गांड मरवाने की तलब
(Gand Marwane Ki Talab)
इससे पहले की कहानी: सास दामाद चुदाई से बेटी का तलाक
अब आगे:
उस दिन मेरी बीवी अंशु और उसका यार उपिंदर दोनों काम से बाहर गए हुए 4 दिन हो गए थे। मैं अकेली थी घर में … बोर हो रही थी और सच कहूँ जिस्म में तड़प मचल रही थी। बहुत मन कर रहा था कि कोई आए मेरी चूचियों को दबाए, मसले, मुझे चूत चुसवाये, गांड चटवाये या मेरे मुंह में लंड घुसाए, मेरी गांड मारे। पर कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था।
मैं डॉक्टर शोभा के क्लिनिक पे गयी। ऐसे ही पूछने की दवाइयां ठीक चल रही हैं, या कुछ बदलनी हैं।
मेरा मुआयना करने के बाद वो मुस्कुराई और बोली- मैं समझ गयी तू क्यों आयी है। एक काम कर, ये ले चाबी, मेरे घर चली जा। थोड़ी देर में दूध वाला आएगा, सुलेमान। अगर उसे फंसा ले तो तेरा काम हो जाएगा।
“नहीं डॉक्टर साहब, ऐसी कोई बात नहीं!”
“तू जा!” कह कर वो मुस्कुरा दी।
मैंने सोचा, क्या पहनूं? अपनी पसंद के कामिनी वाले कपड़े या … फिर कुछ सोच कर मैंने छोटी सी पैंटी पहनी और एक बनियान, ऊपर पैंट कमीज़। मुझे ज़रा अच्छा नहीं लगता आदमियों के कपड़े पहनने!
पर फिर भी!
मैंने अपने बैग में कुछ कपड़े कामिनी वाले रखे और पहुंच गयी।
दोपहर अभी हुई नहीं थी।
थोड़ी देर में दरवाज़े की घण्टी बजी।
मेरा दिल धड़का, मैंने पैंट कमीज़ उतारी, कमर में तौलिया बांधा और दरवाज़ा खोला।
वही था। चेहरे पे दाढ़ी, लुंगी और कुर्ते में, हाथ में दूध का डिब्बा।
“जी दूध ले लो!”
और उसके नज़रें वही थीं जहां मैं चाहती थी। बनियान में से छलकते मेरे उभारों पे।
“ठीक है.”
मैं घूमी और बरतन लेने जाने लगी। एक कदम लिया और तौलिया गिर गया। मैं झुकी और थोड़ा समय लेके उठाया, कमर में बांधा और उसे देख के मुस्करा दी।
बरतन ले के आयी मैं तो देखा कि उसकी लुंगी में तम्बू बना हुआ था।
वो दूध डालने लगा।
“तुम जब भी दूध देते हो तुम्हारा हथियार तैयार रहता है?”
“नहीं जी, वो तो …”
“क्या वो तो?”
“आपके दोनों जोड़े देख के फ़नफनाने लगा.”
“दोनों जोड़े मतलब?”
“एक हो बनियान में से दिख रहे हैं और दूसरा जब तौलिया गिरा था.”
मैं मुस्कुराई, दांतों में होंठ दबाए- घर में सिर्फ मैं हूँ, आ जाओ.
उसकी आंखों में चमक आ गयी- जी, बस काम निबटा के आता हूँ, आधे घण्टे में!
मैं अंदर आयी और कपड़े बदल लिए। लाल ब्रा पैंटी और गुलाबी साड़ी ब्लाउज … मेक अप कर के तैयार।
फिर घण्टी बजी।
“कौन?”
“मैं सुलेमान!”
मैंने दरवाज़ा खोला, कुछ पल तो वो मुझे हैरानी से देखता रहा, फिर एकदम से मुझे दबोच लिया।
“अरे दरवाज़ा तो बन्द कर दो.”
“नहीं पहले एक चुम्मा यहीं पे!”
और उसने मेरे होंठों से होंठ जोड़ दिए। मैंने भी बांहें उसके गले में डाल दीं और आंखें बन्द कर के चुम्बन का मज़ा लेने लगी।
तभी …
मुझे दरवाज़ा बन्द होने की आवाज़ आयी। मैंने चौंक के आंखें खोली और उसकी बांहों से निकलने की कोशिश की, लेकिन किसी ने मुझे पीछे से जकड़ लिया।
“सुलेमान ये … ये कौन?”
“चिंता मत कर। मेरे साथ है। मेरा दोस्त है अरबाज़।
“लेकिन ये… ये गलत है.”
उसने मुझे छोड़ा दरवाज़ा बन्द किया और बोला- रानी अब सही गलत छोड़ और चल अंदर! हम दोनों तेरे पूरे मज़े लेंगे।
और उसने मेरी साड़ी खींच के उतार दी।
अरबाज़ ने मेरी कमर में हाथ डाला और हम ड्राइंग रूम में पहुंच गए। दोनों सोफे पे बैठ गए। अरबाज़ ने अपनी लुंगी में से एक शराब की बोतल निकाली- जा 3 पेग बना ला.
मैंने तीन ग्लास और पानी लेकर तीन पेग बना लिए और ले आयी.
उन दोनों ने अपने बीच में बिठा लिया।
“सुलेमान ने मुझे बताया कि बड़ा मस्त माल है, बनियान में से चूचियाँ बाहर आ रही थी और फिर उसके चूतड़ गोरे, चिकने। और पूरी फंस गयी है। सच बोल रहा था, तू मस्त चीज़ है.”
और उसने हाथ बढ़ा के मेरी चूचियाँ दबा दीं।
शराब पीते पीते दोनों ने मेरा ब्लाउज उतार दिया।
“अपना गिलास खाली कर और एक एक और बना कर ला!”
मैं खड़ी हुई, ब्रा और पेटीकोट में।
“सुलेमान कह रहा था तेरा दूसरा जोड़ा भी मस्त है. उतार पेटीकोट और दिखा मुझे!”
मैंने खोल दिया।
“मज़ा आ जाएगा सुलेमान, मस्त चीज़ है साली!”
मैं नए पेग बना लायी और दोनों के बीच में बैठ गयी।
अरबाज़ ने एक सांस में अपना पेग खाली किया, मेरी ब्रा उतारी और मुझे दबोच लिया। मेरी नंगी चूचियाँ पूरी बेदर्दी से मसली और मेरे होंठ चूसे।
उसे नशा हो रहा था।
“मेरा गिलास खाली है, भर के ले के आ!”
सुलेमान ने भी अपना खाली कर के पकड़ा दिया।
जब तक मैं पेग लेकर आई तो देखा दोनों कपड़े उतार चुके थे, दोनों के नंगे लन्ड मस्ती में तने हुए थे।
मैं सोफे पे बैठने लगी तभी अरबाज़ बोला- साली वहां कहाँ बैठ रही है, मेरे लन्ड पे बैठ!
जब मैं उसकी गोद में बैठने लगी.
“साली छिनाल कच्छी उतार के आ!”
मैंने पैंटी उतारी और उसने मुझे खींच लिया अपनी जांघों पे, लौड़ा मेरे चूतड़ों के बीच में सही जगह पे दस्तक दे रहा था।
“अरबाज़, तुम मुझे गालियां क्यों दे रहे हो?”
उसने मेरी चूचियाँ पकड़ीं और मींजते हुए बोला- मुझे मज़ा आता है, मैं तो अपनी बीवी को भी देता हूँ और साली तू तो है ही मेरी रंडी मादरचोद.
तभी सुलेमान खड़ा हुआ- अपना गिलास खाली कर छोकरी!
“लेकिन मैं धीरे धीरे पीती हूँ.”
“ठीक है चल फिर मेरे घर.”
“क्यों, मैं क्यों जाऊं?”
“वहां शाम तक आराम से पीना, फिर रात भर हम तुझे पेलेंगे। साली जल्दी खत्म कर तो हम तुझे बजाना शुरू करें.”
मैने फटाफट पेग खत्म किया।
सुलेमान ने अपना लौड़ा मेरे मुंह में दे दिया।
मस्त खड़ा लन्ड … मैं मस्त हो गयी। तबियत से चूचियाँ दबवा के लौड़ा चूस के मैं बिस्तर पे पहुंच गयी।
“अरबाज़, यार पहले कौन ठोकेगा इसे?”
“क्या चूतियों की तरह बात कर रहा है, करारा माल है, एक साथ मज़े लेंगे.”
और मेरी डबल चुदाई शुरू हो गयी। घोड़ी बनी हुई थी, सुलेमान का चूस रही थी और अरबाज़ से मरवा रही थी। सच में बड़ा मज़ा आ रहा था। मेरी गांड और मुंह दोनों मस्त थे।
और फिर दोनों लौंडों ने एक साथ मुझे दोनों जगह मर्द जल से भर दिया।
तबियत प्रसन्न हो गयी।
चार दिन की बेकरारी को आराम मिल गया।
जाने से पहले सुलेमान ने मुझे अपना फ़ोन नंबर दिया- जब भी दिल करे, बुला लेना.
“ज़रूर!”
उनके जाने के बाद मैंने कपड़े पहने, अपनी पसंद के … टाइट जीन्स और टॉप।
अभी मैं घर जाने का सोच रही थी कि डॉक्टर शोभा आ गयी।
“तेरी शक्ल देख के लग रहा है कि बिल्ली ने मलाई खा ली।”
मैं बस मुस्कुरा दी.
“अभी रुक। थोड़ी देर मेरे पास भी बैठ, 2 पेग पी ले फिर चली जाना.”
मैं बैठ गयी।
पीते पीते डॉक्टर ने पूछा- मज़ा आया सुलेमान के साथ?
मैं चुप रही।
“शरम आ रही है बताने में?”
“जी अच्छा लगा.”
“गर्मी बड़ी है, आ नहाते हैं.”
“जी, मतलब हम दोनों एक साथ?”
“और क्या, तभी तो मज़ा आएगा.”
और उसने कपड़े उतार दिए।
मैं भी नँगी हो गयी। बाथरूम में शावर के नीचे उसने मुझे पीछे से जकड़ लिया।
उसका हाथ नीचे आया, मेरी जांघों के बीच में …
“यहां पे चूत होनी चाहिए थी न?”
“हाँ डॉक्टर साहिबा, मेरी भी यही चाहत है.”
“यहां चूत होती तो क्या करती?”
“तो तीन मर्दों के साथ एक साथ खेलती.”
“पूरी चोदनखोर है.”
और वो मेरी छातियाँ दबाने लगी।
फिर मुझे अपनी तरफ घुमाया- पहले कौन सा रस पियेंगी होंठ रस या चूत रस?
“जो आप पिलाना चाहें!”
“आजा फिर मेरी जांघों के बीच में!”
मैं बैठ गयी और मेरे होंठ जुड़ गए डॉक्टर साहिबा के नीचे वाले होंठों से। शावर चल रहा था और मैं कभी उसकी चूत की फांकों को होठों में दबाती, कभी जीभ से छेड़ती कभी चूत को चूसती. मैं डॉक्टर साहिबा की चूत की खुशबू का मज़ा ले रही थी। फिर मेरी जीभ तेज़ी से मचलने लगी और उसकी चूत गीली हो गयी।
“मस्त चीज़ है तू कामिनी. चल अब दूसरे छेद पे आ जा!”
मैं उसके पीछे चली गयी, चूतड़ फैलाये और चेहरा उनके बीच में घुसा दिया। होंठ चिपक गए गदराई गांड से, मैं चूमने चाटने चूसने लगी।
“कामिनी तू उपिंदर और अंशु दोनों के साथ करती है? एक साथ?”
“हाँ”
“क्या क्या करती है?”
“सब कुछ.”
“किसी दिन मेरे और मेरे पति के साथ भी कर!”
“जी ज़रूर!”
ऐसी बातें करते करते प्यार करते करते रात हो गयी।
मेरे घर जाने का समय हो गया।
रास्ते में मैं सोच रही थी कि सुबह मैं कितनी परेशान थी और अब कितनी खुश हूँ। चूत गांड लंड सबके मज़े लिए।
घर अभी दूर था और मुझे ज़ोर से पेशाब आ रहा था। अब मैं चाहे मन से विचार से खुद को औरत समझती हूँ और उस समय टाइट जीन्स टॉप और अंदर ब्रा पैंटी पहनी हुई थी.
पर था तो आदमी ही … तो सड़क के किनारे खड़ा होकर मूतने लगा।
तभी पीछे से आती एक तेज़ रोशनी मेरे ऊपर पड़ी और एक मोटर साईकल मेरे बगल से थोड़ा आगे निकल के रुक गयी।
2 पुलिस वाले थे।
एक दूसरे को बोला- यार, कपड़े छोरियों वाले हैं और सड़क के किनारे खड़ा होकर मूत रहा था?
मैं तेज़ी से आगे जाने लगी।
“रुक!”
मैं नहीं रुकी।
बाइक थोड़ी आगे आयी और मेरे पास रुकी।
“तेरे को रुकने को बोला न!”
“मैं घर जा रही हूँ, जल्दी है.”
“तेरी जल्दी हम निकालेंगे.” कह के एक ने मेरा हाथ पकड़ लिया।
“छोड़ो, मुझे जाने दो.”
“मुझे सब पता है जो छोरे ऐसे कपड़े पहनते हैं उन्हें क्या चाहिए होता है.”
“मैं वैसी नहीं हूँ.”
“चल बैठ!” और मुझे बाइक पे बिठा के वो मेरे पीछे बैठ गया।
बाइक चल पड़ी और पीछे वाले ने मेरी चूचियाँ पकड़ ली और दबाने लगा।
“भाई, आज तो मस्त चीज़ हाथ लगी है.”
“वो कैसे?”
“जब मैंने बाइक की लाइट में इसके उभार देखे तो सोचा पैडेड ब्रा पहनी होगी। पर ये तो असली चूचियाँ हैं, मस्त हाथ में आ रही हैं.”
“फिर तो अड्डे पे ले चलते हैं, आराम से सुबह तक प्रोग्राम करेंगे.”
“प्लीज मुझे जाने दीजिए!”
“भाई रोकिए ज़रा!” बाइक रुकी।
पीछे वाले ने फोन किया किसी को। तुम दोनों दारू लेके फटाफट अड्डे पे पहुंचो, हम चिकना माल ले के आ रहे हैं।
“और तू … पहले तो ये बता कि तू छोरा है या छोरी?”
“जी हूँ तो छोरा पर …”
“मैं समझ गया। अब तो ये प्लीज प्लीज करना बन्द कर। अब तू हमारे साथ चलेगी और रात भर वही रहेगी। हम चार यार हैं, चार मर्द, चारों तेरे साथ आज सुहाग रात मनाएंगे और सुबह तुझे मैं खुद घर छोड़ आऊंगा। ना नुकर करेगी तो अभी तुझे थाने में बन्द कर देंगे। वहां तो तुझे पता है कैसे कैसे अपराधी होते हैं। वहां तो दिन रात बजेगी। अब बोल?”
“जी मैं आप के साथ चलूंगी.”
हम वहां पहुंचे।
एक कमरा था, कुछ कुर्सियां लगी हुई थीं और बीच में एक टेबल। दो पुलिस वाले दारू पी रहे थे।
हम तीनों भी बैठ गए।
“पेग बना छोरी!”
मैंने दो बना के दे दिए।
“तू भी पी!”
मैं भी पीने लगी।
मैंने एक खत्म किया तब तक उनके 3-3 हो चुके थे।
एक बोला- छोरी, यहां क्यों आयी है?
“जी ये लेके आये हैं.”
“हरामज़ादी, साफ साफ बोल अपने मुंह से क्या करवाने आयी है?”
“जी मैं मरवाने आयी हूँ.”
“बढ़िया। अब अपने ऊपर के कपड़े उतार के बारी बारी हमारी गोद में बैठ और हमें गर्म कर!”
मैंने जीन्स टॉप उतारा और ब्रा पैंटी में उसकी गोद में बैठ गयी। उसने मेरे होंठ चूसे और छातियाँ दबाईं। ऐसे ही चारों ने किया। चारों के खड़े हो चुके थे।
“अब तू नँगी हो के इस टेबल पे घोड़ी बन जा। हम दो दो कर के प्रोग्राम करेंगे। समझ गयी?”
“जी हाँ!”
“क्या समझी?”
“जी दो लोग एक साथ, मतलब एक आगे से मेरा मुंह चोदेगा और दूसरा पीछे से मेरी गांड मारेगा.”
“शाबाश!”
और प्रोग्राम शुरू हो गया।
अगले ही मिनट में एक लन्ड पिस्टन की तरह मेरे चूतड़ों के बीच में चल रहा था दूसरा मेरे मुंह में अंदर बाहर हो रहा था।
मेरी दोनों जगह से चुदाई हो रही थी धकाधक … फचाफच!
और ये सारी रात चला। चारों ने दो दो बार अपना माल मेरे अंदर झाड़ा।
चारो लौंडों को मैंने चूसा भी और उनसे मरवाई भी।
सुबह तक मेरा सारा शरीर दर्द कर रहा था।
मैं चुपचाप घर आयी और सो गयी.
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कहानी का अगला भाग: गांड मरवाने की तलब- 2
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