गांडू की महालंड से भेंट-2
(Gaandu Ki Mahalund Se Bhent- Part 2)
अब तक आपने पढ़ा..
मैं और मेरा दोस्त राम प्रसाद गांड मराई के खेल में लगे थे, तभी बगल के कमरे से चाचा जी के दोस्त चाचा जी आ गए।
अब आगे..
चाचा बोले- इसकी कब से मार रहे हो?
राम प्रसाद- जी अभी पांच-छः मिनट से।
गांडू चाचा- वो तो मैं भी देख रहा हूँ.. तुम उसकी गांड में बीस मिनट से लंड पेले हो। कितने साल से मार रहे हो?
राम प्रसाद- जी.. पहली बार है।
गांडू चाचा- पहली बार मारने वाला लौंडा तो एक दो झटकों में ही एक-दो मिनट में झड़ जाता है। तुम तो बीस मिनट से लगे हो.. अनुभवी लौंडेबाज लगते हो।
अब हम दोनों बहुत डर गए थे।
राम प्रसाद का हर बार झूठ पकड़ा गया।
गांडू चाचा- अब तक कितने लौंडों की गांड मारी.. और क्या कभी चूत चोदी है?
राम प्रसाद- जी पन्द्रह-बीस की गांड मारी है.. पर लौंडिया एक भी नहीं।
चाचा- इस उम्र में इतना लम्बा लंड और ऐसा मोटा, तुम किस्मत वाले हो। पर मैं भाई साहब से शिकायत करूँगा। वे शहर भर के लौडों की गांड मारते हैं.. इस घर में कई नमकीन चिकनों की नथ उजारी गई और उन्हीं के भतीजे की कोई और गांड मार दे। वाह्ह.. शाबास लौंडे.. मैं कहूँगा उनसे।
हम दोनों ही गिड़गिड़ाने लगे।
चाचा पसीजे तो राम प्रसाद से बोले- तो तुझे मेरी एक शर्त माननी पड़ेगी.. मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगा।
राम प्रसाद- क्या?
चाचा- तू अपना पैन्ट खोल कर फर्श पर उल्टा लेट जा, मैं तेरी मारूँगा।
मरता क्या न करता, राम प्रसाद नंगा होकर चटाई पर उल्टा लेट गया।
अब चाचा ने मुझे आदेश दिया- तेल है? नहीं हो तो बगल के कमरे से ले आ.. तेल और क्रीम की शीशी दोनों रखी हैं।
फिर वो तकिए की तरफ इशारा कर बोले- ये इसे दे दे.. अपनी गांड के नीचे लगा ले।
मैं दोनों चीजें ले आया।
उन्होंने पैन्ट उतार दी, राम प्रसाद की टांगों पर बैठ गए।
अब उन्होंने अपना लंड निकाला, लंड क्या था.. लम्बा और मोटा ऐसा आइटम सा था जैसे गाय बांधने का खूँटा हो।
लम्बाई के कारण सुपाड़ा छोटा लग रहा था.. पीछे की तरफ तो एक सिलेंडर सा फूला हुआ लौड़ा था।
चाचा करीब तीस-बत्तीस साल के हट्टे-कट्टे जवान थे.. तो लंड भी खूब तना हुआ था।
उनका अजगर सा लहराता लंड देखते ही हम दोनों की गांड फट गई। हमने ऐसा भयंकर लंड कभी देखा ही नहीं था, उसे गांड में डलवाना तो दूर की बात थी।
चाचा समझ गए और बोले- तुम लोग डरो मत.. लंड बड़ा जरूर है, पर तुम्हें दर्द नहीं होगा। ये क्रीम गांड में लगा देते हैं तो दर्द नहीं होता है। फिर तुम मेरा विश्वास करो.. यदि कोई दिक्कत हुई तो मैं बीच में काम बन्द कर दूँगा।
पर हमारा डर कम नहीं हुआ।
अब चाचा ने लंड पर क्रीम चुपड़ी, फिर राम प्रसाद की गांड में लगाई।
थोड़ी देर ठहरे रहे.. फिर लंड का सुपारा राम प्रसाद की गांड के छेद पर टिका ही दिया और धक्का दे दिया।
धीरे-धीरे पूरा लंड राम प्रसाद की गांड में समा गया।
चाचा ने वाकयी उसकी गांड बहुत धीरे-धीरे मारी और अपना वायदा निभाया।
इतनी कोमलता से गांड में लंड डालना.. फिर बिल्कुल धीरे-धीरे धक्के लगाना उनका संयम था।
वे बार-बार राम प्रसाद का चेहरा सहलाते भी रहे ‘लग तो नहीं रही..’
कुछ उनके महालंड की मजबूरी थी।
मुझे तो वे मंजे हुए कलाकार लगे।
उन्होंने लगभग आधा-पौने घंटे तक राम प्रसाद की गांड में लंड डाले रखा।
जब वे अलग हुए तो राम प्रसाद हँस रहा था, बोला- इतने मजे से ऐसे तो मेरी किसी ने नहीं मारी। नहीं तो बड़े लंड वाले गांड फाड़ कर रख देते हैं। हाँ एक राजा है.. जिसका भी लंड बड़ा है.. पर वह भी प्यार से मारता है। पर आपके लंड से उसका कोई मुकाबला नहीं।
चाचा- अरे राजा.. वो गोरा सा लड़का जिसके घुंघराले बाल हैं?
राम प्रसाद- आप उसे जानते हैं? उसने मेरी मारी है।
चाचा- उसे भी मैंने ही ट्रेनिंग दी है। उसकी कई बार मारी है। अब भी वो दिल खुश कर देता है। अच्छा लड़का है.. अब मिलो तो उससे मेरी पूछना।
फिर एक दिन जब मैं अपने कमरे में अकेला बैठा था और घर में कोई नहीं था तो चाचा मेरे कमरे में आए।
मुस्करा कर बोले- तुम्हारा दोस्त कहाँ है.. फिर आया नहीं.. दिखा ही नहीं?
मैंने कहा- चाचा.. जब कहें बुला दूँगा। वैसे काम चलाने को मैं तो हूँ।
उस दिन मरवाने के बाद जब राम प्रसाद हँस रहा था, तो चाचा का लंड लेने को मेरी भी गांड कुलबुलाने लगी थी।
चाचा- मिल जाए तो बुला लेना।
शाम को चाचा फिर मेरे कमरे में आए- मिला?
मैंने झूठ ही कह दिया- चाचा मिला नहीं। और अपना प्रस्ताव दोहरा दिया- चाचा.. मैं हूँ.. बोलिए।
मैं समझ गया चाचा का लंड बुरी तरह फड़फड़ा रहा है।
चाचा बोले- तो अच्छा.. फिर मेरे कमरे से शीशी ले आओ।
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मैं दौड़ कर गया और शीशी ले आया चाचा ने अपने लंड पर क्रीम पोती, मेरी गांड में क्रीम लगाई और अपना महालंड मेरी गांड में डाला।
दर्द तो हो रहा था.. कैसी भी क्रीम हो। मेरी कोमल गुलाबी चिकनी छोटे से छेद वाली गांड कहाँ और कहाँ वह लम्बा मोटा भारी जबरदस्त चकिया का हत्था, उन्होंने पूरा लंड डाल दिया।
ऐसा लग रहा था कि चिड़िया की गांड में हाथी का लंड ठूंस दिया गया हो।
मैंने आंखें बन्द कर लीं.. दांत भींच लिए।
वे धीरे-धीरे चोद रहे थे, साथ ही मेरे चेहरे पर हाथ भी फेर रहे थे, बोले- आज क्रीम कम काम कर रही है.. फिर तुम्हारी गांड का छेद भी छोटा है। बस जरा सा और ले लो।
वह ‘जरा सा’ आधे घंटे तक चला।
मेरी गांड तीन दिन तक दर्द करती रही, पर मन में ये बात थी कि मैंने वह महालंड झेल लिया।
जब मैं मरवा कर निबटा और गांड पोंछ रहा था.. तभी राम प्रसाद आ गया ‘नमस्ते चाचा..’
चाचा बोले- अरे तुम्हें देर हो गई।
वह बोला- कोई बात नहीं.. आप कहें तो कल या फिर जब कहें।
चाचा- राम प्रसाद तुम रुको.. एक घंटे बाद देखते हैं।
उनके कमरे से बातों की आवाज आती रहीं।
आधे घन्टे बाद बातें धीरे-धीरे होने लगीं।
मैं समझ गया चाचा शुरू हो गए।
मैं सोच रहा था कि अब राम प्रसाद के चिल्लाने की आवाज आएगी.. पर ऐसा कुछ न हुआ। मैं उनके कमरे की ओर गया.. और झाँका तो देखा चाचा लंड उसकी गांड में अन्दर-बाहर कर रहे थे और वह मुस्करा रहा था।
‘चाचा आपके लंड का मजा ही कुछ और है.. किसी और लंड में ये बात नहीं है.. कईयों से मरवा कर देख लिया।’
मैं अपनी गांड सहला रहा था.. जो अभी भी परपरा रही थी।
चाचाजी से अब गांड मरवाने का सिलसिला चल निकला, पर वे राम प्रसाद के मुरीद थे और उसकी गांड मारने में ज्यादा उत्सुक रहते थे।
अब मैं आपको अपनी उस लड़के राजा से गांड मरवाने की सुना रहा हूँ जो चाचा जी से गांड मारने की विधि सीख चुका था।
हुआ यूं एक दिन मैं अपने कमरे में अकला बैठा था। करीब सात आठ बजे शाम का समय होगा तभी कमरे के सामने एक लड़का आया।
उसने पूछा- चाचा हैं?
लड़के की उम्र यही कोई 18-19 साल थी। बड़ा ही गोरा छरहरा.. नई निकलती हल्की मूंछें थीं।
मैंने कहा- बगल के कमरे में देख लें.. शायद बाजार गए हैं.. थोड़ा इन्तजार कर लें।
वह मेरे कमरे में बैठ गया।
मैं उसे पहचान गया था.. वह राजा था। वह मेरे स्कूल का मशहूर लौंडेबाज था, जिसने कई लौंडों की गांड मारी थी।
लड़के आपस में बात करते थे कि राजा का लंड ले ले.. जे बड़ा है।
वे लौंडे हाथ हिला कर राजा के लौड़े की साइज़ दिखाते।
वह भी मुझे देख रहा था।
हम दोनों खाट पर बैठ गए।
फिर मैंने कहा- थोड़ी देर लेट लें.. न जाने कब तक आएंगे।
वह मेरे साथ लेट गया।
हम एक-दूसरे से चिपके हुए लेटे थे, अचानक उसने मेरी तरफ पीठ कर ली, मैं उसकी पीठ से चिपक गया।
मैं उसके पेट पर हाथ फेर रहा था कि उसने मेरी मंशा समझते हुए खुद की बेल्ट खोल कर पैन्ट उतार दी। फिर मेरे अंडरवियर का नाड़ा खोल दिया। अब हम दोनों नंगे थे। मेरा लंड उसके चूतड़ों से टकरा रहा था।
वह पेट के बल औंधा हो गया। मैं अब उसके बगल में था।
वह मेरी तरफ चेहरा करके मुस्कराया बोला- चढ़ बैठ.. और पेल दे।
मैं उसकी जांघों पर बैठ गया।
लंड झटके लेने लगा था.. जैसे भूखे को अचानक मिठाई मिलने वाली हो।
मैं कुछ बोल ही नहीं पाया.. लंड पर थूक लगाया, फिर थोड़ा थूक उसकी गांड पर लगाया और लंड टिका दिया।
उसने टांगें और चौड़ी कर लीं, मैंने हाथ से पकड़ कर लंड उसकी गांड में पेला, फिर और झटका दिया।
वह बोला- अबे अन्दर गया.. हाथ हटा ले फिर धक्का दे।
अब मैं लंड के धक्के दे रहा था, मेरे साथ वह भी नीचे से धक्के लगा रहा था।
बदन सनसना रहा था।
हम 15-20 मिनट तक लगे रहे।
निपट कर बैठे ही थे कि चाचा आ गए, बोले- चलो।
राजा बोला- चाचा.. मैं तो आया ही आपसे मिलने था, इन भैया से बात करने लगा.. थोड़ी देर लगेगी।
चाचा मुसकराए- तू अपने काम के चक्कर में मेरा काम बिगाड़ रहा है।
राजा- नहीं चाचा.. मैं आपको पांच मिनट में लौंडा दिलाता हूँ। अपना मोबाइल दो और आप अपने कमरे में रूको.. लड़का आता है। वो इसी मोहल्ले का है।
राजा ने मोबाइल लगाकर- राकेश क्या कर रहा है? फ्री है तो जल्दी आजा.. चाचा के घर हूँ.. तुझे चाचा को खुश करना है.. यार मैं दूसरे काम में फँसा हूँ.. वरना तुझसे न कहता।
‘ठीक है!’ कह कर मोबाइल कटा और राजा ने चाचा से कहा- चाचा.. उसे कुछ दे देना.. उसका धंधा थोड़ा ढीला चल रहा है।
दस मिनट के बाद राकेश आया।
एक हल्का सांवला सा 22-24 साल का, राजा से थोड़ा ज्यादा तगड़ा ऊंचा था।
उसे देखते ही राजा खड़ा हो गया, उससे बोला- मैं इस कमरे में हूँ। तू निपट कर आजा.. चाचा तेरा वेट कर रहे हैं।
राकेश मुझे देखता रहा, मुस्कराया और चाचा के कमरे में चला गया।
फिर राजा मेरे पास आया।
अब राजा ने मेरी गांड कैसे मारी और मेरी अलबेली गांड के साथ क्या क्या हुआ.. इसका विवरण अगले पार्ट में लिखूंगा।
आपको मजा आ रहा है या नहीं, मुझे ईमेल लिखो.. या मेरे साथ आ जाओ।
कहानी जारी है।
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