अब तो मेरी रोज़ गांड बजती है-1
(Ab To Meri Gaand Roj Bajti hai-1)
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आपका प्यारा सा सनी गांडू
प्रणाम दोस्तो, कैसे हो सब…!
मैं भला चंगा और आजकल खुश हूँ खिला-खिला रहता हूँ, क्यूंकि अब तो मानो मैं किसी की बीवी बन चुका हूँ और पति की तरह मुझे रोज लंड मिलता है।
मैंने जैसे बताया था कि मैंने अब एक प्राइवेट मार्केटिंग लाइन में जालंधर में जॉब ढूंढ ली है और वहीं एक कमरा किराए पर लेकर रहता हूँ। जहाँ मैं रहता हूँ, वो एरिया फोकल पॉइंट के बेहद करीब है।
वहाँ घर बना कर किराए पर देने का लोगों का बिजनेस बन चुका है। मैंने अन्तर्वासना पर जिक्र भी किया है कि वहाँ कैसे रहते हैं। मुझे कुछ दिनों में ही तगड़ा लंड मिल गया था।
जहाँ मैं रोज़ रात खाना खाने जाता हूँ, वहीं पर मेरी उस लंड से मुलाक़ात हुई और वो खेला-खाया था।
उसने बेहद जल्दी मेरी हरकत चाल चलन से भाँप लिया था कि मैं चिकना हूँ और मुझे अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए उसने हँसी-मज़ाक में मेरी गांड को सहलाया, दबाया था।
जब वो ऐसी हरकत करता, मैं भी गांड पीछे धकेल देता था और फिर एक रात उसने मुझे चोद ही लिया।
उसका बड़ा लंड लेकर खुश था कि यहाँ भी प्यास बुझाने के लिए जल्दी लंड मिल गया था।
उसके बाद शाम को वक़्त निकाल कर मैं सैर करने पार्क जाता था, वहाँ मुझे दो सेवा-मुक्त हुए उम्र-दराज फौजी मिल गए।
वो दोनों भी अकेले थे। उनके परिवार विदेशों में रहते थे। वो भी घर किराए पर देते थे, उनमें से एक का पोर्शन जैसे ही खाली हुआ, मैंने शिफ्ट कर लिया। वो अक्सर मेरी गांड मारते थे।
मैं भी उनके लुल्ले चूस-चूस कर उनको मजे देता था और बदले में मेरी गांड का ढोल बजाते थे।
लेकिन मैं सनी हूँ, मुझे नए-नए लंड हासिल करने का शौक है। मैं इसी लिए बिना कंडोम किसी को गांड नहीं देता।
मैं आज सबको अपनी अन्दर की एक सच्चाई बता देना चाहता हूँ, कि क्यूँ मैं इतने लंड लेना चाहता हूँ?
यह कुदरत की देन है कि मुझे जो जिस्म मिला, वो बेहद नाज़ुक था बचपन में भी चिकना था, बिल्कुल गोलू-मोलू था।
मैं सोचता हूँ कि अगर मैं लड़की होती, तो चालू बनती, कई आशिक बनाती, स्कूल कॉलेज में बदनाम होती और जब औरत बनती, तो गैर मर्दों से चुदवाती मतलब फुल करेक्टर-लैस होती।
लेकिन अपने इसी सोच को पूरा करने के लिए मैं अपने ख्याली किरदारों को सोच कर मजे लेना चाहता हूँ।
मैं जिस कंपनी में था, वहीं कांता प्रसाद नाम का एक बंदा भी जॉब करने लगा। वो मूल रूप मद्रासी है लेकिन उसका घर नॉएडा में है। वहाँ की ब्रांच से प्रमोट हुआ था।
मैं अकेला रहता था। मैं उस से काफी घुल-मिल सा गया था। उसकी उम्र अड़तीस से चालीस के बीच होगी।
उसने वहीं रूम रेंट पर लिया, जहाँ मैं पहले रहता था। क्यूंकि मैं वहाँ से फौजी अंकल के घर शिफ्ट हो गया था। वो ज्यादा दूर नहीं था। उसने भी खाना उसी ढाबे से खाना चालू किया।
वो ढाबा है ही प्रसिद्ध।
वो कभी-कभी घर से ढाबे के लिए निकलता तो रास्ते में मेरे पास आता। हम इकठ्ठे ही जाते।
एक शाम अंकल फुल मूड में थे, उन्होनें दारु खींच रखी थी, किसी शादी से हो कर आए थे। वहाँ डांसर लड़किओं को देख-देख उनका लंड फाडू हुआ था, मुझे कमरे में पकड़ लिया।
देखते ही देखते हम दोनों नंगे होकर खेलने लग गए।
अंकल के सर पर भारी हवस चढ़ रही थी, इसलिए उन्होंने मुझे पागलों की तरह चोदा, लेकिन मुझे अचानक से हुए वार से बहुत मजा आया।
मुझे इस तरह चुदना बहुत पसंद है।
मतलब अगर मौका मिले तो एकदम से या ऐसी जगह पर जहाँ जगह कम हो और वहीं छुप कर एकदम से किसी के लंड को चूसना। मतलब कम जगह पर जुगाड़ से लंड गांड में डलवाना।
अंकल मुझे चोद कर अभी निकले ही थे, मैंने वाशरूम में अपनी गांड की सफाई की, लेकिन बैडशीट अस्त-व्यस्त थी, बदन पर सिर्फ नाम की एक फ्रेंची थी, वो भी काले रंग की जिसमें मेरा गोरा जिस्म और आकर्षक दिख रहा था।
चूतड़ों पर भी फ्रेंची आधी चिपकी थी और बाक़ी गांड के चीर में फँसी थी। सोचा कुछ देर लेटकर अंकल से हुई चुदाई को याद करके आनन्द लिया जाए फिर उठ कर खाना खाने चलूँ।
कहानी जारी रहेगी।
मुझे आप अपने विचार यहाँ मेल करें।
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