माँ की ममता
(Maa Ki Mamta)
मेरा नाम सोनिया लाम्बा है, मैं गृहिणी हूँ और दिल्ली में रहती हूँ। मैं आप से अपने बदन का जिक्र नहीं करुँगी क्योंकि आपको मेरी सच्ची कहानी पढ़ने के बाद मेरे बदन का अंदाजा हो जायेगा। मैं 27 साल की युवती हूँ, मेरा 7 साल का बेटा मोनू मेरी शादी के 2 साल बाद हो गया था और उसके बाद हमने दूसरे बच्चे के बारे में नहीं सोचा क्योंकि हम दूसरे बच्चे की देखभाल नहीं कर सकते थे क्योकि हम मध्यम-वर्गीय परिवार से हैं। मेरे पति एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में सुपरवाइजर हैं और उनका मासिक वेतन 12,000 रुपए ही है।
मेरी चुदाई की कहानी 2 साल पहले की है जब मोनू पाँचवी में पास हो चुका था, उसके अंक काफी अच्छे थे 72%! हमने सोचा कि क्यों न मोनू का प्रवेश किसी बड़े स्कूल में करा दें जिससे उसकी आगे की जिंदगी सुधर जाये और आगे जाकर उसका अच्छा भविष्य बन जाये। मेरे पति के पास समय की कमी होने की वजह से मुझे उसके प्रवेश के लिए दिली पब्लिक स्कूल में जाना पड़ा।
अप्रेल का महीना था, मैं एडमीशन इन्चार्ज़ के कमरे में चली गई। मैंने लाल रंग की साड़ी और गहरे गले का ब्लाउज़ पहना हुआ था। अप्रेल के महीने की वजहे से मैं पूरी पसीने में भीग चुकी थी और मेरा ब्लाउज़ मेरे बदन से चिपक गया था जिसकी वजह से मेरा बदन कसा हुआ लग रहा था और मेरी चूचियों के बीच की घाटी साफ दिकाई दे रही थी जिसके दिखने की वजह से एडमीशन इंचर्ज़ की नजरे एक समय के लिए वहीं पर गड़ी की गड़ी रह गई।
मुझे यह सब पता चल चुका था इसलिए मैंने अपनी साड़ी कुछ ऊपर को कर ली वो मुझे अपने होंठों पर मुस्कान लाते हुए देखने लगा। मैं भी उसके अध्यापक होने की वजह से मुस्कुरा दी, मैंने कहा- मैं अपने बेटे के एडमीशन के लिए आई हूँ!
वहाँ दो बच्चों की माँएँ भी आई थी, वे दोनों माँएँ अमीर परिवारों से आई हुई लग रही थी। एडमीशन इन्चार्ज़ ने उन्हें स्कूल का प्रवेश का फ़ॉर्म दिया और मुझे भी!
उन दोनों महिलाओ से फ़ॉर्म लेने के बाद उन्हें एडमीशन फ़ीस की रसीद काट कर पकड़ा दी। उसमें एडमीशन फी 10,000 रुपए थी तो मैं उनकी फ़ीस की रसीद देख कर चौंक पड़ी, मेरे चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लग गई और मैं यह सोच तक नहीं पा रही थी कि एडमीशन-फ़ार्म दूँ या न दूँ!
थोड़ी ही देर के बाद एडमीशन इन्चार्ज़ ने मुझसे भी फॉर्म वापिस मांगा तो मैंने कहा- मैं आपसे कुछ अकेले में बात करना चाहती हूँ!
वे दोनों महिलायें मेरी तरफ शक भरी नजरों से देखने लगी, मैंने बात को घुमाते हुए कहा- मुझे थोड़ा स्कूल के बारे में जानना था इसीलिये आपसे कुछ अकेले में पूछना था!
वे मुझे उसी कमरे के साथ में बने रेस्ट-रूम में ले गए। मैंने उन्हें अपनी पारिवारिक परिस्थिति बता दी तो उन्होंने कहा- आप अपना फॉर्म मुझे दे दो और उस पर अपना फ़ोन नम्बर लिख दो।
और कहा- मुझसे जो हो सकेगा, मैं जरूर करूँगा!
और उन्होंने बातों-बातों मेंअपना नाम राजेश बताया और मुझसे पूछा- क्या तुम रविवार को फ़ुरसत में रहती हो?
मैं थोड़ा बहुत उनका इशारा समझ चुकी थी और मैं भी उनकी इस बात पर थोड़ा मुस्कुरा दी और मैं अपने बेटे का हाथ पकड़ कर घर को आ गई!
फिर उसी रविवार को राजेश जी का फ़ोन मेरे मोबाइल पर आ गया- अगर आपको फ़ुरसत हो तो दोपहर दो बजे स्कूल में मेरे कमरे में आ जाओ अकेले!
मैं थोड़ा-थोड़ा समझ चुकी थी, मैंने उनसे कहा- मेरे पति आज घर पर हैं, अगर मैं आपके पास बिना सोनू के अकेले आऊँगी तो सुरेश पूछेंगे कि सोनू का एडमीशन है और मैं अकेली ही स्कूल में जा रही हूँ?
रमेश- ठीक है तो सोनू को भी स्कूल ले आओ।
मैं बाथरूम में अपने पति का दाढ़ी बनाने वाला सामान लेकर नहाने चली गई। वहाँ पर मैंने अपनी झांटे तसल्ली से साफ कर ली और झाँटे साफ करके अपनी चूत खुशबू वाले शैम्पू से रगड़ कर साफ कर ली, एक चमचमाती साड़ी और गहरे गले का पीला ब्लाउज पहन कर और होंठों पर लाल लिपस्टिक लगा ली और मैं स्कूल पहुँच गई अपने बेटे के साथ।
उनकी नजर जब मुझ पर पड़ी तो वो मुझे ऊपर से नीचे तक देखते के देखते रह गए। मैंने उनका ध्यान हटाने के लिए उनसे पूछा- क्या मेरे बेटे का एडमीशन हो जायेगा सर?
उन्होंने अपना ध्यान मेरी चूचियों से हटाते हुए कहा- सोनू के एडमीशन के लिए ही तो आपको यहाँ बुलाया है!
मैंने कहा- तो रविवार को ही आपने क्यों बुलाया है हमें सर?
उन्होंने कहा- मैं अपने व्यक्तिगत काम रविवार को ही करता हूँ।
राजेश जी ने मेरे बेटे से कुछ सवाल पूछे और सोनू ने भी सभी सवालों के सही जवाब दे दिए।
फिर राजेश जी ने फीस मांगी, मैं घर से सिर्फ़ 6,000 रुपए लाई थी तो मैंने उन्हें 6,000 रुपए दे दिए।
उन्होंने चेहरे पर अजीब से भाव लाते हुए कहा- सोनिया लाम्बा जी, हमारे स्कूल की फीस 10,000 रुपए है और आप सिर्फ 6,000 ही दे रही हो?
मैंने उनसे कहा- मैंने आपको अपनी पारिवारिक परिस्थिति बता चुकी हूँ और मैं इससे ज्यादा आपको नहीं दी सकती!
उन्होंने अकड़ते हुए कहा- नहीं सोनिया जी, आपके लड़के का एडमीशन इस स्कूल में नहीं हो सकता है, आप किसी और स्कूल में अपने बच्चे का एडमीशन करवा लीजिये।
मैं डर गई कि कहीं सोनू का एडमीशन न रुक जाये तो मैंने उनसे विनती करते हुए कहा- हमारे पास जितना था वो मैं आपको दे चुकी हूँ और मेरे पास आपको देने के लिए कुछ नहीं है!
और मैंने यह भी कहा- सोनू आपके ही बच्चे की तरह ही है सर! बाकी जो आपको ठीक लगे आप वैसा ही करिए!
तो उन्होंने कहा- देने के लिए रुपए ही नहीं कुछ और भी दे सकते हो आप!
और बातों ही बातों में उन्होंने यह भी कह दिया कि अगर बच्चे के साथ माँ भी मेरी हो जाये तो मैं सोनू का एडमीशन आराम से कर लूँगा।
मैं उनका इशारा समझ गई और हल्के से मुस्कुरा दी।
मेरे मुस्कुराते ही उन्होंने मेरे पांव को अपने पांव से मेज के नीचे से रगड़ना शुरु कर दिया और मैंने भी उनका विरोध नहीं किया।
उन्होंने कहा- अगर आप तैयार हों तो आप रेस्टरूम में जाकर मेरा इंतजार कर सकती हो!
मैंने सोचा- थोड़ी देर की ही तो बात है, अच्छे स्कूल में अगर सोनू का एडमीशन हो जाता है और वो भी कम फीस में तो बुरा ही क्या है!
तभी रमेश जी ने कहा- क्या सोच रही हो? ऐसा मौका आपको फिर कभी नहीं मिलेगा और आपके लड़के की पढ़ाई की जिम्मेवारी भी मुझ पर छोड़ देना।
फिर मैंने रमेश जी से कहा- क्या यह गलत नहीं होगा?
तो रमेश जी ने कहा- आज रविवार है, पूरे स्कूल में छुट्टी है और जो भी होगा वो इस चारदिवारी में ही होगा। किसको पता चलेगा और जब किसी को पता ही नहीं चलेगा तो क्या गलत और क्या सही? सोच लीजिये सोनिया जी, यह मौका आपको फिर कभी नहीं मिलेगा और फिर आपका डीपीएस स्कूल में आपने बच्चे को पढ़ाने का सपना सपना रह जायेगा!
मैंने थोड़ा सोच कर सहमति में सर हिला दिया और उनसे कहा- जब तक हम अंदर रहेंगे तब तक सोनू कहाँ रहेगा और क्या करेगा?
उन्होंने कहा- उसकी जिम्मेवारी आप मुझ पर छोड़ दो। मैं उसे चॉकोलेट और कुछ किताबे पढ़ने के लिए यहीं दे दूंगा! आप कमरे में चले जाइये, मैं थोड़ी ही देर में आपके पास आता हूँ।
मैंने सोनू की तरफ उसके उज्ज्वल भविष्य के बारे में सोचते हुए उसे कहा- सोनू, मैं तुम्हारे नए सर के साथ अंदर कुछ जरूरी काम करके अभी 15 मिनट में आती हूँ, तुम यहाँ से कहीं मत जाना! सर तुम्हें चॉकोलेट और कुछ किताबे देंगे, उन्हें पढ़ना!
और मैं अंदर चली गई।
अन्दर का नजारा काफी आलीशान था, ए सी चल रहा था एक सोफा एक मेज और एक बिस्तर लगाया हुआ था।
मैंने इतना देखा ही था कि अचानक पीछे से दो हाथ मेरी बगल से होते हुए मेरी चूचियों को सहलाने लगे। मैं थोड़ा सा झिझकी और फिर मैंने अपने आप को दिलासा दिया कि सोनू के अच्छे भविष्य के लिए 10-15 मिनट की ही तो बात है, यह कौन सा मुझे खा जाएगा। थोड़ी देर इसके नीचे ही तो लेटना है। मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे वो मेरी चूचियों से खेलने के कारण पूरा जोश में आ चुका था, उसका लंड तन चुका था और वो अपनी पैंट के अंदर से ही मेरी साड़ी को चीरता हुआ मेरी गांड की दरार के बीच में फिट होना चाहता है।
उसने मेरी चूचियों को जोश में आने के कारण और जोर से निचोड़ना शुरु कर दिया जिसकी वजह से मेरे मुँह से उफ उफ उफ उफ उफ उफ की आवाजें आ रही थी। फिर उसने मुझे घुमा कर अपनी कठोर छाती से चिपका लिया और जानवरों की तरह मेरे होंठों पर टूट पड़ा।
मैंने जो लाल रंग की लिपिस्टिक अपने होंठों पर लगाई थी, वो रमेश जी अपने चुम्बनों में सारी की सारी चाट गए।
कहानी में अभी बाकी है क्या बताने को?
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