महाकुम्भ में महालंड-3
(Mahakumbh Mein Maha Lund- Part 3)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left महाकुम्भ में महालंड-2
-
View all stories in series
दोस्तो, इससे पहले वाले भाग में मैंने आपको बताया कि मैं लंड की तलाश में अपने कैम्प से निकला था लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद मैं लंड पाने में नाकाम रहा और अंत में मुझे एक जवान, मर्दाना जिस्म और लंड वाला मर्द मिला जिसके लंड को मैं लेने के लिए आतुर था लेकिन तभी वहाँ कार आ गई और हम लोग अपना काम नहीं कर पाए।
अब सुनिए आगे की कहानी:
हम लोग गाड़ी मैं ही बैठे हुए सोच रहे थे कि अब जगह का जुगाड़ कैसे किया जाये..
तभी मैंने कहा- चलो वह सामने रेलवे पटरी के उस पार या ब्रिज के नीचे चलते हैं, वहाँ सुनसान है और अंधेरा भी है…
उसने कहा- ठीक है।
उसने अपने कपड़े समेटे और हम दोनों उतर कर रेलवे पटरी पार करने लगे।
वो बोला- यहाँ पर कहाँ है जगह?
मैंने कहा- वो वहाँ आगे, ब्रिज के नीचे चलो या इधर ये जंगल जैसा दिख रहा है, वहाँ चलो.. अंधेरा भी है।
हम लोग आगे गए, ब्रिज के नीचे देखा तो गंदगी पड़ी हुई थी इसलिए वहाँ जाना ठीक नहीं लगा।
फिर ब्रिज के साइड में पड़े जंगल में जाने के लिए मैंने बोला लेकिन वो मना करने लगा, बोला- यार, ब्रिज पर से काफी सारी गाड़ियाँ निकल रही है और वहाँ से दिखेगा भी..
वास्तव में, उसकी बात भी सही थी क्योंकि वो ब्रिज पर रिंगरोड था और सिंहस्थ का माहौल था तो पूरी सड़क भर कर गाड़ियाँ निकल रही थी और गाड़ियों के हॉर्न की भयंकर आवाज आ रही थी।
फिर मैंने कहा- यार ब्रिज काफी ऊंचा है, वहाँ से इतना साफ कुछ नहीं दिखता और हम लोग अंधेरे में हैं। वैसे भी इतनी रात को इतने ट्रैफिक में कौन अपनी गाड़ी से उतरकर नीचे झांकेगा और ध्यान देगा जो हम दिखेंगे। चलो थोड़ा अंधेरे और थोड़े पेड़ों के बीच चलते हैं…
उसे भी मेरी बात ठीक लगी और हम लोग थोड़े झुरमुट की तरफ बढ़ने लगे।
मैंने उसके मजबूत हाथों को पकड़ रखा था और उसके साथ ही चल रहा था.. वो बनियान में ही था और उसकी मस्त कसी हुई पीठ के एक एक मसल अलग अलग दिख रही थी.. जिन्हें चाटने का मन कर रहा था।
अचानक एक पेड़ के झुरमुट के पीछे जाकर वह रुक गया और बोला- यह जगह ठीक है!
मैंने कहा- हाँ ठीक है।
अब मुझसे रहा नहीं जा रहा था, मैं उसकी बांहों मैं अपने आपको सौंप देना चाहता था।
मैंने तुरंत उसे गले से लगा लिया और उसे जकड़ लिया..
वो भी जोश में था उसने भी अपनी मज़बूत भुजाओं में मुझे जकड़ लिया।
मैं उसकी पीठ पर बने कट्स पर अपनी उंगलियाँ चला रहा था.. मैं उसके घुंघराले बालों में अपनी उंगलियाँ चला रहा था और वो मेरे लोअर में हाथ डालकर मेरी गांड को अपने कड़क हाथों से मसल रहा था जिससे मेरे मुख से आह आह की आवाज निकल रही थी।
ऐसे ही करते हुए मैंने उसकी बनियान भी उतार दी.. क्या बदन था उसका कातिलाना..
एक एक मसल अलग दिख रहे थे ऊपर से फूली छाती पर थोड़े से बाल!
मैंने उसे एक पत्थर पर खड़ा किया और मैं नीचे ही खड़ा रहा जिससे मेरा मुँह उसकी छाती तक आ सके।
उसके बाद मैं उसकी मजबूत छाती से लिपट गया, अब मेरा मुँह उसकी छाती पर था, मैं उसकी बालों भरी छाती को चाटने लगा।
कभी उसके डोलों को मसलता कभी चाटता, कभी उसके बदन को सूंघता तो कभी उसके कान चबाने लगता।
ऐसे करते हुए मैं उसके पूरे बदन को चूमने लगा और चूमता हुआ उसके पेट से होते हुए उसके पैंट की हुक तक आ गया और पैंट खोल दी और अपने दांतों से ही उसकी चड्डी को हटा दिया।
चड्डी को हटाते ही उसका फनफनाते हुए लंड झटके के साथ मेरी नाक पर जोर से लगा क्योंकि वह काफी समय से दबा हुआ था।
मैंने उसका हाथ पकड़कर खींचा जिससे वह पत्थर से नीचे उतर गया।
अब उसका मोटा खीरे जैसा 7″ का बिल्कुल सीधा लंड, बिना ढक्कन के गुलाबी रंग का मेरे सामने था।
मैंने भी बिना देर किये उसके सुपारे को चाटना शुरू कर दिया। इससे पहले मैंने कभी किसी मुस्लिम का लंड नहीं लिया था इसलिए मुझे इसका अमुभव नहीं था।
सुपारे को चाटते हुए मैंने धीरे से उसका गुलाबी सुपारा अपने गर्म मुख में भर लिया और उसे लॉलीपॉप की तरह चूसने लगा जिससे उसके मुँह से आह निकल गई।
इसके बाद मैंने सुपारे को छोड़ कर लंड को साइड से चाटना शुरू कर दिया।
मैं ऐसे ही कर रहा था.. पूरी तरह से उसके लंड को मुंह में नहीं ले रहा था लेकिन वो पूरा लंड मुख में देने के लिए उतावला हुआ जा रहा था।
अचानक ही उसने मेरे बालों को पकड़ा और मेरा मुंह अपने लंड के सामने लेकर एक झटके के साथ अपना मोटा लंड मेरे गले तक उतार दिया.. और मेरे मुंह को दबाये रखा।
मेरी सांसें मानो रुक सी गई थी, मैं साँस नहीं ले पा रहा था और वो तो हट्टा कट्टा पहलवान था, मैं चाह कर भी उसके हाथ को नहीं हटा पाता।
मेरी आँखों से आँसू आ रहे थे, मुंह से लार टपक रही थी.. मैं सब कुछ भूल गया और उस पल का आनन्द लेने लगा।
मैं उसके मोटे लंड के सुपारे को अपने गले में महसूस कर रहा था।
आँखों में आँसू होते हुए भी मैं खुश था क्योंकि इस पल के लिए मुझे कितना परेशान होना पड़ा था और कितनी मुश्किलों के बाद ये लंड मुझे नसीब हो पाया था।
कुछ समय बाद उसने मेरे बालों की पकड़ ढीली की जिससे मुझे थोड़ा आराम मिला और मैं बिना रुके उसके लंड को चूसने लगा।
तभी अचानक उसने मुझे पकड़कर खड़ा किया और मुझे झटके से पलटा दिया और मुझे पीछे से बाँहों में भरते हुए मेरी चूचियों को जोर जोर से मसलने लगा और दबाते हुए उसने मेरी पैन्ट और चड्डी नीचे सरका कर मेरे चूतरों के बीच लंड टिका कर पीछे से लंड का एक तेज झटका मारा और पूरा लंड अंदर चला गया।
इसके बाद वो जोर जोर से झटके मारने लगा.. दरअसल उसका लंड मेरी गांड में नहीं गया था बल्कि गांड के नीचे दोनों टांगों के बीच की जगह में गया था और मैंने अपनी टांगों को काफी टाइट कर लिया था इसलिए जोश में उसे लग रहा था कि वो गांड चोद रहा है।
वैसे यह मेरी पुरानी ट्रिक है क्योंकि मैंने अभी तक किसी से भी गांड नहीं मरवाई थी, जब भी कोई मारना चाहता, मैं उसके साथ ऐसे ही करता था जिसमे मुझे भी मजा आता था।
यह हिन्दी सेक्स कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
वह जो जोर से झटके दिए जा रहा था जिससे मेरी गांड के नीचे बनी जगह में उसके लंड की रगड़ मुझे दीवाना बना रही थी।
वो झटके मारे जा रहा था मेरी चूचियां मसले जा रहा था और मैं आह आह करके मचल रहा था।
ऐसे ही लगभग 10 मिनट हो गए, मेरे पैर अकड़ गए थे इसलिए मैंने पैरों को थोड़ा दूर कर दिया जिससे उसको महसूस हुआ कि लंड गांड में गया ही नहीं था।
उसने पूछा- गांड में नहीं गया था क्या?
मैंने कहा- नहीं गया था।
वो बोला- चल अब डालता हूँ गांड में लंड..
मैंने कहा- नहीं भाई, मैं गांड नहीं मरवाता, कभी मरवाई भी नहीं है, आप डालोगे तो भी नहीं जायेगा।
उसने भी ज्यादा दबाव नहीं दिया।
मैंने कहा- चलो अब आगे से करते हैं।
वो बोला- आगे से कैसे? तुम्हारी चूत कहाँ है?
मैंने कहा- चूत नहीं है फिर भी चूत का मजा दूंगा।कहते हुए मैंने उसका कड़क लंड अपने लंड के नीचे की खाली जगह में रखा और अपनी टांगों को आपस में कस लिया और उसने एक जोरदार धक्के के साथ उस जगह में अपना लंड डाल दिया और झटके देने लगा।
अब उसे चूत का एहसास हो रहा था क्योंकि वह अब आगे से डाल रहा था।
वह आह आह करने लगा और मैं भी उससे चिपक गया और उसे अपनी बाहों में भर लिया।
वो जितने तेज झटके मारता, मैं अपनी टांगों को उतना ही टाइट कर देता।
हम दोनों आह आह कर रहे थे।
कुछ देर बाद उसके झटके तेज होने लगे और वह बोला- छूट होने वाली है, छोड़ दूँ?
मैंने कहा- नहीं नहीं.. यह तो मेरे मुंह का सौभाग्य है, इसे ऐसे मत बहाओ!
कहते हुए मैंने उसके लंड को अपने मुंह में पूरा भर लिया और मैं बेइंतहा पागल होकर लंड चूसने लगा।
हमें यह सब करते हुए लगभग एक घंटा हो चुका था और मैं तो पहले से ही थका हुआ था, अब ज्यादा थक चुका था इसलिए चूस नहीं पा रहा था लेकिन लंड मुश्किल से मिला था इसलिए ऐसे ही छोड़कर लंड की बेइज्जती नहीं करना चाहता था.. मैं लंड को पूरा सुख देना चाहता था।
इसलिए थकने के बावजूद मैंने टारगेट बनाया कि मैं चाहे कुछ भी हो जाये, बिना रुके 150 बार लंड पर अपने मुंह से झटके दूँगा मतलब चूसूँगा।
मैंने मन ही मन गिनती शुरू कर दी और चूसने लगा।
आँखों के आंसू गले तक आ चुके थे, मुंह से थूक और लार टपक रही थी जिससे मेरी पूरी दाढ़ी गीली हो चुकी थी।
लगभग 100 झटके हो चुके थे लेकिन उसका माल निकलने का नाम नहीं ले रहा था।
फिर उसने भी मेरे बालों को कसकर पकड़ लिया और झटके देने लगा जो इतने तेज थे कि हर झटके में लंड गले तक जा रहा था और हर झटके से साथ ढेर सारा मेरा थूक बाहर आकर गिरता।
मुझे बेहोशी सी होने लगी थी क्योंकि अब मेरा शरीर इससे ज्यादा बरदाश्त नहीं कर सकता था।
अचानक ही उसके झटके तेज हुए और एक गर्म पिचकारी से मेरा गला भरने लगा।
पहली पिचकारी होते ही वह भी निढाल हो गया और उसने मेरे बाल छोड़ दिए जिससे उसका लंड मेरे मुंह से बाहर निकल गया क्योंकि मेरी ताकत तो पहले ही खत्म हो चुकी थी, जो कुछ कर रहा था वो ही कर रहा था।
लंड के मुंह से बाहर आते ही वीर्य की दूसरी पिचकारी निकली जिसने मेरे चेहरे को भर दिया।
इसके बाद एक छोटी सी तीसरी पिचकारी आई और उसका पूरा माल निकल गया।
मेरा मुंह उसके वीर्य से भरा था जिसका खारा स्वाद आ रहा था.. चेहरे पर भी वीर्य था।
इतना होते ही वह थक कर उस पत्थर पर जाकर बैठ गया।
मैंने भी अपने मुँह से वीर्य को थूका और उसने अपने रुमाल से मेरा चेहरा साफ किया।
मैं उसकी गोद मैं सर रखकर बैठ गया।
कुछ देर आराम करने के बाद मुझे ध्यान आया कि अब तो काफी समय हो गया होगा, चलना चाहिए।
मैंने कहा- चलें अब?
वह हाँ कहते हुए खड़ा हो गया और हम लोग वहाँ से निकल गए और रेलवे पटरी को पार करते हुए गाड़ी के पास पहुँच गए।
उसने कहा- मेरा नम्बर अपने मोबाइल में सेव कर लो, मेरा फोन डिस्चार्ज है।
मैंने कहा- मैं तो फोन लाया ही नहीं हूँ.. कोई कागज पर लिख कर दे दो!
उसने देखा लेकिन कोई कागज या पेन नहीं मिला।
उसने गाड़ी स्टार्ट की और बाय बोलते हुए निकल गया।मैंने भी बाय बोला और मैं भी ब्रिज के नीचे से किन्नर अखाड़े होते हुए अपने कैम्प पर चला गया जहाँ मुझे आज की खूबसूरत बातें सोचते हुए नींद आ गई।
तो दोस्तो, यह थी मेरी पहली सेक्स कहानी.. अपनी प्रतिक्रियाएं मुझे इस मेल आईडी पर जरूर दें।
आपका लव शर्मा..
[email protected]
What did you think of this story??
Comments