प्रगति का अतीत- 1

(Pragati Ka Ateet- Part 1)

शगन कुमार 2006-05-17 Comments

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प्रगति की कुछ कहानियाँ आप पहले ही अन्तर्वसना पर पढ़ चुके हैं। अब जानिए प्रगति की बीती जिन्दगी के बारे में!

प्रगति का जन्म तमिलनाडू के एक गरीब परिवार में हुआ था। उसके पिता बागवानी का काम करते थे और माँ घरों में काम करती थी।
प्रगति की दो छोटी बहनें थी जो उससे 3 साल और 5 साल छोटी थी। प्रगति इस समय करीब 18 साल की थी और उसका ज़्यादा समय अपनी बहनों की देखभाल में जाता था क्योंकि उसके माता पिता बाहर काम करते थे।
प्रगति स्कूल भी जाती थी।

ज्यादातर देखा गया है कि समाज के बुरे लोगों की नज़र गरीब घरों की कमसिन लड़कियों पर होती है। वे सोचते हैं कि गरीब लड़की की कोई आकांक्षा ही नहीं होती और वे उसके साथ मनमर्ज़ी कर सकते हैं।

प्रगति जैसे जैसे बड़ी हो रही थी, आस पास के लड़कों और आदमियों की उस पर नज़र पड़ रही थी। वे उसको तंग करने और छूने का मौका ढूँढ़ते रहते थे। प्रगति शर्म के मारे अपने माँ बाप को कुछ नहीं कह पाती थी।

एक दिन स्कूल में जब वह फीस भर रही थी, तो मास्टरजी ने उसे अकेले में ले जाकर कहा कि अगर वह चाहे तो वे उसकी फीस माफ़ करवा सकते हैं।

प्रगति खुश हो गई और मास्टरजी को धन्यवाद देते हुए बोली कि इससे उसके पिताजी को बहुत राहत मिलेगी। मास्टरजी ने कहा पर इसके लिए उसे कुछ करना होगा।

प्रगति प्रश्न मुद्रा में मास्टरजी की तरफ देखने लगी तो मास्टरजी ने उसे स्कूल के बाद अपने घर आने के लिए कहा और बोला कि वहीं पर सब समझा देंगे।

चलते चलते मास्टरजी ने प्रगति को आगाह किया कि इस बारे में किसी और को न बताये नहीं तो बाकी बच्चे भी फीस माफ़ करवाना चाहेंगे!!
प्रगति समझ गई और किसी को न बताने का आश्वासन दे दिया।

मास्टरजी क्लास में प्रगति पर ज्यादा ध्यान दे रहे थे और उसकी पढ़ाई की तारीफ़ भी कर रहे थे। प्रगति मास्टरजी से खुश थी।

जब स्कूल की घंटी बजी तो मास्टरजी ने उसे आँख से इशारा किया और अपने घर को चल दिए। प्रगति भी अपना बस्ता घर में छोड़ कर और अपनी बहन को बता कर कि वह पढ़ने जा रही है, मास्टरजी के घर को चल दी।

मास्टरजी घर में अकेले ही थे, प्रगति को देख कर खुश हो गए और उसकी पढ़ाई की तारीफ़ करने लगे। प्रगति अपनी तारीफ़ सुन कर खुश हो गई और मुस्कराने लगी।

मास्टरजी ने उसे सोफे पर अपने पास बैठने को कहा और उसके परिवार वालों के बारे में पूछने लगे।

इधर उधर की बातों के बाद उन्होंने प्रगति को कुछ ठंडा पीने को दिया और कहा कि वह अगर इसी तरह मेहनत करती रहेगी और अपने मास्टरजी को खुश रखेगी तो उसके बहुत अच्छे नंबर आयेंगे और वह आगे चलकर बहुत नाम कमाएगी।

प्रगति को यह सब अच्छा लग रहा था और उसने मास्टरजी को बोला कि वह उनकी उम्मीदों पर खरा उतरेगी!!

मास्टरजी ने उसके सर पर हाथ रखा और प्यार से उसकी पीठ सहलाने लगे। मास्टरजी ने प्रगति को हाथ दिखाने को कहा और उसके हाथ अपनी गोदी में लेकर मानो उसका भविष्य देखने लगे।

प्रगति बेचारी को क्या पता था कि उसका भविष्य अँधेरे की तरफ जा रहा है!

हाथ देखते देखते मास्टरजी अपनी ऊँगली जगह जगह पर उसकी हथेली के बीच में लगा रहे थे और उस भोली लड़की को उसके भविष्य के बारे में मन गढ़ंत बातें बता रहे थे। उसे राजकुमार सा वर मिलेगा, अमीर घर में शादी होगी वगैरह वगैरह!!

दोनों हाथ अच्छी तरह देखने के बाद उन्होंने उसकी बाहों को इस तरह देखना शुरू किया मानो वहाँ भी कोई रेखाएं हैं। उसके कुर्ते की बाजुओं को ऊपर कर दिया जिससे पूरी बाहों को पढ़ सकें।

मास्टरजी थोड़ी थोड़ी देर में कुछ न कुछ ऐसा बोल देते जैसे कि वे कुछ पढ़ कर बोल रहे हों। अब उन्होंने प्रगति को अपनी टाँगें सोफे के ऊपर रखने को कहा और उसके तलवे पढ़ने लगे।

यहाँ वहाँ उसके पांव और तलवों पर हाथ और ऊँगली का ज़ोर लगाने लगे जिससे प्रगति को गुदगुदी होने लगती। वह अजीब कौतूहल से अपना सुन्दर भविष्य सुन रही थी तथा गुदगुदी का मज़ा भी ले रही थी।

जिस तरह मास्टरजी ने उसके कुर्ते की बाजुएँ ऊपर कर दी थी ठीक उसी प्रकार उन्होंने बिना हिचक के प्रगति की सलवार भी ऊपर को चढ़ा दी और रेखाएं ढूँढने लगे। उसके सुन्दर भविष्य की कोई न कोई बात वे बोलते जा रहे थे।

अचानक उन्होंने प्रगति से पूछा कि क्या वह वाकई में अपना और अपने परिवार वालों का संपूर्ण भविष्य जानना चाहती है? अगर हाँ, तो इसके लिए उसे अपनी पीठ और पेट दिखाने होंगे।

प्रगति समझ नहीं पाई कि क्या करे तो मास्टरजी बोले कि गुरु तो पिता सामान होता है और पिता से शर्म कैसी? तो प्रगति मान गई और अपना कुर्ता ऊपर कर लिया।

मास्टरजी ने कहा- इस मुद्रा में तो तुम्हारे हाथ थक जायेंगे, बेहतर होगा कि कुर्ता उतार ही दो।
यह कहते हुए उन्होंने उसका कुर्ता उतारना शुरू कर दिया। प्रगति कुछ कहती इससे पहले ही उसका कुर्ता उतर चुका था।

प्रगति ने कुर्ते के नीचे ब्रा पहन रखी थी। मास्टरजी ने उसे सोफे पर उल्टा लेटने को कहा और उसके पास आकर बैठ गए।

उनके बैठने से सोफा उनकी तरफ झुक गया जिससे प्रगति सरक कर उनके समीप आ गई। उसका मुँह सोफे के अन्दर था और शर्म के मारे उसने अपनी आँखों को अपने हाथों से ढक लिया था।

पर मास्टरजी ने उसकी पीठ पर अपनी एक ऊँगली से कोई नक्शा सा बनाया मानो कोई हिसाब कर रहे हों या कोई रेखाचित्र खींच रहे हों। ऐसा करते हुए वे बार बार ऊँगली को उसकी ब्रा के हुक के टकरा रहे थे मानो ब्रा का फीता उनको कोई बाधा पहुंचा रहा था।

उन्होंने आखिर प्रगति को बोला कि वे एक मंत्र उसकी पीठ पर लिख रहे हैं जिससे उसके परिवार की सेहत अच्छी रहेगी और उसे भी लाभ होगा। यह कहते हुए उन्होंने उसकी ब्रा का हुक खोल दिया।

प्रगति घबरा कर उठने लगी तो मास्टरजी ने उसे दबा दिया और बोले घबराने और शरमाने की कोई बात नहीं है। यहाँ पर तुम बिल्कुल सुरक्षित हो!!

उस गाँव में बहुत कम लोगों को पता था कि मास्टरजी, यहाँ आने से पहले, आंध्र प्रदेश के ओंगोल शहर में शिक्षक थे और वहाँ से उन्हें बच्चों के साथ यौन शोषण के आरोप के कारण निकाल दिया था।
इस आरोप के कारण उनकी सगाई भी टूट गई थी और उनके घरवालों तथा दोस्तों ने उनसे मुँह मोड़ लिया था।

अब वे अकेले रह गए थे। उन्होंने अपना प्रांत छोड़ कर तमिलनाडु में नौकरी कर ली थी जहाँ उनके पिछले जीवन के बारे में कोई नहीं जानता था।
उन्हें यह भी पता था कि उन्हें होशियारी से काम करना होगा वरना न केवल नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा, हो सकता है जेल भी जाना पड़ जाये।

उन्होंने प्रगति की पीठ पर प्यार से हाथ फेरते हुए उसे सांत्वना दी कि वे उसकी मर्ज़ी के खिलाफ कुछ नहीं करेंगे।

अचानक, मास्टरजी चोंकने का नाटक करते हुए बोले- तुम्हारी पीठ पर यह सफ़ेद दाग कब से हैं?’

प्रगति ने पूछा- कौन से दाग?’

तो मास्टरजी ने पीठ पर 2-3 जगह ऊँगली लगाते हुए बोला- यहाँ यहाँ पर!’ फिर 1-2 जगह और बता दी।

प्रगति को यह नहीं पता था, बोली- मुझे नहीं मालूम मास्टरजी, कैसे दाग हैं?

मास्टरजी ने चिंता जताते हुए कहा- यह तो आगे चल कर नुकसान कर सकते हैं और पूरे शरीर पर फैल सकते हैं। इनका इलाज करना होगा।

प्रगति ने पूछा- क्या करना होगा?’

मास्टरजी ने बोला- घबराने की बात नहीं है। मेरे पास एक आयुर्वैदिक तेल है जिसको पूरे शरीर पर कुछ दिन लगाने से ठीक हो जायेगा। मेरे परिवार में भी 1-2 जनों को था। इस तेल से वे ठीक हो गए। अगर तुम चाहो तो मैं लगा दूं।’

प्रगति सोच में पड़ गई कि क्या करे।
उसका असमंजस दूर करने के लिए मास्टरजी ने सुझाव दिया कि बेहतर होगा यह बात कम से कम लोगों को पता चले वरना लोग इसे छूत की बीमारी समझ कर तुम्हारे परिवार को गाँव से बाहर निकाल देंगे।

फिर थोड़ी देर बाद खुद ही बोले- तुम्हारा इलाज मैं यहाँ पर ही कर दूंगा। तुम अगले 7 दिनों तक स्कूल के बाद यहाँ आ जाना। यहीं पर तेल की मालिश कर दूंगा और उसके बाद स्नान करके अपने घर चले जाया करना। किसी को पता नहीं चलेगा और तुम्हारे यह दाग भी चले जायेंगे। क्या कहती हो?

बेचारी प्रगति क्या कहती। वह तो मास्टरजी के बुने जाल में फँस चुकी थी। घरवालों को गाँव से निकलवाने के डर से उसने हामी भर दी। मास्टरजी अन्दर ही अन्दर मुस्करा रहे थे।

मास्टरजी ने कहा- नेक काम में देरी नहीं करनी चाहिए। अभी शुरू कर देते हैं!’

वे उठ कर अन्दर के कमरे में चले गए और वहाँ से एक गद्दा और दो चादर ले आये। गद्दे और एक चादर को फर्श पर बिछा दिया और दूसरी चादर प्रगति को देते हुए बोले- मैं यहाँ से जाता हूँ, तुम कपड़े उतार कर इस गद्दे पर उल्टी लेट जाओ और अपने आप को इस चादर से ढक लो। जब तुम तैयार हो जाओ तो मुझे बुला लेना।

प्रगति को यह ठीक लगा और उसने सिर हिला कर हाँ कर दी। मास्टरजी फट से दूसरे कमरे में चले गए।

उनके जाने के थोड़ी देर बाद प्रगति ने इधर उधर देखा और सोफे से उठ खड़ी हुई। उसने कभी भी अपने कपड़े किसी और घर में नहीं उतारे थे इसलिए बहुत संकोच हो रहा था।
पर क्या करती।
धीरे धीरे हिम्मत करके कपड़े उतारने शुरू किये और सिर्फ चड्डी में गद्दे पर उल्टा लेट गई और अपने ऊपर चादर ले ली। थोड़ी देर बाद उसने मास्टरजी को आवाज़ दी कि वह तैयार है।

मास्टरजी अन्दर आ गये और गद्दे के पास एक तेल से भरी कटोरी रख दी। वे सिर्फ निकर पहन कर आये थे। कदाचित् तेल से अपने कपड़े ख़राब नहीं करना चाहते थे।

उन्होंने धीरे से प्रगति के ऊपर रखी चादर सिर की तरफ से हटा कर उसे पीठ तक उघाड़ दिया। प्रगति पहली बार किसी आदमी के सामने इस तरह लेटी थी।

उसे बहुत अटपटा लग रहा था। उसने अपने स्तन अपनी बाहों में अच्छी तरह अन्दर कर लिए और आँखें मींच लीं। उसका शरीर अकड़ सा रहा था और मांस पेशियाँ तनाव में थी।

मास्टरजी ने सिर पर हाथ फेर कर उसे आराम से लेटने और शरीर को ढीला छोड़ने को कहा। प्रगति जितना कर सकती थी किया। पर वह एक अनजान सफ़र पर जा रही थी और उसके शरीर के एक एक हिस्से को एक अजीब अहसास हो रहा था।

मास्टरजी ने कुछ देर उसकी पीठ पर हाथ फेरा और फिर दोनों हाथों में तेल लेकर उसकी पीठ पर लगाने लगे।

ठंडे तेल के स्पर्श से प्रगति को सिरहन सी हुई और उसके रोंगटे खड़े हो गए। पर मास्टरजी के हाथों ने रोंगटों को दबाते हुए मालिश करना शुरू कर दिया। शुरुआत उन्होंने कन्धों से की और प्रगति के कन्धों की अच्छे से गुन्दाई करने लगे।

प्रगति की तनी हुई मांस पेशियाँ धीरे धीरे आराम महसूस करने लगीं और वह खुद भी थोड़ी निश्चिंत होने लगी।

धीरे धीरे मास्टरजी ने कन्धों से नीचे आना शुरू किया। पीठ के बीचों बीच रीढ़ की हड्डी पर अपने अंगूठों से मसाज किया तो प्रगति को बहुत अच्छा लगा।

अब वे पीठ के बीच से बाहर के तरफ हाथ चलाने लगे। पीठ के दोनों तरफ प्रगति की बाजुएँ थीं जिनसे उसने अपने स्तन छुपाए हुए थे। मास्टरजी ने धीरे से उसके दोनों बाजू थोड़ा खोल दिए जिस से वे उसकी पीठ के दोनों किनारों तक मालिश कर सकें।

मास्टरजी ने तेल की कटोरी अपने पास खींच ली और प्रगति की पीठ के ऊपर दोनों तरफ टांगें कर के उसके ऊपर आ गए। इस तरह वे पीठ पर अच्छी तरह जोर लगा कर मालिश कर सकते थे।

प्रगति के नितंब अभी भी चादर से ढके थे। मास्टरजी के हाथ रह रह कर प्रगति के स्तनोंके किनारों को छू जाते। पर वह इस तरह मालिश कर रहे थे मानो उन्हें प्रगति के शरीर से कुछ लेना देना न हो।

उधर प्रगति को अपने स्तनों के आस पास के स्पर्श से रोमांच हो रहा था। वह आनंद ले रही थी। यही कारण था कि उसके बाजू स्वतः ही थोड़ा और खुल गए जिस से मास्टरजी के हाथों को और आज़ादी मिल गई।

मास्टरजी पुराने पापी थे और इस तरह के इशारे भांप जाते थे सो उन्होंने अपनी मालिश का घेरा थोड़ा और बढ़ाया। दोनों तरफ उनके हाथ प्रगति के स्तनों को छूते और नीचे की तरफ नितंबों तक जाते।

प्रगति के इस छोटे से प्रोत्साहन से मास्टरजी में और जोश आया और वे उसकी पीठ पर ऊपर से नीचे तक और दायें से बाएं तक मालिश करने लगे। कभी कभी उनकी निकर प्रगति के चादर से ढके नितंब को छू जाती।

प्रगति की तरफ से कोई आपत्ति नहीं होते देख मास्टरजी ने उसके नितंब को थोड़ा और ज़ोर से छूना शुरू कर दिया। जिस तरह एक पहलवान दंड पेलता है कुछ उसी तरह मास्टरजी प्रगति के ऊपर घुटनों के बल बैठ कर उसकी पीठ पेल रहे थे।
कभी कभी उनका लिंग, जो कि इस प्रक्रिया के कारण उठ खड़ा था, निकर के अन्दर से ही प्रगति के चूतडों को छू जाता था।

प्रगति आखिर जवानी की दहलीज पर कदम रखने वाली एक लड़की थी, उसके मन को न सही पर तन को तो यह सब अच्छा ही लग रहा था।

अब मास्टरजी ने पीठ से अपना ध्यान नीचे की तरफ किया। पर नितम्बों की तरफ जाने के बजाय वे प्रगति के पाँव की तरफ आ गए। उन्होंने प्रगति के ऊपरी शरीर को चादर से फिर से ढक दिया और पाँव की तरफ से घुटनों तक उघाड़ दिया। इससे प्रगति को दुगनी राहत मिली।
एक तो ठंडी पीठ पर चादर की गरमाई और दूसरे उसे डर था कहीं मास्टरजी उसकी मजबूरी का फ़ायदा न उठा लें।

मास्टरजी को मन ही मन वह एक अच्छा इंसान मानने लगी। उधर मास्टरजी, लम्बी दौड़ की तैयारी में लगे थे। वे नहीं चाहते थे कि प्रगति आज के बाद दोबारा उनके घर लौट कर ही न आये। इसलिए बहुत अहतियात से काम ले रहे थे।

हालाँकि उनका लिंग बेकाबू हो रहा था। इसी लिए उन्होंने निकर के नीचे चड्डी के बजाय लंगोट बाँध रखी थी जिसमें उनके लिंग का विराट रूप समेटा हुआ था। वरना अब तक तो प्रगति को कभी का उसका कठोर स्पर्श हो गया होता।

मास्टरजी ने प्रगति के तलवों पर तेल लगा कर मालिश शुरू की तो प्रगति यकायक उठ गई और बोली- यह आप क्या कर रहे हैं?’

ऐसा करने से प्रगति के नंगे स्तन मास्टरजी के सामने आ गए। हड़बड़ा कर उसने जल्दी से अपने आपको हाथों से ढक लिया। पर मास्टरजी को दर्शन तो हो ही गए थे।

मास्टरजी के लिंग ने ज़ोर से अंगड़ाई ली और अपने आपको लंगोट की बंदिश से बाहर निकालने की बेकार कोशिश करने लगा।

प्रगति के स्तन छोटे पर गोलाकार और गठे हुए थे। अभी इन्हें और विकसित होना था पर किसी मर्द को लालायित करने के लिए अभी भी काफी थे।

इस छोटी सी झलक से ही मास्टरजी के मन में वासना का अपार तूफ़ान उठ गया पर वे दूध के जले हुए थे। इस छाछ को फूँक फूँक कर पीना चाहते थे।

उन्होंने दर्शाया मानो कुछ देखा ही न हो, बोले- प्रगति यह तुम्हारे उपचार की क्रिया है। इसमें तुम्हे संकोच नहीं होना चाहिए। तुम मुझे मास्टरजी के रूप में नहीं बल्कि एक चिकित्सक के रूप में देखो। एक ऐसा चिकित्सक जो कि तुम्हारा हितैषी और दोस्त है। अब लेट जाओ और मुझे मेरा काम करने दो वरना तुम्हें घर लौटने में देर हो जायेगी।’

प्रगति संकोच में थी फिर भी लेट गई। किसी के सामने नंगेपन का अहसास एक मानसिक लक्ष्मण रेखा की तरह होता है। बस एक बार ही इसकी सीमा पार करनी होती है। उसके बाद उस व्यक्ति के सामने नंगापन नंगापन नहीं लगता।

प्रगति को अपने ऊपर शर्म आ रही थी कि अपनी बेवकूफी के कारण उसने अपने आप को मास्टरजी के सामने नंगा कर दिया था। यह तो अच्छा है, उसने सोचा, कि मास्टरजी एक अच्छे इंसान हैं और बुरी नज़र नहीं रखते। कोई और तो उसे दबोच देता। यह सोच कर प्रगति सहम गई।

उधर मास्टरजी ने तलवों के बाद प्रगति की दोनों टांगों की पिंडलियों को दबाना शुरू किया। प्रगति को लगा मानो उसकी सालों की थकान दूर हो रही थी।
उसे ऐसा अनुभव कभी नहीं हुआ था। किसी ने कभी इस तरह उसकी सेवा नहीं की थी। वह मास्टरजी की कृतज्ञ हो रही थी।

तो जब मास्टरजी ने उसकी टांगें थोड़ी और खोलने की कोशिश की तो प्रगति ने उनका सहयोग करते हुए अच्छी तरह अपनी टांगें खोल दीं। मास्टरजी अब पिंडलियों से प्रगति करते हुए घुटने और जांघों तक आ गए। अच्छे से तेल लगा कर हाथ चला रहे थे जिस से हाथ में खूब फिसलन हो और वे ‘गलती से’ इधर उधर छू लें।

अब प्रगति अपनी मालिश करवाने में पूरी तरह लीन थी। उसे बहुत मज़ा आ रहा था। प्रगति के ऊपर रखी चादर उसके नितंब तक उघड़ गई थी।

मास्टरजी ने अब देखा कि प्रगति पूरी नंगी नहीं है और उसने चड्डी पहन रखी है। मन ही मन उन्हें गुस्सा आया पर गुस्सा दबा कर प्यार से बोले- तुम्हें यह चड्डी भी उतारनी होगी नहीं तो शरीर के ज़रूरी भाग इस उपचार से वंचित रह जायेंगे। बाद में तुम्हें पछतावा हो सकता है। लेकिन अगर तुम्हें संकोच है तो जैसा तुम ठीक समझो!!

मास्टरजी ने अपना तीर छोड़ दिया था और वे आशा कर रहे थे कि प्रगति उनके जाल में फँस जायेगी। ऐसा ही हुआ।

प्रगति ने कहा- मास्टरजी, जैसा आप ठीक समझें!!

तो मास्टरजी ने उसको चादर से ढक दिया और कमरे के बाहर यह कहते हुए चले गए कि वे बाथरूम हो कर आते हैं। तब तक प्रगति चड्डी उतार कर लेट जाये।

मास्टरजी को थोड़ा समय वैसे भी चाहिए था क्योंकि उनका भाला अपनी क़ैद से मुक्त होना चाहता था। इतनी देर से वह अपने आप को संभाले हुए था।
मास्टरजी को डर था कहीं ज्वालामुखी लंगोट में ही न फट जाए। बाथरूम में जाकर मास्टरजी ने अपनी लंगोट खोली और अपने लिंग को आजाद किया।
इससे उन्हें बहुत राहत मिली क्योंकि उनके लिंग में हल्का सा दर्द होने लगा था। उसके अन्दर का लावा बाहर आने को तड़प रहा था।

इतनी कमसिन और प्यारी लड़की के इतना नजदीक होने के कारण उनका लंड अति उत्तेजित था और कुछ न कर पाने के कारण बहुत विवश महसूस कर रहा था। उसके लावे को छुटकारा चाहिए था।

मास्टरजी ने इसी में भलाई समझी कि अपने लिंग को शांत करके ही प्रगति के पास जाना चाहिए। वरना करे कराये पर पानी फिर सकता है।

यह सोच उन्होंने अपने लंड को तेल युक्त हाथ में लिया और प्रगति के स्तनों का स्मरण कर मैथुन करने लगे। लिंगराज तो पहले से ही उत्तेजित थे, थोड़ी सी देर ही में चरमोत्कर्ष को पा गए।

मास्टरजी ने सोचा अब लंगोट की क्या ज़रुरत सो सिर्फ निकर ही पहन कर बाहर आ गए।

वहाँ प्रगति चड्डी उतार कर चादर के नीचे लेटी हुई थी। चड्डी में थोड़ा गीलापन था सो उसने चड्डी को गद्दे के नीचे छुपा दिया।

मास्टरजी ने जहाँ छोड़ा था वहीं से आगे मसाज शुरू किया। चादर को पाँव की तरफ से ऊपर लपेट कर प्रगति की जांघों तक उठा दिया और उसकी टांगें अच्छे से खोल दीं क्योंकि प्रगति अब नंगी थी, टांगें खुलने से उसे शर्म आ रही थी सो उसने अपनी टांगें थोड़ी सी बंद कर लीं।

मास्टरजी ने कुछ नहीं कहा और पीछे से घुटनों और जांघों पर तेल लगाने लगे। उनके हाथ धीरे धीरे ऊपर की तरफ जाने लगे और चूतडों पर पहुँच गए।

मास्टरजी प्रगति की टांगों के बीच वज्रासन में बैठ गए और प्रगति के घुटने से ऊपर की टांगों की मालिश करने लगे। चादर को उन्होंने उसकी पीठ तक उघाड़ दिया और वह उलटी, नंगी और असहाय उनके सामने लेटी हुई थी।

मास्टरजी अपने जीवन में सिर्फ लड़कियाँ ही नहीं लड़कों का यौन शोषण भी कर चुके थे सो उन्हें गांड से बेहद प्यार था और उन्हें गांड मारने में मज़ा भी ज्यादा आता था।
इस अवस्था में प्रगति की कुंवारी गांड को देख कर मास्टरजी की लार टपकने लगी। उनका मन कर रहा था इसी वक़्त वे प्रगति की गांड भेद दें पर अपने ही इरादे से मजबूर थे।

उनके हाथ प्रगति के चूतडों पर सरपट फिर रहे थे। रह रह कर उनकी ऊँगलियाँ चूतडों के पाट के बीच चली जातीं। जब ऐसा होता, प्रगति हिल हिल कर आपत्ति जताती।

वज्रासन से थक कर मास्टरजी अपने घुटनों के बल बैठ गए और मालिश जारी रखी। उनकी ऊँगलियाँ प्रगति की योनि के द्वार तक दस्तक देने लगीं। ऐसे में भी प्रगति हिलडुल कर मनाही कर देती।

अब मास्टरजी ने प्रगति के ऊपर से पूरी चादर हटा दी और मालिश का वार पिंडलियों से लेकर पीठ और कन्धों तक करने लगे। जब वे आगे को जाते तो उनकी निकर प्रगति के चूतडों से छू जाती।

हालाँकि मास्टरजी एक बार लिंगराज को राहत दिला चुके थे और आम तौर पर उनका लंड एक दो घंटे के विश्राम के बाद ही दुबारा तैयार होता था, इसी विश्वास पर तो उन्होंने लंगोट उतार दी थी।
पर आज आम हालात नहीं थे, लिंगराज के लिए कठिन समय था, उनके सामने एक अत्यंत कामुक और आकर्षक लड़की उनकी गिरफ्त में थी।
वह नंगी और कई तरह से असहाय भी थी। उनके संयम की मानो परीक्षा हो रही थी।

मन पर तो मास्टरजी ने काबू पा लिया पर तन का क्या करें। उनका लंड ताव में आ गया और उसके तैश के सामने बेचारी निकर का कपड़ा कमज़ोर पड़ रहा था। वह उसके बढ़ाव और उफ़ान को अपने में सीमित रखने में नाकामयाब हो रहा था।

अतः मास्टरजी का लंड निकर को उठाता हुआ आसमान को सलामी दे रहा था। मास्टरजी के इरादों का विद्रोह करते हुए उन्हें मानो अंगूठा दिखा रहा था।

यह तो अच्छा था कि प्रगति उलटी लेटी हुई थी वरना लिंगराज की यह हरकत उससे छिपी नहीं रह सकती थी। सावधानी बरतते बरतते भी उनकी लंड-युक्त निकर प्रगति की गांड को छूने लगी।

कुछ भी कहो, सामाजिक आपत्ति और विपदा एक बात है और प्रकृति के नियम और बात हैं। प्रगति या उसकी जगह कोई और लड़की, का सम्भोग के प्रति विरोध सामाजिक बंधनों के कारण होता है ना कि उसके तन-मन की आपत्ति के कारण।

तन-मन से तो सबको सम्भोग का सुख अच्छा लगता है बशर्ते सम्भोग सम्मति के साथ किसी प्रियजन के साथ हो।
यहाँ भी, हालाँकि प्रगति के संस्कार उसको ग्लानि का आभास करा रहे थे, पर मास्टरजी के लंड का उसके चूतड़ों पर हल्का हल्का स्पर्श, उसके शरीर को रोमांचित और मन को प्रफुल्लित कर रहा था।

प्रगति की योनि से सहसा पानी बहने लगा।

यहाँ तक की कहानी आपको कैसी लगी मुझे ज़रूर बताइए।
इसके आगे क्या हुआ, अन्तर्वासना पर अगले अंक में पढिये!!
मुझे आपके विचार और टिप्पणी का इंतज़ार रहेगा।
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