मेरे गांडू जीवन की कहानी-13

(Gaand Chudai : Mere Gandu Jiwan Ki Kahani- Part 13)

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शादी में चूसा कज़न के दोस्त का लंड-13

अभी तक आपने पढ़ा कि मैं रवि की तलाश में हिसार जा पहुंचा और बस में मिले संदीप की बाइक पर बैठकर रवि के गांव की तरफ जा रहा था. रात हो चुकी थी और बाइक पर चलते हुए संदीप ने अपना खड़ा लंड मेरे हाथों से रगड़वाया और एक वीराने रास्ते पर ले जाकर चलती बाइक पर मेरे मुंह में दे दिया. उसके बाद वो मुझे एक कोठरी में ले गया जहाँ उसके दोस्त पहले से ही बैठकर दारू पी रहे थे.
कोठरी के अंदर नंगा होकर संदीप ने मेरे मुंह को चोद दिया. वीर्य पिलाने के बाद उन्होंने मेरे लिए भी एक दारू का एक पैग बना दिया. मुझे मजबूरन उसको पीना पड़ा क्योंकि और कोई चारा था ही नहीं मेरे पास!

उसके दोस्त नशे में धुत हो चुके थे, उन्होंने मुझे अपनी तरफ खींचा और अपनी गोद में लेटाकर मेरी गांड पर हाथ फेरने लगे, दूसरे ने मेरी पैंट निकाल दी और अंडरवियर को फाड़ दिया. मैं नंगा उनकी गोद में पड़ा हुआ था.
मेरी नंगी गांड को देखकर दूसरे दोस्त ने मेरी गांड पर हाथ फिराना शुरु कर दिया.

तब तक संदीप जाकर दारू पीने लगा… गांड पर हाथ फिरा रहा रहे दोस्त से संदीप ने पूछा- क्यों जग्गी, कैसी है इसकी गांड?
जग्गी बोला- बहुत नर्म है साले की, चोदते हुए मज़ा आएगा.
तभी जग्गी ने अपने साथी से कहा- आ जा राजबीर, तू भी देख ले एक बार हाथ लगा कर इसके चूतड़!

इतना सुनकर राजबीर हंसा और उसके पास आकर मेरी गांड को दोनों हाथों से दबाने लगा… वो बोला- हाय रे… मस्त माल है यो तो!
वो दोनों अचानक खड़े हुए और मेरी आँखों के सामने उन्होंने अपनी लोअर नीचे गिरा दी. राजबीर ने गहरा नीला अंडरवियर पहना हुआ था और जग्गी ने कुछ भी नहीं पहना था. जग्गी का लंड औसत था और नंगा होने के बाद धीरे-धीरे तनाव में आने लगा था. जग्गी आकर मेरे मुंह के सामने घुटनों के बल बैठ गया और अपने लंड और आंडों को मेरे मुंह और होठों पर फिराने लगा.

फिराते-फिराते उसका लंड खड़ा हो गया और वो अपना लंड मुझसे चुसवाने लगा. राजबीर पीछे दारू का ग्लास लेकर खड़ा दारू पीता हुआ ये सब देख रहा था, उसके अंडरवियर में उसका लंड तंबू बना चुका था जो मेरी आँखों की तरफ उछल-उछल कर इशारे कर रहा था. वो चलकर पीछे से मेरी गांड पर आकर बैठ गया और अंडरवियर समेत ही अपना लंड मेरी गांड पर रगड़ने लगा.

अब तक मेरे दिमाग में दारू का नशा चढ़ चुका था और मैं बस उनका साथ देने में मग्न सा होने लगा था. हवस और दारू दोनों का नशा जब साथ मिल जाए तो उससे निकलने वाली सेक्स की आग को रोक पाना किसी के बस की बात नहीं होती. हम चारों उसी आग में जल रहे थे.

जग्गी अपना लौड़ा चुसवाने में मस्त हो चुका था और उसके हाथ मेरे सिर को पकड़े हुए मुझे उसके आंडों में धकेल रहे थे. उसका लंड आराम से अंदर बाहर हो रहा था.
इधर राजबीर ने अपना अंडरवियर निकाला और नंगे लंड को मेरी गांड पर रगड़ने लगा. उसका लंड मुझे अपनी गांड की दरार में रास्ता बनाता हुआ महसूस हो रहा था. अब उसने दोनों हाथों से मेरी गांड के पाटों को अलग करते हुए मेरे छेद में उंगली डाली और अंदर बाहर करता हुआ सिसकारियां लेने लगा.

मेरे मुंह में जग्गी का लंड था और गांड में राजबीर की उंगलियाँ.
इतने में संदीप नशे में बोला- अरे राजू… उंगलियों से ही चोदेगा क्या इसको?
सुन कर राजू बोला- थोड़े मजे तो लेने दे इसकी गांड के!
संदीप बोला- अंदर डाल कर देख और फिर बता मज़ा आया या नहीं!

इतना सुनते ही राजू ने अपना लंड मेरी गांड के छेद पर लगाया और टोपा अंदर फंसाते हुए लंड धीरे-धीरे अंदर डालने लगा. मेरी गांड खुलती चली गई और उसका लंड गांड में अंदर उतर गया.
वो बोला- हाय रै संदीप… जी सा आ ग्या यार… घी सा घल ग्या…(मजा़ आ गया यार…इसकी गांड में लंड डालकर)

कह कर उसने दोनों हाथ मेरी बगल में दोनों ओर टिका दिए और मेरे ऊपर दबाव बनाता हुआ मेरी गांड को चोदने लगा.
उधर सामने से जग्गी अपना लंड मेरे मुंह में पेले जा रहा था और मदमस्त हो रहा था. राजू के धक्कों से जग्गी का लंड मेरे मुंह के अंदर बाहर होने लगा.

उनकी ये कामक्रीड़ा देखकर संदीप का नशा दोगुना हो गया, वो बोला- सालो, अकेले-अकेले गांड का स्वाद ले रहे हो? इसे लाया तो मैं, और चोद रहे हो तुम!
राजू बोला- तू भी आ मेरे भाई! बहुत मज़ा दे रही है साली रंडी!

संदीप ने उठकर अपनी मोटी जांघों में फंसी खाकी पैंट नीचे सरकाई और अंडरवियर के ऊपर से लंड को सहलाते हुए मेरी नज़रों के सामने जग्गी के पीछे आकर खड़ा हो गया. उसका लंड फिर से तनाव में आने लगा था और दो मिनट बाद उसने अपना अंडरवियर भी नीचे निकाल फेंका और वो हट्टा कट्टा देसी मर्द पूरा नंगा होकर अपने खड़े लंड के साथ जग्गी के साथ मिलकर अपने लौड़े को मेरे मुंह पर फिराने लगा.
उसको नंगा देखकर मेरी गांड और खुल गई क्योंकि मैं पहली बार उसको पूरा नंगा देख रहा था. उसकी उठी हुई छाती पसीने से भीग रही थी, एक हाथ उसकी कमर पर था और दूसरे हाथ से वो अपने लौड़े की मुट्ठ मार रहा था. उसकी जांघों के बीच में उसके मोटे-मोटे आंड लटक रहे थे जो मुट्ठ मारते हुए आगे पीछे जा रहे थे और लंड के आस-पास बड़े बड़े घने काले बाल थे जो उसकी मर्दानगी और बढ़ा रहे थे.

यह नज़ारा देखकर कुछ पल के लिए मैं अपने होश खो बैठा था और चाह रहा था कि संदीप मेरे ऊपर चढ़ जाए. मैं उन तीनों के लंड चूसना चाह रहा था लेकिन अगले ही पल संदीप राजू के पास पहुंच गया और राजू को कहा- एक बार अपना लंड निकाल… और इसको घोड़ी बना दे.
राजू ने ऐसा ही किया और मुझे कमर से पकड़ते हुए घोड़ी बना दिया.

संदीप बोला- अब, डाल अपना लौड़ा…
तो राजू ने दोबारा अपना लंड मेरी गांड में डाल दिया…लेकिन अगले ही पल जो हुआ वो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था… राजू को थोड़ा साइड में करते हुए संदीप ने उसको एक पल रोकते हुए अपना लंड भी राजू के लंड के साथ मेरी गांड के छेद पर लगा दिया. अब दोनों के लंड के टोपे एक साथ मेरी गांड के छेद पर लगे थे और संदीप ने कहा- चोद साले को!

यह कहते ही दोनों ने अपने लंड मेरी गांड में अंदर घुसाने शुरु कर दिए. संदीप का लंड तो वैसे ही 4 इंच मोटा था और नशे के कारण उसकी हवस में और खतरनाक हो गया था.
दोनों के लंड अंदर जाना शुरू भी नहीं हुए थे कि मेरी गांड फटने लगी… मुझे इतना दर्द हुआ कि मेरे दांत जग्गी के लंड में गड़ गए और उसने मेरे बाल पकड़ कर अपना लंड बड़ी मुश्किल से बाहर खींचा.
उसका लौड़ा लाल हो गया था.
जग्गी बोला- साले ने काट लिया!
मुंह से लंड निकलते ही दर्द के मारे मेरी चीख निकल गई- आ… हह… नहीं!

इतना होते ही जग्गी ने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया और इसके चलते संदीप और राजू का जोश और बढ़ गया. उनके लंड मेरी गांड में एक इंच अंदर प्रवेश कर चुके थे. मेरे दबे हुए मुंह से ऊंह… ऊंह… की जोर-जोर की आवाजें आने लगीं लेकिन जग्गी ने मेरे मुंह पर अपने हाथ का दबाव और ज्यादा बढ़ा दिया.

अब संदीप ने और जोर लगाया और उसके लंड के साथ राजू का लंड भी मेरी गांड को चीरता हुआ गहराई में धीरे-धीरे सरकने लगा. दर्द मेरी बर्दाश्त के बाहर हो गया, आँखों से आंसू झर-झर गिरने लगे, मैं जल बिन मछली की तरह छटपटाने लगा.
लेकिन मेरा एक हाथ संदीप ने अपने दोनों हाथों से पकड़ कर पीछे की तरफ अपनी ओर खींचे रखा और दूसरा हाथ राजू ने पकड़ लिया, मेरे दोनों हाथों को अपनी तरफ खींचने पर उनके लंड मेरी गांड में और अंदर रास्ता बनाने लगे और मैं दर्द के मारे बेहोशी के कगार पर पहुंच गया.

संदीप और राजू ने एक साथ एक तेज झटका दिया और उन दोनों के लंड आधी लंबाई तक मेरी गांड में उतर गए. उन्होंने मेरे हाथों को और पीछे की तरफ खींचा और अब दोनों के लंड आपस में सटे हुए पूरे के पूरे मेरी गांड में आ फंसे.
मैं बेहोश सा हो गया… उसके बाद का मुझे कुछ याद नहीं कि मेरे साथ क्या-क्या हुआ लेकिन जब आंख खुली तो मैं नंगा वहीं दरी पर पड़ा हुआ था, सारा सामान आस-पास बिखरा पड़ा था.

मैंने दोनों तरफ गर्दन घुमाई तो कोठरी में कोई नहीं था, मैं अकेला वहाँ नंगा पड़ा हुआ था. मैंने शरीर को संभालते हुए उठना चाहा तो गांड में जैसे मिर्च लगने का इतना तेज अहसास हुआ जैसे किसी ने कोई जलती हुई चीज़ गांड में देकर निकाल दी हो.
मैं दर्द के मारे रो पड़ा… दर्द इतना असहनीय था कि घुटने पेट में घुस गए… लेकिन दर्द कम नहीं हो रहा था.

मैं फूट-फूट कर रोने लगा ‘उई मां… मर गया… रवि… यार तू कहाँ है… आ…हा… रवि… ले जा मुझे… यहाँ से… आ..हा… मर गया…मेरी मां…
कलेजा फटने लगा लेकिन सुनने वाला कोई नहीं था, आधे घंटे तक यूं ही पड़ा हुआ रोता रहा, फिर जैसे तैसे करके फटी शर्ट पहनी और बड़ी मुश्किल से पैंट पहन पाया.
टाइम देखा तो सुबह के 3.30 बज चुके थे.

मैं उठा और कोठरी के बाहर कदम रखा ही था कि मुझे चक्कर आ गया. मैंने दरवाज़े का सहारा लिया और खुद को संभाला, भगवान को कोसते हुए चीखकर कहा- मुझे ही गे क्यों बनाया तूने… ऐसी नर्क भरी जिंदगी से अच्छा तो मुझे मौत आ जाए!
भगवान और अपने भाग्य को कोसता हुआ मैं किसी तरह लंगड़ाते हुए कोठरी से बाहर निकला और बैग उठाकर पगडंडी पर मेन रोड की तरफ देखा. वो एक किलोमीटर की दूरी हजार किलोमीटर की मालूम हो रही थी. एक एक कदम बढ़ाना भारी हो रहा था.

मैं आँसू गिराता हुआ गांव के मेन रोड की तरफ बढ़ चला.

जल्द ही लौटूंगा अगले भाग के साथ!
गांडू की कहानी जारी रहेगी.
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