मेरे गांडू जीवन की कहानी-16

(Mere Gandu Jiwan Ki Kahani- Part 16)

This story is part of a series:

अभी तक आपने पढ़ा कि मैंने रवि के घर जाकर उसके साथ खाना खाया और उसको अपने दिल की बात बताने की कोशिश की लेकिन उसके दिल में मेरे लिए क्या था, मैं नहीं जान पाया था। वो मेरी परवाह तो करता था लेकिन मेरे अंदर जो लड़की बैठी थी, वो अपनी पलकें बिछाए उस बादल के बरसने के इंतज़ार में गांडू जिंदगी की कड़ी धूप में टकटकी लगाए उसकी आखों में असली प्यार की एक बूंद के लिए तरसती हुई देखती रहती थी कि कभी तो एक बूंद बरसे और उसका ये बरसों का इंतज़ार खत्म हो जाए।

हम दोनों हुक्के वाले कमरे में थे और मैंने उसके लंड पर हल्के से हाथ फिरा दिया। मेरे नर्म हाथों की छुअन से उसके लंड में तनाव आने लगा था। लेकिन साथ में ही उसकी माँ रसोई में खाना बना रही थी। मन तो कर रहा था उसके मुस्कुराते हवस भरे चेहरे को देखते हुए वहीं उसकी लोअर को नीचे निकालकर उसके लंड को चूसना शुरु कर दूं लेकिन भावनाओं को रोकते हुए मैं उसके पास ही आराम से बैठ गया।
उसने मेरा हाथ पकड़कर अपनी लोअर के ऊपर अपने लंड पर रखवा लिया तो मेरे अंदर अजीब सी सरसरी दौड़़ गई, उसको छूते ही मुझ पर नशा सवार हो जाता था। मैंने उसके लंड को लोअर के ऊपर से ही सहलाना शुरु कर दिया। तीस सेकेंड में ही उसका लौड़ा लोअर में तनकर मेरे हाथ में भर गया। रवि ने लेटे हुए ही मुझे हाथ पकड़ कर अपने ऊपर गिरा लिया और मेरा मुंह अपने लंड पर रखवा लिया। मेरे होठों ने जैसे ही उसके तने हुए लौड़े को छुआ मेरी आंखें बंद होने लगी।

वो भी समझ गया मैं गर्म हो चुका हूं, रवि ने कहा- दरवाजा तो ढाल दे!
मैंने उठकर दरवाज़ा ढाल दिया, वापस आकर उसके पास बैठा तो उसने अपनी गांड ऊपर उठाते हुए लोअर नीचे निकाल दी, उसकी गेहुंए रंग की मोटी जांघों के बीच में उसके आंडों के ऊपर और काले घने झांटों के बीच में उसका लौड़ा तनकर सीधा छत की तरफ देखते हुए झटके मार रहा था। मैंने बैठते ही उसके लौड़े को अपने नर्म हाथों में भरकर प्यार से सहलाया, उसकी आंखों में आनन्द की लहर बहने लगी।
उसने मेरी गर्दन पकड़ी और मेरे होठों लंड के करीब ला दिया, मुझे उसके लौड़े की महक आने लगी, दो पल के इंतज़ार के बाद उसने मेरी गर्दन को नीचे दबाते हुए होठों को लंड पर लगा और मेरे होंठ खुलते ही लंड अंदर जा घुसा।

मैं भी पूरे आनन्द के साथ उसके लौड़े को चूसने लगा, वो मेरे बालों में हाथ फिराने लगा। मैंने उसके मोटे-मोटे बालों से भरे आण्डों को अपनी गर्म जीभ से चाटा तो उसका आनन्द दोगुना हो गया।
तभी रसोई में बरतन गिरने की कुछ आवाज़ आई, उसने फटाफट से अपनी लोअर ऊपर कर ली और टांगों को घुटनों से मोड़ लिया ताकि लोअर के बीच में खड़ा हुआ लंड दिखाई न दे।
और मैं उठकर दूसरी चारपाई पर बैठ गया।
हम दोनों नॉर्मल होने की कोशिश करने लगे।

5 मिनट बाद उसकी मां कमरे में दाखिल हुई, उनके हाथ में रोटी की थाली थी, वो आकर रवि वाली चारपाई पर बैठ गई और खाना खाने लगी।
मैं थोड़ नर्वस था। मुझसे पूछने लगी।
और बेटा- कहां से आया है?
मैंने कहा- बहादुरगढ़ से!
उन्होंने फिर पूछा- क्या काम करता है।
मैंने कहा- आंटी, अभी तो पढ़ाई कर रहा हूं।
उन्होंने अगला सवाल पूछा- रवि को कैसे जानता है?

अब रवि ने बीच में ही बात काटते हुए कहा- मां, सारा इंटरव्यू अभी ले लेगी क्या। बेचारा थका हारा आया है। थोड़ा आराम कर लेन दे। फिर पूछ लिये जो पूछना हो।
मुझे थोड़ी चैन की सांस आई, नहीं तो फंसने ही वाला था।
आंटी ने कहा- तो फिर खेत में घुमा ले आ इसको; खेत की रखवाली भी हो जाएगी और वहां ट्यूबवेल पर नहा लियो, इसकी थकान भी उतर जाएगी।
उसने कहा- ये बात तो ठीक कह रही है मां तू, मैं इसको खेत में घुमा ले आता हूं।

हम उठकर घर से बाहर निकल गए। दो बज चुके थे और दोपहर की धूप जला रही थी। खेत तक पहुंचते-पहुंचते मैं पसीने से तर-बतर हो चुका था; गर्मी में मेरा मुंह लाल हो चुका था, मेरे मुंह को देख कर रवि बोला- तू तो टमाटर हो गया धूप में!
कहकर वो हंसने लगा।

उसकी हंसी मुझे भी प्यारी लगी; मैं भी मुस्कुरा दिया लेकिन साथ ही गर्मी भी लग रही थी।

15 मिनट चलने के बाद हम खेत में एक कोठरी के पास पहुंच गए जहां ट्यूबवेल बंद पड़ा था। पानी की हौद में झांका तो तलहटी में साफ पानी चमक रहा था। पानी के नीचे हरी रंग की काई जैसे हरी मखमली चादर लग रही थी जिसके चिकनेपन का अहसास उसको बाहर से देखने पर भी हो रहा था।

रवि कोठरी के अंदर घुस गया; मैं बाहर ही खड़ा रहा।
दो मिनट बाद ट्यूबवेल की मोटर से घर्र-घर्र की आवाज़ हुई और हौद में पानी गिरने लगा। रवि बाहर आ गया। बाहर आकर उसने टी-शर्ट निकालना शुरु की और उसकी मजबूत बालों वाली छाती नंगी होकर धूप और पसीने में चमकने लगी। उसने लोअर भी निकाल दी; अब वो कच्छे में था। वो हौद के अंदर घुस गया और ट्यूबवेल के नीचे डुबकी लगा दी। दो-तीन डुबकियां लगाने के बाद जब वो खड़ा हुआ तो उसके भीगे बदन को देखकर मेरे मुंह से लार टपकने लगी। उसके लंबे बाल गीले होकर उसके माथे पर फैल गए थे; उसकी मर्दाना छाती भीगकर और सेक्सी लग रही थी।

मेरी नज़र नीचे गई तो उसके होठों से टपकता पानी छाती पर गिरता हुआ पेट से फिसल कर उसके गीले कच्छे की इलास्टिक से उछलता हुआ उसके लंड के उभार को और साफ दिखाता हुआ उसकी जांघों के बीच में गिर रहा था। दोपहर की गर्मी में उसके भीगे जिस्म ने मेरे अंदर की गर्मी को और बढ़ा दिया।

उसने आंख मारते हुए मुझे अंदर हौद में आने का इशारा किया। मैंने फटाफट कपड़े निकाले और अपने गोरे चिकने कोमल बदन के साथ पानी में उतर गया। हौद में उतरते ही काई पर मेरा पैर फिसला और मैं उसकी छाती से जा लगा; मैंने रवि को बाहों में भरते हुए शरीर का बैलेंस बनाया।

मैंने उसकी आंखों में देखा और उसने मेरी; अपने सारे प्यार को आंखों में समेटकर मैं कह रहा था- मैं तुझ पर अपनी जिंदगी वार दूं।
और वो कह रहा था- मैं अपना पूरा लंड तेरी कोमल गांड में उतार दूं।

अगले ही पल उसने मुझे अपनी मजबूत बाहों में पकड़कर नीचे हौद में बैठा लिया और मेरा सिर ट्यूबवेल की धार के नीचे कर दिया। दिन की गर्मी में ट्यूबवेल का ठंडा पानी और रवि के साथ का अहसास, मेरी सारी थकान उतर गई।
2 मिनट तक मैं ऐसे पानी की धार के नीचे रवि के प्यार में भीगता रहा। फिर उसने मुझे उठाया और मेरी भीगी निप्पलों पर दांतों से काट लिया। मैं सिसक उठा; उससे चिपक गया। उसका लौड़ा तन गया, वो हौद की दीवारी पर बैठ गया और कच्छा नीचे सरका दिया; उसका भीगा लौड़ा सलामी दे रहा था।

उसने कहा- देख क्या रहा है? आ जा मेरी जान। शांत कर दे इसे!
मैं पानी में घुटनों के बल बैठा और उसके भीगे गर्म लौड़े को अपने गर्म होठों में लेकर आंखें बंद कर ली और मज़े से उसे चूसने लगा। मेरी हर हरकत में उसके लिए प्यार भरा था जो उसके लंड के कड़ेपन को बढ़ाता जा रहा था। उसने मेरे सिर को पकड़कर जोर-जोर से अपना लंड चुसवाना शुरू कर दिया।

5 मिनट तक लंड चुसवाने के बाद उसने मुझे उठने को कहा और अपनी गोद में बैठा लिया। उसकी जांघ पर बैठते ही वो मेरी गर्दन को चूमने लगा; उसका एक हाथ मेरी कमर पर था और दूसरे हाथ से मेरे निप्पल मसलने लगा।

मुझसे रहा नहीं गया, मैंने उसके होठों को चूमने के लिए उसके सिर को अपनी तरफ खींचा, होठों पर होंठ रखते ही मेरी गांड खुल गई। लेकिन अगले ही पल उसने मुझे पीछे हटा दिया; शायद वो मुझे अपने होंठ चूसने की इज़ाजत नहीं देना चाहता था लेकिन मैं उसके होठों पर जान छिड़कता था; उसके होठों को चूसना काम-क्रीड़ा में मुझे परम आनन्द देता था; लेकिन शायद उसको ये पसंद नहीं था।

मैं कुछ नहीं बोला और अगले ही पल उसने मेरी अंडरवियर को निकाला और मेरे गीले नर्म चूतड़ों को दबाने लगा। उसके मर्दाना हाथ मेरी गांड में एक सुखद अहसास दे रहे थे। उसने वहीं पर बैठे-बैठे मुझे अपने हाथों से उठाया और सीधा मुझे अपनी जांघों के बीच में तने लंड पर बैठाना शुरु कर दिया।
उसके 8 इंच के लौड़े के मेरी गांड पर टच होते ही मेरी गांड ने उसे रास्ता देना शुरु कर दिया और धीरे-धीरे उसका लंड मेरी घायल गांड में उतरने लगा। मैंने गांड को अगल-बगल हिला कर एडजस्ट करते हुए उसके लंड को गांड में पूरा उतरवा लिया।

जब लंड पूरा अंदर उतर गया तो रवि मेरी निप्पल मसलते हुए मेरी कमर को चूमने लगा, मैं उसके लंड पर खुद ही धीरे-धीरे ऊपर नीचे उछलने लगा। दो मिनट तक ऐसे ही चुदने के बाद वो उठने लगा और उसने मुझे हौद की दीवारी पर झुका लिया। पानी में खड़ा होकर उसने मुझे घोड़ी बनाया और मेरी गांड को चोदने लगा। इस पोज़ में मुझे काफी दर्द हो रहा था लेकिन वो रवि था। उसके दर्द में भी मज़ा आ रहा था।

5-7 मिनट तक उसने मुझे पानी में खड़े-खड़े जमकर चोदा; और अचानक लंड को निकाल लिया; मुझे अपनी तरफ घुमाते हुए मुझे नीचे बैठा दिया और लौड़ा मेरे मुंह में देकर अंदर बाहर करने लगा।
उसका लंड में पत्थर जैसा कड़ापन आ चुका था जो मेरे गले को छीलता हुआ अंदर बाहर हो रहा था।

दो मिनट बाद उसके मोटे लंड ने मेरे गले में गर्म चिपचिपे वीर्य की पिचकारी मारनी शुरू कर दी जिसकी एक-एक बूंद के स्वाद को महसूस करते हुए मैं उसको पीता जा रहा था। 6-7 झटकों में वो शांत हो गया। मैंने मुंह से लंड को निकाला और ट्यूबवेल की धार से पानी लेकर उसके आधे सोए हुए लंड को धोने लगा; उसे गुदगुदी सी हो रही थी।

उसके बाद हम दोनों कुछ देर पानी में नहाए और बाहर आकर बदन का पानी सूखने का इंतज़ार करने लगे। उसके भीगे कामदेव जैसे जिस्म से मेरी नज़र हट ही नहीं रही थी।
वो बोला- और चाहिए क्या?
मैंने कहा- मेरा मन तो कभी तुझसे भरता ही नहीं!
सुनकर वो हंसने लगा और बोला- कोई बात नहीं, रात को आज फिर तेरे साथ सुहागरात मनाऊंगा; आज तेरी सारी हसरत पूरी कर दूंगा।
मैंने कहा- अगर मैं लड़की होता तुझसे ही शादी करता.

उसने एक स्माइल दी और बदन के पानी को हाथों से पौंछने लगा और टी-शर्ट पहनने लगा। टी-शर्ट पहनने के बाद उसने कच्छा निकाला और हौद की दीवारी पर डाल दिया। उसके टी-शर्ट के नीचे, उसकी मोटी-मोटी जांघों के बीच में उसका सांवला सा लंड मेरी गांड मारने के बाद आधी सोई हुई अवस्था में लटक रहा था जो पहले से काफी मोटा और गोल लग रहा था।
उसने लोअर पहन ली।
मैंने भी अपने कपड़े पहने और अपने अंडरवियर धोने लगा।

वो ट्यूबवेल बंद करने कोठरी में चला गया। मैंने उसके गीले अंडरवियर को उठाया और उसको अंदर से पलट कर देखा तो उसके भीगे अंडरवियर में चिपचिपा पदार्थ (रवि का कामरस) लगा हुआ था। मैंने उसे चाट लिया। मैं उसके लिए पागल सा रहता था; उसके जिस्म के रोम-रोम से प्यार था मुझे!

वो ट्यूबवेल बंद करके बाहर आ गया। मैंने अंडरवियर धोकर उसे पकड़ा दिया; उसने कच्छे को सिर पर डाला और हम घर की तरफ चलने लगे।

रास्ते गुजरते हुए 50 गज की चौड़ाई में मिट्टी खुदी हुई थी; शायद अखाड़ा था।
मैंने पूछा- ये किसका अखाड़ा है?
उसने कहा- हमारा ही है, मैं सुबह यहां पर पहलवानी करने आता हूं।
मैंने कहा- मैं तुम्हें लंगोट में देखना चाहता हूं प्लीज़!
उसने कहा- सुबह आ जाना मेरे साथ लेकिन अपनी हरकतों पर कंट्रोल रखियो; यहां पर हमारे गांव के और आस-पास के गांव के और भी लड़के आते हैं। उन्हें शक नहीं होना चाहिए कि तेरे मेरे बीच में कुछ चल रहा है।

उसकी बात सुनकर एक बार तो मुझे बुरा लगा; लेकिन फिर सोचा कि वो कुछ सोचकर ही कह रहा होगा। और वैसे भी हमारा जो रिश्ता है उसे हम सबके सामने खुलकर निभा भी नहीं सकते।
मैंने कहा- ठीक है, मैं ऐसी कोई हरकत नहीं करूंगा, जिससे तुम्हारे दोस्तों को मेरे बारे में कुछ पता चले!
कहकर हम घर की तरफ निकल चले।

घर पहुंचे तो भैंसों को नहलाने का दूसरा टाइम हो चुका था। जाते ही आंटी ने रवि से कहा- सारा दिन खेत में ही रहने को नहीं कहा था। जा, जाकर भैंसों को नहलाकर आ जा। तेरे बापू आ गया तो खाल (चमड़ी) उतार देगा तेरी!
मैंने कहा- मैं भी चलूं?
वो बोला- और तू क्या अंडे देगा यहां। चल डंडा उठा ले और भैंसों के बरामदे की तरफ!
मैंने कहा- कौन सा डंडा, तुम्हारे वाला या लकड़ी वाला?
उसने मेरी तरफ आंखें निकालते हुए इशारा किया कि अंदर मां बैठी है, मुंह बंद रख।
मैं उसे चिढ़ाकर अंदर ही अंदर हंसने लगा और उसके पीछे-पीछे चल दिया।

आगे की कहानी जल्द ही लेकर लौटूंगा।
आपका अंश बजाज
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