डाक बंगले में गांड चुदाई- 2

(Dak Bungalow Me Gand Chudai - Part 2)

आजाद गांडू 2020-11-14 Comments

बंगले वाले बाबू ने मेरी गांड को तड़पा दिया था. एक दिन गांव में स्टूडेंट्स की टीम आई. उनके साथ लेक्चरर भी थे. क्या उस दौरान मेरी गांड की प्यास बुझ पाई?

कैसे हो प्यारे दोस्तो, मैं अपनी कहानी का दूसरा भाग प्रस्तुत कर रहा हूं. इस कहानी के पहले भाग
डाक बंगले में गांड चुदाई- 1
में मैंने बताया था कि मैं गांव में नौकरी कर रहा था और वहां के डाक बंगले में रहने वाले शेखर बाबू लौंडेबाज थे.

उन्होंने मेरे सामने अपने कुक भूरा और एक दूसरे युवक सुनील की गांड मारी. एक रात को उन्होंने मेरी गांड में भी लंड रगड़ा लेकिन वो चूतड़ों के ऊपर ही झड़ गये. मेरी गांड प्यासी रह गयी.

अब आगे:

उसके बाद दिन ऐसे ही बीतते गये और हल्की सर्दियों का मौसम आ गया.

एक दिन डाक बंगले पर स्टूडेंट्स की टीम आई. बीस-पच्चीस स्टूडेंट्स थे. साथ में उनके गाईड लेक्चरर सर भी आए हुए थे.

वे नदी पर घूमने गए. जंगल देखा और फिर रात में उन्होंने कैम्प फायर किया. सब ने शाम का नाश्ता किया.

उसके बाद हम सब भी उनके साथ नाचे-गाए।
सबसे बाद में हम खाना खाने बैठे.

भूरा ने खीर परोसते समय मेरी गोद में गिरा दी. गर्म गर्म खीर थी. शेखर जी ने तुरंत जग से पानी उड़ेल दिया.
मैं पूरा भीग गया. सारे कपड़े उतारे.

वहां मेरे और कपड़े नहीं थे. गेस्ट साहब के पास एक मोटी टॉवेल थी, वह मैंने लपेट ली.

भूरा ने मेरे साथ मिल कर मेरी पैंट, अंडरवियर और बनियान आदि मिलकर धुलवा दिये.
हमने कपड़े सूखने के लिए डाल दिये.

शेखर जी के कमरे में हमने एक गद्दा नीचे डाल लिया. उस पर मैं और शेखर जी सोने लगे तो गेस्ट साहब भी हमारे साथ लेटने लगे.

हमने मना किया लेकिन वो नहीं माने. फिर हमने भी ज्यादा नहीं कहा.

उसके बाद कमरे की लाइट बंद कर दी और हम सोने लगे.

रात को मुझे महसूस हुआ कि कोई मुझसे चिपका हुआ है. मेरी गांड पर हाथ फेर रहा है.

फिर वो मेरी गांड पर धीरे धीरे उंगली फिराने लगा. फिर उसने शायद उंगली पर थूक लगाया और मेरी गांड में अंदर डालने की कोशिश करने लगा. फिर उंगली अंदर दे दी और अंदर बाहर करने लगा.

उसने फिर मेरी कमर को पकड़ लिया और मुझे औंधा होने का इशारा किया.
फिर उसने अपने लंड पर थूक लगाया और मेरी गांड पर लगा दिया.
उसका सुपारा मेरी गांड के छेद पर लगा था. मुझे गुलगुला सा लगा.

अब उसने कान के पास मुंह करके धीरे से कहा- डाल रहा हूं, ढीली रखना!
इतना बोलकर उसने लंड अंदर पेल दिया.

मेरे मुंह से न चाहते हुए भी आ-आ की आवाज निकल ही गई. तब तक उसने पूरा डाल दिया था.

वो फुसफुसाया- बहुत अच्छे, बस ऐसे ही ढीली किये रहो.
मैंने टांगें चौड़ी कर लीं.

वह बोला- वाह यार तुम तो मस्त हो, कलाकार हो.
उसकी आवाज से मैं पहचान चुका था कि लेक्चरर साहब मेरी गांड मार रहे हैं.

अब वह धीरे धीरे लंड की ठोकरें दे रहा था.

दो तीन मिनट के बाद वह रुका और लंड को गांड में डाले ऊपर लेटा रहा.
मैंने गांड में हरकत शुरू कर दी. उसने मेरा चुम्बन ले लिया.

अब वह झड़ रहा था. उसके लंड में लगते हल्के झटके मुझे भी महसूस हो रहे थे. फिर वो लंड निकाल कर लेट गया.

हम देख नहीं पाए कि जब गांड मराई चल रही थी तो हूं … हूं की आवाज से शेखर जाग गए थे.

वे उठे और पेशाब करने गए. तब तक लेक्चरर निपट गए थे.

ऐसे में उन्होंने सोचा मैं भी नम्बर मार लूं और वे मेरे ऊपर चढ़ बैठे. जाने कब से मेरे पर मरते थे. पटा रहे थे मुझे क्योंकि गांड मेरी चिकनी तो थी ही.

उन्होने जल्दी से अपना लंड गांड पर टिका दिया ओैर जोर के धक्के से पेल दिया लंड मेरी गांड के अंदर.
मैं चिल्लाया- आआ … ईई … धीरे … धीरे!

वे थोड़ा ठहरे और मेरे से बोले- सॉरी.
उसके बाद दोबारा से चालू हो गये. गपागप मेरी गांड चोदते हुए वो ऐसे लगे पड़े थे कि पिछले दिनों की सारी कसर आज ही पूरी कर लेंगे.

झटके बहुत तेज थे और मेरी गांड फिर से गर्म हो चुकी थी. कुछ देर के बाद गांड में जलन होने लगी. शायद अंदर से छिल गयी थी. कुछ देर की चुदाई के बाद फिर शेखर भी मेरी गांड में ही झड़ गये.

सुबह हम जागे तो मैं फ्रेश हुआ और फिर अपने निवास पर जाने लगा.

लेक्चरर साहब निलेश (काल्पनिक नाम) मेरे साथ ही चलने लगे. कहने लगे कि यहां भीड़ बहुत है और मेरे निवास पर ही नहायेंगे वो.

फिर हम मेरे घर पहुंचे.
वहां मैंने कपड़े उतारे और मैं ब्रश करने लगा.

निलेश मेरे चूतड़ों को सहलाने लगे.
मुझे लगा कि ये फिर से मेरी गांड मारेंगे अब.
फिर वो मेरे से लिपट गये.
मैंने जल्दी से ब्रश रखी और मुंह धोने लगा.

इतने में तो निलेश साहब ने मेरी गांड में लंड लगा दिया और वो मुझे चुम्बन करने लगे थे.
मेरा लंड भी खड़ा हो गया. मैं उनकी ओर घूमा तो उन्होंने मेरे लंड को हाथ में पकड़ लिया.

इससे तौलिया खुलकर नीचे गिर गया.
उन्होंने लंड को हाथ में भरा और उनके मुंह से पहले शब्द ये ही निकले- आह्ह … बहुत मोटा है।
फिर उसको मरोड़ते हुए बोले- ये तो सख्त भी बहुत जल्दी हो गया.

अब मेरे मुंह से निकल गया- लोगे क्या?
वे भी शायद इसके लिए तैयार ही थे, बोले- डाल दो.

फिर वे बाहर आकर पलंग पर लेट गये. अपने चूतड़ ऊपर कर लिये जैसे चुदने के लिए आमंत्रित कर रहे हों. फिर मैंने तेल की शीशी उठाई और क्रीम भी उठा ली.

वो हंसकर बोले- इतना इंतजाम? इस सबकी जरूरत नहीं है.
फिर उन्होंने अपनी पैंट को खुद ही उतार दिया. पास जाकर मैंने उनकी चड्डी भी खींच दी. उसके चूतड़ों को मसलने लगा. फिर मैं जीभ से उनके चूतड़ चूसने लगा.

मैंने दो-तीन बार उनकी गांड भी चाट ली.
फिर मैंने अपने हथियार पर तेल मला. दो उंगलियों पर क्रीम लगा कर उनकी गांड में डाली व अंदर बाहर करने लगा. फिर लंड पर थूक लगा कर, थोड़ी क्रीम मल कर उनकी गांड पर लंड को सेट किया और पेल दिया.

वो पहले से ही गांड चौड़ी और ढीली किये लेटे हुए थे. बिना कोई हल्ला मचाए पूरा लंड ले गए.
शायद मेरी तरह ही पुराने गांडू थे।

मैं लंड डाल कर उन पर चुपचाप लेटा रहा. पीछे से बांहें निकाल कर उन्हें सीने से कस लिया.

अब उनके गालों को धीरे-धीरे होंठों से सहलाया. एक हाथ से उनकी गर्दन थोड़ी टेढ़ी की और उनके होंठ चूसने लगा.
उनसे पूछा- मजा आ रहा है? लग तो नहीं रहा?

वे प्रसन्न हुए और उनकी गांड धीरे धीरे हरकत करने लगी.
थोड़ी टाईट होती और फैलती रही.

फिर वे एकदम जोश में आ गए और गांड चलाने लगे. चूतड़ ढीले छोड़ते और कसते हुए लंड को अपनी गांड में जकड़ने की कोशिश करने लगे.

फिर मैं भी धक्के देने लगा और बोला- थोड़ी ढीली रखो.
मैंने फिर से पूछा- लग तो नहीं रहा है?
वो बोले- यार कितनी बार पूछोगे? तुम पेलते रहो, मजा आ रहा है. इतनी प्यार से तो कोई नहीं मारता.

वे फिर चूतड़ उचकाने लगे. मैंने पलंग के सिरहाने रखा तकिया उठा कर उनकी कमर के नीचे रखा. इससे चूतड़ थोड़े ऊंचे हो गए.
वे बोले- मैं घोड़ी बन जाऊं?
मैंने कहा- जरूरत नहीं है. ये ही काफी है.

फिर मैं लेटा रहा और वे भी गांड चौड़ी किये मस्ती में लेटे रहे.

तब तक मेरी निगाह दूसरी ओर गयी. भूरा मेरे कमरे में खड़ा था. न जाने कब से गांड चुदाई देख रहा था.

मैंने उसे पास बुलाया. उसके बरमूडा पर हाथ फेरा.
उसका लंड खड़ा था.

अंदर हाथ डाल कर मैंने लंड को बाहर निकाल लिया- अरे! तेरा तो खड़ा हो गया।

निलेश बोले- भूरा भाई! खड़ा है तो डाल दे।
मुझे भूरा का लंड पकड़ कर काफी उत्तेजना हो गयी थी और मैं इतने में ही निलेश की गांड में झड़ गया. फिर मैं उठा और भूरा का बरमूडा नीचे कर दिया.

उसका लंड तना हुआ चमक रहा था.
मैंने गिड़गड़ाते से स्वर में कहा- निलेश जी, क्या ये डाल सकता है आपकी गांड में? उसके बाद अगर चाहें तो आप भी इसकी ले सकते हैं.

मुझे डर था कहीं निलेश इस बात का बुरा न मान जाये लेकिन वो प्यार से तैयार हो गये.
अब भूरा नखरे करने लगा- नहीं सर जी. आप लोग कर लो.

मैंने कहा- साले नखरे मत कर ऐसे वक्त पर!
फिर मैंने उसको अपने पास खींचा और उसको निलेश की गांड पर बैठा दिया. फिर मैंने उसके लंड पर तेल मला. मलते हुए ही उसके लंड की अकड़न एकदम से आसमान छूने लगी थी.

मैंने हाथ से उसका लंड निलेश की गांड के छेद पर टिका दिया. उसने फिर मेरा हाथ हटाया और धक्का दे दिया. निलेश की गांड में लंड जाता हुआ मैं साफ साफ देख रहा था. देखते देखते भूरा ने पूरा लंड उतार दिया. फिर वो उसकी गांड मारने लगा.

निलेश भी खुद चूतड़ उचका कर चुद रहा था. उसके पांच मिनट के बाद भूरा का लंड भी निलेश लेक्चरर की गांड में खाली हो गया.

फिर मैंने भूरा से पूछा- कहो, कैसे आये थे?
उसने बताया कि वो मेरे और निलेश जी के लिए परांठे और आमलेट लेकर आया था.

फिर हमने स्नान किया. उसके बाद भूरा ने रूम साफ कर दिया. फिर सारे बर्तन धोये और फिर वो भी वहीं पर नहाया.

हमने चाय नाश्ता किया.
मैं निलेश से बोला- भूरा मैट्रिक पास है. आप इसका बाहरवीं फॉर्म भरवा दें.
वो बोले- हां ठीक है, अभी तो फॉर्म भरे जा रहे हैं.
मैंने निलेश जी को 500 रूपये दे दिये.

उसके बाद उन्होंने भूरा को ओरीजनल कागजात लेकर आने को कहा.
मैं अपने ड्यूटी केंद्र पर बैठ गया.

निलेश जी भी फिर भूरा के साथ ही जाने लगे.

मैंने भूरा से कहा- साहब को खुश कर देना.
फिर मैंने निलेश से कहा- इसे खाली मत छोड़ना आप. मैं पूछूंगा आपसे बाद में।
वो दोनों मुस्करा कर चले गये.

दोस्तो, फिर इस घटना के तीन साल बाद की बात है कि मेरा वहां से ट्रांसफर हो गया. मैं दूसरी जगह जाने लगा. मैं ग्वालियर स्टेशन पर बैठा हुआ ट्रेन का इंतजार कर रहा था.

वहीं पर 10-15 फौजियों का एक ग्रुप भी था. अचानक एक सजीला जवान मेरे करीब आया और मुझे सैल्यूट किया.
उसने मुझे जय हिन्द बोला तो मैं देखकर चौंक गया और मेरे मुंह से निकला- भूरा!

वो बोला- मैं बड़ी देर से आपको देख रहा था. सोच रहा था कि आप ही बुलायेंगे. फिर मैं खुद ही आ गया.
मैं- अरे मैंने सोचा न था कि ये तुम होगे. इतने सारे जवानों में तुम्हें पहचान ही न पाया. बताओ, कैसे हो?

फिर वो मुझे बाकी जवानों से मिलवाने ले गया.
तब मुझे याद आया कि डाकबंगले पर एक बार फौजी जवानों की टुकड़ी आई थी.
उन्हें जंगल में कुछ अभ्यास करना था. वे दस पंद्रह दिन रुके थे. नीचे मैदान में उन्होंने तम्बू गाड़े थे.

उनके अफसर शेखर जी के करीब थे इसलिए मेरी भी जान पहचान हो गयी. उन्हें काम के लिए कुछ लड़कों की जरूरत थी. मैंने गांव से उन्हें चार पांच लड़के ढुंढवा दिये. उन्हीं में भूरा भी था.

साहब को सबने मक्खन लगाया. काम किया. उन्हीं साहब ने मेरे पूछने पर बताया कि इसमें क्या क्या जरूरी है- दौड़, लम्बी कूद, ऊंची कूद और सामान्य ज्ञान आदि के लिखित पेपर. लड़कों ने ध्यान से सुना।

मैंने उनके साथ तीन महीने तक रोज दौड़ा, कुदाया, पेपर रटाए. जब भर्ती खुली तो वही अफसर टीम में थे. मुझे पहचान गए. हमारे गांव से छः में से चार लड़के सिलेक्ट हुए. बड़ी उपलब्धि थी।

वे सब लोग इसे मेरी सिफारिश समझते थे जबकि वे निरंतर तीन महीने की प्रैक्टिस से कम्पटीशन में सिलेक्ट हुए थे, जिसमें मेरा सहयोग तो था पर लड़कों की मेहनत भी थी।

मैं तीन महीने रोज उनके साथ दौड़ा, कूदा, उन्हें डांटा, गालियां दीं।

आज भूरा को फौजी ड्रेस में देख मन प्रसन्न हुआ।
भूरा ने मेरा परिचय कराया- हमारे सर जी!
साथी- अच्छा तेरे अफसर, जिनकी तू बात करता था।

भूरा- नहीं, वो अफसर तो खुर्राट गांडफाड़ू है, सर जी तो मेरे को अपने दिल रखते थे। मैं एक गांव का लड़का कुक की नौकरी पर था. सर जी ने मुझे बारहवीं का फार्म भरवाया और डाक बंगले पर फौजी टुकड़ी आने पर अफसर से बात करवाई.
उनसे पूछा क्या करना है. भर्ती के समय हम सब लड़कों के साथ गए। पहले कई बार लड़के बैठे, उनके मां बाप रुपऐ लेकर जाते, बड़ी सिफारिश लगवाते, पर बगल के गांव से एक हो पाया.
सर जी ने हम सब को सिलेक्ट करवा दिया. सर के कारण आप के साथ खड़ा हूं। सर जी मेरे साथ दौड़ते थे.
सर बता दूं क्या कहते थे ‘अबे नमकीन लौंडे! दौड़ … वरना साले तेरी यहीं गांड मार दूंगा।’

असल में वह आधा सच बोल रहा था. उसे नमकीन मैंने नहीं कहा था.
यह तो जब वह निलेश के साथ शहर गया तो उसके एक साथी ने भूरा को देख कर कहा था- यार! बड़ा नमकीन लौंडा लाए हो. कहां मिला? आज तो मस्ती होगी।

लौटने पर भूरा ने मुझे बताया- सर जी उन्होंने मेरी तीन बार रगड़ी. मारते समय निलेश आपके बारे में कह रहे थे- तेरे सर का हथियार बड़ा मस्त है, कितना मोटा है. उनसे करवाने में मजा आ गया. क्या कलाकारी से मारते हैं … मेरी तो आधा घंटे तक मारी.

उसके शहर जाने से दो महीने बाद ही तो फौजी टुकड़ी आई थी. जब हम दौड़ रहे थे जंगल में, एक फॅारेस्ट रोड पर एक पुलिया पर बैठ जाते थे जो लगभग डेढ़ किलोमीटर के फासले पर होगी.

वहां बांस और साल के पेड़ थे.
उसी पुलिया पर बैठे भूरा ने पूछा- सर! आपका बहुत मोटा है?
मैं- तुझे मरवानी है क्या? तेरी फट जाएगी।

भूरा- सर करके देखें?
मैं- अच्छा, कल देखेंगे।
वह बोला- सर! यहीं जंगल में चलते हैं.
वह ज्यादा ही तैयार था. मैंने उसे नहीं पटाया बल्कि उसी को खुजली हो रही थी।

हम जंगल के एक पेड़ के पीछे गए. उसने अपना बरमूडा नीचे किया और मैंने थूक लगा कर लंड पेल दिया।
मैं धीरे धीरे कर रहा था तो वह बोला- सर आप डर रहे हैं क्या?
ये सुनकर मैं धक्कम पेल करने लगा.

वह गांड ढीली किए मजा ले रहा था कि इतने में दूसरा लड़का भोला आ गया. वह पुलिया के पास हमें न पाकर ढूंढता हुआ आ पहुंचा था.
फिर हमारे पास आ गया और देखता रहा.

वो बोला- सर! हमें भी इसकी मार लेने दो।
मैंने कहा- तू बाद में कभी निपट लेना.
वो बोला- सर! ये बहुत बदमाश है, मैंने इससे अपनी दोस्त लौंडिया भी चुदवाई. ये कह रहा था कि मुझे भी दिलवायेगा. पर न कोई दूसरी लौंडिया दिलवाई और न अपनी दी।

मैं अभी झड़ा नहीं था पर मैंने अपना लंड निकाल लिया.
भूरा ने बहुत न नुकर की पर मेरे कहने पर खड़ा रहा.

भोला ने उत्साह में अपनी पैंट अंडरवियर सब उतार दिये. एक दम नंगा होकर अपना लंड सूत कर थूक लगाने लगा.

उसने भूरा की गांड में लंड डाल दिया. भूरा आ-आ करने लगा. गांड सिकोड़ने लगा, पर भोला ने पूरा डाल दिया और उसकी कमर पकड़ कर चिपक कर रह गया।

आधा मिनट तक चिपका रहा, फिर बोला- यार करने देगा? थोड़ी ढीली कर।
तब भूरा मुस्कराया और बोला- अच्छा कर लो, तुम रुतबा पेल रहे थे।

भोला बोला- यार! ऐसा नहीं करते, मेरा भैया! अच्छा, तू मुझे ठीक से करने दे, तो लेट जा।
तब भूरा वहीं पेड़ के नीचे जमीन पर लेट गया. अब उसने टांगें चौड़ी कर लीं. गांड ढीली कर ली. भोला ने मस्ती से चोदा.

मैं भूरा की गांड में उसका लम्बा मोटा मस्त हथियार अंदर बाहर होते देख रहा था. मेरी गांड तो कुलबुलाने लगी कि इतना मस्त हथियार तो मेरी गांड में भी भोला डाल दे, मगर मैं कह नहीं पाया.

फिर हम लौट आये. अगले दिन भोला उस अहसान के बदले मुझसे मरवाना चाहता था.
बोला- सर! आप लौंडिया चोदते नहीं, आप तैयार हो तो दिलवाऊं? किसी को मालूम नहीं पड़ेगा. फौजियों को मैंने लौंडिया दिलवाई. पांच जवान एक ही लौंडिया को चोद गए।

मैं मुस्कराया।
वो आगे बोला- सर मैं भूरा जितना गोरा तो नहीं लेकिन मजा पूरा दूंगा.
दरअसल भोला गोरा नहीं था लेकिन मस्त जवान हट्टा कट्टा लड़का था.

एक रात वो मेरे निवास पर आ गया. अपना अंडरवियर उतार कर मेरे बिस्तर में घुस गया. फिर मुझे उसकी मारनी ही पड़ी. उसके चूतड़ बहुत मस्त थे. जांघों और बांहों में मछलियां दौड़ती थीं. बहुत मस्त बॉडी थी उसकी.

मैंने उसके कंधे, गाल, गर्दन, होंठ आदि सब चूम डाले. वह मस्त होकर सिसकारने लगा- अरे सर … आह्ह … वाह … सर … आप तो लौंडों को गर्म कर देते हो.

फिर मैंने उसकी गांड में लंड पेल दिया. आगे हाथ ले जाकर मैंने उसका लौड़ा भी पकड़ लिया. बहुत मस्त लंड था उसका. 8-9 इंच का हथियार था. मोटा इतना कि मुट्ठी में भी मुश्किल से आ रहा था.

बहुत इच्छा हो रही थी कि भोला ये लंड मेरी गांड में डाल दे.
मगर मैं कुछ कह नहीं पा रहा था उससे. मैं चुपचाप उसकी चुदाई करता रहा.

अब मेरे मुंह से खुद ही निकल गया- यार भोला, लौंडिया तो तेरे से चुदवा कर बहुत खुश हो जाती होंगी. चूत फट जाती होगी इतने दमदार हथियार से?

“कितनी लौंडियां अभी तक चोदीं? दस पंद्रह तो होंगी.”
भोला के दांत निकल आए- सर जी इतनी नहीं। ये गांव है, जूते पड़ेंगे यहां.

मेरे से रहा नहीं गया क्योंकि मेरी गांड कुलबुला रही थी.
मैंने कहा- कभी लौंडे की गांड मारी है?
वो बोला- हां सर जी. दोस्तों में हम एक दूसरे की मारते हैं. मेरे से मरवाने में लौंडे बहुत नखरे करते हैं. उनसे लिया नहीं जाता. मैंने शेखर साहब से भी मरवाई है. भूरा ही ले गया था मुझे।

मैं भोला से अपनी गांड मरवाना चाहता था. उसे पटा रहा था कि अपने मस्त नौ इंची लंड को वो मेरी गांड में डाल दे. मेरी रगड़ कर मार दे. वह मेरी तरह ही कड़ियल मस्कुलर जवान था. मैं उससे गोरा माषूक था पर उससे बड़ी उम्र का था.

वह समझ तो गया था लेकिन झिझक रहा था. मैं कह नहीं पाया.

मैंने उसकी सारी पीठ चूम ली. उसने खुद ही हाथ बढ़ा कर अपना लंड छुड़ा लिया और बोला कि झड़ जाऊंगा तो मरा नहीं पाऊंगा.

वो कहने लगा- सर! आप भूरा से लपके हो। मुझे आपसे कराने में मजा आता है। मेरे में कांटें थोड़ी लगे हैं?
अब मैं जोश में आ गया और उसकी गांड को पेलने लगा. पांच मिनट तक लगातार चोद कर मैं उसकी गांड में खाली हो गया.

इतने में ही ट्रेन की सीटी ने मेरी नींद तोड़ी और मैंने खुद को वहीं स्टेशन पर भूरा के साथ खड़ा पाया.
भूरा- कहां खो गये सर?
मैं हंसकर- कहीं नहीं, तुम्हारे नमकीन दिनों को याद कर रहा था.

इस पर उसके दूसरे साथी भी हंसने लगे और बोले- सही कहा सर, ये बहुत नमकीन है और लौंडियाबाज भी. कैसी भी नखरैल लौंडिया हो, यह पटा लेता है।
मैं- बात बनाने में भी चालू है.

दूसरा साथी- सर जी! इसने हमारे साहब की मुटल्ली बीवी को भी पटा लिया। साहब कह रहे थे कि जब से इसकी उनके बंगले पर ड्यूटी लगी है तब से मेम साब … मेम साब … कहकर इसने उन्हें ऐसा पटाया कि मैडम इसे ही हर काम के लिए बुलाती हैं। साहब कह रह थे कि ये डेंजरस है.

मैं- हां, चालू तो है.
भूरा बाथरूम की ओर हाथ के अंगूठे से इशारा करते हुए आंखों में शरारत भर कर बोला- सर जी! मैं अब भी तैयार हूं, चलें?
मैं- तू नमकीन तो है पर अब चिकना कहां रहा ज्यादा, तू चालू हो गया है.
सब ‘हो-हो’ करके हंसने लगे।
समाप्त।

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