नई जगह, नये दोस्त-1

(Nai Jagah, Naye Dost- Part-1)

दोस्तो, मैं सत्ताईस अट्ठाईस साल का रहा होऊंगा, गोरा स्लिम मस्कुलर हेन्डसम एक मस्त जवान लगभग एक डेढ़ वर्ष नौकरी को हो गया था, फर्स्ट पोस्टिंग थी, अतः दूर दराज के एक गांवनुमा कस्बे में हुई थी, थोड़े से सरकारी ऑफिस थे वहां पर इसलिए ही वह कस्बा कहलाता था वरना एक छोटी बस्ती था.

वहीं एक मेरा सहायक जो असल में फील्ड स्टाफ था, जिले के अफसर ने मेरी मदद को सेन्टर चलाने दे दिया. उसका नाम अब ठीक से याद नहीं, शायद सुमेर सिंह था, मैं उसे सुमेर कहता था, वह मेरे से उम्र में एक या डेढ़ दो साल छोटा पच्चीस छब्बीस का, मेरे जितना ही लम्बा पर मेरे से ज्यादा चौड़ा ज्यादा तगड़ा मस्कुलर हल्का सांवला था.

वहां रहने को ज्यादा साधन नहीं थे, अतः मेरे साथ ही रहने लगा। हम पास के ढाबे में खाना खाते, नौकरी करते और बाहर सड़क पर थोड़ा घूम लेते.
लोकल लोगों से दोस्ती को मेरे सहायक सुमेर ने ही सावधान रहने को कहा कि ‘वे फिर अपने गलत सलत कामों के लिए आप पर दबाव बनाएंगे’ अतः दूरी बनाए रखें ज्यादा न खुलें।

गर्मी का मौसम था अतः हम कमरे में पंखे के नीचे सोते! कमरे में एक ही सीलिंग फैन था अतः खटिया हटा कर हम दोनों ने नीचे फर्श पर बीच में बिस्तर बिछा कर सोते।
सुमेर सोते में मेरे से चिपक जाता, उसकी जांघें मेरे ऊपर रख देता, बांहें मेरे से लिपटा लेता, उसका लंड मेरे लंड से टकराता, मेरे पेट से टकराता! कभी कभी वह जोश में झटके लेने लगता, मेरे पेट की ही चुदाई कर डालता!
लेकिन वह दिन में नॉरमल रहता!

एक रात सोते में वह मेरे से चिपक गया तो मैंने उसकी तरफ अपनी पीठ कर ली। अब मेरी गांड उसके लंड से टकरा रही थी. उसकी टांगें मेरे ऊपर थीं, उसका लंड खड़ा मस्त हो गया, वह मेरी गांड पर रगड़ने लगा पर मैं कपड़े पहने था, वह भी अंडरवियर पहने था.

दूसरी रात वह फिर चिपक गया, मैंने फिर उसकी ओर पीठ कर ली. अब उसने अपना हाथ बढ़ाया और मेरे चूतड़ों पर फेरने लगा, फिर मेरी कमर पर लपेट लिया, झटके लेने लगा.
दो तीन रातों के बाद एक रात वह अपना हाथ बढ़ा कर मेरे चूतड़ मसकने लगा. मैंने अपनी गांड उसके खड़े लंड से चिपका दी, उसने अपनी जांघ उठा कर मेरे कूल्हे पर रख दी, अपनी बांह मेरी कमर पर लपेट दी और जोर से चिपक गया मुझसे!
पर इससे ज्यादा कुछ न हुआ!

मैं चाहता था कि वह मेरा अंडरवियर नीचे खिसकाए, मेरी में अपना पेल दे… वह जाने क्यों संकोच कर रहा था।

एक रात मैं उसके बगल में लेटा था, वह मेरे से चिपका था, उसकी टांग टेढ़ी होकर मेरे ऊपर थी, उसका हाथ मेरे पेट पर था, वह मेरा पेट सहला रहा था, मैं कब तक एक करवट लेटा रहता, अतः चित हो गया था. उसका हाथ पेट से सरकते सरकते मेरे पेड़ू पर था. मैंने उसका हाथ अपने अंडरवियर के ऊपर लंड पर रख दिया, वह सहलाने लगा, फिर धीरे धीरे मेरे अंडरवियर की इलास्टिक से खेलने लगा और अपना हाथ अंदर घुसा दिया.

अब वह मेरा लंड पकड़े था, मैंने उसके गले में हाथ डाल कर उसका एक जोरदार चुम्बन ले लिया, मैं अपना हाथ बढ़ा कर उसके लंड को सहलाने लगा, हम दोनों करवट बदल कर एक दूसरे के आमने सामने थे, एक दूसरे से चिपक गए.
मैंने उसका अंडरवियर नीचे खिसकाया, उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे और करीब खींचा व उसका एक और जोरदार चुम्बन ले डाला. मैं फिर उसका लंड सहलाने लगा. क्या लंड था लम्बा मोटा सख्त… दोस्तो, ऐसे ही लंड को तो महालंड कहते हैं।

मैं ऐसे ही लंड की तलाश में था, मेरी गांड इसे लेने को मचल रही थी, जाने कब से गांड को लंड नसीब नहीं हुआ था. वह तो लगभग छः महीने पहले दतिया बस स्टैंड पर रामसुख के उस्ताद दादा ( मेरी पिछली कहानी गांड चुदाई के शौक का मारा के पात्र) ने गलतफहमी में मेरी मार दी. उनका क्या जबरदस्त हथियार था… गांड तृप्त हो गई थी.
मैं अब किसी से कह भी नहीं सकता था और लोग मुझे पटाते भी नहीं थे क्योंकि मैं अब माशूक लौंडा नहीं था, जवान मर्द था.

और यह बंदा भी तैयार नहीं था तो उसने मेरा हाथ हटा दिया. अब मैं उसके चूतड़ सहलाने लगा फिर और आगे बढ़कर अपनी उंगली से उसकी गांड सहलाने लगा उसको औंधे होने का इशारा किया, उसने थोड़ा ऊं ऊं करते विरोध किया, फिर औंधा हो गया अब मैं उसके ऊपर चढ़ बैठा और मैंने अपने लंड के सुपारे में थूक लगा कर उसकी गांड पर टिकाया, थोड़ा धक्का देते ही सुपारा अंदर… एक और धक्के में पूरा ही लंड उसकी गांड में था!
सुमेर जाने कब से ढीली किए लेटा था, थोड़ी आ आ करने लगा, शायद मेरा मन रखने को मुझे चूतिया बना रहा था।

अब मैं उसकी गांड में लंड पेले चुपचाप लेटा था, मैंने पहली बार हाथ लगा कर उसके मस्त चूतड़ देखे, मस्कुलर मस्त और जांघों में मछलियां उभर रहीं थीं, सारा शरीर ही सांचे में ढला था।
थोड़ी देर में उसकी गांड हरकत करने लगी, शायद लंड के धक्कों के लिए मचल रही थी.

मैंने हल्के हल्के धक्के शुरु किए, वह भी धीरे धीरे चूतड़ हिलाने लगा, बंदा एक्सपर्ट खिलाड़ी था, वह बहुत कलाकारी के साथ कमर हिला रहा था.

अब मैंने झटके थोड़ा जोर से किए तो वह मुस्कराया, मैं समझ गया कि इसे अब मजा आ रहा है।
मैंने धक्कों की स्पीड बढ़ाई तो वह गांड ढीली करके लेटा रह गया. जब थोड़ा दम लेने को रुका तो वह गांड चलाने लगा। अब मैं धक्कम धक्का… अंदर बाहर… अंदर बाहर… शुरु हो गया. दे दनादन… दे दनादन… उसकी गांड गरम हो गई, मेरी सांस जोर जोर से चलने लगी, पसीने पसीने हो गया, दिल धड़कने लगा. मेरा पानी निकल गया, हम एक दूसरे से चिपके लेटे रहे, फिर अलग हो सो गए।

ऐसा ही एक हफ्ते में दो तीन बार हो गया।

एक दिन शाम को मैं अपने ऑफिस/अस्पताल से रूम पर लौटा और घूमने को जाने को तैयार हो रहा था कि देखा एक बहुत ही हैन्डसम नौजवान लगभग पच्चीस- छब्बीस साल का मस्कुलर कसरती बॉडी का बना ठना सजा हुआ मेरे पास आया, मेरा नाम पूछा।
मैंने कहा- हां मैं ही हूं।
तो बोला- मैं रामदास जी का बेटा हूं।

मैं राम दास जी को याद करने लगा, तो वह बोला- वे एक्स आर्मी मैन ओल्ड मैन।
मैंने कहा- हां बोलो, क्या बात है?

रामदास जी फौज से रिटायर थे, आदिवासी थे, थोड़ी बहुत दारु भी चलती थी. उन्हें कुछ दिनों से खांसी हो गई थी, बुखार भी था, इलाज कराते रहे, फायदा नहीं हो रहा था।
मैं अस्पताल में अकेला बैठा था, जब वे आए तो अस्पताल बंद होने को था. वे दिलचस्प व्यक्ति लगे, बातें की, उनको देखा, जांच करवाई, उन्हें क्षय रोग निकला. तीन चार माह के इलाज में अब स्वस्थ थे लेकिन इलाज जारी था.
वे मेरे पास नियमित आया करते थे। उन्हीं की चर्चा करने बेटा आया था।

मैंने कहा- हां, उन्हें अभी इलाज की जरुरत है, छोड़ें नहीं, जारी रखें. आप उन्हें सुबह ले आएं, आपके सामने ही बात करुंगा।
वह प्रभावित था- आपने उन्हें स्वस्थ कर दिया… इतना यहाँ कोई अपरिचितों का ध्यान नहीं रखता।

मैं उसकी मस्कुलर बॉडी बनाठना ड्रेस मेकअप से प्रभावित था, आश्चर्य चकित था, पूछ ही बैठा- तुम कहां रहते हो? यहां तो ऐसे लोग नहीं दिखते?
तब वह बोला- मैं बेंगलोर में रहता हूं, वहां मसाज बॉय हूं, हेयर ड्रेसिंग का भी कोर्स किया है, काम किया है, ब्यूटीशियन का भी काम कर चुका हूं. कई काम करता हूं!
“वहां कैसे पहुँचे?”
“मेरे एक मामा वहां हैं, उन्होंने फौज में भर्ती करवाने बुलाया था, भर्ती हो गया, दो साल काम किया, फिर छोड़ दिया, दुबई रहा… अब बंगलोर में हूं, कई तरह के काम किए, अब काफी कमा लेता हूं. पिताजी से कहा था कि वहीं चलो, वे गए भी पर उन्हें वहां अच्छा नहीं लगा तो लौट आए।

अगली सुबह वह पिता जी को लेकर आया, उनकी कांउसलिनग की कि इलाज बंद न करें, चालू रखें, कोर्स पूरा होना जरूरी है।

वह शाम को फिर मेरे रुम पर था।
मैंने कहा- बैठो।
मेरे पास एक ही खटिया थी, उसी पर दोनों बैठ गए।

वह बोला- मैं समझता था कि कोई खड़ूस डाक्टर होगा, आप तो बिल्कुल नौजवान हैं मेरे जैसे।
मैंने कहा- बेकार में मक्खन मत लगा, तुम बहुत हेन्डसम, वेल ड्रेस्ड, नमकीन चीज… कहां मैं!
वह बोला- सर! आप बुरा न मानें तो कहूं… मुझे गलत न समझें।
मैंने कहा- जो मन में है, बेालो।
वह बोला- सर, आप भी तो बहुत हेन्डसम हैं. मैं मक्खन नहीं लगा रहा और बुरा न मानें तो नमकीन भी।
मैं- अरे यार, नमकीन का कुछ खास मतलब होता है. समझे?

वह- हां सर! उसी खास मतलब में!
वह मुस्कुराया।
मैं- मतलब बताऊँ?
वह- बतायें सर?
मैं- अरे नमकीन मतलब वह लौंडा जिसे देख कर उसकी मारने को मन हो जाए, उस पर दिल आ जाए! स्पष्ट शब्दों में कहूं तो लंड खड़ा हो जाए। अब मैं इतना नमकीन कहां? कभी था… लौंडे मुझ पर मरते थे।
वह मुस्करा कर बोला- आप अब भी हैं इतने ही!

अब मैं खुल गया था, मैंने कहा- अरे… अगर मैं कहूं तो मेरी मारोगे? तुम्हारा दिल है? मैं पसंद हूं या वैसे ही मेरा दिल रखने को? बोलो?
वह- सर अब मैं क्या कहूं… जैसा आप कहेंगे, करुंगा! मेरा आप पर दिल है।
मैं- कभी किसी लौंडे की मारी है? कभी किसी मस्त लंड की टक्करें अपनी गांड पर झेली हैं? या वैसे ही मुझे चूतिया बना रहे हो? कोई तजुरबा है?
मैं जोश मैं जाने क्या क्या बक गया, मेरी आवाज बदल गई, हाथों में हल्का कम्पन होने लगा, दिल धड़कने लगा, शरीर में पसीना आ गया, मुंह सूख गया, मेरा उस पर सच में दिल आ गया था, लंड खड़ा हो गया था।

वह- सर, अब मैं आपको क्या बताऊं… आपकी तो सिस्टमिक इजी लाइफ रही, कॅालेज पढ़ने गए, बढ़िया सुविधाएं… मुझे तो स्ट्रगल करना पड़ा… काम किया, थोड़े पैसे मिले… फिर सिखाने वाले संत न थे. मैंने गांड भी मराई जब कमसिन था, तब तीस चालीस साल के जबरदस्त मर्दों के भयंकर लंड गांड पर झेले, टक्करें सहीं, कई बार गांड फट गई, दर्द करती… पर सहा! कई लौंडों की गांड मारी अपने से बड़ी उमर के मर्दों की मारी! अपने मजे के लिए नहीं, उन्हें तृप्त करने को! अभी मसाज करता हूं तो कई बड़ी उमर की सेठानियां चोदता हूं. यह मेरे पेशे का हिस्सा है. अपने को फिट रखने को जिम जाता हूं, डाइट कन्ट्रोल रखता हूं, बन ठन कर रहता हूं। सब किया है. हमारे पास टाइम कम होता है, इन्हीं दस सालों में जितना कमा लें, कमा लें, फिर कमाई कम हो जाती है। मैं रुका हूं, यहां मकान बनवा रहा हूं, बगलोर में फ्लेट है, कुछ इनवेस्टमेंट बस। आप चाहेगे तो आप को खुश कर दूंगा। आप अब भी बहुत नमकीन हैं, माशूक हैं, विश्वास करें, परेशान न हों, टेन्शन न लें।
वह मुस्कुरा रहा था।

उसने हल्के से मेरा हाथ दबाया, बोला- सर मैं कल आऊंगा, चलते हैं।

वह चला गया.

कहानी का दूसरा भाग: नई जगह, नये दोस्त-2

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