मेले के बहाने चुदाई की मस्ती- 5
(Desi Bhabhi Group Chudai Kahani)
देसी भाभी ग्रुप चुदाई कहानी में मैंने और मेरी सहेली ने हमारे साझे यार से चूत चुदाई का एक साथ मजा लिया पूरी रात. मेरी सहेली ने कभी ओरल सेक्स का मजा नहीं लिया था.
मैं सारिका कंवल आपका अपनी सेक्स कहानी में स्वागत करती हूँ.
कहानी के पिछले भाग
गांड चाट कर लंड खड़ा करने की कोशिश
में अब तक आपने पढ़ा था कि मैं और मेरी सहेली सुषमा दोनों मिल कर सुरेश का लंड चूसकर उसे चूम चाट कर गर्म करने में सफल हो गई थीं.
अब आगे देसी भाभी ग्रुप चुदाई कहानी:
मैं किसी तरह लिंग को मुँह से निकाल सुरेश से बोली- अब चलो, तुम लोग अपना काम चालू करो.
मेरी बात सुन सुरेश पीछे मुड़ कर टांगें दोनों जमीन पर रख कर रेडी हुआ.
उसने सुषमा को उसकी बाजू कर पकड़ उठाया और बिस्तर पर लिटा दिया.
वो खुद उसके ऊपर चढ़ गया.
सुरेश ने उसकी टांगें फैलाईं और झुक कर मुँह से उसकी योनि को लपक लिया.
सुषमा तो योनि में मुँह पड़ते ही घायल नागिन की तरह बदन मरोड़ने लगी और मुँह से मादक सिसकारियां छूटने लगीं.
सुरेश जैसे मेरी योनि चाट रहा था, ठीक वैसे ही सुषमा की योनि चाटने लगा.
मैंने देखा कि वो जीभ से उसकी योनि को फैलाता, फिर बीच की फांक को जीभ से चाटता, उसमें थूकता फिर थूक को जीभ से योनि के अन्दर डालने का प्रयास करता.
वो न केवल योनि चाट रहा था बल्कि बीच बीच में गुदाद्वार पर भी जीभ चला रहा था.
इधर इससे सुषमा मस्ती से भर कर ‘आह … इहह … ओह … उईई …’ कर रही थी और अपने दोनों हाथों से अपने स्तनों को मसलने लगी थी.
सुषमा की योनि चिपचिपी दिखने लगी थी जिससे मुझे ये पक्का हो गया था कि वो अन्दर से बहुत गीली और गर्म हो चुकी थी.
तभी सुरेश ने एक हाथ से मुझे अपने लिंग को चूसने को इशारा किया.
मैं सुरेश के पीछे गयी, वो घुटने मोड़ इस तरह से झुका हुआ था कि सिर नीचे और चूतड़ ऊपर थे.
पीछे से उसकी बड़ी सी गांड बहुत आकर्षक लग रही थी.
यूँ उठाने की वजह से चूतड़ों की दरार से उसका लिंग, अंडकोष और गुदाद्वार साफ दिख रहा था.
मैं सुरेश के पीछे झुक गयी और चूतड़ों को हाथों से पकड़ फैलाती हुई मुँह उसके गुदाद्वार से चिपका लिया और जीभ से उसके छेद को सहलाने लगी.
सुरेश भी ‘आह … ओह्ह …’ करता हुआ अब सुषमा की योनि चाटने लगा था.
थोड़ी देर के बाद मैंने चाटती हुई उसके लिंग को हाथ में लेकर जोर जोर से हिलाने लगी.
लिंग बहुत अधिक कठोर हो चुका था और अंडकोष फूल और सिकुड़ रहे थे.
मैं अब कभी छेद को चाटती, तो कभी अंडों को, तो कभी लिंग को खींच पीछे लाती और उसे चूसने लगती.
लिंग कड़क होकर इतना कठोर हो गया था कि पीछे खींचने से शायद सुरेश को दर्द होता, जिससे वो कराहता.
दस मिनट से ज्यादा हो चुका था, तभी सुषमा बोली- अब बस भी करो … ऐसे ही झाड़ दोगे क्या, अब जल्दी से मुझे चोदो!
सुरेश- क्या मस्त हो गयी है अब चूत तुम्हारी, झड़ जाओ कोई बात नहीं, अभी तो बहुत देर तक चोदना है. आज तो मैं तुम्हें 3-4 बार झाड़ दूंगा.
सुषमा- नहीं, अब बस करो और चोदो मुझे … अब मुझे मेरी चूत के अन्दर लंड चाहिए.
इतना कह कर सुषमा सुरेश का सिर पकड़ अपनी ओर खींचने लगी.
सुरेश आगे जाने लगा तो मैंने भी उसे छोड़ दिया.
अब वह पूरी तरह सुषमा के ऊपर बराबर स्थान पर आ गया.
सुषमा ने अपनी टांगें उठा कर हाथ नीचे डाला और सुरेश का लिंग पकड़ कर अपनी योनि में घुसा लिया.
वो अपने चूतड़ उठाती हुई और सुरेश की कमर पकड़ कर उसे अपनी ओर खींचती हुई बोली- मारो ठोकर!
बस क्या था … सुरेश ने आसन पकड़ा और धीरे धीरे योनि पर अपने लिंग का दबाव देते हुए घर्षण की प्रक्रिया शुरू कर दी.
कुछ ही पलों के धक्कों में सुषमा मदहोश हो गयी और सुरेश से लिपट कर सिसकारियां भरते हुए खुद में समा लेने का प्रयास करने लगी.
उन्हें देख मेरा भी मन फिर से उत्तेजित होने लगा था, मैं उनके बगल में करवट लेकर लेट गयी और उन्हें देखते हुए अपनी योनि में हाथ फिराने लगी.
समय जैसे जैसे बीत रहा था, दोनों की बदन की गर्माहट बढ़ती जा रही थी.
धक्कों में तेज़ी और जोर दोनों ही देखने को मिल रहा था.
तभी अचानक सुषमा जोरों से कराहती हुई अपनी टांगें और हाथ फड़फड़ाने लगी.
उसने अपने हाथ सुरेश के चूतड़ों पर धर दिए और उनके सहारे नीचे से अपने चूतड़ उठा उठा ठोकर मारने लगी.
बात साफ थी कि सुषमा झड़ रही थी.
सुरेश ने उसे पहले ही इतना गर्म कर दिया था कि इतनी जल्दी झड़ना संभव था ही.
सुषमा का इस तरह का व्यवहार देख सुरेश भी और जोश में आ गया और 15-20 धक्के पूरी ताकत से मार कर अपना लिंग उसकी योनि में धंसा कर रूक गया.
वो उसके स्तनों को बारी बारी चूसने लगा और पूछने लगा- कैसा लग रहा है?
सुषमा- मजा आ गया, ऐसा लग रहा मानो मूत निकल गया!
सुरेश- कहीं सच में तो मूत नहीं दिया तुमने? बहुल गीला लग रहा नीचे.
सुषमा- नहीं रे … हट ऊपर से देखने दे … बिस्तर गीला तो नहीं हो गया?
उसकी बात सुन कर सुरेश उठ कर अलग हुआ.
सुषमा अपने चूतड़ हटा कर बिस्तर देखने लगी.
वहां सच में बिस्तर गीला हो गया था पर वो पेशाब की वजह से नहीं था.
सुषमा- तौलिया लगा लेना था … अब सुबह जल्दी उठ कर धोना पड़ेगा.
सुरेश सुषमा को दोबारा संभोग करने की अवस्था में लिटाता हुआ बोला- देख चोद के मूत मुता दिया तुझे, अब फिर से तैयार हो जा मूतने के लिए.
सुषमा सुरेश को पीछे धकेलती हुई बोली- तुम नीचो हो जाओ, अब मैं करूँगी.
सुरेश- इससे बढ़िया बात और क्या होगी मेरे लिए … मैं भी बहुत थक गया था.
इतना कहते हुए सुरेश नीचे लेट गया और अपने लिंग पर थूक लगा सहलाने लगा.
सुषमा भी दोनों टांगें फैला कर उसके ऊपर चढ़ गई और लिंग के मुहाने अपनी योनि रख बैठ गयी.
योनि की छेद मिलते ही लिंग सर्र से भीतर घुस गया.
अब क्या था … सुषमा ने अपने घुटनों के सहारे सुरेश की छाती पर हाथ रख खुद को धकेलने लगी.
सुरेश भी सुषमा की कमर पकड़ कर उसे धक्के लगाने में सहायता करने लगा.
कुछ ही पलों में सुषमा और सुरेश की सिसकारियां निकलनी शुरू हो गईं.
सुषमा मस्त हिरणी की तरह अपनी बड़ी सी गांड उछाल उछाल कर धक्के मारे जा रही थी.
उसके चूतड़ों की थाप से पूरा कमरा ऐसे गूंज रहा था मानो कोई बहुत जोरों से ताली बजा रहा हो.
इधर उनकी मादक कामक्रीड़ा देख मुझसे भी रहा नहीं जा रहा था और मैं अपनी योनि में दो उंगलियां डाल कर जोरों से हस्तमैथुन करने लगी थी.
करीब दस मिनट होने को थे और अब योनि और लिंग की मिलन के स्थान पर झाग जैसा सफेद रस फैल गया था.
धीरे धीरे बिस्तर पर सुरेश की अंडकोषों से होता हुआ गिर रहा था.
अब थपाथप के साथ साथ फचाफच की आवाज निकल रही थी.
सुषमा अब पूरे जोश में थी और ऐसा लग रहा था मानो अब रूकेगी ही नहीं.
वो एकदम चरम सीमा के नजदीक पहुंच गयी थी; ऊपर सिर से लेकर कमर तक पसीने में लथपथ हो चुकी थी.
वह हांफती हुई अपनी पूरी ताकत से धक्के मार रही थी.
बस 10-12 धक्के मारने के बाद कराहती हुई वो सुरेश के ऊपर गिर पड़ी और ह्म्म्म ओह्ह आईई करती हुई अपनी कमर सुरेश के ऊपर दबा झटके मारती हुई झड़ गयी.
उसके विशाल चूतड़ फड़फड़ाने से कांपने लगी, बाकी पूरा बदन उसका कठोर से पड़ गया था.
मैंने झुक कर सुषमा की गांड की तरफ देखा.
सुरेश का लिंग अभी भी कड़क रूप में उसकी योनि के भीतर था और सुषमा की योनि की दोनों तरफ की पंखुड़ियां सिकुड़ और फैल रही थी.
थोड़ा थोड़ा चिपचिपा पानी रिस रिस कर बाहर आ रहा था.
कुछ पलों में सुषमा एकदम ढीली पड़ गयी और सुरेश के ऊपर लेटी रही.
सुरेश कुछ पल इन्तजार कर हल्के हल्के अपनी कमर उठा कर हल्के से धक्के मारता हुआ बोला- क्या हुआ, चुद न … रूक क्यों गयी?
सुषमा- मेरा हो गया … अब और नहीं धक्के मार सकती.
सुरेश- अरे पर मेरा अभी नहीं हुआ, एकदम पूरा जोश दिला कर ऐसा मत करो. कितना मजा आ रहा था मस्त होकर चुद रही थी.
थोड़ी देर वैसे ही और जोश दिखाती तो मेरा भी निकल जाता.
सुषमा- मेरा पानी छूट गया अब और नहीं होगा मुझसे!
वो सुरेश के ऊपर से उठती हुई कहने लगी- अब सारिका को चोद कर झड़ जाओ … रात भी बहुत हो गयी है.
सुषमा कपड़े से अपनी योनि साफ करती हुई सुरेश के बगल में लेट गयी.
सुरेश ने मुझे इशारा किया और मैं उसके इशारे को समझती हुई लेट गई और अपनी टांगें फैला दीं.
वह मेरी टांगों के बीच आ गया और एक हाथ से अपने लिंग को सहलाते हुए और दूसरी हाथ से मेरी योनि को छूकर बोला- चूत तो गीली ही है … चाटनी पड़ेगी क्या?
मैं- अगर मन हो रहा तो चाट लो … वरना मैं तो चुदने के लिए तैयार हूँ.
सुरेश- थोड़ी देर चाटता हूँ. सुषमा ने लय तोड़ दिया. अभी मेरा जल्दी होगा नहीं!
मैं- ठीक है, फिर एक साथ करते हैं. तुम कुछ देर मेरी चूत चाटो और मैं तुम्हारा लंड चूस देती हूं.
सुरेश- ठीक है.
इतना कह कर सुरेश और मैं 69 की अवस्था में हो गए और तौलिए से उसका लिंग पौंछ कर मैंने उसे मुँह में भर लिया और चूसना शुरू कर दिया.
उधर सुरेश भी दोनों हाथों से मेरी योनि को फैला कर भीतर का गूदा चाटने लगा.
सुषमा के अलग होने से सुरेश के लिंग में हल्का ढीलापन तो आ गया था.
उसने सही कहा था कि उसका लय टूट गया था.
एक बार लय बन जाने के बाद अगर वो टूट जाए तो मर्दों का मन मुरझा सा जाता है, ये तो मैं जानती हूं.
लय बने रहने पर यदि औरत और मर्द झड़ते हैं, तो उसका मजा बहुत अधिक होता है.
खैर … मैंने चूस कर उसे दोबारा कड़क कर दिया था.
उसने भी मेरी योनि चाट चाट कर बुरी तरह से गीली और गर्म कर दी थी.
कई बार तो मुझे ऐसा महसूस होने लगता था, जैसे अगर खुद पर काबू न कर पाई तो पेशाब की पतली धार छूट पड़ेगी.
मैं नीचे थी तो सुरेश कभी कभी अपनी कमर ऐसे हिलाता मानो मेरे मुँह को योनि समझ धक्के मार रहा हो.
उसे मैं बहुत मुश्किल से रोकती थी क्योंकि वैसे उसका लिंग मेरे गले में घुस जा रहा था.
उसके अंडकोष मेरी नाक के ऊपर उछल रहे थे.
जैसे जैसे मेरी उत्तेजना बढ़ रही थी, मैं और कामुक होती जा रही थी.
अब मैंने लिंग को मुँह से बाहर निकाल दिया और उसके अंडों को चूसने चाटने लगी.
सुरेश मस्ती से सिसकने लगा.
अंडों को चूसते चाटते हुए मैंने उसके चूतड़ों को दोनों हाथों से फैला दिया और उसके गुदाद्वार को चाटने लगी.
इससे सुरेश पागल से होने लगा.
वो औरतों की तरह कराहने लगा और उसका छेद खुद ब खुद बंद होने और खुलने लगा.
उसका गुदाद्वार बंद होकर सख्त सा हो जाता था.
सुरेश भी गर्म जोश में मेरी योनि के साथ साथ मेरे गुदाद्वार को चाटने लगा.
हम दोनों को अजीब सी गुदगुदी और मजा आ रहा था.
मैंने कई बार उंगलियों से उसके छेद को फैलाने की कोशिश की मगर वो इतना सख्त था कि उंगली भी नहीं घुस पाई.
सुरेश भी वही कोशिश में लग गया पर वो भी असफल रहा.
खैर हम दोनों को गुदा मैथुन में कोई रूचि नहीं थी, ये तो बस कामुकता में हम दोनों कर रहे थे.
हम दोनों पूरी तरह से गर्म होकर संभोग के लिए तैयार हो चुके थे.
अब हमें चरमसुख तक पहुंच कर अपने शरीर को विश्राम देना था.
मैंने कहा- अब चलो अपना काम करते हैं.
ये सुनकर सुरेश मेरे ऊपर से उठ सीधा हुआ तो सुषमा हमें देख रही थी.
वो बोली- गजब आग लगी हैं तुम दोनों में?
हम दोनों ने उसकी तरफ देख हल्का सा मुस्कुरा दिया और झट से आसन ले लिया.
मैं लेट गयी और जांघों को फैला दिया.
सुरेश तेज़ी से मेरे ऊपर आ गया और मेरे स्तनों को दबोचते हुए बोला- आज तो मैं तुम्हारी चूत को फाड़ दूंगा.
इतना कहते हुए उसने झट से मेरे ऊपर गिरते हुए अपने होंठ मेरे होंठों से चिपका लिया और मुझे चूमने लगा.
मैंने भी अपनी टांगों को सहज तरीके से फैलाते हुए एक हाथ नीचे डाल कर उसके लिंग को पकड़ कर अपनी योनि का रास्ता दिखाते हुए अपने चूतड़ उठा दिए.
फिर जल्दी से हाथ बाहर निकाल उसकी पीठ को दोनों हाथों से पकड़ लिया.
हमने चूमते हुए अपने-अपने चूतड़ों का दबाव बढ़ाया.
मैंने नीचे से अपने चूतड़ उठाए, उसने ऊपर से दबाव दिया और उसका लिंग फिसलता हुआ मेरी योनि की गहराई में समाहित हो गया.
हमने पूरी ताकत से एक दूसरे को पकड़ रखा था.
एक दूसरे के होंठों को चूमते चूसते, तो कभी एक दूसरे की जीभ को चूसते हुए निरंतर कमर के जोर का प्रयोग कर रहे थे.
उसका लिंग मेरी योनि की अंतिम छोर तक जा चुका था मगर मैं ऐसे जोर लगा रही थी मानो सुरेश को लग रहा हो कि अभी लिंग और भीतर जाएगा.
इसी बात ये से सिद्ध हो रहा था कि हम कितने उत्तेजित और गर्म थे.
जबकि उसका लिंग का सुपारा मेरी बच्चेदानी के मुँह से चिपक चुका था और मुझे जोरदार दबाव महसूस करा रहा था.
हमने अभी घर्षण शुरू नहीं किया था बल्कि दबाव बनाए हुए चुम्बन कर रहे थे.
उसके दबाव से मेरे पेट के अन्दर नाभि वाले हिस्से के नीचे बच्चेदानी के मुँह में हल्का मीठा सा दर्द से हो रहा था.
मगर मैं फिर भी उस दर्द को दरकिनार करती हुई पूरा जोर लगा कर उसे अपनी ओर खींच रही थी.
बहुत कम बार मैंने अपने जीवन में ऐसी उत्तेजना को महसूस किया था.
हम दोनों को बहुत मजा आ रहा था, दोनों के बदन बहुत गर्म थे और अभी से पसीना निकलना शुरू हो चुका था.
करीब 3-4 मिनट तक हम ऐसे ही लगे रहे और हमें हल्का थकान महसूस होने लगी थी.
लगातार धक्के लगाने में इंसान जितनी जल्दी नहीं थकता, उससे कहीं जल्दी शरीर को जोर लगा कर रखने मैं थक जाता है.
दोनों के मुँह थूक और लार से चिपचिप हो गए थे पर हमने चूमना और चूसना नहीं छोड़ा था.
अब सुरेश ने हल्के हल्के अपनी कमर चलानी शुरू की.
मेरी योनि की ग्रीवा (गर्भाशय का मुँह या बच्चेदानी का मुँह) से उसका सुपारा अलग होता और दोबारा चिपक जाता.
वो जोर से धक्का नहीं मार रहा था, उस वजह से मुझे बहुत हल्का दर्द होता.
पर मजा उससे कहीं ज्यादा आ रहा था.
मेरी उत्तेजना और बढ़ती ही जा रही थी, हर धक्के पर मैं उसे और ताकत से पकड़ती और उसे खींचने का प्रयास करती.
जैसे ही वो लिंग पीछे खींचता, मैं अपनी पकड़ ढीली करती.
मैं एक तो सुषमा और सुरेश का संभोग देख पहले से ही उत्तेजित थी और फिर सुरेश के कामुक तरीके से कामक्रीड़ा की वजह से अत्यधिक गर्म हो चुकी थी.
मैं अब चाहती थी कि संभोग पूरे जोरों से शुरू हो जाए क्योंकि इतनी उत्तेजना के बाद शायद ही कोई खुद को रोक कर रखना चाहता होगा.
शायद यह संभव ही नहीं था, तो मैं भी बस चरमसुख की कामना से उसे बांहों में जकड़े नीचे से अपने चूतड़ उठा-उठा पूरा जोर लगाने लगी.
कुछ पलों में सुरेश ने समझ लिया कि मुझे क्या चाहिए और मुझे चूमना छोड़ कर थोड़ा ऊपर उठा.
उसने एक हाथ से मेरे कंधे को पकड़ा दूसरे हाथ से मेरे सिर के बालों को और तेज़ी से मुझे धक्का मारना शुरू कर दिया.
मैं धक्कों की मार से कराहने सिसकने लगी- आह … ओह्ह …
सुरेश भी धक्के मारता हुआ कराह रहा था- आह … ह्म्म्म … कैसा लग रहा?
मैं सुरेश को अपनी ओर पूरी ताकत से खींचती हुई कराह रही थी- ओह्ह … अहह … बहुत मजा आ रहा. और जोर जोर से चोदो मुझे. तुम्हें कैसा लग रहा?
सुरेश- बहुत मजा आ रहा. जी कर रहा फाड़ दूँ तुम्हारी बुर!
मैं- जो मर्ज़ी वो करो, बस रूको मत … जोर जोर से … और तेज़ी में चोदो मुझे … अब ओर नहीं रूक सकती मैं!
सुरेश- ठीक है मेरी जान ये ले, आज तो तेरी चूत फटी समझो.
इतना कहते ही उसने जिस हाथ से मेरे बालों को पकड़ रखा था, उस हाथ को मेरी गांड के नीचे रख मजबूती से मेरे चूतड़ पकड़े और दनादन धक्कों की बारिश सी शुरू कर दी.
मैं एक ही पल में एक चीख भरती हुई उसके सीने से लिपट गयी और उसे कस कर पकड़ लिया.
उसकी जांघों के ऊपर अपनी टांगें चढ़ा कर टांगों को कस लिया.
उसके मुँह में अपने एक स्तन को भर चुसवाने लगी और जोर जोर नाक से आवाजें निकलने लगी.
अभी तो हमें संभोग किए मुश्किल से 7-8 मिनट ही हुए थे कि सुरेश ने मुझे तोड़ दिया.
मैं पूरे विश्वास से नहीं कह सकती मगर ऐसा लग रहा था मानो उसने मुझे एक मिनट में 100 से 150 धक्के मारे होंगे.
दो मिनट होते होते तो मैं शिखर पर थी और अगले ही पल नीचे आ गयी.
मैंने अपनी सांसें रोक लीं और किसी कुतिया की तरह कीं कीं कीं करती सुरेश से चिपक अपने चूतड़ उठा उठा झड़ने लगी.
मैं ऐसे अपने चूतड़ उठा रही थी मानो मैं सुरेश के लिंग को योनि से पकड़ कर रखना चाहती थी, उसे जरा भी बाहर नहीं निकलने देना चाहती थी.
कभी मैं उसकी पीठ को पकड़ती, तो कभी उसके चूतड़ों को पकड़ कर उसे खींचती.
मैं बिन पानी की मछली जैसी छटपटाती हुई झड़ने लगी थी.
मैंने अपनी योनि से तरल छूटता हुआ महसूस किया.
सुरेश का धक्का लगातार मुझे लगता रहा और हर धक्का मेरी बच्चेदानी के मुँह में जोरदार चोट कर रहा था.
दर्द को तो मैं जैसे भूल गयी थी इतना मजा आ रहा था.
कुछ पलों में अपनी योनि से रस छोड़ने के बाद मैंने अपनी रोकी हुई सांस छोड़ी और बदन ढीला कर दिया.
सुरेश धक्के मारता रहा मुझे … पर मुझे ढीला ढाला देख उसकी भी रफ्तार कम हो गयी.
सुरेश रूक रूक कर धक्के मारता हुआ बोला- क्या हुआ बहुत जल्दी झड़ गयी तुम तो!
मैं- क्या करूं तुमने इतना गर्म कर दिया कि खुद पर काबू नहीं रख पायी.
सुरेश- मैं भी बहुत गर्म हो गया था, जिस तरह तुम मेरा लंड, आंड और गांड का छेद चाट रही थी, उससे तो बदन में आग लगी थी.
मैं- हां वही तो … तुमने भी तो मेरी चूत और गांड चाट कर इतना गर्म कर दिया था और जिस जोश से चोद रहे थे मुझे … कैसे काबू कर पाती!
सुरेश- पर औरत गर्म रहे, तभी तो मजा आता है उसे चोदने में! अब तुम ढीली पड़ गयी तो मेरा भी जोश कम हो गया.
मैं- थोड़ी देर झड़ने के बाद कमजोरी तो लगती ही है और वैसे भी मैंने कभी अधूरा साथ कब दिया है, तुम चोदते रहो जब तक नहीं झड़ोगे तुम, मैं साथ दूंगी.
सुरेश- वो तो है, पर जब गर्म होती हो तो उस समय चोदने का मजा अलग होता है और मैं भी जल्दी झड़ भी जाता हूं. ऐसे बीच बीच में लय टूटने से वो आग नहीं रहती और इतनी जल्दी दोबारा चोदने पर पता नहीं चूत में कितना लंड रगड़ना पड़ेगा.
मैं- अपना जोश मुझे देख ठंडा मत करो. ना ही ये सोच कर चोदो कि औरत को तुमने झाड़ दिया. ये सोचो कि तुम एक दमदार मर्द हो.
हम बातें करते हुए धीरे-धीरे संभोग को आगे बढ़ा रहे ही थे कि आवाज आई.
आपको देसी भाभी ग्रुप चुदाई कहानी कैसी लग रही है, प्लीज़ मुझे मेल करके जरूर बताएं.
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देसी भाभी ग्रुप चुदाई कहानी का अगला भाग: मेले के बहाने चुदाई की मस्ती- 6
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