आवारगी-2
(Aavaragi-2)
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प्रेषिका : माया देवी
उधर श्वेता ने उनके लिंग को फिर लोहे की गर्म रॉड की शक्ल दे दी थी और अब स्वयं ही अपनी योनि उस पर टिका कर धीरे धीरे धक्के देने लगी थी। लिंग-मुंड के उसकी योनि में प्रवेश करते ही वह सिसक उठी- उफ….माई डीयर…. डबराल ! ….. उफ … ! कम आन रजनी ! तू इधर आकर मेरे स्तनों को संभाल… ज़रा ! डबराल यार को दूसरा काम करने दे…. श्वेता ने मुझसे कहा।
मैंने तुंरत उसके स्तनों को अपनी हथेलियों में संभाला और उसके अधरों का रसपान करने लगी, डबराल सर की मशीन आन हो गई थी, कमरे में अब श्वेता की कामुक चीखें गूंजने लगी थी।
मैंने देखा कि श्वेता की योनि में डबराल सर का लिंग आसानी से आगे पीछे हो रहा था लेकिन फिर भी लिंग की मोटाई के आगे उसकी योनि भी एक तंग सुरंग थी।
थोड़ी देर में ही डबराल सर पुनः चरम सीमा पर आ गये और इस बार उन्होंने जब श्वेता की योनि से लिंग निकाला तो मैने उसे अपने मुँह में ले लिया, लिंग कई बार मेरे हलक से टकराया और फिर कुछ गर्म बूंदें मेरे हलक में गिरी, मैं उस स्वादिष्ट पदार्थ को पी गई, इस तरह मेरे विज्ञान में पास होने के बहाने से मैने प्रथम यौनसंबंध का सुख पाया।
कई दिनों तक मैं लंगडा कर चलती रही, श्वेता मेरी इस हालत को देख कर मुस्करा देती। डबराल सर ने अब किसी भी बात पर हम दोनों को क्लास रूम में डांटना छोड़ दिया था। मेरे घर में मेरी मां ने मेरी लंगडाहट पर एक बार प्रश्न उठाया तो मैंने सीढ़ियों से गिर जाने का बहाना कर दिया। उन्होंने फिर नहीं पूछा।
इस घटना के पन्द्रह दिनों के बाद जब मेरी हालत ठीक हो गई थी।
स्कूल हाफ में मैं लंच कर रही थी, तब श्वेता ने बताया कि तुझे चपरासी पूछ रहा था। तुझे प्रिंसीपल साहब ने बुलाया है।
मैंने प्रश्न किया- क्यों….?
तो उसने अनजाने पन का ढोंग कर दिया, मैं जल्दी-जल्दी लंच निपटा कर प्रिंसीपल साहब के ऑफिस पहुंची तो वहां अधेड़ उम्र के प्रिंसीपल को अपने इन्तजार में पाया।
रजनी….. दरवाजे की सिटकनी चढ़ा दो, मुझे तुमसे कुछ स्पेशल बात करनी है ! …प्रिंसीपल ने कुर्सी पर बैठे बैठे कहा।
मैंने उनकी आज्ञा का पालन किया।
इधर आओ हमारे पास !…… प्रिंसीपल ने दूसरी आज्ञा दी।
मैं उनके निकट पहुँच गई।
हमें पता है तुमने मिस्टर डबराल को केवल इस लिये खुश किया है कि उसने तुम्हारे विज्ञान में पास होने का वादा किया है, लेकिन हम भी तो कुछ अहमियत रखते हैं, क्या हमें तुम्हारा हुस्न देखने का हक़ नहीं है ! प्रिंसीपल ने ऐसा कहा तो उनकी आँखें चमक उठीं और भद्दे होंठों पर मुस्कान दौड़ गई।
जी…..मैं पीछे को सिमटी, मेरे जेहन में खतरे की घण्टियाँ बज उठीं और यही विचार दिमाग में आया कि यहाँ से तुंरत भाग लेना चाहिये, इसी विचार के तहत मैं पलटी मगर प्रिंसीपल के शक्तिशाली हाथों ने मेरी कमर पकड़ ली और मुझे खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया, मैं चीखने को हुई तो उनकी एक हथेली मेरे खुले मुँह पर आ जमी, उनके ठंडे से स्वर में ये शब्द मुझे खामोश कर गये कि अगर तुमने हमारा सहयोग नहीं किया तो हम तुम्हारे करेक्टर को गलत साबित करके तुम्हारा रेस्टीकेशन कर देंगे।
मैं विवश हो गई, इस विवशता में एक बात का हाथ और था वह यह कि प्रिंसीपल के हाथ ने मेरी शर्ट में छुपे मेरे स्तनों को क्षण भर में ही मसल डाला था और उस मसलन ने मुझे आनंद से झंकृत कर दिया था, पन्द्रह दिन बाद आज फिर एक प्यास महसूस हो गई थी।
मुझे शान्त जान प्रिंसीपल मेरी शर्ट के बटन खोलते चले गये, उन्होंने मेरी शर्ट के पल्लों को इधर उधर कर के मेरी समीज को स्तनों के ऊपर कर दिया और मेरे तने हुए स्तनों को मसलने लगे, मैं हल्के हल्के सिसकारने लगी, मैने उनकी गोद में ही मुद्रा बदली और अब मेरे स्तन उनके सीने से भिड़ने लगे, प्रिंसीपल मेरे कांपते लरजते अधरों को भी चूसने लगे थे, मेरे हाथ उनकी पीठ पर चले गये थे, मेरा युवा शरीर तो जैसे पुरुष शरीर के स्पर्श को तलाश ही रहा था, उनके हाथ मेरी स्कर्ट के भीतर मेरे नितंबों और जाँघों को सहला रहे थे, उनकी साँसें गर्म होने लगी थी और फिर उन्होने अपने होंठों को मेरे अधरों से हटा कर मेरी गर्दन को चूमते हुए मेरे स्तनों पर ले आये, उनकी इस क्रिया ने मुझे और अधिक उत्तेजित कर डाला।
ओह सर ! …… क्यों तड़पा रहे हैं ! …… ऐसे कुर्सी पर कैसे कुछ होगा? उफ…ओह….आह ! मैं उनके कान मैं सरसराई।
ओह…. ! तुम ऐसा करो ! टेबल पर लेट कर अपनी टांगें नीचे लटका लो…..उठो…..! प्रिंसीपल ने कहा।
तो मैं उनकी गोद से उतर कर टेबल पर अधलेटी सी हो गई।
प्रिंसीपल ने खडे होकर मेरी स्कर्ट ऊपर करके मेरी पेंटी को भी जरा ऊपर को करके मेरी योनि को सहलाया और भंगाकुर को भी छेड़ दिया, मैं मचल उठी, मेरे मुख से कामुक ध्वनि फूटी और मैंने खड़े होकर उनके हाथों को पकड़ कर अपने स्तनों पर रख लिया, उनके हाथों ने मेरे स्तनों को मसलते हुए मुझे पीछे को ही लिटा दिया और पेंटी को जरा सा योनि छिद्र से हटा कर अपने लिंग-मुंड को योनि के मुख में फंसा कर धक्का दिया तो मुझे ऐसी पीड़ा हुई जैसे मेरी जांघें फट जायेंगी।
मैं चीख पड़ी, मैने दर्द के मारे फिर उठने का प्रयास किया तो उन्होंने हाथों के दबाव से मुझे उठने नहीं दिया और एक और धक्का मारा, मुझे दर्द तो हुआ पर गजब का आनंद भी आया, उनका लिंग दो तीन इंच तक मेरी योनि में उतर गया था।
सर….. ! उफ…. ! लगता है…. ! ओह…….. ! लगता है कि आपका लिंग बहुत मोटा है…… क्या लंबा भी ज्यादा है…..? मैने अपने स्तनों पर जमे उनके हाथों को दबा कर कहा।
नहीं….हाँ मोटा तो काफी है, लेकिन लंबाई आठ इंच से ज्यादा नहीं है, उन्होंने लिंग को और आगे ठेल कर पीछे करके फिर ठेलते हुए कहा।
बस…..आठ इंची….तब तो आप खूब जोर जोर से धक्के मारिये….. ! ऑफ़…. ! तभी मजा आयेगा ! मैं उत्तेजना के वशीभूत होकर बोली।
अच्छा…. ! तुम्हें तेज तेज शॉट पसंद है ! तब तो यहाँ से हटो और दीवार से हाथ टिका कर खड़ी हो जाओ …. ! यहाँ तो टेबल गिर जायेगी, उन्होंने अपना लिंग मेरी योनि से निकाल कर कहा।
मैं मेज से उठ कर दीवार पर पंजे जमाकर उनकी और पीठ करके खड़ी हो गई तो उन्होंने मेरे नितंबों को सहलाते हुए अपने मोटे ताजे लिंग को मेरी योनि में डाल दिया और फिर तेज तेज धक्के मारने लगे, मेरा पूरा शरीर जोर जोर से हिल रहा था, उनकी जांघें मेरे नितंबों से आवाज के साथ टकरा रही थी, वे धक्के मारते मारते हांफने लगे, लेकिन खूब धक्के मारने पर भी वे स्खलित नहीं हो रहे थे, यहाँ तक कि वो आगे को शाट मारते तो मैं पीछे को हटती, मुझे लिंग के योनि में होते घर्षण से और लिंग की संवेदनशील नसों से भंगाकुर पर होते घर्षण से मैं आनंद की चरम सीमा तक पहुच गई थी। मैं उन्हें और प्रोत्साहित कर रही थी, और अन्दर तक करो सर…… ! और अन्दर तक…… ! और जोर से….! उफ… उफ… ओह…..यस्…. ! आई लव इट…. ओ… मैं हर तरह से उनके साथ सहयोग करते हुए बोली।
मेरी साँसें भी तूफानी हो चकी थी।
और फिर प्रिंसीपल सर अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गये, मेरे गर्भाशय में एक शीतलता सी छाती चली गई, तब पता चला मुझे की पुरुष के खौलते वीर्य की धार जब स्त्री के गर्भ से टकराती है तो कैसा अदभुत आनंद प्राप्त होता है ! मैं पागलों की भांति प्रिंसीपल से लिपट गई और उनके लिंग को भी बेतहाशा चूमा। कुछ देर बाद अपने वस्त्र ठीक करके मैं प्रिंसीपल रूम से निकल गई।
अभी बात खत्म नहीं हुई !
आगे आगे देखिए क्या क्या होता है !
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