औरत की चूत की कामुकता-1
(Aurat Ki Choot Ki Kamukta-1)
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नमस्ते मित्रो.. मेरा नाम सुरेखा है.. मैं एक 32 साल की विवाहित घरेलू औरत हूँ। मैं भी अपनी कहानी अन्तर्वासना पर प्रकाशित करवाना चाहती हूँ.. इसलिए मैंने बहुत सोचने के बाद अन्तर्वासना पर मिले कई दोस्तों से मदद माँगी थी.. लेकिन किसी ने मेरी मदद नहीं की।
आज मैं ही अपनी यह कहानी आपके सामने पेश कर रही हूँ.. अगर मुझसे लिखने में कुछ गलती हो.. तो मुझे क्षमा कीजिएगा।
कहानी शुरू करने से पहले मैं आपको अपने परिवार के बारे में कुछ बताना चाहूँगी। मैं पुणे में रहती हूँ.. मेरे परिवार में मैं.. मेरे पति विलास.. जो एक अच्छी कंपनी में कंप्यूटर इंजीनियर हैं और मेरा बेटा सोनू जो अभी सिर्फ 5 साल का है। परिवार के मुखिया के रूप में मेरे ससुर हैं.. जिन्हें हम बाबूजी कहते हैं। ऐसे हम चारों बहुत खुशहाल रहते हैं।
मेरे पति कंपनी के काम से कभी-कभी बाहर दूसरे शहर जाते हैं.. लेकिन फिर भी वो मेरा पूरा ख्याल रखते हैं.. मुझको किसी चीज की कमी नहीं होने देते हैं।
अभी दो महीने के पहले बात है.. विलास कंपनी के काम से 15 दिन के लिए बाहर गए थे.. मैं दिन भर बहुत बोर हो जाती थी इसलिए मैं अन्तर्वासना पर कहानी पढ़ रही थी।
उसमें से एक कहानी मुझको बहुत अच्छी लगी.. मैंने उस कहानी के लेखक को मेल करके रिप्लाई किया.. उसने जवाब भी दिया.. फिर ऐसे ही हमारी दोस्ती हो गई।
उसने मुझको बताया कि सेक्स कैसे करते.. सेक्स के दौरान क्या-क्या करते हैं.. वो सब बताया।
उसकी इस प्रकार की बातों से मैं बहुत उत्तेजित होने लगी।
कुछ ही दिनों के ईमेल के वार्तालाप से मैं तो उसके प्यार में पागल सी हो गई थी। मैं उससे पूरा दिन-रात मेल के जरिए बातें करती थी.. मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
एक दिन मैंने उससे पूछा- तुम्हारा लंड कितना बड़ा है?
तो उसने अपने लंड की फोटो निकाल कर मुझे मेल पर भेज दी.. मैं तो फोटो देखकर डर ही गई थी। उसका लंड काफी बड़ा था.. उसे देखकर मेरा मन मचलने लगा।
मैं उसके साथ चुदाई करना चाहती थी, उसका बड़ा लंड अपने चूत में लेना चाहती थी.. लेकिन वो मुझसे काफी दूर था.. हालांकि वो पुणे आने के लिए तैयार भी था.. लेकिन मैं डर रही थी।
एक तो उसका लंड बहुत बड़ा था.. मुझको बहुत तकलीफ होगी.. यही सोचती थी और दूसरी बात अगर किसी को पता लग गया तो मैं तो किसी को मुँह दिखाने के काबिल ही नहीं रहूँगी.. बरबाद हो जाऊँगी इसलिए मैंने उसे मना कर दिया।
उससे बातें करते-करते कैसे 15 दिन बीत गए.. पता ही नहीं चला।
तभी मेरे पति का फोन आया कि मैं आ रहा हूँ। विलास दूसरे दिन दोपहर को बारह बजे आ गए।
तब बाबूजी सोनू को स्कूल छोड़ने गए थे। मैं घर में अकेली थी.. इसका फायदा उठाते हुए विलास ने अपना बैग एक तरफ रख कर मुझको बाहों में जकड़ लिया और मेरे होंठों पर अपने होंठ रखकर मुझे चुम्बन करने लगे। मैं भी चुदासी थी सो अपनी जीभ उसके मुँह में डाल कर चारों ओर घुमा रही थी। विलास अपने हाथों से मेरी गांड दबा कर मुझे अपनी ओर खींच रहा था.. मेरे मम्मे उसकी छाती से पूरे दब गए थे। मैं भी उसे अपनी ओर खींच रही थी.. हम करीबन पंद्रह मिनट ऐसे ही एक-दूसरे को चुम्बन करते रहे।
फिर विलास बोला- क्या बात है.. आज बहुत मूड में लग रही हो?
मैंने कहा- पंद्रह दिन से भूखी हूँ मैं..
तो उसनें हंसते हुए कहा- क्यों पंद्रह दिन खाना नहीं खाया क्या?
मैं गुस्सा हो गई और उसकी छाती पर गुद्दे मारने लगी.. तभी विलास ने मुझे पकड़ कर अपनी बाहों में ले लिया और ‘सॉरी’ बोल कर मुझे फिर से चुम्बन करने लगा।
मैंने भी उसका साथ दिया.. थोड़ी देर बाद हम अलग हो गए।
विलास बोला- मैं नहाकर आता हूँ..
और वो बेडरूम में जाकर अपने कपड़े निकालने लगा।
मैं भी उसके पीछे चली गई। विलास खाली अंडरवियर और बनियान में खड़ा था। मैंने देखा कि उसके अंडरवियर का आगे का हिस्सा फूल गया था।
मैं समझ गई कि अभी भी विलास का लंड टाईट है.. उसने मेरी ओर देखा और मुस्कुरा कर बाथरूम में चला गया।
मैंने उसके कपड़े उठाकर अलमारी में रख दिए और काम करने रसोई में जा ही रही थी.. तभी देखा कि बाथरूम का दरवाजा खुला सा था.. मैंने अन्दर झांक कर देखा विलास की पीठ दरवाजा के तरफ थी और वो अपने हाथ से लंड को सहला रहा था।
मैं चुपचाप अन्दर जाकर उसके पीछे खड़ी हो गई। विलास आँखें बंद करके अपना लंड आगे-पीछे कर रहा और उसके मुँह से ‘अअअह… अहहहह’ जैसी आवाजें आ रही थीं।
मैं वहीं खड़ी थी.. मेरा हाथ अपने आप उसके आगे चला गया।
जैसे ही मैंने उसका लंड अपने हाथ में लिया उसने आँखें खोलीं.. मैं पीछे से उससे चिपक गई। मैं अपने मम्मे उसके पीठ पर दबाने लगी.. मेरा एक हाथ विलास के पेट पर था और दूसरे हाथ से उसके लंड को आगे-पीछे कर रही थी।
विलास का लंड एकदम सख्त हो गया था और लोहे की रॉड जैसा कड़क था। मैं उसे अपनी मुठ्ठी में लेकर उसके साथ खेल रही थी और विलास आँख बंद करके मजा ले रहा था।
फिर विलास ने मुझको आगे की तरफ खींचा और गाऊन के ऊपर से मेरे मम्मों को दबाने लगा। मेरे मुँह से ‘स्सससस..’ आवाज आ रही थी.. और मैं उसे अपनी तरफ खींचने लगी।
तभी उसने मेरे गाऊन के बटन खोलकर मेरा गाऊन निकाल दिया। अब मैं सिर्फ ब्रा और पैन्टी में थी।
विलास तो पहले से ही पूरा नंगा था.. वो जोर-जोर से मेरे मम्मों को दबा रहा था। मुझे मजा भी आ रहा था और दर्द भी हो रहा था।
फिर उसने अपने हाथ मेरे कन्धों पर रखकर मुझे नीचे दबाने लगा। मैं समझ गई कि वो मुझे नीचे बैठा कर अपना लंड मेरे मुँह में डालना चाहता था।
वो जब भी मेरे साथ चुदाई करता था.. अपना लंड मुझसे जरूर चुसवाता था और ये बात मुझे बिलकुल अच्छी नहीं लगती थी.. मुझे बहुत गंदा लगता था।
लेकिन इस बार मुझे उस लेखक की बात याद आई और मैं फौरन नीचे बैठ गई.. मैंने लंड को अपने हाथों से पकड़ा और उसके लौड़े के ऊपर की चमड़ी पीछे की.. उसका आगे का हिस्सा एकदम गुलाबी-गुलाबी था।
मैंने अपनी जीभ उसके ऊपर से घुमा कर उसे चाटने लगी.. बड़ा अजीब सा लग रहा था।
मैं बार-बार उसके लण्ड को पूरे मन से चाटने लगी.. विलास को भी आज बहुत अच्छा लग रहा था।
वो ‘आआ.. आआआह.. हहहह..’ कर रहा था।
उसके लंड से कुछ चिकना सा रस निकल रहा था.. उसका स्वाद कुछ अलग ही लग रहा था।
वो भी मैं चाटती रही.. मैंने अपनी उंगली से उस गुलाबी हिस्से को फैला दिया तो मुझे एक छेद दिखाई दिया। वो लाल रंग का था.. जिसमें से पेशाब बाहर आती है।
उस छेद में मैंने अपनी जीभ घुसाई.. तो विलास को एकदम करंट जैसा लगा.. वो एकदम से मचल उठा। मुझको भी मजा आ रहा था.. मैंने उस छेद पर अपना मुँह रखा और चूसने लगी। उसके बाद मैं पूरा लंड अपने मुँह में लेकर आगे-पीछे करके चूसती रही।
मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं मलाई वाली कुल्फी खा रही होऊँ।
उसका लंड पूरा मेरे गले तक जा रहा था मैंने अपना एक हाथ अपनी पैन्टी में डाल कर देखा.. तो मेरी चूत पूरी गीली हो गई थी। मैंने लंड मुँह से निकालकर अपने हाथ से आगे-पीछे करने लगी और विलास की ओर देखा.. तो वो आँख बंद करके मस्त होकर ‘अअ.. आआ.. अहहहह..’ कर रहा था।
थोड़ी ही देर में उसके लंड ने पिचकारी मारी और सारा पानी मेरे चेहरे के ऊपर गिर गया, यह मुझे बहुत गंदा लगा। लेकिन मुझे आज वो अन्तर्वासना का लेखक याद आ रहा था.. तो मैंने फिर से लंड को पकड़ लिया और खेलने लगी।
लेकिन झड़ने के बाद विलास का लंड बहुत छोटा हो गया था और नीचे लटक रहा था। मैंने बहुत कोशिश की लेकिन वो कड़क ही नहीं हो रहा था।
मैं झुंझला कर अपना गाऊन पहन कर बाथरूम के बाहर आकर रसोई में काम करने लगी।
तभी दरवाजे की घन्टी बज गई.. मैंने दरवाजा खोला तो बाबूजी आए हुए थे।
उसके बाद क्या हुआ.. वो कहानी के अगले भाग में बताऊँगी।
आपको मेरी कहानी कैसी लगी.. ये जरूर मुझको लिखना।
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