बुद्धा गार्डन में दिल गार्डन गार्डन

(Buddha Garden Me Dil Garden Garden)

नमस्कार दोस्तो, सबसे पहले आप लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने मेरी पहली कहानी
नर्स सेक्स स्टोरी: गदर माल
को इतना प्यार दिया और कुछ लोगों ने मेल भी किया।

मैंने पहली कहानी की लिंक उस कहानी की नायिका रोजी को भी भेजी थी. उसे बहुत अच्छी लगी. पहले थोड़ी नाराज हुई मकान मालिक की लड़की को लेकर; फिर बाद में बोली- आगे की कहानी मुझे दिखाकर ही भेजना।

अब मैं सुन्दर सिंह हाजिर हूँ अपनी अगली सत्य कथा के साथ!
यह अनुभव मैंने और रोजी ने साथ मिलकर लिखा है इसी कारण ज्यादा समय लग गया.

उस दिन रोजी से शानदार सेक्स करने के बाद हम लोग फोन सेक्स करने लगे. कुछ दिन बाद रोजी ने मिलने के लिए कहा तो मैंने कहा- चलो मूवी देख लेते हैं, मेरे कमरे पर नहीं मिल सकते.
क्यूंकि मेरे मकान मालिक के यहाँ कुछ मेहमान आये हुए थे।

हमने अगले ही दिन मूवी देखने का प्लान बनाया. रोजी काले रंग की लेगी और सफ़ेद कुर्ता में बहुत मस्त लग रही थी. जैसे ही वो मेरे पास आई तो मैंने उसे आँख मारी और फ्लाइंग किस दी. बदले में उसने भी बड़ी अदा से एक भौंह उचकाकर दूसरी आँख मारी.
‘आये … हाए …’ घायल हो गया कसम से बड़ी कातिल अदा थी।

फिर हम दोनों हाथों में हाथ डालकर मूवी हॉल में घुस गए. हमने एक अंग्रेजी फ्लॉप फिल्म के लिए कार्नर सीट ली थी तो पूरे हॉल में बहुत कम लोग थे।

फिल्म शुरू होते ही हम भी शुरू हो गए. जैसे ही मैंने उसकी पीठ पर हाथ घुमाया तो मैंने महसूस किया कि उसके कुर्ते में पीछे की तरफ चेन लगी हुई थी और उसने ब्रा नहीं पहनी थी।
लेकिन सामने से देखने पर उसके बूब्स ऐसे नहीं लग रहे थे कि उसने ब्रा न पहनी हो मैंने उसकी तरफ थोड़ा आश्चर्य से देखा तो वो मुस्कुराकर मेरे सीने से लग गयी।

मैंने प्यार से उसका चेहरा उठाया और उसके नर्म मुलायम होंठों का रसपान करने लगा।

रोजी की साँसें तेज होने लगीं थीं. हम दोनों ऐसे एक दूसरे के होंठ चूस रहे थे मानो एक दूसरे में समा जायेंगे. रोजी की छाती तेजी से ऊपर नीचे हो रही थी।

मैंने एक हाथ उसकी पीठ पर ले जाकर उसके कुर्ते की चेन खोल दी. चेन खोलते ही मेरा हाथ उसकी ब्रा की चौड़ी पट्टी पर चला गया. यह बिल्कुल अलग तरह की ब्रा थी.
बाद में उसने बताया कि ये उसने ख़ास मेरे लिए ही खरीदी थी।

चेन खोलकर मैंने उसे अपनी तरफ खींच लिया और कुर्ते में अन्दर हाथ डालकर उसके दूध दबाने लगा. रोजी के हाथ मेरे सर के बाल नोच रहे थे और उसके होंठ मेरे होंठों को काटने लगे।

रोजी मेरा लंड निकालकर उसे लोलीपोप के जैसे चूसने लगी.
जैसे ही मुझे लगा अब थोड़ी देर में मेरा निकल जाएगा, मैंने रोजी का मुँह अपने लंड से हटा दिया और हम दोनों अलग हो गए।

फिल्म के इंटरवल से पहले ही हम फिल्म छोड़कर निकल आये।
अब रोजी और मैं दोनों लोग ही खुलकर मिलना चाह रहे थे लेकिन जगह का जुगाड़ नहीं हो पा रहा था।

एक दिन स्टाफ के साथ बात हो रही थी, तभी बातों ही बातों में बुद्धा गार्डन का ज़िक्र चल पड़ा. तो पता चला कि वहाँ लड़के लड़कियां झाड़ियों में सेक्स कर लेते हैं. मैंने सोचा कि चलकर देख लेते हैं क्यूंकि हमारे ब्रजघाट में ऐसी कोई जगह नहीं है. यहाँ तो लोग धर्मशाला में कमरे लेकर सेक्स करते हैं, कमरे भी आसानी से मिल जाते हैं।

मैंने रोजी को फोन करके बोला तो वो बहुत खुश हुई.
और हमने अपनी ड्यूटी इस तरीके से सेट करवाई कि दोनों का नाईट ऑफ एक साथ हो.

फिर मैंने बुद्धा गार्डन जाने का रास्ता पता किया। हमने तय किया कि मैं थोड़ा पहले निकल कर बस से हॉस्पिटल के अगले स्टॉप पर उतर जाऊँगा और वो अपनी स्कूटी से वहीं पर मिल जायेगी. फिर दोनों साथ ही जायेंगे।

आखिरी नाईट ड्यूटी की रात बहुत लम्बी लग रही थी. और आखिर उस रात की सुबह हुई.

मैंने जल्दी जल्दी सुबह आने वाली टीम को चार्ज हैण्ड ओवर किया, फिर चेंजिंग रूम में जाकर अपनी यूनिफार्म बदली। बाथरूम में जाकर मुट्ठ मारी और वहीं पर मैंने गोली भी खा ली थी।

मैं पहले वाली गलती नहीं करना चाहता था और जल्दी से बस पकड़ ली।

अगले स्टॉप पर उतर कर मैं रोजी का इन्तजार करने लगा. थोड़ी देर बाद एक स्कूटी मेरे सामने आकर रुकी. मैं उसे देखता ही रहा. रोजी ने पीला सूट पहन रखा था, उसमें भी पीछे चेन लगी थी. होंठों पर हल्की गुलाबी लिपस्टिक लगाकर वो गजब ढा रही थी।

उसने मुझे स्कूटी दी और खुद पीछे चिपक कर बैठ गई. उसके दूध मेरी पीठ पर लग रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे पीछे से कोई गुब्बारे मेरी पीठ में दबा रहा हो. मतलब फुल्टू मजा आ रहा था।

बुद्धा गार्डन पहुंचकर हम उसमें अन्दर जाने को हुए तो वहाँ एक आदमी ने हमसे 100 रुपये माँगे. यह वहाँ की सुविधा शुल्क था शायद।
हमने अन्दर जाकर देखा तो कई जोड़े थे जो खुले में ही एक दूसरे की बांहों में थे, एक दूसरे को चूम रहे थे.

लेकिन हम तो अपने मिलन के लिए झाड़ी देख रहे थे. हमने एक बढ़िया सी झाड़ी दिखी जिसमें बाहर से कोई कुछ नहीं देख सकता था. हम जैसे ही उसमें घुसे तो वहाँ कार्यक्रम पहले ही चल रहा था।
हम दोनों ने उनको सॉरी बोला और बाहर निकल आये. फिर दूसरी झाड़ी में गए जो किस्मत से खाली थी।

अन्दर पहुँचकर रोजी ने अपना दुपट्टा नीचे बिछाया और हम एक पेड़ के तने से पीठ टिकाकर बैठ गए और एक दूसरे के होंठों का रसपान करने लगे. फिर धीरे धीरे मैंने उसे दुपट्टे के ऊपर लिटाया जिससे उसका कुर्ता ख़राब न हो।
उसके कुर्ते की चेन खोलकर मैं उसके दूध के कलशों पर अपनी जीभ से मालिश करने लगा. रोजी मेरे सर को चूमे जा रही थी और अपने पैर पटक रही थी।

थोड़ी ही देर में उसने मुझे धक्का देकर अलग कर दिया और अपनी सलवार थोड़ी सी फाड़ दी जहाँ से उसकी पेंटी का वो हिस्सा दिखाई देने लगा जहाँ पेंटी ने उसकी चूत रानी को छिपा रखा था।
रोजी ने शरारत से अपनी आँखें घुमाई मानो अपनी समझदारी दिखा रही हो। मैंने हाथ डालकर उसकी पेंटी अलग खिसकाई और उसकी चूत पर अपना मुँह रख दिया.

उसकी चूत मैं चाटने ही वाला था कि उसने फिर से धक्का दे दिया और बोली- बड़े मतलबी हो? मेरी कोई फ़िक्र नहीं … केवल खुद ही मजा लोगे?

मैं समझ गया; मैंने पैंट से अपना लंड निकाला और हम 69 की पोजीशन में आ गए. अब मैं रोजी की चूत चाट रहा था और वो मेरा लंड चूस रही थी।

बीच बीच में मैं उसकी गांड भी चाट लेता था तो वो मेरा लंड छोड़कर सिसकारी भरने लगती थी और मेरे आंड चूसने लगती थी.

करीब 10 मिनट बाद रोजी की सिसकारियां बढ़ने लगीं. उसने मेरा लंड चूसना छोड़ दिया और अपना सर पटकने लगी थी। उसने अपने हाथों से मेरा सर अपनी चूत पर दबा लिया और उसकी जांघें काँप रही थी. कुछ ही सेकंड में उसकी चूत ने लावा छोड़ दिया.
मुझे उसका स्वाद अजीब लगा लेकिन मैं रोजी की ख़ुशी के लिए उसे चाट गया।

अब मैं रोजी के बगल में लेट गया. वो हांफ रही थी लेकिन मेरा अभी कुछ नहीं हुआ था. इसलिए उसे गर्म करने के लिए मैं उसे चूमने लगा. उसके होंठों को चूमते हुए मैं उसकी गर्दन पर आ गया. गर्दन चूमते चूमते उसके कान की लौ को जैसे ही चूमा, वो मुझसे इतनी कसकर लिपट गई जैसे मुझमें घुस जायेगी. मेरा एक हाथ उसके चूतड़ों से होता हुआ उसकी चूत पर पहुँच गया और मैं उसकी चूत में उंगली करने लगा।

रोजी सिसकारते हुए बोली- जानू ऊऊऊह ऊऊ अब जल्दी करो!
मैंने भी देर करना सही नहीं समझा और उसकी पेंटी को फिर से एक तरफ करके अपना लंड धीरे धीरे उसकी चूत में डाल दिया. मुझे धीरे धीरे डालने में बहुत मजा आता है. इससे मैं चूत को पूरा पूरा फील करता हूँ।

थोड़ी देर तक मैं बिना हिले ऐसे ही रोजी के ऊपर पड़ा रहा और उसके दूध पीने लगा. इस वजह से रोजी की चुदास और भी भड़कने लगी।
रोजी अब अपनी गांड उचकाकर खुद धक्के मारने लगी तो मैंने भी धक्के मारने शुरू कर दिए.

हम दोनों ही धक्के मार रहे थे इसलिए बहुत मजा आ रहा था और एक बढ़िया संगीत भी बज रहा था- पट पट थप थप पट पट थप थप …

थोड़ी देर में रोजी थक गई तो उसने धक्के लगाने बंद कर दिए. मैंने 10-12 धक्के और लगाये. अचानक मेरी नजर एक पेड़ के पास पड़े पत्थर पर पड़ी मैंने एकदम अपना लंड रोजी की चूत से निकाला तो पक्क की आवाज आई और हट गया।

रोजी मुझे कुछ गुस्से और कुछ विनती की नज़रों से देखने लगी कि छोड़ क्यों दिया?
मैं उस पत्थर पर पीठ लगाकर बैठ गया और रोजी को इशारा किया वो खिलखिलाती हुई मेरे पास आई और पेड़ की तरफ मुँह करके मेरे लंड पर अपनी चूत सेट करके बैठ गई।

अब मेरे मुँह के सामने उसके गोर तने हुए दूध थे. मैं एक दूध पर अपना मुँह लगाकर उसे चूसने लगा और दूसरे दूध को एक हाथ से मसलने लगा, दूसरे हाथ से मैंने उसे चिपका लिया।

रोजी मेरे सर के बाल नोचने लगी और अपनी गांड तेजी से हिलाकर चुदने लगी. लेकिन उसे इस पोज में दिक्कत हो रही थी तो बोली- अब लेटकर करते हैं.
मैंने अपने लंड को उसकी चूत में लगे लगे ही उसे उठाया और पीठ के बल लिटा लिया।

रोजी ने अपनी दोनों टांगों को मेरी कमर पर लगाकर उठा दिया था. उसकी टांगें काँप रहीं थीं और मुझे भी अंदाजा हो गया था कि अब ज्यादा देर नहीं टिक पाऊँगा इसलिए मैंने ताबड़तोड़ धक्के देने शुरू कर दिए।

रोजी के मुँह से मम्म्म उम्म्ह… अहह… हय… याह… आआह्ह ह्ह्ह की आवाजें निकलने लगीं थीं. उसके पैरों की कम्पकपाहट बहुत तेज हो गयी थी. वो अपने हाथों से मेरी पीठ को तोड़ देना चाह रही थी.
कुछ ही पलों में मैंने अपना माल अपने माल के अन्दर गिरा दिया. और रोजी ने भी अपना कामरस छोड़ दिया था।

मैं हाँफता हुआ कुछ पल रोजी के ऊपर ही लेटा रहा, फिर उसके होंठों को चूमकर उससे अलग हुआ।

रोजी की चूत से मेरा और उसका मिलाजुला माल निकलने लगा था. रोजी ने अपने पर्स से टिश्यू पेपर निकालकर उसे पौंछा.

फिर हम दोनों उस पत्थर पर थोड़ी देर बैठे. रोजी मेरी गोद में बैठी थी. हमने एक दूसरे को एक लम्बा किस किया और वहाँ से निकल आये।

रास्ते में रोजी ने मेरे कान में कहा- यह बहुत अच्छी जगह है. यहाँ बहुत बढ़िया रहा.

फिर सी पी पर आकर हमने खाना खाया और मैं वहीं से मेट्रो लेकर अपने रूम पर चला गया।

दोस्तो, अपनी राय इस कहानी पर अवश्य दीजियेगा. आखिर आप लोगों की प्रतिक्रिया ही आगे लिखने की हिम्मत देगी। क्योंकि करते तो लगभग सभी हैं कोई कम कोई ज्यादा … लेकिन लिखने के लिए हिम्मत चाहिए होती है. और हाँ पिछली कहानी पर कुछ लोग रिसर्च करने लगे थे तो भाई लोग रिसर्च न करें.
गोपनीयता बरक़रार रहने दें और कहानी के मजे लें।
धन्यवाद
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