माँ का यार, मेरा प्यार-2

(Maa Ka Yaar, Mera Pyar- Part 2)

कहानी का पिछला भाग: माँ का यार, मेरा प्यार-1
एक दिन मैं सर के पास ट्यूशन पढ़ रही थी। मैंने काले रंग की जीन्स टॉप पहना था। मैं थोड़ा झुक कर लिख रही थी। सवाल लंबा था, काफी समय लगा लिखने में।
जब लिख कर मैंने अपना सर ऊपर उठाया, तो अरविंद सर एकदम से चौंक गए। वो चौंके तो मैं भी चौंक गई क्योंकि सिर्फ एक सेकंड के पालक झपकने के साथ ही मैंने अरविंद सर की चोरी पकड़ ली।
हुआ यूं कि जैसे मैं झुक कर लिख रही थी, तो मेरा दुपट्टा नीचे सरक गया और अरविंद सर मेरे 36 आकार में मम्मों को चोरी चोरी ताड़ रहे थे।

अब जब मुझे पता चला कि अरविंद सर मेरे मम्मे घूर रहे थे तो मैंने उनको टोका- क्या सर, किधर ध्यान है आपका?
बेशक मैंने तो उनको मज़ाक में टोका था, मगर वो बड़े गम्भीर लहजे में बोले- तुम बिल्कुल अपनी मम्मी जैसी हो।
मतलब साफ था कि माँ के मोटे मोटे मम्मे चूसने के बाद अब उनकी गंदी निगाह मेरे मम्मों पर थी।

मैंने अपना आँचल तो ठीक कर लिया और उसके बाद कोई खास बात भी नहीं हुई। मगर बाद में घर आकर मुझे ख्याल आया कि क्या अरविंद सर मुझे भी चोदना चाहते हैं।
फिर मुझे उस दिन का सीन याद आया, जब माँ उनका मस्त लंबा मोटा लंड चूस रही थी। उनके लंड की याद आते ही मेरे तन बदन में सनसनाहट हुई। मेरे दिल में भी विचार आया कि अगर अरविंद सर की मेरे साथ सेटिंग हो जाए, तो क्या उनका मस्त लंड मैं भी ले सकती हूँ।
फिर सोचा कि ‘हाँ, ले सकती हूँ, दिक्कत क्या है। माँ के साथ वो अपना रिश्ता अलग से रखें, मेरे साथ अलग रखें।’

यही सोच कर मैंने फैसला कर लिया कि अगर अरविंद सर ने मुझसे सम्बन्ध बनाने चाहें तो कोई बात नहीं। वैसे भी तो मुझे सिर्फ लंड ही तो चाहिए, फिर वो किसी का भी हो।

यही सोच कर मैंने अगले दिन से ही जानबूझ कर अरविंद सर को पूरी लिफ्ट देनी शुरू की। जानबूझ कर उनसे सट कर बैठती, उनके सामने झुक जाती ताकि वो मेरे मम्मों को ताड़ सकें. और जब वो मेरे मम्मों को ताड़ने के बाद मेरी आँखों में देखते तो मैं मुस्कुरा देती।

बल्कि एक दो बार तो मैं जानबूझ कर उनकी गोद में भी बैठी ताकि वो मेरी नर्म गांड का और मैं उनके कड़क लंड को महसूस कर सकूँ।

और फिर एक दिन मेरी मेहनत रंग लाई, मैं अरविंद सर के सामने जानबूझ कर झुक कर लिख रही थी. मुझे पता था कि वो मेरे मम्मे ही ताड़ रहे होंगे. मैं जान बूझ कर ऊपर नहीं देख रही थी कि कहीं वो झेंप न जाएँ।

और फिर अचानक ही वो हुआ जिसका मुझे इंतज़ार था। अरविंद सर ने हिम्मत करके अपना हाथ आगे बढ़ाया और मेरा मम्मा पकड़ कर दबा दिया।
मैं एक बार तो आश्चर्यचकित सी हुई, मैंने बुरा मानने की बजाए मुस्कुरा कर उनकी ओर देखा।

मैंने सिर्फ इतना कहा- आउच!
बस मेरे इसी इशारे का उनको इंतज़ार था। उसके बाद वो मुझसे लिपट ही गए, मैंने कोई ज़्यादा चिल्लम्पों नहीं की, बस इतना सा कहा- अरे सर, क्या कर रहे हो आप?
उन्होंने मुझे और कस कर अपनी बांहों में जकड़ लिया और बोले- आज कुछ मत बोलो, आज जो होता है हो जाने दो।
मैंने फिर कहा- सर कोई आ जाएगा।
वो बोले- और अगर कोई न आया तो?

मैं चुप रही और उनकी आंखों में देख रही थी, वो भी मेरी आँखों में देखते रहे और फिर तो मेरे दोनों मम्मे मेरी टी शर्ट के ऊपर से ही पकड़ कर दबाने लगे। जैसे देखना चाहते हों कि अगर मैं तुम्हारी आँखों में आखें डाल कर तुम से बदतमीजी करूँ, तो तुम क्या करोगी, या क्या कर सकती हो।

मैंने क्या करना था, मैं तो पहले ही ये सब करवाना चाहती थी, मैंने क्या मना करना था उनको। अब जब हम दोनों एक दूसरे को मुखतिब थे और मेरे सामने ही उन्होंने मेरे दोनों मम्मे अपने हाथों में पकड़ रखे थे, और मैं भी चुप थी, तो सब मामला साफ हो चुका था, मैं भी तैयार थी, वो भी तैयार थे.

तो मैंने भी उनको अपने आप से चिपका लिया। कुछ देर हम दोनों एक दूसरे को बांहों में कसे रहे, फिर अरविंद सर ने मुझे थोड़ा सा अलग किया, मगर बांहों के घेरे से आज़ाद नहीं किया- ओह मेरी प्यारी गुड़िया, दिल करता है तुम्हें चूम लूँ।
मैंने कुछ नहीं कहा तो उन्होंने मेरा चेहरा थोड़ा सा ऊपर को उठाया, उन्होंने अपने होंठ मेरे होंठों पर रखे और हम दोनों ने एक दूसरे को खूब चूमा, खूब चूसा।
उनका तो पता नहीं, मगर इतने महीनो बाद किसी मर्द से चूमा चाटी करके मुझे बहुत मज़ा आया।

सर ने भी मेरी आँखों में देखते हुये, मेरे मम्मों को अपने हाथों से दबा कर सहला कर देखा और मेरी जीन्स के ऊपर से ही मेरे चूतड़ों को भी खूब दबाया। मैं उनके सीने से सर लगाए, उन्हें वो सब कुछ करने दे रही थी, जो शायद वो कब से करना चाहते हो, या फिर जो वो मेरी माँ के साथ भी ये सब पहले कर चुके हों।

इस तरह से मेरा बदन सहलाने से, दबाने से मेरे मन में भी बहुत से नए नए ख्वाब बुन रहे थे। मैंने अपना चेहरा खुद ऊपर उठा कर देखा, वो नीचे को झुके और इस बात मैंने अपने होंठ उनको होंठों के सुपुर्द कर दिये। एक प्रगाढ़ और लंबा चुंबन, जिसमें वो मेरे होंठों की सारी लिपस्टिक चाट गए, खा गए।

सच में बहुत मज़ा आया, मुझे इस चुंबन से। मैं चाहती थी कि अरविंद सर मुझे इसी तरह से चूमते रहे, चाटते रहें।

मगर उनके दिमाग में और आगे के प्लान भी थे। मेरे होंठों को चूसते हुये ही उन्होंने अपने दोनों हाथ पीछे से मेरी टॉप के अंदर डाल दिये, और अपने हाथ से पीठ को सहलाते हुए मेरे ब्रा तक ले गए, और फिर मेरी ब्रा की हुक खोल दी।

हुक खुलते ही ब्रा ढीली हो गई तो अरविद सर ने अपने हाथ मेरे टॉप के अंदर ही पीठ से घूमा कर आगे ले आए और मेरे ब्रा के दोनों कप ऊपर उठा कर मेरे दोनों मम्मों को पकड़ लिया। मर्द का स्पर्श मुझे बेहद रोमांचित कर रहा था और अपने मम्मे उनके सख्त हाथों में सौंप कर मुझे तो असीम सुख मिला।

दोनों मम्मों को उन्होंने ऐसे पकड़ा जैसे कोई काँच की नाज़ुक चीज़ पकड़ते हो, बड़े प्यार से पर पूरी एहतियात से। दोनों को दबाया और फिर दोनों निप्पल्स को अपनी उंगलियों में पकड़ का हल्के से मसला।
मुझे हल्का सा मज़ा और थोड़ी सी तकलीफ़ हुई तो मेरे होंठों से एक नन्ही सी सिसकी ‘इस्स…’ निकली जो उनकी ज़ुबान पर मिस्री की तरह घुल गई।

शायद मेरी यह सिसकी उन्हें बहुत स्वाद लगी, इसीलिए वो बार बार मेरे निप्पल्स को मसलते और जब भी मैं उन्मादित होकर सिसकी भरती, वो अपनी ज़ुबान से मेरे होंठों से निकालने वाली हर सिसकी को चाट जाते।
उन्होंने मुझे भी कहा कि मैं भी अपनी ज़ुबान से उनके होंठ चाटूँ।

मैंने ऐसा किया भी … मगर मैं शायद इस काम में इतनी निपुण नहीं थी तो सर ही मेरे होंठों को चूसते रहे, चाटते रहे।

फिर वो नीचे को झुके और उन्होंने मेरा टॉप ऊपर उठा दिया। नीचे दो दूध जैसे गोरे, गोल, उठे हुये मम्मे देख कर वो बोले- अरे वाह, क्या बात है!

मैं कुछ कहती इस पहले ही मेरा एक निप्पल उनके मुंह में था। किसी भूखे बच्चे की तरह से वो मेरा निप्पल चूसने लगे, जैसे अभी इस में से उनके लिए दूध की धार बह निकलेगी।
मैं भी उनके सर के बालों में अपनी उंगलियाँ घुमा रही थी, मेरी आँखें बंद थी, और मैं सिर्फ इस आनन्दभरे लम्हों का लुत्फ ले रही थी।

बारी बारी से उन्होंने मेरे दोनों मम्मे चूसे। मैं आँखें बंद करे उनके चूसने काटने पर सिर्फ सिसकियाँ भरती रही। पहले अरविंद सर मेरे चूतड़ सहलाते रहे मगर फिर उनके हाथ आगे आए और उन्होंने मेरी बेल्ट खोली, मेरी जीन्स खोली और मेरी चड्डी के साथ ही मेरी जीन्स मेरे घुटनों तक नीचे सरका दी।

फिर मेरे मम्मे छोड़ कर नीचे देखा। मैं तो उनके सामने नंगी हो चुकी थी।

पहले से ही यह मुझे आभास था कि सर जल्द ही मेरे साथ कुछ न कुछ करेंगे, तो मैं अपने जिस्म के सारे अनचाहे बाल साफ़ करके ही रखती थी।

दूध जैसे सफ़ेद मेरी छोटी सी फुद्दी देख कर अरविंद सर का चेहरा चमक उठा। उन्होंने पहले अपने हाथ से मेरी फुद्दी को छूकर देखा, मैं एकदम से पीछे को हटी। तो उन्होंने मुझे अपनी मजबूत बांहों में उठा लिया और सीधे बेड पे पटक दिया।

मैं जैसे ही बेड पर गिरी, उन्होंने मेरे पाँव पकड़े, मेरे जूते, जुराबें, जीन्स और चड्डी सब उतार दी, और मेरी टाँगें खोल कर मेरी फुद्दी देखनी चाही.
मैंने अपने हाथों से अपनी फुद्दी छुपा ली और अपनी टाँगें भींच ली।

मगर अरविंद सर ने अपनी ताकत से मेरे हाथ हटा दिये, और मेरी टांगें भी पूरी खोल दी.
मेरी पूरी फुद्दी उनके सामने जलवाफ़रोश हो गई।

वो एकदम से झुके और मेरी फुद्दी को अपने मुंह में भर लिया. जैसे ही अपनी जीभ उन्होंने मेरी फुद्दी में घुमाई, मैं मचल गई। मैंने उनके सर के बाल अपने हाथों में पकड़ लिए और वो मेरी फुद्दी को ऐसे चाट गए जैसे कोई बहुत ही स्वादिष्ट चीज़ हो।

जब इस तरह का भीषण आनन्द मुझ पर बरसा तो मैंने खुद ही अपना टॉप और ब्रा भी उतार फेंका, मेरे दोनों हाथ मेरे मम्मों पर थे और मैं सर की इधर उधर पटकती, अपनी जांघों को बार बार भींचती, और अपनी ऐड़ियां रगड़ती रही।

फिर अरविंद सर उठ कर खड़े हुये, उन्होंने अपनी कमीज़ उतार दी और फिर अपनी पेंट और चड्डी भी खोल दी।
उनका मोटा लंबा लंड सीधा तना हुआ था। वो लंड जिसे उस दिन मेरी माँ किसी लोलीपोप की तरह चूस रही थी।

सर ने अपना लंड अपने हाथ में पकड़ कर हिलाते हुये पूछा- चूसोगी?
दिल में एक बार तो विचार आया कि माँ भी चूस रही थी, तो टेस्टी तो होगा ही, चूसूँ, या न चूसूँ।
पर अभी मैं इस बात के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं थी, तो मैंने मना कर दिया।

सर आगे को आए और उन्होंने मेरी दोनों टांगें खोल कर बीच में आ गए, मैंने लेटे लेटे उनको देखा, उन्होंने अपने लंड के टोपे पर थोड़ा सा थूक लगाया और अपने लंड को मेरी फुद्दी से लगाया।
मैं अरविंद सर को देख रही थी, मैं देखना चाहती थी कि जब वो अपना लंड अपनी माशूका की बेटी की फुद्दी में डालेंगे तो उनके चेहरे पर क्या भाव होंगे।

अरविंद सर ने अपना लंड मेरी फुद्दी पर रख कर अपनी आँखें बंद कर ली और ज़ोर लगा कर अपने लंड को मेरी फुद्दी में घुसेड़ा।
बेशक मैं पहले भी जब गर्म होती थी, तो अपनी फुद्दी में कुछ न कुछ ले लेती थी, ज़्यादातर तो अपनी दो उंगलियाँ ही लेती थी, मगर मेरे हाथ की दो उंगलियों और सर के मोटे ताज़े लंड के बीच बहुत फर्क था।

जैसे ही उनके लंड का टोपा मेरी फुद्दी में घुसा तो एक दर्द और आनन्द की लहर एक साथ मेरी फुद्दी से चल कर मेरे पेट, स्तनों से होती हुई मेरी चेहरे तक आई। प्रथम संभोग का एक अजब सा रोमांच, एक तेज़ पीड़ा, और परमानन्द की अनुभूति। सब कुछ एक साथ मेरे पर बरस गया।

और जब अरविंद सर के लंड का टोपा मेरी फुद्दी में घुसा, तो सर के चेहरे पर भी आनन्द का भाव आया और उनके मुंह से हल्के से निकला- ओह सरिता!
मैं एकदम चौंकी- सर आप माँ को याद कर रहे हो, इस वक्त जबकि मैं आपके साथ हूँ।
वो बोले- अरे यार, तुम बिल्कुल अपनी माँ जैसी हो, बेशक वो तुमसे ज़्यादा भरी हुई है, मगर आँखें बंद कर के पता ही नहीं चलता कि माँ है या बेटी।

मैंने पूछा- आप मेरी मम्मी से बहुत प्यार करते हो?
वो बोले- बहुत से भी बहुत ज़्यादा!
मैंने कहा- तो आप मेरी मम्मी से शादी क्यों नहीं कर लेते?
सर ने थोड़ा और ज़ोर लगाया और अपना कड़क लंड मेरी गीली फुद्दी में पूरा उतार कर बोले- नहीं यार, अपनी बीवी से सेक्स में वो मज़ा नहीं आता, जो दूसरे की बीवी को चोदने में आता है।

मैंने थोड़ा सा तकलीफ को बर्दाश्त करते हुये पूछा- और मैं?
वो बोले- अरे तुम तो जैकपॉट हो। किसी भी मर्द से पूछ कर देखना कि अगर तुम्हारी माशूका की बेटी भी तुमसे चुदवा जाए, तो तुम्हें कैसा लगेगा। सब का एक ही जवाब होगा, बस यूं समझो कि जैकपॉट लग गया ज़िंदगी का।
मैंने पूछा- ऐसा क्यों?
अरविंद सर बोले- अरे यार ये 40 साल के बाद की उम्र ही ऐसी होती है, माँ भी पसंद आ जाती है, क्योंकि अभी भी उसमें आकर्षण बाकी होता है. और उसकी बेटी भी पसंद आ जाती है, क्योंकि नई नई चढ़ती जवानी, और लड़की के जिस्म उभर रहे गोल गोल उभार किसी के भी मुंह में पानी ला देते हैं।

मैंने कहा- तब तो सब मर्द बड़े ठर्की होते हैं।

अरविन्द सर बोले- क्यों औरतें क्या ठर्की नहीं होती? मर्द अगर किसी से रिश्ता बनाएगा, तो किसी औरत से ही बनाएगा। अब अगर सरिता ठीक होती तो मेरी क्या मजाल थी कि मैं उसके साथ नाजायज सम्बन्ध बना पाता। उसने मेरे साथ नाजायज सम्बन्ध बनाए तो मैंने उसके साथ। और इस बीच तुम आ गई, तो अब तुमसे भी बन गए। अब बताओ, मेरा क्या क़ुसूर?

मैंने अपनी टांगें ऊपर हवा में उठा दी, ताकि अरविंद सर का लंड अच्छे से मेरी फुद्दी में घुस सके और बोली- वा वा वाह … यानि के सारा दोष हम औरतों का?
वो हंस दिये और मेरे होंठों को चूम कर बोले- अरे नहीं मेरी जान, मेरे कहने का मतलब कि दोष तो दोनों का ही होता है क्योंकि जो भी इस सम्बन्ध में आता है, अपनी मर्ज़ी से आता है और बराबर का भागीदार होता है।

मैंने अरविंद सर के कंधों को सहलाते हुये पूछा- आप माँ को बताओगे अपने इस रिश्ते के बारे में?
उन्होंने पहले मेरे निप्पल को चूसा और फिर बोले- अगर उसे पता चल गया, तो बता दूँगा, अगर न पता चला, तो न सही।

मैंने कहा- और अगर पता चल गया तो फिर क्या करोगे?
वो शैतानी स्टाइल में बोले- तो फिर इस बिस्तर पर तुम्हारे साथ तुम्हारी माँ भी होगी। दोनों माँ बेटी एक साथ!

वो हँसे, मैंने उन्हें मुंह चिढ़ा कर कहा- माँ बेटी एक साथ, बिल्कुल भी नहीं। आप ऐसा कुछ नहीं करोगे। मम्मी के साथ अलग और मेरे साथ अलग।
वो अपनी चुदाई की स्पीड थोड़ा बढ़ा कर बोले- और मेरी बीवी?
मैंने कहा- उसके साथ अलग।
हम दोनों हंस पड़े।

फिर अरविंद सर बोले- ऋतु, घोड़ी बनोगी?
मैंने कहा- नहीं, मुझे कुतिया बनना पसंद है।

उन्होंने अपना लंड मेरी फुद्दी से निकाला और पीछे को हटे तो मैं उनके नीचे से ही घूम कर कुतिया बन गई। अरविंद सर ने मेरे चूतड़ पर कस कर एक चांटा मारा और बोले- कुतिया तो तू है ही, मादरचोद।
उनके हाथ की मार और शब्दों की मार मेरे मन को छू गई, मैंने कहा- आहह… और मारो अरविंद, और गाली दो, तुम तो मेरी जान ही ले लो आज।

अरविंद सर ने मेरे दूसरे चूतड़ पर भी ज़ोर से चपत लगाई और उनके हाथ की उंगलियाँ मेरे दोनों चूतड़ों पर छाप गई।

मेरे दोनों चूतड़ खोल कर उन्होंने कहा- उफ़्फ़ … क्या मस्त गांड है तेरी … बिल्कुल कुँवारी, अनचुदी एकदम ताज़ा!
और वो मेरी गांड पर ही मुंह लगा कर अपनी जीभ से मेरी गांड चाटने लगे और गांड चाटते चाटते मेरी फुद्दी भी चाट गए।

मैं तो आनन्द से विभोर हो गई, तड़प गई, अंदर तक मचल गई।

अरविंद सर ने मेरे दोनों चूतड़ों के सहलाया और फिर एक साथ दोनों हाथों से दोनों चूतड़ों पर जोरदार चपत लगाईं।
मेरे मुंह से ‘आह … ह…’ निकलते ही अपना लंड फिर से मेरी फुद्दी में घुसेड़ दिया- ले साली कुतिया, ले अपने यार का लौड़ा ले। एक तेरी माँ कुतिया, जो इसे खा जाती है, जानती है साली, तेरी रंडी माँ के हर सुराख को मैंने अपने लंड से भेद रखा है। उस बड़ी कुतिया की फुद्दी, गांड, मुंह सब को चोद कर मैं अपने माल से भर चुका हूँ। और अब तेरी भी मैं वही हालत करूंगा। तेरे जिस्म के हर छेद को अपने वीर्य से भर दूँगा।

उन्होंने मेरे सर के बाल पकड़ लिए और बालों से ही मुझे कंट्रोल कर रहे थे। जब पीछे से घस्सा मारते और मैं आगे को जाती तो वो मेरे सर के बाल खींच कर ही मुझे पीछे को खींचते। एक तरफ फुद्दी में अपने यार से चुदाई का मज़ा और दूसरी तरफ सर के बाल खींचे जाने की सज़ा।
मगर मुझे मज़ा ज़्यादा और सज़ा बहुत कम महसूस हो रही थी।

जो हाथ सर का खाली था, उससे वो मेरी गांड को पीट रहे थे, मेरे जिस्म को अपनी मुट्ठियों में नोच रहे थे।

यह खेल यूं ही चलता रहा, तब तक जब तक मैं मर न गई।
हाँ, लंड से चुदाई करवा कर झड़ने का, अपना पानी गिराने का पिछले कई महीनों में ये मेरा पहला अवसर था, तो मैं जब झड़ी तो निढाल होकर नीचे को ही गिर गई।

मगर अरविंद सर ने मुझे पूरी तरह से अपने काबू में रखा, मैं ऐसी तड़पी के मेरे मुंह से लार टपकने लगी और बिस्तर की चादर पर गिरने लगी. मेरी आँखों से आँसू निकाल पड़े, खुशी के, दर्द के पता नहीं।
मैं ऐसे निढाल सी हो गई, जैसे मर गई हूँ।

मगर सर पीछे से मेरी फुद्दी को चोदते रहे।

करीब 4-5 मिनट बाद सर ने भी एक झटके से अपना लंड मेरी फुद्दी से निकाला और मेरी गांड मेरी पीठ को अपने गाढ़े सफ़ेद वीर्य से नहला दिया।

झड़ने के बाद वो भी मेरे ऊपर ही लेट गए। भारी मर्दाना बदन ने मुझे कुचल कर रख दिया मगर इसमें भी मुझे बहुत अच्छा लगा। फिर सर उठे और बाथरूम में चले गए, पीछे पीछे मैं भी चली गई।

उन्होंने मेरी तरफ अपना लंड करके पेशाब किया।
उस दिन मैंने पहली बार किसी मर्द को मूतते देखा।

फिर उन्होंने अपना लंड धोया, कुल्ला किया और बाहर आ गए। मैं भी फ्रेश हो कर बाहर आ गई।

कपड़े पहन कर बिस्तर सेट करके कमरे में थोड़ा फ्रेशनर छिड़क कर हम दोनों ड्राइंगरूम में आ गए।

उसके बाद मैं अपने घर आ गई। घर में मम्मी रसोई में खाना बना रही थी हल्के गुलाबी रंग की नाईटी पहने। नाईटी के नीचे मम्मी ने कुछ नहीं पहना था. उनके आज़ाद खुले झूलते मम्मे और मोटे मोटे थिरकते चूतड़ साफ दिख रहे थे।
मम्मी के बदन की गोलाइयाँ देख कर मुझे सर की बात याद आ गई ‘बड़ी कुतिया’
और मैं माँ से नहाने का कह कर अपने कमरे में चली गई।
[email protected]

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top