गांड मारने का शौकीन कर्मचारी- 1

(Gharelu Naukar Ki Gand Mari)

मेरे अंडर नए आये कर्मचारी को, जब तक कोई इंतजाम ना हो, मैंने अपने घर में ठहरा लिया. एक दिन मैं घर आया तो वो घेलू नौकर को नंगा करके उसके ऊपर चढ़ा हुआ था.

दोस्तो, मैं आपका साथी आजाद गांडू अपने जीवन की गे सेक्स कहानी का एक और मनोरंजक वाकिया सुनाने के लिए हाजिर हूँ.

उस दिन मैं अपने स्टेशन के दफ्तर में बैठा था कि एक जवान लड़का आया.
उसने अपना पोस्टिंग ऑर्डर दिखाया.

वह अपना ज्वाइनिगं एप्लीकेशन लैटर भी साथ में लाया था, वो उसने मुझे दिया.
उसका नाम जावेद था.

मैंने उसे बिठाया.
उसकी नई पोस्टिंग थी तो मैंने उसे बधाई दी.

ये हमारी छोटी सी बस्ती थी. मैं स्टेशन के पास ही एक छोटे से सरकारी क्वार्टर में रहता था.
एक ही रूम था. ड्यूटी ऑवर्स के बाद मैं उसे अपने साथ ले गया.

वह एक छोटा सा बैग लिए था बस. वह मेरे ही साथ रुक गया.
उसने अपने तौर पर कमरा तलाशा तो कोई ढंग का रूम नहीं मिला इसलिए वो परेशान था.

मैंने कहा- चिंतित न हो, मैं अकेला रहता हूं. मेरे साथ बिना संकोच के रहो.

मेरे निवास पर एक गांव का लड़का झाड़ू पौंछा, बर्तन कपड़े धोने व साफ सफाई के लिए आता था.
एक महिला खाना बना जाती थी.
दोनों पार्ट टाईम काम करते थे.

उसने कहा- सर मैं शेयर कर लूंगा.

पर उसकी नई जॉब थी, अभी वेतन नहीं मिल रहा था, पैसे मिलने में देर लगेगी और जाने कब तक मिलते.

मैंने कहा- अभी रहने दे, जब तेरे को सैलरी मिलने लगे, तब शेयर करने लगना.
वह- जी सर.

अब वो मेरे साथ ही रहने लगा.

बाकी लोग पास के कस्बे में ट्रेन से चले जाते थे, वे सब रोज अप-डाऊन करते थे.
वहां उनकी फैमिली रहती थी, बच्चे पढ़ते थे … इसके अलावा कुछ लोग कस्बे के ही रहने वाले थे.

ये लड़का जावेद दूर से आया था, उसे फिलहाल वेतन मिल नहीं रहा था इसलिए कड़का था.
इस सभी वजह से वो मेरे साथ रुका रहा.

मैं भी अनमैरिड था, सिगंल था. मेरा होम टाऊन दूर था, अतः मैं यहीं रहता था.

जावेद लगभग चौबीस-पच्चीस साल का रहा होगा. मजबूत शरीर, मस्त भारी कूल्हे, चौड़े कंधे, चौड़ी छाती. कसरती बांहों और जांघों वाला थे.
मेरे बराबर की लम्बाई यही कोई पांच फीट सात-आठ इंच की थी.
गेंहुए रंग का बहुत सुदंर तीखे नैन नक्श वाला लौंडा था.

आप उसे चिकना माशूक माल भी कह सकते हैं.
मैं उम्र में उससे दो तीन साल बड़ा होऊंगा.
मेरी दो साल की जॉब भी हो चुकी थी.

मैं अपने बारे में आपको अपनी पिछली कहानियों में आपको बता ही चुका हूं कि मैं कसरती बदन का हूँ. रोज योग आसन आदि करता था, दौड़ता था, हल्की कसरत करता था और बचे समय में घूमता रहता था. मेरा रंग भी एकदम फेयर है.

यहां नौकरी के बाद टाईम भी खूब रहता था. चूंकि यह एक छोटा सा स्टेशन था और हम सभी के ड्यूटी आवर्स अलग अलग रहते थे … कभी कभी ही साथ साथ रहते थे.

एक दिन मैं रात को ड्यूटी करके सुबह लौटा तो मैंने देखा कि जावेद काम करने वाले लड़के को फर्श पर औंधा लिटाए, उस पर चढ़ा हुआ था.
लड़के की गांड में अपना मस्त लम्बा मोटा सख्त लंड बेरहमी से पेले हुए था और गांड फाड़ू झटके दे रहा था.
उसके नंगे चूतड़ बार बार ऊपर नीचे हो रहे थे और दे दनादन दे दनादन गांड मारने में लगा था.

जावेद की टांगों के नीचे लेटा लड़का चीख रहा था- उई मम्मी रे … अरे साब धीरे … धीरे … कर अंह फट … गई … बस बहुत देर हो गई साब अब रहन दो, कल कर लियो कल्लान लगी भैया.

मगर वह लड़के को अपनी बांहों में बुरी तरह जकड़े हुए था और उसकी कमर लगातार ऊपर नीचे हो रही थी.

गांड मारते हुए वो गुर्राया- अबे साले टांगें चौड़ी कर … थोड़ी फैला ले भोसड़ी के ढीली करे रह.
लड़का शांत होने लगा था.

जावेद भी लड़के के बदन पर चुम्बन लेने लगा, उसके सर पर हाथ फेरने लगा था.

थोड़ी देर को जावेद ने झटके बंद कर दिए थे मगर अब उसने रुक कर फिर से गांड मारना चालू कर दिया था.

वो लड़का फिर से छटपटाने लगा- आह … आह … लग रई भैया … आपका बहुत मोटा है … आई मेरी परपरा रही है भैया … उई … बस बस … ओह.

उस लड़के ने अपनी गांड सिकोड़ ली और जावेद की पकड़ से छूट गया.
वो दोनों खड़े हो गए.

जावेद उस लड़के के चूतड़ों की मालिश करने लगा, उसका चूमा ले लिया.

जावेद- ज्यादा लग रही थी? अब धीरे धीरे करूंगा, जोश में झटके जरा जोरदार हो गए थे … अब ध्यान रखूंगा यार माफ करो … गलती हो गई.

जावेद ने गांड मारने से पहले लड़के की टांगों में फंसा पट्टेदार नाड़े वाला अंडरवियर उतार कर एक कोने में फेंक दिया था.
उसे वह उठा कर लाया और उसे बच्चों की तरह पहना दिया, नाड़ा बांधा, पजामा पहनाया.

वो लौंडा भी बहुत मक्खन लगा रहा था.

जावेद ने फिर से लड़के का एक बार चुम्बन लिया.

लड़का बाहर निकलने लगा तो मैं दरवाजे से अन्दर आ गया.

वे दोनों मुझे देख कर चौंके.

मैंने ऑफिस का सामान रखा और लड़के से कहा- मैं जरा घूमने जा रहा हूं … आज सब्जी रखी है न! वरना ले आना.
उसे मैंने रुपए दिए और कहा- मैं फ्रेश वहीं स्टेशन पर हो लिया था, अब मैं निकलता हूँ.

ये कह कर मैं निकल लिया.
वे दोनों भी समझ गए कि मैंने देख लिया.

काम वाला लड़का यही कोई बाईस-चौबीस का रहा होगा, छरहरा गोरा था. उसके मस्त गोल चूतड़ पायजामे से झांक रहे थे.

मैंने पहली बार उस पर ध्यान दिया था.
उसके चेहरे पर मेरे साथी का थूक लगा था.

उस घटना के लगभग 15 दिन बाद की बात है.
हमारे स्टेशन इन्चार्ज वीरेन्द्र सर जी एक दिन बहक रहे थे- मिस्टर जावेद ये क्या कर दिया? नौकरी तो जाएगी ही, सारा कैरियर बिगड़ जाएगा. यह गांव है, तुम यहां नए हो … तुम्हारा कोई सपोर्टर भी नहीं है.
जावेद- आप हैं न सर.

वीरेन्द्र सर- मजाक नहीं, इस बार मैंने देखा, कोई और होता तो न जाने क्या हो जाता.

मैंने जब देखा कि वीरेन्द्र जी ऑफिस के चेम्बर में जावेद को डांट रहे थे.
उसके साथ ही एक बहुत माशूक चिकना लड़का गोरा चिट्टा था, वहीं खड़ा था.

सर ने उस लड़के से कहा- तुम जाओ.
वह चला गया.

वीरेन्द्र सर ने जावेद से पूछा- इसकी कब से मार रहे हो?
जावेद- बस यही दो दिन से … आज तीसरी बार मारी.

वीरेन्द्र- तुमने अपना मूसल सा हथियार उसके छोटे से चिकने छेद में पेल दिया, अभी फट जाती तो लेने के देने पड़ जाते, लौंडा छोटा है, तुम तगड़े जवान. जरा ख्याल रखा करो.
जावेद- कुछ नहीं हुआ सर, वह मस्ती से राजी राजी करा रहा था. कोई परेशानी जाहिर नहीं की, लौंडा रियाजी है.

वीरेन्द्र सर- वह तो अच्छा रहा मैंने देखा, कोई और देख लेता तो बवाल हो जाता.

अभी उनके बीच यह बातें चल ही रही थीं कि मैं दरवाजे पर खड़ा सुन रहा था.

अचानक वीरेन्द्र जी की मुझ पर निगाह पड़ी.

उन्होंने मेरा नाम लेकर पुकारा- देखिए आपके साथी ने क्या कर डाला, अभी आए एक महीना नहीं हुआ, लौंडा पटा लिया और उसकी मार भी दी. कमाल है और मान भी नहीं रहा.

वे व्यंग्य में या पता नहीं प्रशंसा में बोल रहे थे- हम इनके साहस और काबिलियत को सलाम करते हैं. अभी जाइये, पर आगे से ध्यान रखिएगा, अपना भी और हमारा भी, वरना सब नपेंगे.

वीरेन्द्र सर भी कुछ ज्यादा सीनियर नहीं थे, महज तीस बत्तीस के होंगे.

जावेद ने लपक कर उनके पैर छू लिए और कहा- सर कृपा बनाए रखिए, आपका छोटा भाई हूं.

मैं- सर, जावेद भाई से गलती हो गई … आदत से मजबूर है, फिर उम्र भी है. आप तो घर जाकर निपट लेते हैं, यह क्या करे … कहीं न कहीं गर्मी निकालनी ही होती है.
वीरेन्द्र- तो भैया मैं कहां रोकता हूं, थोड़ी सावधानी रख कर करे. अब मेरे चेम्बर में ही गांड मार रहा था, कोई भी आ सकता था.

मैं- सुबह का समय था .. इसने सोचा होगा कि इतनी सुबह कौन आएगा. ट्रेन पास कर दी थी, स्टेशन सूना हो जाता है, बारह बजे तक कोई गाड़ी नहीं है … ये भी संयोग था कि आप आ गए.

वीरेन्द्र- हां देखो न, वो लौंडा भी कैसे आ गया. न मोबाईल, न टेलीफोन!
मैं- अरे सर, इसमें क्या है … कल बोल दिया होगा.

वीरेन्द्र- उसकी साले की खुद ही लुकलुका रही होगी … क्या जबरदस्त सैटिंग है.
फिर वो जावेद की तरफ देख कर हंस पड़े.

वीरेन्द्र मुझसे सम्बोधित हुए और बोले- आपने खूब डी-कोड किया, जीनियस लगते हो. आपसे कुछ बातें समझना पड़ेंगी, वैसे भी आप बहुत सारे लोगों की समस्या हल करते रहते हो, इस बार जावेद के संकट मोचक बन गए.
जावेद- सर ये तो इस उम्र में भी हम सबसे अच्छे माशूक हैं.

वीरेन्द्र जी ने जावेद की ओर उंगली से इशारा करते हुए मुझसे कहा- अब इसने तुम्हें पकड़ा, दोस्त संभल कर रहना. अब इसकी तुम पर निगाह है, तुम्हारी बारी है. अगर तुमसे यह कुछ कर बैठे, तो मैं बीच में नहीं आऊंगा … बच कर रहना.

हम सब हंस पड़े.

सर को प्रणाम करके अपने रूम की ओर चल दिए.

अब साहब थोड़े रिलैक्स थे. हमारा भी डर कुछ कम हो गया था.

पर वीरेन्द्र सर कुछ गलत नहीं कह रहे थे.

एक दिन रात की ड्यूटी करके मैं सुबह आया और कसरत आदि करने के बाद नहाने जा रहा था. मैंने अपने कपड़े उतार दिए. मैं एक अंडरवियर में था कि उसने मेरे चूतड़ मसक दिए.

मैंने गर्दन मोड़ कर देखा तो मुस्कराने लगा.

जावेद- बहुत मस्त हैं, हाथ मचल गए.

ये कह कर जावेद मेरे चूतड़ सहला रहा था.

मैं- अब मैं कुछ करूंगा.
जावेद- कर लो.

मैंने उसके गले में हाथ डाल कर उसके दो-तीन जोरदार चुम्बन ले लिए.
वह मुस्कुराकर बोला- बस अब मेरा काम देखो.

उसने मुझको चिपका कर अपना एक हाथ आगे से मेरे अंडरवियर में डाल दिया और मेरा लंड पकड़ कर दबाने लगा.

मैं- देख यार ज्यादा बदमाशी नहीं.
जावेद लंड सहलाते हुए बोला- क्या करोगे?

ये कह कर उसने मेरा लंड अंडरवियर से निकाल कर हाथ में लिया और आगे-पीछे करने लगा.

मैंने उसे घुमाया तो झट से घूम गया.

मैंने उसकी पैंट पर हाथ लगाया तो बोला- एक मिनट ठहरो.

उसने खुद ही अपना पैंट उतार कर नीचे कर दिया.

मैंने उसके अंडरवियर को हाथ लगाया तो उसने उसे भी उतार कर दूर फेंक दिया और मेरी तरफ पीठ कर खड़ा हो गया, अपनी गर्दन मोड़ कर दांत निकाल कर चुनौती भरे अंदाज में मुझे देखने लगा.

मैं- फिर मत कहना.
जावेद- बना नहीं, तो ही कहूंगा.

मैंने उसे दीवार की ओर धकेला, वह खड़ा हो गया. मैंने उसकी जांघों को छुआ, तो उसने खुद चौड़ी कर लीं.

अब मैंने अपने खड़े सनसना रहे लंड पर थूक लगा कर उसके छेद पर रखा और कहा- डाल रहा हूं.

वह थोड़ा आगे की ओर झुक गया. उसने मेरी ओर चूतड़ ज्यादा आगे कर लिए.

मैंने धक्का दिया तो वह ‘आह … आह …’ करने लगा. एक और धक्के में लंड अन्दर था.

अब मैं उससे चिपक गया. जावेद की गांड में लंड पेल कर मैं यूं ही रुका रहा.

फिर मैंने उसे सहलाया तो वो मेरी तरफ देखने लगा.

दोस्तो, इस गे सेक्स कहानी के अगले भाग में मैं आपको आगे लिखूँगा. आप मुझे मेल करना न भूलें.

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कहानी का अगला भाग: गांड मारने का शौकीन कर्मचारी- 2

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