दोस्त की गाण्ड उसकी बीवी की चूत
(Dost Ki Gaand, Uski Biwi Ki Choot)
दोस्तो, मेरा नाम हसित है, शादीशुदा हूँ, एक बेटी है जो चौथी क्लास में पढ़ती है, सुंदर बीवी है।
सेक्स तो घर में और बाहर भी बहुत बार किया है, पर मैंने कभी औरत के अलावा किसी और जीव से कभी नहीं किया।
मैं एक प्राइवेट कम्पनी में दिल्ली में जॉब करता हूँ।
जब मेरी बदली जयपुर से दिल्ली हुई तो सबसे पहली समस्या थी दिल्ली में रहने की।
शुरू के कुछ दिन तो एक रेस्ट हाउस में रहा, बाद में मेरे ऑफिस के ही एक दोस्त नीरेन्द्र ने कहा कि उसके घर में एक रूम एक्सट्रा है, वो मुझे मिल सकता है।
एक दिन वो मुझे अपने घर ले गया, मुझे उसका घर और मेरा कमरा दोनों पसंद आए, पर सबसे ज़्यादा पसंद आई उसकी बीवी, औरत क्या बस फिल्मी हीरोइन कहिए।
खूबसूरत चेहरा, गदराया बदन और मदमाता यौवन।
बस यह समझो कि मैंने सिर्फ उसको देख कर ही हामी भर दी।
अगले दिन ही मैं अपना सारा समान अपने रेस्ट हाउस से उठा कर उसके घर आ गया।
नीरेन्द्र की बीवी विश्वभा और एक बेटा कपिल ही उस घर में रहते हैं।
कपिल भी चौथी क्लास में पढ़ता है।
दोनों मियां बीवी ने मेरा खूब ख्याल रखा, घर का खाना, दूध चाय, हर बात में मुझे ऐसे ट्रीट किया जैसे मैं उनके घर का ही मेम्बर हूँ।
एक खास बात जो मैंने नोटिस की विश्वभा जब कभी भी मेरे सामने आती और अगर उसका दुपट्टा या साड़ी का पल्लू उसके बदन से थोड़ा बहुत खिसका होता तो उसने कभी इस चीज़ के परवाह नहीं की कि कोई पराया पुरुष उसके यौवन को घूर रहा है।
मैं भी पूरी शराफत से पेश आता, पर अगर किसी सुंदर औरत के अंग आपको दिख रहे हों तो आप कितनी देर उसको अनदेखा कर सकते हो, कभी न कभी तो निगाह पड़ ही जाती है।
खैर हम दोनों शरीफ ही बने रहे।
अब दिल्ली से जयपुर रोज़ रोज़ तो जाया नहीं जा सकता था, सो दिन तो कट जाता था पर रात को मुश्किल होती थी, अपनी बीवी की और अपनी सहेलियों की बड़ी याद आती।
ऑफिस में भी एक-दो पर लाईन लगाई, पर इतनी जल्दी कौन पटती है।
वैसे ही एक दिन बातों बातों में मैंने नीरेन्द्र से कहा- यार बाकी सब तो ठीक है पर साली रात को बड़ी मुश्किल होती है।
‘तो तू क्या चाहता है? कि घर तो दे दिया अब अपनी बीवी भी तुझे दे दूँ?’
‘अरे पागल है क्या, ये बात नहीं यार… कोई सहेली हो, कोई पैसे लेकर ही दे दे साली?’ मैंने कहा।
‘तो इसका भी इंतेजाम करें फिर!’ नीरेन्द्र बोला।
‘हो सकता है क्या, कहाँ?’ मैंने पूछा।
‘अरे लल्ला धीरज धरो, देखते हैं कुछ!’
मुझे लगा कि चलो साला पानी तो निकलने का इंतजाम हुआ, बाकी देखी जायेगी।
वैसे तो मैं हर शनिवार जयपुर चला जाता हूँ, पर इस बार नीरेन्द्र ने मुझे रोक लिया।
नई चूत के चक्कर में मैं भी रुक गया।
शनिवार शाम को हम दोनों बाज़ार गए और शाम को रंगीन बनाने के लिए व्हिस्की, नमकीन और बहुत सा समान लाये।
मगर नीरेन्द्र ने मुझे यह नहीं बताया कि लड़की कौन है।
पीते पिलाते 9 बज गए।
उसके बाद खाना खाया, उसके बाद विश्वभा अपने बेटे को लेकर अपने बेडरूम में सोने चली गई, और मैं अपने बेडरूम में आ गया।
अभी लेटा ही था कि नीरेन्द्र ने आकर कहा- सोना मत, मैं लेने जा रहा हूँ, अभी बस 10-15 मिनट में आता हूँ, ऊपर पोर्च वाले कमरे में उसे बैठा कर तुम्हें फोन कर दूँगा, बस चुपके से ऊपर आ जाना।
मैंने पूछा- अरे घर में ही? अगर विश्वभा ने देख लिया तो? साले मरवाएगा मुझे भी।
‘तू उसकी चिंता मत कर, बस तैयार रह, मैं अभी आया।’ कहकर वो चला गया।
और मेरे सोये अरमान फिर से जाग गए।
मैं बेसब्री से उसके फोन का इंतज़ार करने लगा।
कोई 20 मिनट बाद उसकी काल आई- हैलो, ऐसा कर चुपके से ऊपर आ जा।
मैं धीरे धीरे से चलता हुआ, ऊपर पोर्च के कमरे में पहुँचा तो कमरे में बड़ी हल्की सी लाइट थी।
मैंने देखा सामने बेड पर एक कोई 30 एक साल की गोरी सी औरत बैठी थी, उसकी पीठ मेरी तरफ थी, लाल साड़ी और पीछे ले बेकलेस लाल ब्लाउज़, सच कहूँ तो मैं तो उसकी पीठ देख कर ही हिल गया।
मैंने नीरेन्द्र को देखा।
‘देखता क्या है, जाकर पकड़ ले और ठोक दे।’
उसके कहने पर मैं आगे बढ़ा और पीछे से उस औरत को बाहों में भर लिया, अपने दोनों हाथों से उसके दोनों विशाल स्तन पकड़ के दबाये और उसकी नंगी पीठ पर बेतहाशा चुम्बनों की बौछार कर दी।
‘ओह जानेमन, यू आर सो ब्यूटीफुल… ओह गॉड तुम्हारे ये विशाल स्तन, जी करता है इन्हें काट कर खा जाऊँ…’ और पता नहीं क्या क्या बोलते मैंने उसके गाल पर भी चुम्बन ले लिया।
पर जब मैंने उसके होंठों को चूमने के लिए उसका मुँह अपनी तरफ घुमाया तो मुझे तो जैसे बिजली का झटका लगा।
‘विश्व… भाभी जी आप?’ मेरा तो मुँह खुला रह गया।
मैंने नीरेन्द्र से पूछा- यह सब क्या है यार?
तो वो हँसते हुये बोला- देख यार, हम दोनों मियां बीवी बहुत अडवेंचरस हैं, हमेश कुछ न कुछ नया करते रहते हैं।
‘पर यह क्या बकवास है?’ मैंने थोड़ा बनावटी गुस्सा दिखाते हुये कहा, हालांकि विश्वभा के बूब्स दबाते हुये और उसको चूमते हुये मुझे बहुत मज़ा आया था।
‘बकवास नहीं माई फ्रेंड, हम दोनों एक स्वप्पेर्स क्लब के भी मेम्बर्स हैं, मुझे यह देखना अच्छा लगता है कि कोई मेरे सामने मेरी खूबसूरत बीवी को चोदे और इसके सामने मैं और औरतों से सेक्स करूँ।
इसके बाद विश्वभा बोली- जब नीरेन्द्र ने मुझे आपकी प्रोब्लम बताई तो मैंने ही नीरेन्द्र को यह आइडिया दिया। दरअसल नीरेन्द्र को कुछ शौक और भी हैं जो मैं पूरे नहीं कर सकती उसके लिए हमें आपकी मदद चाहिए।
‘और शौक?’ मैंने आश्चर्यचकित होकर पूछा।
हालांकि मैं समझ तो गया था कि नीरेन्द्र गाण्डू है पर मैं उनके मुँह से सुनना चाहता था।
‘देख भोला मत बन, मुझे चोदने के साथ साथ चुदवाने का भी शौक है। और यह बात मैंने विश्वभा को सुहागरात पर ही बता दी थी।’
विश्वभा ने भी स्माइल देकर अपनी पति की बात में हामी भरी।
‘पहले तो सेक्स के दौरान यह कोई मोमबत्ती या प्लास्टिक की कोई चीज़ मेरी गाण्ड में डाल कर मुझे सुख देती थी, पर मुझे तो असली लौड़ा चाहिए था। इसी लिए हम स्वपेर्स क्लब के मेम्बर बने, पर वहाँ भी सबने विश्वभा को चोदने में दिलचस्पी रखी, मुझे किसी ने नहीं चोदा।’
मैं हैरान सा खड़ा ये सब सुन रहा था।
नीरेन्द्र ने आगे कहना शुरू किया- देखो, हम दोनों तुम्हारे गुलाम बन कर रहेंगे, तुम जब चाहे विश्वभा को इस्तेमाल करो, इसके सारे छेद तुम्हारे लिए खुले हैं, पर इसकी एवज़ में तुम्हें मेरे दो छेदों को भी शांत करना पड़ेगा। गाण्ड तो विश्वभा भी मरवा लेती है, पर मैं चाहता हूँ चूत तुम इसकी मारो पर गाण्ड मेरी मारो।
इससे पहले कि मैं कुछ भी कहता, विश्वभा उठके खड़ी हुई और उसने अपनी साड़ी उतारनी शुरू की।
साड़ी उतार के उसने अपना ब्लाउज़ और पेटीकोट भी उतार दिया, अब मेरे सामने वो सिर्फ ब्रा पेंटी में खड़ी कोई अप्सरा लग रही थी।
मगर दिक्कत यह थी कि अगर मैं उसको चोदता हूँ तो नीरेन्द्र की भी गाण्ड मारनी पड़ेगी।
इतने में विश्वभा चल के मेरे पास आई और मेरी कमर के गिर्द अपनी बाहों का घेरा डाल दिया और अपना सर मेरे सीने से लगा के बोली- अब मान भी जाओ न, प्लीज, जिस दिन से तुम हमारे घर आए हो, उसी दिन से मैं तुमसे प्यार करने के सपने देख रही थी, अब मौका मिला है तो तुम नखरे कर रहे हो।
विश्वभा के नर्म बदन का स्पर्श और उसके परफ्यूम की खुशबू मुझे बहका रही थी।
मैंने थोड़ा सोच कर कहा- मगर मैंने ऐसा आज तक नहीं किया है।
‘मुझसे भी तो आज पहली बार करोगे।’ विश्वभा ने कहा तो मैं तैयार हो गया।
मेरी स्वीकृति पाकर नीरेन्द्र खुश हो गया और आकर मुझसे लिपट गया।
‘तो सबसे पहले बाथरूम चलते हैं और अपने अपने बदन को साफ करते हैं।’
हम सब बाथरूम में गए, तीनों ने अपने अपने कपड़े उतारे, तीनों नंगे हो कर एक साथ नहाये।
आज पहली बार मैं किसी मर्द के सामने नंगा हुआ था।
नीरेन्द्र का लौड़ा मेरे लण्ड से एक डेढ़ इंच बड़ा था, मगर मेरा लण्ड उसके लण्ड से थोड़ा मोटा था।
नहाने के दौरान ही हम ने एक दूसरे को किस किया।
विश्वभा ने खुद अपने हाथों से साबुन लगा कर हम दोनों के लण्ड धोये।
नहा कर बदन पोंछ कर हम बेड पे आ गए।
मैं बीच में लेट गया और नीरेन्द्र और विश्वभा मेरे साइड पर।
मैंने सबसे पहले विश्वभा अपनी बाहों में भर लिया, मेरा तना हुआ लण्ड उसके पेट से लग रहा था तो नीरेन्द्र ने मुझे पीछे से अपनी बाहों में भर लिया वो भी अपना तना हुआ लण्ड मेरे चूतड़ों पे घिसा रहा था।
मैंने विश्वभा के होंठ चूसे फिर उसके स्तन दबाये और मुँह में लेकर चूसे।
हम तीनों का मूड बन रहा था।
‘हसित, तुम चूत चाट लेते हो?’ विश्वभा ने पूछा।
‘हाँ, बल्कि मुझे तो बहुत अच्छा लगता है।’ मैंने कहा।
तभी नीरेन्द्र बोला- और लण्ड चूस लेते हो?
‘नहीं’ मैंने कहा।
‘चुसवा लेते हो’ उसने पूछा।
‘हाँ, बड़े शौक से…’ मैंने कहा।
तो विश्वभा उठी और मेरे सीने पर आकर बैठ गई, फिर उसने अपनी चूत मेरे होंठों से लगा दी, मैंने पहले उसकी चूत को किस किया और बाद धीरे धीरे अपनी जीभ से उसकी चूत के इर्द गिर्द गोलाई में चाटते हुये जीभ को उसकी चूत की दरार में घुमाया तो जैसे विश्वभा को असीम आनन्द हुआ हो।
वो मेरे चेहरे पे बैठी, अपनी चूत हिला हिला कर चटवा रही थी, इतने में नीरेन्द्र ने मेरा लण्ड पकड़ा और अपने मुँह में ले कर चूसना शुरू कर दिया।
यह मेरे लिए बहुत ही आनन्ददायक अनुभव था कि एक ही वक़्त में चूत को चाटना और लण्ड को चुसवाना।
नीरेन्द्र बिल्कुल किसी प्रॉफेश्नल गश्ती की तरह मेरा लण्ड चूस रहा था।
थोड़ी देर चटवाने के बाद विश्वभा नीचे आ गई- बहुत हो गया, अब ऊपर आ जाओ।
विश्वभा नीचे लेट गई और उसने अपनी टांगें खोल दी, मैं उसकी टाँगों के बीच में आ गया।
नीरेन्द्र ने खुद अपने हाथ से मेरा लण्ड पकड़ा और विश्वभा की चूत पे रख दिया, मैंने थोड़ा सा धक्का लगाया तो लण्ड का सुपारा विश्वभा की चूत में घुस गया।
विश्वभा ने मेरे कंधों से पकड़ के मुझे नीचे को खींचा।
मैंने विश्वभा को बाहों में भरा तो नीरेन्द्र ने अपना लण्ड विश्वभा के मुँह के पास कर दिया।
अब मैं विश्वभा को चोद रहा था और विश्वभा नीरेन्द्र का लण्ड चूस रही थी।
बीच बीच में वो लण्ड छोड़ कर मुझसे किसिंग कर लेती और कभी अपनी जीभ मुझसे चुसवाती तो कभी मेरी जीभ चूसती जिससे मेरे मुँह में भी नीरेन्द्र के लण्ड का स्वाद आ रहा था।
फिर विश्वभा ने मेरे होंठों से अपने होंठ लगाए और जब हम एक दूसरे के होंठ चूस रहे थे, दूसरे हाथ से उसने नीरेन्द्र का लण्ड पकड़ा और हम दोनों के होंठों के बीच में पकड़ लिया, मतलब नीरेन्द्र के लण्ड की एक साइड मैं चूस रहा था और दूसरी साइड विश्वभा।
मैंने भी कोई विरोध नहीं किया तो विश्वभा नीरेन्द्र के लण्ड का पूरा सुपारा मेरे ही मुँह में घुसा दिया।
अब मैंने भी बिना किसी परेशानी के नीरेन्द्र के लण्ड को मुँह में ले लिया।
जब मुँह में ले लिया तो नीरेन्द्र ने पूरे मज़े ले कर मुझसे लण्ड चुसवाया और मैंने भी चूसा।
सच कहूँ तो मुझे बुरा भी नहीं लग रहा था।
फिर नीरेन्द्र बोला- विश्व, सैंडविच बनेगी?
‘हाँ, ज़रूर…’ उसने भी खुश हो कर कहा।
हम बेड से नीचे उतरे।
विश्व मुझे एक छोटे से स्टूल के पास ले गई और अपनी एक टांग स्टूल पर रखी और बोली- हसित, तुम आगे आओगे या पीछे?
मैंने कहा- आगे!
तो उसने मेरा लण्ड पकड़ कर अपनी चूत पर रखा और मैंने अंदर धकेल दिया।
नीरेन्द्र बाथरूम से तेल की शीशी उठा लाया और उसने काफी सारा तेल अपने लण्ड पे और विश्व की गाण्ड पे लगा दिया और फिर बड़े प्यार से अपना लण्ड उसने विश्वभा की गुदा में घुसाया, जिस से विश्वभा को थोड़ी तकलीफ तो हुई, पर वो पहले भी करवाती होगी सो ज़्यादा दर्द का एहसास उसे नहीं हुआ।
जब दोनों के लण्ड उसकी चूत और गाण्ड में घुस्स गए तो हम दोनों ने धीरे धीरे चुदाई शुरू की।
हालांकि ये कोई बहुत बढ़िया पोज नहीं था, मगर मज़ा आ रहा था, मैंने विश्वभा को किस किया तो नीरेन्द्र ने भी मेरा चेहरा पकड़ा और मेरे होंठों को चूम लिया पर अब मैं इस सब के लिए मन बना चुका था तो चुम्बन क्या… हम दोनों ने एक दूसरे के होंठ चूसे और एक दूसरे की जीभ भी चूसी।
‘बहुत जल्दी सीखते हो हसित, और क्या क्या नया करोगे आज?’ विश्वभा ने कहा।
‘देखते हैं…’ मैंने भी जवाब दिया।
उस पोज में थोड़ी सी चुदाई के बाद नीरेन्द्र बोला- हसित, अब मेरी गाण्ड की भी खुजली मिटा दे यार!
‘चलो देखते हैं।’ मैंने कहा तो विश्वभा ने मुझे बेड पे जाने का इशारा किया।
जब मैं बेड पे पहुँचा तो विश्वभा मेरे लण्ड पे अपने पति की गुदा में तेल लगा कर पूरा चिकना कर दिया।
नीरेन्द्र तो पहले ही घोड़ी बन चुका था।
मैंने कहा,’ ऐसे नहीं, घोड़ी मत बनो, पूरे लेट जाओ और विश्वभा तुम इसकी पीठ पे बैठ जाओ।
जब पोज बन गया तो विश्वभा ने मेरा लण्ड पकड़ के नीरेन्द्र की गाण्ड पे रखा- देखना नीरेन्द्र मोटा है, स्वाद स्वाद में कहीं अपनी गाण्ड का कबाड़ा न करवा लेना।
‘तुम चिंता मत करो, आने दो!’ नीरेन्द्र बोला।
‘ओके हसित, माँ चोद दो साले गाण्डू की!’ यह कह कर वो हंसी और मुझे आँख मारी।
मैंने सुपाड़े को अंदर को धकेला तो तेल की चिकनाई की वजह से बड़े आराम से सुपारा अंदर घुस गया, मगर नीरेन्द्र को थोड़ा दर्द हुआ, और वो कराह उठा।
‘अगर दर्द हो रहा है तो निकाल लूँ?’
‘अरे नहीं तुम लगे रहो…’ बल्कि विश्वभा ने मुझे डांट के कहा।
मैंने फिर ज़ोर लगाया और धीरे धीरे करके आधे से ज़्यादा लण्ड नीरेन्द्र की गांड में घुसेड़ दिया।
गाण्ड में नीरेन्द्र की मार रहा था बाहों में विश्वभा को भर रखा था, उसके बड़े बड़े विशाल सफ़ेदा आम जैसे स्तन मेरे सीने से चिपके हुये थे और मैं कभी उसके होंठ तो कभी उसकी जीभ चूस रहा था।
यह बात अलग थी कि गाण्ड मारने का स्वाद चूत मारने से भी ज़्यादा आ रहा था।
एक तो ड्राई और दूसरे बिलकुल टाईट।
फिर नीरेन्द्र बोला- रुको, अभी पोज बदलते हैं।
मैंने विश्वभा को छोड़ दिया और अपना लण्ड बाहर निकाल लिया।
अब नीरेन्द्र सीधा होके लेट गया और उसने अपनी टांगें ऊपर उठा ली।
विश्वभा ने फिर से मेरे लण्ड और उसकी गाण्ड पे तेल लगाया और मैंने जब लण्ड अंदर डाल दिया तो नीरेन्द्र ने मुझे बाहों में भर लिया- तू नहीं जानता यार आज तूने मुझे क्या सुख दिया है, आज मेरे दिल के सारे अरमान पूरे हो गए हैं।
यह कह कर नीरेन्द्र ने मेरे होंठ अपने होंठों में ले लिए और हम दोनों एक दूसरे के होंठ चूसने लगे।
तभी विश्वभा ने भी साइड से आकर हम दोनों को अपनी बाहों में भर लिया- अपने प्यार के चक्कर में मुझे मत भूल जाना, साले मादरचोद लौंडो!
हम तीनों हंस पड़े।
जब मेरा झड़ने वाला हुआ तो मैं बोला- मेरा होने वाला है, कहाँ छुड़वाऊँ?’
‘मेरी गाण्ड में, इसमे भी असीम आनंद आता है।’ नीरेन्द्र ने कहा।
मुझे क्या ऐतराज था, मैंने थोड़ा और बेदर्दी से घस्से मारे और अपना सारा वीर्य नीरेन्द्र की गाण्ड में झाड़ दिया।
जब मैंने अपना लण्ड बाहर निकाला तो विश्वभा ने मेरा लण्ड चाटना शुरू कर दिया और यहाँ तक कि जो वीर्य चूकर नीरेन्द्र की गाण्ड से बाहर आया वो उसे भी चाट गई।
मैं निढाल होकर गिर गया तो नीरेन्द्र ने विश्वभा को नीचे गिरा लिया और उसे चोदने लगा।
मैं लेटा रहा और उनको देखता रहा, नीरेन्द्र ने भी विश्वभा को तसल्ली से चोदा और अपना वीर्य विश्वभा के मुँह में छुड़वाया।
उसके बाद दोनों आ कर मेरे पास लेट गए।
‘कहो हसित, मज़ा आया?’ विश्वभा ने पूछा।
‘हाँ, बहुत…’ मैंने कहा।
‘क्या तुम्हारी बीवी हमें जॉइन करेगी…’ विश्वभा ने कहा।
‘पता नहीं…’ मैंने जवाब दिया।
‘तो पूछ कर देखना, अगर मान गई तो चारों एक साथ मज़े करेंगे।’ नीरेन्द्र ने कहा।
‘देखेंगे।’ मैंने बेमन से जवाब दिया।
‘कभी सोचा है कि कोई तुम्हारी गाँड मारे?’ नीरेन्द्र ने कहा।
‘तो तू अब मुझे चोदने की सोच रहा है?’ मैंने कहा।
‘तो हर्ज़ क्या है, जिस भी चीज़ से मज़ा आता हो वो कर लेनी चाहिए। ऐसा करते हैं थोड़ी देर में ट्राई करके देखते हैं।’
सच कहूँ तो अब मैं इसके लिए भी तैयार था।
‘देख या तो तू गाण्ड मरवा ले या अपनी बीवी को मुझसे चुदवा ले।’
‘और अगर वो इस सब के लिए नहीं मानी तो?’ मैंने कहा।
‘चलो जब तक वो नहीं मानती तब तक हम तीनों तो एंजॉय कर ही सकते हैं।’ यह कह कर विश्वभा ने फिर से मुझे गले से लगा लिया।
मतलब थोड़ी देर में एक और सेक्स सेशन की शुरुआत होने वाली थी और शायद मेरी गाण्ड का उदघाटन भी।
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