तू नहीं और सही-1
प्रेषिका : दिव्या डिकोस्टा
मैं गोवा में रहती हूँ, एक केथलिक स्कूल में 12वीं में पढ़ती हूँ। मैं कक्षा में सबसे आगे बैठती हूँ। मेरे पीछे विशाल बैठता है। मुझे पता था कि वो मेरा आशिक है। यूँ तो मेरे में कोई खास बात नहीं थी पर हाँ, उम्र के हिसाब से मेरा शरीर जरूर जवान दिखता था। फिर यह विपरीत सेक्स का आकर्षण भी है। मेरी छाती के गोले उम्र के हिसाब से कुछ अधिक ही बड़े हैं तो मैं सेक्सी भी लगती हूँ। मेरी सफ़ेद स्कूल की शर्ट में भी मेरी चूचियाँ कुछ अधिक ही कसी हुई बाहर से ही अपना जलवा दिखाती हैं। मेरी स्कूल की नीली फ़्रॉक जो घुटने से ऊपर होती है, नीचे मेरी चिकनी सांवली टांगें लड़कों को जरूर आकर्षित करती हैं। मेरी टीचर सेण्डी मिस मुझसे बहुत प्यार करती हैं। मिस की नजर विशाल पर भी है।
विशाल अक्सर मुझे पीछे से एक चिट लिख कर पास कर देता है, मेरी सहेलियाँ यह सब जानती हैं। वो चुपके से मुझे वो चिट पास कर देती हैं। उसमें स्कूल के बाद कॉफ़ी पीने या ठण्डा पीने की दावत होती है। यह चिट कई बार मिस पकड़ भी लेती हैं और विशाल को कमेंट भी कर देती हैं कि मिस को भी पिला दो कभी कॉफ़ी। तब पूरी कक्षा खूब हंसती।
सेण्डी मिस मेरी ही बिरादरी की एक गोअन जवान इसाई केथलिक लड़की है। कोई 21-22 उम्र की होगी। गोवन स्टाईल का ही सांवला रंग चेहरे का, चिकना चमकदार चेहरा, बड़ी बड़ी लुभावनी आँखें … उसकी चूचियाँ बड़ी और अधिक उभार लिये हुये भारी भारी सी हैं जो कि उसकी कमीज में से ऊपर को आधे बाहर निकली हुई सांवली रंग की चमचमाती हुई सभी को नजर आती हैं। पतली कमर … उस पर एक काला बेल्ट कसा हुआ। नीचे उसकी लगभग काली काली सी चिकनी टांगें, जांघें अपेक्षाकृत कुछ साफ़ रंग की। उसकी तंग सी स्कर्ट उसे स्मार्ट का लुक देती है। उसके चूतड़ बड़े बड़े और उसकी टाईट स्कर्ट में उनके शेप और साइज हूबहू नजर आते हैं जो छात्रों के अपरिपक्व मन पर बिजलियाँ सी गिराते हैं। उसकी हंसी बड़ी मोहक है। मेज के नीचे उसकी टांगें लगभग खुली खुली सी रहती, पर शायद उससे वो अनजान बनी रहती है। उसकी भीतर तक की सफ़ेद कसी हुई पेंटी तक नजर आ जाती है। लड़के चुप से उसका आनन्द लेते रहते और मेरी नजरें भी देख देख कर शर्मा सी जाती हैं।
“विशाल, छुट्टी होने के बाद प्लीज थोड़ा रुक जाना।” सेण्डी मिस ने विशाल को कहा।
“जी मिस !”
“और दिव्या, तुम दो बजे ठीक समय पर आ जाना।”
मैंने सर हिलाया और अपना बैग उठा कर चल दी।
“दिव्या, सॉरी… कॉफ़ी कल पियेंगे…!”
अरे मैं पिला दूंगी उसे विशाल… मेरी मदद करो, तुम खाना वाना खाकर दो बजे कॉपी का यh बण्डल प्लीज मेरे घर पर पहुँचा देना।”
“जी मिस … यह दिव्या आपके यहां ट्यूशन पर आती है ना !”
“हां ! तो…?”
“मिस, क्या आप मुझे भी गाईड कर देंगी?”
“ठीक है, तीन सौ रुपये लेती हूँ, घर पर बोल देना।”
उत्सुकतावश मैं दरवाजे की साईड पर आकर छिप गई थी। मैंने एक बार दरवाजे से फिर से कक्षा में झांका। बातें सुन कर मुझे तो लगा कि जैसे विशाल मेरे पीछे ही पड़ गया था। मेरे मन में एक गुदगुदी सी हुई। कहता क्यों नहीं है कि दिव्या मैं तुम्हें प्यार करता हूँ। उंह ! एक ना एक दिन तो कह ही देगा … नहीं तो मैं ही उसे कह दूँगी। फिर मुस्करा कर मैने अपने कदम आगे बढ़ा दिये।
दो बजे मैं तो ठीक समय पर मिस के घर आ गई थी। कुछ ही देर में विशाल भी कॉपियों के दो तीन बण्डल लिये हुये चला आया था। मुझे देख कर वो मुस्कराया। मैंने भी मुस्करा कर ऑपचारिकता पूरी की। मिस ने उससे कॉपियां लेकर अन्दर रख दी। इस समय मिस ने जीन्स की टाईट हाफ़ पैंट ऊंची सी पहन रखी थी। उनकी काली चमकीली और चिकनी टांगें बहुत सुन्दर लग रही थी। उनके चूतड़ तो वाकई उस कसे हुये हाफ़ पैंट में उभरे हुये और गहरे से लग रहे थे। शायद किसी मर्द के लिये वो जान लेवा हो सकते थे। अरे हां विशाल भी तो वहीं था। उसकी नजरें तो जैसे मिस के चूतड़ों पर जम सी गई थी।
मिस ने गणित की किताब रखी और पंखा ऑन कर दिया। फिर मेज पर आकर बैठ गई। उन्होंने अपने ढीले ढाले बिना आस्तीन के टॉप को पंखे के नीचे ऊपर नीचे हवा के लिये हिलाया और एक लम्बी सांस लेकर बोली- चलो खोलो ये वाला चेप्टर … अब ये उदाहरण देखो और फिर ये प्रोब्लम हल करके बताओ।
विशाल ने उनके टॉप के हिलते ही मिस के सुन्दर गेंद… नहीं शायद फ़ुटबॉल … ज्यादा बड़े हो गये !!!… हां … बड़े वाले गोल आम … ओह छोड़ो ना … जैसे बड़े मम्मों को एक गहरी नजर से देखा।
मुझे तो मिस के ऐसे करने से बहुत शरम आई। पर वो एकदम बेखबर सी थी। तभी मिस ने विशाल के हाथ से एक पर्ची झपट ली।
“ये क्या है?’
“जी… कुछ नहीं…”
“दिव्या … लव लेटर फ़ोर यू?”
मैं तो सकपका गई। मैंने अपने पैर की एक जोर से ठोकर विशाल को मारी।
“हाई … ओ गॉड … दिव्या, सॉरी बोलो… ये तो हमारा पांव है …”
“सॉरी मिस, ये विशाल भी ना … !’ मैं झेंप सी गई।
“विशाल खड़े हो जाओ … जैसे हमें मारा, दिव्या तुम भी विशाल के चूतड़ पर एक जोर का चपत मारो। इसकी सजा यही है!”
मैंने धीरे से अपने हाथ से विशाल के चूतड़ पर एक चपत मार दी।
“ऐसे मारते हैं चपत ? ये देखो ऐसे मारो…”
मिस ने मेरी चूतड़ को पहले तो सहलाया फिर एक चट से आवाज आई। मैं तो उछल सी गई।
अब इधर को देखो … मिस ने विशाल के चूतड़ की गोलाई को सहलाया और उस पर एक जोर से चपत लगाया। पर विशाल के चेहरे पर तो एक मुस्कान सी फ़ैल गई।
“अब तुम इसकी मारो…”
मैंने भी विशाल के गोल गोल चूतड़ को जान कर बड़ी कोमलता से सहलाया और जोर से चट से मार दिया।
“अब ठीक है … इस चिट में लिखा है … दिव्या, ट्यूशन के बाद कॉफ़ी पीने चलेंगे।”
मेरी तो शरम से गरदन झुक गई।
“कब से चल रहा है ये सब …? अच्छा चलो अब ये प्रोब्लम सोल्व करो … कॉफ़ी यहीं पी लो। हम पिलाता है।”
मिस अन्दर जाकर कॉफ़ी बनाने लगी।
तुमने मेरे चूतड़ पर जोर से क्यों मारा?”
“मुझे तो मजा आया … कितने गोल गोल और कड़े से हैं…”
“अभी बताता हूँ …!” विशाल को गुस्सा आ गया।
उसने मेरी बांह पकड़ी और खड़ी कर दिया। फिर जल्दी जल्दी से दो तीन बार मेरी चूतड़ को सहला सहला कर दबा कर चट चट से मार दिया। उसके ऐसा करने से मेरे तन में एक मीठी सी तरंग दौड़ गई। मैं तो लाज़ से गड़ सी गई।
“विशाल, और मार ना … मैंने मारा था ना …” मेरे शरीर में एक उत्तेजना की मीठी सी लहर दौड़ गई थी।
वो इस बार मेरे चूतड़ों को दबा दबा कर धीरे धीरे मारने लगा। मेरे शरीर में एक आग सी भरने लगी। मुझे लगा कि मैं विशाल से लिपट जाऊँ।
“विशाल, ये सब बन्द करो … क्यूँ करते हो ऐसा … दिव्या लगी तो नहीं…?”
पर मेरे चेहरे को देख कर समझ गई कि मुझे ये सब अच्छा लग रहा था। मिस भी ये सब देख कर कुछ कुछ रंगत में आने लगी थी।
“विशाल, तुमने बेबी को कहाँ-कहाँ मारा था, अब हमें भी मारो … चलो … और दिव्या तुम भी मारो …!”
पहले तो मेरी हिम्मत ही नहीं हुई। फिर मैंने ज्यों ही मिस के चूतड़ को हाथ लगाया तो मिस का शरीर कांप सा गया। उसके चूतड़ हाय राम कितने सधे हुये … और कड़े से थे … चिकने इतने कि … बस। मैंने दो तीन बार मिस के चिकने चूतड़ों पर हाथ फ़ेरा … और मारने के स्थान पर थपथपा दिया। विशाल ने भी ऐसा ही किया … सेण्डी मिस तो जैसे मस्त हो गई।
“मिस कॉफ़ी…”
“अरे हां …”
कॉफ़ी पीने के बाद मिस ने सवाल हल करने का तरीका बताया, फिर विशाल से कहा- तुम जाओ अब… कल समय से आ जाना।
“दिव्या तुम रुको …”
विशाल आज बहुत खुश खुश सा नजर आया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।
“बाय मिस … बाय दिव्या …”
“बैठो दिव्या … कैस लगता है तुम्हें ये विशाल?”
मेरी नजर जमीन पर गड़ गई।
“बोलो, शर्माओ मत …”
“अच्छा है मिस … शायद मुझे प्यार करता है?”
“सच … तो कल तुम भी उसे बता देना कि तुम भी उसे प्यार करती हो…”
“मिस शरम आती है ना…”
“जिसने की शरम, उसके फ़ूटे करम … चिन्ता मत करो मैं हूँ ना। उसे तुम्हारे चूतड़ बहुत पसन्द हैं, कैसे हाथ से सहला रहा था !!!”
“मिस… आप तो…”
मिस ने मुझे अपने से लिपटा लिया। और फिर मेरे गोल गोल चूतड़ों को दबाने लगी। मैंने अपनी आंखे ऊपर करके मिस को देखा …
उसने कहा- मजा आ रहा है ना …?
मैंने अपना सर हां में हिला दिया और फिर मैं मिस से लिपट सी गई। मिस वहीं कुर्सी पर बैठ गई और मुझे गोदी में बैठा लिया। मैं बड़ी सी और भारी सी उनकी जांघों पर बैठ गई। मिस ने प्यार से मेरे बालों में अपनी अंगुलियाँ फ़ेरी और मेरे चेहरे को चूम लिया। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। अचानक मेरे मम्मों को मिस ने दबा दिया। एक तेज सी गुदगुदी हुई और मैं सिमट सी गई।
“बहुत सधे हुये हैं !!!”
“मिस आपके तो अधिक सुन्दर हैं…”
“तो देख ले ना … हाथ लगा कर … उफ़्फ़ … दबा कर भी देख ले ना।”
मिस वासना की गिरफ़्त में थी। मैंने भी देखा कि मिस अभी मूड में है तो उनके कठोर उरोज सहला कर देखा। बहुत गोल गोल … बड़े बड़े … कठोर … निपल तो सख्त किसी शूल की तरह …
“दिव्या प्लीज … मेरे बेड रूम में चलो …” मिस के चेहरे से वासना का भरपूर अहसास होने लगा था।
मुझे भी उत्तेजना सी होने लगी थी। मैंने कुछ नहीं कहा … बस उनके साथ उनके बिस्तर पर चली आई। मिस ने अपना टॉप उतार दिया … किसी ब्रा की आवश्यकता नहीं थी मिस को। सीधे किसी पहाड़ की भांति खड़े हुये, तने हुये… उनकी आंखों में वासना के लाल डोरे खिंचे हुये थे। वो बिस्तर पर चित लेट गई। फिर वो मेरी तरफ़ बड़ी आसक्ति से देखने लगी। मुझे सब समझ में आ रहा था। मेरा जवान जिस्म भी मिस को देख कर डोलने लगा था।
मिस ने अपने हाथ खोल कर मुझे अपनी ओर बुलाया। मैं भी अपने आप को ना रोक सकी। मैं उनकी बड़ी बड़ी चूचियों को देखने लगी। मेरे हाथ अपने आप चूचियों की ओर बढ़ चले। मेरे हाथ रखते ही उसके मुख से एक सुख भरी सिसकी निकल पड़ी। उफ़्फ़ कितने बड़े और सॉलिड थे वे। चिकने सांवले से … निपल सीधे तने हुये, निकले हुये।
मैंने अपने हाथ के अंगूठे और अंगुलियों से उसके कड़क चूचे दबा दिये।
“इस्स्स्स … दिव्या … निपल को और जोर से दबा डालो …”
मैंने अपने निपल्स की ओर देखा … मुझे तो शरम सी आने लगी। उसके सामने छोटे छोटे, मुरझाये हुये से … और मेरे मम्मे उसके सामने छोटी गेन्द जैसे … छीः …
तभी मिस ने मेरा टॉप भी ऊपर कर दिया और मेरे गेन्दों को दबा कर मसल दिया। उसने मुझे अपने ऊपर खींच लिया और फिर हम दोनों चुम्मा-चाटी में लिप्त हो गये। हमारे कपड़े एक एक करके उतरते चले गये। जाने कब जोश ही जोश में नंगे हो गये।
“दिव्या … प्लीज मेरी चूत को चूस लो … प्लीज …”
मैंने उसकी चूत देखी तो सन्न सी रह गई। काली चूत और बड़ी बड़ी झांटे … बीच में खूनी लाल सी झांकती हुई लाल सुर्ख चूत … जाने किसके नसीब में थी उसकी बला की सेक्सी चूत।
“उईईई मिस … इतनी बड़ी बड़ी झांटें … ये तो रस से भीग गई हैं …”
“उफ़्फ़ … दिव्या … जल्दी से चूसो ना …”
उसकी गीली झांटों से मेरे होंठ गीले हो गये थे। फिर मैंने अपना मुख उसकी चूत में झांटों के साथ छुपा लिया। जीभ निकाल कर लप लप करके चाटने लगी। वो मारे उत्तेजना के बिस्तर पर लोट लगाने लगी। तभी उसने मुझे पलट कर दबा लिया और अपने नीचे मुझे दबा कर असहाय सा कर दिया। उसकी बड़ी सी चूत मेरी छोटी सी मुनिया को अब जोर से रगड़ रही थी। मेरा भी उत्तेजना के मारे बुरा हाल हो गया था। मारे आनन्द के मैं भी बेहाल हुई जा रही थी। उसका बड़ा सा शरीर मुझे मसले जा रहा था। मुझे तो अपनी ट्यूशन की फ़ीस वसूल हो गई थी। उसने मेरी छोटी छोटी चूचियाँ दबा दबा कर मुझे बेहाल कर दिया था। मैं तड़प उठी थी और फिर मेरी छोटी सी चूत ने जोर से अपना पानी छोड़ दिया। उसी समय सेण्डी मिस का भी सारा जोश तड़प कर बाहर निकल पड़ा और जोर से झड़ गई।
जारी रहेगी।
दिव्या डिकोस्टा
अन्तर्वासना की कहानियाँ आप मोबाइल से पढ़ना
चाहें तो एम.अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ सकते हैं।
What did you think of this story??
Comments