लकी प्रोजेक्ट गाइड
प्रेषक : बिग डिक
बात उन दिनों की है जब मैं बैंगलोर में एक अर्धशासकीय कम्पनी में काम करता था। मेरे पास कॉलेज के बहुत सारे छात्र प्रोजेक्ट करने के लिये आते थे और मैं बहुत सिंसियरली उनको प्रोजेक्ट कराता था। मैं सॉफ़्टवेयर डेवलपमेंट ग्रुप में था इसलिये मेरे पास ज्यादातर कम्प्यूटर ब्रान्च के छात्र आते थे, जिसमें ज्यादातर लड़कियाँ होती थीं।
यहाँ मैं आपको बता दूँ कि बैंगलोर की लड़कियाँ बहुत ही आज़ाद ख्यालों वाली होती हैं। उनके कपड़े काफ़ी भड़कीले होते हैं … टाइट जींस … जिसमें उनका सुडौल पिछवाड़ा बहुत ही आकर्षक दिखाई देता है। लो कट टी-शर्ट जिसमें से उनके वक्ष का आधा भाग और उनके बीच का दरार काफ़ी उत्तेजक लगता है। ऊपर से वो कुछ ऐसा पर्फ़्यूम छिड़क के आती थीं जो मदमस्त कर देने वाला होता था।
मैं एक अच्छा ओरेटर हूँ इसलिये मेरे बात करने का अन्दाज़ लड़कियों को बहुत भाता है इसलिये लगभग सारी लड़कियाँ किसी ना किसी तरह से मुझे लाइन मारने की कोशिश करती रहती थीं। मैं उनका लाइन मारना, उनके साथ पिक्चर जाना, अम्यूज़मेंट पार्क्स में घूमना, वाटर पार्क्स में उनके भीगे बदन के साथ घूमना, उन्हें देखना इत्यादि तो इन्जॉय करता था पर उससे आगे बढ़ने की ना तो मेरी हिम्मत थी ना ही इच्छा।
मगर किस्मत को तो कुछ और ही मंज़ूर था।
मैं अपने सहयोगियों के साथ कैन्टीन में लन्च कर रहा था, कि अचानक ज़मील ने कहा “अबे देख … कितने बड़े-बड़े हैं इसके …”
मैंने सर उठाकर देखा … एक बीस-इक्कीस साल की लड़की अपनी दो सहेलियों के साथ लंच लेने आई थी, और जिसके बारे में ज़मील ने कमेंट किया था उसके स्तन वाकई बहुत बड़े थे … आम लड़कियों से काफ़ी बड़े … उसकी दोनों सहिलियाँ भी ठीक ठाक थीं।
मैंने कहा,”देखते हैं किसकी झोली में गिरती हैं … !”
ज़मील ने कहा,”तू ही तो है प्रोजेक्ट गाइड सभी लड़कियों का … तेरे पास ही आयेंगी … और कहाँ जायेंगी..”
मैंने कहा,”काश …!”
दोपहर में जब मैं लंच के बाद आकर अपने केबिन में बैठा तो मेरे एक सीनियर का फ़ोन आया, वो रिक्वेस्ट कर रहे थे कि मैं उनकी रिश्तेदार और उसकी सहेलियों का प्रोजेक्ट गाइड बन जाऊँ। मैंने हाँ कर दिया था..परंतु तब तक भी मैंने यह नहीं सोचा था कि ये वही लड़कियाँ होंगी जिन्हें हमने कैन्टीन में देखा था।
बहरहाल वो तीनों मेरे पास आईं, हैण्ड-शेक किया, अपने लो कट टी-शर्ट्स में से अपना यौवन दिखा-दिखा कर अपना इन्ट्रोडक्शन दिया, कुछ प्रोजेक्ट की बातें की, कुछ मुझे पटाने के लिये अदायें फेकीं (ताकि उनका प्रोजेक्ट ज़ल्दी और आसानी से हो जाये) और “थैन्क् यू सर” बोल के … अपने सुगठित, उन्नत … गोल-गोल … लुभावने … पिछवाड़े मटकाते हुये चली गईं।
पहली बार … जी हाँ पहली बार मुझे किसी लड़की ने इतना हिला कर रख दिया था। वैसे तो मैं शाम को ऑफ़िस से आकर सारी बातें भूल जाता हूँ पर उस दिन ऐसा नहीं हुआ … उसके उन्नत उरोज … उनके बीच की मादक दरार … उसके भरे-भरे नितंब … उसके रसीले और तराशे हुये होंठ … उसकी कमनीय आँखे (जो तकरीबन सभी साउथ इंडियन लड़कियों की होती हैं) … मेरे जेहन में घूम रहे थे।
दूसरे दिन मेरा मन काम में नहीं लग रहा था ..
मैं रह-रह के अपनी घड़ी की तरफ़ देख रहा था। आखिरकार वो आईं और इस बार ज़्यादा सज सँवरकर आईं, और कमनीय बन के आईं, और हाई-हील के सैंडिल पहन के आईं ताकि उनके नितंब और उभरे हुए दिखें … शायद उन्हें यह एहसास हो गया था कि मैं उनके पुष्ट नितंबों को निहारता था.. क्योंकि उनका प्रोजेक्ट गाइड यानि मैं, एक जवान और अविवाहित लड़का था।
तीनों एक से बढ़कर एक लग रही थीं पर मेरी नज़र तो उस बड़े उरोजों वाली … ‘शशि’ पर थी, जो उन तीनों में सबसे खूबसूरत भी थी। बहरहाल मैं यह दिखा था कि मैं बहुत नॉर्मल हूँ और तीनों को बराबर ट्रीट कर रहा हूँ। मैं उनको कम्प्यूटर पर कोड लिखने को कहता और पीछे बैठकर उनके सुडौल अंगों को देखता। उफ़ क्या ग़ज़ब का सम्मोहन था … जो मुझे उन अंगो को छूकर देखने को उत्तेजित करता था।
जब वो मेरे बगल में बैठती थीं और मैं की-बोर्ड में टाइप करता था तो कोहनी से जानबूझकर उनके उभारों को छूकर ’सॉरी’ बोल देता था … वो भी ’इट्स ओके’ कह देती थीं और उन्हें लगता था कि सर कितने शरीफ़ हैं। और आपको बता दूँ कि अच्छी और कुँवारी लड़कियाँ शरीफ़ और लल्लू से दिखने वाले लड़के पसंद करती हैं जिन्हें वो आसानी से अपने काबू में कर सकें।
पर उनको पता नहीं था कि उनसे पहले मैं जाने कितनों का प्रोजेक्ट गाइड था। पर समस्या यह थी कि तीनों अच्छी दोस्त थीं और उनमें से किसी एक को अलग करके कुछ करना मुश्किल काम था।
उस रात मैंने काफ़ी सोचा … आखिर एक आइडिया मेरे खुरापाती दिमाग में आ ही गया। अगले दिन मैंने यह दिखाना शुरू किया कि मुझे स्मिता और नेहा में ज़्यादा रुचि है … उनसे हँस-हँस के बातें करता … कभी कंधे पे हाथ रख देता … कुछ पूछती तो काफ़ी देर तक समझाता … उनके बहुत करीब रहता और ऐसी हरकतें करता कि शशि को जलन हो गई।
दो दिन ये रूटीन दोहराता रहा … और शशि का रुपगौरव और आत्मसम्मान कुचला जाता रहा। आखिर मेरी स्कीम ने काम किया … उस शाम सेशन खत्म होने से पहले शशि ने मुझसे पूछा,”सर ! आप मुझे मेरे कज़िन के घर छोड़ देंगे क्या?”
मैंने कहा,”व्हाइ नॉट !”
मैंने उसको अपनी पल्सर में लिफ़्ट दिया। रास्ते भर वो अपने बड़े-बड़े उरोज़ मेरे पीठ से छुलाती रही। मेरे अंगों में सिहरन सी दौड़ जाती और मेरे शिश्न में इतनी ज़्यादा कठोरता आ जाती जिसको पैंट में सम्हालना मुश्किल हो जाता।
अब रोज़ का यही क्रम बन गया था … धीरे धीरे उसकी हरकतें बढ़ने लगीं … पहले बाइक में मेरे कमर को पकड़कर बैठती थी, फ़िर जांघों को … एक दिन स्पीड ब्रेकर में उसका हाथ जांघ से फ़िसलकर मेरे पूरी तरह खड़े लंड पे पहुंच गया जिसको उसने, धोखे से या जानबूझकर पता नहीं, पर जोर से पकड़ लिया। बाद में उसने सॉरी बोला और मैंने कहा- कोई बात नहीं !
बात आई गई हो गई।
एक दिन उसकी कज़िन घर पे नहीं थी … मोबाइल पे लगाया तो उसने कहा कि आधे घंटे में आयेगी …
फ़ोन बन्द करके शशि बुदबुदाई,”अब मैं कहाँ जाऊँ आधे घंटे के लिये ?”
मैंने कहा,”मेरे घर !”
वो बोली,”ठीक है … मैं आपको चाय बनाके पिलाऊँगी !”
हम दोनों घर पहुंचे, चाय पी। फ़िर उसने कहा मैं थक गई हूँ, थोड़ी देर लेट जाऊँ?
मैंने कहा,”नो प्रॉब्लम !”
उसने बिस्तर पर लेट कर आँखे बंद कर ली और वहीं बगल में बैठकर ऊपर से नीचे तक उसके सारे जिस्म को अपनी आँखों से तोलने लगा। फ़िर मेरी आँखे उसके उरोजों पर अटक गई …
उसने करवट लिया और एक हाथ मेरे जांघ पर रख दिया। फ़िर कुनमुनाते हुये (जैसे नींद में होते हैं) उसने हाथ मेरे तने हुये लंड पे रख दिया। अब मैं बेकाबू होता जा रहा था।
अचानक उसने मेरे लंड को भींच लिया और कहा,”सर कितना बड़ा है आपका ये …”
मैं भौंचक्का रह गया।
उसने कहा,”ऐसे क्यों देख रहे हैं … क्या आपको मेरा इस तरह पकड़ना पसन्द नहीं?”
मैंने थूक गटका,” …ऐसी कोई बात नहीं !”
तो कैसी बात है सर … आप क्यों मुझे इग्नोर करते रहते हैं … स्मिता और नेहा मुझसे ज़्यादा अच्छी हैं क्या?”
मेरा तीर निशाने पर लग चुका था। ये सब कहते हुये उसने मेरा लंड छोड़ा नहीं था … बल्कि और भी जोर से पकड़ लिया था … मेरा लंड लोहे के रॉड की तरह सख्त हो चुका था। अंदर से मैं बहुत उत्तेजित हो चुका था पर बाहर से मुस्कुराते हुये बोला,”यह बात नहीं है शशि … मुझे तुम बहुत अच्छी लगती हो !”
उसने पूछा- आपको मुझमें क्या अच्छा लगता है?
मैंने कहा- तुम्हारे होंठ, तुम्हारे गाल … !
उसने कहा- और..?
वह कुछ और ही सुनना चाहती थी …
मैंने जारी रखा- तुम्हारे बड़े-बड़े बूब्स … तुम्हारे बट्स … मैं इन्हें महसूस करना चाहता हूँ … इनमें डूब जाना चाहता हूँ..!
उसने हस्की आवाज़ में कहा- आपको रोका किसने है सर … मैं तो कितने दिनों से यही चाह रही थी …
उसका इतना कहना था कि मैंने अपने होंठ उसके नर्म मुलायम होंठों पर रख दिये और दोनों हाथों से उसके स्तनों को टी-शर्ट के ऊपर से ही मसलने लगा …
इतने भरे-भरे कठोर और बड़े स्तन थे उसके कि लगता था अभी टी-शर्ट फाड़ के निकल पड़ेंगे। वह भी मेरे लंड को सहलाते हुये मेरा ज़िप खोलने की कोशिश कर रही थी। मेरा लंड इतना तन चुका था कि उसको बड़ी मुश्किल से बाहर निकाला और उसको देखते ही उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं, किस करना भूल गई थी वो। ८-८.५ इंच का लंड .. उसपे ३ इंच का घेरा …
बाप रे ! उसने कहा।
घुटने के बल आकर उसने मेरा सुपाड़े को लॉलीपॉप की तरह चूसना शुरू कर दिया और मेरा लंड मुँह में लेकर चूसने लगी।
मैं सिसकारियाँ लेने लगा और खड़े-खड़े अपने हाथ नीचे करके जोर-जोर से उसके स्तन मसलने लगा … थोड़ी देर बाद मेरे लंड के टिप पे लसलसा सा प्रि-कम आ गया था जो उसने मजे से चाट लिया था।
अचानक वो खड़ी हुई … उसने मेरा एक हाथ अपने वक्ष से हटाया और अपने दोनों टाँगों के बीच वहाँ रख दिया जहाँ दहकता लावा था …
पहले तो मैं बाहर से ही सहलाता रहा … नापता रहा दोनों पंखुड़ियाँ … उनके बीच की दरार … जहाँ हल्की-हल्की रिसावट हो रही थी … मैंने और आगे उंगली घुसेड़ने की कोशिश की मगर फिर याद आया कि मैंने उसकी जींस तो उतारी ही नहीं थी। अब मैंने देर नहीं लगाई … फ़टाफ़ट उसकी जींस का बटन खोला … .फ़िर ज़िप … .फ़िर मैंने उसे अपने पैर से धीरे से नीचे सरका दिया …।
मैंने उसकी अंडरवियर के अंदर हाथ डाल के उसके झांटों को टटोलते हुये दरार पे उंगली फ़िराई …उसने सिसकारियाँ भरना शुरु कर दिया और अपने गुदाज नितंबों को आगे-पीछे करने लगी … मैंने अपनी एक उंगली धीरे से अंदर प्रविष्ट कर दी … वो चिहुँक उठी … .और अपना वस्ति-दोलन और तेज़ कर दिया …
उसने अपनी आँखें बन्द कर रखी थीं … ..मैंने उंगली को आगे पीछे करना शुरु कर दिया … उसने मेरे लंड को एक हाथ में लेकर उसके चमड़े को आगे-पीछे करने लगी … मेरा सुपाड़ा और मोटा होता जा रहा था … उसकी अंडरवियर गीली होती जा रही थी … वो और बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी … उसके मुँह से गूँ-गूँ की आवाज़ निकल रही थी।
अचानक मैंने उसकी अंडरवियर धीरे से नीचे सरका दी … और उसके दोनों टांगो के बीच फ़ँसी उस दरार को निहारने लगा जिसके पीछे ऋषि-मुनियों की तपस्या भंग हो गई थी फिर मैं तो क्षणभंगुर मानव था।
शायद उसको अपनी नग्नता का अहसास हुआ या जाने कैसे वो पीछे घूम गई … अब मेरा लंड उसके उन्न्त नितम्बों के बीच की खाई में झटके मार रहा था … ..मैंने उसके दोनों बूब्स पकड़े और पीछे सट गया … वो अपने चूतड़ मेरे मुन्ने पे रगड़ने लगी। आह … स्वर्गीय आनंद था … कामुकता … लस्ट … अपनी चरम सीमा पर थी। मैंने उसके गर्दन पे एक चुम्बन दिया … उसने कराहती सी वासना में लिप्त आवाज़ में कहा,”उँह …”
मैंने अपना एक हाथ उसके उरोज से हटाया और योनिद्वार पे फेरने लगा … एक छोटी सी … मटर के दाने जितनी घुंडी का अहसास हुआ … जाने क्यों मैं उस घुंडी को रगड़ने लगा और वो बेसाख़्ता सिसकारियाँ भरने लगी …
और मेरे लंड को अपने गोल-गोल नितम्बों को बीच फ़ँसाकर ऊपर-नीचे रगड़ने लगी … लग रहा था किसी लावा में रगड़ा जा रहा है … मैं अपने आपको संयत कर पाता कि अचानक वो अपने दोनों हाथ पलंग पे रखकर झुक गई और जन्नत का दरवाजा मेरे सामने था।
साँसें घुटती हुई सी लग रही थीं … धड़कनें थमी सी महसूस हो रही थीं … सीटी बजाने के आकार में सुकड़ा हुआ भूरा सा गुदाद्वार किसी खिले हुए जासबन फूल सा लग रहा था … उसके कुछ आधे इंच नीचे भूरे-भूरे रेशमी झाँटों के झुरमुट में जो दिखाई दे रहा था … वो ऐसा लग रहा था जैसे शशि के सेक्सी होंठों को किसी ने वर्टिकल कर दिया हो … थोड़ा गुलाबी … थोड़ा बादामी … ऐसा कुछ रंग था उन होंठों के बीच …
मेरे हाथ-पाँव भारी से होते जा रहे थे … मैं अपने घुटनों पर आ गया और जाने किस अनजान शक्ति ने मेरा मुँह उस खुशबूदार … तीन इंची दरार में टिका दिया … मेरी जीभ बाहर निकल आई और मैं कुत्ते की तरह उसकी कुँवारी बुर को चाटने लगा … कुछ नमकीन-कसैला सा स्वाद था …
अब वो कन्नड़ में कुछ अंड-बंड बकने लगी और अपने चूतड़ को आगे-पीछे करने लगी … मैंने अपने जीभ के आगे का हिस्सा नुकीला करके उस मुलायम से योनिद्वार में घुसा दिया … उसकी सिसकारियाँ रुकने का नाम नहीं ले रही थीं …
मैंने जीभ को मटर के दाने जितनी घुंडी पर गोल-गोल घुमाना शुरु कर दिया … उसके दरारों से और ज़्यादा नमकीन पानी रिसने लगा … लंड का तनाव काबू से बाहर होता जा रहा था …जो आम तौर पर ८-८.५ इंच का दिखता था … आज ९ इंच का दिख रहा था … सुपाड़ा अंगारा हो गया था … उतना ही गरम … उतना ही लाल … !
अपना दहकता अंगार मैंने शशि के सुलगते लावा में रख दिया … जिसे मैंने चाट-चाट के लाल कर दिया था … उफ़ क्या गरमी थी … क्या नरमी थी … । अपने गरम सुपाड़े को उसकी चूत के दोनों पँखुड़ियों के बीच रगड़ने लगा … … जहाँ लसलसे पदार्थ का झरना सा बह रहा था …
शशि अपना नियंत्रण खोती जा रही थी … उसके तन-मन में मादकता छा गई थी … उसने अपनी कमर को उछालना शुरू कर दिया …
मैंने धीरे से सुपाड़ा अंदर घुसेड़ने की कोशिश की …
कोशिश इसलिये कह रहा हूँ कि सुपाड़ा बार-बार फ़िसल जाता था … अंदर जा ही नहीं रहा था। इतनी चिकनाई होने के बावजूद उस नई चूत के छेद के लिये तीन इंच घेरे वाला लंड काफ़ी बड़ा साबित हो रहा था … ।
मैंने एक हाथ से उसके नितंब को थामा … दूसरे हाथ से अपने लंड को पकड़ा … उसे जन्नत के दरवाजे पर टिकाया और हाथ से पकड़े-पकड़े अपने चूतड़ों को एक जुम्बिश दी … सुपाड़ा अन्दर समा गया … अभी भी ८ इंच का फ़ड़कता हुआ रॉड बुर के बाहर था … बैंगलोर के उस सुहाने मौसम में भी मैं पसीने-पसीने हो रहा था …।
अब मैंने लंड को छोड़ा … अपने आपको सीधा किया … गहरी साँस ली … दोनों हाथों से उसके गोल-गोल सुडौल नितंबों को थामा …नज़रें जासबन फूल पे टिकाई और अपने चूतड़ों को जबरदस्त झटका दिया … अब तकरीबन ४-४.५ इंच अंदर था..। अंदर तो भट्टी दहक रही थी … सब कुछ गरम-गरम महसूस हो रहा था …
शशि कराह रही थी …
थोड़ी देर तक हम दोनो ऐसे ही निश्चल रहे …लंड आधा ही अंदर था … मेरा लंड अंदर के कसाव के बावजूद फड़क रहा था …शशि चुपचाप मेरे लंड का फड़कन महसूस कर रही थी। … मैं भी उसके योनि की मांसपेशियों का संकुचन और विस्तार (फैलना और सुकड़ना) को महसूस कर रहा था।
करीब एक मिनट तक ऐसे ही रहने के बाद उसने अपने आपको आगे पीछे हिलाना शुरू किया … अभी भी लंड का आधा हिस्सा बाहर ही था … मुझे याद नहीं आ रहा है जाने कब मैं कुत्ते वाली स्टाइल में उसके ऊपर झुक गया था … उसके दोनों स्तन मेरे हाथ में थे और मैं पीछे से उसका बुरमर्दन कर रहा था।
मैं रफ़्तार पकड़ चुका था … और शशि भी अपने कूल्हों को हिला-हिला कर पूरा साथ निभा रही थी। उसकी हस्की और सेक्सी आवाज़ मुझे और उत्तेजित कर रही थी …
वो बड़बड़ा रही थी,” पुश इट् हार्ड … पुश दैट मोर इनसाइड … ऊह … ओ गॉड … आह..ऊँहु … ” और जाने क्या-क्या … ।
अचानक उसका पूरा शरीर बुरी तरह काँपने लगा … ऐसा लग रहा था कि उसके हाथ पैर उसका बोझ नहीं सम्हाल पा रहे हैं … उसके नितंबों में अजीब सी थरथराहट हो रही थी … और मैं था कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था।
अचानक शशि भरभराकर कोहनियों के बल ज़मीन पर आ गई … उसका पेट और बूब्स ज़मीन पर टिके थे पर नितम्बों वाला हिस्सा ऊपर उठा हुआ था … मैंने अपना लंड एक इंच पीछे खींचा … उसकी कमर दोनों हाथों से पकड़ा और दोनों कूल्हों के बीच निहारा … उसके फ़ाँकों के बीच फ़ंसे अपने खुद के अंग को देखकर मैं इतना उत्तेजित हो गया कि पूरी ताकत के साथ लंड को वापिस पेल दिया …
शशि बोली,”ओ गॉड … यह तो यूटेरस (बच्चेदानी) में टकरा रहा है … “
इतना कहते ही उसके बुर से तेज धार सी निकली और मेरे झाँटों की भिगोती चली गई … मैं दुगनी रफ़्तार से भिड़ गया …
थोड़ी देर में मेरे लंड में अजीब सी ऐंठन हुई और पता नहीं कितना वीर्य उसके बच्चेदानी के छेद पे न्यौछावर हो गया …
बस इतना पता है कि उसने कहा..”ओह गॉड … .इतना सारा … “
मैं उसके खुशबूदार शरीर से चिपट गया … उसके स्तनों को मसलने लगा … मेरा लंड उसकी योनि में फैलने-सुकड़ने लगा … उसने पता नहीं क्या किया … ऐसा लगा जैसे मेरे लंड का पूरा रस अपने बुर को टाइट करके निचोड़ रही हो।
मैं उसकी सुराहीदार गर्दन को चूमता जा रहा था … हम दोनों तरबतर हो चुके थे … तन से भी … मन से भी …
आज बस इतना ही …
अगली बार मैं आपको बताऊँगा कि कैसे शशि ने रति-पश्चात-क्रीड़ा में चूस-चूसकर मेरे लंड को खड़ा किया … अपने मोबाइल में उसकी फोटो खींची … और कैसे दूसरे दिन लैब में स्मिता और नेहा को दिखाया …
फिर कैसे बारी-बारी दोनों ने मुझसे लिफ़्ट माँगा … और फिर …
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