रेलवे के दैनिक श्रमिक संग अट्टा बट्टा
दफ़्तर में मेरी मुलाक़ात एक नए व्यक्ति से हुई. संयोंग से वो मेरे पहचान के एक अंकल के बेटे निकले. उनके साथ मेरे हुए गे सेक्स की कहानी का मजा लें.
मैं आपका आजाद गांडू एक बार फिर से अपनी आपबीती गांड मराने की गे सेक्स कहानी में स्वागत करता हूँ.
मेरी पिछली कहानी
नए ऑफिसर के साथ गांड मारने मराने का खेल
में अब तक आपने पढ़ा था कि मैं अपने दोस्त और कनिष्ठ प्रभात की गांड मार के उठा था. वो मुझसे संतृप्त होकर अपने कपड़े पहन कर बाहर चला गया.
इसी तरह से मेरी मस्ती भरी जिन्दगी चल रही थी.
अब आगे:
फिर एक दिन, ओहदे में मुझसे बड़े और उम्र में छोटे सुधीर जी अपने एक सहायक को लाए.
वो कोई नए व्यक्ति थे और अपने साथ झांसी से टिफिन लाए थे. मीट (कोरमा), रूमाली रोटी, पुलाव लाए थे.
हम सबने दावत की.
हम सब खा ही रहे थे कि मैंने कहा- ऐसा कोरमा तो मेरे शहर के रहमान चाचा बनाते थे, झांसी में कहां बनता है?
टिफिन लाने वाले महाशय बोले- मैं रहमान चाचा का बेटा हूँ, वे मेरे अब्बा हैं … अब भी वहीं रहते हैं. आप उन्हें कैसे जानते हैं?
मैं- मैं इधर मैट्रिक तक पढ़ा हूं.
मैंने सन बताया तो बोले- मैं आपसे दो साल आगे था, मैंने आपको देखा है.
उन्होंने मेरा नाम भी बताया.
मैंने कहा- अरे आप असलम भाई!
वे बोले- जी. मैं अपने चाचा के लिए होटल से कई बार मीट रोटी लाया करता था.
मेरी असलम भाई से जान पहचान हो गई. अब वे मेरे कमरे पर कई बार रूकते, जब प्रभात व सुधीर चले जाते.
वे मैट्रिक के बाद नहीं पढ़े थे, बस काम करते रहे. अब रेलवे में इस टीम में दैनिक वर्कर थे.
मैं छब्बीस साल का था और वे सत्ताईस अट्ठाईस के होंगे. छरहरे सिगंल फ्रेम के गोरे और सुदंर तीखे नाक-नक्श के थे.
मैं मस्कुलर बॉडी वाला तगड़ा सा माशूक लौंडा था. असलम मेरे से थोड़े ऊंचे थे. बोलते बाद मीठा थे.
जब फ्री होते हम दोनों गप्पें लगाने लगते.
एक दिन हम और वे बैठे थे.
मैंने कहा- मैं सलीम भाई का दोस्त था.
असलम- हां, वे बच्चों से दोस्ती रखते थे.
मैं- उन्होंने मुझे तैरना सिखाया, साईकिल चलाना सिखाया. फिर उन्होंने स्कूल छोड़ दिया था.
असलम- हां उनका पढ़ने लिखने में मन नहीं लगा.
मैं- पहले वे साईकिल की दुकान में थे, फिर चाचा के साथ हो गए.
असलम- वे अलग दुकान नहीं कर पाते थे … उनका मन ही नहीं लगता था. अब भी वो अब्बा के ही साथ हैं.
मैं- मेरे पक्के दोस्त थे.
असलम- हां, वे लौडों से दोस्ती रखते थे.
मैं- मैं तब लौंडा ही तो था … स्कूल में पढ़ता था.
असलम- हां मेरा मतलब वे नमकीन लौडों का संग पसंद करते थे.
मैं- अब मैं उनके लिए कैसा था, ये नहीं जानता … पर उनका दोस्त था. वे लम्बे गोरे स्लिम बहुत खूबसूरत थे.
ये कह कर मैं उनकी याद में डूब गया.
असलम- आप तो इस उम्र में आज भी नमकीन हैं, अफसर हैं. कुर्सी पर बैठने का काम है. आपको धूल-मिट्टी से सरोकार नहीं है. आपका बदन चमेली सा रखा है … खूबसूरत हैं, गोरे हैं. नाक-नक्श नमकीन हैं. कसरत वगैरह भी करते होंगे, इसीलिए अब तक पेट नहीं निकला … वरना निकल आता है.
इसी तरह हम दोनों बातें करते रहे और हमारे बीच दोस्तों गहराती गई.
असलम भाई ने एक दिन अपने मन की बात बताते हुए कहा कि सलीम भाई लौडों की गांड मारते थे. मैं उनसे इसलिए ही चिढ़ता था क्योंकि सलीम भाई उनकी भी गांड मारते पकड़े गए थे. यह बात वे बताना नहीं चाहते थे, पर मेरे साथ बातों में खुद ही बता गए.
मैंने पूछा कि और लौडों ने भी आपकी मारी होगी!
तब वे बोले- वह मोहल्ला ही ऐसा था, उधर हर नमकीन लौंडे की गांड मारी गई थी.
मैंने कहा- फिर अकेले सलीम भाई से क्या बुराई रखना.
मेरी बात से वे ठंडे पड़ गए. चूंकि उनकी गांड मराने की बात खुल गई थी, जूते पड़े थे और लड़के चिढ़ाते थे.
तो यह बात थी, जिस वजह से असलम भाई को सलीम भाई से चिढ़ थी.
मैंने दिलासा देते हुए कहा- छोड़ो भी … बात पुरानी हो गई. सलीम भाई भी तो पिटे होंगे.
ये सब बातें हुई तो असलम भाई मुझसे बड़े झिझकते हुए कई दिनों बाद पूछ पाए- तो क्या सलीम भाई ने आपकी भी …?
वे इतना ही कह पाये थे कि मैंने बड़ी सहजता से कह दिया- हां, उन्होंने मेरी भी कई बार मारी. तब मुझे उनका लंड बड़ा भयंकर लगता था, बहुत मोटा था और बहुत सख्त था. हमें उस वक्त उनका लंड लोहे सा लगता था. शुरू शुरू में तो अन्दर लेने में बड़ा दर्द होता था. वो दर्द आज तक याद है. उनका वह लाल गुलाबी सा सुपाड़ा, जिस पर वो थूक लगा कर लंड हिलाते थे … बड़ी देर तक मलते थे. तभी से मेरी गांड फटने लगती. मैं उनकी टांगों के नीचे औंधा लेटा, मुड़ मुड़ कर देखता. वे एक बांह से मेरी कमर के चारों तरफ घेरा डाल कर जकड़ लेते और दूसरे हाथ से लंड पकड़ कर गांड पर टिका देते. पहले तो लंड गुलगुला सा लगता, फिर वे लंड को धक्का दे देते. उनके लंड का मोटा सुपाड़ा गांड में जाता, तो बहुत दर्द होता. गांड ही फट जाती थी. वो भी मिसमिसा कर पूरा लौड़ा एक बार में ही अन्दर पेल देते.
असलम- फिर!
मैं- फिर वो एक धक्का नहीं देते, धक्के पर धक्का देते चले जाते. न जाने कितने धक्के लगते चके जाए, गिनती ही नहीं गिन पाता. मेरा छोटा चिकना छेद, और सलीम भाई का मोटा भारी सा लंड, कोई बराबरी ही नहीं थी. वो बीच में रूकते भी नहीं थे … एक पल के लिए दम भी नहीं लेते. कभी तो ऐसा लगता जैसे गांड सूज गई हो छिल गई हो. बड़ी दर्द करती, फिर वे जल्दी से झड़ जाते.
असलम भाई मेरी और सलीम की गांड चुदाई की कहानी को बड़े ध्यान से सुन रहे थे.
मैं- कुछ बार चुदने के बाद मैं आराम से उनका पूरा लंड ले जाता था. जरा भी चीं चपाट नहीं करता. जब कि मैं उनसे तीन चार साल छोटा रहा होऊंगा, बड़ा चिकना लौंडा था.
असलम भाई भी मुझसे इतने विस्तार से और इतनी सहजता से सलीम भाई से अपनी गांड मराई का किस्सा सुनने की उम्मीद नहीं करते थे.
वे ये सब सुनकर जोर जोर से हंसने लगे.
असलम भाई कहने लगे- आपको एक एक चीज वैसी ही याद है.
मैं- वैसी गांड मराई क्या कभी भूली भी जा सकती है.
अब असलम भाई मेरे से सहज हो गए थे. फिर तो उन्होंने अपनी सलीम भाई के अलावा और दूसरे लौंडों से गांड मराई के किस्से सुना डाले.
वे मेरे अच्छे दोस्त बन गए.
जब उन्होंने देखा कि मैंने उनका मजाक नहीं उड़ाया और औरों को उनके किस्से नहीं बताए, तो वे पूरी तरह से खुल गए.
फिर एक रात मैं क्वार्टर में लेटा था कि खाना खाकर असलम भाई आ गए.
उस दिन असल में बाहर गर्मी थी. मेरे कमरे में उन्हें कूलर में लेटने की परमीशन चाहिए थी … तो भूमिका बनाने बैठ गए.
वो बोले- मैं यहीं फर्श पर दरी बिछा लूं.
मैंने कुछ नहीं कहा, तो वो संतुष्ट हुए और इस अहसान के बदले मेरा बदन दबाने लगे.
मैं अंडरवियर बनियान में था. मैंने कहा- आप कपड़े उतार लो.
मेरी बात सुनकर वे भी अंडरवियर बनियान में आ गए. इन कपड़ों में वे उतने दुबले नहीं लग रहे थे, बड़े छरहरे और स्लिम ट्रिम बॉडी वाले थे.
मैंने कहा- आप सलीम भाई से तो तगड़े हैं.
वे मेरी बात से खुश हुए और बोले- सलीम भाई आपको हमेशा याद रहते हैं.
मैं- हां उनसे दोस्ती का गहरा रिश्ता जो रहा है.
असलम भाई मेरे पांव दबाने लगे.
मैं सीधा लेटा था.
फिर वे बोले- लाइए आपकी कमर दबा दूं. मैं औंधा होकर पेट के बल लेट गया. वे खड़े खड़े दबा रहे थे.
मैंने कहा- आप थक जाएंगे, ऊपर पलंग पर आ जाएं.
वे समझ नहीं पाए और जरा झिझके.
मैंने बताया- मेरे ऊपर घुटने मोड़ कर बैठ जाएं.
वे बैठे मगर एक तरफ बगल में.
तब मैंने कहा- मेरी कमर की एक बाजू एक घुटना और दूसरी तरफ दूसरा घुटना रख कर आ जाइए.
वो दूसरी तरफ मुँह मेरी गर्दन की ओर बैठ गए. अब वे कमर दबाने लगे. वो मेरे दोनों मस्त चूतड़ों के ऊपर बैठे थे और पीठ दबा रहे थे. जब पीठ कंधों के ऊपर दबाते, तो औंधे हो जाते. मेरे ऊपर उनका लंड मेरे दोनों चूतड़ों के बीच होता.
वे भी कब तक संयम करते, लंड खड़ा हो ही गया. अब लंड मेरी पीठ में गड़ रहा था.
वे बोले- बस!
मैंने पीछे हाथ करके लंड सहलाया- अरे ये है … मैंने सोचा न जाने क्या गड़ रहा था. इसलिए सोचा कि देखूं कि क्या है.
उनके लंड को मसक दिया मैंने … और कहा- ये तो आपका हथियार है. बड़ा मस्त है, दिखाइए तो जरा … सलीम भाई जैसा ही है या छोटा है.
वे जोश में आ गए और उन्होंने लंड बाहर निकाल दिया.
मैंने पीछे मुड़ कर कहा- अरे ये तो बड़ा मस्त है.
वे अन्दर करने लगे तो मैंने कहा- ठहरो यार … कभी गांड मारी है?
वो कुछ नहीं बोले.
मैंने अपना अंडरवियर नीचे खिसकाया और कहा- डालोगे?
वे एक बार झिझके, पर उनका लंड टनटना रहा था. उन्होंने लंड के सुपारे पर थूक लगा कर मेरी गांड पर टिका ही दिया और अन्दर करने लगे.
वो बोले- बड़ी टाईट है.
मैंने कहा- जोर से धक्का दो … सट से चला जाएगा.
उन्होंने धक्का दिया तो लंड अन्दर घुस गया. वे मेरे ऊपर लेट गए.
मैंने कहा- आज आपने सलीम भाई जैसा जोरदार काम किया है. अब पीछे नहीं हटना है … बस जोर लगाओ.
वे धक्के लगाने लगे. धीरे धीरे उनके धक्कों में जोश आता गया. संकोच कम होता गया … उनका लंड सच में मस्त था.
मैंने भी जोश बढ़ाया- हां बिल्कुल सलीम भाई जैसे ही धक्के लग रहे हैं. वाह … और जोर से वाह … फाड़ कर चीर दो … साली गांड है कि आफत है, बहुत लंड लंड करती है … आह आज फाड़ ही डालो रगड़ दो साली को … याद रखेगी कि किसी का लंड लिया था. वाह … मेरे दोस्त वाह … बहुत अच्छे … हां थके तो नहीं … थोड़ा रूक लो … ठहर कर फिर लग जाओ.
वे इस सब से मस्त हो गए और धकापेल लगे रहे. अब मैं भी अपने चूतड़ उचकाने लगा था. मैंने गांड चलाई और ढीली कसती ढीली कसती की.
उन्हें इससे मजा आ गया. वे इससे प्रभावित भी हो गए और बोले- वाह, ऐसे तो कम लोग ही करवाते हैं.
मैं- हां जोर लगाए रहो. मैं भी बराबर मजा दूंगा.
वे मेरे ऊपर लेटे रह गए, फिर जल्दी झड़ गए. झड़ने के बाद लेटे रहे.
फिर उठ कर बोले- आपके चूतड़ बहुत मस्त हैं.
मैंने कहा- अरे … तो क्या गांड बेकार है?
वो बोले- इस उम्र में इतनी टाईट गांड … आपकी गांड में बड़ा मजा है. असल में जोर से करने में बहुत से लौंडे मेरे लंड घुसते ही चिल्लाने लगते हैं. पर आपने और जोश दिलाया … ऐसे कोई करवाता ही नहीं. सच में मजा आ गया. बहुत दिनों तक आपकी गांड मराई याद रहेगी.
फिर उन्होंने अपना अंडरवियर उतार कर नीचे रख दिया.
असलम भाई- अब आपको मेरी भी करनी पड़ेगी.
वे नंगे होकर औंधे लेट गए. मुझे भी उनकी गांड में लंड पेलना पड़ा. वे ढीले तो थे, पर बहुत साथ दिया.
निपटने के बाद बोले- आप जैसी तो नहीं करवा पाया … पर मजा आया होगा.
मैंने उनका चुम्बन लिया- नहीं असलम भाई … आपने सलीम भाई की याद दिला दी. अपन मिलते रहेंगे, अगली बार तैयार होकर आना. जब गांव जाएं तो सलीम भाई को मेरा सलाम कहना.
एक दिन हम गप्पें लगा रहे थे, तो वे यादों में डूब गए- आप नसीम भाई को जानते हैं?
मैं- हां लम्बे गोरे स्लिम … बहुत खूबसूरत हैं.
वे बोले- आपने सही कहा, वे बहुत खूब सूरत थे. अपनी बस्ती की रामलीला में नाचने वाले का काम हर साल करते थे. एक बार तो सीता बनने वाला लड़का चला गया, तो उन्होंने सीता का पार्ट किया था. हां सीता जी, राम से तीन इंच ऊंची हो गई थीं … पर इतनी खूबसूरत सीता फिर कोई नहीं बनी … न वैसा पार्ट करने वाली. लोग अब भी याद करते हैं. उन्होंने लक्ष्मण बनने वाले लड़के से रात को हरकत कर दी.
मैं- क्या बात करे हो … क्या हरकत कर दी थी!
वे- अरे वही … उनकी आदत, उसकी मार दी … तो हटा दिया. पर कोई नचैया नहीं मिला … तो फिर से ले लिया.
‘फिर क्या हुआ?’
‘फिर वे बाद में बम्बई चले गए एक्टर बनने … वहां शायद रेलवे में नौकरी लग गई थी. पढ़ाई में अच्छे थे, बारहवीं पास कर ली थी. अब भी टीवी व फिल्मों में छोटे मोटे रोल करते रहते हैं. उनका बदन आप जैसा तो नहीं, पर नाचने के कारण बड़ा छरहरा था, बहुत आकर्षक और मस्त. इस गुण में वो आपसे मिलते थे.
नसीम भाई की याद में असलम भाई की आंखें बन्द हो गईं, वो उनकी याद में खो गए.
मैं- हां, मेरे दोस्त भी उन्हें याद थे मगर दूसरी वजह से.
असलम- हां उन्हें भी सलीम भाई वाला शौक था … नमकीन लौडों की गांड मारना, वे बहुत गांडू भी थे. गांड मराने की आदत थी. कई लोगों से मराई थी. बदनामी नेकनामी की चिन्ता नहीं करते थे. दोनों तरफ से चलते थे. बहुत मस्त चीज थे.
मैं- क्या आपसे कभी उनका साबका पड़ा!
असलम- हां वे मेरे से दो तीन साल बड़े थे, क्या मस्त हथियार था उनका … ऊपर से गांड मारने के एक्सपर्ट उन जैसा कोई शायद ही होगा. लौंडे को मस्त कर देते थे.
मैं- तो असलम भाई अपने मजा लिया?
असलम- हां कई बार उन्होंने मजा दिया, बिलकुल आप जैसा ही उनका मस्त हथियार था. आप जैसी ही चुदाई की स्टाईल थी. तभी तो उनकी याद आ गई.
मैं- कभी आपने उनकी मारी?
असलम- ज्यादा तो नहीं, मैं उनसे तीन चार साल छोटा था और तब दुबला पतला लौंडा ही था. मगर मैंने दो-तीन बार उनकी मारी थी. मेरी मारने के बाद जब उनकी कभी खुजलाती, तो इशारा करते, तो मैं डाल देता. इस मामले में भी वो आप जैसे ही थे. वे भी उचक उचक कर मरवाते थे … पूरे दिल से. आज आपने करवा कर उनकी याद ताजा कर दी. गोरे गोरे मस्त चूतड़, गुलाबी गांड व मजबूत जांघें थीं.
वे फिर उनकी याद में खो गए. मैं चाह कर भी उन्हें नहीं बता पाया कि मैं उनसे बम्बई जाकर शाबासी ले आया हूं. आज असलम भाई ने बताया कि मैं उनसे मिलता जुलता हूं, तो जानकर ख़ुशी हुई. असलम भाई असल में समझ तो गए थे मगर वे गांड मारने में भी फिस्स हो गए थे … जल्दी झड़ गए थे. मराने में तो खुद ही स्वीकार कर रहे थे कि मैं उतना मजा नहीं दे पाया.
मैंने बात बनाई, फिर सलीम भाई की बात की.
मैं- सलीम भाई अकसर बीच में ही फिस्स हो जाते, डालते ही छूट जाते या कभी गांड में छुलाते ही झड़ जाते.
वे मुस्करा दिए.
मैं- कभी कभी उन्हें पता ही नहीं चलता था कि अन्दर गया भी है या नहीं. असलम- हां यह बात तो उनसे मराने वाले सभी नहीं, तो अधिकतर लौंडे कहते हैं. आपने भी वही बात कही.
वे इस बात पर जोर जोर से हंसने लगे- लौंडे उन्हें अनाड़ी चुदैया कहते थे.
मैं- पहली बार मैं और वे खलिहान में लेटे थे … उन्होंने मुझे चोद दिया था, पर जांघों के बीच वे छेद में नहीं डाल सके थे. दूसरी बार वे मुझे गुलाब बाग साईकिल पर ले गए, जब उन्होंने थूक लगा कर लंड मेरी गांड में डालने की कोशिश की, तो एकदम से पेल दिया. में नया लौंडा था, सो चिल्ला उठा. मेरी आवाज सुनकर माली आ गया. हम दोनों बेइज्जत होकर लौट आए. फिर उन्होंने तीसरी बार चुदाई में लंड पेला, तो मेरी फाड़ कर रख दी. मगर वे जल्दी झड़ गए थे.
असलम भाई जोर से हंस दिए. अब उनका असफलता का भाव कम हुआ और उदासी छंट गई.
आपको मेरी गे सेक्स स्टोरी में कितना जा आ रहा है. प्लीज़ मुझे कमेंट्स करके बताएं.
आज़ाद गांडू
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