शर्म, हया, लज्जा और चुदाई का मजा-1

जयेश जाजू 2014-10-21 Comments

नमस्कार मित्रो, मैं आपका दोस्त जयेश फ़िर एक बार आपके लिए एक मजेदार कहानी लेकर आया हूँ।
उम्मीद है मेरी यह कहानी भी आपको जरूर पसंद आएगी।

मित्रो, यह कहानी मेरी नहीं है इसको मैंने केवल लिखा है, असल में यह कहानी मेरी एक मित्र की है जिसके अनुरोध पर मैं इसे लिख रहा हूँ।
मेरी उस मित्र का नाम रिया (बदला हुआ) है।

तो चलो, अब आगे की कहानी रिया की जुबानी सुनते हैं।

मेरा नाम रिया खन्ना है, महाराष्ट्र के एक गाँव में रहती हूँ। मैं दिखने में सुन्दर हूँ, मेरा कद 5’5″ है, मेरे शरीर की रचना 30-28-30 की है।
मैं अक्सर अन्तर्वासना की कहानियाँ पढ़ती हूँ, तो मैंने सोचा क्यों ना मैं अपनी आपबीती भी आपके साथ बाँट लूँ।

वैसे तो मैं बहुत शर्मीली हूँ लेकिन मेरे जीवन के एक हादसे ने मेरा पूरा स्वभाव ही बदल दिया है। वो ऐसी कौन सी घड़ी थी जिसने मेरा पूरा जीवन बदल दिया, वही आज में आपको बताने जा रही हूँ।

बात उस समय की है जब मैं अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी कर आगे के पढ़ाई के लिए मुम्बई जाना चाहती थी, तो मेरे परिवार वालों ने भी इस पर ज्यादा एतराज न जताते हुए मुझे मुम्बई जाने की इजाजत दे दी और साथ ही मैंने मुम्बई के एक बहुत ही बड़े और नामी कॉलेज में अपना दाखिला करवा लिया।

मैं आपको बता दूँ कि मेरे परिवार में हम सिर्फ़ तीन लोग हैं मेरे मम्मी, पापा और मैं, इसके अलावा और कोई नहीं है। मेरे पापा जो कि सरकारी दफ़्तर में काम करते हैं और मेरी मम्मी एक गृहणी हैं।

जैसा मैंने आपको बताया कि मैं बहुत शर्मीली हूँ तो मैं अक्सर छोटी-छोटी बात पर डर जाया करती थी या शर्मा कर उस जगह से चली जाया करती थी।

सेक्स जैसे विषयों की बात पर बता दूँ कि सेक्स के नाम से भी मुझे नफ़रत थी। यहाँ तक स्कूल में जब मेरी सहेलियाँ सेक्स की बातें करती, तो मैं वहाँ से उठ कर चली जाती।

मैंने तो कभी खुद के शरीर को भी शीशे के आगे निहारा नहीं है, ना ही मैं कभी बाथरूम में अपने शरीर के अंगों को छूती।

सेक्स के विषय में मेरा हमेशा से ही अलग मत रहा है मुझे यह चीज बिल्कुल पसंद नहीं है।

मेरे मुम्बई आने कुछ ही दिनों बाद मेरे पापा ने भी अपनी बदली मुम्बई करवा ली।

अब मैं भी रोज कॉलेज जा रही थी और मेरे यहाँ कई दोस्त भी बन गए थे। उन सब में से एक लड़की निशा मेरी पक्की सहेली बन गई थी।

निशा जो दिखने में काफी खूबसूरत थी, उसका रंग गोरा, कद 5’6″ था।

उसका जिस्म भी काफी सुन्दर था जिसके कारण काफी लड़के उस पर मरते भी थे।

निशा का स्वभाव मुझसे काफी अलग था वो पूरे खुले विचारों वाली लड़की थी।

वो अक्सर ही जीन्स और टॉप पहन कर कॉलेज आया करती थी।

हम दोनों अब बहुत पक्की सहेलियाँ बन गई थी।

एक बार की बात है घर के काम की वजह से कुछ दिनों से मैं कॉलेज नहीं गई हुई थी, तो निशा अचानक से मेरे घर आ गई।

निशा- नमस्ते आँटी।

मम्मी- अरे.. निशा बेटा आओ…

निशा- आँटी, रिया है?

मम्मी- ऊपर है अपने कमरे में, जाओ बेटा ऊपर ही चली जाओ।

निशा- ठीक है आँटी।

निशा आई, तब मैं अपने कमरे में लेटे हुए टीवी देख रही थी और मैंने काले रंग की लैगी और सफ़ेद टॉप पहना हुआ था।

मैं- अरे निशा… तुम यहाँ कैसे?

निशा- क्यों यार.. क्या मैं तेरे घर नहीं आ सकती?

मैं- नहीं यार.. ये घर भी तो तुम्हारा है, बताओ कुछ काम था क्या ?

निशा- हाँ, कॉलेज में प्रोजेक्ट दिया है सबने अपने-अपने टॉपिक ले लिए हैं अब बस तू ही बाकी है और हाँ.. यह प्रोजेक्ट इस सोमवार को देना है।

मैं- बाप रे… फिर मैं तो मर गई दो दिन में मैं कैसे प्रोजेक्ट पूरा कर पाऊँगी?

निशा- चिन्ता मत कर.. मैं हूँ ना.. मैं करवा लूँगी, तू बस मेरा साथ रहना।

मैं- वो सब तो ठीक है, पर करना क्या है और क्या नाम है प्रोजेक्ट का ?

निशा- प्रोजेक्ट का नाम है… डर और मजा.. और हाँ इस प्रोजेक्ट के लिए तुझे मैं जो भी कहूँ, करना होगा और हाँ.. तुझे तेरे डर को पूरी तरह से बाहर निकालना होगा.. बोल कर पाएगी?

मैं- अब करना तो पड़ेगा ही, वैसे प्रोजेक्ट में क्या देना है कॉलेज में? नोट्स वगैरह या कुछ और?

निशा- ज्यादा कुछ नहीं, बस नोट्स बनाने हैं तेरे अनुभवों पर और वीडियो भी बनाना है। मैं एक और बार पूछ रही हूँ सोच ले कर पाएगी ये सब, कुछ भी करना पड़ेगा?

मैं- हाँ यार कितनी बार कहूँ.. मैं कर लूँगी, चल जल्दी शुरू करते हैं दो दिन में प्रोजेक्ट देना भी है। चल बता क्या करूँ अब?

निशा- चल अब एक नोटबुक ले और एक पेन ले और उस पर अपना नाम लिख, आज की तारीख़, जगह का नाम, तूने कौन से कपड़े पहने हैं और उनका रंग क्या है ये सब लिख और हाँ.. बड़े अक्षरों में लिख़ना।

मैं- नाम, जगह, ये सब तो ठीक है पर कपड़े क्यों लिखूँ ?

निशा- तू उतना कर.. जो मैं बोल रही हूँ, बस.. ज्यादा सवाल किए ना तो मैं नहीं करने वाली तेरी मदद.. मैं जा रही हूँ।

मैं- अरे… रुक मैं लिखती हूँ प्लीज़ यार तू जा मत, मैं अकेले ये सब नहीं कर सकती… मैं सब लिख़ती हूँ।

निशा- ठीक है फ़िर और हाँ सब कपड़ों के नाम लिखना, अन्दर-बाहर जितने भी हैं सबके नाम लिखना है।

इसके बाद मैंने पेपर पर सब कुछ लिखा जो निशा मुझसे कहा जैसे कि मेरा नाम- रिया खन्ना, जगह- मेरा कमरा, कपड़े- काले रंग की लैगी, सफ़ेद रंग का टॉप, गुलाबी रंग की ब्रा, पैन्टी और बाकी की सब चीजें लिखने के बाद मैंने उससे कहा।

मैं- ले निशा.. मैंने इसमें सब लिख दिया जो तूने कहा था।

निशा- ठीक है… चल अब जल्दी से अपनी ब्रा और पैन्टी दोनों निकाल दे।

मैं- क्या… निकाल दूँ.. तू ये क्या बोल रही है.. नहीं मैं ऐसा नहीं करने वाली।

निशा- ज्यादा नाटक मत कर.. जैसा बोल रही हूँ वैसा जल्दी से कर।

मैं- ठीक है पर मैं तेरे सामने नहीं उतारूँगी तू अपनी आँखें बन्द कर।

निशा- अच्छा बाबा.. ठीक है.. ले कर लीं आँखें बन्द, अब उसे जल्दी से उतार।

मैंने धीरे से अपने कपड़े उतारे और मैंने अपनी ब्रा-पैन्टी उतार कर मेरी अलमारी में रख दी।
निशा के कहने पर मैंने पहली बार बिना ब्रा-पैन्टी के कपड़े पहने थे, मुझे बड़ा ही अजीब लग रहा था।
मेरे मन में एक अलग ही बेचैनी सी हो रही थी।
बिना ब्रा-पैन्टी के कपड़ों में मेरे स्तनों का उभार भी काफी ढीला लग रहा था।
टॉप के ऊपर से मेरे स्तनों का आकार काफी आसानी से समझ आ रहा था।
मैं बार-बार अपने हाथों से अपने स्तन छुपा रही थी।

यह अनुभव मेरे लिए पूरी तरह से नया था, तो जाहिर सी बात है कि मैं बहुत डरी हुई थी।

निशा- चल अब शर्माना हो गया हो तो नीचे चल, मुझे पानी पीना है चल जल्दी।

मैं- क्या… नीचे चलूँ.. तू होश में तो है, नीचे मेरी मम्मी हैं और मैंने तो अन्दर से कुछ पहना भी नहीं है?
कहानी जारी रहेगी।
आपके विचारों का स्वागत है।

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