टीचर की चूत को मिला हॉट डॉग
(Teacher Ki Chut Ko Mila Hotdog)
मैं स्कूल के ज़माने में काफी शैतानी किया करता था, मेरी शैतानियों से घर वाले, गाँव वाले, स्कूल टीचर्स सभी परेशान थे।
जिस रोज इस कहानी की शुरुआत हुई हमारे इम्तिहान चल रहे थे। मैं भले जितना शैतान रहा हूँ.. पर परीक्षा में नकल करना मेरी आदत नहीं थी.. पर हमारी टीचर को मुझ पर भरोसा नहीं होता था, वह हर रोज सिर्फ मेरी ही तलाशी लेती थीं। मेरा बैग चैक करतीं.. मेरी जेबें टटोलतीं.. डेस्क की तलाशी लेतीं।
एक दिन मैंने गुस्से से उनसे पूछ लिया- आप सिर्फ मेरी तलाशी क्यों लेती हो? क्लास में और भी तो स्टूडेंट्स हैं.. उनकी तलाशी क्यों नहीं लेतीं?
‘क्योंकि वे तुम्हारी तरह शैतान नहीं हैं.. इस पूरी क्लास में सिर्फ तुम ही हो जिसकी तलाशी लेनी जरूरी है.. और मैं रोज इसी तरह तुम्हारी तलाशी लेती रहूँगी।’
टीचर ने सबके सामने मुझे अपमानित करते हुए कहा।
मुझे उनके इस भेदभाव पर बहुत गुस्सा आया.. मैंने मन बना लिया कि मैं उन्हें इस बात के लिए मजा चखाऊँगा।
दूसरे दिन स्कूल जाते वक्त मैंने अपनी दाईं जेब की सिलाई उखाड़ दी.. उस उखड़ी हुई जगह से मैंने अपना लण्ड उस जेब में फिट कर दिया। क्लास में मैं सबसे पहले आकर बैठ गया।
खाली क्लास में मुझे अकेला बैठा देख टीचर का माथा ठनका.. उन्हें लगा कि मैं आज पक्का नकल की सामग्री लाया होऊँगा.. इसलिए सबसे पहले आकर बैठा हूँ।
वह झट से अन्दर आ गईं, पहले उन्होंने मेरी डेस्क चैक की.. फिर बैग देखा.. पर उनको कुछ ना मिला।
जब डेस्क और बैग में कुछ नहीं मिला.. तो वह मेरे कपड़ों की तलाशी लेने लगीं।
कपड़ों की तलाशी लेते हुए उनका हाथ मेरी उस जेब पर गया.. जिसमें मैंने अपना लण्ड सैट किया था।
‘यह क्या है?’ उभरी हुई जेब देखकर उन्होंने पूछा।
‘हॉट डॉग है..’ मैंने जवाब दिया।
‘बाहर निकालो..!’ टीचर ने हुक्म छोड़ा।
‘नहीं निकलेगा..’ मैंने कहा।
‘कैसे नहीं निकलेगा..?’ ये कहते हुए उन्होंने मेरी जेब में हाथ डाला और हॉट डॉग समझकर मेरे लण्ड को पकड़ लिया.. पर जैसे ही उन्हें असलियत समझ में आई.. उन्होंने झट से अपना हाथ बाहर निकाल लिया और मेरी तरफ गुस्से से देखने लगीं।
मैं कुटिल निगाहों से उन्हें घूरने लगा।
मैंने उनको अच्छा-खासा मजा चखाया था.. मैं अपने किए पर बहुत खुश था। मुझे लगा कि अब मुझे वह पीटना शुरू कर देगी.. पर ऐसा हुआ नहीं.. वह चुपचाप जाकर कुर्सी पर बैठ गईं।
थोड़ी देर बाद बाकी के बच्चे भी आ गए, परीक्षा आरम्भ हुई.. सबने अपने-अपने पेपर लिखे और चले भी गए।
क्लास में अंत तक सिर्फ मैं और टीचर ही बचे थे।
टीचर आज पूरा दिन गुमसुम बैठी रही थीं.. ना उन्होंने किसी से बात की.. ना रोज की तरह चक्कर लगाए।
जब समय ख़त्म होने को आया.. तब मैं पेपर जमा करने के लिए उनके पास गया, उन्होंने मेरी तरफ देखे बिना पेपर बंच में रख दिया।
मैं क्लास से बाहर जा ही रहा था कि तभी टीचर की आवाज आई- सुनो..! कल अपने पिताजी को मुझसे मिलने को कहना.. अगर वो नहीं आए तो तुम भी स्कूल मत आना।
पिताजी का नाम सुनते ही मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई, मैं गिड़गिड़ाते हुए टीचर के पास गया, कहा- प्लीज टीचर.. पिताजी को मत बताना.. आप खुद जो चाहे सजा देना.. पर पिताजी को नहीं बताना।
‘गेट आउट फ्रॉम हेअर.. कल पिताजी आने ही चाहिए..’ उन्होंने अत्यधिक गुस्से से कहा।
मैं वहाँ रुकता तो मामला और बिगड़ सकता था.. इसलिए मैंने वहाँ से जाना ही बेहतर समझा।
दूसरे दिन पिताजी को लेकर मैं स्कूल में गया, पिताजी टीचर से मिल कर गुस्से में ही घर चले गए।
दिन भर मैं जैसा-तैसा स्कूल में बैठा रहा, स्कूल छूटा.. तो घर पर पिताजी मेरा ही इंतज़ार कर रहे थे।
‘यहाँ आओ..!’ पिताजी ने मुझे गुस्से से अपने पास बुला लिया।
मैं सर झुकाए उनके पास गया।
‘स्कूल किस लिए जाते हो..? पढ़ने के लिए.. या मस्ती करने के लिए? उन्होंने आँखें बड़ी करते हुए पूछा।
‘पढ़ने..!’ मैंने गर्दन नीची करते हुए जवाब दिया।
‘फिर पढ़ाई छोड़ कर मस्ती क्यों करते हो?’
पिताजी की इस बात पर मैं गर्दन उठाकर उनकी तरफ आश्चर्य से देखने लगा। कुछ तो गड़बड़ थी.. जो हरकत मैंने टीचर के साथ की थी.. उसका पता चलने के बाद पिताजी को तो मेरी डंडे से पिटाई शुरू कर देनी चाहिए थी पर बजाय पिटाई के.. वो मुझसे पढ़ाई के बारे में पूछ रहे थे।
‘तुम पढ़ाई में बहुत ही कमजोर हो.. ऐसा तुम्हारी टीचर कह रही थीं। आज से वो तुम्हारी एक्स्ट्रा टयूशन लेने वाली हैं। रात को खाना-वाना खा कर तुझे भेजने को कहा है।’
अब मेरे दिमाग में एक साथ कई सवाल घूमने शुरू हो गए। क्यों टीचर ने पिताजी को असलियत नहीं बताई? क्यों उन्होंने मुझे उनके घर एक्स्ट्रा टयूशन के लिए बुलाया क्यों..? क्यों..? क्यों..?
खैर.. रात को खाना खाकर मैं एक किताब और एक नोटबुक लेकर टीचर के घर चला गया। टीचर हमारे ही गाँव में रहती थीं.. पर हमारे गाँव की नहीं थीं। वो हमारे गाँव में भाड़े के घर में रहती थीं.. छुट्टी के दिन अपने गाँव जाती थीं, जिसके चलते उन्हें अकेले ही रहना पड़ता था।
मैं उनके घर पहुँचा.. तब वो नाईटी में थीं, उन्होंने मुझे अन्दर आकर सोफे पर बैठने को कहा।
‘टीचर.. आपने पिताजी को कम्प्लेंट क्यों नहीं की..? और ये टयूशन किस लिए?’ मैंने उनसे सवाल किया।
‘किताब खोल के लेसन पढ़ो..’ उन्होंने गुस्से से कहा और रसोई में चली गईं।
काफी देर बाद वो वापस आईं.. उनके हाथ में लकड़ी की स्केल थी।
‘किताब साइड में रख दो और अपनी पैंट खोलो।’ उन्होंने मेरी तरफ देखते हुए गुस्से से कहा।
‘जी..?’ मैंने आश्चर्य से पूछा।
‘सुनाई नहीं देता.. अपनी पैंट उतारो..!’ उन्होंने फिर दुगने गुस्से से कहा।
‘टीचर आप मुझे मारो.. पर मुझे जलील मत करो..’ मैंने कहा।
‘जलील तुमने मुझे किया है और मारना तुम्हें नहीं है.. तुम्हारी उस गंदगी को मारना है.. जिसको मेरे इस हाथ ने छुआ है।’ यह कहते हुए उन्होंने मेरे लण्ड पर स्केल जोर से मार दी।
‘उतारो जल्दी..’ स्केल मारते हुए उन्होंने कहा।
मैं फिर गिड़गिड़ाया.. पर उन्होंने मेरी सुनी ही नहीं.. उल्टा गुस्से में आकर खुद मेरी पैंट उतार दी और अंडरवियर के ऊपर से ही मेरे लण्ड पर पागलों की तरह स्केल से मारती रहीं। मैं पीड़ा से चिल्लाता रहा.. पर वो रुकी नहीं।
कुछ समय बाद उनका गुस्सा ठंडा हुआ.. तो वो शांत हो गईं।
मैंने खुद को सँभालते हुए पैंट पहनने की कोशिश की.. पर अत्यधिक पीड़ा से मेरी कराह निकल गई।
‘सॉरी.. मुझे माफ़ कर देना.. मुझे इतना गुस्सा नहीं होना चाहिए था।’ उनको अपनी गलती का अहसास हो गया था।
‘मुझे मेरी गलती की सजा मिल गई।’ कहते हुए मैं फिर से पैंट पहनने की कोशिश करने लगा।
‘रुको.. मैं कोई ऑइनमेंट लाती हूँ.. उसे लगा देना.. थोड़ा आराम पड़ जाएगा।’ कहकर उन्होंने अलमारी से एक ऑइनमेंट निकाल कर मेरे हाथ में दे दिया और खुद फिर से रसोई में चली गईं।
जब वो वापस आईं.. तब उनके हाथ में एक दूध का गिलास था।
‘क्रीम लगाई?’ बाहर आते ही उन्होंने मुझसे पूछा।
मैंने ‘ना’ में गर्दन हिलाई।
‘क्यों?’
‘दर्द होता है.. टच करने से..’
‘लाओ.. मैं लगा देती हूँ..’ कहते हुए उन्होंने मेरे हाथ से क्रीम ले ली।
‘तुम दूध पीओ।’ अपने साथ लाया हुआ दूध मुझे देते हुए वो बोलीं।
‘नहीं.. इसकी जरूरत नहीं है..’ मैंने कहा।
‘पीओ..!’ जोर से कहते हुए उन्होंने मेरी अंडरवियर नीचे खिसका दी। फिर अपनी उंगलियों पर थोड़ी क्रीम ले कर मेरे लण्ड पर लगाने लगीं।
‘आउच..!’ उनकी उंगलियों के स्पर्श से दर्द के मारे मेरे मुँह से निकल गया।
‘ओहो..! सॉरी.. अब आहिस्ते से लगाऊँगी..’ कहते हुए वह मेरे लण्ड पर फूँक मारने लगीं।
उनकी इस हरकत से पीड़ा के बावजूद मेरा लण्ड टाईट होने लगा.. जिसे देखकर वो मुस्कुराईं.. मैं भी उनकी तरफ देखकर मुस्कुराया।
उन्होंने हौले-हौले हाथों से पूरे लण्ड को क्रीम लगा दी.. फिर उसे अपने दोनों हथेलियों पर रखकर आहिस्ते-आहिस्ते फूँक मारने लगीं।
‘टीचर..!’
‘हम्म..!’
‘क्या आपने मुझे माफ़ किया..?’
‘नहीं.. तुम्हारी हरकत माफ़ करने लायक नहीं है.. पर मैंने जो किया वो भी ठीक नहीं किया.. इसलिए मैं अपनी गलती सुधार रही हूँ।’
‘प्लीज टीचर.. मुझे एक बार माफ़ कर दीजिए.. आगे से मैं आपकी हर बात मानूंगा.. आप जो बोलेगी.. मैं वही करूँगा।’
‘हम्म.. देखते हैं.. अब रात काफी हो चुकी है.. तुम पैंट पहन लो और घर चले जाओ।’
उनके कहे मुताबिक मैं पैंट पहनकर वहाँ से निकल आया।
लण्ड पर स्केल की मार की पीड़ा अगले तीन-चार दिन बनी रही। उन तीन-चार दिनों में टीचर ने रोज मेरे लण्ड पर क्रीम लगाई और रोज उसे फूँककर उसकी जलन कम करने की कोशिश की।
इन तीन-चार दिनों में मेरी पीड़ा कम हो गई थी.. पर फिर भी मैं जानबूझ कर पीड़ा होने का नाटक कर रहा था।
‘तुम्हें अब दर्द नहीं होता ना?’ टीचर ने मेरे खुले लण्ड को देखते हुए पूछा।
‘होता है..’ मैं दर्द का नाटक करते हुए बोला।
‘कहाँ..?’
‘हर जगह..’ मैंने कहा।
‘रुको.. इसे बर्फ से सेंकते हैं।’
‘नहीं बर्फ से तकलीफ होगी..’ मैंने मना करते हुए कहा।
‘नहीं… उल्टा आराम मिलेगा।’
‘नहीं.. आप फूँक मारती हैं ना.. वही ठीक है.. क्रीम से भी अच्छा आराम मिला है।’
‘लो क्रीम लगा लो।’
‘आप नहीं लगाएंगी?’
‘अब पहले से ज्यादा आराम मिला है ना.. खुद लगा सकते हो।’
‘वो क्रीम की वजह से नहीं.. आपके हाथ का जादू है.. जो इतने कम समय में तकलीफ कम हुई।’
वो कुछ नहीं बोलीं.. बस मेरी तरफ देख कर मुस्कुराईं।
‘ज्यादा दर्द कहाँ होता है?’ मेरे सुपाड़े को हाथ लगाते हुए उन्होंने पूछा।
‘जहाँ आपने हाथ लगाया है.. वहाँ भी होता है।’
‘शायद अंदरूनी मार होगी..’ कहते हुए उन्होंने सुपारे के चमड़े को अपने हाथ से हौले-हौले पीछे किया।
मेरा लाल लाल सुपाड़ा उनकी आँखों के सामने था। लण्ड तो पहले से तना था.. सुपारे की चमड़ी उनके द्वारा पीछे किए जाने से वो फड़फड़ाने लगा।
‘कितना उड़ रहा है ये..? गरम भी काफी हुआ है।’ टीचर ने फिर चमड़ी को आगे करते हुए कहा।
‘हॉट डॉग है ना.. गरम तो रहेगा ही।’ मैंने हँसकर कहा।
पर जैसे ही मैंने हॉट डॉग का नाम लिया.. उन्होंने फिर से लण्ड पर घूंसा मारा।
‘आउच..’ मैं दर्द से कराहा।
वो फिर से उसे हाथ में लेकर सहलाने लगीं, ‘ज्यादा जोर से लगा..?’ सहलाते हुए उन्होंने पूछा।
आज वो हमेशा की तरह क्रीम लगाने वाली स्टाइल से लण्ड को नहीं सहला रही थीं.. बल्कि मुठ्ठ मारने वाली स्टाइल से उसे आगे-पीछे करके अपने हाथों से रगड़ रही थीं।
मेरे लण्ड से चिपचिपा पानी निकल कर उनके हाथ में लग रहा था। मैं मस्त हो ‘अह्ह्ह.. अह्ह्ह..’ की आवाजें निकालने लगा था।
‘कितना चिपचिपा हुआ है देखो..’ अपने हाथ मुझे दिखाते हुए उन्होंने मुझसे कहा।
मैंने उनके हाथ अपने हाथों में पकड़े और उन पर किस किया।
‘यह क्या कर रहे हो?’
‘आपके इन हाथों ने जो मेहनत की है.. उसका फल इन्हें दे रहा हूँ।’
‘सिर्फ हाथों को? और भी बहुत सी जगह हैं.. जिनको उनका फल मिलना बाकी है।’
‘आप बताओ ना.. किन-किन जगहों को उनका फल देना है?’
‘एक जगह हो तो बताऊँ..? बदन के हर एक इंच जगह पर ऐसी जगह मिलेगी.. जिनको फल की अपेक्षा है।’
उनके जवाब पर मैं कुछ बोला नहीं.. बस उनकी तरफ देखता रहा। वो भी मेरी तरफ प्यासी निगाहों से देख रही थीं।
कुछ पल की ख़ामोशी के बाद मैंने उन्हें अपनी बाँहों में ले लिया, वो भी बिना किसी हिचकिचाहट के मेरी बाँहों में समां गईं।
अगले ही पल हमारे होंठ आपस में टकराए, वो मुझे.. और मैं उन्हें.. बेतहाशा चूमने लगे।
चूमते-चूमते उन्होंने मेरे कपड़े उतारने शुरू किए.. मैंने भी उनको फॉलो करते हुए उनके कपड़े उतार दिए। अब हम दोनों भी निर्वस्त्र होकर सोफे पर एक-दूसरे को सहला रहे थे और साथ ही किस भी कर रहे थे।
मैंने सर से पाँव तक उनके सारे बदन को किस किया.. उन्होंने भी मुझे नीचे लिटाकर मेरे पूरे बदन को चूमा।
बदन चूमने के बाद वो मेरी कमर पर आ बैठीं। फिर मेरे लण्ड को अपने हाथों में लिया और अपनी चूत पर कुछ देर रगड़ा।
इस रगड़ से दोनों को ही काफी मजा आ रहा था। फिर उन्होंने एकदम आहिस्ते-आहिस्ते मेरा लण्ड अपनी चूत में जड़ तक अन्दर ले लिया।
कुछ देर इसी अवस्था में बैठकर वो लण्ड को चूत में लिए मेरे बदन पर लेट गईं। लेटे हुए वो मेरी गर्दन को.. गालों को.. होंठों को.. तथा सीने को चूम रही थीं।
मैंने भी उनका साथ देते हुए उनके बालों को सहलाते हुए उन्हें किस करना शुरू किया, फिर नीचे से आहिस्ते-आहिस्ते अपनी कमर हिलाकर लण्ड को चूत में अन्दर-बाहर करने लगा।
वो मस्त हो लण्ड को चूत में ले रही थीं। साथ ही ऊपर से अपनी कमर हिलाकर लण्ड को अन्दर-बाहर लेने में मेरी सहायता कर रही थीं।
ये दौर कुछ देर यूँ ही चलता रहा.. कुछ देर बाद वो उठीं और मुझे अपने बेडरूम में ले गईं।
बेडरूम में जाकर वो मेरे कंधे पकड़ कर नीचे लेट गईं.. फिर मेरे गले में हाथ डालकर मुझे अपने ऊपर खींच कर किस करने लगीं।
मैंने भी कुछ देर किस करते हुए उनकी चूत की फाँक पर अपना लण्ड रगड़ा।
‘अन्दर डालो न..’ कहते हुए उन्होंने मेरे होंठों को हल्के से काट लिया।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मैंने भी उनके होंठों को हल्के से काटा.. फिर उनके बदन से उठकर उनकी टाँगें फैला दीं। उनकी चूत की फाँक पर अपना सुपाड़ा रखा और दो-तीन शॉट में लण्ड को चूत की जड़ तक अन्दर डाल दिया।
लण्ड जड़ तक डालने के बाद मैं उनके ऊपर लेट गया और उन्हें किस करने लगा।
उन्होंने भी अपनी टाँगें मेरी कमर पर लपेट लीं और कमर मचकाते हुए मुझे किस करने लगीं।
वो नीचे से और मैं ऊपर से दोनों ही अपनी कमर हिला-हिला कर चुदाई का आनन्द ले रहे थे।
ये सिलसिला तब तक चला जब तक दोनों झड़ के निढाल न हुए।
जैसे ही दोनों झड़े दोनों ने कसकर एक-दूसरे को जकड़ लिया.. कुछ देर फड़फड़ाए और फिर शांत हो लेटे रहे।
उनके हॉटडॉग ने अपना बंगला ढूँढ लिया था।
आपको इस कहानी को लेकर कोई सुझाव देने हो तो कृपया नीचे दिए गए मेल पर अपने विचार लिखिए।
[email protected]
What did you think of this story??
Comments