चिकने लौंडे की कुंवारी गांड में दो लौड़े- 1
(Cute Gay boy Sex Kahani)
क्यूट गे बॉय सेक्स कहानी में पढ़ें कि मैं लंबा चौड़ा पर चिकना गोरा लड़का हूँ. मेरे लहजे में नजाकत थी. मैं थोड़ा शर्मीला भी था. मेरे पापा के दोस्त के बेटों से मेरी मुलाकात हुई तो वे मुझे छेड़ने लगे.
दोस्तो, यह गे सेक्स कहानी है और थ्रीसम सेक्स पर आधारित है.
मेरा नाम सूर्य प्रताप है और मैं हिमाचल प्रदेश का रहने वाला हूँ.
अब मेरी उम्र 23 साल है, मेरा कद 6 फुट 3 इंच है. चेहरा एकदम कसा हुआ है. गुलाबी गोरा रंग, सुतवां नाक, पतले होंठ, बाहर निकली हुई जॉ-लाइन, मुलायम चमकीले फौजी कट बाल, गहरी भौंए, एकदम करीने से ट्रिम की हुई मूछें हैं. बलशाली भुजाएं, चौड़ी छाती, 30 इंच की कमर, ऊंची नीची पहाड़ी सड़कों पर लगातार दौड़ लगाने से मजबूत हुई जांघें और पिछवाड़े के मजबूत पुट्ठे और कड़क आवाज़ … कुल मिला कर मेरा शरीर एक फौजी के जैसा है,
पर मेरा फ़ौज में भर्ती होना अभी बाकी है.
मेरी ग्रेजुएशन पूरी हो चुकी है. एस एस बी का इंटरव्यू क्लियर हो चुका है, बस जॉइनिंग लेटर आना बाकी है.
मैं टीन ऐज में ऐसा नहीं था. मतलब हाइट शुरू से अच्छी थी, बचपन में दौड़ा भी करता था तो टांगें और पिछवाड़ा शुरू से मजबूत था.
चेहरा भी शुरू से ऐसा ही था, बस मूछें नहीं थीं और मेरा रंग इससे भी ज्यादा गोरा था.
कहीं कोई गाल पर हल्की सी भी चपत लगा देता था तो गाल ऐसे लाल हो जाते थे मानो बस अभी खून निकल आएगा.
सच में मेरा चेहरा हिमाचल के सेबों जैसा लाल हो जाता था.
मेरे लहजे में नजाकत और आवाज़ में मुलायमियत थी.
मैं थोड़ा शर्मीला भी था. फिर भी किसी एंगल से मैं लड़कियों जैसा नहीं लगता था.
मेरी उम्र में हिमाचल में सभी बच्चे कमोबेश ऐसे ही गोरे-चिट्टे हुआ ही करते हैं.
किसी कारण से परिवार में सिर्फ मैं और पापा ही थे.
पापा ने मेरी वजह से फ़ौज से रिटायरमेंट ले लिया था और अब हम शहर के आर्मी एरिया से थोड़ी दूर सिविल कॉलोनी में रहा करते थे.
जिस समय की मैं बात कर रहा हूँ, उस समय मैं 18 साल की उम्र पूरी कर चुका था.
उस समय आर्मी के ही पापा के एक सीनियर की पोस्टिंग हमारे ही शहर में आयी हुई थी.
वे मूलतः बिहार के रहने वाले थे.
अंकल ने आर्मी का डेयरी डिपार्टमेंट संभाल रखा था और पापा भी आर्मी से ही रिटायर्ड थे तो अंकल ने कुछ जुगाड़ करके हमारे घर के लिए दूध का इंतजाम आर्मी डेयरी से ही करवा दिया था.
उन अंकल के दो बेटे थे और उस समय वे 23 और 21 साल के थे.
बड़े बेटे का नाम रमेश और छोटे बेटे का सुरेश था, दोनों आर्मी की ही तैयारी कर रहे थे.
वही दोनों दूध देने हमारे घर आया करते थे, कभी छोटा बेटा तो कभी बड़ा बेटा.
हिमाचल के लड़कों के रंग रूप-नाक नक्श और बिहार के लड़कों के रंग रूप-नाक नक्श में जमीन आसमान का फर्क होता है.
उस समय वे दोनों उम्र के जिस पड़ाव पर थे, उस वक्त उन्हें मेरे जैसा गोरा चिट्टा और नर्म आवाज़ वाला शर्मीला लड़का पसंद आना ही था.
ज्यादातर समय दूध मैं ही लिया करता था … क्योंकि उनके आने के टाइम तक पापा अपनी मॉर्निंग वर्कआउट करके, नहा धो कर पूजा पाठ करने में लग जाते थे.
रमेश भैया या सुरेश भैया के घंटी बजाने पर मैं ही भगोना ले कर बरामदे में जाता और भगोने में दूध ले आता.
अब पापा और अंकल की वजह से उन दोनों भाइयों से मेरा भी एक सम्बन्ध सा बन गया था.
उनसे ऐसे ही हंसी मजाक भी हो जाया करती थी.
कभी वे मेरे गाल पर चिकोटी काट लेते थे, कभी कोई एडल्ट सी बात करके आंख मार देते थे.
मेरी उम्र इतनी तो हो ही गई थी कि मुझे उनकी एडल्ट बातें अन्दर ही अन्दर गुदगुदाती थीं.
ऐसे ही एक बार जब रमेश भैया ने दूध देने के लिए घंटी बजायी.
उस समय मैं नहाने जाने ही वाला था और शर्ट बनियान उतार चुका था.
वे दो बार डोरबेल बजा चुके थे तो मेरे पास इतना टाइम नहीं था कि मैं शर्ट वापिस पहन सकूँ.
मैं ऐसे ही बिना शर्ट बनियान के सिर्फ पजामे में ही दूध लेने चला गया.
वैसे भी हमारा मेन गेट ऐसा था कि बंद हो, तो बाहर से कोई बरामदे में नहीं देख सकता.
रमेश भैया ने जब मुझे ऐसे देखा तो सीटी मारी, फिर आंख मारी और हाथ से सेक्स का इशारा किया.
मैं शर्मा गया और चुपचाप भगोने में दूध भरवाने लगा.
दूध भरने के बाद अचानक उन्होंने मेरी गोरी गुलाबी छाती पर हाथ मारा और झट से मेरे लेफ्ट निप्पल को अपनी मोटी मोटी उंगलियों में पकड़ कर दबा दिया.
मेरे मुँह से उईईई की आवाज़ निकल गयी.
पर मैं अपने आपको बचा नहीं पाया क्योंकि मेरे हाथों में दूध से भरा भगोना था.
वे जोर जोर से हंस दिए.
गनीमत थी कि पापा अन्दर वाले कमरे में थे और उनको मेरी या रमेश भैया की आवाज़ नहीं सुनाई दी.
मैं झट से अन्दर घुसा और दूध को रसोई में रख कर नहाने भागा.
नहाने के बाद जब मैंने बाथरूम मिरर में देखा तो पाया कि मेरा लेफ्ट निप्पल एकदम सुर्ख लाल हो गया था, ताजे लव बाईट जैसा.
मैंने सोचा अगर पापा ने देख लिया तो पक्के से पूछेंगे इसलिए मैंने तुरंत डार्क कलर की शर्ट पहन ली.
फिर वह बात आई-गई हो गयी.
ऐसे ही एक बार की बात है कि मुझे कहीं जाना था तो मैं जल्दी नहा लिया था और बस बाथरूम से बाहर आया ही था कि डोरबेल बज गयी.
वह दूध का ही टाइम था तो रमेश भैया या सुरेश भैया ही होने वाले थे.
इसके पहले कि वह एक बार और बेल बजाते, मैंने झट से भगोना उठाया और टॉवल में ही दूध लेने चला गया.
दरवाज़ा खोला तो देखा कि बरामदे में सुरेश भैया थे.
उन्होंने मुझे ऐसे देखा तो एक नॉटी सी स्माइल पास की और भगोने में दूध डालने लगे.
मैंने शुक्र मनाया कि उन्होंने मुझे कोई चिकोटी नहीं काटी.
पर मैं जैसे ही दूध लेकर अन्दर जाने के लिए पलटा, उन्होंने मेरा तौलिया खींच दिया.
उनको पता नहीं था कि मैं अभी अभी नहा कर निकला हूँ और मैंने अन्दर कुछ नहीं पहना था.
तो उनके तौलिया खींचते ही मैं अपने ही बरामदे में नंग-धड़ंग खड़ा था.
वो तो शुक्र था कि मेन गेट भिड़ा हुआ था और बरामदे में सिर्फ सुरेश भैया और मैं ही थे.
मेरा मुखड़ा घर की ओर था तो भैया को सिर्फ मेरी गुलाबी गोरी गांड ही दिखी.
मैं झट से घर के अन्दर आ गया और अन्दर से चिटकनी लगा ली.
गेट के पास की खिड़की से भैया ने अन्दर देखा और बोले- सूर्य, तेरी गांड इतनी गोरी, इतनी गुलाबी इतनी मुलायम कैसे है रे … देख, मेरी पैंट में तो टेंट बन गया … देख तो बे!
मैंने कनखियों से देखा तो उनके ट्रेक पैंट में सच में बहुत मोटा सा उभार आ गया था.
मेरा टॉवल अभी भी बरामदे में पड़ा था, मैंने झट से खिड़की पर पर्दा खींचा और अपने रूम में आकर कपड़े पहन लिए.
बाहर आया तो देखा सुरेश भैया जा चुके थे.
उस दिन के बाद दोनों भाई किसी ना किसी बहाने मुझे छूने, गाल पर चूमने और चिकोटी काटने के मौके तलाशते रहते.
एक दिन रमेश भैया बोले- सुरेश बता रहा था कि तेरी गांड बहुत गोरी, मुलायम और गुलाबी गुलाबी है. सच में है क्या? मुझे भी दिखा ना … मेरे सामने भी एक बार नहा कर सिर्फ टॉवल लपेट कर आ ना … हा हा हा.
मैं शर्मा कर अन्दर भाग गया.
वैसे मैं इंट्रोवर्ट और शर्मीला था. रमेश भैया, सुरेश भैया के ये मजाक मुझे बुरे नहीं लगते थे, बल्कि मैं अन्दर ही अन्दर ये सब एन्जॉय करता था.
ऐसे ही एक बार, रमेश भैया जब दूध देने आए तो बोले- पापा ने तेरे लिए चॉकलेट भेजी है. मेरी पैंट जेब में रखी है, निकाल ले.
यह कहते हुए उन्होंने अपनी ट्रेक पैंट की लेफ्ट पॉकेट मेरी ओर कर दी.
उनको पता था कि मुझे चॉकलेट्स बहुत पसंद हैं. मैंने ख़ुशी ख़ुशी झट से उनकी पैंट की लेफ्ट पॉकेट में हाथ डाल दिया. पर हाथ अन्दर गया तो मैंने पाया कि अन्दर पॉकेट थी ही नहीं और मेरा हाथ सीधा उनके सेमी हार्ड लौड़े से छू गया.
जैसे ही मेरा हाथ उनके लौड़े से टच हुआ, मुझे करंट सा लगा और रमेश भैया खी खी करके हंसने लगे.
मुझे गुस्सा होते देख, बोले- सॉरी सॉरी, लेफ्ट में नहीं राइट जेब में है.
मैं बेवकूफ़ सा तुरंत उनके दूसरी साइड गया और उनकी दूसरी जेब में हाथ डाला, तो पाया ये जेब भी फटी हुई थी.
पर इस बार मैं हाथ बाहर निकाल पाता, उसके पहले ही रमेश भैया ने मुझे जकड़ लिया और मेरे हाथ को उनकी जेब से बाहर निकलने से रोक दिया.
फिर वह मेरे कान में धीरे से फुसफुसाते हुए बोले- पैंट के अन्दर ही मेरे लौड़े को थोड़ा सा मसल ना … नहीं तो तेरे गाल पर काट लूंगा.
उनके मजबूत हाथों में मेरा शरीर कसमसा रहा था.
दूसरे हाथ से वह मेरे हाथ को कलाई के ऊपर से पकड़े हुए थे, जेब के अन्दर ही अपने सख्त होते लौड़े पर जबरन रगड़वा रहे थे.
मैंने आज से पहले अपने अलावा किसी का लौड़ा नहीं देखा था और अभी तो मेरी हथेली में एक लोहे की रॉड जैसा सख्त लौड़ा था.
कुछ अचम्भे की वजह से, कुछ उत्सुकता की वजह से और कुछ गाल पर काटे जाने के डर की वजह से मैं उनके कहे मुताबिक पैंट के अन्दर ही जेब के माध्यम से उनके लौड़े को मसलने सा लगा.
फिर अचानक मेन गेट के बाहर किसी के खांसने की आवाज़ आयी तो भैया ने झट से मेरा हाथ निकलवा दिया और भगोने में मुझे दूध देने लगे.
फिर अंत में आंख मारते हुए और मुझे साइलेंट फ्लाइंग किस फेंकते हुए निकल गए.
उस दिन, मैं अलग ही दुनिया में था.
आज का पूरा वाकिया रह रह कर मुझे मन ही मन गुदगुदा रहा था.
उस दिन मुझे पहली बार सपने में रमेश भैया दिखे.
वे मेरे साथ सोये थे और मुझे मेरे शरीर पर बार बार चूम रहे थे.
बस उतने में ही मेरी नींद टूट गयी और देखा कि मेरा अंडरवियर किसी चिपचिपे पदार्थ से भीगा हुआ था.
वह मेरा पहला नाईट फॉल था.
उस दिन के बाद रमेश भैया, सुरेश भैया मेरे साथ कुछ ज्यादा ही मस्ती करने लगे थे.
शायद वह दोनों एक दूसरे से ये सब बातें शेयर करते थे कि वह मेरे साथ क्या क्या करते थे.
वे दोनों ही मेरे साथ ये सेक्सुअल प्रैंक्स करने के नए नए प्लान्स बनाते थे.
कभी घंटी बजा कर छुप जाते और जब मैं बाहर आता तो मुझे पीछे से दबोच लेते और मेरी गोल गोल खरबूजे जैसी गांड पर पैंट के अन्दर से ही अपना जवान मर्दाना सख्त लौड़ा रगड़ देते.
कभी मेरे लोअर में हाथ घुसेड़ कर जवान होते मेरे लौड़े और आंडों को अपनी बड़ी सी हथेली में मसल देते.
कभी मेरी गर्दन पर हल्का सा लव बाईट दे देते.
एक बार तो हद ही कर दी.
मेरे हाथ में दूध का भगोना था और सुरेश भैया ने जल्दी से मेरी शर्ट के ऊपर के दो बटन तोड़ते हुए मेरे निप्पल ही चूस डाले.
हाथ में भगोना था तो मैं उनको रोक भी नहीं पाया.
एक बार सुबह दूध देने नहीं आ पाए तो शाम को आए और अंधेरे का फायदा उठा कर मुझे वही बरामदे में झुका दिया.
मेरे बॉक्सर को नीचे खींच कर मेरे चूतड़ों पर जीभ से चाटने लगे.
मैं गे बॉय बनने की ओर अग्रसर था, मेरे लिए ये सब नया था तो मुझे ये सब अच्छा लग रहा था इसलिए मैं भी उनको नहीं रोकता था.
फिर एक दिन पापा को 2-3 दिन के लिए शहर से बाहर जाना था और वे मुझे ले जा नहीं सकते थे.
पापा ने उन अंकल से कहा- हो सके तो रमेश भैया या सुरेश भैया में से कोई एक हमारे घर पर रुक जाए.
अंकल ने हां कर दी.
पापा सुबह ही निकल गए.
दिन का खाना वे बना कर गए थे तो शाम तक तो कोई दिक्कत नहीं थी.
शाम को देखा कि दूध देने रमेश भैया और सुरेश भैया दोनों साथ आए थे.
भैया बोले- आज तो हमको ऑफिशियल न्योता मिला है. आज तो तेरी सुहागरात मनेगी.
मुझे पता तो था कि ये लोग आएंगे, पर ये नहीं पता था कि दोनों आ जाएंगे.
खैर … वे लोग घर से खाना भी लाए थे.
भैया बोले- आज का खाना तो मां ने बना दिया है, कल का खाना इधर ही बना लेंगे और परसों तो तेरे पापा आ ही जाएंगे. चल, जल्दी से खाना खा ले और होमवर्क करके सो जा.
मैंने दूध उबाला और हम सबने खाना खाया.
खाने के बाद उन्होंने मुझे घर से लायी हुई लस्सी दी.
‘ये सिर्फ तेरे लिए है. हमने तो घर पर ही पी ली थी. जल्दी से पी ले. इसमें चॉकलेट मिली हुई है.’ रमेश भैया बोले.
चॉकलेट का नाम सुन कर मैंने वह लस्सी गटगट करके पी ली.
पीते ही मुझे लगा कि उस लस्सी में कुछ तो अलग है.
मुझे शरीर में ठंडक मिलने की बजाय एक अलग सी ही गर्मी फील हो रही थी.
मेरा रोम रोम अंग अंग फटा जा रहा था. मैं कहीं सातवें आसमान पर उड़ रहा था.
मेरे बॉक्सर में अन्दर आग लगी हुई थी.
जवान होता हुआ मेरा लंड बुरी तरह से फड़फड़ा रहा था.
लाख कोशिश करने के बाद भी उसके अन्दर तनाव कम नहीं हो रहा था और ना वह झटके मारना बंद कर रहा था.
मेरी गांड में अलग कुलबुलाहट हो रही थी, गांड के अन्दर ही मसल्स फड़क रही थी.
सरदर्द में जैसे माथे की नसें चट चट करती हैं, वैसे ही कुछ चट चट मेरी गांड के अन्दर की मसल्स कर रही थीं.
मैंने रमेश भैया से पूछा- ये कैसी लस्सी है, मुझे अजीब सा लग रहा था!
इस पर सुरेश भैया बोले- कुछ नहीं, खाने में मिर्च और लहसुन थोड़ा ज्यादा होगा इसलिए तुझे गर्मी लग रही होगी.
‘नहीं भैया, सिर्फ गर्मी नहीं है, मेरा पूरा शरीर दहक रहा है. मेरे बॉक्सर में फुल टेंट बन रहा है और मेरे पिछवाड़े में भी आग सी लगी पड़ी है.’ मैंने कहा.
इस पर रमेश भैया बोले- एक काम कर, जाकर नहा ले. ठंडक मिलेगी.
उनके कहने पर मैं बाथरूम में घुस गया.
तभी बाहर से सुरेश भैया की आवाज़ आयी- चिटकनी मत लगाना, कभी कभी लोग ऐसे में बेहोश भी हो जाते हैं.
उनके कहे अनुसार मैं बाथरूम में बिना चिटखनी लगाए नहाने लगा.
पर शॉवर से लगातार गिरते ठंडे पानी के बाद भी मेरे शरीर में जो आग सी लगी हुई थी, वह कम होने का नाम नहीं ले रही थी.
तभी मुझे लगा कि पीछे कोई है. मैं पलटा तो देखा कि रमेश भैया खड़े थे, बिल्कुल नंग धड़ंग.
मैं कुछ कह पाता, उसके पहले ही भैया बोले- तेरे शरीर की आग ऐसे ठंडी नहीं होगी. वह हमारी ही लगाई हुई है. हमने लस्सी में एक बूटी पीस कर मिला दी थी, जिससे किसी के ना चाहने पर भी उसके शरीर में सेक्स की इच्छा जाग जाती है. वही इच्छा तुझे आग जैसी फील हो रही है. उसी के चलते ना तेरा लौड़ा बैठ पा रहा है और ना तेरी गांड में कुलबुलाहट कम हो रही है. इसका एक ही इलाज है, भरपूर सेक्स करना. अब तू बोल, तुझे इलाज चाहिए क्या?
शरीर के साथ साथ मेरा दिमाग भी अब मेरे कण्ट्रोल में नहीं था, मुझे बस उस अजीब सी फीलिंग से छुटकारा चाहिए था.
मैंने तुरंत हां में सर हिला दिया.
दोस्तो, क्यूट गे बॉय सेक्स कहानी के अगले भाग में मैं आपको अपनी गांड की चुदाई बताऊँगा.
आप मुझे बताएं कि आपका खड़ा हुआ या नहीं.
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क्यूट गे बॉय सेक्स कहानी का अगला भाग: चिकने लौंडे की कुंवारी गांड में दो लौड़े- 2
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