गांड में लंड लेने व पेलने का नशा- 1
(Indian Gay Porn Kahani)
इंडियन गे पोर्न कहानी में एक परिपक्व गांडू ने अपनी जीवन गाथा बताई कि कैसे उसका गांडू जीवन शुरू हुआ. उसने बताया कि एक बाद गांड मारने, मरवाने की लत लग जाये तो छुटती नहीं.
दोस्तो, नशा कई तरह का होता है. किसी को दारू का नशा होता है.
कुछ लोग तो दारू के ऐसे आदी हो जाते हैं कि उन्हें उसके बिना चैन नहीं पड़ता, वे बिना पिए रह नहीं पाते हैं और अपना स्वास्थ्य चौपट कर बैठते हैं.
शरीर को रोग घेर लेते हैं. धन सम्पति का नाश हो जाता है.
पारिवारिक व सामाजिक सम्बंध बिगड़ जाते हैं, दोस्त किनारा काटने लगते हैं.
इतने पर भी वे बिना दारू के नहीं रह पाते हैं.
किसी को जुए की लत लग जाती है.
सारी मेहनत की कमाई जुए में हार जाते हैं.
घर से पैसे चुराते हैं, कलह होती है. बीवी के जेवर बेचने लगते हैं.
यहां तक कि कुछ लोग तो बर्तन भांडे भी बेचने लगते हैं.
पर उनकी आदत नहीं छूटती, वह उनके लिए एक नशा जैसी बन जाती है.
ऐसा ही एक नशा होता है ‘गांड मराने का नशा’
यह इंडियन गे पोर्न कहानी इसी विषय पर है. यह नशा जिसको भी लग जाता है तो फिर पीछा ही नहीं छोड़ता है.
असल में गलती उस ब़ंदे की नहीं होती.
जैसे शराब का नशा यार लोग लगा देते हैं, फिर कन्नी काट लेते हैं.
ऐसे ही दोस्त लोग हम नासमझ लड़कों की गांड मार मार कर लंड का चस्का लगा देते हैं.
फिर वे तो कोई नया लौंडा ढूंढ लेते हैं और उनकी लगाई यह आदत उस लौंडे को लगा देते हैं.
वे दूसरा नया माल पकड़ लेते ही, उस बेचारे पुराने दोस्त से कन्नी काटने लगते हैं.
अब वह माशूक चिकना लौंडा अपनी गांड के लिए लंड तलाशता फिरता है.
वैसे गांड मराना बड़े मजे का खेल है. जैसे अपन औंधे लेटे हैं, कोई अपने ऊपर चढ़ा है.
कई बार हम खुद अपनी पैंट खोल देते हैं, या कई बार वही बेल्ट खोलता है और पैंट को खोल कर उतार देता है. फिर अंडरवियर नीचे खिसकाता है. तुम्हें कुछ करना ही नहीं होता है.
फिर चोदने वाला ही बिस्तर को जमीन पर बिछा कर लड़के को लिटा देता है.
लड़का बार बार गिड़गिड़ाता है, रिक्वेस्ट करता है.
पर गांड मारने वाला नहीं मानता है, वह उस लौंडे को पटाता है ‘यार जल्दी से औंधे हो जाओ!’
यह कहता हुआ वह तुम्हारी टांगें चौड़ी करता है.
कई बार वह वहीं अपने साथ तेल की शीशी लाता है, लंड पर तेल को चुपड़ता है, गांड में भी तेल लगाता है.
फिर गांड में लंड डालने में तुमको मक्खन लगाता है ‘ढीली करो, ढीली करो …’. फिर लंड डाल कर बार-बार पूछता भी है, ‘लग तो नहीं रही?’
फिर आप लेटे हैं और वह अन्दर-बाहर अन्दर-बाहर करने में लग जाता है.
वह गांड मारते हुए पसीने पसीने हो रहा है, हांफ रहा है … पर तब भी साला रूकता नहीं है.
उसी दौरान बार-बार पूछता भी जाता है ‘लग तो नहीं रही? थोड़ी लगेगी … सहन कर लेना, बस-बस हो गया समझो!’
कुछ देर बाद सच में गांड में लंड का मजा आने लगता है और आप बस चैन से अपनी गांड चौड़ी किए हुए लेटे रहते हैं, मस्ती से लंड डलवाए मजे ले रहे हैं.
खेल हो जाने के बाद में वह नाश्ता पानी भी कराता है और अगली बार के लिए भी पटाने लगता है.
इससे मजेदार और कौन सा काम है?
गांड मरा कर मस्ती छा जाती है, जिन्होंने मराई हो … सच बताएं, मजा आता है कि नहीं?
पर हमेशा ऐसा नहीं होता, कभी कभी हम माशूक चिकने लौंडे कभी किसी लम्बे मोटे टाईट लंडधारी के हत्थे चढ़ जाते हैं तो गांड का कबाड़ा हो जाता है.
पहले वह पट्ठा मक्खन तो बहुत लगाता है … पर जब उसका हलब्बी लौड़ा गांड में जाता है … तो चीख निकल जाती है.
फिर आठ दिन तक गांड दर्द करती है तो चलना फिरना मुश्किल हो जाता है.
दोस्त लोग भी फौरन पहचान लेते हैं और कहते हैं कि आज तो बेटा किसी मस्त लंड से पिलवा कर आए हो.
साले बार बार पूछते भी हैं कि किससे डलवा कर आए हो, गांड दर्द कर रही है क्या? साले चाल बदल गई है साफ मालूम हो रहा है.
मैं अपनी सुनाऊं तो कुछ लौंडेबाज दोस्त, जिन्हें पहली बार मुझ जैसे मस्ते चिकने गोरे माशूक लौंडे की मारने को मिली थी.
उन्होंने जोश जोश में लंड डाल कर दो चार झटकों में ही लंड झाड़ कर अलग हो गए थे.
शुरू में तो ऐसे जल्दी जल्दी लगे रहते हैं कि फाड़ कर रख देते हैं. बाद में फुस्स पटाखा निकलते हैं तो गांड में खुजली होती रहती है.
शायद वे अनट्रेन नए सिक्खड़ होते हैं.
फिर कुछ दोस्त चूतड़ ऐसे मसलते थे, जैसे आटा गूंथ रहे हों.
उनके मसलने से चूतड़ तक दर्द करने लगते थे.
कुछ चूतड़ ऐसे चाटते और चूसते थे जैसे वे आईसक्रीम चाट रहे हों!
साले इसी में टाईम बरबाद करते थे.
जबकि उस वक्त गांड लंड पिलवाने को तड़प रही होती थी कि बन्दा कब अन्दर बाहर करना शुरू करेगा!
फिर वे लंड डालते ही कभी कभी जल्दी झड़ भी जाते थे.
कुछ दांतों से चूतड़ों को ऐसे काटते थे कि खून निकल आता था.
फिर जब मैं बड़ा हो गया, चिकना नहीं रह गया था. मेरी गांड पर बाल आ गए थे, नाक के नीचे मूंछें आ गई थीं.
उस वक्त तक मेरा लंड बड़ा भी हो गया था.
मैं भी कई गांड का मजा ले चुका था.
उस वक्त तक मुझसे मरवाने वाले तो खूब मिलते थे … पर मेरी मारने वाला कोई नहीं मिलता था.
फिर मुझको जब गांड के लिए लंड न मिलता था, तो उसी की चाह में भड़भड़ाते हुए ऐसा फिरता रहता था, जैसे दारूबाज शराब तलाशता फिरता है.
उसी तरह मैं लौंडेबाज ढूंढता फिरता था कि कोई गांड मार दे, पर नहीं मिलता.
असल में सभी लौंडेबाज, चिकने माशूक लौंडे के चक्कर में रहते हैं.
एक जवान मुच्छड़ गांडू खुद अपने मुँह से यह कह ही नहीं पाता है कि भैया! मेरी मार दे. न ही उसे कोई अप्रोच करता है.
हां … पर मुझे कॉलेज में तब कुछ साथी अटा-सटा वाले मिल जाते, जो मेरी गांड की प्यास बुझा देते, पर साथ में कमेन्ट् भी करते कि साले तू इतना तगड़ा है पर लौडियों के जैसा माशूक है.
फिर मेरे चूतड़ मसकते हुए कहते हैं कि तेरी पुंदेली कितनी मस्त है! यह कह कर वे मेरी जांघें सहलाते और गाल चूसते. साथ ही वे कहते कि वे लौंडे कितने किस्मत वाले होंगे, जिन्होंने तेरी माशूकी में मारी होगी!
वे फिर मेरा हथियार पकड़ लेते और सूंतने लगते- अबे कितना मोटा है?
पर साले मेरी मारने से ज्यादा मराने का शैाक रखते, उनकी भी मारना पड़ती … मजबूरी थी.
मैं भी जब कॉलेज में पढ़ता था, तब कई बुड्डे चालीस-पचास की उम्र के गांडू, जिन्हें हम मजाक में बुड्ढे कहते थे, बाजार में बस में सफर में कस्बे के स्टेशन पर शाम को घूमने जाने, पर मौका देख कर मेरा लंड पकड़ लेते थे.
वे जांघों पर हाथ फेरते थे, ऑफिस या बस में कुर्सी पर बैठे हुए ही उनकी हरकत से खड़ा हो जाता तो जरूरी होने पर भी कई बार बैठे रह जाते, काम बिगड़ जाता.
ऐसों से पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जाता था.
दोस्तों ने भी ऐसी घटना के बारे में बताया.
मैं भी एक ऐसी ही बस्ती में रहता था.
तब स्कूल में पढ़ता था.
मेरे साथी सहपाठी मुझ पर लाईन मारते थे, मैं उन्हें लिफ्ट नहीं देता.
पर क्या करूं … उन सबकी गलती नहीं थी. मैं था ही इतना गोरा चिट्टा, नमकीन, माशूक … औसत सहपाठियों से लम्बा तगड़ा, जो भी देखता, बस देखता ही रह जाता.
कोई कोई दोस्त कह ही देता या मेरे से ऊंची क्लास में पढ़ने वाले सीनियर लड़के कहते ‘क्या मस्त चीज है.’
वे गाल पर चुटकी काट देते, हाथ फेर देते.
कुछ बहुत शरारती साथी चूमा ले लेते, चूतड़ पर हाथ मार देते.
मैं किसी-किसी से लड़ भी बैठता, पर किसी से मुस्करा कर रह जाता.
गाल पौंछ लेता ओैर साथी भी यही करते.
कुछ झेंप जाते, कुछ मुस्करा कर रह जाते.
कुछ और भी नमकीन माशूक लौंडे थे, पर जाने क्यों मेरे ऊपर बहुत से लड़के नजर रखते थे.
असल में बस्ती ही लौंडेबाजों की थी. वहां यह खेल खूब चलता था.
सौ में अस्सी चिकने लौंडों की तो गारंटी से मार ही दी जाती थी.
जरूरी नहीं कि वह कुछ खास माशूक हो.
फिर हमारे स्कूल में हम दो तीन लौंडों पर तो खास निशाना था … आखिर कब तक बचते.
मैं स्वभाव से झेंपू लड़का था.
मेरा एक दोस्त था कामेश.
वह एक किताब बेचने वाला दुकानदार था जो स्टेशनरी का सामान भी बेचता था.
मेरे कस्बे में ऐसी बस दो दुकानें ही थीं.
मैं क्लास में पढ़ाई में ठीक था, मेरा क्लास में दूसरा या तीसरा नम्बर आता था.
कामेश थोड़ा डल था.
वह शाम को स्कूल से आकर भाई के साथ दुकान पर बैठता.
भाई कहीं बाहर जाते या कहीं और व्यस्त होते तो वह स्कूल से छुट्टी ले लेता.
सीजन में भी स्कूल खुलने पर दुकान में भार्इ का हाथ बंटाता था.
स्टेशन या बस स्टेंड से पार्सल छुड़ाने जाता.
इसी सबसे उसे पढ़ाई करने के लिए कम समय मिलता था.
पर उसका दो मंजिल घर बाजार में था, पढ़ने-लिखने का कमरा अलग था, फिर किताबों की भी कोई कमी नहीं थी.
वह पहले मेरे से आगे था, फेल होने से साथ आ गया था.
मैं संयुक्त परिवार से था, मेरे पास रहने की और पढ़ने की कोई ठीक व्यवस्था नहीं थी.
मुझको भी घर का काम करना पड़ता था जिसका कोई निश्चित टाईम नहीं था.
जब चाचा चाची काम बता दें, मेहमान आ जाएं तो पढ़ाई छोड़ कर उठना पड़ता.
अत: पढ़ाई में बीच बीच में व्यवधान होता.
कामेश के कमरे में, जो उसकी दुकान की ऊपर वाली दूसरी मंजिल पर एकांत में था … उधर जाने लगा था.
कामेश बहुत मधुर भाषी था.
उसने मुझे प्रपोज किया, मैं उसके कमरे में साथ पढ़ूं. उसके होम वर्क में मदद करूं.
मैं तैयार हो गया. वह गोरा था, सुन्दर था, मेरे से थोड़ा मोटा था और मेरे से एकाध दो साल बड़ा भी रहा होगा.
मैं शाम को उसके कमरे में पहुंच जाता और उधर ही देर तक पढ़ता.
उसका भी होमवर्क करता और अपना भी करता. उधर ही सवाल लगाता, तो उसकी किताबों से काफी मदद मिलती. वह ट्यूशन भी पढ़ने जाता था. मेरी कोई ट्यूशन नहीं थी.
घर में हम सगे व चचेरे बहुत से भाई बहन थे, अत: ट्यूशन का सवाल नहीं था.
कभी कभी चाचा या कजिन बड़े भाई बता देते, पर वे समझाते कम डांटते ज्यादा थे.
चाचा तो चांटे भी लगा देते थे.
अत: मैं उनसे बचने की कोशिश करता.
कामेश के ट्यूशन वाले सर जी उसे नोट्स देते, मैं उन्हें अपनी कॉपी में उतार लेता, तब फोटो कॉपी की व्यवस्थाएं नहीं थीं.
कुछ दिनों बाद उसके कमरे में एक और लड़का आने लगा.
उसका नाम नवीन था.
वह उसके गांव का था. वह तो पढ़ने में और भी डल था.
पर वह हम दोनों से दो-तीन साल बड़ा था, तगड़ा भी था.
ज्यादा लम्बा था और खाते पीते बड़े किसान परिवार से था.
नकल वगैरह से वह गांव के स्कूल से पास हुआ था.
वह शायद हमारी क्ला़स में सबसे बड़ी उम्र का था.
उसका कोई सपना नहीं था. बस कैसे भी दसवीं पास करके गांव में ही खेती करना थी या कोई धन्धा डालना था.
वह भी दिन में किसी दुकान पर बैठता था.
हम दोनों से मीठा बोलता था.
शायद वह स्कूल से निकाल दिया गया था या उसने ड्रॅाप ले लिया था.
इसलिए उसने इस साल प्राईवेट फॉर्म भरा था.
वह बहुत प्यार भरा व्यवहार करता था. हमेशा भैया-भैया सम्बोधित करता रहता था.
उसकी मस्त मांसल जांघें व बांहों में मछलियां दौड़तीं, भरी-भरी छाती थी, भारी कूल्हे थे, हमसे बड़े कूल्हे थे.
मैं व कामेश हैल्थ हाईट में उससे कमतर थे, वह हमसे ड्योढ़ा था. हमारा उससे कोई मुकाबला नहीं था.
हां वह रंग में हमसे थोड़ा दबा था, पर सुंदर था और मरदाना फिगर थी.
उसके मोटे सेक्सी होंठों के ऊपर हल्के हल्के रेशमी से बाल थे जो पास से ध्यान से देखने पर दिखाई देते. मोटे रस भरे होंठ थे.
पर उसमें एक आदत थी … वह हमारे व कामेश के गालों पर हाथ फेर देता था; कभी कभी चूतड़ मसक देता और मुस्कराने लगता.
एक दिन उसने कामेश के गाल में दांतों से काट खाया.
वे इम्तहान के पास वाले दिन थे, प्रिप्रेशन लीव ली हुई थी … तो ज्यादा किसी को बताना नहीं पड़ा था कि कैसे हो गया.
मैं नोट्स बनाता और अपनी कॉपी पर उतारता.
अपना व उसका काम करता और उन दोनों दोस्तों को टीचर की तरह याद करवाता व समझाता.
इसमें कभी देर हो जाती तो घर न जाकर कभी- कभी उसी के कमरे में सो जाता.
हम एक साथ फर्श पर दरी बिछा कर सो जाते.
फरवरी मार्च का महीना था.
एक रात मेरी नींद खुल गई. मेरी बगल में कुछ आवाजें आ रही थीं. वे दोनों धीरे धीरे कुछ बात कर रहे थे.
कामेश कह रहा था- बस बस लग रही … अरे वह देख लेगा.
नवीन- अरे, वह तो सो रहा है … बस चुप कर … ऐसे तो उसे पता ही लग जाएगा!
तब मैंने ध्यान से देखा कि मेरा दोस्त कामेश नखरे कर रहा था.
दूसरा लड़का नवीन उसे पटा रहा था.
फिर नवीन ने थोड़ी जबरदस्ती करके कामेश का अंडरवियर नीचे खिसका ही दिया.
अब तो आवाजें और तेज हो गईं- बस बस लग रई … आई फट गई … आह …. आह … साले ने पूरा पेल दिया आह … मत कर ना!
नवीन- अबे लेटा रह … टांगें चौड़ी कर और हरकत नहीं, मेरा भैया! बस बस राजा भैया! बस बस … हो गया, हो गया, थोड़ा रह गया.
फिर जोर जोर से सांसों के चलने की आवाजें आने लगीं.
शायद नवीन हांफ रहा था ‘हूं… हूं … बहुत अच्छे …’
फिर चटखारे की आवाजें आने लगीं ‘पुच … पुच …’
इसके कुछ देर बाद शांति हो गई.
अगली रात तो मैंने देखा कि नवीन चढ़ा था और कामेश की गांड में दे दना दे दना-दन लगा था.
पूरा लंड अन्दर बाहर … अन्दर बाहर कर रहा था.
कामेश टांगें चौड़ाए लेटा था और लंड के मजे ले रहा था, साथ ही वह अपनी गांड भी उचका रहा था.
मेरे से आंखें मिलते ही नवीन अचकचा गया … पर लगा ही रहा.
फिर उसने लंड निकाल कर दरी के चादर से ही पौंछ लिया.
उसका लटका लंड ही मुझे बड़ा लग रहा था.
मेरे मुँह से निकल ही गया- बहुत बड़ा है!!
तो नवीन मेरे गालों पर हाथ फेरते हुए मुस्करा कर बोला- ऐसे देखने से बड़ा लगता है, पर जब अन्दर जाता है तो बहुत मजा देता है, आजमा कर देखो.
यह उसने अपनी आंखें बन्द कर चेहरे पर खास भाव लाकर ऐसे कहा था मानो बड़ी स्वादिष्ट पकवान का स्वाद लेते हुए बता रहा हो.
मैं कामेश की ओर देख कर बोला- लगती नहीं है?
इस पर तो कामेश मुस्करा दिया- पहले थोड़ी लगती थी. अब कम बल्कि लगती ही नहीं … मजा आता है!
तब नवीन बोला- अब मजा आने लगा.
मैं- कब से करवा रहे हो?
कामेश- पहले कभी कभी, अब पांच-सात दिन से रोज रोज … जब से नवीन आने लगा!
फिर उन दोनों ने उठ कर अपने अपने कपड़े पहन लिए और फ्रेश हो गए.
मैं भी फ्रेश हुआ, मुँह धोया और अपने घर चला गया.
फिर दो तीन दिन मैं नहीं गया.
दोस्तो, मेरी गे सेक्स कहानी में सिर्फ सच के आधार पर प्राप्त अनुभव को ही लिखा हुआ होता है.
अगले भाग में मैं इसी गे सेक्स कहानी के आगे का अनुभव लिखूँगा.
इंडियन गे पोर्न कहानी पर आपके कमेंट्स के लिए इंतजार रहेगा.
आपका आजाद गांडू
इंडियन गे पोर्न कहानी का अगला भाग:
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