कंप्यूटर सेन्टर-1

(Computer Center-1)

वन्दना 2008-09-21 Comments

This story is part of a series:

मेरी दो कहानियाँ एक अरसा पहले प्रकाशित हो चुकी हैं।
कम्प्यूटर लैब में तीन लौड़ों से चुदी
कंप्यूटर लैब से चौकीदार तक
उसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए अब उनसे आगे :

दोस्तो, आप सब ने मेरी दोनों कहानियों को बेहद प्यार, सतिकार दिया है। कई लोगों से मेरी बात हुई, फ़ोन नंबर लेकर लोगों ने मुझे आधी रात को फ़ोन पर ठोका।

लो दोस्तो, सबकी उम्मीदों पर खरी उतरने के लिए वंदना फिर हाज़िर है ताकि आपको मेरी अगली चुदाई के लिए इन्तज़ार ना करनी पड़े !

मैं एक पढ़ी-लिखी सरकारी टीचर हूँ और साथ में अकेली रहने वाली हवस से भरी चुदक्कड़ औरत जो मर्दों के बिना रह नहीं पाती। कई लोग सोचते होंगे कि शायद यहाँ अन्तर्वासना पर मनगढ़ंत कहानियाँ होती हैं।

लेकिन दोस्तो, यह कलयुग है, घोर कलयुग ! इन सभी किस्सों में पूरी सच्चाई होती है। यह बात दुबारा इसलिए लिख रही हूँ क्यूंकि मेरी पहली कहानी छपने के बाद जब चैट पर मेरी लोगों से बात हुई सब यही पूछ रहे थे- बाई कलयुग है कलयुग ! कह रहे हैं कि दुनिया ख़त्म होने वाली है, फिर सतयुग आएगा!

इसीलिए मैं जवानी के सारे नज़ारे लूटना चाहती हूँ और आओ ले चलती हूँ अपनी मस्त ठुकाई पर ! ज़बरदस्त चुदाई जो मुझे जीवन लाल चौंकीदार ने दी !

दोस्तो यह बात मैं इसलिए दोहराती रहती हूँ ताकि सबको पढ़ने से पहले अपने सवाल का जवाब मिल जाये !

लो अब आगे बढ़ते हैं !
दोस्तो, जीवन लाल से मैं बहुत प्यार करने लगी थी वो मुझ से ! और मैं उसके बच्चे की माँ बनने वाली थी लेकिन उसके परिवार को जोड़े रखने के लिए मैं उससे दूर हो गई हूँ लेकिन इतनी भी नहीं !उसकी मजबूत बाहें मेरे लिए अभी भी खुली हैं लेकिन बहुत प्रयास कर रही हूँ उससे दूर रहने का ! देखो कामयाब होतीं हूँ या नहीं !

उससे तो दूर हूँ लेकिन चुदाई से कैसे दूर रहूँ ?

यह मेरे लिए मुश्किल काम बन सा गया है।

दोस्तो, जब तक मैं जीवन के साथ थी, मैंने उन लड़कों से कभी कभी ही चुदवाया, लेकिन फिर जब जीवन की निजी जिन्दगी के लिए उसे छोड़ा तो अब बारहवीं का वो बैच भी निकल गया जिसमें पढ़ने वाले तीन लड़कों से मैंने लेब में चुदवाया था।

जीवन से दूर होने के बाद मैंने स्कूल में जिन एक दो मास्टरों के साथ संबंध थे, वो तोड़ लिए। मैंने स्कूल के बाद बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का फैसला लिया और तीन नए कंप्यूटर खरीद कर ऊपर के हिस्से में सेण्टर खोल लिया जिसमें बेसिक, सी ++,सी, वर्ड, एक्स्सल तक पढ़ाने की सोची।

मैंने एक बोर्ड भी बनवाया और पेम्प्लेट्स भी छपवाए और कुछ ही दिन में मेरे पास तीन लड़कियाँ पड़ने को आने लगी।

लेकिन मुझे ज्यादा ज़रुरत लड़कों की थी। लेकिन मेरा मन न भटके इसके लिए यह भी अच्छा था कि लड़कियाँ ही थी।

खैर मेरी चुदाई के किस्से आम सुने जाते थे, सभी जानते थे कि मैं अकेली किसलिए रहती हूँ।

खैर कुछ दिन ही बीते थे कि मेरे पास दो मर्द आये, उनकी उम्र करीब पैंतीस-छतीस साल की होगी, मुझे बोले कि उनको कंप्यूटर की बेसिक चीज़ें सीखनी हैं क्यूंकि वो दोनों ही क्लर्क थे सरकारी जॉब पर और क्यूंकि अब सारा काम कम्प्यूटर पर होने लगा तो वो भी कुछ सीखने की सोच रहे थे। दोनों बहुत हट्टे कट्टे थे।

उधर मेरे पास अब पाँच लड़कियों का बैच था, स्कूल से मैं दो बजे घर आती थी, साढ़े चार बजे मैंने लड़कियों का बैच रखा और उन दोनों को मैंने सात बजे का समय दे दिया। मैं उन दोनों पर फ़िदा होने लगी, चुदाई की आग फिर से भड़कने लगी मेरे अन्दर !

मैं भी कसे हुए सूट डालने लगी और उनकी निगाहें मेरी मम्मों पर टिक जाती। समझाने के बहाने, माउस के बहाने झुकती तो वो भी समझने लगे थे कि आग बराबर लगी हुई है, बस माचिस की एक तीली चाहिए।

आखिर वो दिन आ गया। वो दोनों क्योंकि अब मेरे साथ काफी घुलमिल गए थे, मैंने उनको कहा- बैठो, मैं चाय लेकर आती हूँ !

नहीं रहने दो ! चाय इस वक़्त हम पीते नहीं !
क्यूँ?

बस यह समय मूड बनाने का होता है, पेग-शेग लगाने का !

अच्छा जी ! यह बात है तो पेग लगवा देती हूँ ! आज यहाँ बैठ कर मूड बना लो ! यहाँ पर मूड कुछ ज्यादा न बन जाए क्यूंकि आप तो हमारी टीचर हैं !

हूँ तो आपसे छोटी ना !

आपके बारे में काफी सुना है लेकिन आज देख भी रहे हैं !

जा फिर जोगिन्दर, पास के ठेके से दारु लेकर आ !

अरे रुको आप ! मेरे घर बैठे हैं, यह फ़र्ज़ हमारा है जनाब !

मैं कमरे में गई और सूट उतार नाइटी पहन ली, बार से विह्स्की की बोतल निकाली और ड्राई फ्रूट रखा और फ्रिज से सोडा !
वाह मैडम ! आप यह सब घर में रखती हो !

क्यूंकि तन्हाई में रात को इसका साथ मिलता है !

उफ़ हो ! उसकी आहें निकल गई ! आपकी नाइटी बहुत आकर्षक है !

अच्छा जी ! मैंने कहा- कमरे में आराम से बैठते हैं !

मेज पर सब सामान रख दिया, वो जूते वगेरा उतार कर आराम से बिस्तर पर सहारा लगा कर बैठ गए। एक बेड के एक किनारे दूसरा दूसरे किनारे !

मैं झुक कर पेग बनाने लगी, मेरा पिछवाडा उनकी तरफ था। इधर वाले ने नाइटी ऊपर करके अपना हाथ मेरी गांड पर रख दिया और फेरने लगा।

अभी से चढ़ने लगी है मेरे राजा ?

हाँ, तू है ही इतनी सेक्सी ! क्या गोलाइयाँ हैं तेरी गांड की ! उफ़ !
दोनों को गिलास थमाए और खुद का गिलास लेकर दोनों के बीच में सहारा लगा कर बैठ गई। एक इस तरफ था, एक उस तरफ !

अपनी जांघों पर मैंने ड्राई फ्रूट की ट्रे रख ली।

दूसरे वाले ने काजू उठाने के बहाने मेरी जांघों को छुआ। दोनों मेरे करीब आने लगे, दोनों ने एक सांस में अपने पेग ख़त्म कर दिए और ट्रे एक तरफ़ पर कर मेरी नाइटी कमर तक ऊपर कर दी। मेरी मक्खन जैसी जांघें देख दोनों के लंड हरक़त करने लगे।

मैंने भी पेग ख़त्म किया। मैं पेग बनाने उठी तो एक ने मेरी नाइटी खींच दी और मैं सिर्फ ब्रा और पेंटी में उठी।
वाह, क्या जवानी है तेरे ऊपर मैडम ! आज की रात यहीं रुकेंगे और यहीं रंगीन होगी यह रात !

बोले- मैडम, माफ़ करना सिर्फ आधे घंटे का वक़्त दो, हम ज़रा घर होकर वापस आते हैं। खाना मत बनाना, लेकर आयेंगे !

दारु मत लाना ! मैंने आवाज़ दी।
ठीक है !

मैं भी उठी, वाशरूम गई, रेज़र लिया, साबुन की झाग बनाई और सारीं झांटें मूण्ड दी।

फिर क्या हुआ? कैसे बीती वो रंगीन रात? ज्यादा वक़्त नहीं लूंगी !

गुरु जी की हिदायत का पालन करते हुए कहानी को दो हिस्सों में बाँट रही हूँ ! बस कुछ घंटों में बाकी की लिख दूंगी और भेज दूंगी !

आपकी वंदना
[email protected]

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