपको पूरा मजा मिलने वाला है.
अभी तक की कहानी पर अपने विचार अवश्य बताएं.
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देसी इंडियन गर्ल सेक्सी कहानी का अगला भाग: खामोशी से बेशरमी तक- 2
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