प्रगति का अतीत- 5
(Pragati Ka Ateet- Part 5)
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मास्टरजी और प्रगति गुसलखाने में गए और मास्टरजी ने उसको नहलाना शुरू किया। बालों को गीला करके शैंपू किया और फिर उसके बदन पर साबुन लगा कर उसके अंग अंग को मलने लगे।
मास्टरजी के हाथों को उसका साबुन से सना मांसल जिस्म बहुत अच्छा लग रहा था। उनके हाथ फिसल फिसल कर उसके शरीर पर घूम रहे थे और उसके स्तनों और चूतड़ों पर विशेष दिलचस्पी दिखा रहे थे।
उन्होंने उसको अपने बाजू ऊपर उठाने को कहा और उसकी काखों और कमर पर साबुन मलने लगे। फिर उन्होंने उसे घुमा कर उसकी पीठ अपनी तरफ कर ली और पीठ, चूतड़ और टांगों पर हाथ चलाने लगे।
प्रगति को मज़ा आ रहा था। मास्टरजी ने नीचे बैठ कर उसकी टांगें धोनी शुरू कीं और फिर साबुन के हाथों से योनि को विशुद्ध करने लगे।
प्रगति को अब ज्यादा गुलगुली होने लगी और उसने अपनी टांगें बंद कर लीं।
मास्टरजी का हाथ उसकी टांगों के बीच ही जकड़ा गया।
वे जकड़ी हुई टांगों के बीच अपनी हथेली सहलाने लगे। दोनों को मज़ा आ रहा था। मास्टरजी का लंड उत्सुक होने लगा। प्रगति की योनि भी मचलने लगी!!!!
मास्टरजी ने प्रगति को शावर से नहला दिया और अब खुद नहाने लगे।
प्रगति ने उनसे साबुन ले लिया और उनको नहलाने लगी। पूरे बदन पर साबुन लगाकर रगड़ कर साफ़ करने लगी पर उनके लिंग को शर्म के मारे नहीं छुआ।
मास्टरजी व्याकुल हो गए और उसके हाथों को अपने लिंग पर ले जाकर छोड़ दिया। उनका लिंग शिथिलता और कड़कपन के बीच की अवस्था में था।
यह वह अवस्था होती है जिसमें पुरुष को लंड चुसवाने में सबसे ज्यादा मज़ा आता है क्योंकि उसका पूरा लंड आसानी से लड़की के मुँह में चला जाता है। लड़की को भी लंड की यह अवस्था अच्छे लगती है क्योंकि एक तो मुँह में पूरा ले पाती है दूसरे जब लंड उसके मुँह में बड़ा होने लगता है तो एक अजीब सा ख़ुशी का अहसास होता है। उसे लगता है मानो वह अपने मुँह से लिंग में स्फूर्ति और शक्ति डाल रही है। मानो किसी मूर्छित इंसान में प्राण डाल रही हो। उसे अपनी इस योग्यता पर नाज़ होता है और वह अपने आप को शक्तिदायक और जीवनदायक समझने लगती है।
एक तरह से यह सच भी है। एक लड़की (या औरत) कितनी आसानी से आदमी में निश्चय, संकल्प, शक्ति, वीरता और पौरुष जैसे गुणों का जनन कर देती है, वह उसके लिए प्रेरणा स्रोत बन जाती है और उसकी ख़ातिर वह कोई भी मुकाम हासिल करने को तैयार हो जाता है और सफल भी होता है। शायद इसीलिये स्त्री को शक्ति का रूप माना जाता है।
आदमी भले ही अपना लंड खड़ा ना कर सके, औरत उसका लंड झट से खड़ा करवा सकती है। इससे बढ़ कर और क्या शक्ति हो सकती है।
खैर, मास्टरजी ने लंड को प्रगति के मुँह की तरफ पहुँचाया और प्रगति को निहारने लगे। उनकी आँखों से अनुरोध बरस रहा था।
प्रगति समझदार थी और उसने आधे गदराये हुए लंड को मुँह के हवाले कर दिया।
मास्टरजी का अधमरा लंड लचीला, छोटा और नर्म था सो प्रगति को पूरा लंड मुँह में लेने में कठिनाई नहीं हुई।
मास्टरजी का लंड, जैसे सपेरे का नाग टोकरी में लोटा होता है, प्रगति के मुँह में आसीन हो गया। जब प्रगति ने उसको जीभ से सहलाना और मसलना शुरू किया तो जैसे नाग की टोकरी का ढक्कन खोल दिया हो, मास्टरजी का लंड उठने लगा और अपने लचीलेपन, छुटपन और नम्रता को छोड़ कर कठोर और विराट रूप धारण करने लगा।
प्रगति को उसके मुँह में अंगडाई लेता हुआ और लिंग से लंड बनता हुआ मर्दाना अंग बहुत अच्छा लग रहा था। उसने मुँह से उसे चोदना शुरू किया।
मास्टरजी भी यही चाहते थे। नहाने के बाद वे प्रगति के साथ एक लम्बा सम्भोग करना चाहते थे। इसके लिए उनके लंड का एक और बार परमोत्तेजित होना मददगार साबित होना था। ऐसा होने के बाद उनका लंड आसानी से अगला विस्फोट नहीं करेगा और वे जितनी देर चाहें प्रगति को तरह तरह के आसनों में चोद सकेंगे।
यह सम्भोग की अवधि बढ़ाने का एक सरल उपाय है। पहले एक बार हस्त-मैथुन करके लावा उगल दो और उसके बाद लंड चुसवा कर उसे खड़ा करवाओ और फिर सम्भोग करो। इससे मर्द को तीन तरह का सुख (हस्त-मैथुन, मुख-मैथुन और सम्भोग) भी मिलता है और वह देर तक चुदाई भी कर सकता है।
प्रगति की मदद के तौर पर उन्होंने उसके मुँह में धक्कम-पेल शुरू कर दी और थोड़ी ही देर में वे उसके मुँह में बरसने लगे।
बरसने से पहले उन्होंने आख़री धक्का ऐसा लगाया कि उनका लंड प्रगति के कंठ में गहराई तक चला गया।
अब तो प्रगति को उनकी इस करतूत का पूर्वानुमान सा था। जब तक उनका लंड हिचकियाँ भर रहा था प्रगति ने उसे मुँह में ही पकड़े रखा और उसको पूरा निचोड़ कर ही बाहर आने दिया।
मास्टरजी को प्रगति पर बहुत मान होने लगा था। उसकी सेक्स प्रक्रियाओं में निपुणता का सारा श्रेय वे अपने आप को दे रहे थे। मास्टरजी ने एक बार फिर प्रगति पर पानी डाल कर उसे ताजा कर दिया और खुद भी नहा लिए।
मास्टरजी और प्रगति नहाने के बाद बाहर आये तो दोनों को भूख लग रही थी।
मास्टरजी ने प्रगति को अपना एक साफ़ कुर्ता पहनने को दे दिया। कुर्ता उसके लिए काफी ढीला था और कन्धों से नीचे ढलक रहा था। आस्तीन भी काफी बड़ी थीं। आस्तीन को तो ऊपर चढ़ा लिया पर कन्धों से ढलकता हुआ कुर्ता पहन कर वह बहुत कामुक लग रही थी। गीले बाल और कुर्ते के नीचे नंगी होने से उसके आकर्षण में चार चाँद लग गए थे…
मास्टरजी ने उसको गले लगा कर प्यार किया और खाने की मेज़ पर ले गए।
मास्टरजी ने सिर्फ लुंगी पहन रखी थी। दोनों ने खाना खाया। मास्टरजी ने हलके खाने का बंदोबस्त किया था जिससे खाने के बाद भारीपन और आलस्य न महसूस हो और वे अपने जिस्म की प्यास अच्छे से बुझा सकें।
उन्होंने प्रगति को भी हल्का खाना खाने का सुझाव दिया और वह उनकी बात मान रही थी। खाने के बाद दोनों बिस्तर पर लेट गए और थोड़ी देर विश्राम किया।
विश्राम के वक़्त मास्टरजी पोले पोले हाथों से प्रगति के पेट और पीठ को नाखूनों से खुरच रहे थे। वे प्रगति को और अपने आपको थोड़ा बहुत उत्तेजित ही रखना चाहते थे।
कुर्ते के ऊपर से मास्टरजी की नुकीली उँगलियाँ उसके बदन में सरसराहट पैदा कर रही थीं। उसे बड़ा अच्छा लग रहा था। उसने भी मास्टरजी के बदन पर हाथ चलाने शुरू कर दिए।
मास्टरजी प्यार से उसके बालों में हाथ फेरने लगे और बिल्कुल हल्के हाथ उसके वक्ष पर चलाने लगे। धीरे धीरे कुर्ते में से प्रगति का बदन उघड़ने लगा और कुर्ता उसकी गर्दन के पास इकठ्ठा हो गया। नीचे से तो वैसे ही नंगी थी।
मास्टरजी ने उसे सीधा लिटा दिया। उसकी टाँगें थोड़ी खोल दीं और घुटने उठा कर मोड़ दिए। उसके सिर के नीचे से तकिया हटा कर उसको बिस्तर पर सपाट कर दिया। अब वह बिस्तर पर लेटी हुई छत को देख रही थी।
मास्टरजी ने लुंगी उतारी और अपने आपको चोदने की हालत में ले आये। उनका लंड अभी शिथिल ही था। पर उन्होंने उस लटके हुए लिंग के साथ ही प्रगति की चूत के द्वार के ऊपर और उसके इर्द गिर्द अपना सुपाड़ा घुमाने लगे।
अपना वज़न अपने हाथों पर रखा हुआ था, उनका मुँह प्रगति के मम्मों के ऊपर और उनका निचला हिस्सा दंड लगाने की हालत में इस तरह था कि वे लंड से नाभि से लेकर जाँघों तक छू सकते थे।
इस अवस्था में लंड उसके निचले भाग से रगड़ रहे थे और मुँह से मम्मों को एक-एक करके चूस रहे थे।
थोड़ी देर बाद उन्होंने अपने घुटने बिस्तर पर टिका दिए और हाथों और घुटनों के बल आगे बढ़ते हुए अपने उभरते लिंग को मम्मों के बीच में लगा दिया। फिर अपने हाथों से दोनों मम्मों का लिंग के दोनों तरफ जोड़ दिया।
अब उनका लिंग मम्मों के बीच में था और उन्होंने मम्मों को चोदने जैसी हरकत शुरू की। रास्ते में कुर्ते की रुकावट हो रही थी सो मास्टरजी ने उसका सिर उठाकर कुर्ता गले में से निकाल दिया। अब वह पूरी नंगी थी।
आगे जाते वक़्त उनका सुपाड़ा प्रगति की ठोड़ी तक जाता। मास्टरजी के लौड़े में गर्माइश आ रही थी और वह सूजने लग रहा था। उन्होंने अपने आप को थोड़ा और ऊपर सरकाया जिससे आगे जाते वक़त अब उनका लंड प्रगति के होटों तक पहुँच रहा था।
पर क्योंकि प्रगति का सिर सीधा था वह उसे मुँह में नहीं ले पा रही थी। उसने पास रखे तकिये को सिर के नीचे रख लिया और अगली बार जब लंड आगे को आया प्रगति के मुँह ने सुपाड़े को पकड़ लिया। प्रगति ऐसे मुस्कराई जैसे कोई खेल जीत लिया हो।
मास्टरजी ने जब पीछे की तरफ लंड खींचा तो प्रगति ने आसानी से जाने नहीं दिया। मास्टरजी को यह खेल पसंद आया।
मर्दों को सेक्स के दौरान अगर कोई बात अच्छी लगती है तो उसका सीधा असर उनके लंड पर पड़ता है और वह और कड़क हो जाता है। ऐसा ही मास्टरजी के साथ भी हुआ। उनका लंड अब सम्भोग के लिए तैयार हो गया।
मास्टरजी ने नीचे सरक कर लंड को योनि मुख पर रखा और अन्दर की तरफ दबाने लगे। हालाँकि प्रगति की चूत सम्भोग की आकांक्षा में भीगी हुई थी फिर भी अभी वह सम्भोग के लिए नई सी ही थी, अतः लिंग प्रवेश आसान नहीं था।
मास्टरजी धीरे धीरे जोर लगाते रहे और छोटे छोटे धक्के मारते रहे। प्रगति भी उनका साथ दे रही थी और लिंग प्रवेश के लिए आतुर थी। उन दोनों का संयुक्त प्रयास काम आया और धीरे धीरे लंड अन्दर बढ़ता गया।
कुछ देर में पूरा लंड अन्दर बाहर होने लगा। मास्टरजी को प्रगति की संकरी पर चिकनाई-युक्त चूत चोदने में बड़ा मज़ा आ रहा था। उनके लंड की छड़ को अच्छा घर्षण मिल रहा था और लंड के हर हिस्से को चूत की दीवारों से नर्म रगड़ मिल रही थी।
जब लंड बाहर आता तो चूत मानो बंद हो जाती जब अन्दर जाता तो हर बार ऐसा लगता जैसे कोई विघ्न पार करके प्रवेश कर रहा है।
इस अतिरिक्त घिसाव से मैथुन सुख में वृद्धि हो रही थी। मास्टरजी ने कुछ देर चोदने के बाद एक बार लंड पूरा अन्दर कर दिया और झुक कर प्रगति की पीठे के नीचे हाथ रख कर उसे उठा कर बिठा लिया और खुद अपने टांगें मोड़ कर पीछे हो कर पीठ के बल लेट गए।
अब प्रगति उनके ऊपर बैठी हुई थी, लंड उसके अन्दर था और उसके घुटने बिस्तर पर टिके हुए थे।
मास्टरजी के संकेत देखते हुए उसने अपने कूल्हे ऊपर नीचे करके चुदवाना शुरू कर दिया। उसे ऐसा लग रहा था मानो वह चुदवा नहीं रही बल्कि मास्टरजी को चोद रही हो!! वह अपनी गति से और जितना मन कर रहा था उतना ऊपर नीचे हो रही थी। स्थिति उसके नियंत्रण में थी और यह सञ्चालन उसे अच्छा लग रहा था।
जब थोड़ा थक गई तो घुटने ऊपर करके अपने पांव के तलवे बिस्तर पर टिका दिए और उनके सहारे उठ्ठक-बैठक करने लगी।
मास्टरजी का तना लंड जब अन्दर जाता तो उसे अपने शरीर में परिपूर्णता महसूस होती। जब बाहर आता तो अपने आप को अधूरी महसूस करती।
मास्टरजी ने उसकी पीठ के पीछे हाथ रख कर उसे अपने सीने की तरफ खींच लिया जिससे उसके स्तन और जुल्फें उनके सीने को रिझाने और गुदगुदाने लगे।
प्रगति की घुड़सवारी जारी थी। प्रगति जोश में आ रही थी और उसने अपनी गति और उछाल दोनों बढा दीं। कई बार ऐसे में लंड मुड़ सकता है और उसे चोट भी आ सकती है। इस बात का ध्यान रखते हुए उन्होंने प्रगति को रफ़्तार धीमे करना का इशारा किया और थोड़ी देर बाद रुकने को कहा।
प्रगति रुक गई और उनके लंड को पूरा अन्दर रखते हुए ऊपर ही बैठी रही। अब मास्टरजी ने एक बड़ी मजेदार बात की। उन्होंने प्रगति को बिना लंड बाहर निकाले लंड की धुरी पर घूमने को कहा।
प्रगति को समझ नहीं आया कि क्या करना है, तो मास्टरजी ने उसका बायाँ पांव थोड़ी और बाईं तरफ सरकाया और उसके दाहिने पांव को पेट के ऊपर से लाते हुए बाएं पांव के करीब रख दिया।
ऐसा करने से प्रगति लंड पर बैठी बैठी एक चौथाई बाईं ओर घूम गई। अब उन्होंने प्रगति को एक दो बार उठ्ठक-बैठक लगाने को कहा जिससे लंड शिथिल न हो जाये और एक बार फिर उसको बाईं ओर पांव सरकाते हुए लंड की धुरी पर घूमने को कहा।
प्रगति ने अपने बायाँ पांव ध्यान से मास्टरजी की बाईं जांघ की बाएं ओर रख दिया और अपना दाहिना पांव उनकी दाहिने जांघ के दाहिनी ओर।
इस अवस्था में उसकी पीठ मास्टरजी की तरफ हो गई और वह उल्टी घुड़सवारी करने लगी।
मास्टरजी ने उसकी कमर पकड़ रखी थी और वे उसकी उठ्ठक-बैठक से ताल मिला कर अपनी कमर ऊपर नीचे कर थे। इस तरह दोनों ही चुदाई में में लग गए।
प्रगति की चूत को इस आसन में मास्टरजी का लंड एक नई दिशा में संपर्क कर रहा था। जिस जगह पर सुपाड़ा अब दबाव डाल रहा था वहाँ पहले नहीं डाल रहा था। प्रगति के लिए यह एक नई अनुभूति थी। मास्टरजी को भी इस आसन में ज्यादा घर्षण लग रही थी।
प्रगति की चूत इस नए आभास के कारण और भीगी हो गई और लंड का यातायात आसान हो गया।
मास्टरजी अब उठकर प्रगति के पीछे बैठ गए और अपनी टांगें मोड़ कर पीछे कर लीं। लंड को बाहर निकाले बिना प्रगति को आगे की ओर धकेल दिया और उसे हाथों और घुटने के बल कुतिया आसन में पहुंचा दिया।
मास्टरजी खुद घुटनों के बल हो गए और कोई विराम दिए बिना पीछे से चोदना जारी रखा।
मास्टरजी ने प्रगति की कमर पकड़ रखी थी और आगे की ओर धक्का मारते वक़्त उसकी कमर को पीछे की तरफ खींच लेते थे। जिससे लंड बहुत गहराई तक अन्दर चला जाता। पीछे आते वक़्त लंड को लगभग पूरा बाहर आने देते और फिर पूरे जोर और जोश के साथ पूरा अन्दर घुसा देते।
जब दोनों के बदन ज़ोर से टकराते तो एक ताली जैसी आवाज़ होती। दोनों को यह आवाज़ अच्छी लग रही थी। इस आवाज़ को कायम रखने के लिए दोनों ज़ोर ज़ोर से लय-ताल में एक दूसरे के बरखिलाफ वार कर रहे थे। एक थक जाता तो दूसरा चालू हो जाता।
थप थप थप की आवाज़ से कमरा गूंजने लगा और इस आवाज़ में प्रगति के करहाने की और मास्टरजी के चिल्लाने की आवाजें भी शामिल हो गईं।
मास्टरजी को बहुत मज़ा आ रहा था। आम तौर पर तो इतनी कसी हुई चूत को चोदने में मास्टरजी 4-5 मिनट से ज्यादा नहीं लगा पाते थे, पर आज क्योंकि वे दो बार पहले ही वीर-गति को प्यारे हो चुके थे, उनका लंड विस्फोट के नजदीक नहीं था।
एक कसी हुई चूत का घर्षण उसे उत्तेजित हालत में रखने में कामयाब हो रहा था। नतीजा यह था कि मास्टरजी करीब आधे घंटे से प्रगति को चोद रहे थे और लिंग महाराज अपनी ऐंठ छोड़ ही नहीं रहे थे।
उनका लंड ना ही शिथिल हो रहा था और ना ही फट रहा था, बस एक पिस्टन की तरह प्रगति के चूत रूपी सिलेंडर में एक स्टीम इंजन की तरह यातायात कर रहा था।
प्रगति की उत्तेजना का सैलाब फूटने वाला हो रहा था। मास्टरजी उसकी मटर के पास ऊँगली जो घुमाने लगे थे। उसकी आवाजें असभ्य होती जा रहीं थीं और मास्टरजी को ज़ोर से चोदने के लिए प्रेरित कर रहीं थीं।
आखिर प्रगति का बाँध टूट ही गया और वह कंपकंपाने लगी, उसने मास्टरजी का हाथ अपनी मटर से दूर हटा दिया और मास्टरजी के चोदने को भी विराम देना पड़ा।
वह अनियंत्रित तरह से हिलने लगी थे और उसका जिस्म का हर हिस्सा संवेदना से ओत प्रोत हो गया था। कहीं भी स्पर्श करने से उसे अत्यधिक संवेदना का अहसास होता।
मास्टरजी ने उसकी हालत का आदर करते हुए लंड बाहर निकाल लिया और एक तरफ बैठ कर उसका हाथ थाम लिया। थोड़ी देर में प्रगति होशोहवास में आ गई।
उसको पहली बार लंड के घर्षण से चरमोत्कर्ष की प्राप्ति हुई थी जो बहुत कम लड़कियों को नसीब होती है। आम तौर पर मर्द जल्दी ही पराकाष्ठा पर पहुँच जाता है और स्त्री अधूरी प्यास के साथ रह जाती है। कुछ लोग तो लड़की को बाद में ऊँगली से चरम आनंद का स्वाद चखा देते हैं पर कई स्वार्थी आदमी ऐसा नहीं करते।
ऐसे लोगों के साथ लड़कियों को ज्यादा मज़ा नहीं आता और मौका पाने पर वे उन्हें छोड़ कर कोई निस्वार्थी आदमी को ढूंढ लेती हैं। आदमियों को चाहिए कि अपना मज़ा लूटने के बाद यकीन करें कि लड़की भी निहाल हुई है या नहीं। अगर नहीं, तो उसे हाथ से मैथुन करके चरम सीमा तक ले जाना चाहिए।
जब तक प्रगति होश में आई, लंड जनाब कुछ नतमस्तक हो गए थे। प्रगति ने लंड को फिर से सुलगाने के लिए अपने मुँह का प्रयोग किया और जीभ के कुशल इस्तेमाल से उसे शीघ्र ही उजागर कर दिया।
प्रगति लंड में शक्ति फूँक कर मास्टरजी की तरफ देखने लगी कि उन्हें कौन सा आसन चाहिए। मास्टरजी ने निर्णायक राऊँड के लिए सबसे आरामदेह आसन चुना और प्रगति को पीठ के बल लेटने का आदेश दिया और स्वयं उसके ऊपर दंड पेलने के लिए आ गए।
उन्होंने निर्णय किया कि वे इसी आसन में उसे तब तक चोदते रहेंगे जब तक अपने फव्वारे पर काबू रहता है। अब वे आसन नहीं बदलेंगे।
इस निश्चय के साथ वे सरल स्वभाव से प्रगति को चोदने लगे। हालाँकि उनकी गति धीमी थी पर वार गहरा था। हर बार पूरा अन्दर बाहर कर रहे थे। हर आगे के स्ट्रोक में प्रगति के किसी न किसी अंग को चूम रहे थे।
प्रगति को इस तरह का प्यार बहुत अच्छा लग रहा था और वह आत्मविभोर हो रही थी। मास्टरजी लगे रहे जैसे एक लम्बी रेस का घोड़ा हो।
प्रगति को उनका लगातार प्रहार फिर से उत्तेजना की ओर ले जा रहा था और वह अप्रत्याशित रूप से उनका साथ देने लगी।
मास्टरजी को इस सहयोग से प्रोत्साहन मिला और उन्होंने अपने वार लम्बे रखते हुए उनकी गति तेज़ की।
तेज़ गति से चोदने में मज़ा तो बहुत आता है पर जल्दी स्खलन का अंदेशा भी बढ़ जाता है। मास्टरजी इस चुदाई को लम्बा खींचना चाहते थे सो उन्होंने अपने आप को आगे करते हुए अपना सीना प्रगति की छाती पर रख दिया और अपनी टांगें सीधी करते हुए अपना पेट भी प्रगति के पेट से सटा दिया।
उन्होंने अपना वज़न अपने घुटनों और कोहनियों पर ले रखा था। अब उनका लंड चोदते समय आगे-पीछे न होते हुए ऊपर-नीचे हो रहा था।
इस आसन को थोड़ा बदलते हुए, मास्टरजी ने अपने आप को करीब 3-4 इंच प्रगति के सिर की तरफ सरकाया।
ऐसा करने से मास्टरजी का लंड चूत के मुख से 1-2 इंच आगे हो गया।
इस स्थिति में चुदाई से लंड एक कीले की तरह ऊपर-नीचे की चाल चल रहा था और योनि-मुख के ऊपरी हिस्से पर घर्षण कर रहा था। प्रगति का योनि मटर उस जगह के नज़दीक था और लंड का आवागमन महसूस कर रहा था।
कहते हैं योनि-मटर स्त्री के गुप्तांगों का सबसे मर्म और संवेदनशील अंग होता है। इसके ज़रा से स्पर्श से उसमें काम वासना का पुरज़ोर प्रवाह होने लगता है। यह इतना मार्मिक होता है कि इसे सीधा नहीं छूना चाहिए बल्कि इसके आस पास के इलाके को सहलाना चाहिए। सीधा छूना लड़की के लिए असहाय हो सकता है। पर उसके आस पास के सहलाने से लड़की को असीम सुख मिलता है।
मास्टरजी ने अपने आसन में छोटा सा परिवर्तन इसीलिये किया था जिससे लंड का योनि प्रवेश ऊपर-नीचे की दिशा में हो और उनके लंड का मूठ योनि-मटर के छोर या किनारे से संपर्क करे।
कहते हैं सम्भोग के दौरान ऊँगली से इस मटर दाने के आस पास सहलाने से लड़की को अत्यंत ख़ुशी मिलती है। पर अगर यह काम ऊँगली के बजाय लंड से किया जाये तो लड़की की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं होता। लंड से मटर का संपर्क बनाने के लिए मास्टरजी द्वारा लिया गया आसन एकदम उपयुक्त था।
इस उपयुक्त आसन का लाभ उन्हें मिल गया क्योंकि जैसे ही उन्होंने चुदाई शुरू की और उनका मूठ मटर को रिझाने लगा, प्रगति में कामुकता ने ऊँची छलाँग लगाई!
उसके अंग-प्रत्यंग में ऊर्जा आ गई और वह पूरी तरह जागृत हो गई।
वह अपने आप को हिला डुला कर योनि मटर को लंड घर्षण के और पास लाने का प्रयत्न करने लगी।
जब मटर से मूठ छुल जाता तो एक सुख की चीत्कार निकल जाती और योनि में विद्युतीकरण हो जाता।
प्रगति इस नए अनुभव से आनंदित थी और उसका रोम रोम सम्भोग से प्रभावित था। वह उचक उचक कर सम्भोग में सहयोग कर रही थी और ऊपर उठ उठ कर मास्टरजी के माथे को चूम रही थी।
ऐसा करने से उसके स्तन मास्टरजी के चेहरे को छेड़ रहे थे। मास्टरजी भी मौका मिलने पर उसकी चूचियाँ मुँह में ले लेते थे।
प्रगति के उन्माद को देख कर मास्टरजी के भीतर विस्फोट के प्राथमिक संकेत उपजने लगे। मास्टरजी अब असमंजस में पड़ गए। विस्फोट के संकेतों का ध्यान करके चुदाई में ढील दें जिससे और देर तक सम्भोग कर सकें या फिर इन उपजते संकेतों को नज़रंदाज़ करके चुदाई जारी रखें और चरमोत्कर्ष की प्राप्ति करें।
वे दुविधा में थे क्योंकि उनका लंड नियंत्रण में था और वे सम्भोग की अवधि अपनी मर्जी से तय कर सकते थे। आम तौर पर इस तरह का निर्णय नहीं लेना पड़ता क्योंकि लंड इतनी देर तक संयम में नहीं रहता। असमंजस दूर करने के लिए उन्होंने प्रगति की नीयत जाननी चाही और उसकी तरफ देखा।
प्रगति तो अपनी दुनिया में खोई हुई थी। आँखें मूंदी हुई, साँसें तेज़, स्तन उभरे हुए और चूचियाँ तनी हुईं वह आत्मविभोर सी किसी और दुनिया में थी। यदा कदा उसके गर्भ से असीम आनंद की चीत्कार निकल रही थी। उसका बदन मास्टरजी की चुदाई की लय में उठ-बैठ रहा था। वह स्वप्नलोक में विचर रही थी।
मास्टरजी ने ऐसे में उसे जागृत करना उचित नहीं समझा और सम्भोग समापन का निर्णय लिया जिससे जब वे चरम बिंदु पर पहुंचें उनकी प्रगति भी उधर ही हो।
मास्टरजी ने अपने आपको काम वासना की पराकाष्ठा तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया। सम्भोग में यह सबसे आसान कार्य होता है। कोई भी आदमी क्लाइमैक्स तक आसानी से पहुँच जाता है। मर्दानगी तो इसे विलंबित करने में होती है!!!
मास्टरजी को इस आसान काम को पूरा करने में कोई कठिनाई नहीं हुई और वे शीघ्र ही वीर्य-पतन के कगार पर आ गए। उनके शरीर का हाल भी अब प्रगति के बदन सा होने लगा। मांस-पेशियाँ जकड़ने लगीं, साँसें तेज़ और मुँह से ऊह आह की आवाजें निकलने लगीं।
जब उन्हें स्खलन बिल्कुल निकट लगने लगा तो एक आख़री बार उन्होंने अपना भाला योनि से पूरा बाहर निकाला, एक-दो क्षण बाहर रखा और फिर पूरे ज़ोर से प्रगति की बंद होती गुफा में मूठ तक घोंप दिया।
उनके बदन की गहराइयों से एक मादक चिंघाड़ निकली और वे एक निर्जीव शव की तरह प्रगति के शरीर पर लुढ़क गए।
उनका चेहरा प्रगति के स्तनों को तकिया बना चुका था और उनका लंड प्रगति के गर्भ में वीर्य-प्रपात छोड़ रहा था। वीर्य प्रपात के झटके मास्टरजी के शरीर को झंझोड़ रहे थे।
हर लड़की को मर्द का स्खलन तृप्ति प्रदान करता है। एक तो इससे उसके गर्भ में सर्जन की क्रिया शुरू होती है और दूसरे, कुछ देर के लिए ही सही, मर्दानगी का पतन होते देखती है। वह कैसा निस्सहाय और कमज़ोर हो जाता है!!
प्रगति कृतज्ञता पूर्ण हाथों से मास्टरजी के सिर और पीठ पर हाथ फेर रही थी। उसने अपनी टांगें ऊपर उठा लीं थीं जिससे वीर्य बाहर न जाए और उसकी चूतचूत ने लंड को जकड़ कर रखा था और उसके वीर्य की आख़री बूँद अपने अन्दर निचोड़ रही थी।
जब लंड में देने लायक कुछ नहीं बचा तो लालची चूत ने अपनी पकड़ ढीली की और निर्जीव लिंग को बाहर निकाल दिया!! मास्टरजी मूर्छित से पड़े हुए थे। लंड के निष्कासित होने से उन्हें होश आया और वे मम्मों का रस पान करने लगे। धन्यवाद के रूप में उन्होंने प्रगति के मुँह को चूम लिया और उसके बदन को सहलाने लगे।
वे सम्भोग उपरांत सुख का सेवन कर ही रहे थे कि अचानक दरवाज़े की घंटी ने उनकी शांति भंग कर दी। घंटी ऐसे बज रही थी मानो बजाने वाला क्रोध में हो।
प्रगति और मास्टरजी झटके से उठ गए, चिंता और घबराहट से दोनों एक दूसरे को देखने लगे।
फिर प्रगति अपने कपड़े उठाकर गुसलखाने की तरफ भाग गई और मास्टरजी जल्दी जल्दी कपड़े पहन कर दरवाज़े पर आये दुश्मन का सामना करने चल पड़े।
दरवाज़े पर अंजलि और उसके पिताजी को देख कर मास्टरजी के होश उड़ गए।
‘प्रगति को क्या पढ़ा रहे हो?’ पिताजी ने गुस्से में पूछा।
‘जी, क्या हो गया?’ मास्टरजी ने सवाल का जवाब सवाल से देते हुए अपने आप को संभाला।
‘प्रगति कहाँ है?’
‘जी, अन्दर है!’
‘अन्दर क्या कर रही है?’
‘जी पढ़ने आई थी!’
‘उसकी पढ़ाई हो गई। उसे बुलाओ!’ कहते हुए पिताजी ने प्रगति को आवाज़ दी।
प्रगति भीगी बिल्ली की भांति आई और नज़रें झुकाए मास्टरजी के पास आ कर खड़ी हो गई।
‘घर चलो!’ पिताजी ने आदेश दिया। और मास्टरजी की तरफ देख कर चेतावनी दी- यह तो बच्ची है पर तुम तो समझदार हो। एक जवान लड़की को इस तरह अकेले में पढ़ाते हो! लोग क्या कहेंगे?
मास्टरजी को राहत मिली कि मामला इतना संगीन नहीं है जितना वे सोच रहे थे।
मास्टरजी के जवाब का इंतज़ार किये बगैर पिताजी ने कह दिया- अब से इस घर में पढ़ाई नहीं होगी। या तो हमारे घर में या स्कूल में, समझे?
यह कहते हुए पिताजी दोनों लड़कियों को लेकर अपने घर रवाना हो गए।
प्रगति ने जाते जाते एक आख़री बार मास्टरजी की तरफ मायूस आँखों से देखा और फिर पैर पटकती हुई अपने घर को चल दी।
यहाँ पर ‘ प्रगति का अतीत ‘ श्रृंख्ला समाप्त होती है।
आशा है आपको प्रगति का अब तक का जीवन अच्छा लगा होगा। उसके जीवन में आगे क्या होने वाला है जानने के लिए ‘ प्रगति के संस्मरण ‘ नामक श्रृंख्ला की प्रतीक्षा कीजिये।
आपको यह श्रृंख्ला कैसी लगी मुझे [email protected] पर लिख कर बताइए।
धन्यवाद
शगन
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