महाकुम्भ में महालंड-2

(Mahakumbh Mein Maha Lund- Part 2)

लव शर्मा 2016-10-17 Comments

This story is part of a series:

दोस्तो, इससे पहले वाले भाग में मैंने आपको बताया कि मुझे अपने काम के सिलसिले में उज्जैन महाकुम्भ में रुकने का मौका मिला।
यहाँ मिलने वाले मदमस्त लौंडों से मेरी कामुकता परवान चढ़ गई और मैं इन जवान मस्त मर्दों के लंड को पाने के लिए छटपटाने लगा क्योंकि सब कुछ मेरे इतने करीब हो रहा था।

मर्द बिना कपड़ों के, वो भी हज़ारों और एक से बढ़कर एक, वो भी चड्डी में नहाते हुए, हज़ारो लंड और मैं फिर भी प्यासा!
लंड को मैं अपने होंटों से भी छू चुका था लेकिन अभी तक मुझे लंड मिला नहीं था।

जब भी मैं घाट पर जाता, मुझे लंड ही लंड नज़र आते।
कुछ जवान 22-23 साल के लंड, कुछ 18 साल के नए नवेले लंड, कुछ एक्सपीरियेन्स वाले 27-28 साल के लंड तो कुछ 30-35 साल के चोदू लंड…

आश्चर्य की बात तो यह थी कि ज्यादातर मर्द अच्छे खासे सेक्सी थे। कुछ गांव के लड़कों को तैरने और पानी में कूदने का शौक होता है इसी वजह से कभी कभी चड्डी के नीचे वाली जगह से लंड दिख भी जाता था और मेरे मुख से आह निकल जाती।

अब मेरे सब्र का बंध टूटने लगा था और मैं लंड के लिए अब मैं पागल सा हो गया था, दिमाग में पूरे समय जवान मर्द और उनके लंड ही घूमते रहते थे और मैं अपने काम में भी ध्यान नहीं दे पा रहा था।

एक रात लगभग 10 या 10:30 बजे मेरा दिमाग खराब हुआ और मैंने मन में सोच लिया कि आज रात को तो मुझे लंड चाहिए ही, चाहे कुछ भी हो जाये।

बस यह सोच कर मैंने अपना मोबाइल कैम्प में ही एक साथी को दे दिया और बोला- आता हूँ कुछ देर में!
और बिना ज्यादा कुछ बताये कैम्प से निकल गया।

जेब में न तो पैसे, न पर्स और न ही मोबाइल।
शरीर पर बस एक टीशर्ट और लोअर में मैं लंड की तलाश में कैम्प से किन्नर अखाड़े की तरफ चल दिया।

सांसें फूल रही थी और दिल में बैचेनी और घबराहट सी हो रही थी।
किन्नर अखाड़े के आसपास वही पुराना माहौल था, खूबसूरत जिस्म और बड़े बड़े लंड के लड़के वहाँ घूम रहे थे।

पर मैंने आज तक ऐसी कोई हरकत किसी के साथ की नहीं थी इसलिए घबराया हुआ था क्योंकि आ तो गया था कैम्प से लंड लेने पर पता नहीं था कि आखिर करना क्या है?

बस इसी उधेड़बुन में वक्त निकला जा रहा था। रात के 11 बजने वाले थे लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था।
घबराहट इसलिए भी बढ़ रही थी कि 11 बजे किन्नर अखाड़ा बन्द हो जाता था और वहाँ की भीड़ खत्म हो जाती थी।
गयारह बजने ही वाले थे भीड़ कम हो रही थी लेकिन अभी किन्नर अखाड़े के गेट बन्द नहीं हुए थे इस लिए लोग आ जा रहे थे।

किन्नर अखाड़े के पास से रेलवे ट्रैक निकला था और उसके पास ही सभी लोगों की कार पार्क होती थी जो लोग भी यहाँ आते थे।
मैं उन कारों के पास गया और देखने लगा कि यदि कोई कार में अकेला बैठा होगा तो उसी का लंड लेने की कोशिश करूँगा।

जाकर देखा, कुछ कारों में एक से ज्यादा लोग थे, कुछ में अकेले थे भी तो मेरे पसंद के नहीं थे क्योंकि जो स्मार्ट मर्द होते थे वो तो दर्शन के लिए किन्नर अखाड़े में चले जाते थे, कार में तो बस ड्राइवर होते थे जो मुझे ठीक नहीं लगते।

एक दो अच्छे भी दिखे और उनसे बातचीत भी की लेकिन आगे कुछ बात बन नहीं पाई।

अब रात की 11 बज चुके थे और किन्नर अखाड़े का गेट बंद हो चुका था जिससे भीड़ कम होने लगी और देखते ही देखते माहौल सुनसान हो गया था।
सभी कारें जा चुकी थी, पैदल वाले भी जा रहे थे.. जिससे मेरी घबराहट और बढ़ रही थी क्योंकि लंड मिलने के चांस कम होते नज़र आ रहे थे और आज तो मैं ठान कर आया था कि लंड तो चाहिए ही।

जैसा कि मैंने बताया किन्नर अखाड़े के सामने एक ब्रिज था और साइड में रेलवे पटरी।
अब मैं ब्रिज पर जाकर कोई मर्द खोजने लगा जिसका लंड मैं ले सकूँ।
मगर ब्रिज पर भी कुछ ही मर्द झुण्ड में खड़े थे और झुण्ड में मुझसे कुछ करने की हिम्मत नहीं हुई।

मैंने एक दो लड़कों को ट्राई भी भी किया पर असफल रहा।

मैं ऐसे ही घूमता रहा और और ब्रिज पर भी अब मर्द नहीं बचे क्योंकि ब्रिज से किन्नर अखाड़ा दिखता था और लोग वही देखने के लिए ब्रिज पर खड़े होते थे और किन्नर अखाड़ा तो बन्द हो चुका था।

अब मैं निराश सा हो गया था और मैं अब रेलवे ट्रैक के किनारे बने कच्चे रास्ते पर गुमसुम सा चलने लगा पर दिल में तो लंड की आग धधक रही थी।

उस सुनसान रास्ते पर एक 24 25 साल का लड़का मुझे आता दिखा जो अकेला ही था, जिसे देखकर मेरी आँखों में चमक सी आ गई।
वह लड़का किन्नर अखाड़े की तरफ से ही उस सुनसान रास्ते पर आ रहा था।

मेरे कदम अचानक ही थम गए और जैसे ही वह मेरे साइड से गुजरने लगा, मेरे कदम उसकी तरफ बढ़े और मैं उसे रोकते हुए बोला- भैया…
मेरी आवाज़ सुनकर वो रुक गया और बोला- हाँ भैया बोलो?

अब मेरे पास तो कोई सवाल था ही नहीं वो तो लंड की भूख ही थी जिसने उसको रोकने पर मजबूर कर दिया था।
अब क्या बोलूं… मैं सोच में पड़ गया।

तभी एक ओर आवाज आई- बोलो भैया, क्या हुआ?
मुझे कुछ ध्यान नहीं था और अचानक ही मेरे मुख से निकल गया- लंड चाहिए मुझे.. आप दोगे?

यह बोलने के बाद तो मैं खुद ही घबरा गया कि यह मैंने क्या बोल दिया।
लेकिन वह शांत स्वर में ही बोला- यार, मेरा तो मन नहीं है अभी… आप मेरे गांव चलो, वहाँ काफी लौंडे है जो आपको लंड का मजा दे सकते हैं।

वह बहुत ही सामान्य था, उसे मेरी बात से कोई आश्चर्य नहीं हुआ था।
यह सुनकर मुझे थोड़ी हिम्मत आई।
उसने कहा- यही रेलवे पटरी के किनारे ही जाना है बस 3 किलोमीटर आगे मेरा गांव है।

मेरे मन में तो मर्द के लंड की आग सी लगी हुई थी और गांव में तो काफी मर्द मिलने वाले थे लेकिन फिर मैंने अपने दिमाग को सेक्स से बाहर निकला और सोचा कि इसके साथ इतनी दूर अकेले जाना सेफ नहीं है, रात के 11:30 बज चुके है और मैं मोबाइल और पैसे भी नहीं लया हूँ और कैम्प में सब लोग मेरे लेट होने पर फिक्र करेंगे।

वह आदमी देखने में मजदूर जैसा लग रहा था, कोई खास नहीं था, फिर भी मैं उससे बोला- भैया आप ही दे दो लंड.. गांव तो दूर पड़ जायेगा।
उसने जवाब दिया- नहीं, मैं तो नहीं करूँगा लेकिन मेरा दोस्त है जो मेरे साथ किन्नर अखाड़ा देखने आया हुआ था।

मैंने रोमांचित होकर कहा- कहाँ है वो?
उसने जवाब दिया- वो अभी किन्नर अखाड़े से दारू पीने गया है, और मुझे नहीं पीनी थी तो मैं घर जाने लगा था। मैं फोन लगा कर बुलाता हूँ उसे… उसका लंड भी अच्छा है तुमको मस्त कर देगा।

उसकी यह बात सुनते ही मैं खुशी से पागल सा हो गया और अब मुझे भरोसा हो गया था कि आज मुझे एक मस्त बड़ा खीरे जैसे लंड का आनन्द मिलने वाला है।

उस आदमी ने 2-3 बार अपने दोस्त को फोन लगाया और उसके बाद के उसके जवाब को सुनकर मेरे तो चेहरे का रंग ही उड़ गया.. वो बोला- फोन नहीं उठा रहा है मादरचोद अब… काम के समय पर फोन नी उठाता, बाद में फिर माँ चुदवाता है… भाई वो फोन नी उठा रहा.. नहीं आएगा यार वो अब.. दारु पी रहा होगा।

मैंने कहा- भाई एक बार और कोशिश करो, शायद उठा ले फोन..
लेकिन फोन नहीं उठाया उसने और वो आदमी बोला- तुमको गाँव चलना है तो चलो, वरना मैं जा रहा हूँ।
बोलता हुआ वो जाने लगा और धीरे धीरे मेरी आँखों से ओझल हो गया।

अब तो रात के लगभग 12 बजने वाले थे और मैं समझ चुका था कि आज मेरी किस्मत में लंड नहीं है, मेरी हर कोशिश नाकाम हो चुकी थी और मैं हताश हो चुका था।

रेलवे पटरी के किनारे किनारे वापस मैं किन्नर अखाड़े की ओर लौट रहा था और सोच रहा था कि किन्नर अखाड़े होते हुए कैम्प में लौट जाना ही ठीक रहेगा क्योंकि अब मैं थक भी चुका था यहाँ वहाँ घूमते हुए।

देखते ही देखते मैं ब्रिज के पास पहुँच गया और ब्रिज के उस पार किन्नर अखाड़ा था।
ब्रिज तक पहुँच कर मैं थोड़ा थक चुका था इसलिए आराम की सोच कर थोड़ा रुक गया।

यह वही जगह थी जहाँ आसपास कुछ समय पहले सैंकड़ों कारें और गाड़ियां खड़ी थी लेकिन अब यहाँ बस 2 कारें और एक लोडिंग बड़ा टैम्पो जैसा कुछ खड़ा हुआ था।

अब मुझे कोई उम्मीद ही नहीं थी कि किसी मर्द का फड़फड़ाता लंड अब मुझे नसीब हो पायेगा।

मैं बस खड़ा हुआ उन कारों को देख रहा था जहाँ पर थोड़ा थोड़ा उजाला था।

वहाँ के शांत माहौल में मुझे उस लोडिंग टैम्पो के पास से कुछ ठोकने और गिरने की आवाज आई और मेरा ध्यान उसकी ओर गया।
मैंने देखा कि वहाँ कोई था जो गाड़ी के आगे वाले टायर के पास बैठा है।
लेकिन वहाँ पर अंधेरा होने की वजह से कुछ साफ नहीं हो पा रहा था।

मैं उसके पास नहीं गया बल्कि दूर से ही अपनी जगह से थोड़ा अलग गया जहाँ से मैं उसे देख सकूँ।

मैं उसे देखने की कोशिश कर रहा था लेकिन सही तरीके से देख नहीं पा रहा था क्योंकि प्रकाश जहाँ से आ रहा था उसके बीच में बार बार पेड़ के पत्ते आ रहे थे जिससे कभी अंधेरा तो कभी उजाला हो रहा था।

काफी समय ऐसे ही हो गया, गर्मी की रात थी और हवा भी नहीं चल रही थी, मन में यही जिज्ञासा थी कि कौन होगा यह मर्द, कैसा होगा, यहाँ पर इतनी रात में क्या कर रहा होगा और क्या मेरे काम आएगा?

मैं इसी उधेड़बुन में था कि अचानक एक जोर का हवा का झोंका आया और पेड़ के वो पत्ते हट गए और प्रकाश की रोशनी सीधे उस जवान मर्द पर गिरी और जो नज़ारा दिखा, उसे देखकर मेरी सांसें अटकी रह गई।

यार क्या मर्द था वो जवान लौंडा, उसकी जवानी मानो फूट फूट कर बाहर निकल रही थी।
उम्र होगी लगभग 23-24 साल।

मैं उसके मदहोश जिस्म को देखकर मानो कहीं खो सा गया था, तभी मेरा ध्यान उसके काम पर गया।
वह लौंडा अपनी लोडिंग गाड़ी के अगले टायर के पास बैठा हुआ कभी कुछ हथौड़ी से ठोकता तो कभी पाने से कुछ खोलता और फिर ठोकने लगता।

लेकिन मैं समझ नहीं पा रहा था कि वो कर क्या रहा था।

मैं उसके काम पर ज्यादा ध्यान दे भी नहीं रहा था। मैं तो बस उसके जवान कसरती बदन को देखे जा रहा था।
हाईट होगी कुछ 5’7″ करीब, अंडाकार चेहरा, भूरी आँखें, छोटे बाल वो भी घुंघराले और गेहुँआ रंग।
वाह क्या नजारा था वो…
सुनसान रात में एक जवान हसीन मर्द और सिर्फ मैं।

मैं दूर से ही देख रहा था… चेहरे पर गर्मी की वजह से पसीना टपक रहा था और वो काम करते हुए बार बार पसीना पौंछ रहा था।

शर्ट के खुले हुए 3 बटनों में से उसकी सफेद बनियान की पट्टी में उसकी गोरी छाती जिसमें हल्के बाल थे, मुझे मदहोश कर रही रही थी..
छाती पर अच्छा खास उभार था जो बनियान को ऊपर की ओर धकेल रही थी…
सफेद रंग का पतले कपड़े वाला शर्ट जो पूरी तरह गीला हो चुका था और उसके मजबूत बदन पर रबर की तरह चिपक चुका था जिससे उसकी मजबूत भुजाओं की कसावट साफ नज़र आ रही थी।
उसके डोले शर्ट में ऊपर नीचे होते नज़र आ रहे थे।

हाय क्या सीन था वो.. मन कर रहा था कि अभी जाकर इसके डोलों को जुबान से चाट लूँ और शर्ट फाड़कर इसकी मजबूत भुजाओ में जकड़ जाऊँ।

वह कुछ काम कर रहा था और गर्मी बहुत थी जिससे पसीना रुक ही नहीं रहा था और ऊपर से वो कॉटन का शर्ट बार बार शरीर से चिपक रहा था जिससे वो ढंग से काम नहीं कर पा रहा था।

वह खड़ा हुआ और उसने अपने शर्ट के बटन खोलना शुरू कर दिये और अपने शर्ट को उतारने लगा।
उसकी मोटी भुजाओं में शर्ट की आस्तीन फंस रही थी.. एक तेज झटका देते हुए उसने शर्ट को अपने बदन से अलग कर दिया।

और उसके बदन को देखकर मेरे मुख से आह निकल गई.. उसने इधर उधर देखा और पानी की बोतल निकाल कर ऊपर से पानी पीने लगा।

उसके होंटों से होती हुई पानी की एक धार उसकी दाढ़ी को गीला करती हुई बनियान के अंदर जा रही थी जो छाती के दोनों उभारों के बीच होती हुई बालों को गील कर रही थी और बनियान भी तरबतर हो रही थी।

इस सीन को देखकर मेरा दिल कर रहा था कि इस पानी की धार को मैं पी जाऊँ और इसके लंड को खोल कर यहीं पर इसका माल अपने मुख में ही निकाल लूं और पी जाऊँ।

अब मुझसे रहा नहीं जा रहा था, मैं उसके पास जाना चाह रहा था..
मैं धीरे धीरे उसके पास गया, उसने मुझे देखा और फिर अपने काम में लग गया।

अब मुझे समझ आया था कि वो कौन था और क्या काम कर रहा था।
वो उस लोडिंग गाड़ी का ड्राइवर था और अपनी गाड़ी की हेड लाईट ठीक कर रहा था।

पास आने पर मुझे वह और भी मदहोश कर रहा था।
मैं वहीं पास में खड़ा रहा और वो अपना काम करता रहा..

देखते ही देखते उसका काम पूरा हो गया और वो हेड लाइट को टेस्ट करने के लिए ड्राइवर की सीट पर आ कर बैठ गया और गाड़ी स्टार्ट कर दी।

वह थोड़ा खुश हुआ क्योंकि अब गाड़ी की दोनों लाइट चालू हो चुकी थी।

तभी मेरी मदहोशी टूटी और मुझे ध्यान आया कि इसका तो काम पूरा हो गया है, लाइट चालू हो गई है और गाड़ी भी स्टार्ट कर ली…
मुझे तो इसका लंड चाहिए और ये तो जाने वाला है, अब क्या करूँ… कैसे इस जवान मर्द को फंसाऊँ।

वो जाये, उससे पहले मुझे उसे रोकना है, यही सोच कर मैं उसकी तरफ बढ़ा और उसके पास जाकर बोला- भैया यह रेलवे स्टेशन किधर पड़ेगा?

उसने कहा- वैसे रेलवे स्टेशन तो काफी दूर है और अभी कोई भी साधन नहीं मिलेगा इतनी रात को वहाँ तक जाने के लिए.. वैसे टेम्परेरी स्टेशन यह इसी रेलवे ट्रैक पर 2 किलो मीटर आगे है पर अब वहाँ भी ट्रेन नहीं मिलेगी.. कहाँ जाना है आपको?

मैंने कहा- भोपाल!
वो बोला- अच्छा… तो फिर आप ब्रिज पर चढ़ जाओ वहाँ से किसी से लिफ्ट ले लेना तो मेन स्टेशन पहुँच जाओगे.. अब तो ट्रेन वहीं से मिलेगी, रात काफी हो चुकी है ना..

मैं तो यही सोच रहा था कि इसका लंड कैसे मिलेगा.. मुझे कौन सा भोपाल जाना था।

इसके बाद वो अपनी गाड़ी के कांच साफ करने लगा और म्यूज़िक चालू करके गाड़ी में बैठ गया…
अब वो जाने को तैयार था।

उसने जैसे ही जाने के लिए गाड़ी में पहला गियर लगाया, मेरे अरमानों पर पानी फिर गया क्योंकि अब तो मेरे पास उसको रोकने का कोई बहाना भी नहीं था और वो ही एकमात्र मर्द था जो उस समय मुझे लंड दे सकता था।

मैं बहुत ज्यादा घबरा गया और मुंह से निकल गया- भैया!
उसने ब्रेक लगाया और मैंने झट से उसके पास जाकर बोल ही दिया- मुझे आपका लंड चूसना है..!!
वो बोला- क्या?
मैंने कहा- भैया, आपका लंड चूसना है मुझे.. चुसवाओगे?

वो थोड़ा सा हंसा और मेरी तो सिट्टी पिट्टी गुम हो गई कि यह मैंने क्या बोल दिया।

उसने गाड़ी बन्द कर दी और बोला- क्या होगा उससे?
मैंने कोई जवाब नहीं दिया।

वो थोड़ा मुस्कुराया और बोला- उधर से आकर बैठ जा भाई गाड़ी में, तेरी इच्छा है तो…
बस मैंने तो इतना सुना ही था कि मेरा तो दिल बाग बाग हो गया।

मैं उस जवान लौंडे के पास वाली सीट पर बैठ गया और अब मैंने उसके मर्दाना मस्त शरीर को और नज़दीक से देखा।

वह गियर बदलकर गाड़ी मोड़ रहा था जिससे उसके उभरे हुए कसरती डोलों की कसावट ऊपर नीचे हो रही थी जिन्हें छूने का मन कर रहा था।

उसकी शर्ट मेरी पीठ के पीछे रखी हुई थी जिसकी खुशबू मुझे और भी कामुक कर रही थी।

उसने गाड़ी को मोड़कर उसका मुँह रेलवे पटरी की ओर कर दिया और गाड़ी बन्द करते हुए बोला- ले भाई कर ले जो करना है।
ऐसा कह कर वह अपनी सीट थोड़ी पीछे करते हुए और पैर लंबे करते हुए आराम की मुद्रा में बैठ गया और अपने हाथों को अपने सिर के नीचे रख लिया।

अब उसकी बगल के बाल भी दिखने लगे थे और भुजायें बिल्कुल फूल कर कड़क हो चुकी थी।

अब मेरी बारी थी कुछ करने की.. वह थक चुका था इसलिए उसने अपनी आँखे भीं बन्द कर ली थी।

मैंने धीरे से उसके डोलों को हाथ लगाया, काफी सख्त थे वो!
फिर उसकी छाती पर हाथ रखा, काफी सख्त थी, छाती और उभार अलग ही नज़र आ रहा था।
आखिर मैंने पूछ ही लिया- आपका शरीर काफी कसा हुआ है… जिम जाते है आप?

उसने बन्द आँखों से ही जवाब दिया- नहीं जिम नहीं जाता, पहले अखाड़े जाता था… तब मुझे कसरत करने का शौक था और मैं बचपन से ही कसरत करता था.. इसीलिए आज कसरत ना करने पर भी बॉडी बची हुई है… अब तो कामकाज में टाइम नहीं मिल पाता… ऐसी ही 4 गाड़ियाँ और है अपने पास…

अब जाकर मुझे पता चला कि वो ड्राइवर नहीं था मालिक ही था।

अब मैं गोद में अपना मुँह नीचे करके लेट गया, उसकी जीन्स में से ढीले पड़े लंड का अनुभव हो रहा था और वहाँ से मस्त खुशबू भी आ रही थी जिसे मैं लंबी सांसों से खींचकर अपने अंदर समेट लेना चाहता था।

अब उसके लंड का उभार बढ़ रहा था, शायद उसका लंड अब खड़ा हो रहा था।

अब मुझे लगभग 5 इंच लंड महसूस हो रहा था जो अभी पूरी तरह से सख्त नहीं हुआ था।
मैंने जीन्स के ऊपर से ही लंड को अपने मुँह में ले लिया और लंड 10 सेकेंड में तनकर झटके मारने लगा, अब लगभग 7.5 इंच का हो चुका था।

अब उससे भी रहा नहीं जा रहा था.. उसने अपने लंड को थोड़ा एडजेस्ट किया और बोला- भाई कुछ करो यार अब..
और अपना भारी भरकम हाथ मेरे मुँह के पास रख दिया क्योंकि मैं लेटा हुआ था उसकी गोद में।

मस्त हाथ था यार, वो काफी सख्त था गाड़ी चलते हुए कड़क हो चुका था… गाड़ी की हेडलाइट सही करने में थोड़ा गन्दा भी हो गया था।

अब मैं उठकर बैठ गया और उसकी बनियान को ऊपर करते हुए उसकी चड्डी में अपना हाथ डाल दिया और उसका 7.5 इंच का खीरे जैसा लंड मेरी मुट्ठी में आ गया।

मेरा हाथ लगते ही लंड झटके मारने लगा और उसके मुह से निकला- आह!
लंड को हाथ में लेकर मुझे काफी खुशी हो रही थी और अब लंड मेरी मुट्ठी में था जिसे खोजने मैं कैम्प से निकला था।

मैं उसके लंड को सहलाने लगा और जब मेरी उंगलियाँ उसके मोटे सुपाड़े पर गई तो मुझे लगा कि उसके सुपाड़े के ऊपर की चमड़ी नहीं है।
मैंने पूछा- आप मुस्लिम हो क्या?
उसमे जवाब दिया- हाँ.. क्यों कोई दिक्कत है क्या?
मैंने कहा- नहीं, बस पूछ रहा था, आपके लंड के सुपाड़े पर चमड़ी नहीं है न! इसलिए..

मैं उसके आण्ड भी सहलाने लगा.. उसे काफी आराम मिल रहा था इससे..
वो बोला- वाह मजा आ गया!

मैंने अपना हाथ निकाला जिसमें से लंड की मदमस्त करने देने वाली महक आ रही थी।

अब मुझसे भी रहा नहीं जा रहा था.. मैं जीन्स खोलने की कोशिश करने लगा।
उसने मेरी मदद करते हुए अपनी पैंट खोल दी, अब उसका मस्त खीरे जैसा लंड चड्डी में था और साफ दिखाई दे रहा था।

मैंने भी बिना देर किये उसका लंड चड्डी के ऊपर से ही मुँह में भर लिया और अपने हाथ से उसकी कठोर भुजाओं को सहलाने लगा।
वह भी अपने होश खोने लगा था, उसने मेरे बाल पकड़ कर मेरा मुँह उठाया और अपनी चड्डी नीचे कर दी।

चड्डी के नीचे होते ही उसका फनफनाता हुआ लंड बाहर आया जो झटके मार रहा था और एक छोटी सी प्रिकम की बूंद मस्त मोटे ताजे खीरे जैसे लंड के मोटे सुपाड़े पर आ गई जो किसी ओस की बूंद जैसी लग रही थी।

वो नज़र देखकर मैं पागल सा हो गया था.. जो सोचा था, उससे भी मस्त लौंडा और लंड मुझे मिल चुका था।
मैंने झट से लंड के सुपारे पर जीभ से चाटते हुए उस बूंद को पी लिया।

तभी अचानक एक तेज लाइट की रोशनी हमारे ऊपर पड़ी जो किसी कार की थी।

हम तुरंत ही हरकत में आये और सामान्य हो गए।देखा तो कुछ ही दूरी पर जो 2 कारें काफी समय से पड़ी हुई थी, उनमें कोई आ गया था जिसने कार को स्टार्ट किया था और वह कार को आगे पीछे कर रहा था।

हम लोग सामान्य ही बैठे रहे और उनके जाने का इंतज़ार करने लगे।

तभी दूसरी कार भी स्टार्ट हो गई और जब हमने बाहर की ओर देखा तो कुछ महिलायें, पुरुष और बच्चे आते दिखाई दिए… हम समझ गए थे कि ये लोग कुम्भ घूमने वाले लोग हैं और अब ये कार में बैठेंगे और शायद घर जायेंगे।

अब गाड़ी में हम लोगों का आगे कुछ हो पाना तो असंभव ही लग रहा था लेकिन हमारे अंदर कामुकता की अग्नि धधक रही थी।
दोनों सोच रहे थे कि अब क्या किया जाये।

इसके बाद क्या हुआ और कैसे मैंने उस जवान मर्द के फड़कते लंड का आनन्द लिया और किस तरह से हमने जगह का जुगाड़ किया.. आप जानेगे कहानी के अगले भाग में..

तब तक के लिए लव शर्मा का धन्यवाद।
अपनी प्रतिक्रियाएँ मुझे मेल करें।
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