मेरे गांडू जीवन की कहानी-20
(Mere Gandu Jiwan Ki Kahani- Part 20)
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अभी तक आपने पढ़ा कि रवि के साथ उसी के घर पर मेरी दूसरी सुहागरात… यार के साथ हुई जिसमें उसने मेरी गांडफाड़ चुदाई की. हम दोनों के बीच में हमारे रिश्ते को लेकर काफी बातें भी हुईं जिसमें नतीजा यह निकल कर आया कि वो अपनी सेक्स की प्यास बुझाने के लिए मेरे साथ भले ही दोस्ती जैसा रिश्ता निभा रहा था लेकिन उसके दिल में मेरे लिए एक सॉफ्ट कॉर्नर भी था जिसको वो अपने मुंह से स्वीकार नहीं करना चाहता था.
लेकिन उसकी बातों से मुझे यह पता लग गया कि वो भी मुझे चाहता है.
उस रात की सुबह बहुत ही चौंकाने वाली थी जब मैं और रवि अखाड़े में पहुंचे तो हल्की सर्द सुबह ने अंगड़ाई लेते हुए चंदा की चांदनी की चमकीली चादर को हटाकर सूरज की किरणों से सजी लाल ओढ़नी अपने सिर पर डालने की तैयारी कर ली थी. अखाड़े में पहुंचकर रवि ने अपना लंगोट बांधा और उस सेक्सी पहलवान मर्द को देखकर मेरी आह निकल गई. मुझे नहीं पता था कि मैं इतना किस्मत वाला हूं कि ऐसे मर्द के दिल में जगह बनाने में कामयाब हो पाया हूं.
लेकिन जैसे ही रवि ने अखाड़े में मौजूद पहलवानों को आवाज़ लगाई तो कामयाबी और खुशी के सूरज को अतीत का ग्रहण लग गया. रवि की आवाज़ सुनकर उन पहलवानों ने नज़र हमारी तरफ घुमाई… रेत में लथपथ उन पहलवानों में एक संदीप था, जिसे देख कर मेरे चेहरे पर हैरानी और डर का नंगा मुखौटा लग गया जिसके नीचे मेरे ज़हन में उथल पुथल मच गई कि अब मैं क्या करूं. मुझे उस रात का एक एक पल याद आ रहा था जब संदीप ने अपने दोस्तों के साथ मेरी गांड मारी थी। लेकिन उससे भी ज्यादा चिंता इस बात की थी कि अब क्या होगा? संदीप रवि के गांव में क्या कर रहा है और वो भी उसी अखाड़े में जिसमें मैं खुद ही रवि को लेकर आया हूं।
मेरी किस्मत कहां ले जाना चाहती है मुझे।
अगर इसने रवि को उस रात के बारे में बता दिया तो मैं तो जीते जी मर जाऊंगा। कहीं रवि के सामने सारी सच्चाई आ गई और उसने मुझे छोड़ दिया तो? लेकिन यहां से वापस भाग कर जाऊं कहां.. भागा तो रवि को क्या जवाब दूंगा? मेरे आगे अतीत का कुंआ था और पीछे रवि को खोने के डर की अंधेरी खाई जिसकी गहराई का अंदाज़ा भी लगाने की हिम्मत नहीं थी मुझ में!
लेकिन फिर थोड़ा संभला, सोचा कि जो होगा देखा जाएगा, अब आ गया तो आ गया, वैसे भी रवि मुझे मारे, पीटे या दुत्कारे, मैं पीछे नहीं हटूंगा, अगर किस्मत को यही मंज़ूर है तो यही सही.
मैं रवि के पीछे पीछे चलते हुए अखाड़े के किनारे तक चला गया। रवि अपनी जांघ पीटता हुआ अखाड़े में घात लगाने के लिए आगे बढ़ा और संदीप का मिट्टी में सना चेहरा अपने हाव भाव छिपाए हुए था। लेकिन उसकी आंखों में कुछ वैसा ही डर था जो मेरे दिल को बैठाए जा रहा था। वो मुझे देखता और नज़रें चुरा लेता, फिर मैं उसे देखता और नज़रें चुरा लेता. 2-3 मिनट तक आंखों की लुका छिपी से मुझे ये तो पता लग गया कि वो भी किसी बात को लेकर डरा हुआ है. लेकिन ये समझ नहीं आ रहा था कि उसको कैसा डर है?
अब मुझ में थोड़ी हिम्मत आ चुकी थी और मैं वहीं खड़ा होकर उन पहलवानों की कुश्ती के दांव देखने लगा. बीच बीच में संदीप मुड़ मुड़ कर मुझे देखता और फिर नज़रें चुरा लेता।
एक घंटे तक यही चलता रहा। जब सब लोग प्रैक्टिस करके आराम के लिए बैठ गए तो रवि और संदीप के बीच कुछ गुफ्तगू शुरु हुई. अब मैं डर गया, मुझे लगा अब ये जरूर मेरी बात कर रहा होगा और उस रात की सारी बात बता देगा कि कैसे मैं इसके और इसके दो दोस्तों के साथ उस कोठरी में चुदा था।
मैं घबरा गया और मैंने मुंह फेर लिया और यहां वहां देखने लगा, मुझे अब वहां खड़े रहना पल पल भारी हो रहा था। मेरे दिल की धड़कन धम्म धम्म करने लगी थी और दिल बैठा जा रहा था।
कुछ देर उन दोनों में बातचीत होती रही और उसके बाद वो लोग उठ खड़े हुए. मुझे लगा कि मैंने रवि को जैसे खो ही दिया हो, बेचैनी और घबराहट में मुझे सांस लेना मुश्किल हो रहा था.
वो सारे पहलवान लड़के उठ कर पास ही चल रहे ट्यूबवेल की तरफ बढ़ने लगे और पास पहुंच कर एक एक करके पानी के हौद में गोता लगाने लगे. यूं तो सारे ही पहलवान मर्दाना जिस्म के मालिक थे लेकिन रवि उनमें सबसे अलग ही दिख रहा था.
लेकिन इस वक्त मेरे मन के आसमान में सेक्स नाम की चिड़िया दूर दूर तक कहीं दिखाई नहीं दे रही थी.
वो सारे लड़के एक एक करके नहा लिए और कोठरी की दूसरी तरफ जाकर लंगोट बदलने लगे. 10 मिनट बाद सब के सब कपड़े पहन कर चलने लगे. दो अलग दिशा में हो लिए और दो अलग दिशा में. एक रवि के साथ मेरी तरफ बढ़ रहा था. मैं लगातार रवि के चेहरे के भावों की ज़मीन को टटोलने में लगा था कि कहीं उनमें मेरे लिए नफरत का कोई अंकुर तो नहीं फूट गया है. लेकिन जैसे जैसे रवि मेरे पास आ रहा था मुझे ऐसा कोई बीज नज़र नहीं आ रहा था.
रवि उस लड़के के साथ भीगे हुए लंगोट में मेरे करीब तक आ पहुंचा. उसके भीगे लंगोट में कैद उसके लौड़े का नज़ारा ही अलग था. लेकिन मैंने पल भर से ज्यादा उसे देखने की हिम्मत नहीं की क्योंकि मैंने उससे वादा किया था कि कोई ऐसी हरकत नहीं करूंगा जिससे उसको मेरी तरफ से शर्मिंदा होना पड़े.
रवि की टीशर्ट और लोअर मेरे हाथ में थी. वो जैसे ही मेरे पास आया मैंने कपड़े उसकी तरफ बढ़ा दिए. उसने मेरे हाथ से कपड़े लेते हुए साथ वाले लड़के को बताया कि यही है वो दोस्त जो कल से मेरे घर आया हुआ है.
मुझे देख कर उस लड़के ने मुझ से हाथ मिलाया और हाल चाल पूछा.
रवि ने अपनी टी-शर्ट पहन ली. मैंने मुंह दूसरी तरफ घुमा लिया क्योंकि वो लंगोट खोलने वाला था. जब उसने लोअर पहन ली तो मुझे चलने के लिए कहा- चल अंश, घर चलते हैं.
हम तीनों रवि के घर की तरफ बढ़ चले। रास्ते में मैं इसी उधेड़बुन में लगा रहा कि संदीप और रवि के बीच में बात तो हुई लेकिन न तो संदीप के चेहरे से कुछ निष्कर्ष निकल सका और रवि भी बिल्कुल सामान्य व्यवहार कर रहा है.
यही सोचते-सोचते हम रवि के घर तक आ पहुंचे. घर के पास पहुंच कर वो लड़का आगे निकल गया और हम गेट से अंदर आ गए.
मेरे मन में अब सौ तरह के सवाल उछल-कूद कर रहे थे कि आख़िर इन दोनों के बीच में बात क्या हुई. लेकिन मैंने अपनी जिज्ञासा की प्यास को धीरज का पानी पिलाना जारी रखा. सोचा कि बात कुछ हो या न हो लेकिन सामने तो आ ही जाएगी.
सुबह के 7 बज चुके थे, आंटी ने हमारे घर आते ही दूध के गिलास हाथ में थमा दिए. गिलास इतने बड़े कि अगर पूरा पी लूं तो मैं पूरे दिन खाना न खाऊं, लेकिन रवि गटक गटक करते हुए कुछ ही सेकेंड्स में गिलास खाली कर गया और एक तरफ रख दिया.
मैंने कहा- मुझ से इतना दूध नहीं पीया जाएगा आंटी.
वो बोलीं- हां, वो तो तेरी सेहत देखकर लग ही रहा है.
रवि और उसकी मां दोनों ठहाका मार कर हंस पड़े.
मैं भी मुस्कुरा दिया, मैंने रवि का गिलास उठाया और उसमें आधा दूध डालकर पीने लगा. रवि के झूठे गिलास में दूध पीने के अहसास ने मेरे अंदर के आत्मविश्वास और रवि के लिए मेरे प्यार को और बढ़ा दिया. दूध पीकर मैंने गिलास आंटी को वापस दे दिया।
आंटी बोली- बेटा, मैं दूसरा गिलास दे देती.
मैंने रवि की तरफ देखा और आंटी से कहा- नहीं आंटी, दूध बहुत अच्छा था.
आंटी बोली- और पी ले फिर?
मैंने रवि वाला गिलास ही आगे करते हुए कहा, इसी में डाल दो.
आंटी ने बाकी बचा दूध भी डाल दिया और मैं उसको रवि के चेहरे की तरफ देखते-देखते गटक गया.दूध तो पी लिया लेकिन पेट जैसे फूलकर गुब्बारा हो गया.
आंटी बोली- और दूं?
मैंने कहा- नहीं आंटी, पेट में जगह नहीं बची.
आंटी ने कहा- अभी थोड़ी देर में खाने का टाइम हो जाएगा.
मेरी आंखें फटी रह गईं.
वो दोनों मेरे चेहरे की हवाईयों को देखकर हंसने लगे.
आंटी मुस्कुराते हुए रसोई में चली गई और हम हुक्के वाले कमरे में जाकर अलग अलग चारपाई पर जाकर गिर गए। रवि को कुश्ती की थकान थी और मुझे पेट को संभालने की.
रवि बोला- अब तो खुश है न तू? मुझे लंगोट में देखना चाहता था, देख लिया ना?
मैंने कहा- हां, खुश हूं.
मैंने सोचा- रवि संदीप के बारे में कुछ बात नहीं कर रहा है. मामला क्या है, ये कैसे जानता है उसे, और अगर जानता है तो उसने क्या बताया इसे?
मैंने हिम्मत करके बात छेड़ते हुए कहा- अखाड़े में सब पहलवान तुम्हारे ही गांव के थे क्या?
वो बोला- नहीं, मेरे गांव के 3 ही थे उनमें.
मैंने कहा- एक तो हमारे साथ ही आया था.
रवि बोला- हां, और 2 जो पैदल जा रहे थे.
मैंने पूछा- और बाकी के 2?
वो बोला- उनमें से वो छोटे वाला मालापुर का था और लम्बे वाला जो तगड़ा सा था वो नेवली खुर्द का।
ये नाम सुनते ही मैं सहम-सा गया। मैंने अंजान बनते हुए कहा- नेवली खुर्द भी पास ही का गांव है क्या?
वो बोला- हां, क्यों, तुझे पसंद आ गया क्या वो पहलवान?
रवि ने मुझे चिढ़ाते हुए पूछा.
मैंने कहा- कौन?
रवि बोला- संदीप…
मैंने कहा- नहीं, मैं तो ऐसे ही पूछ रहा था.कहते हुए मेरी आवाज़ जैसे गले में ही आते आते दबी जा रही हो.
उसने मेरे चेहरे के भाव देखकर कहा- कित खो गया तू…?(क्या सोच रहा है)
मैंने ना में गर्दन हिला दी, यहां वहां कमरे में देखने लगा.
मैंने बात बदलते हुए कहा- तुम्हारा कमरा यही है क्या?
वो बोला- ये तो बैठक वाला कमरा है. अभी बापू आता ही होगा हुक्का पीने।
इतने में उसके पापा कमरे में दाखिल हुए, मैंने उनको नमस्ते की।
रवि बोला- चल, हम साथ वाले कमरे में बैठते हैं.
कह कर वो उठ गया और उसके साथ मैं भी पीछे पीछे कमरे से बाहर निकल गया।
साथ वाले कमरे में घुसे तो सामने पलंग था और साथ ही सोफे रखे हुए थे। पलंग के ठीक सामने मेज पर टीवी चल रहा था जिसमें समाचार चल रहे थे. रवि जाकर पलंग पर लेट गया और टीवी का रिमोट उठाकर चैनल बदलने लगा. एक चैनल पर सनी देओल की घातक चल रही थी, उसने वहां रुक कर रिमोट एक तरफ फेंक दिया.
मैंने कहा- ये सड़ी हुई फिल्में देखने में क्या मज़ा आता है तुम्हें?
वो बोला- तू क्या देखेगा… ये रिश्ता क्या कहलाता है?
कह कर वो हंसने लगा जैसे मुझे चिढ़ा रहा हो…
मैंने मुंह बनाते हुए कहा- नहीं, मुझे इतना शौक नहीं है टीवी देखने का.
वो बोला- हां, तुझे तो लंड देखने का ही शौक है.
मैंने कहा- हां, लेकिन सिर्फ तुम्हारा…
उसका ध्यान फिल्म में केंद्रित हो रहा था. मैंने यहां वहां नज़र घुमाई तो बेड के पास ही शो-केस में कुछ फोटो रखी हुई थीं जिसमें रवि के मम्मी पापा के साथ एक लड़की और थी.
मैंने पूछा- ये तुम्हारी बहन है क्या?
वो बोला- हां, मुझसे बड़ी है… इसकी शादी हो चुकी है.
वो फिर बोला- अरे शादी से याद आया, तुझे अपनी गर्लफ्रेंड की फोटो दिखाता हूं.
मैंने भी एक्साइटेड होते हुए कहा- हां, यार… मैं भी तो देखूं कौन है वो खुशनसीब.
वो बोला- रुक, अभी दिखाता हूं।
उसने टीवी के साथ ही रखी अलमारी खोली और उसमें से एक भारी सी एल्बम निकाल कर ले आया.
मैंने कहा- ये किसकी एल्बम है?
वो बोला- शांति रख… बताता हूं.
एल्बम खोलकर फोटो देखना शुरु किया तो पता चला ये उसकी बहन की शादी की एल्बम थी.
मैंने कहा- इस एल्बम में तुम्हारी गर्लफ्रेंड की फोटो?
वो बोला- चोंच बंद रखेगा?
वो एल्बम पलटता रहा… और एक पेज़ पर आकर रुक गया। फोटो में उसकी बहन, बहन का पति और एक दोनों तरफ दो लड़कियाँ खड़ी थीं.
उनमें से उसने एक लड़की की फोटो पर उंगली रखते हुए कहा- देख… ये है तेरी भाभी…
उस लड़की की फोटो को देखने के बाद मेरे दिमाग ने मुझे आगे बढ़ने ही नहीं दिया, मुझे वो चेहरा कुछ जाना-पहचाना सा लगा, लेकिन जब ध्यान आया तो मेरे मुंह से निकल पड़ा- ये?
वो बोला- क्या हो गया… चौंक क्यूं रहा है?
मैंने कहा- कुछ नहीं, बहुत सुंदर लड़की है..
बस इतना कह कर मेरे माथे पर पसीना आना शुरु हो गया.
ये वही लड़की थी जिसको मैंने संदीप के साथ बस में उसका लंड चूसते हुए देखा था.
रवि बोला- अब तो इसकी शादी हो चुकी है लेकिन मेरा दिल इसी पर आया था..बाकी तो सारी टाइम पास थी मेरे लिए.
मैंने माथे का पसीना पौंछा और उस लड़की के फोटो पर नज़रें गड़ गईं मेरी.
आगे की कहानी जल्द ही लेकर लौटूंगा, मैं अंश बजाज…
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