वो रात सुहागरात बनी-2

रंजन कोटा 2014-07-13 Comments

रंजन
संगीता की पूरी कहानी सुन कर एक बार तो मुझे उस पर दया आई और साथ ही यह विचार भी कि इतना खुल कर संगीता का मुझे सब कुछ बताना कहीं मुझे आमंत्रण तो नहीं?
तब तो मैं संगीता को कुछ कह नहीं पाया, बस इतना जरुर कहा कि आपको डाक्टरी सलाह लेनी चाहिए।
पर मुझे क्या पता था कि इतना राज मेरे सामने उगलने के पीछे क्या राज छुपा है।
हम लगभग रात को 11 बजे रतलाम रेलवे स्टेशन पर पहुँचे, रात बहुत हो चुकी थी, इसलिए मैंने लॉज में रुकना ज्यादा उचित समझा। मैंने कई होटल व लॉज ट्राई किए मगर कमरे खाली नहीं थे।
ऐसे में केवल एक लॉज में हमें एक कमरा मिल पाया, तो मैंने सकुचाते हुए संगीता से कहा- भाभी जी आप यहाँ रुक जाइए, मैं किसी और लॉज में कमरा ढूंढता हूँ।
तो वो बोली- रंजन परेशान मत हो, हम एक कमरे में ही रुक सकते हैं।
मुझे इसके पीछे छिपी उसकी मंशा का अंदाजा ना था, मैंने हल्के स्वर में सहमति दे दी।
हमें जो कमरा मिला, वो छोटा सा था। उसमें एक डबल बेड के अलावा एक टी-टेबल थी और एक टीवी भी लगा था। कमरे के साथ ही अटैच बाथरुम था।
कमरे में और गुंजाइश नहीं देखते हुए मैंने कहा- भाभीजी, आप यहाँ सो लीजिए में बाहर सो जाता हूँ।
तो उसने कहा- कोई जरूरत नहीं… जब हम रुम शेयर कर सकते हैं… तो बेड क्यों नहीं..! तुम मेरे साथ इसी बेड पर सो जाना।
अब मेरे दिमाग में एक कीड़ा घुस चुका था कि हो ना हो आज कुछ ना कुछ जरूर होने वाला है। खैर मैं बाहर गया और कुछ खाने के लिए व कोल्ड ड्रिंक की बोतल ले आया।
कमरे का दरवाजा लगा हुआ था, मैंने दरवाजा बाहर से खटखटाया, तो अन्दर से संगीता की आवाज आई- खुला है, तुम आ जाओ।
मैं दरवाजा खोल कर अन्दर गया तो मैंने देखा संगीता केवल ब्लाऊज व पेटीकोट में थी।

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मैं नजरें नीची करते हुए बेड पर आकर लेट गया। सफर से थका हुआ था, इसलिए बिस्तर पर गिरते ही मुझे नींद आ गई।
नींद में मुझे अहसास हुआ कि मेरे लण्ड को कोई चूम रहा है। मैंने अपनी थोड़ी सी आँखें खोल कर देखा तो पाया कि संगीता मेरे लण्ड के साथ खेल रही थी और चूंकि मैं जागृत अवस्था में था, इसलिए मेरा लण्ड भी तन कर अपने पूर्ण यौवन तक पहुँच गया।
जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूँ कि मेरा इससे पहले किसी औरत से संबंध नहीं रहा तो आप खुद समझ सकते हैं कि मेरी और मेरे लण्ड की उस समय क्या हालत हो रही होगी, पर मैं तब भी सोने का नाटक करता रहा।
मेरे कंट्रोल की इन्तहा तब हो गई, जब संगीता ने मेरा लण्ड अपने मुँह में ले लिया और उसका मुँह खोल कर लण्ड के सुपारे को चाटने लगी।
मुझे लगने लगा कि अब तो लण्ड फट जाएगा।
मैंने अपने दोनों हाथों से संगीता का मुँह अपने लण्ड से हटाया और गुस्से में आकर कहा- आखिर तुम चाहती क्या हो..!
तो वो बड़ी बेशरमी से बोली- प्यासे को क्या चाहिए.. पानी और मुझ प्यासी की प्यास तो तुम्हारा ये लण्ड ही बुझा सकता है और जब यह तैयार है तो तुम नाराज क्यों होते हो..! प्लीज रंजन मुझे मना मत करना, तुमने मुझे अपना दोस्त बनाया है, तो क्या दोस्ती का फर्ज भी नहीं निभाओगे?
मैं निरुत्तर था।
मैंने उसे अपनी ओर बुलाया और उसके माथे पर चुम्बन करते हुए कामकला से अनभिज्ञ बनकर कहा- भाभी, अगर ऐसी बात है तो मैं आपके साथ हूँ, पर मुझे करना क्या है यह तो बताइये?
तो वो बोली- सबसे पहले तो तुम मुझसे भाभी कहना बन्द करो और वो कहो जो अपनी प्रेमिका से कहना पसन्द करोगे।
मैं उसका मतलब समझ चुका था, फिर भी पूछ लिया- आप क्या सुनना पसन्द करोगी?
तो वो बोली- तुम मुझे रानी कह सकते हो, क्योंकि मैं तुम्हें रंजन नहीं अपना राजा मान बैठी हूँ।
और उसने मेरे मुँह पर अपना मुँह रख दिया। अब उसकी जुबान मेरे मुँह में प्रवेश कर चुकी थी। काफी देर तक हम एक-दूसरे के मुँह में मुँह डाले पड़े रहे।
फिर वो उठी उसने मेरे सारे कपड़े उतारे व मुझसे कहा- तुम मेरे कपड़े उतारो।
मैं तो बस तैयार बैठा था, मैंने उसका ब्लाऊज उतारा तो देखा सामने एक बेंगनी रंग की ब्रा से दो संतरे बाहर निकलने को आतुर हैं। फिर पेटिकोट का नाड़ा खोला और जैसे ही वो नीचे सरका तो पाया कि नीचे जो पैन्टी उसने पहनी थी, वो भी बेंगनी रंग की ही थी। कहने का मतलब उसने ब्रा-पैन्टी का सैट ही पहना था।
अब मैं सबसे पहले उसके दोनों संतरों की तरफ लपका और उन्हें ब्रा की कैद से आजाद किया। उसके संतरों में वो कसाव था, जो किसी 18 साल की लड़की के स्तनों में होता है।
मेरे लिए तो वैसे भी किसी स्त्री के साथ संसर्ग का यह पहला अवसर था, तो आप खुद ही अंदाजा लगाइए कि मेरी बेसब्री किस कदर की रही होगी।
मैंने उसका एक स्तन अपने मुँह में भरा और एक स्तन को हाथ से दबाने लगा।
दोनों हाथों में लड्डू किसे कहते हैं, यह मुझे अब समझ आ रहा था।
मैं ज्यों ही उसके स्तन की डोडियों को काटता उसके मुँह से एक ‘सिसकारी’ निकल जाती।
इसी समय वो मेरे लण्ड को हाथ में पकड़ कर मसल रही थी। कुछ देर तक ऐसा ही करने के बाद वो अब नीचे तक आई और दुगने जोश के साथ मेरे लण्ड को अपने मुँह में भरने लगी।
मुझे तो जैसे स्वर्ग का सुख मिल रहा था। कुछ देर बाद मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मेरे लण्ड से प्रेशर के साथ कोई गाढ़ा रस निकल रहा है और संगीता उस पूरे रस को अपने गले में उतार गई।
मेरी आँखों में जैसे कोई बेहोशी सी छा गई थी, मैं बिस्तर पर लेट गया।
संगीता अब भी मेरे लण्ड के साथ खेल रही थी। दो मिनट बाद मैंने महसूस किया कि मेरा लण्ड फिर से अपने उसी रूप में आ गया। अब मुझे संगीता की पैन्टी उतारने की तमन्ना थी। उसकी नाभि पर चुम्बन करता हुआ मैं नीचे की ओर आया और अपने दोनों हाथों से उसकी पैन्टी उतारी, तो मैंने देखा कि उसकी चूत बिल्कुल क्लीन शेव थी और वैसे भी फिल्मों के अलावा असल जिन्दगी में यह मेरा पहला चूत दर्शन था।
संगीता की इच्छा थी कि मैं उसकी चूत को चाटूं, पर मेरा मन इसको गंवारा नहीं कर रहा था। मैंने अपनी एक उंगली संगीता की चूत में डाली।
ज्यों ही मेरी उंगली ने संगीता की चूत में प्रवेश किया, वो उछल पड़ी और बोली- मेरे राजा इसको उंगली की नहीं, तुम्हारे लण्ड की जरूरत है, बस अब जल्दी से इसमें अपना लण्ड पेल दो।
मैं तो जैसे इसी आमंत्रण की प्रतीक्षा में था। मैंने उसे सीधा लेटाया और खुद उसके ऊपर आ गया। अब मेरा मुँह उसके मुँह पर था और मेरा लण्ड उसकी चूत पर..!
उसने अपने हाथ से मेरे लण्ड को अपनी चूत पर सैट किया और बोली- मेरे राजा, अब अपनी गाड़ी का एक्सीलेटर दो और फिक्स कर दो मेरे गैराज में !
उसकी ये उत्तेजक बातें मुझमें जोश भर रही थीं। उसी जोश के साथ मैंने पहला धक्का लगाया, तो चूत में थोड़ी जगह बनाते हुए मेरे लण्ड का सुपारा अपनी जगह बना चुका था। निचले प्रयास के साथ-साथ में उसके स्तनों से खेलने का भी आनन्द उठा रहा था।
अबकी बार मैंने एक जोरदार धक्का लगाया और मैं सफल रहा। अब मेरा लण्ड संगीता की चूत में जड़ तक प्रवेश कर चूका था।
संगीता पर तो जैसे मदहोशी छाई थी, वो दर्द के मारे चीख भी रही थी, साथ ही आनन्द से भरी ‘आहें’ भी भर रही थी।
अब मैं शुरु हो चुका था, मैंने अपना लण्ड संगीता की चूत में अन्दर-बाहर करना चालू किया।
इस दौरान मैंने महसूस किया कि संगीता भी अपनी कमर उछाल कर मेरा सहयोग करना चाह रही है, दस मिनट तक यह दौर चला। तब तक संगीता एक बार झड़ चुकी थी, पर मेरा लण्ड तो जैसे मानने को तैयार ही ना था।
संगीता ने मुझे रोका और कहा- राजा अब आसन बदल करके करते हैं।
मैंने पूछा- चूत मारने के भी अलग अलग तरीके होते हैं क्या?
वो बोली- हाँ..!
और मुझसे कहा- मैं घोड़ी बनती हूँ, तुम पीछे से मेरी चूत में अपना लण्ड डालना।
मैंने वैसा ही किया, सच में मुझे यह आसन बहुत पसंद आया। मैंने उसकी कमर को अपने दोनों हाथों से पकड़ रखा था और ‘दे दनादन’ अपना लण्ड उसकी चूत में दिए जा रहा था।
पांच मिनट तक ऐसा करने के बाद जैसे मेरी आँखों में नींद सी भर आई और मेरे लण्ड ने वीर्य की एक जोरदार पिचकारी चूत में छोड़ दी और मैं निढाल होकर बिस्तर पर लेट गया।
संगीता ने वीर्य से सने मेरे लण्ड को हाथ में लिया और लॉलीपॉप जैसे अपनी जुबान से चाटने लगी।
उसके इस तरह लण्ड के चाटने से मेरा लण्ड फिर से तैयार हो गया। उसके बाद तो संगीता ने मुझे वो हर एक आसन सिखाए जो ब्लू-फिल्मों में दिखाए जाते हैं।
हम पूरी रात नहीं सोये, मैं लगभग 7 बार स्खलित हुआ। शायद सुहागरात को भी दूल्हा-दुल्हन ऐसे ही जागते हों। मेरे लिए तो यह रात ही सुहागरात बन गई।
इसके बाद तो मेरे साथ चुदाई की घटनाओं का दौर चल पड़ा, वो आपको फिर कभी बाद में सुनाऊँगा।
मुझे आप अपने विचार यहाँ मेल करें।
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