शीला का शील-8

(Sheela Ka Sheel- Part 8)

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रानो ने कमरे से निकलते वहाँ जलते नाईट बल्ब को बुझा दिया था और बाहर निकल गई थी और एक मिनट बाद जब वापस आई थी तो उसे महसूस हुआ कि साथ में कोई और है।
रानो ने दरवाजा बंद किया होगा और अंधेरा और गहरा गया।

‘कितना अंधेरा है दी।’ उसे फुसफुसाहट सुनाई दी और वह अनुमान लगा सकती थी कि वह सोनू ही था।
‘तुझे कौन से तीर चलाने हैं जो अंधेरे में नहीं चला सकता। मेरा हाथ पकड़ ले और मुंह बंद ही रखना।’ वह उसे बिस्तर पे ले आई।

उसके बदन की अजनबी सी गंध शीला महसूस कर सकती थी और सोनू के समीप्य से उसकी धड़कनें और बेतरतीब हो उठी थीं।

‘देख सोनू, मुझे पता है कि दी कितनी मुश्किल से तैयार हुई है, पर फिर भी उसमे हिम्मत नहीं कि तेरा सामना कर सके इसलिये अंधेरा भी किया है और आँखों पे पट्टी भी बांधी है।
तुम उनकी शर्म कायम रहने दो, वह खुद से समझेगी तो पट्टी हटायें या अंधेरा दूर करें, पर तुम इसके साथ ही जो करना है करोगे और उज्जडी बिल्कुल नहीं।
दीदी को न पता है इन सब के बारे में और न ही कोई आदत है, जो भी होगा इसके लिए सब नया होगा इसलिए इत्मीनान से और कायदे से करना कि उसे ये न लगे कि उसने मेरी बात मान कर गलती की।’

‘दी… आप दोनों को कोई शिकायत नहीं होगी।’ वह आहिस्ता से बोला।
‘शाबाश! चल फिर शुरू हो जा।’

उसने धक धक करते दिल के साथ महसूस किया था कि रानो उसके साइड में अधलेटी सी बैठ गई थी और सांत्वना भरे अंदाज़ में उसका सर सहलाने लगी थी जैसे कह रही हो ‘चिंता न करना, मैं हूँ!’।

फिर उसे सोनू के सख्त हाथों की चुभन अपने सीने पर महसूस हुई… वह उसके वक्ष सहला रहा था और एक अजनबी स्पर्श को महसूस करते ही उसके शरीर में सिहरन दौड़ गई।

सोनू के हाथ वह अपने सीने पर फिरते और फिर सीने से उतरते, पेट से होते, नाइटी के ऊपर से ही अपनी योनि पर रुकते महसूस किया था।
उसे तेज़ शर्म का अहसास हुआ और वह मचल कर रह गई।

उस पल में रानो ने उसे सर से ज़ोर से दबा कर जैसे इशारा किया था कि ‘खुद में समेटो मत, जो हो रहा है, उसमें मस्ती महसूस करो!’
और उसने अपने दोनों हाथ ऊपर करते रानो को पकड़ लिया था।

कुछ देर सोनू के हाथ को योनि पर फिसलते देने से, उसमे अपनी शर्म को उतारने का मौका मिल गया और वह उस स्पर्श में मस्ती का अहसास करने लगी और उसके मुख से सिसकारी छूट गई।

इस सिसकारी को न सिर्फ सोनू ने महसूस किया बल्कि रानो ने भी महसूस किया और अपने हाथ से उसका हाथ ऐसे दबाया जैसे प्रोत्साहित कर रही हो।

फिर सोनू का स्पर्श गायब हो गया और उसने महसूस किया कि उसकी नाइटी ऊपर सरक रही है। वह जांघों तक उठ कर फंस गई और उसे खींचते देख उसने अपने कूल्हे ऊपर उठा लिये।

बाहर की ठंडी हवा का स्पर्श उसने पिंडलियों से लेकर अपने पेट तक अनुभव किया लेकिन अब भी नाइटी के उठने का सिलसिला अभी थमा नहीं था।

उसे पीठ की तरफ से रानो ने सपोर्ट करके थोड़ा ऊपर किया था जिससे ऊपर उठती नाइटी उसके गले तक पहुँच गई थी और अब उसके वक्ष भी हवा के उस ठन्डे स्पर्श को महसूस कर सकते थे।

यह तो वह अब आदत बना चुकी थी कि सोने से पहले अपने अंतः वस्त्रों को वह उतार देती थी।

उसने सोनू के हाथों को अपनी पिंडलियों पर फिरते महसूस किया और उसके पूरे जिस्म में एक मस्ती भरी सरसराहट दौड़ने लगी।

पहले पिंडलियां, फिर जांघें और जांघों का अंदरूनी भाग, कुछ भी उस छुअन से बाकी न रहा और उसने इस स्पर्श की सरसराहट अपनी योनि में गहरे तक महसूस की।

उसकी जांघों को सहलाते सोनू अपने हाथ बिना उसकी योनि को छुआए उसके पेट से गुज़ारते, उसके वक्ष उभारों पर ले आया।

वह एक कसक, एक तड़प सी महसूस करके रह गई।
जैसे उस घड़ी खुद से चाह रही हो कि वह उसकी योनि को छुए जो उसने नहीं छुई थी।

जबकि वह बड़े आहिस्ता-आहिस्ता उसके स्तनों का मर्दन करने लगा था और चूचुकों को चुटकियों से मसलने लगा था।

उसने अपनी नस-नस में एक अजीब सी सनसनाहट महसूस की जो दिमाग पर इस तरह हावी हो रही थी जैसे वह किसी गहरे नशे के ज़ेरे असर होती जा रही हो।

फिर उसके हाथ हट गए और उसकी रगों में होती अकड़न थम गई। कपड़ों की सरसराहट से उसने महसूस किया कि वह अपने कपड़े उतार रहा था।

कुछ पलों के ब्रेक के बाद उसने सोनू के हाथों को फिर अपनी कमर पर महसूस किया जो वहाँ ज़ोर लगा रहा था।

उसके ज़ोर को समझते हुए वह तिरछी हुई और फिर सोनू ने उसे उल्टा कर दिया।
अब इस हालत में उसकी पीठ वाला हिस्सा उसके सामने था।

हालांकि इस हालत में भी उसने रानो के हाथ थाम रखे थे और ऐसा जता रही थी जैसे उसे रानो की हर हाल में ज़रूरत है।

सोनू उसकी जांघों के ऊपर बैठ गया था। वह उसके नितंबों और जांघों की छुअन को साफ़ महसूस कर सकती थी। फिर उसके हाथ शीला ने अपने नितंबों पर फिरते महसूस किये।

वह दोनों हाथों से कुछ सख्ती से उन्हें दबा रहा था, रगड़ रहा था और इस तरह फैला रहा था जैसे पीछे से ही दोनों छेदों को देख लेना चाहता हो… वहाँ घिरे अंधेरे के बावजूद।

उसकी रगों में फिर मस्ती भरी अंगड़ाइयाँ पैदा होने लगीं।

काफी देर उसके नितंबों को मसलने के बाद वह अपने हाथ फिसलाते उसकी कमर और कन्धों पर चलाने लगा और इस क्रम में अपने जिस्म का भार उसके शरीर पर डालता चला गया।

यहाँ उसके भार से ज्यादा मायने वह नग्न स्पर्श रखता था जो सोनू के सीने और पेट की तरफ से उसकी पीठ को मिल रहा था और उससे ज्यादा रोमांचित उसे अपने नितंबों के बीच वह सख्त स्पर्श कर रहा था जो सोनू के लिंग का था।

फिर उसका पूरा भार उसने अपने शरीर पर अनुभव किया, वह उसके शरीर पर अपना शरीर रगड़ रहा था और यह रगड़ उसके सख्त लिंग की चुभन के साथ और कामोत्तेजना पैदा कर रही थी।

इसके बाद सोनू ने फिर उसे पलट लिया और आधा बिस्तर और आधा उसके शरीर पर चढ़ आया। अब उसका लिंग शीला को अपनी कमर पर महसूस हो रहा था।

अचानक उसने गर्म गर्म सांसें अपने चेहरे पर महसूस कीं… फिर दो होंठों का स्पर्श अपने होंठों पर…
कई ठंडी-ठंडी लहरें जैसे ऊपर से नीचे तक दौड़ीं और पहली बार उसने किन्ही होंठों को इतने नज़दीक पाया।

वे उसके होंठों को छू रहे थे, उन्हें रगड़ रहे थे और खोलने की कोशिश कर रहे थे लेकिन स्त्रीसुलभ लज्जा और संकोच उन्हें बांधे हुए था।
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भले उसके दिमाग में छोटे बड़े का फर्क निकल गया था पर वर्जना अभी भी कहीं बाकी थी जो उसके होंठों को बंद गठरी में बांधे थी। सोनू अपने गीले होंठों से उन्हें कुचल रहा था, मसल रहा था और अपने होंठों में खींच कर चूसने की कोशिश कर रहा था।

लेकिन वह सहयोग नही कर पा रही थी।
ऐसा नहीं था कि उसे बुरा लग रहा हो मगर वह उस झिझक से नहीं जीत पा रही थी जो उसके दिल-दिमाग पर अभी तक हावी थी।

फिर वे दो गीले होंठ उसके होंठों को छोड़कर नीचे उतरते गये, पहले उसकी ठुड्डी पर, फिर गर्दन पर और फिर नीचे जहाँ से उसके उभार शुरू होते थे…

वे गीली गीली छुअन देते उनकी चोटियों पर जा थमे थे और चोटियों के गिर्द गोल घेरा बनाते फिर रहे थे।
उसने अपने निप्पलों में कड़ापन आता अनुभव किया था और जैसे वे खुद उन होंठों में जाने को आतुर हो गए थे।

फिर उन होंठों से एक जीभ बरामद हुई जो उसके एरोला पर फिरने लगी।
उसके बदन में दौड़ता नशा और बढ़ गया।
जीभ एरोला से होती उन चुचुकों पर चढ़ आई और उन्हें लपेटती फिरने लगी।

ऐसा लगा जैसे उसके बदन में उन निप्पलों से लेकर योनि की गहराइयों तक करेंट की धारा प्रवाहित होने लगी हो।
वह ऐंठने लगी, मचलने लगी।

उसने अपना एक निप्पल सोनू के मुंह में जाते महसूस किया और एकदम से गनगना कर ज़ोर की ‘आह’ कर बैठी, जिस पर बाद में उसे खुद शर्म आई।

‘दीदी के निप्पल कितने मोटे हैं।’ उसने चूषण के बीच में आवाज़ सुनी।

वह समझ न सकी कि यह तारीफ थी या बुराई। निप्पल का मोटा होना अच्छा था या ख़राब…
लेकिन प्रत्युत्तर में रानो सिर्फ ‘हूँ’ करके रह गई।

दोनों चूचुकों को चुसाते उसने अनुभव किया था कि उसकी योनि से उस रस का रिसाव होने लगा है जो इस बात का सूचक था कि वह अब समागम को आतुर है।

लेकिन समागम करने वाला तो बड़े इत्मीनान से उसके वक्ष से खेल रहा था।
फिर उसने सोचा कि अच्छा ही है यह खेल जितना लंबा चले उतना ज्यादा मज़ा।

आखिर इस सिलसिले का अंत हुआ और वह उसके चूचुकों को छोड़ कर नीचे उतरने लगा और उसके सीने के नीचे हर हिस्से पर अपनी जीभ की छुअन देते, उसके पेट तक पहुंच गया।
उसकी जीभ शीला की नाभि के गड्ढे से किलोलें करने लगी।

उसमें और सिहरनें दौड़ने लगीं.. और जब योनि के ऊपर मौजूद घने बालों से गुज़र कर नीचे गीली हुई पड़ी योनि तक पहुँचा तो इस सिहरन की इन्तहा हो गई।

वह खुद से महसूस कर सकती थी कि उसके भगोष्ठ गीले हुए पड़े थे और वह उन पर बाहर से ही जीभ चलाता, अपनी लार से और गीला करने लगा।

फिर उसने उंगलियों से योनि के होंठ खोले थे और अंदर के नर्म और गर्म भाग में उंगली फिराने लगा।
उसके पूरे शरीर में ऐसी तेज़ झनझनाहट पैदा हुई कि जिस्म अकड़ गया।

सोनू उंगली ऊपर-नीचे करके, फिर बीच वाली उंगली योनि के सबसे निचले सिरे पर मौजूद छेद में थोड़ी दूर तक उतार ले गया और अपनी जीभ की नोक से उसकी योनि की कलिकाओं को चूसने-खींचने लगा।

उन पलों में उसे ऐसा लगा जैसे उसका खुद पर अब कोई नियंत्रण न बाकी रह गया हो और उसने रानो को छोड़ दिया और हाथ नीचे करके बिस्तर की चादर ऐसे मुट्ठियों में दबोच ली जैसे अपनी ऊर्जा उसमें जज़्ब कर देना चाहती हो।

कुछ देर उन कलिकाओं को खींचने चूसने के बाद सोनू अपनी जीभ की नोक से उसके भगांकुर को छेड़ने दबाने और खोदने लगा।
उसके शरीर में दौड़ती लहरें और तेज़ हो गईं।
जबकि सोनू की उंगली लगातार अंदर-बाहर हो रही थी।

‘दीदी की झिल्ली है क्या?’ अचानक उसने मुंह उठा कर पूछा।
‘नहीं, बचपन में साइकलिंग की नज़र हो गई।’ जवाब रानो ने दिया था।

फिर उंगली और गहरे तक धंसती गई और जितनी जा सकती थी पूरी अंदर चली गई।
शीला की तड़प और बढ़ गई… उसके दिमाग में वह सब चल रहा था कि कैसे उसने रानो के साथ पहला सम्भोग किया था।

वह भी खुद को उसी मनःस्थिति में पा रही थी कि जल्दी से सब हो जाये, सोनू एकदम उसकी योनि में अपना लिंग घुसा दे और उसे इतने धक्के लगाये कि उसकी बरसों की चाह पूरी हो जाये।

लेकिन सोनू तब नया था, अनाड़ी था जबकि अब वह एक अनुभवी खिलाड़ी था, उसमें अधीरता लेशमात्र भी न रही थी और सब इतने सब्र के साथ कर रहा है जैसे…
जैसे इस सिलसिले का कोई अंत नहीं करना चाहता हो!
जैसे उसे बस तड़पाते रहना चाहता हो।

‘अब करो भी।’ अचानक उसे रानो की सख्त गुर्राहट सी सुनाई दी।
रानो उसे बेहतर समझ सकती थी कि वह किस हाल से गुज़र रही थी।

‘दीदी, मेरा भी तो तैयार करो।’ उसे सोनू की बेशर्म बात सुनाई दी।
‘वह दी से नहीं होगा।’ रानो ने टालने वाले अंदाज़ में कहा।
‘तो आप करो न।’ सोनू ने ज़िद की।

फिर उसने बिस्तर पर खिसकने की सरसराहट महसूस की और यह महसूस किया जैसे सोनू अब उसके सीने की तरफ आ गया हो।
इसके बावजूद वह अब ऊपर की तरफ से उसकी योनि से मुंह भी लगाए था और उंगली से योनिभेदन भी कर रहा था।

लेकिन अब उसे एक नई किस्म की आवाज़ अपने चेहरे के पास सुनाई देने लगी थी जैसे मुंह से कोई चीज़ चूसी जा रही हो।

इतनी नादान नहीं थी कि समझ न सकती… जो वह नहीं कर सकती थी वह रानो कर रही थी, वह सोनू का लिंग चूषण कर रही थी।

शुरुआत में उसमे वितृष्णा के भाव पैदा हुए लेकिन जल्दी ही योनि से उठती सिहरनों ने उसकी विचारधारा बदल दी।
एक मर्द अगर किसी स्त्री की योनि को अपनी जीभ से चूस सकता है तो स्त्री के लिये वही चीज़ कैसे वर्जित हो गई।

हालांकि अभी वह खुद को इसके लिए तैयार नहीं पाती थी लेकिन रानो को लिंगचूषण करते देखना चाहती थी, पर पट्टी हटाने की भी हिम्मत नहीं थी।

फिर वह आवाज़ें थमी और एक बार फिर सरसराहट हुई और उसने महसूस किया कि सोनू उसकी टांगों के बीच आ बैठा हो।
तो वक़्त आ गया अब उसके पहले सम्भोग का।

उसने मानसिक रूप से खुद को लिंग के स्वागत और भेदन के लिये कर लिया।

उसने दरवाज़े पर मेहमान की छुअन महसूस की और वह परदे सरकाता हुआ अंदर झाँका, कुछ सेकेंड उसने नीचे से ऊपर चलते-फिरते जैसे टोह ली हो।

फिर उसने योनि के छेद पर उसके शिश्नमुंड का दबाव महसूस किया और उसने दोनों हाथों से उसकी जांघों के निचले हिस्से को सख्ती से थाम लिया।
वह परिपक्व थी, दर्द को ऐसे क्षणों में तवज्जोह नहीं देना चाहती थी इसलिये दिमाग से हर पल में आनन्द अनुभव करना चाहती थी।

फिर ऐसा लगा जैसे वह उसके संकुचित से छेद पर गहरा दबाव डाल रहा हो, कसी हुई दीवारें फैल रही हों।
उसने उन दीवारों को ढीला कर दिया और एकदम ऐसा लगा जैसे बंधन टूट गया हो।

जैसे रबर का छल्ला एकदम खिंच कर फैल गया हो और एक मोटा चिकना ऑब्जेक्ट अंदर प्रवेश कर गया हो।
दर्द की एक तेज़ लहर उसके दिल दिमाग को हिला गई।

उसके मुख से एक ज़ोर की ‘आह’ ख़ारिज हुई थी और उसने एक हाथ से तकिये और दूसरे हाथ से रानो की बांह दबोच ली थी और उस दर्द को बर्दाश्त करने की कोशिश करने लगी थी।

पर कुछ भी था, वह उम्र के उस दौर में नहीं थी जहाँ ऐसे वक़्त में लड़की तड़पने मचलने लगती है।

इसका कारण भी था, कि कम उम्र में योनि की मांसपेशियाँ काफी सख्त होती हैं और जब उन पर लिंग के प्रथम प्रवेश का दबाव पड़ता है तो वे खिंचते वक़्त ज्यादा तकलीफ देती हैं।

जबकि उम्र बढ़ने के साथ उन्हीं मांसपेशियों में लचीलापन बढ़ जाता है और वे ढीली हो जाती हैं। जिस दर्द को झेलने में रानो कुछ वक़्त के लिये मूर्छित हो गई थी, उसने वह दर्द झेल लिया था।

सोनू ने उसके घुटनों से पकड़ नहीं हटाई थी मगर शीला को मचलते या उसे परे धकेलते न पाकर पकड़ ढीली ज़रूर कर दी थी और उसे यह भी समझ में आ गया था कि शीला वैसे नहीं रियेक्ट करेगी जैसे वह अपेक्षा कर रहा था।

उसने लिंग को आधी दूरी पर ही रोक लिया था और योनि की मांसपेशियों को पूरा मौका दे रहा था कि वे उसके साइज़ के हिसाब से एडजस्ट हो सकें।
साथ ही उसने अपने हाथ शीला के घुटनों से हटा कर एक हाथ से उसके वक्ष को मसलने लगा था तो दूसरे हाथ से उसके भगांकुर को रगड़ने लगा था।

जबकि रानो अपने एक हाथ से शीला के सर को सहलाती उसे हिम्मत बंधाने का अहसास पैदा कर रही थी और दूसरे हाथ से उसके एक वक्ष को नर्मी से सहला रही थी।

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