मेरी गाण्ड का उद्घाटन समारोह
मित्रों को मेरा नमस्कार। आज मैं आपको अपनी आपबीती बताने जा रहा हूँ, जब मैं पहली बार चुदा था, यह कहानी सच्ची है लेकिन इसे मजेदार बनाने के लिए मैंने थोड़ा मिर्च-मसाला मिला दिया है।
मेरा एक बॉयफ्रेंड हुआ करता था रजत ! रजत बड़ा बांका छोरा था- हट्टा-कट्टा, लम्बा चौड़ा। मैं उससे याहू के चैट रूम में मिला था, वो रहने वाला गोरखपुर का था।
मैं पहली बार उससे अपने कमरे पर मिला था, मैं तब अकेला रहता था। रजत ‘टॉप’ था, यानि उसे गाण्ड मारना और अपना लंड चुसवाना पसंद था। मैं हालांकि गाण्ड नहीं मरवाता था, लेकिन चूसता बहुत मज़े से था, घंटों तक, जब तक लौड़े का रस न निकल आए।
रजत को मेरा लंड चूसना बहुत पसंद आया, जब हम पहली बार मिले, करीब आधे घंटे तक वो अपना लौड़ा मुझसे चुसवाता रहा, फिर उसने मेरा सर भींच कर ज़बरदस्ती मेरे हलक में अपने लौड़े का पानी गिर दिया।
मैं चेहरा धोने के लिए बाथरूम में सिंक पर गया तो वो भी मेरे पीछे घुस आया और मुझे पीछे से दबोच कर अपना लंड मेरी गाण्ड पर रगड़ने लगा और मुझे गाण्ड मरवाने के लिए कहने लगा, मैंने साफ़ मना कर दिया।
खैर, उस पहली मुलाकात के बाद हम दोनों का मिलने का सिलसिला शुरू हो गया, जब भी मिलते, रजत मेरी गाण्ड के पीछे पड़ जाता।
‘एक बार इसे गाण्ड में ले लो…’ मुझे अपना खड़ा लंड कमर हिला-हिला कर दिखाता।
‘मैं तुम्हारा चोदन कर दूँगा।’ मुझे फोन पर धमकी देता।
‘जानू… कितने सुन्दर हो… तुम्हें चोदने में कितना मज़ा आएगा।’ मुझे उकसाने की कोशिश करता। लेकिन मैं जानता था कि कितना दर्द होता है, मैं न उसकी धमकियों से डरता न उसके बहकावे में आता।
लेकिन एक-आध बार तो मैं वास्तव में डर गया था। रजत लम्बा चौड़ा, तगड़ा लड़का था और मैं दुबला पतला। अगर वो मेरे ऊपर कभी चढ़ जाता तो मैं तो अपने आप को बचा भी नहीं पाता।
लेकिन रजत ने कभी ज़बरदस्ती नहीं की। हम दोनों मिलते रहे और एक दूसरे को पसंद भी करने लगे।
कुछ महीने यूँ ही बीत गये।
फिर एक दिन मैं रजत के कमरे पर शाम को गया। हमेशा की तरह हम दोनों एक दूसरे के गले लगे, एक दूसरे को मीठी-मीठी पप्पी दी।
रजत कुर्सी पर बैठ गया और अपनी ज़िप खोल कर अपना खड़ा लंड बाहर निकाल लिया। मैं उसके सामने फर्श पर नीचे बैठ गया और उसकी कमर से लिपट कर उसका लौड़ा चूसने लगा।
लौड़ा चुसवाने का यह उसका मनपसन्द पोज़ था।
आप रजत के लंड के बारे में उत्सुक होंगे कि वो कैसा था, बिलकुल सामान्य था- औसत लम्बाई और औसत मोटाई।
ये आठ-नौ इन्च के गदराये लंड सिर्फ किताबों और ब्लू फिल्मों में मिलते हैं।
मैं मज़े से उसके रसीले लंड को चूस रहा था। अभी कोइ पंद्रह मिनट ही हुए होंगे कि उसने मेरी गाण्ड मरने की बात करी। मैं हमेशा की तरह उसकी बात को टाल कर चूसने में लगा रहा।
लेकिन इस बार उसने अपना लौड़ा वापस खींच लिया, मैं चौंक गया, आज तक उसने ऐसा नहीं किया था।
‘क्या हुआ?’ मैंने चौंकते हुए पूछा।
‘एक बात सुनो… मैं तुम्हारे अन्दर डालना चाहता हूँ।’ उसने मुस्कुराते हुए कहा।
‘रजत यार… तुम्हें मालूम है कि मैं अन्दर नहीं लेता।’ मैंने उसे डांटते हुए कहा।
‘क्यूँ नहीं लेते आखिर?’
‘अरे यार मैं कोइ गांडू नहीं हूँ… मैं तुमको कई बार मना कर चुका हूँ।’
‘अरे यार… मुझसे करवाने से तुम कोइ गांडू-वांडू नहीं जाओगे। आखिर तुम मेरे हो… इससे तुम मेरे और करीब आ जाओगे, न कि कोई गांडू बनोगे।’
वो मुझे तर्क देकर समझा रहा था।
‘यार लेकिन बहुत दर्द होता है। तुम्हें क्या मालूम, तुम तो मज़े ले लोगे और अपना पानी झड़ने के बाद निकल लोगे?’ मैंने फिर मना किया।
‘कैसी बात कर बात कर रहे हो… मैं तुम्हें दर्द नहीं पहुँचाऊँगा यार, तुम तो मेरी जान हो… मैं तुम्हें दर्द में नहीं देख सकता।’
‘तो फिर क्यूँ पीछे पड़े हो मेरी गाण्ड के?’
‘मेरी बात सुनो, अगर तुम्हें दर्द हुआ तो मैं नहीं करूँगा। लेकिन कम-से-कम एक बार कोशिश तो करो… मेरे लिए सही।’
उसकी आखिरी बात पर मेरा दिल पिघलने लगा, रजत मुझे बहुत अच्छा लगता था, ऐसा बाँका लड़का किस्मत से मिलता है।
अन्दर ही अन्दर, चोरी-चोरी मैं कल्पना करने लगा कि रजत मुझे चोद रहा है, मैं ब्लू फिल्म वाली लड़कियों की तरह सिसकारियाँ लेता, चिल्लाता हुआ चुदवा रहा हूँ।
‘जानू, बस एक बार… अपने रजत बाबू (मैं उसे प्यार से ‘रजत बाबू’ कहता था) की ख़ुशी के लिए… मैं प्रामिस करता हूँ अगर तुम्हें दर्द हुआ तो मैं नहीं करूँगा।’ उसने फुसलाना जरी रखा।
मेरे मन में इच्छा हुई कि मैं भी रजत को अपने आप को चोदते हुए देखूँ- वो मुझे चोदते हुए कैसा लगता है, उसके चेहरे पर कैसे भाव आते हैं।
मैं राज़ी हो गया- ठीक है… लेकिन अगर दर्द हुआ तो तुम नहीं करोगे ना?
‘प्रामिस यार, प्रामिस। तुम्हें भरोसा नहीं है मुझ पर?’
मैंने रजत पर भरोसा कर लिया।
उसने झट पट मुझे पलंग पर पीठ के बल लिटा दिया। उसने झट पट अपनी बाक्सर शार्ट्स उतार फेंकी (अब तक उसने बाक्सर शर्ट्स ही पहनी थी)
मैंने भी अपनी जीन्स और जाँघिया उतार दी।
रजत बहुत उतावला था। उसका उतावला होना स्वाभाविक था- हम दोनों अब एक दूसरे को लगभग दो साल से जानते थे, इन सालों में बेचारे ने कितनी कोशिश करी होगी मेरी गाण्ड मारने की, अब जाकर उसका सपना सच हो रहा था।
रजत अब अलफ नंगा था और बहुत ज्यादा जोश में था। उसने दराज में से झट से कंडोम निकाला और चढ़ाने लगा।
मैं सोच में पड़ गया कि इसके पास पहले से कण्डोम था !
यानी भाई साहब ने या तो पहले से तैयारी करके रखी थी या फिर और भी कहीं मुंह मारते थे। वैसे ‘टॉप’ लड़कों के बारे में मुझे एक बात मालूम थी, जब तक वो गाण्ड नहीं मार लेते थे, उन्हें मज़ा नहीं आता था, चाहे कितना भी उनका लौड़ा चूस दो।
वो लपक कर पलंग पर आ गया।
‘जानू, अपनी टांगें मेरे कन्धों पर टिका दो।’
रजत घुटनों के बल मेरे सामने पलंग पर खड़ा हो गया, मैंने अपनी टांगें उसके विशाल कन्धों पर टिका दीं। उसने ताक में से वेसिलीन की डिबिया उठाई और मेरी गाण्ड के अन्दर और अपने कण्डोम चढ़े लण्ड पर मल दी।
‘हे हे हे… इससे आसानी से घुस जायेगा।’ वो खींसे निपोरते हुए बोला।
मैं अपने आपको हलाल होने वाले बकरे की तरह महसूस कर रहा था।
उसने अपने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ों को फैलाया और अपने लौड़े का सुपाड़ा मेरी गाण्ड के मुहाने पर टिका दिया।
‘अपनी गाण्ड ढीली छोड़ो !’ रजत ने निर्देश दिया।
मैं डरा हुआ था, दिल की धड़कनें तेज़ हो गई थीं।
‘घबराओ मत, दर्द इसीलिए होता है कि लोग अपनी गाण्ड कस कर रखते हैं। अपने आप को ढीला छोड़ो।’
उसने धीरे-धीरे लण्ड घुसेड़ना शुरू किया ‘ अहह… अह्ह्ह !’ मैंने दर्द में कराहना शुरू किया।
‘अबे चूतिये… ऐसे दिखा रहे हो जैसे कोइ तुम्हें टार्चर कर रहा है।’ रजत ने मुझे हड़काया।
उसने अभी तक अपना आधा लौड़ा ही घुसेड़ा था और मुझे असहनीय दर्द हो रहा था। मैंने मन में सोचा कि आज मेरा उद्घाटन हुआ है, दर्द तो होगा ही इसीलिए सहता गया।
रजत ने अब अपना लौड़ा हिलाना शुरू किया मैं दर्द के मारे उछल गया ‘आह्ह्ह्ह…. !!’
रजत मुस्कुराते हुए बोला- हे हे हे… पहली बार तो दर्द होगा ही, लेकिन बाद में सब ठीक हो जायेगा और तुम्हें भी मज़ा आएगा।
मेरी तो समझ में कुछ नहीं आ रहा था, दर्द के मारे वास्तव में गाण्ड फट गई थी।
रजत अब हिलाते हुए मेरी गाण्ड में और अन्दर घुसाने लगा।
‘अरे… नहीं… ऊओह… !!’ मैं चीखा।
‘क्या नहीं? हैं? क्या नहीं?’ रजत ने फिर हड़काना शुरू किया- तुमने फिर गाण्ड कस ली? ढीला छोड़ो अपने आप को…
‘अरे यार… दर्द हो रहा है।’ मैंने रोते हुए जवाब दिया।
‘चूतिया… तुमको बोला कि शरीर को ढीला छोड़ो, लेकिन कसे हुए हो। तुमको बोला कि पहली बार दर्द होता है लेकिन फालतू की नौटंकी दिखा रहे हो।’ रजत ने डांटना चालू रखा।
मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, पता नहीं कुछ लड़के क्यूँ अपनी गाण्ड में लौड़े ले लेते हैं।
‘लम्बी साँस लो।’ रजत ने हुकुम दिया।
मैंने ली, मेरा शरीर ढीला पड़ा और रजत ने पूरा का पूरा लण्ड मेरी गाण्ड में घुसेड़ दिया।
अब मेरा दर्द बेकाबू हो गया। मैं बिलबिला उठा।
‘रजत… हा आ आ… !!’
रजत ने अब अपना लौड़ा आगे-पीछे करना शुरू किया, मुझे लगा कि मेरी गाण्ड में से खून निकल रहा है।
‘रजत… रजत… देखो, कहीं खून तो नहीं निकल रहा है?!!’
‘चुप भोसड़ी का…!’ रजत ने फिर हड़का दिया- चुपचाप चुदवा, वर्ना गाण्ड फाड़ दूँगा।
‘नहीं रजत… बस करो दर्द हो रहा है।’ मैं गिड़गिड़ा रहा था।
‘अरे यार, अभी तो घुसा है।’ उसे अपना लौड़ा हिलाना जारी रखा।
‘लेकिन अहह… दर्द हो रहा है…अहह… यार !!’ मैंने तड़पते हुए जवाब दिया।
‘वो तो होगा ही, पहली बार करवा रहे हो। पांच मिनट रुक जाओ, दर्द नहीं होगा।’ रजत चोदने में जुटा हुआ था।
मेरा दर्द बयान के बाहर हो चुका था, मेरा मुँह दर्द के मारे खुला हुआ था और उसमें से हर प्रकार की आवाज़ें निकल रहीं थी।
मैंने रजत की तरफ गौर किया : वो मेरे ऊपर झुका, मेरी टांगें थामे, अपनी कमर हिला रहा था और बड़ी उत्सुकता से मेरा तड़पना देख रहा था।
शायद उसे मेरे चिल्लाने और छटपटाने में मज़ा आ रहा होगा।
अब मैंने हाथ खड़े कर दिए। अब मुझसे और नहीं हो सकता था।
‘रजत… रजत… रुक जाओ… अह्ह्ह… निकाल लो। मैं अब नहीं करवाऊँगा। बहुत दर्द हो रहा है !!!’ मैंने उसे साफ़ मना किया।
लेकिन रजत के कान पर जूँ नहीं रेंगी, मेरी बात की उपेक्षा करके उसी तरह कमर हिलाए जा रहा था।
‘रजत बस करो।’ मैं चीखा, अब मुझे गुस्सा आ गया था।
लेकिन रजत बहरा बन गया था, कमीना!
उसकी कमर का एक-एक थपेड़ा मेरी बर्दाश्त के बाहर हो चुका था। मैं उसके लण्ड के आगे-पीछे होने के हिसाब से आहें भर रहा था।जैसे उसका लण्ड आगे घुसता मेरे खुले हुए मुँह से ‘आह’ की आवाज़ निकलती। जैसे ही उसका लण्ड बाहर निकलता, मेरे मुँह से ‘उह’ की आवाज़ निकलती।
‘आह.. उह.. आह… उह्ह… आह…!!!’
रजत को बहुत मज़ा आ रहा था, वो मेरा छटपटाना देख कर मुस्कुरा रहा था, बहुत हरामीपने की मुस्कान थी। साला एक नम्बर का कमीना था।
‘रजत तुमने प्रोमिस किया था कि अगर मुझे दर्द हुआ तो तुम नहीं करोगे।’
‘अच्छा।’
‘अरे, तो हटो… छोड़ो मुझे… आह्ह… !!’ रजत ने ज़ोर से धक्का मारा। मैं उसका वार झेल नहीं पाया और मेरा धड़ पलंग पर उछल गया। कमर और टांगों को तो उसने दबोचा हुआ था।
मैं जैसे ही उछला, रजत ने झुक कर ज़ोरों से मेरे निचले होंटों को काटा, मेरी फिर चीख निकल गई- आअह्ह्ह…!
रजत को और मज़ा आया, अब उसने फुल स्पीड में चुदाई शुरू कर दी।
‘ईएह्ह…!!! रजत…!! छोड़ दो प्लीज़…!!’ मैं दर्द के मारे चीखा।
‘छोड़ दूँ या चोद दूँ?’
‘नहीं रजत… प्लीज़… उहहह ब..बस क.. करो !’ मैंने उसकी मिन्नत की।
‘रुक जाओ जानू… थोड़ी देर और, फिर छोड़ दूंगा।’ उसने कहा।
‘नहीं, नहीं… बस करो… छोड़ दो।’
लेकिन वो चोदे जा रहा था, मेरे तड़पने, गिड़गिड़ाने और हाथ पाँव जोड़ने का उसपर कोई असर नहीं हुआ। फिर आखिरकार मुझे कोशिश करनी पड़ी, मैं अपने आपको जबरन छुड़ाने लगा लेकिन वो भी बेकार साबित हुई।
रजत, जैसा मैंने आपको बताया, बहुत तगड़ा लड़का था और मैं दुबला-पतला, मैंने जैसे उठने कोशिश की उसने मेरी बाहें जोर से जकड़ ली और मुझे बिस्तर पर दबा दिया, मेरी टांगें और कमर उसकी चपेट में पहले से थे।
‘रजत, यह क्या बदतमीज़ी है? छोड़ो मुझे !!’ अब मैंने उसे डांटा।
लेकिन वो बहरा बना हुआ था।
अब मैं फिर से उसकी चिरौरी करने लगा- रजत… मेरे राजा… छोड़ दो !
‘छोड़ दूँ कि चोद दूँ?’ उसकी आवाज़ में हरामीपना कूट कूट कर भरा था।
‘नहीं… नहीं… छोड़ दो न…’
‘साले… दो साल से मैं इंतज़ार कर रहा हूँ तुम्हारी गाण्ड मारने का, ज़रा जी भर के कर लेने दो… तुम्हारे जैसे चिकने लौंडे को कोई छोड़ेगा क्या?’
अब वो बोले चला जा रहा था और चोदे चला जा रहा था, मैं मन ही मन अपने आप को कोस रहा था, देखा जाये तो गलती मेरी ही थी, मुझे इस दैत्य को अपने ऊपर सवार ही नहीं करना था।
‘मज़ा आ रहा है या नहीं मुन्ना?’ उसने मुझे छेड़ते हुए कहा।
मैंने ‘न’ में सर झटक दिया।
‘हे हे हे… लेकिन मुझे बहुत मज़ा आ रहा है तुम्हें चोद के’
‘कमीना कहीं का…’
मैं पहले की तरह मुँह खोल कर ‘आह-उह्ह’ कर रहा था।
रजत मेरे ऊपर झुका, उसका सर मेरे सर के ऊपर आ गया।
उसने मेरे खुले मुँह में थूक दिया, उसका थूक सीधे मेरे हलक में गिरा।
‘रजत… अह्ह्ह… बस करो उह्ह्ह… आह्ह… मैं… मैं मर जाउँगा… !!’
‘हा हा हा…. तुम्हारी पोस्ट मार्टम रिपोर्ट में लिखा होगा ‘गाण्ड मरवाने से मौत हुई!’
उस साले हरामी को मेरी दुर्दशा देखने में बहुत मज़ा आ रहा था।
‘चुतिया साला… गाण्ड मरवाने से कोई मरा है आज तक? इतने प्यार से धीरे-धीरे तुम्हें चोद रहा हूँ अपनी जान की तरह और तुम साले ड्रामा कर रहे हो !!’
उसका बेरहम लौड़ा मेरी गाण्ड को रौंदने में लगा हुआ था।
‘मैं अब इसके बाद तुमसे कभी नहीं मिलूँगा… ईह्ह्ह !!’
‘हे हे… मत मिलना… इसीलिए तो तुम्हारी गाण्ड को जी भर के चोद रहा हूँ, तुम फिर कभी मिलो न मिलो… आज जी भर के चोद लेने दो।’
बोलते-बोलते वो फिर झुका।
मुझे लगा यह फिर मेरे मुंह में थूकेगा, मैंने अपना सर फेर लिया। उसने मेरे सर को ठोड़ी से पकड़ा और ज़ोरों से मेरे होटों को काटा।
‘म्मम्म…. नहीं… !!’ बड़ी मुश्किल से मैंने उसको दूर किया। पता नहीं शायद मेरे होटों से खून निकल रहा होगा- कम से कम काटा-पीटी तो मत करो… तुम आदमी हो या राक्षस?’ मैंने दर्द में कराहते हुए कहा।
‘मैं तो तुम्हारी पप्पी ले रहा था। चुदते हुए और भी प्यारे लगते हो जानू !’
‘और तुम चोदते हुए पूरे राक्षस लगते हो।’
मैं बिन पानी की मछली की तरह तड़प रहा था और वो कसाई की तरह मज़े ले-लेकर मेरी गाण्ड में अपना हरामी लण्ड हिलाए चला जा रहा था।
पता नहीं वो हरामी मुझे कितनी देर तक यातना देता रहा, फिर वो रुक गया और अपने लौड़े को निकाल लिया।
मेरी जान में जान आई, मैं उठने लगा तो उसने फिर मुझे दबोच लिया और मेरी छाती पर चढ़ बैठा, उसने झट से अपने लौड़े से कन्डोम उतार फेंका।
मैं ताड़ गया था कि अब यह क्या करने वाला है।
रजत सड़का मारने लगा। अगले ही पल उसके लण्ड ने मेरे चेहरे पर गाढ़े वीर्य की धार मारनी चालू कर दी। उसके वीर्य से मेरा चेहरा और गला सराबोर हो गया। एक धार तो मेरे मुँह में भी चली गई।
पूरी तरह झड़ने के बाद बोला- मैंने वादा किया था न कि मैं तुम्हें छोड़ दूंगा, लो छोड़ दिया।
और मेरे ऊपर से हट गया।
मैंने आव देखा न ताव, सीधे बाथरूम में भागा। वो भी पीछे से घुस आया। मैं सिंक पर झुक चेहरा धो रहा था कि उसने मुझे पीछे से दबोच लिया।
‘जानू बहुत मन था तुम्हें ठोकने का… लेकिन तुम मानते ही नहीं, इसीलिए आज मुझे ज़बरदस्ती करना पड़ा।’
मैंने कोइ जवाब नहीं दिया।
‘क्या मैं तुम्हारे ऊपर मूत दूँ?’ उसने खींसे निपोरते हुए मुझसे पूछा।
साला बड़ा बेशरम था।
अब तो हद हो गई थी। मैं बाथरूम से भागा, कहीं यहाँ भी यह ज़बरदस्ती अपने पेशाब में मुझे नहला न दे।
‘अरे अरे… कहाँ भाग रहे हो?’
‘मैं जा रहा हूँ। अब एक मिनट नहीं रुकूँगा।’ मैं जल्दी-जल्दी कपड़े पहन कर वहाँ से भागने की तैयारी करने लगा।
इस यौन शोषक राक्षस का कोइ भरोसा नहीं।
‘अरे… जल्दी भी क्या है।’ वो अभी भी मुस्कुरा रहा था- जानू, तुम तो बुरा मान गए। मैं तुम्हारा पति हूँ… मैं नहीं करूँगा तुम्हारे साथ तो और कौन करेगा?
मैंने कोइ जवाब नहीं दिया। अब तक मैं कपड़े पहन चुका था, बस जूते पहन कर वहाँ से सर पर रख कर भागा।
रंगबाज़
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