भ्राता श्री द्वारा अज्ञानी दर्शन को दीक्षा

(New Gay Boy First Sex)

न्यू गे बॉय फर्स्ट सेक्स का मजा दिया एक खेले खाए बॉटम गे ने. उसे बाजार में एक कमसिन लड़का मिला जिसे लंड सहलाने में मजा आता था. बॉटम गे उसे अपने घर ले गया.

आज भ्राता श्री ने एक अद्भुत गे सेक्स कहानी सुनाई, जिस पर विश्वास करना कठिन है, पर करना पड़ा.
क्योंकि वे कभी झूठ नहीं बोलते, ख़ास कर चोदने के बारे में.

बड़े महात्माओं की तरह, उनके सत्य के प्रयोगों पर मेरी पूरी आस्था है.
आखिर मेरी पहली गे सेक्स कहानी के वे हीरो जो थे.

यह न्यू गे बॉय फर्स्ट सेक्स कहानी अन्तर्वासना के सभी पाठकों को समर्पित है.
अब भ्राता श्री की जुबानी कहानी का आनंद लें.

मैं आज सुबह सब्जी मार्केट गया था.
उधर मुझे एक किशोर मिला, वह लगभग 19 साल का था.

उसकी उम्र का अंदाज मैंने उसकी मूंछों के प्रारूप से लगाया था.
पर कभी कभी ये विधि सही उम्र का बयान नहीं करती है.

हुआ ये कि वह लड़का एक ठेले वाले से टमाटर ले रहा था.
मैं भी उस ठेले से टमाटर ले रहा था और मैं उसे देख रहा था कि लौंडा कर क्या रहा है.

भीड़ थोड़ी कम थी और लौंडा खूब सहला-सहला कर पके पके लाल-लाल टमाटर ले रहा था.

उत्सुकतावश मैंने उससे पूछा कि बड़ा देख-भाल कर टमाटर ले रहे हो बेटा!
शायद वो समझ गया था कि अंकल की पारखी दृष्टि टमाटर सहलाते देख चुकी है.

वह थोड़ा सकपका कर बोला- हां!
‘पर सारे पके हुए लाल लाल क्यों, क्या कुछ पार्टी-वार्टी है क्या?’

‘नहीं अंकल पर!’
मैंने कहा- फिर तो आधे अधपके और आधे पके लो, नहीं तो कुछ दिन बाद ये सड़ जाएंगे.
‘जी अंकल!’

मैंने पूछा- पढ़ते हो?
वह बोला- नहीं अंकल!

उसका ये जवाब थोड़ा निराशा जनक था क्योंकि इस पढ़ने लिखने की उम्र में यह किशोर पढ़ाई छोड़ कर बैठा है.

मैंने पूछा- क्या करते हो?
‘पापा कारपेंटर का काम करते हैं, उनकी मदद करता हूँ.’

मुझे बुरा तो लगा, पर क्या कर सकता था.
खैर … मैंने पूछा- कितना पढ़े हो?
वह बोला- चौथी तक.

‘ओके!’

अब मुझे शरारत सूझी, मैंने पूछा- टमाटर को सहला क्यों रहे थे, अच्छा लग रहा था क्या?
वह शर्मा गया, बोला- हां.

‘और क्या क्या सब्जियां सहला कर लेते हो?’
लौंडा शर्माया और बोला- कुछ नहीं अंकल.

‘कितनी उम्र है तुम्हारी?’
‘अंकल 19 साल!’

मुझे सुनकर आश्चर्य हुआ और मैंने उससे कहा- पर अभी तुम्हारी मूछें तो ठीक से आई नहीं?
मैंने पूछा, तो वह बोला- हां अंकल, आ जाएंगी.

‘और नाम क्या है?’
‘मेरा नाम दर्शन है.’

मैंने कहा- एक बात पूछूँ, बुरा न मानो तो!
‘हां पूछिये अंकल!’

मैंने नीचे इशारा किया- इसको सहलाया है कभी?
यह पूछते हुए मैंने सोचा कि कहीं लौंडा बुरा न मान जाए!

पर ये क्या, वह तो तुरंत बोला- हां, पर क्या आप भी मुझे एक बात आप बताएंगे?
‘हां हां बोलो बेटा!’

अब इतने गहन वार्तालाप के बाद लौंडा से इतना तो रिश्ता बनता ही है. पर अब मेरे सदमे में जाने की बारी थी.

जब वो बोला कि सहलाने पर उसमें से सफेद-सफेद क्या निकलता है?
आज जब बच्चे इतने एडवांस हो गए हैं जब उन्हें इन सब विषयों का समस्त से अधिक ज्ञान रहता है, तो ये लड़का कौन से युग का किशोर है. जिसे राह चलते मुझसे ज्ञान लेने की आवश्यकता पड़ी?

मैंने पूछा- घर में कौन कौन है?
‘दो बड़ी बहनें और मां पिताजी.’

अब समझ में आया कि यह इस लिए अनजान है क्योंकि यह भी मजबूर है कि किससे पूछे कि लंड से क्या क्या निकलता है और कैसे निकलता है.

‘कोई चचेरा भाई वगैरह नहीं है?’
‘हैं, पर वे मुझसे छोटे हैं.’

अब समझ आया कि बच्चा क्यों अंधकार में है.
मैंने पूछा- मोबाइल वगैरह नहीं देखते?
‘मेरे पास मोबाइल नहीं है और पापा अपना देते नहीं हैं.’

उसका बाप उसे अकेला छोड़ता नहीं था, जो आस पास के लौंडों से ज्ञान पा लेता. जवान होते स्कूल गया नहीं. घर में पापा की कार्यशाला.
बात अब क्लीयर थी.

मैंने पूछा- इस बारे में कुछ जानना चाहते हो?
‘हां अंकल, सब कुछ.’

‘पहले कभी किसी से कुछ पूछा क्या?’
‘नहीं अंकल, सबसे इसके बारे में कैसे पूछ सकता था. आपने जब थोड़ा इशारा किया तो मेरी कुछ हिम्मत बढ़ी. आपको बुरा तो नहीं लग रहा है?’

मैंने कहा- बिल्कुल नहीं, ऊपर चलो बाथरूम में चलते हैं … चलोगे न!
‘हां अंकल!’

‘मुझे दिखा सकते हो अपना टमाटर!’
मेरे यह कहते ही वह हल्का सा शर्मा गया.
फिर वह बोला- ठीक है, अंकल.

बाथरूम में थोड़ा सकुचाते हुए जब जीन्स और चड्डी के बंधन से लौंडे ने लंड को मुक्त किया तो उससे अनभिज्ञता और अज्ञानता की साफ झलक आ रही थी.

हल्के रंग की चड्डी पर 3-4 दाग थे. मैंने पूछा- ये दाग कैसे हैं?
वह बोला- कल रात में देर तक सहलाया था, उस वजह से.

मैंने उसको गाल पर हल्की सी चपत मारी और कहा- बदमाश कहीं के, हिलाता भी है!
लड़का शर्मा गया.

विश्वास मानिये, लौड़ा तो मस्त था और मुझे लालच भी आ रहा था, पर आज मैं प्रशिक्षक के रूप में था.

बाथरूम में उसे लेकर गया तो उसका आइटम देखा.
यही कोई 14-15 सेमी का रहा होगा और 2.5 सेमी मोटा, सुपाड़ा लगभग 2 सेमी के छेद से झांक रहा था. झांटें लगभग 1.5-2 इंच लंबी, गुच्छे में थीं और लौड़े के आधार को पूरा घेरे हुई थी.

मैंने पूछा- मैं छूकर देख सकता हूँ?
वह बोला- हां जी अंकल, देखिए न!

मैंने कहा कि तुम्हारी झांटें तो खूब बड़ी हैं, पर मूछें कम क्यों है?
वह बोला- मैं क्या बताऊं अंकल, मुझे पता ही नहीं है.

मैंने जब उसकी सुपाड़ी को खोलना चाहा, तो उसे दर्द हुआ शायद.
दर्शन बोला कि अंकल, दर्द हो रहा है!

उसकी सुपाड़ी के चारों तरफ सफेद रंग का अर्ध तरल पदार्थ जमा था, जो प्रमाण दे रहा था कि आज तक टोपी की सील नहीं टूटी है.
अब मुझसे रहा न गया.

मैंने पूछा- उम्र कितनी बताई तुमने?

वह बोला- एक महीने पहले ही 19 साल का हुआ हूँ अंकल!
मैं सोच रहा था कि मतलब 19 साल से ये सुपाड़ा अपनी प्राकर्तिक कैद में बंद है.

मैंने पूछा- सहलाते कैसे हो?
क्योंकि शायद इन परिस्थितियों में लड़का सड़का भी ठीक से मारना नहीं जानता था.

वह लंड के दंड के नीचे सहलाकर बोला- ऐसे?
मैंने पूछा- कितना टाइम लगता है सफेद मसाला आने में?

वह बोला- करीब दस मिनट या उससे कुछ ज्यादा!
मुझे एक अच्छे खासे लौड़े को बर्बाद होते हुए देखकर बड़ा दुख हुआ.

मैंने सुपाड़ा की खाल को उठाते हुए बताया कि इसको थोड़ा सा तेल लगा कर धीरे धीरे खोलो, पूरी टोपी बाहर आ जाएगी.
‘अच्छा अंकल!’

कुछ अच्छे परिणाम की आशा में लड़के की आंखें चमक गयीं.
मैंने कहा- अपने कपड़े पहन लो, जब टोपी खुल जाए तो अगले हफ्ते इसी समय फिर से मिलना, तब तुम्हें और भी बहुत कुछ बता देंगे.

मैं उसके उत्तर का इंतजार कर रहा था और उसकी हां से मेरी प्रसन्नता दुगुनी हो गयी.
वह बोला- ठीक है अंकल.

अब अगले हफ्ते, अगर विद्यार्थी आता है तो मैं अपना ज्ञान उसको बताऊंगा, नहीं तो एक अच्छा खासा लंड अज्ञान के अंधेरे में उपयुक्त ज्ञान के अभाव में विलुप्त हो जाएगा.

पूरे हफ्ते मैं इस किशोर के बारे में सोचता रहा कि इतने हसीन लौड़े का मालिक होते हुए भी उसे इस बात का अहसास नहीं था कि वो क्या मिस कर रहा है.

अब कड़ा और खड़ा होने पर सहला कर झड़ लेता था, पर स्वयं अनभिज्ञता के काले मेघों से घिरा था.

एक हफ्ते बाद:

मैं समय से निर्धारित जगह पर पहुँच गया और दर्शन के आने का इंतजार करने लगा.
बहुत सी बातें दिमाग में घूम रही थीं कि कहीं लड़का बुरा न मान गया हो, किसी से घटनाक्रम का जिकर तो नहीं किया होगा.

मैं इसी ऊहापोह में पड़ा था कि लो दर्शन हाजिर हो गया.
मुझे देखते ही किलकारी मारते हुए बोला- हाय अंकल!

मैं समझ गया कि लौंडे ने लौड़े को रवाँ कर लिया है, इसीलिए अति प्रसन्न है.
उसकी खुशी में हाथ बंटाते हुए मैंने कहा- हैलो!

अभिवादन के तौर पर मैंने उसे अपने गले से लगा लिया … और विश्वास मानिए कि उसने भी मुझे कस कर पकड़ा था.
शायद उसे इसमें स्पार्शानंद आ गया था.

फिर मैंने पूछा कि आज टमाटर नहीं लेने हैं?
जवाब में उसके चेहरे पर एक शर्म युक्त हसीन सी मुस्कराहट आ गयी.

मैंने पूछा- क्या हुआ?
वह बोला- अंकल टोपी तो दो दिन में ही खुल गयी थी और उसको आगे पीछे 3-4 बार किया तो बड़ा मजा आया. थोड़ा और किया तो एक डेढ़ मिनट में सफेद मसाला बाहर आ गया.
मैंने पूछा- निकलते समय कितनी बार झटका लगा था?

वह बोला- अंकल शायद 4-5 बार में पूरा निकल गया था.
‘वाह, मतलब अब टमाटर सहलाया नहीं सरकाया जाता है. इसे सड़का मारना या मुट्ठ मारना कहते हैं.’

‘जी अंकल. अब बताइये कि ये सफेद पानी क्या है?’
मैंने बताया कि इसे वीर्य या सीमेन कहते हैं.

वह चुप होकर मेरी तरफ देख रहा था.
मैंने पूछा- कभी किसी आदमी या जानवर को चुदाई करते देखा है?

वह बोला- चुदाई मतलब जो एक जानवर दूसरे पर चढ़ जाता है और घपाघप करता है?
‘हां, वही … किसको देखा है?’

‘एक बार एक गाय को दूसरी गाय पर चढ़ कर चुदाई करते देखा है.’
‘अबे ऊपर वाले को बैल कहते हैं. तुम्हें आदमी औरत तो पता ही होगा?’

‘हां हां अंकल औरतों के मूंछें नहीं होती और आदमियों के दूध नहीं होते.’
अब मेरे सब्र का बांध बहुत कमजोर हो रहा था.

मैंने कहा- जिसको सहलाकर आनंद लेते हो, वह अब नुन्नू नहीं है अब उसे उसे लंड या लौड़ा कहा करो … और लड़कियों के छेद को चूत कहना. लड़का लड़की की चूत में लौड़ा डालकर घपाघप करता है और वीर्य जब निकल जाता है तब लड़की पेट से हो सकती है और तब बच्चा पैदा होता है.

वह पेट से होने का अर्थ शायद नहीं समझा था.
मैंने उसकी जिज्ञासा को नजर अंदाज करते हुए पूछा- तुम्हारा चुदाई का मन हो रहा है क्या?

इतना सुनकर उसका मुँह देखने लायक था.
‘मतलब अंकल मैं भी ऐसे ही पैदा हुआ था?’
‘बिल्कुल बेटा.’

‘लेकिन पापा तो कहते थे कि एक फरिश्ता उनको दे कर गया था!’
मैं हल्के से हंस दिया.

‘हां अंकल, तो मैं भी चोदना चाहता हूँ.’
मैंने पूछा- मेरी चोदोगे?

‘पर आपके पास तो चूत होगी ही नहीं!’
‘गांड जानते हो?’

‘हां वो पता है.’
‘तुम मेरी गांड में डाल देना और घपाघप घपाघप कर देना, करोगे?’

वह शर्मा गया, पर जोर देने पर बोला- ठीक है, पर कहां करेंगे अंकल?
‘मेरे घर पर आ सकते हो?’
‘जी अंकल!’

‘घर में क्या कहोगे?’
‘पापा से बोल दूँगा कि एक दोस्त के घर जा रहा हूँ, कुछ काम है.’

‘ठीक है, तब कब आओगे?’
‘आप बताइये अंकल!’
‘कल आ सकते हो?’

वह बोला- ठीक है अंकल.
‘कल पहले यहीं आ जाना, यहीं से चलेंगे.’

‘ठीक है अंकल.’
‘और हां, हो सके तो अपने लौड़े की लम्बाई व मोटाई भी नाप लाना!’

वह बोला- लौड़े को कैसे नापते हैं?
मैंने तरीका बताया.

वह बोला- ठीक है अंकल.
अब कल का इंतजार बड़ा भारी पड़ रहा था.

किसी तरीके से नव अन्वेषित लौड़े को डलवाने का मन कर रहा था.

खैर … मेरे व्यग्र होने से क्या होना था, समय तो अपनी गति से ही चलता है.

कल का दिन आया, शाम हुई और मैं दर्शन के आने का इंतजार कर रहा था.

या साफ शब्दों में कहूँ तो उसके लौड़े को अपने अन्दर उतरने का.

ऐसे में इंतजार बड़ा भारी हो जाता है.

अंततः लगभग 5 बजे के आस पास दर्शन ने दर्शन दिए.

आते ही लौंडा इतना खुश था कि मुझे कस कर गले से लगा लिया.
उसकी इतनी खुशी को मैंने भी उचित प्रतिक्रिया दी और उसे भींच कर चूम लिया.

इस अग्रिम कदम के लिए शायद लौंडा तैयार न था, पर संभल कर उसने मेरे गालों को इतनी ताकत से चूमा कि मेरे गाल पर लगभग एक हफ्ते तक निशान रहा.

यह 19 साल के जोश का नतीजा था.
यह चूमने-चाटने प्रक्रिया लगभग 3-4 मिनट तक चली.

अब मैं उसे कमरे में ले आया और पूछा- दरवाजा बंद कर लूँ?
पर ये क्या, लौंडे ने मेरे कहते ही सिटकनी चढ़ा दी.

मैंने पूछा- लौड़ा नापा था?
वह बोला- जी अंकल.

मैंने पूछा- कितना लंबा?
तो जो नाप उसने दिया उसके मुताबिक, लम्बाई करीब 16 सेमी से थोड़ी ज्यादा, परिधि 10.5 सेमी और व्यास 3.3 से थोड़ा ज्यादा.

मैंने कहा- खोलो!
तो फटाफट पैंट खोल कर जब चड्डी नीचे घसीटते हुए खोली, तब उसमें से बिल्कुल टन्नाया हुआ गेहुआं रंग का थोड़ा तेल लगा लौड़ा निकला.

मैंने कहा- वाउ दर्शन, आज तेरा लौड़ा मस्त लग रहा है!
वह बोला- जी अंकल.

‘आज पूरी तैयारी से आये हो मेरी गांड मारने के लिए. तेल लगाया है क्या?’
वह बोला- हां!
यह कह कर वह शर्मा गया और मुझे गले से लगा लिया.

मैंने उसके लंड को हाथ में पकड़ा तो लौड़ा बिल्कुल लकड़ी जैसा लग रहा था.
इतना सख्त क्यों न हो, इसीलिए 19 साल के लौंडे को वयस्क बोलते हैं.

इस उम्र में लौड़ा इतना कड़ा होता है कि दीवाल में छेद कर दे.
उसके कहे के हिसाब से मैंने कहा- लाओ तुम्हारा सुपारा देखूँ!

साले ने सट् से खोल कर दिखा दिया, सुपाड़ा लगभग 3 सेमी का रहा होगा और सटासट खुल रहा था.

मतलब लौंडा मन से लौड़े की सेवा कर रहा था.

फिर वह धीरे से बोला- आज आने की इतनी ख़ुशी थी कि कल सड़का मार लिया.
यह कह कर वह खुद से शर्मा गया.

मैंने पूछा- आने की खुशी या गांड मारने की खुशी?
‘अंकल.’ कह कर वह फिर से शर्मा गया.

मैंने पूछा- थोड़ा चूस लूँ?
लौंडे के चेहरे पर चमक आ गयी, वह बोला- जी अंकल.

मैंने मुँह में लिया ही था कि साला जोर जोर से आगे पीछे करने लगा.
लग रहा था कि कोई लकड़ी का मोटा हैंडल है.
मेरा गला थोड़ा टाइट हो रहा था पर लौंडा खप खप करने में मगन था.
मेरा मुँह कसैला सा हो रहा था, शायद प्रीकम द्रव स्रावित हो रहा था.

लगभग एक मिनट बाद मैंने पूछा- शुरू करें?
वह बोला- जी अंकल.

उसने लौड़ा मुँह से बाहर फटाक से खींचा, तो मैंने देखा कि अभी भी लौड़ा उतना ही कड़ा था.
अब मेरी बारी थी.

पिछली बार के दर्दनाक अनुभव के कारण मैंने इस बार तेल पहले ही रख लिया था.
धीरे धीरे कपड़े उतारे और कहा कि अपने लौड़े में तेल पोत लो.

साले ने अंजुलि में लेकर फटाफट तेल पोता.
मैंने कहा- मेरी गांड में भी चुपड़ दो.

लौंडे ने दोनों हाथ से चुपड़ा और बोला- अब, डालूँ लौड़ा?
मैंने कहा- ओके.

उसने अपने हाथ से लंड पकड़ कर मेरी गांड पर जब सुपाड़ा रखा तो लगा जैसे कोई खूंटा नुकीली तरफ से रख दिया गया हो.
पिछले 18×4 वाले लौड़े के अनुभव के आधार पर भय था.

अब उसने थोड़ा दबाव डाला तो सुपाड़ा अन्दर खिसकना शुरू हुआ.
थोड़ा दर्द था, पर मजा आ रहा था.

पर ये लौंडा थोड़ा अनुभव में कम और उत्तेजित ज्यादा था इसलिए तुरंत ही सटाक से घुसेड़ दिया.
मेरी हल्की सी चीख़ निकली, पर लौंडा उससे बिल्कुल अनभिज्ञ था और बड़ी स्पीड से खचा खच गांड मारने में लगा था.

पर अधिक उत्तेजना के कारण लगभग 2 मिनट में ही 5-6 बार की सरसराहट के साथ गर्मागर्म द्रव्य मेरी गांड के अन्दर सेंक दे रहा था.
उत्तेजना का आलम ये था कि माल निकलने के बाद भी झड़े लौड़े से लगभग एक मिनट तक फचफच मचाता रहा.

फिर वह बोला- बाहर निकाल लूँ अंकल?

‘हां मार तो दी न गांड!’
‘जी अंकल.’

मैंने पूछा- मजा आया?
वह बोला- बहुत … और आपको?

मैंने सोचा कि अगर दर्द का जिक्र करूँगा तो लौंडा निराश हो जाएगा, इसलिए दर्द को दरकिनार करते हुए मैंने कहा- हां खूब मजा आया.
वह खुश हो गया.

मैंने कहा- जाओ, धो कर आ जाओ. फिर चाय पी कर आते हैं.
‘ओके!’

लौंडा बाथरूम में गया और धोकर आ गया.

वह बोला- अंकल एक बात कहूँ?
मैंने कहा- बोलो?
वह बोला- क्या एक बार आपकी और चोद सकता हूँ?

मैं निरुत्तर था.
अज्ञान के अंधेरे निकल कर ज्ञान का उजाला पाकर लौंडा ज्ञान का सदुपयोग करना चाहता है.

मैंने कहा- हां!
प्रसन्न होकर लौंडे ने मुझे खूब कसके दबाया और चूमा, साथ साथ नीचे से सिग्नल आ रहा था कि लौड़ा तैयार है.

मैंने उसके बाहुपाश में रहते हुए ही उसके कपड़े अलग किये और चड्डी को खींच कर फेंक दिया.
साला उसका लौड़ा फनफना रहा था.

मैंने कहा- लंड पर तेल पोत लो.
उसने तेल लगा कर मेरे बिना पूछे ही मुझे निर्वस्त्र कर दिया और घुमा कर गांड में तेल चुपड़ दिया.

फिर लंड सहलाते हुए बोला- डालूँ अंकल?
मैंने कहा- डाल दे कमीने.

इस बार कोई औपचारिकता नहीं थी, उसने सीधा झटका मार कर अन्दर तक पिरो दिया और पहले की ही तरह स्पीड से खचाखच गांड मारने लगा.
चूंकि अभी अभी मैंने मराई थी इसलिए बहुत हल्का सा दर्द हुआ. इस बार मैं भी एक नव वयस्क के लौड़े का मजे ले रहा था.

विश्वास मानिये कि साले ने अभी कुछ देर पहले ही मारी थी, इसलिए अब इतनी जल्दी माल निकल भी नहीं रहा था.

लगभग 9-दस मिनट तक उसने मेरे अन्दर तक लंड को गपगपाया, तब जाकर साले का सुर्र सुर्र करके दो तीन रस बार निकला और खलास हो गया.
इस बार बेचारा हांफ गया था और माल भी कम ही निकला.

मैंने पूछा- मजा आया बेटा?
वह बोला- अंकल खूब मजा आया.

‘जाकर धो लो!’
‘ओके अंकल.’

धो धा कर आया और बोला- अब चलता हूँ अंकल!
मैंने पूछा- कुछ खाओगे?

वह न्यू गे बॉय बोला- हां अंकल.
मैं उसे नीचे बने एक रेस्टोरेंट में ले गया और हम दोनों चाय नाश्ता करने लगे.

वह खाते खाते बोला- अंकल फिर आ सकता हूँ, मिलने आपसे?
मैंने पूछा- मिलने या मेरी मारने?

तब वह हंस कर बोला- दोनों अंकल.
उसने बड़ी मीठी सी मुस्कान दी.

मैंने कहा- तुम्हारे पास मोबाइल नहीं है इसलिए ठीक एक महीने बाद वहीं मिलते हैं.
‘जी अंकल.’

अब इंतजार है एक महीने का कि जब लौंडा आके फिर मेरी मारेगा.

यह न्यू गे बॉय फर्स्ट सेक्स आपको कैसी लगी, जरूर बताएं, मुझे इंतजार रहेगा.
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लेखक की पिछली कहानी: जवान लौंडे के लंड से मस्त गांड चुदाई

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