चूत चीज़ क्या है… मेरी गांड लीजिए-3

(Choot Cheej Kya Hai.. Meri Gand lijiye- Part 3)

अभी तक मेरी कहानी के पिछले भाग
चूत चीज़ क्या है… मेरी गांड लीजिए-2
आपने पढ़ा कि मेरी बीवी कविता के साथ मेरा तलाक होने वाला था लेकिन वो उससे पहले ही किसी और के साथ भाग गई। पड़ोस में बात फैल गई और जब बात फैल ही गई तो हर तरह की बात होने लगी। मुझे भी माँ से रोज़ कुछ न कुछ नया सुनने को मिलने लगा।

तलाक की वजह भी सब लोग जान चुके थे इसलिए मुझे घर से बाहर निकलने में भी शर्म महसूस होती थी। लेकिन क्या करता… किस-किस का मुंह बंद करता इसलिए चुपचाप निकल जाता और ऐसे ही आकर बिस्तर पर गिर पड़ता।
मैं डिप्रेशन में जाने लगा। विकी को भी मेरी चिंता होने लगी, विकी ने मुझे बहुत समझाया लेकिन मैं इस बेइज्जती को बर्दाश्त कर ही नहीं पा रहा था। दुकान धंधा बिजनेस सब चौपट हो गया।

मैं हर वक्त नशे में रहने लगा था। शक्ल पर 12 बज गए थे। मेरे घरवाले भी मुझे ताने देने लगे थे कि अपना ध्यान काम में क्यों नहीं लगाता। अगर बीवी ही चाहिए तो हम तेरी दूसरी शादी भी करवाने के लिए तैयार हैं।
लेकिन मैं अंदर से टूट चुका था।

विकी अभी कुंवारा था इसलिए मैं उसके साथ ही पड़ा रहता था। कई बार नशे में दोनों ने एक दूसरे के लंड को भी सहलाया लेकिन लंड को तो छेद में घुसे बिना चैन कहां आने वाला था। विकी ने कहा अगर तुझसे सेक्स किए बिना नहीं रहा जाता तो मेरी गांड ही मार ले लेकिन ऐसे अपनी ज़िंदगी बर्बाद करने पर क्यों तुला हुआ है।
उसकी यह बात सुनकर मुझे और बुरा लगा। हालांकि वो मेरे भले के लिए ही कह रहा था लेकिन मैंने कभी उसके बारे इस तरह से नहीं सोचा था।

उसने कहा कि अगर तुझे छेद ही चाहिए तो मैं पैंट निकाल देता हूं, चोद ले मुझे।
मैं हैरान था कि ये कैसी बातें कर रहा है, मैंने कहा- तू पागल हो गया है क्या? टाइम पास करने तक तो ठीक था लेकिन मैं इतना भी गिरा हुआ और गंदा काम नहीं करूंगा कि दोस्त की ही गांड मार लूं।
उसने कहा- तो फिर और तू चाहता क्या है?
मैंने कहा- अकेलापन…

कहकर मैं वहां से उठकर चला गया, वो मुझे आवाज़ लगाता रहा लेकिन मैं नहीं रुका। कुछ दिन तक मैंने विकी से भी बात नहीं की। उसके फोन भी आए लेकिन मैंने फोन पर भी बात नहीं की।
एक दिन वो मेरे घर आ गया, मैं ऊपर अपने कमरे में पड़ा हुआ था, वो आकर मेरे पास बेड पर बैठ गया लेकिन मैं उससे नाराज़ था।
विकी ने कहा- मेरी शादी तय हो गई है।
उसकी ये बात सुनकर मुझे खुश होना चाहिए था लेकिन बजाये खुश होने के मेरे मन में एक और बात ने घर कर लिया। अब तक उसके साथ किसी तरह जिंदगी बीत रही थी लेकिन अब उसकी भी शादी होने जा रही है।
मैंने ऊपरी मन से कहा- अच्छी बात है, पार्टी लूंगा बड़े वाली।

मेरे चेहरे को देखकर वो मुस्कुराया और कहा- हां, तू जैसी चाहे वैसी पार्टी ले लेना… लेकिन ऐसे बेवड़ों की तरह जीना छोड़ दे।
मैंने कहा- शादी कब है?
उसने बताया कि अगले महीने ही है।

कुछ देर हम दोनों में बातें होती रहीं और वो उठकर चला गया। देखते ही देखते उसकी शादी का दिन भी आ गया।
3-4 दिन मैं उसी के घर पर बिज़ी रहा, खूब मस्ती की, दारू पी और नाच गाना हुआ। जब शादी होकर दुल्हन घर आ गई तो मैं वापस घर आने लगा। रात के 12-1 बजे का समय हो चुका था।

कुछ दिन तो अपने आप से दूर भागता रहा लेकिन जब ध्यान आया तो मेरे अकेलेपन ने मुझे फिर से घेरना शुरु कर दिया। अब तो विकी की भी शादी हो गई है, अब मैं बिल्कुल अकेला हो गया था। मैंने गाड़ी की डिक्की से दारू की बोतल निकाली और सूखी ही गटकने लगा।

गाड़ी के अंदर घुटन महसूस हो रही थी इसलिए मैंने गाड़ी सड़क पर एक तरफ लगाई और दारू की बोतल हाथ में लेकर बाहर आ गया। साथ ही बड़ा सा गंदा नाला था, उसके आस-पास काफी झाड़ियां और कीकर के पेड़ थे। मैं नाले के पुल पर आकर शराब पीने लगा और रात के अंधेरे में पानी के अंदर चमकते हुए चांद को देखने लगा।

पुल पर सेफ्टी के लिए जाली लगी हुई थी, सड़क पर गाड़ियों का आना-जाना अभी लगा हुआ था। दिल्ली देर रात तक जागती रहती है। पानी को देखते-देखते पता नहीं क्या मन किया कि इसके अंदर छलांग लगा दूं।
लेकिन जाली लगी होने के कारण वहां से ऐसा करना संभव नहीं था।

मैं साइड में चलकर पुल के साथ बनी पगडंडी पर उतर गया जहां पर काफी घनी झाड़ियाँ थीं। मैंने बोतल पानी में फेंकी और छपाक की आवाज़ हुई।
जैसे ही कूदने के लिए आगे बढ़ा किसी ने पीछे से मेरा हाथ पकड़ लिया।

मैंने मुड़कर देखा तो सड़क पर लगी लाइटों से आ रही रोशनी में उसकी शक्ल दिखाई नहीं दे रही थी। बदन पर फैंसी ड्रेस और खुले हुए लंबे बाल, देखने में लड़की लग रही थी।
एक बार तो मैं थोड़ा सहमा लेकिन जब उसने मुंह खोला और मुझसे पूछा- कहां जा रहे हो राजा? खुला है मेरे दिल का दरवाज़ा…
मैं हैरान… ये क्या बला है।

मैं हिम्मत करते हुए पूछा- कौन हो तुम…
उसने कहा- रोशनी में आकर देख लो।
वो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे ऊपर ले गई। मैंने जेब से फोन निकाला और टॉर्च उसके चेहरे पर मारी तो दिखाई दिया।

उसने होठों गहरे लाल रंग की लिपस्टिक लगा रखी थी, कसा हुआ सूट जिसमें से उसके चूचों की दरार भी दिखाई दे रही थी। नीचे स्किन टाइट पजामी थी और पैरों में चमकीली सैंडल।
मैंने कहा- कौन हो तुम?
उसने कहा- आओ तो सही।

वो मुझे पकड़कर ऊपर ले आई और जाली के पास लाकर खड़ा कर दिया।
उसने कहा- मेरा नाम रवीना है।
मैंने कहा- तो मुझसे क्या चाहिए?
उसने लंबे बालों में हाथ फिराते हुए कहा- मुझे तो कुछ नहीं चाहिए लेकिन आप देख लो आप कुछ चाहिए हो तो…
कहते हुए उसने मेरी पैंट के ऊपर से ही मेरे लंड को सहला दिया।

मैं नशे में तो था ही इसलिए लंड भी तुरंत खड़ा हो गया। वो देखने में भी काफी सुंदर थी लेकिन आवाज़ लड़कों जैसी लग रही थी।
मैंने कहा- चलो गाड़ी में बैठकर बात करते हैं।
हम दोनों गाड़ी में बैठ गए।

अंदर बैठते ही उसने मेरे लंड पर हाथ फिराना शुरु कर दिया, लंड भी जोश में आ गया। मैंने कहा- मुंह में ले लो अब जल्दी।
उसने पैंट की जिप खोली और अंडरवियर की इलास्टिक के ऊपर से लंड को बाहर निकाल लिया और चूसने लगी।

मैंने सीट पीछे फैला दी और हाथों को सीटे के पीछे बांधकर लंड चुसवाने लगा। नशे के साथ-साथ लंड चुसवाने का मज़ा अलग ही मस्ती भर रहा था। मैंने उसकी छाती को टटोला तो उसमें कुछ कपड़े जैसा महसूस हुआ।
मैंने समझ गया कि ये कोई लड़का है जो लड़की बनकर घूम रहा है।

उसने मेरी पैंट का हुक खोलकर नीचे से मुझे जांघों तक नंगा कर दिया और मेरे लंड की गोटियों को जीभ से चाटने लगा। कभी गोटियों को मुंह में भर लेता तो कभी लंड को पूरा मुंह में ले जाता। कुछ देर तक लंड चूसने के बाद उसने अपनी पजामी निकाली और पर्स से कंडोम निकालकर मेरे लंड पर लगा दिया।

मैं समझ गया कि वो गांड में लंड लेना चाहता है। दिल्ली में रात को अक्सर इस तरह के लोग सड़कों पर मैंने पहले भी देखे थे लेकिन कभी किसी से बात नहीं हुई थी।
मैंने उसके साइड की सीट को भी बिस्तर की तरह नीचे फैला दिया और उसको वहीं पर लेटा कर उसकी गांड पर लंड रख दिया। एक हाथ से उसकी गांड पर लंड को सेट किया और दूसरे हाथ को उसकी छाती की तरफ ले गया। मैंने लंड अंदर घुसा दिया और उसके मुंह से आह्ह्ह्ह्… निकल गई।

“हाय जालिम… आराम से कर ना… ऐसी भी क्या जल्दी है।” उसने कामुक आवाज़ निकालते हुए कहा।

मैं पूरे लंड को उसकी गांड में धकेलते हुए उसके ऊपर लेट गया और दोनों हाथों से उसकी छाती को दबाने की कोशिश करते हुए उसकी गांड में लंड आगे पीछे करने लगा। बहुत दिनों बाद लंड को छेद मिला था इसलिए काफी मज़ा भी आ रहा था।

मैंने रवीना का चोदना चालू कर दिया, वो भी मेरा साथ देने लगी।
“आहह्ह… उम्म्ह… अहह… हय… याह… ऊई माँ… आराम से…करो… बहुत मजा़ आ रहा है।”
उसकी गांड मारते हुए मुझे भी काफी मज़ा आ रहा था।

5 मिनट तक उसकी गांड को पेलने के बाद लंड ने अकड़ना शुरु किया और कंडोम के अंदर वीर्य भर दिया। मैं शांत हो गया और वो भी।
मैं उसके ऊपर थक कर ऐसे ही पड़ा रहा।
जब मैं नहीं उठा तो उसने कहा- सारी रात गाड़ी में गुजारने का इरादा है क्या?
मैं उठा और कंडोम निकालकर गांठ मारकर बाहर फेंकते हुए बोला- तुम बताओ तुम्हारा क्या इरादा है।
उसने कहा- मेरा तो धंधा यही है… बाकी तू बंदा तो सही लग रहा है फिर कूदने क्यों चला था?

मैं कुछ देर के लिए अपने गम को भूल गया था और जब उसने पूछा तो मेरी आंखों से आंसू छलक पड़े। मैंने उसको बताया कि मेरी बीवी मुझे छोड़कर चली गई। एक दोस्त था उसकी भी शादी हो गई। घरवाले भी मुझे ताने देते रहते हैं। इसलिए जिंदगी से हारकर उसको खत्म करने चला था।

मेरी बात सुनकर उसे भी काफी दर्द महसूस हुआ। उसने मेरे बालों में हाथ फिराया और कहा- तो चूत के पीछे अपनी जिंदगी ही खो दोगे क्या… चूत चीज़ क्या है… मेरी गांड लीजिए…
कहते हुए वो ठहाका मारकर हंस पडी। और मेरे गालों पर हल्का से तमाचा मारते हुए कहा- पागल तुम्हारे पास किस चीज़ की कमी है। अच्छे खासे मर्द हो, घर-परिवार है। दोस्ते रिश्तेदार हैं… इतनी इतनी सी बात के लिए अपनी जिंदगी को खत्म करने की क्या ज़रूरत है। मुझे देखो, न घर है, न परिवार, समाज में मज़ाक बनाया जाता है। फिर भी जी रही हूं।

मैंने पूछा- तुम लड़का हो या लड़की?
उसने कहा- मैं शरीर से तो लड़का ही पैदा हुआ था लेकिन मेरे शौक लड़कियों जैसे रहे हैं हमेशा, मेरे घर वाले मेरी इन आदतों को हज़म नहीं कर पाए और उन्होंने समाज में अपनी इज्जत को मेरी जिंदगी से ज्यादा कीमती समझा। इसलिए अब मुझे इस तरह से गुज़ारा करना पड़ रहा है। लेकिन उस झूठे दिखावे मुझे ये जिंदगी हज़ार गुना ज्यादा बेहतर लगती है। अपने जैसे लोगों में शामिल होकर मैं अपने तरीके से जी तो रही हूं। और क्या चाहिए… लोग बोलते हैं तो बोलते रहें क्या फर्क पड़ता है। भगवान ने दुनिया में भेजा है तो दो वक्त की रोटी का इंतज़ाम भी करके ही देता है।
तुम तो फिर भी अच्छे खासे परिवार से हो।

उसकी बातों ने मुझे काफी हौसला दिया और मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि मैं कितनी बेवकूफी भरी हरकत करने चला था जो अपनी ही जिंदगी का दुश्मन बन बैठा था। दुनिया में आए हैं तो जीने के लिए ही ना… फिर क्यों किसी की वजह से अपनी जिंदगी को नर्क बनाएं।

मैंने रवीना का नम्बर लिया और सुबह 4 बजे के करीब घर पहुंचा। उस रात मुझे काफी अच्छी नींद आई और मैं दिन भर सोता ही रहा। धीरे-धीरे मेरा डिप्रेशन भी दूर होने लगा और जब भी सेक्स का मन करता मैं रविना के पास चला जाता था। उसने मुझे अपने कई और दोस्तों से भी मिलवाया। अब मुझे चूत की ज़रूरत कभी महसूस नहीं होती। गांड मारने में जो मज़ा आता है वो शायद अब मुझे चूत मारने में भी ना मिले। और ऐसी चूत का क्या फायदा जो आपसे आपको ही छीन ले।

शुक्रगुज़ार हूं बनाने वाले का जो उस रात उसने रवीना को मेरे पास भेजा, नहीं तो ये कहानी बताने के लिए शायद आज मैं ज़िंदा ही ना होता।

जिंदगी को कभी बोझ न समझें, यह ऊपर वाले की नेमत है, इसको जी भर कर जिएँ… बाकी सब तो आनी-जानी चीजें हैं।

मैं अंश बजाज फिर लौटूंगा एक और कहानी के साथ… पढ़ते रहें आपकी पसंदीदा सेक्स साइट अंतर्वासना सेक्स स्टोरीज… यह कहानी उन सभी समलैंगिकों को समर्पित है जिनको कभी अपनों का प्यार और परिवार का सहारा नहीं मिला लेकिन फिर भी जिंदगी में खुशियों को ढूंढकर जीना सीख ही गए हैं।
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