भैंसों के तबेले में दूध वाले भैया के साथ
(Bhainso Ke Tabele Me Doodh Wale Bhaiya Ke Sath)
अब तो मेरी उम्र हो चली है, लेकिन आज भी जब कभी फ्री होता हूँ तो कुछ पुरानी बातें याद आती हैं और तन बदन में सनसनी सी दौड़ जाती है! ऐसी ही कुछ बातों में से एक कहानी मैं आज आपके साथ शेयर करने जा रहा हूँ!
स्कूल टाइम से ही दूध लाने का काम मेरे जिम्मे था! उस टाइम, आज की तरह डेरी या दूकान से दूध नहीं लाया जाता था बल्कि ज्यादातर लोग खुद गाय भैंस के तबेलों में जाकर अपने सामने दूध निकलवा कर लाया करते थे और कभी जाने में देर हो जाती थी तो लोगों को लगता था कि दूध वाले भैया ने दूध में पानी मिला दिया होगा और इसी वजह से मैं भी दूध वाले के तबेले में टाइम से पहले पहुँच जाया करता था.
ज्यादातर जिस टाइम मैं वहाँ पहुँचता था, दूध वाले भैया भैंसों को साफ़ कर रहे होते थे! ज्यादातर भैय्या या तो बनियान धोती में होते थे या बनियान के नीचे सिर्फ गमछा पहने होते थे! पता नहीं मेरा वहम था या कुछ और, लेकिन मैं हमेशा नोटिस करता था कि जब वो भैंसों को साफ़ कर रहे होते थे तो भैंसों के पिछवाड़े पर, पूँछ उठा कर उसके आस पास बहुत टाइम लगा कर, रगड़ रगड़ कर सफाई करते थे और जब भी वो गमछे में होते थे, तो सफाई के बाद उनके गमछे में तम्बू सा बना होता था.
मुझे लगता था कि वो भैंस की पिछवाड़े के आस पास सफाई करते हुए कुछ कल्पना करके उत्तेजित हो जाया करते थे और वही उत्तेजना हमेशा उनका लौड़ा खड़ा कर देती थी!
फिर धीरे धीरे, ये सब देख देख कर मैं भी एक्साइट होने लगा और पैंट के अन्दर दबा हुआ जवान होता हुआ मेरा लौड़ा भी खड़ा हो जाता था और कभी कभी मेरा हाथ अपने आप अनजाने में ही पैंट के ऊपर से लौड़े को रगड़ने लग जाता था!
फिर एक दिन कुछ अलग हुआ!
उस दिन शायद मैं थोड़ा ज्यादा ही जल्दी आ गया था! वैसे तो मैं बाकी सब से करीब 10 मिनट पहले पहुँच जाया करता था, लेकिन आज करीब 30 मिनट पहले पहुँच गया था! तबेले के बाहर से देखा कि भैया स्टूल पर भैंस के पीछे खड़े थे और उनका गमछा थोड़ा ज्यादा ही ऊपर बंधा था! कुछ नजर तो नहीं आया लेकिन मैंने जैसे ही तबेले का लोहे वाला गेट खोला उसकी आवाज़ से भैया हड़बड़ा गए और स्टूल से नीचे उतर आये और भैंस के बाकी के शरीर की सफाई करने लगे!
मैं अपनी जगह जा कर बैठ गया और जब किसी किसी एंगल से जब गमछे के अन्दर उनके लौड़े का उभार दिखा तो लगा कि आज उनका लौड़ा पूरा खड़ा था! भैया भी थोड़ी थोड़ी देर में चोर नज़रों से मुझे देख रहे थे कि मेरा रिएक्शन क्या है! इसी बीच आदतन, मेरा हाथ अनजाने में मेरा लौड़ा सहला रहा था! शायद आज के पहले भैया ने मुझे लौड़ा सहलाते हुए नहीं देखा था और ना ही उन्होंने मुझे, उनके लौड़े पर नजर रखते हुए देखा होगा तो आज जब उन्होंने मुझे लौड़ा सहलाते हुए देखा तो शायद उनको कुछ हिंट मिल गया!
अभी भी दूध निकालना शुरू करने में और बाकी के लोगों के आने में टाइम था, उनका लौड़ा अभी भी पूरी तरह शांत नहीं हुआ था.
फिर पता नहीं क्या सोच कर उन्होंने मुझे आवाज़ दी और कहा कि उनको रस्सी नहीं मिल रही है और अगर हो सके तो मैं चारे वाली कोठरी से जाकर रस्सी ले आऊँ!
मैंने ओके कहा और कोठरी की ओर चल दिया!
कोठरी इस तरह थी कि वहाँ जाते समय मैं भैया के सामने से गुजरा और भैया को मेरी पैंट का उभार पूरा दिख रहा था!
कोठरी में इतना अँधेरा था कि घुसो तो शुरू शुरू में कुछ नहीं दिखता था! कोठरी में गया और बहुत ढूँढने पर भी जब रस्सी नहीं मिली तो मैंने भैया को आवाज़ दी कि रस्सी नहीं मिल रही! ऐसा सुन कर वो भी कोठरी में आ गए और मेरे साथ रस्सी ढूँढने लगे! इसी बीच एकाएक उनका गमछा खुल कर गिर गया! या तो वो ढीला बंधा था या कोठरी में आने के पहले वो खुद उसे ढीला करके आये थे.
खैर, गमछा खुलते ही उनका अधखड़ा लौड़ा एकदम मेरे सामने था! अब तक मेरी आँखें उस अँधेरे में अभ्यस्त हो चुकी थी और उनके लौड़े की मोटाई और लम्बाई साफ़ साफ़ दिख रही थी! इतने दिन तक गमछे के जिस उभार को मैं उनके लौड़े का तना हुआ तम्बू समझ रहा था, वो तो दर-असल उनके सोये हुए लौड़े का उभार हुआ करता था! मेरी उम्र उस समय करीब 19 साल की होगी और उनका लौड़ा मेरी उस समय की कलाई जितना मोटा था और पूरा खड़ा होता हुआ उनका लौड़ा करीब करीब उनकी आधी जांघ तक आ रहा था!
मैंने आज के पहले बस पेशाब करते समय अपने हमउम्र दोस्तों के लौड़े देखे थे जो सोये हुए होते थे और नुन्नी जैसे दिखते थे! एक आध बार, सड़क किनारे खड़े होकर मूतते, अलग अलग उम्र के मर्दों के लौड़े भी देखे थे! लेकिन ऐसा लौड़ा या इसके आस पास के साइज़ का लौड़ा तो कभी नहीं देखा था! तो जब एकदम से मेरे आँखों के सामने इतना बड़ा लौड़ा आ गया तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी! उस समय ना तो मुझे उनकी उम्र का ख़याल आया, न मेरी उम्र का… और शर्म कहाँ थी, वो तो पता भी नहीं! मेरा गला ऐसा सूख गया था कि गले कांटें चुभ रहे थे!
पता नहीं कितनी देर तक मैं उसी पोजीशन में जमा रहा.
एकाएक भैया बोले- का देख रहे हो बबुआ? कभी देखे नाही का?
मैं पता नहीं किन ख्यालों में था, कि कोई जवाब ही नहीं निकला मुँह से…
फिर उसी हालत में मेरे पास आकर मुझे कंधे से पकड़ के उन्होंने हल्के से झिझोड़ा, तब मेरी नींद खुली और तब मैंने शरमा कर नजरें उनके लौड़े से हटा कर उनकी ओर की.
उनके चेहरे पर शैतानी और हवस दोनों दिख रही थी; शायद वो मेरी हालत समझ चुके थे; वो मेरे इतने करीब तो आ ही चुके थे कि मैं हाथ बढ़ा कर खम्बे जैसे टाइट, एकदम 90 डिग्री पर खड़े उनके लौड़े को पकड़ सकता था… लेकिन शायद मेरा शरीर एकदम मेरे काबू में नहीं था; हाथ पाँव सब जमे हुए थे! ना मैं कोठरी से बाहर जा रहा था और ना ही हाथ हिला पा रहा था.
फिर वो ही कुछ इंच और आगे आये और अपना खड़ा खम्बा मेरे पेट पर छुआने लगे; फिर एकाएक बोले- खेल लो… कछु नाही होईगा… कोई नाही देख रहा… कौन्हो को पता नाही चलै…
और शायद उनको पता था कि मेरे हाथ जम चुके थे तो उन्होंने ही मेरा हाथ पकड़ा और मेरी हथेली को अपने लौड़े के ऊपर कस दिया.
मेरा हाथ अभी भी जड़ था तो उन्होंने मेरी हथेली को अपनी हथेली में पकड़े पकड़े, अपने लौड़े पर ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया.
20-30 सेकंड्स के बाद जब मेरा हाथ अपने आप चलने लगा तो उन्होंने अपना हाथ वहाँ से हटाया और मेरी गर्दन पर ले गए और अपने रफ़ हाथों को थोड़े सॉफ्ट करते हुए, मेरी गर्दन को सहलाने लगे. धीरे धीरे उनके हाथ गर्दन से कान, कान से गाल और गाल से होते हुए मेरे होंठों पर आ गए और अब उनकी उंगलियाँ मेरे होंठों को धीरे धीरे मसल रही थी.
उनका दूसरा हाथ कब मेरी छाती पर आया और कब, मेरे कमीज़ के ऊपर के 2 बटन खोल कर मेरी छाती को, मेरी पीठ को सहलाने लगा, पता ही नहीं चला! अभी मेरे शरीर पर बाल नहीं आये थे तो शायद उनको मेरी चेस्ट और किसी लड़की की चेस्ट की सॉफ्टनेस में ख़ास फरक नहीं लगा होगा, क्योंकि जब जब उनका हाथ मेरे निप्पल पर जाता था उनके लौड़े में एक करंट सा आता था और उनका लौड़ा मेरी हथेली में एक मस्त सा झटका खाता था!
अगले 2-3 मिनट में मेरी आधी आस्तीन वाली शर्ट भूसे के ढेर पर पड़ी थी और मेरी पैंट का ऊपर का बटन और ज़िप खुले थे और अब उनका एक हाथ मेरे निप्पल से और दूसरा हाथ, अभी तक मेरे शरीर पर अटकी मेरी पैंट में पीछे से घुस कर मेरे चूतड़ सहला रहा था. मुझे लग रहा था कि मैं उस समय उनके हाथ में एक कठपुतली था और वो जैसे चाहे मेरे साथ खेल रहे थे!
फिर उन्होंने धीरे से मुझे भूसे के ढेर पर ही लिटा दिया और हौले से मेरी पैंट भी उतार दी और मेरी गर्दन पर, मेरे गालों पर होंठ फिराने लगे! उनके होंठ बड़े बड़े लेकिन चिकने थे… शायद दूध घी का कमाल था!
उनके होंठ मेरे शरीर पर ऐसे चल रहे थे जैसे कोई मोर पंख से मेरे शरीर को सहला रहा हो और ये सब मेरे अन्दर छोटी छोटी लहरें सी उठा रहे थे, मुझे लग रहा था कि मैं एकदम हल्का हो गया हूँ और हवा में उड़ रहा हूँ!
जब उनके होंठ मेरे शरीर में कहीं कहीं पर एकाएक गड़ जाते, तो मेरे शरीर में उठती लहर तेज़ हो जाती और मेरे मुँह से सिसकी सी निकल जाती थी!
फिर वो मेरे निप्पलों पर आ गए! मेरा एक निप्पल उनके होंठ सहला रहे थे और दूसरा निप्पल उनका हाथ! फिर उनका दूसरा हाथ मेरी टांगों पर आ गया और मेरी टांगों के बीच के हिस्से को सहलाने लगा!
मुझे लग रहा था कि मैं कोई सपना देख रहा हूँ और मैं सपने में ही किसी भी वक़्त झड़ जाऊँगा! शायद उन्होंने भी मेरे लौड़े के झटके देख लिए थे इसीलिए उन्होंने मेरी जाँघों से अपना हाथ हटा लिया और अपने दोनों हाथों से मेरे निप्पल से खेलने लगे और अपने होंठ मेरे होंठों पर सहलाने लगे!
पता नहीं क्या जादू छाया हुआ था मुझ पर कि बिना कुछ कहे मेरे होंठ अपने आप खुल गए और मैं उनके होंठ अपने होंठों में लेकर चूमने लगा!
अब तक वो मेरे ऊपर आ चुके थे और मुझे अपने ऊपर उनके गठीले, भरे भरे, गुथे हुए, पत्थर जैसे सख्त शरीर का अहसास हो रहा था! मैं शहरी लड़का, वो घी दूध खाने वाले देहाती मर्द… काम देव का पूरा असर हो गया था मुझ पर कि मैं अपने से दोगुने वजन वाले मर्द को अपने ऊपर बिना किसी दिक्कत के लिए हुए था!
फिर उन्होंने अपने हाथ पर थोड़ा सा थूक लगा कर अपने लौड़े को गीला किया और लौड़े को मेरी जाँघों के बीच फँसा दिया और मेरे पैरों को अपने पैरों में जकड़ कर मेरी जाँघों को अपने लौड़े पर कस दिया!
ऐसा करने से शायद उनको मेरी जांघें किसी चूत का अहसास दे रही होंगी और उसी मर्दानी चूत में वो अपना लौड़ा अन्दर बाहर करने लगे! मेरी जाँघें काफी मुलायम थी पर थूक कब तक चिकनाई देता? थूक सूख गया और अब उनका लोहे जैसा सख्त लौड़ा मेरी मखमली जाँघों को छील सा रहा था! हालांकि उनके लौड़े के अन्दर बाहर होने की स्पीड बहुत धीमी थी लेकिन मुझे रगड़ की वजह से दर्द हो रहा था और वही दर्द मेरी आवाजों में आ रहा था!
उन्होंने शायद मेरा दर्द सुन लिया और रुक गए; उन्होंने पूछा- रोक दें का बबुआ?
मैंने कुछ नहीं कहा लेकिन सर हिला कर उनको रुकने से मना कर दिया!
फिर वो बोले- ठीक है, तनिक रुको…
और उठे और कोठरी के ही दूसरे कोने में पड़े एक डब्बे से थोड़ा सा देसी घी अपनी उँगलियों पर ले आये और इस बार मेरी जाँघों पर अन्दर की ओर मालिश सी करने लगे और 10 12 सेकंड्स में मेरी जाँघों को अन्दर से देसी घी से पूरी तरह चुपड़ दिया! बचा हुआ घी उन्होंने अपने लौड़े पर मसल दिया और फिर से अपनी पोजीशन में आ गए!
लेकिन इस बार उनके धक्के दोगुनी तीगुनी स्पीड पर थे और हर धक्का पहले से तेज होता जा रहा था! घी से चुपड़ी मेरी जाँघों से उनको शायद किसी लड़की की चूत की चिकनाई का आनंद मिल रहा था और मुझे भी अब उनका पत्थर सा सख्त लौड़ा मजा दे रहा था! पता भी नहीं चला कि कब मैं अपने आप को किसी फिल्म के सेक्स सीन में हीरो के नीचे दबी हीरोइन के जैसा महसूस करने लगा था! मैं चाह रहा था कि ये वक़्त यही रुक जाए और ये स्टेप्स रिपीट हो हो कर चलते जाएँ, चलते जाएँ.. और ख़त्म ही ना हो! मेरे हाथ अपने आप उनकी नंगी पीठ पर चले गए और उनकी पीठ को सहलाने, दबोचने और नोचने लगे! मेरे हाथ कभी उनकी पीठ पर होते, कभी उनके बड़े बड़े चूतड़ों पर, कभी उनकी गर्दन पर, और कभी उनके बड़े बड़े घुंघराले बालों में!
उनको भी पूरा मजा आ रहा था… उनके मुँह से “हाय मेरी जान..”, “मेरी डार्लिंग”, “ओह मेरी छमिया…”, “उम्म्म”, “आह… का मुलायम तवचा है तोहारी…” जैसी बातें निकल रही थी.
जैसे जैसे सेक्स का ये खेल आगे बढ़ रहा था मैं और वो दोनों हकीकत में आते जा रहे थे! उनको टाइम का अंदाजा था कि कभी भी और ग्राहक आना शुरू हो सकते थे!
वो उठे और बोले- ऐसे तो बहुतही टाइम लग जाई, कछु और करें का?
मैंने कहा- कुछ और क्या?
वो बोले- ऐसन करो, तुम हमार लौड़ा को मुँह में लेई लओ और ऐसअ चूसो जैसन तुम कोई लौलीपॉप चूसे रहे हो… ऐसन करन से जल्दी होई जाई!
मैंने कहा- आपका लौड़ा इतना बड़ा और मोटा है कि मेरे मुँह में नहीं आएगा.
वो बोले- जितना जात है, उतना ही लइ लो… खाली टोपा टोपा भी चूईसो तो भी होइ जाई…
मैंने कहा- ठीक है!
मैंने पहले उनका लौड़ा सूंघा… घी में नहाया हुआ लौड़ा, देसी घी में भीगा क्रीमरोल लग रहा था! मैंने अपना मुँह, अधिकतम खोलते हुए उनके लौड़े के सुपाड़े को मुँह में ले लिया और सुपाड़े के आगे का करीब 1 इंच और अपने मुँह में भर लिया और उसे अपने मुँह में अन्दर बाहर करने लगा!
उन्होंने सही कहा था, उनको अपना लौड़ा चुसवाना बहुत अच्छा लगता था क्योंकि जो आवाजें अब उनके मुँह से आ रही थी वो पहले के मुकाबले बहुत तेज़, बहुत गहरी और बहुत मजेदार थी! उनके चूतड़, मेरे मुँह के मोशन से मेल खाते हुए आगे पीछे होने लगे! उनकी आवाज़ धीमी लेकिन और गहरी होती गई!
मैंने सर उठा कर देखा तो उनका फेस छत की ओर था और लग रहा था कि वो किसी और ही दुनिया में पहुँच गए थे! उनके लौड़े की टाइटनेस और बढ़ गई थी! उनके लौड़े में हर दूसरे तीसरे सेकंड एक पल्स सी आ रही थी!
अब शायद मेरा मुँह उनके लौड़े की मोटाई को एडजस्ट कर चुका था और अब उनका लौड़ा मेरे मुँह में 2-3 इंच और अन्दर तक जा पा रहा था, और हर सातवें आठवें धक्के में वो अपना लौड़ा मेरे हल्क की दीवारों तक छुआ देते थे और मैं हर बार “गौ गौ” की सी आवाज़ निकाल देता था!
फिर एकाएक उनके लौड़े का तनाव बहुत बढ़ गया और उन्होंने मेरा सर दबोच लिया और अपना लौड़ा मेरे मुँह में काफी अन्दर तक ठूंस दिया! मेरी सांसें रुक गई, और दम घुटने की वजह से मेरी आँखों से आंसू आ गए!
मैं छटपटा रहा था और उनकी जाँघों पर मुक्के मार मार कर उनको हटने का इशारा कर रहा था, लेकिन शायद उनको कोई फरक नहीं पड़ रहा था!
फिर एकदम से उन्होंने मेरे मुँह में अपना माल उतार दिया… बहुत गरम गरम सा, खीर जैसा गाढ़ा उनका वीर्य मेरे हल्क में बहता हुआ महसूस हो रहा था! मेरी आँखों से अभी भी आंसू आ रहे थे, लेकिन अब वो थोड़ा होश में आ गए थे तो उन्होंने अपना लौड़ा मेरे मुँह से थोड़ा सा बाहर किया तो मैं सांस ले पाया! पर अभी भी उनके लौड़े से वो खीर निकलनी बंद नहीं हुई थी… स्पीड जरूर थोड़ी कम हुई थी… अब मैं उनके वीर्य का स्वाद अपनी जबान पर महसूस कर रहा था! बहुत ही मीठा सा नमकीन सा स्वाद था और पता नहीं कैसे, पर अच्छा लग रहा था वो स्वाद!
करीब 2 मिनट तक उसी पोजीशन में रहने के बाद, अब उनका लौड़ा धीरे धीरे मेरे मुँह में ही सॉफ्ट होने लगा तो उन्होंने अपना लौड़ा बाहर निकाला और पास पड़े अपने गमछे से पहले मेरे आंसू पौंछे और फिर मेरी टांगों से घी पौंछा और फिर उसी गमछे से अपने सॉफ्ट होते हुए लौड़े को साफ़ किया! हालांकि उनके लौड़े को तो मेरे मुँह ने कब का अच्छे से चाट चाट कर साफ़ कर दिया था! फिर वही गमछा उन्होंने अपनी कमर पर लपेटा, और मुझे कपड़े पहनने में मदद की और फिर बाहर जाकर खुद भी बनियान पहन ली!
और फिर वहीं भैंस के पास पड़ी रस्सी से भैंस को बाँध कर दूध दुहना शुरू कर दिया!
जब उन्होंने मुझे वो रस्सी देखते हुए देखा तो हल्के से हंस दिए और बोले- रस्सी का तो बहाना था, तुमको कोठरी में भेजने का…
फिर उन्होंने मुझे वो बताया जो मैं यहाँ इस साईट में नहीं बता सकता! पाठक खुद अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ा कर अंदाजा लगा सकते हैं कि मैं यहा क्या बताना चाह रहा हूँ लेकिन अन्तर्वासना के नियमों के अनुसार मैं यहाँ नहीं लिख सकता.
पर उस दिन मेरे जल्दी आ जाने की वजह से उनका कुछ काम बीच में अधूरा रह गया था और फिर जब उन्होंने मुझे खुद का लौड़ा रगड़ते हुए देखा तो उनको पता चल गया कि मैं भी गर्मी में हूँ और उन्होंने रस्सी मंगाने के बहाने ये सारा खेल रच डाला! खैर जो भी खेल उन्होंने रचा, मुझे बहुत अच्छा लगा!
फिर उनके साथ ये खेल, बिना रस्सी का बहाना बनाए और भी कई बार हुआ और ये खेल और आगे भी बढ़ा… लेकिन वो सब कभी और…
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