योनि का दीपक- भाग 4
(Yoni Ka Deepak- Part 4)
मेरी कहानी
योनि का दीपक- भाग 3
में आपने पढ़ा कि
वह मुझे देख रहा था- मेरी पुसी से लेकर चेहरे तक, एक सीध में। जलती हुई लौ के अंदर मेरी योनि। उसके दोनों तरफ स्वस्तिक और कलश के शुभ के प्रतीक।
“इसे एक दो दिन तक जरूर रखना!” कहता हुआ वह उठने लगा।
मैंने उसके कन्धे दबा दिये, वह पुनः बैठ गया।
मैंने उसका सर पकड़ा और अपनी ओर झुकाकर धीरे धीरे जांघें बंद कर लीं। वह कुछ कहना चाहता था मगर सामने आते चित्र को देखकर चुप रहा। एक क्षण के लिए मेरे भगों पर उसके मुँह का दबाव महसूस हुआ और मैंने जांघें अलग कर लीं। उसने जरूर समझा होगा कि मैं उसे चाटने को बोल रही हूँ लेकिन मैंने उसका चेहरा हटा दिया तो वह मुझे सवालिया निगाह से देखने लगा।
मैंने आइना उठाकर उसके सामने कर दिया, देखकर वह मुस्कुरा पड़ा, कच्चे गीले रंग से उसके दोनों गालों पर उभर आए थे स्वस्तिक और कलश के निशान।
“शुभ दीपावली” मैंने कलाकार को कहा।
“वेरी वेरी हैपी दीपावली!” उसने खुश होते हुए कहा। वह घुमा घुमाकर अपने चेहरे को आइने में देख रहा था- तुम भी किसी कलाकार से कम नहीं हो!
“मैं भी इसे दो एक दिन तक ऐसे ही रखूँगा.”
“अजीब नहीं लगेगा? लोग क्या कहेंगे?”
उसने मेरी आँखों में देखा और ना में सर हिलाया।
मैं उसके गाल पकड़कर उसकी आँखों में देखने लगी। मुझे कैसा तो महसूस हुआ। उसे देखते देखते ही मैंने आँखें मूंद लीं। पीछे लद गयी और पुनः सिर पीछे टिका लिया। सिर पीछे करते ही योनिस्थल कुछ और आगे बढ़ गया।
कुछ ही क्षणों में मुझे वहाँ पर गर्म साँस का स्पर्श महसूस हुआ।
आश्चर्य! उसका सिर तो बहुत पहले से मेरी पुसी के करीब था। लेकिन सांस पर मेरा ध्यान अब गया था।
और अगले क्षण ही ठीक होंठों की फाँक में एक छुअन। बेहद हल्की, बेहद सरसरी तौर पर। लेकिन उतने में ही मेरी जाँघें थरथरा सी गईं। मुझे लगा, मेरी योनि की ‘पलकें’ खुल गई हैं जबकि आँखों की पलकें बंद हैं।
खुली पलकों के भीतरी किनारों पर वह छुअन एक साथ आई थी। यह क्या थी? होंठ या जीभ?
“मैं तुम्हारा शोषण तो नहीं कर रहा हूँ?” उसका प्रश्न मेरे कानों में पड़ा।
“तुम बहुत अच्छे मनुष्य हो…”
“वेरी केयरिंग एंड…”
“एंड…?”
“खूबसूरत जवाँ भी” हिम्मत करके मैंने कह दिया।
कुछ देर तक कुछ नहीं हुआ, मैं प्रत्याशा में सांस लेती छोड़ती रही।
उसने मुझे मोबाइल पकड़ाया, थरथरा रहा था, मैंने अनिच्छा से देखा, उसी का फोन था।
इच्छा हुई काट दूँ, पर हेल्लो कर दिया.
“तुम कहाँ हो? तुम्हारे पीजी में गया, तुम वहाँ नहीं थी।”
मैं कुछ नहीं बोली।
“प्लीज, बोलो ना… मैं सॉरी बोलता हूँ, बोलो ना?”
मुझे गुस्सा आया, मैंने फिर काट दिया।
“तुम करो” मैंने कलाकार को कहा।
वह हिचकता रहा- आर यू श्योर?
“तुम्हें बुरा लगता है तो छोड़ दो।”
“आई लव इट…” उसने अपने होठों पे जीभ फिरायी।
“तो करो ना…”
फोन फिर थरथराया- ओफ्फ! क्या है?
“प्लीज फोन बंद मत करना। सॉरी सॉरी सॉरी, तुम कहाँ हो?”
एक चुम्बन मेरे (भग) होठों पर पड़ा; आ…ह।
“मैंने तुम्हें बता दिया था.” मैंने फोन में कहा।
“उसी टैटू वाले के यहाँ?”
दूसरा चुम्बन – होठों के मध्य से ऊपर।
“क्या करोगे जानकर?” मैंने अपने गुस्से पर काबू पाने की कोशिश की।
“प्लीज, बोलो ना।”
“हाँ… और कुछ कहना है?”
“क्या कर रही हो वहाँ?”
उस वक़्त मैं तीसरा चुम्बन प्राप्त कर रही थी, उसकी घबराहट पर हंसी आई।
तभी उसने कहा- आई लव यू!
और मेरा गुस्सा फिर भड़क गया- जानना चाहते हो क्या कर रही हूँ? फोन मत बंद करना, चालू रखो।
मैंने सर उठाकर देखा, कलाकार का सर झुका हुआ था।
चौथा चुम्बन होठों के मध्य से नीचे आया, वहाँ जरा और खुली हुई फाँक में घुसकर… और यह मीठा था। मैंने फोन में सुनाने के लिए जरा जोर से आह भरी- आ….ह…!
“क्या कर रही हो?” उसने फोन में पूछा।
जवाब में पुनः मैंने आह भरी।
चुम्बन की चोट खाली नहीं जा सकती थी।
अगली बार और अन्दर की कोमल सतहों पर चाट… मेरी और बड़ी कराह!
“क्या कर रही हो, बोल ना?”
“मैंने बताया था।”
“नहीं मालूम, बोलो ना?”
“मुझे परेशां मत करो… बस सुनते रहो!” कहते कहते मेरे मुँह से सिसकारी निकल गयी, मेरी भगनासा पर उसने जीभ फिरा दी थी।
मेरी आहों और सिसकारियों का सिलसिला बढ़ता जा रहा था। उसे स्त्री केंद्र को चूमना चाटना आता था।
“कहाँ पर हो? कौन सी जगह है?”
उत्तर मैंने अपनी आहों और कराहों से दिया।
“बताओ ना कौन जगह है?”
“फोन बंद कर रही हूँ।”
“प्लीज… सिर्फ जगह बता दो… प्लीज।”
मैंने कलाकर से कहा- वह जगह पूछ रहा है।
कलाकार ने पूछा- कोई प्रॉब्लम तो नहीं करेगा?
उसके मुँह के आसपास मेरा गीलापन चमक रहा था।
“पता नहीं!” मैंने कहा।
“मेरा एड्रेस फॉरवर्ड कर दो। मैं नहीं डरता.”
वह फिर चाटने लगा।
मैंने उसे रोका और एड्रेस फॉरवर्ड कर दिया; मैं उसे जलाना और दण्डित करना चाहती थी।
कलाकार ने मेरे हाथ से फोन लेकर रख दिया और पुनः भक्ति भाव से काम में लग गया। मुझे बहुत अच्छा फील हो रहा था, पता लग रहा था क्यों मेरी सखियाँ इसके लिए बार बार कहती थीं।
“वो आकर मार-पीट तो नहीं करेगा?”
“बड़ा पोजेसिव है!”
लेकिन उसके इसी स्वामित्व भाव की तो मैं उसे सजा देना चाहती थी।
“आ…ह…!” मैंने अपने पेडू को और आगे ठेलने की कोशिश की। मेरी मुड़ी हुई टांगें दुखने लगी थीं। लेकिन इस आनन्द के सामने ये दर्द क्या था!
“आ…ह!”
वह दबाव के साथ कुरेद रहा था। कोमल होंठों और जिह्वा की ये रगड़ अद्भुत थी।
“आह आह आह! कुछ और बढ़ो यार!”
मेरी भगनासा को उसने जड़ के आसपास से घेरा और होंठों के नीचे दांत छिपाकर कचड़ दिया।
“अरे ब्बा…..!” मैं घबरा सी गयी।
उसने भगनासा को छोड़ दिया, मुझे रहत मिली।
उसने ये क्रिया फिर से दुहराई, लेकिन इस बार उसने भगनासा को छोड़ा नहीं, बल्कि जोर जोर चूसने लगा। आनन्द पीड़ा में बदल गया और मैं उससे निकलने के लिए छूटने लगी। आह आह आह आह… मैं रोने के जैसी कर रही थी। मैंने उसे छोड़ने के लिये कहा तो उसने मेरे नितम्ब पकड़ लिए।
मैंने अंतिम जोर लगाया- ओ…ह, छोड़ो!
उसने छोड़ दिया।
पहला चरम सुख!
मैंने धीरे धीरे आँखें खोलीं, नजर डबडबा गयी, आंसू निकल आए थे।
वह मेरी आँखों में देख रहा था।
उसने मेरा रुमाल लिया और मेरी आँखें पौंछीं, झुककर मुझे चूमा।
मेरी इच्छा हुई कि थैंक्स बोलूँ। अपनी योनि की गंध उसके मुँह पर पाकर शर्म आई और अच्छा लगा।
“चलो अब चलें… वो कभी भी आ सकता है…”
मैं यही तो चाहती थी, बॉयफ्रेंड से बदला लेना।
मैं उसकी कमर के बटन खोलने लगी।
“तुम करना चाहती हो?”
जवाब में मैंने उसकी चेन खींच दी। एक ये है, इस अवस्था में भी यह मुझसे पूछ रहा है कि चाहती हूँ कि नहीं। एक वो है, मेरा बॉयफ्रेंड… जबरदस्ती कर रहा था।
कितने अलग हैं दोनों!
मैंने उसकी पैंट को कमर से नीचे खिसका दिया। चड्डी में बहुत बड़ा उभार था, पता नहीं, इस मामले में कैसे हैं दोनों।
उसने पैंट पैरों से बाहर निकल लिया। मैं चड्डी के अन्दर की वस्तु के प्रति डरी हुई थी। पता नहीं कितना बड़ा है।
वह मेरा इन्तजार कर रहा था- तुम निकालो इसे!
आख़िरकार मैंने हिम्मत करके उसकी कमर में उंगलियाँ फंसाईं और झटके से नीचे खींच दी, उछलकर लिंग बाहर आ गया।
बाप रे… उस बॉयफ्रेंड के लिए मेरा गुस्सा और बढ़ गया; उसकी खातिर मुझे इतना बड़ा अपने अंदर लेना पड़ेगा।
कलाकार ने मेरे टॉप को उतारने के लिए पकड़ा। अब ये मामला प्यार का होता था, मैं ब्वायफ्रेंड से प्यार का बदला नहीं लेना चाहती थी, उसने मेरे साथ विश्वासघात नहीं किया था। उसने मेरे साथ सेक्स करने की कोशिश की थी। मुझे सेक्स का ही बदला लेना था, मैंने कलाकार को रोक दिया- रहने दो।
मैंने कलाकार के चेहरे को पकड़कर उसे चुम्बन दिया। चुम्बन उसकी कला-प्रतिभा, सज्जनता और शालीनता के लिए थे। फिर चुम्बन, फिर चुम्बन, और क्रमशः लम्बे होते चुम्बन। इस सुख को अपने ब्वायफ्रेंड से पति के रूप में सुहाग सेज पर पाना चाहा था।
मैं उसको मन में दिखाती हुई और जोर से चुम्बन ले रही थी।
दरवाजे पर दस्तक हुई।
मैंने कलाकार की कमर अपनी तरफ खींची। उसका लिंग अब तक मेरे योनि होंठों को कभी छू, कभी अलग हो रहा था। मैंने उसे अपने पर दबा लिया।
“कम इन।”
“दरवाजा खुला है?” मैंने कलाकार से पूछा।
“यस, इट्स ओपन!” कलाकार ने लिंग को दाहिने बाएँ हिलाकर मेरे योनि द्वार को ढूंढते और उस पर लिंग को सेट करते हुए कहा।
“तब भी तुम इतना कर गए? डर नहीं लगा?”
“सिर्फ तुम्हारे लिये… अगर तुम्हें डर नहीं लगा तो मुझे कोई डर नहीं?”
“क्या कोई लड़की ग्राहक यहाँ आई है?” ब्वायफ्रेंड की ऊँची आवाज बाहरी कमरे से आई।
हम दोनों में से कोई नहीं बोला… खुद आएगा।
“दीपिका, यहाँ हो?” कहता हुआ वह अंदर आया।
मैंने कलाकार की कमर पकड़ ली; वैसे भी उसे बढ़ावा देने की जरूरत नहीं थी, उसने धक्का दिया, लिंग होंठों के पार हो गया।
स्स्स… मैंने दाँत पर दाँत रख लिये। पहला खिंचाव! ओह…!
“ये क क्क क्या कर रही हो!!!” विस्मय से उसकी आवाज हकला सी गई।
कलाकार शायद मुझे फैलने देने के लिए रुकना चाहता था। मैंने उसे लगातार दबाते रहने के लिए प्रेरित किया।
“क्या यह तुम्हारा पहली बार है?”
पता नहीं मैंने उसे बताया था कि नहीं… पर इस सवाल में उसके पौरुष की घोषणा थी। मेरे प्रेमी के सामने मुझसे पूछ रहा था- इज दिस योर फर्स्ट टाइम?
उसके गालों पर मेरे स्वस्तिक और कलश चमक रहे थे।
मेरा ब्वायफ्रेंड स्तम्भित खड़ा था। अवाक! कलाकार के गालों, उसके नंगे नितम्बों और मेरी खुली जांघों को देखता।
“हाँ…” मैंने कहा।
फिर मैंने ब्वायफ्रेंड से पूछा- क्या तुम मुझे प्यार करते हो?
“दीपिका, प्लीज…” उसके बोल फूटे।
“किक मी हार्ड बास्टर्ड…!” मैं कलाकार पर चिल्लाई। उसकी इतनी शराफत असह्य थी, मैं कोई खुरदुरा, कठोर व्यवहार चाहती थी, मैं अपने प्रति गुस्से से भरी थी।
कलाकार ने जोर से धक्का दिया और मेरे कौमार्य पटल को फाड़ता जड़ तक घुस गया।
दर्द से मेरी चीख निकल गई ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’
“रुकना मत!” मैंने दाँत पीसते हुए कहा। मेरा प्रेमी सामने खड़ा है।
कलाकार जैसे जागा और जोर जोर धक्के लगाने लगा। मैं दाँत पीसती दर्द से चिल्लाती रही और सुन सुनकर वह और जोर जोर ठोकता रहा।
मैंने चिल्लाकर ब्वायफ्रेंड से पूछा- तुमने मुझे बताया नहीं… क्या तुम मुझे प्यार करते हो?
मैं धक्कों में ऊपर नीचे हो रही थी, और पेड़ू पर थप थप जोर जोर बज रहा था।
कलाकार अब और नहीं थम सका, गुर्राता हुआ मेरे अंदर छूटने लगा- हुम्म… हुम्म… हुम्म…
‘थप थप थप…’ वीर्य की लहरें खून के साथ मिलकर सब तरफ लिथड़ने लगीं।
कुछ छींटे मेरे चेहरे पर आ पड़े।
पूरी ताकत से ठेल ठेलकर उसने अंतिम बूंद तक खाली किया और मेरे गर्भ-कलश को अपने बीज से भरकर बाहर निकल आया।
उसके लिंग पर गाढ़े लाल द्रव की मोटी लकीरें खिंची थीं। मेरे जीवन का पहला पुरुष अंग, मेरा उद्घाटन करने वाला।
मेरा प्रेमी भी उसे देख रहा था।
मेरी क्षत-विक्षत योनि से उड़ेल-उड़ेलकर लाल द्रव निकल रहा था। कुर्सी की सीट गंदी हो गई थी। मैंने रूमाल छेद पर दबा लिया। घाघरे को खींचकर पैरों को ढक लिया।
कलाकार बाथरूम की ओर प्रस्थान कर गया।
ब्वायफ्रेंड जैसे किसी आवेग से दौड़कर मेरे पास आया- ये क्या कर लिया दीपू?
“बड़े उतावले थे… कर लो तुम भी!”
“प्लीज, इतना इंसल्ट न करो।”
“अब बोलो ‘आय लव यू’!”
“प्लीज दीपू!”
“मैंने इतना तुम्हारे लिए किया…!” भावावेग से मेरा गला रुंध गया।
“मुझे मालूम नहीं था कि तुम मेरे किए का बदला खुद से लोगी।” उसने मेरा सिर सहलाया।
“मैं अपनी जान भी ले लूंगी। मैंने क्या सोचा था, तुमने क्या किया?”
“इस तरह खुद को कोई आग में झोंक देता है भला!”
कलाकार बाहर आया, कपड़े पहने, पैंट कसी, उसके गालों पर मेरी योनि के प्रथम स्पर्श के स्वस्तिक कलश बड़े प्यारे लग रहे थे।
उस क्षण कलाकार मुझे बहुत अपना-सा लगा।
मैं उठी और बाथरूम चली गई।
घाघरा भीग गया था। दूसरा घाघरा नहीं था।
बाहर कमरे में गई तो देखा, मेरा ब्वायफ्रेंड कलाकार से कुछ बोल रहा था।
कलाकार ने मुझे देखकर कहा- मैडम, ये मुझे मेरी कलाकारी के पैसे चुकाना चाह रहा है। मैं आपकी इजाजत के बगैर पैसे कैसे ले सकता हूँ।
ब्वायफ्रेंड- प्लीज दीपू… मुझे देने दो!
कलाकार- मैंने कहा है कि मैं इस काम के पैसे तभी लूंगा, जब उसे पसंद किया जाएगा।
ब्वायफ्रेंड- मुझे यह कलाकारी बहुत पसंद आई है, और…
वह मेरी ओर मुड़ा- आई लव यू!
मैंने लज्जा से सिर झुका लिया।
पैसे अदा करके ब्वायफ्रेंड मेरी तरफ आया- थोड़ी देर रुकना।
वह जल्दी से नया घाघरा लेकर आया। मैंने आर्टिस्ट के स्वस्तिक-कलश छपे गालों को चूमा और ब्वायफ्रेंड के साथ बाहर निकल गई।
आगे क्या हुआ वह सपने जैसा है।
उसने उस दिन पता नहीं कैसे… तुरत-फुरत एक बहुत ही खूबसूरत होटल का प्रबंध किया और मुझे वहाँ ले गया। दीपावली की वो रात हमने साथ मनाई, साथ फुलझड़ियाँ छोड़ीं। मेरी योनि का दीपक सचमुच प्यार के तेल से प्रज्वलित हो गया। देर रात जब अभी अमावस का अंधेरा दीपकों की रोशनी से दूर हो रहा था, मेरी योनि में एक नई सुबह का आगमन हो रहा था।
कहने की जरूरत नहीं कि दो महीने बाद मैंने उल्टियाँ कीं।
उनकी माँ ने बेटे को चेताया था- बेटा, बहू को ध्यान से रखना।
पता नहीं वह उलटी किसकी देन थी, कलाकार की या पति बन चुके बवायफ्रेंड की।
“मैं तुम्हें अब ऐसे खुली असुरक्षित नहीं छोड़ सकता, पता नहीं क्या कर बैठो! पागल हो तुम!” उसने कहा था।
तीन हफ्ते में ही शहनाई बज गई। योनि के दीपक का प्रकाश जीवन में फैल गया।
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